Sunday, March 27, 2011

जंगल उजड़ता है -तो SIRF PARYAWARN नष्ट नहीं होता है। लेकिन एक PED कटता है, एक झाड़ टुटता है-तो आदिवासी-मूलवासी समाज का आर्थिक रीढ़ टूटता है।


putkal sag todti mahilayen...
जल-जंगल-जमीन, नदी, पहाड़ आदिवासी-मूलवासी समाज का सामाजिक, आर्थिक, सास्कृतिक, राजनीतिक औरइतिहास का मजबूत रीड़ है। पेड़ काटता है तो सिर्फ जंगल नहीं उजडता है। जंगल उजड़ता है -तो SIRF PARYAWARN नष्ट नहीं होता है। लेकिन एक PED कटता है, एक झाड़ टुटता है-तो आदिवासी-मूलवासी समाजका आर्थिक रीढ़ टूटता है।
समूहिकता टूटती है। संस्कृतिक अस्तित्व नष्ट होता है। प्रकृतिकमूलक समाज के लिए हर घांस, पात, झाड़, लतर, कंद-मूल, भोजन है। यही नहीं स्वस्थ्य का आधार भी है।
पुटकल पेड़. हर गाँव में सैकड़ों पेड़ है. हर कल नया पता निकलता है..इसका कोमल पत्ता को तोड़ते हैं. सुखा बाजारमें १५० रूपया किलो बिकता है. काचा..३०-४० रूपया किलो. पेड़ में फल भी लगता है..बहुत मीठा होता है..आदमीखाते हैं..चिड़ियाँ भी खाते हैं..जब पत्ता पूरी तरह हरा हो जाता है..गर्मी में घांस नहीं मिलता है..तो गाय, भैंस, बकरीसभी का मुख्य चारा है. इसका रासी निकालते हैं..रासी से सभी तरह का काम करते हैं किसान.पेड़ पर मवेशियों केलिये साल भर का पुवाल चढ़ा कर रखते हैं..पेड़ जलावन के काम में भी आता है...यही है..हमारी आर्थिकबेवस्था..इसे पर दुनिया का बाजार बेवस्था भी टिका हुआ है

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