Wednesday, December 28, 2011

Hamari jeet nischit hai...hamari ladai sachai ki ladai hai..hamari ladai anaya ke khilaf neyay ki ladai hai.

Hamari jeet nischit hai...hamari ladai sachai ki ladai hai..hamari ladai anaya ke khilaf neyay ki ladai hai.
HAMARA NARA HAI......LADENGE OUR JEETENGE..
खूंटी जिला के कर्रा प्रखंड के सुलंगी पंचायत के जबड़ा गांव के पास छाता नदी में 65 करोड़ का डैम कौन बना रहा है, किस विभाग से बन रहा है, किसके द्वारा बनाया जा रहा है। इसकी जानकारी न तो खूंटी उपायुक्त श्री राकेsh कुमारजी को है, ना तो पुलिस अधिक्षक कार्यालय को है, ना तो जिला के एस डी ओ को, ना तो जिला के एडिshनल क्लटर को है। 10 दिसंबर 2010 को त्रिवेणी एन्जिकोंस प्राइवेट लिमिटेड ने भूंमि पूजन के साथ डैम का शिलानायाश किया। 11 दिसंबर से डैम बनाने के लिए गांव में मशीन लायी गयी। 12 दिसंबर से डैम बनना शुरू हो गया। वहां काम को देखने के लिए ठेकेदार का आदमी विंधयाचल गुप्ता के साथ गांव का युवक बिजय धान को मेंट में रखा था। 13 दिसंबर को शाम करीब साढे सात बजे विजय धान और विंधयाचल का अपहारण हुआ। विंधयाचल को थोड़ी देर बाद छोड़ दिया गया, जबकि बिजय धान लापता रहे। 16 दिसबंर को विजय का लाश घोरपेंडा के पास कुंआ में मिला। अधिकारीयों के अनुसार डैम बनने की जानकारी तब हुई, जब इन दोनों युवकों का अपहरण हुआ। इस घटना के बाद 17 दिंसबर को कर्रा थाना के बड़ा बाबू श्री प्रदीप कुमार, एंव 18 दिसंबर को खूंटी जिला मुख्यालय के अधिकारियों ने भी कहा कि डैम योजना के संबंध में उन्हें कोई जानकारी नहीं हैं।
विदित हो की इस गैर क़ानूनी तरीके से बन रहे डैम और गई क़ानूनी तरीके से किसानो की जमीन हड़पने के खिलाफ ग्रामीणों ऩे डैम प्रभावित सघर्ष समिति करा के बेनर टेल गोलबंद हो कर सघर्ष करते रहे..समिति का मानना है की- हमारी लड़ाई ना सिर्फ डैम से होने वाले बिस्थापन के खिलाफ है, लेकिंग हमारी लड़ाई..सामाजिक..आर्थिक..सांस्कृतिक..और इतिहास बचाने का संघर्ष है..हमारे सामाजिक मूल्यों..सांस्कृतिक मूल्यों को, तथा सरना..सासन दीरी को ना तो किसी मुवावजे से भरा जा सकता है ना ही इसका पुनर्वासन और पुर्नस्थापन ही संभव है.. समिति ऩे संकल्प लिए है..हम किसी भी कीमत में अपने पूर्वजों की एक इंच जमीन नहीं देंगे...
आप सभी हमारे सुभ चिंतकों एवं सहयोगियों को धन्यवाद देते हुवे हमें हर्ष हो रहा है की..डैम के खिलाफ लड़ाई हम जीत रहे हैं..सरकार ऩे भी स्वीकार किया है..की..यंहा गलती हुवा है..हुवा है.
त्रिवेणी एन्जिकोंस प्राइवेट लिमिटेड के ठेकेदार गोबिंद अरवल ऩे १९ दिसंबर को फोन कर बोला ..चार साल हो गया सरकार जमीन देने में आसफल रही..अब इस प्रोजेक्ट को हम ..बंद करना चाहते हैं..जो अग्रीमेंट साकार के साथ हुवा है..उसको बंद करने के लिए मैंने सरकार को आवेदन दे दिया है..मै आप को इसकी सुचना देना चाहता हूँ.. विदित हो की..इन्होने यह भी कहा की..आप एक बार फिर से मैडम बिचार कर लिगिये..अगर आप को लगता है की यह जनहित में हो रहा है तो आप जो चाहेंगी..वही होगा..आप एक बार गाँव वालों से ग्राम सभा करा कर..प्रोजेक्ट को शुरु करने की इजाजत दीजिये..मैंने..कहा ...गाँव वाले जमीन नहीं देना चाहते हैं..मै उनके साथ थी, हूँ और कल भी उनके साथ हूँ..ठेकेदार ऩे कहा..चेतर के लोगो को पता चाल गया है..की मै प्रोजेक्ट बंद करने के लिए आवेदन दिया हूँ..तो लोग बोल रहे हैं..नहीं अभी बंद मत किगिये..हम लोग मैडम को मानाने की कोशिश कर रहे हैं..वो मन जाएगी..हम लोग मैडम से बात करने जा रहे हैं..अग्रवाल ऩे कहा..लेकिन आप से बात करके मुझे बहुत अच्छा लगा..मै किलियर हो गया की..बात नहीं बनेगी..लेकिन कुछ लोग मुझको ..जुट बोल कर कमाना चाहते हैं..मैडम आप बिलकुल सही हैं..आप गाँव वालों के साथ खड़े हैं..और यदि गाँव वाले जमीन देना नहीं चाहते हैं तो..फिर जबरजस्ती उनसे जमीन नहीं लेना चाहिए..आज कल तो सभी लोग किसानो से जितना जरुरत रहता है उसे ज्यादा जमीन ले कर बेच रहे हैं..यह ठीक नहीं है..मैडम आप के साथ मेरा

Tuesday, December 27, 2011

Land grabing by Goverment..



This notice is circulated by the circle officer of Gomia Circle office..District of Bokaro..this is very Dangerous for rural peoples.. Basically Adivasi..Mulvasi, Farmers, fishermen and every nature base community...

Thursday, December 15, 2011

आज भी कहीं इंसानियत जीवित है-यह मैं ने पहली बार न्याय के मामले में महसूस की

आज भी कहीं इंसानियत जीवित है-यह मैं ने पहली बार न्याय के मामले में महसूस की। आज झारखंड हाई कोर्ट में गिरिडीह डिसटिक कोर्ट से फांसी की सजा सुनाये जीतन मरांडी सहित तीन लोगों को हाई कोर्ट के जज आर के मराठिया की अदालत ने बय इज्जत रिहाई की फैसला सुनायी। विदित हो कि कलाकार जीतन मरांडी सहित चार लोगों को नूनू मरांडी सहित 12 लोगों की हत्या के आरोप में फांसी की सजा सुनायी थी। इसके बाद केस को हाई कोर्ट में न्याय के लिए दायर किया गया था। आज इसकी सुनवाई थी। कोर्ट ना0 2 में दस बजे से सुनवाई होने वाला था लेकिन सुनवाई की प्रकिया आधे घंटे बाद shuरू की गयी। यह मेरा पहला मौका था, कोर्ट के अंदर केस का फैसला सुनने का। मन में हजारों लहरें उठ बैठ रही थी। जज जैसे जैसे फाईल का पेज पलटते जा रहे थे-मन और कान उनके ’ाब्दों को सुनने के लिए बेचैन हो रहा था, उनके shब्दों के साथ न्याय के आsha की किरणें भी टिमटिमाती नजर आ रही थी। समय के साथ फाईल की पेंजों के साथ पनों को चिन्हित किये गये मोटी मोटी किताबों को सेवा में मौजूद कर्मचारी जज के टेबल में बढ़ाते जा रहा थां जज साहब उसे देखकर अपनी राय देते जा रहे थे। करीब अधे घंटे के बाद साफ हो गया था -कि फैेसला हमारे तरफ होने जा रहा है। जज के सामने एक पंक्ति में 9 वकील बैठे हुए थे। पहले मैं पीछे बैठी थी लेकिन सुनाई नहीं दे रहा था तो वकीलों के पीछे वाले लाईन के चेयर में बैठ गयी थी । फैसला हमारे पक्ष में आते देख आगे बैठै वकील राजेन राज ने पीछे हमारी तरफ घुर कर देखे मैं भी देखी, उन्होंने जीत की ओर इ’ाारते हाथेली का मुठी बांध कर ठेपा अंगुली मुझे दिखाये-मैंने मुस्कुराते हुए दोनों हाथेली का मुठी बांध कर दोनों ठेपा अंगुली दिखाई। कोर्ट में फादर स्टेटन स्वामी, जीतन मरांडी की पत्नि अपरना मरांडी एवं तीन साल का बेटा अलोक राज मरांडी, सोनतो और मैं थी। बाहर फैसल दा भी मैजूद थे। कोर्ट ना0 2 में जज आर के मराठिया और डीएन उपाध्ययजी एवं जीतन का केस देख रहे-वकील कृष्णा मुरारी प्रसाद, राजेन राज मौजूद थे। जीतन मरांडी के साथ अनिल राम, छात्रपति मंडल तथा मनोज राजवार को रिहाई की गयी। कोर्ट के दरवाजे के पास सभी वकीलों को बधाई दिये ।हम लोग भी एक दूसरे को बधाई दिये। वकिल मुझे से पुछ रहे थे-वो आप के क्या लगते है-मैले कहा- मैं एक ‘सोसल एकटीभीस्ट हुं- और वो भी एक्टीभिस्ट हैं-तो मैं उनका बहुत कुछ हुं। बाहर जब वाकिलों से हमारी बात हो रही थी-इन्होंने बताया कि-मूलता निम्नि बिन्दुओं पर रिहाई मिली-पहला-जो घटना के गवाह थे उनमें में अधिकांsh स्वंय दायी लोग थे जो पहले ही कई केसों में सरकार के समक्छ सरेंडर किये थंे, दूसरा जो लोग घटना को देखने की बात बोले थे-वे तीस से अस्सी किमी दूर के थे, तीसरा-एक व्यक्ति द्वारा माईक छिनने की बात कही गयी थी-वहां एंगकर तो कोई नहीं था, जो भी गवाह दिये-किसी ने आदमी को पहचाने की बात नहीं की है, तीसरी गांव में घटना घटी थी-लेकिन यहां के एक भी गवाह नहीं थे। इसके साथ एक -दो बिन्दु और हैं-जिनका साक्ष्य नहीं मिला, इसी के आधार पर बयइज्जत रिहाई मिली। वकील बता रहे थे-पिछली सुनवाई के दिन अपरना मरांडी बेटी को लेकर कोर्ट में बैठी रही-जज ने अपने चपरासी से बिस्कुट का पैकेट ला कर दिलवाया था, इस सबको देखकर हमने अंदेजा लगा ही लिये थे-कि जो आदमी खाने के लिए दे रहा है-वह मौत कौसे दे सकता है। वकील का यह बात सून कर मानभर आया।

Friday, December 2, 2011

Sakar Humse Darti Hain; Police Ko Aage Karti Hain. Bharat Ki Jo Nari Hain; Phool Nahi Chingari Hain

The Chief Minister of Chhattisgarh used the help of Delhi Police Force to escape talk with Delhi Solidarity Group of Activists.

Sakar Humse Darti Hain; Police Ko Aage Karti Hain.
Bharat Ki Jo Nari Hain; Phool Nahi Chingari Hain

If you were there at Chhattisgarh Sadan around noon time, today you would have seen history repeat to the tune of the SLOGANS stated above.

Raman Singh, the CM of Chhattisgarh cowardly hid himself inside Chhattisgarh Sadan Building for more than an hour with police security personnel guarding him outside.
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The activists challenged him to come our and talk to them. They shouted "Raman Singh- Shame-Shame" demanding justice and release of Adivasi Activist Lingaram Kodopi and Soni Sori.

The CM eventually used the police to physically move the protesting activists to make way. The women activists put up a strong demonstration as they were being pulled and carried by lady police in an effort to clear the road for the CM's convoy.
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At this point of time a Press Conference is on at IWPC, Raisina Road on the harassment of activists in the state, the horrifying medical evidence that has confirmed custodial torture of Soni Sori, and the wider implications of such state aggression.

It has become so common these days for activists to get arrested. My earnest appeal to all lawyers and activists of SJ fraternity who can comprehend this situation to kindly suggest if there is anything we can do to respond to this collaboratively. Even if it would mean visiting the field/jails/crime sites by pooling resources. We do have convinced activists in Delhi in this line of work. Can we collaborate in any way. Please send in your personal opinions. I would not mind to coordinate in order to develop a common strategy for effective national response.

Amrit
SAPI