आज देश में महंगाई आसमान छू रहा है आखिर इसके लिए कौन जिम्मेवार है। इस पर क्या किसी भी राजनीतिक पार्टीयों यह सामाजिक संगठनों ने गहराई से सोचा हैं। यदि सोचते, और इनके जड़ को समझतें तो आज जिस तरह से राजनीतिक पार्टीयां सिर्फ सता पक्ष को इसका जिम्मेवार मान कर खुद को जनता के प्रति उत्तरदायी बनाने से बचा ले रहे हैं aisa करने में संकोच करते। महंगाई का सवाल उठा कर राजनीतिक पार्टीयां जनता को murkh बना रही है, ऐसा करके पार्टीयां अपना राजनीतिक रोटी ही सेंक रहे हैं। इसे आम जनता को समझने की जरूरत है। सरकार द्वारा लक्छित विकास दर से मुकाबला करती मुद्रास्फ्रीति की दर ने आम आदमी का जीवन दूभर कर दिया है। खाद्य-पदार्थों की कीमतें नित नये रेकोड कायम कर रही है लेकिन देश का सत्ताधारी अभिजात्य वर्ग इसी चर्चा में मशगूल है कि आखिरकार कीमतें बढ़ क्यों रही है। इसके लिए सिर्फ एक दूसरे को जिम्मेवार ठहरा रहे हैं और बढ़ती कीमतों के लिए जिम्मेवार आर्थिक नीतिगत आंतरिक कारणों की अनदेखी की जा रही है। सच तो यह है कि वैश्वीकरण के तहत चलायी जा रही कृर्षि-विरोधी आर्थिक नीतियां ही बढ़ती महंगाई के लिए जिम्मेदार है। साथ ही समय-समय पर सत्ता पर बैठ रही सभी राजनीतिक पार्टीयां भी जिम्मेदार हैं जो इन नीतियों का लागू करा रही हैं। भारत सरकार को न केवल विश्व व्यापार संगठन के तहत हुए समझौतों के दबाव में ” कृर्षि उत्पादों“ के आयात तथा निर्यात पर नियंत्रण हटाये जाने संबंधी नीति लागू करनी पड़ी बल्कि सरकार द्वारा अपनायी गयी आर्थिक उदारीकरण और निजीकरण की नीतियों ने कारपोरेट घरानों को सही-गलत तरीको का इस्तेमाल करते हुए किसानों की जमीनों को हड़पने की जो सुविधा दे दी उसने खतरनाक स्तर तक कृर्षि योग्य भूमि के गैर- कृर्षि कार्यों में इस्तेमाल का रास्ता खोल दिया है।
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