Monday, November 14, 2022

विषय-केंन्द्र की स्मामित्व योजना के तहत प्राॅपर्टी/संपत्ति कार्ड की योजना को झारखंड में लागू नहीं करने एवं पांचवी अनुसूचि, पेसा कानून, सीएनटी, एसपीटी एक्ट कानून का उल्लंघन कर राज्य में बनायी गयी भूमि बैंक का रदद करने की मांग के संबंध में।


 सेवा में,

माननीय मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन                                                                                                  04/2022

झारखंड सरकार                                                                                                                दिनांक-7 नवंबर 2022

विषय-केंन्द्र की स्मामित्व योजना के तहत प्राॅपर्टी/संपत्ति कार्ड की योजना को झारखंड में लागू नहीं करने एवं पांचवी अनुसूचि, पेसा कानून, सीएनटी, एसपीटी एक्ट कानून का उल्लंघन कर राज्य में बनायी गयी भूमि बैंक का रदद करने की मांग के संबंध में। 

महाशय,

आप को सादर जानकारी दी जाती है कि अप्रैल 2020 को केंन्द्र सरकार द्वारा घोषित स्वामित्व योजना के तहत डिजिटल लैंण्ड रिकाॅर्ड आधुनीकीकरण कार्यक्रम के तहत ड्रोन से गांवों की संपत्ति का सर्वेक्षण कर जीआईएस मानचित्र बनाये जाएगें। साथ ही जमीन मालिकों को प्राॅपटी कार्ड बना कर दिया जाएगा। ये जीआईएस नक्से और स्थानीय डेटाबेस ग्राम पंचायतों और राज्य सरकार के अन्य विभागों द्वारा विभिन्न कार्यों के लिए उपयोग किये जाएगें। इस स्वामित्व योजना का कई उद्वेश्यों के साथ मूल उद्वेश्य एक राष्ट्र एक साॅफटवेयर( व्दम छंजपवद व्दम ैवजिूंतम द्ध व्यवस्था करना है। 

लेकिन कि हम झारखंड के आदिवासी समुदाय का इतिहास गवाह है कि जल, जंगल, जमीन को आबाद करने का हमारा अपना गौरवशाली इतिहास है। आदिवासी समुदाय खतरनाक जंगली जानवरों से लड़ कर जंगल-झाड़ को साफ कर गांव बसाया, जमीन आबाद किया है। आदिवासी-मूलवासी किसान समुदाय जंगल, नदी-झरनों, पहाड़ों की गोद में ही अपने इतिहास, भाषा-सांस्कृति, पहचान के साथ विकसित होता है। 

प्राकृतिक-पर्यावरण जीवन मूल्य के साथ आदिवासी-मूलवासी समुदाय के ताना-बाना को संरक्षित और विकसित करने के लिए ही छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908, संताल परगना काश्तकारी अधिनियम 1949 बनाया गया है। साथ ही भारतीय संविधान में पेसा कानून 1996 एवं पांचवी अनुसूचि में आदिवासी समुदाय के जल, जंगल, जमीन पर इनके खूंटकटी आधिकार सहित सभी परंपरागत अधिकारों का प्रावधान किया गया है। यही हमारा स्वामित्व का पहचान है। 

सर्व विदित है कि आदिवासी समुदाय के जंगल, जमीन, सामाजिक संस्कृतिक, आर्थिक आधार को संरक्षित एवं विकसित करने के लिए भारतीय संविधान में विशेष कानूनी प्रावधान किये गये हैं। सीएनटी, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून, फोरेस्ट राईट एक्ट 2006 में विशेष प्रावधान है। इसके तहत गांव के सीमा के भीतर एवं बाहर जो प्राकृतिक संसाधन है जैसे गिटी, मिटी, बालू, झाड़-जंगल, जमीन, नदी-झरना सभी गांव की सामुदायिक संपत्ति है। इस पर क्षेत्र के ग्रामीणों का सामुदायिक अधिकार है। ये अधिकार 1932 के खतियान और विलेज नोट एवं खतियान पार्ट टू में भी दर्ज है। 

ये सभी अधिकार आदिवासी समुदाय के लंबे संघर्ष और शहादत के बाद मिला है। खतियान एवं वीलेज नोट में दर्ज सामुदायिक एवं खूंटकटी अधिकार को बचाना जगरूक नागरिकों के साथ राज्य की कल्याणकारी सरकार की भी जिम्मेवारी है। 

वर्तमान में लाया जा रहा केंन्द्र सरकार की स्वामित्व योजना का उद्वेश्य भारत के लिए एक सकीकृत संपत्ति सत्यापन-समाधान के तहत पूरे देश के लिए एक ही डिजिटल लैंण्ड रिकाॅर्ड-डाटा बनाना है। जो पांचवी अनूसुचि क्षेत्र एवं सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंण्डारी खूंटकटी अधिकार, हो आदिवासी बहुल क्षेत्र के विलकिनसन रूल्स में प्रावधान अधिकारों के खिलाफ है। इन कारणों को यहां रेखांकित करना चाहते हैं।

हम सभी नम्रतापूर्वक निम्नलिखित बिंन्दुओं पर आप का ध्यान खिचना चाहते हैं-

स्वामित्व योजना के कार्यान्वयन के लिए बनी दिशानिर्देक में झारखंड के 5वीं अनुसूचि क्षेत्र के प्रावधानों, सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून, मुंण्डारी खूंटकटी अधिकारों एवं विलकिनसन रूल्स के प्रावधानों को संरक्षित करने के संबंध में कुछ भी जिक्र/प्रावधान नहीं किया गया है। 

दूसरा बड़ा सवाल है- कि समाज की सामुदायिक -सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक अस्तित्व के ताना-बाना से जुड़ भूमि जैसे नदी-नाला, झील-झरना, सरना, मसना, अखड़ा, ससनदीरी-हडगड़ी, भूइहरी, डालीकतारी, भूत-खेता आदि को 2014 के बाद गलत तरीके से भूमि बैक में शामिल किया गया है-यह समुदाय की संपत्ति है। इसको यथावत समुदाय के स्वामित्व में सुरक्षित रखने का कोई जिक्र या प्रावधान नहीं किया गया है। 

2014 के बाद लैंण्ड रिकाॅर्ड आॅनलाइन होने के बाद जमीन के रिकाॅर्डों -रैयतों के खतियान, पंजी टू और खतियान पार्ट टू में प्रावधान रिकाॅर्डो में छेड-छाड़ किया जा रहा है। रातों रात असली जमीन मालिकों का नाम हटा कर किसी दूसरे नाम दर्ज किया जा रहा है। यह पूरी तरह से 5वीं अनुसूचि, सीएनटी, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून एवं 1932 सहित सभी खतियान का अतिक्रमण एवं इससे  खत्म करने की कोशिश है। 

जमीन संबंधित मुददे राज्य सरकार के अधीन है। यह क्षेत्र 5वीं अनुसूचि में हैं, एैसे में केन्द्र सरकार का स्वामित्व योजना को लागू करने के पहले राज्य के जनजातीय परामर्शदात्री समिति-टीएसी में चर्चा होनी चाहिए थी। इसके बाद राज्य के कैबिनेट में पास होना था। इसकी जानकारी आदिवासी समुदाय को भी देनी थी। लेकिन एैसा नहीं हुआ। 

आदिवासी-मूलवासी समुदाय जंगल-जमीन के संबंध में कई समस्याओं से जुझ रहा है - 2014 के बाद भूमि बैंक बना, आखिर किस नीति के तहत बना? क्या सीएनटी, एसपीटी एक्ट, 5वीं अनुसूचि, पेसा कानून में संवैधानिक संशोधन करके बना है? इस सवाल का जवाब कौन देगा? राज्य के आदिवासी -मूलवासी समुदाय जानना चाहती है। 

स्वामित्व योजना के तहत प्राॅपटी कार्ड बनाने के संबंध में भी कई बड़े सवाल हैं-समाज का सामुदायिक संपत्ति/भूमि जो खतियान पार्ट टू में दर्ज है, समुदाय सामूहिक उपयोग करता है। गांव में समुदाय बहुत सारे परंपरागत भूमि/संपत्ति है जिसका लगान भुगतान नहीं किया जाता है जो समाज का स्वामित्व में है-इसका प्राॅपटी कार्ड किसके नाम से बनेगा? 

संपत्ति/प्राॅपटी कार्ड योजना के लागू होने से आदिवासी इलाके में निम्नलिखित खतरे भविष्य में होगें-

1-परंपरागत ग्रामीण आदिवासी इलाके का डेमोग्राफी -भौगोलिक एरिया, क्षेत्र पूरी तरह से बदल जाएगा। कारण 2016 के बाद ग्रामीण इलाके के गैर मजरूआ आख, आम, जंगल-झाडी, परती-झरती, नदी-नाला आदि सामुदायिक भूमि का खरीद-फरोक्त चरम पर हेै। 

2-भूमि बैंक बनने के बाद 5वीं अनुसूचि क्षेत्र, सीएनटी, एसपीटी एक्ट, मुंण्डारी खूंटकटी इलाके में गैर मजरूआ आम, गैर मजरूआ खास, जंगल-झाड़ी, नदी-नाला जैसे सामुदायिक भूमि का खरीद-फरोक्त 

के कारण भारी संख्या में बाहरी आबादी का प्रवेश एवं कब्जा बढ़ता जा रहा है।

3-आदिवासी ग्रामीण इलाके में शहरी एवं बाहरी आबादी के प्रवेश से प्राकृतिकमूलक जीवनशैली से जुडे आदिवासी-मूलवासी, दलित, किसान समुदाय का परंपरागत सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक आधार खत्म हो जाएगा। 

4-ड्रोन सर्वे पूरा होने के साथ ही गांव का नया डिजिटल डेटा बेस नक्सा बनेगा। इस नये डिजिटल नक्सा और 1932 के खतियान में कोई मेल नहीं रहेगा। ताजा उदाहरण है -आॅनलाइन डिजिटल खतियान और 1932 का मैनुअल-आॅफलाइन खतियान। तब निश्चित है कि नया डिजिटल नक्सा बनने के साथ ही आदिवासी -मूलवासी समुदाय को, सामुदायिक अधिकार देने के साथ ऐतिहासिक पहचान देने वाला 1932 का खतियान अस्तित्व विहीन हो जाएगा। 

5-परिणाम स्वरूप आदिवासी समुदाय के अधिकार, सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, 5वीं अनुसूचि, मुंण्डारी खूंटकटी अधिकार, कोल्हान क्षेत्र का विलकिनसन रूल्स स्वतः कमजोर हो जाएगा। 

6-ड्रोन सर्वे पूरा होने के बाद, जमीन का मालिकाना हक सत्यापित करने के लिए ग्रामीण आदिवासी, मूलवासी, दलित समुदाय से कई तरह के जमीन संबंधी दस्तावेज मांगे जाएगें, भोले-भाले ग्रामीण दस्तावेज पेस नहीं कर पायेगें। ऐसे परिस्थिति में जमीन उनके हाथ से निकल जाएगा।

7-ग्रामीण इलाके में बढ़ते शहरी आबादी के कारण ग्रामीण कृषि अर्थव्यवस्था, वन व्यवस्था, जल स्त्रोत एवं पर्यावरणीय व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पडेगा। 

8-ग्रामीण आदिवासी इलाके में बड़ी संख्या में बाहरी आबादी के प्रवेश होने से राज्य में आदिवासी आबादी तेजी से घटेगी, परिणाम स्वरूप आदिवासी समुदाय की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं राजनीतिक शत्कि स्वतः कमजोर होगा। 

कई उदाहरण हैं-ग्रामीण जमीन का प्रर्याप्त दस्तावेज पेस नहीं कर पाने के कारण अपने ही परंपरागत अधिकार से बंचित हो रहे हैं। 

1-विगत सुप्रीम कोट का फैसला-जिसमें झारखंड से 1,07,187 लोगों ने जंगल की भूमि पर अपने कब्जे का दावापत्र पेस किया था। लेकिन 27,809 आवेदकों के दावापत्र रदद कर दिया गया। कारण कि लोगों ने अपना दावा साबित नहीं कर सका। 

2-जमीन पर सदियों से ग्रामीणों का कब्जा  है, खेत-बारी करते आ रहे हैं, जमीन का खतियान उनके हाथ में है, आॅफलाइन जमीन का रसीद काटता था-अब आॅनलाइन रसीद काटना बंद कर दिया गया। भूमिदान में मिला जमीन भी छीना जा रहा है -कानून के तहत राज्य में लाखो छोटे किसान और भूमिहीन परिवारों को एक-एक, दो-दो एकड़ भूमिदान में मिला था। जमीन का लगान भी भुगतान करते आ रहे थे-अब एैसे जमीन का लगान रसीद काटना बंद कर दिया। अब ग्रामीणों से कई तरह के साबूत पेस करने के लिए कहा जा रहा है, लोग परेशान है। 

3-जमीन आॅनलाइन व्यवस्था में भारी गड़बड़ी-राज्य में जमीन संबंधित काम-2014-15 तक आॅफलाइन हो रहा था। जमीन मालिक आॅफलाइन रसीद हल्का कर्मचारी द्वारा कटवा रहे थे। आॅनलाइन व्यवस्था होने के बाद जमीन के दस्तावेज-खतियान में भारी गड़बडियां हो गयी है। किसी का खतियान में रैयत का नाम गलत है, खाता नंबर गलत है, प्लाॅट नंबर गलत है, जमीन का रकबा गलत है। इसको सुधारवाने के लिए लोग प्रज्ञा केंन्द्र, अमीन के पास, अंचल पदाधिकारी के पास दौड़ते -दौड़ते थक रहे हैं-कार्रवाई नहीं हो रहा है। 

4-आॅनलाइन खतियान में गलती के कारण बहुत से किसान जमीन का मलगुजारी रसीद 4-5 सालों से नहीं कटवा पा रहे हैं। 

इस तरह से आदिवासी-मूलवासी, किसान, दलित समुदाय से जमीन निकल जाएगा। यही नहीं समुदाय का सुरक्षा कवच सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून, मुंण्डारी खूंटकटी अधिकार कागजों पर रहेगा, लेकिन वास्तविक अधिकार स्वतः खत्म हो जाएगा। 

उपरोक्त परिणामों से जमीन का लूट बढ़ेगा। परिवार और समाज में अशांति बढ़ेगा। इससे उत्पन्न परिस्थितियों से विस्थापन, पलायन, बेरोजगारी, भूख, भूमिहीन, सूखा-आकाल एवं प्रदूषण जैसे महामारी का ही सामना करना पडेगा। 

हमारी मांगे-

1-केंन्द्र सरकार द्वारा लायी जा रही स्वामित्व योजना के तहत प्राॅपटी/संपत्ति कार्ड योजना का झारखंड में लागू नहीं किया जाए।

2 सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, 5वीं अनुसूचि एवं पेसा कानून में प्रावधान अधिकारों को कड़ाई से लागू किया जाए।

3-आदिवासी बहुल खूंटी जिला में प्राॅपटी कार्ड बनाने के लिए ड्रोन से जमीन/संपत्ति का सर्वे किया जा रहा था को होल्ड किया गया है, इसको स्थायी रूप से रोका जाए। साथ ही गांव -गांव चुपके से जाकर भूमि बैंक में शामिल किये गये प्लाॅटों का ग्रांउड/जमीनी सत्यापन किया जा रहा है-इससे रोका जाए।

4-रघुवर सरकार ने गैर मजरूआ आम, खास , जंगल-झाड़ी जमीन को भूमि बैंक में शामिल किया है, इस भूमि बैंक को रदद किया जाए। 

5-आॅनलाइन जमीन के दस्वातेजों का छेड़-छाड़ हो रहा है, इससे रोका जाए।

6-जमीन का लगान रसीद आॅफलाइन काटा जाए।

7-जमीन के दस्तावेजों में भारी गड़बडी, छेड़-छाड़ किया गया है, उसको ठीक -सुधारा जाए। ठीक करने के नाम पर ग्रामीणों से पैसा वासूला जा रहा है-इससे रोका जाए। 

8-सीएनटी, एसपीटी एक्ट का उल्लंघन करके आदिवासी समुदाय का जमीन गलत तरीके से हडप लिया गया था, एसएआर कोट ने फैसला दिया था इस जमीन को आदिवासी समुदाय को वापस कब्जा दिलाने का, जो आज तक कार्रवाई नहीं हुआ है इस पर रैयतों को दखल कब्जा दिलाया जाए।

9-राज्य के सभी जलस्त्रोंतों नदी-नाला, झील-झरना, डैम का पानी किसानों के खेतों तक पाइप लाइन द्वारा सिंचाइ के लिए पहुंचाया जाए। 

10-2013 के जमीन अधिग्रहण कानून को कड़ाई से लागू किया जाए। 

                       निवेदेक-

              खतियान-जमीन बचाओं संघर्ष मोर्चा

घटक संगठन-आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच-दयामनी बरला-मो0 9431104386

                                           त्ुाुरतन तोपनो, नियारन तोपनो, राजू लोहरा, शिवशरण मिश्र, ज्वालंत तोपनो

2-केंन्द्रीय जनसंघर्ष समिति-लातेहार-गुमला-जेरोम जेराल्ड कुजूर, अनिल मनोहर, प्लादियुश, पात्रिक कुजूर, रोज खाखा

3-जबड़ा डैम प्रभावित संघर्ष समिति-बिरसा सांगा, रीता तिडू, जोर्ज धान, सिलाश धान, लोधा पाहन

4-आजादी बचाओं आंदोलन-मिथलेश डांगी

5-पहाडिया आदिवासी बचाओं समिति-संताल परगाना-रमेश मालटो

6-आदिवासी जागरूता मंच-गुमला-बहन सिसलिया

7-चांडिल विस्थापित समिति-आंम्बिका यादाव

धरना सभा को संबोधित किये-अनुप खेस-बसितया, जागेश्वर लकड़ा-सिसाई, जस्टीन बेक-सिमडेगा, तुरतन तोपनो-तोरपा, सुषमा बिरूली-रांची, जुनास लकड़ा-मांडर, मिथलेश डांगी-हजारीबाग, रोज खाखा-गुमला, मंथनजी-जमशेदपुर, हीरा मिंज-रांची, बरथलमय सांगा-खूंटी, जादू मुंडा-तमाड़, मनोहर केरकेटा-महुंआटांड, प्रफूल लिंडा-आदिवासी संघर्ष मंच रांची, अम्बिका यादव-चांडिल, दयामनी बरला, एलिना होरो। 

स्ंाचालन- हादू तोपनो।     


Saturday, November 5, 2022

धरना का समय - 12 बजे से स्थान-राजभवन के समक्ष

                                           प्रेस विज्ञप्ति

आप सभी जानते हैं कि हमारे पूर्वजों ने संाप, भालू, बाघ, बिच्छू जैसे खुंखार जंगली जानवरों से लड़कर झारखंडी की धरती को आबाद किया है। जब-जब हमारे विरासत पर हमला हुआ, समाज ने संघर्ष किया। आज राज्य बनने के बाद लगातार आदिवासी, मूलवासी समुदाय के उपर चारों ओर से हमला हो रहा है।  राज्य बनने के बाद आज तक राज्य और केंन्द्र में जितने भी संवैधानिक कानूनांे में संशोधन या फेर-बदल किया गया, सभी आदिवासी, मूलवासी, किसान, दलित और मजदूरों के संवैधानिक अधिकार को कमजोर करने का काम किया है। 

केंन्द्र सरकार और पिछली राज्य सरकार ने 2016 में भूमि बैंक बनाया, और 21 लाख एकड़ से अधिक समुदायिक संपत्ति/जमीन को भूमि बैंक में शामिल कर दिया। आज धड़ले से जमीन पर गैरकानूनी कब्जा का धंधा चरम पर है। जमीन का दस्तावेज आॅनलाइन होने के बाद रातों-रात जमीन का असली मालिक का नाम हटा कर किसी दूसरा व्यक्ति का नाम दर्ज किया जा रहा है। जमीन के खतियान जैसे मूल दस्तावेजों में भारी छेड-छोड किया जा रहा है। सरकार द्वारा नित नये कानून लाकर आदिवासी, मूलवासी, किसानों के परंपरागत एवं संवैधानिक अधिकारों को  कमजोर करके पूुजिपतियों और कारपोरेट उद्वोगों के हित को पूरा करने जा रही है।  झारखंड में आदिवासी, मूलवासी समुदाय के जल, जंगल, जमीन का सुरक्षा कवच सीएनटी, एसपीटी एक्ट, 5वीं अनूसूचि क्षेत्र, पेसा कानून में प्रावधान, समुदाय के सभी परंपरागत अधिकारों को तकनीकी रूप से कमजोर किया जा रहा है। 

वर्तमान समय में केंन्द्र सरकार द्वारा लायी जा रही स्वामित्व योजना के तहत प्राॅपटी कार्ड बनाने की प्रक्रिया भी इसका हिस्सा है। जिसके तहत प्रोपाॅटी कार्ड देने के नाम पर आदिवासी मूलवासी, दलित किसान समुदाय के समुदायिक जमीन को सरकार अपने हाथ में लेने की योजना बनायी है। वर्तमान में लाया जा रहा स्वामित्व योजना इसी उद्वेश्य का एक हिस्सा है। इससे सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, 5वीं अनूसूचि, पेसा कानून, मुंडारी खूुटकटटी अधिकार, हो आदिवासी समुदाय के विलकिनसन रूल में प्रावधान परंपरागत समुदायिक अधिकार पूरी तरह समाप्त हो जाएगा। 

 ऐसे समय में कल्याणकारी राज्य के नागरिकों, मानवधिकार के शुभचितकों और आम लोगों की जिम्मेदारी है कि सामाजिक न्याय और राज्य हित में जनविरोधी नीतियों रोका जाए। इसके लिए व्यापक जनहस्तक्षेप की जरूरत है। इसी उद्वेश्य से 7 नवंबर 2022 को राजभवन के समक्ष धरना-सभा करने का निर्णय लिया गया है। धरना सभा में राज्य के विभिन्न ग्रामीण इलाकों के आदिवासी, मूलवासी, दलित किसान समुदाय भाग लेगें।

सभा के बाद-मांग पत्र राज्यपाल के नाम, मुख्यमंत्री के नाम, जनजातिय कल्याण मंत्री के नाम, भूमि सुधार एवं राजस्व विभाग -सचिव के नाम सौपां जाएगा। 

आप सभी जानते हैं कि झारखंड में सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटकटी एवं 5वीं अनुसूचि क्षेत्र के आदिवासी बहुल जिला खूंटी में प्राॅपटी कार्ड बनाने के लिए ड्रोन से जमीन का सर्वे किया जा रहा था, आदिवासी सामाजिक संगठन लगातार इसका विरोध कर रहे हैं। बगोदर के माले विधायक श्री विनोद कुमार सिंह जी ने 10 मार्च को इस संबंध में विधान खूटी जिला 5वीं अनूसूचि क्षेत्र में आता है, बावजूद इसके ग्राम सभा की सहमति के बिना ही स्वामित्व योजना के तहत संपत्ति/जमीन का ड्रोन से सर्वे किया जा रहा है। इसके जवाब में स्वंय मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन ने कहा-खूंटी जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वामित्व योजना के तहत संपत्ति और जमीन का डिजिटल सर्वे डा्रेन के जरिए  हो रहा था। यह काम केन्द्र सरकार द्वारा किया जा रहा था। इसको लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में संशय की स्थिति है, इसलिए राज्य सरकार इसे फिलहाल होल्ड करने का आदेश देता है। इन्होनें कहा-इस संबंध में जांच करायी जाएगी। बजट सत्र में सीएम के आदेश के तुरंत बाद ड्रोन सर्वे को होल्ड कर दिया गया है। लेकिन यह स्थायी रूप से नहीं। 

आप सभी जानते हैं कि केंन्द्र सरकार डिजिटल इंडिया लैंण्ड रिकाॅर्ड अधुनीकिकरण कार्यक्रम लेकर आयी है। इसके तहत देश भर की सभी संपत्ति और जमीन का स्वामित्व कार्ड बनाने जा रहा है। इसके लिए देश के सभी जमीन व संपत्ति का एक सोफटवेयर और हार्डवेयर तैयार कर रही है। जमीन व संपत्ति का ड्रोन सर्वे इसी प्रकिया के तहत खूंटी जिला के गांवों से शुरू किया गया है। पायलट प्रोजेक्ट के पहला चरण में (2022-22) में खूंटी जिला के 725 गांवों का डिजिटल सर्वे पूरा करने के बाद झारखंड के बाकि जिलों में, दूसरे चरण  2022-23 में 12000 गोवों, तीसरे चरण में 20000 गांवों का ड्रोन डिजिटल सर्वे करके डिजिटल नक्सा, खतियान भी बनाया जाएगा। ड्रोन से जमीन व संपत्ति का डिजिटल सर्वे कर संपत्ति/स्वामित्व कार्ड बनाने का काम 2024 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। 

झारखंड के आदिवासी समुदाय का अपना विशिष्ट इतिहास है। जंगल-जमीन पर अपना परंपरागत संवैधानिक अधिकार है। स्वामित्व योजना के लागू होने से राज्य के आदिवासी समुदाय के सभी परंपरागत संवैधानिक अधिकार स्वातः खत्म हो जाएगा। इसलिए ड्रोन सर्वे जो होल्ड किया गया है को पूरा तरह रदद किया जाना चाहिए। 

हमारी मांगें-

1-केंन्द्र सरकार द्वारा काॅरपोरेट घराणों एवं पूंजिपतियों के लिए लायी जा रही स्वामित्व योजना के तहत प्राॅपटी/ संपत्ति कार्ड योजना का लागू नहीं किया जाए। 

2-झारखंड में सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, ं 5वीं अनुसूचि एवं पेसा कानून में प्रावधान अधिकारों को कड़ाई से लागू किया जाए। 

3-आदिवासी बहुल खूंटी जिला में प्राॅपटी कार्ड बनाने के लिए ड्रोन से जमीन /संपत्ति का सर्वे किया जा रहा था को होल्ड किया गया है, इसको पूरी तरह स्थायी रूप से रोका जाए। 

 4-रघुवर सरकार ने गैर मजरूआ आम, गैर मजरूआ खास, जंगल-झाड़ी जमीन को भूमि बैंक में शामिल किया है, इस भूमि बैंक को रदद किया जाए। 

5-राज्य के सभी जलस्त्रोंतों, नदी-नाला, झील-झरना का पानी लिफट ऐरिगेशन के तहत पाइप द्वारा किसानों के खेतों तक कृषि विकास के लिए पहुंचाया जाए। 

6-आॅनलाइन जमीन के दस्तावेजों का हो रहा ़क्षेड़-छाड़ को रोका जाए।

7-जमीन का लगान रसीद आॅफलाइन काटा जाए।

8-2013 के जमीन अधिग्रहण कानून को कड़ाई से लागू किया जाए।

9-भूमि बैंक का रदद किया जाए।

10-ग्राम सभा के हक अधिकार, पेसा कानून को कड़ाई से लागू किया जाए।

                     आयोजक-खतियान-जमीन बचाओं संघर्ष मोर्चा झारखंड

घटक संगठन-केंन्द्रीय जनसंघर्ष समिति-लातेहार, गुमला

आदिवासी-मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच

पहाडिया सेवा समिति-साहेबगंज

भूमि बचाव संघर्ष समिति-गोडा

जबड़ा डैम प्रभावित संधर्ष समिति-कर्रा

आजादी बचाओं आंदोलन-हजारीबाग

विस्थापित मुक्ति वाहिनी-चांडिल

आदिवासी जागरूकता मंच-गुमला

आदिवासी एकता मंच 

प्रेस वर्ता में -संयोजक दयामनी बरला, रोनाल्ड रिगन खलखो, कुरदुला कुजूर, टोम, मोनोरेन तोपनो, ंललिता तिग्गा, अरूण तोपनो। 

धरना का समय - 12 बजे से

स्थान-राजभवन के समक्ष



Friday, October 7, 2022

झारखंड में आदिवासी, दलित, किसान और मजदूर वर्ग के बच्चों के शिक्षित करने के लिए संचालित स्कूलों का बुरा हाल है...

सरकारी आवासीय विद्यालय कहीं शिक्षक तो कहीं भवन नहीं और कहीं बच्चे नहीं ले रहे एडमिशन राज्य के आवासीय विद्यालयों में को व्यवस्था के कारण पढ़ाई पर असर (दैनिक भास्कर 1 अक्टूबर 2022) झारखंड में आदिवासी, दलित, किसान और मजदूर वर्ग के बच्चे ही सरकरी स्कूलों में शिक्षा ग्रहण करते हैं। कम आय वाले अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में नामांकन कराते हैं। राइट टू एजुकेशन कानून के अनुसार देश के सभी बच्चों को गुनवाता पूर्ण शिक्षा देने का प्रावधान किया गया है। लेकिन सभी जानते हैं कि सरकारी शिक्षा सिस्टम पूरी तरह से चौपट हो चुका है। यही कारण है कि इन सरकारी स्कूलों में बच्चों को भेज कर उनकी ज़िंदगी बरबाद नहीं करना चाहते हैं। झारखंड में आदिवासी, दलित, किसान और मजदूर वर्ग के बच्चों के शिक्षित करने के लिए संचालित स्कूलों का बुरा हाल है... राज्य में सरकारी आवासीय विद्यालयों की स्थिति विकट है। कहीं शिक्षक नहीं, कहीं भवन नहीं, तो कहीं बच्चे ही एडमिशन नहीं ले रहे हैं। सीटें खाली रह जा रही हैं। नेताजी सुभाष चंद्र बोस आवासीय विद्यालय झारखंड, बालिका आवासीय विद्यालय और कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों की व्यवस्था एक-दूसरे से होड़ कर रही है। 57 झारखंड बालिका आवासीय विद्यालयों को अब तक अपना भवन नहीं मिल पाया है । कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय में शिक्षकों की कमी तो है ही, किसी भी जिले की स्कूल में शत-प्रतिशत एडमिशन नहीं हुआ है। इसी प्रकार नेताजी सुभाष चंद्र बोस आवासीय विद्यालय उनकी भी सभी सीटें भर नहीं पाई हैं। झारखंड बालिका आवासीय विद्यालयों का अपना भवन नहीं है। इनका संचालन कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय से ही हो रहा है। ऐसे 57 विद्यालय साथ चल रहे हैं। स्पष्ट है कि दोनों स्कूलों पर इसका असर पड़ रहा है। 21 बालिका आवासीय विद्यालयों के भवन तैयार शिफ्ट करने का निर्देश 57 में से 21 झारखंड बालिका आवासीय विद्यालय के भवन बनकर तैयार हैं। झारखंड शिक्षा परियोजना ने इन 21 नए विद्यालय भवनों में स्कूलों को स्थानांतरित करने का निर्देश दिया है। हालांकि इनमें से 36 झारखंड बालिका आवासीय विद्यालय भवनों के तैयार होने में अभी बिलम है। जेपीसी की राज्य परियोजना निदेशक किरण कुमारी पासी ने शिक्षा अधिकारियों को निर्देश दिया है कि जिन बालिका आवासीय विद्यालय के भवन अब बन चुके हैं उन्हें शीघ्र से पेश किया जाए। सभी स्कूलों में शिक्षकों की उपस्थिति सुनिश्चित करने का भी दिशा निर्देश दिया। किसी जिले के कस्तूरबा विद्यालय में नहीं हुआ शत-प्रतिशत नामांकन राज्य के किसी भी जिले के कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय में इस बार शतप्रतिशत एडमिशन नहीं हो पाया है। करीब 21% सीटें खाली रह गई हैं। 203 कस्तूरबा बालिका विद्यालय में 106 576 एडमिशन सीटें हैं इस बार मात्रा 84 31 5 सीटों पर ही नामांकन हो पाया है। बोकारो गढ़वा, गुमला, सिमडेगा, रांची, गोड्डा और चतरा जिले जहां 75% से कम नामांकन हुआ है, वहां के प्रभारी को शो को जारी करने का निर्देश है। 15 अक्टूबर तक सभी जिलों को अपने वहां की रिक्त सीटों पर विज्ञापन के द्वारा प्रकाशित कर एडमिशन लेने का निर्देश दिया गया है इन स्कूलों में 10-15 शिक्षकों के स्वीकृत पद हैं इनमें से 727 पदों पर चयन हुआ है 288 पद रिक्त है। नेताजी सुभाष आवासीय विद्यालय 13 जिलों में नहीं भरी सीटें राज्य के 13 जिलों में नेताजी सुभाष चंद्र बोस आवासीय विद्यालय की सीटें इस बार भी नहीं भरी है। नामांकन की समीक्षा के क्रम में शिक्षा अधिकारियों ने जेपीसी को बताया है कि चतरा, दुमका, गढ़वा, गिरिडीह, गोड्डा, गुमला, हजारीबाग, कोडरमा, पाकुड़ पलामू, पश्चिमी सिंहभूम और सिमडेगा जिले के इन स्कूलों में शत-प्रतिशत नामांकन नहीं हुआ है। पाकुड़ जिला शिक्षा पदाधिकारी की रिपोर्ट के अनुसार कक्षा 9 के बच्चों के रहने और पढ़ने के लिए कमरे की आवश्यकता है सभी जिलों को कहा गया कि वे स्वीकृत सभी सीटों पर शीघ्र एडमिशन

Wednesday, October 5, 2022

चावल उत्पादन 70 लाख टन घटने के आसार ..

 चावल उत्पादन 70 लाख टन  घटने के आसार ..

टूटे चावल के निर्यात पर रोक...

  . नई दिल्ली 10 सितंबर 2022

प्रभात खबर में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार देश में चावल की बढ़ती खुदरा कीमत को नियंत्रण में रखने व घरेलू आपूर्ति बढ़ाने के इरादे से सरकार ने टूटे चावल के निर्यात पर रोक लगा दी है।

 खरीफ सत्र में धान की बुवाई के रकबे में 4 . 95% की गिरावट आने से चावल उत्पादन 60 से 70 लाख टन कम होने का अनुमान जताया गया है। इसके अलावा सरकार ने निर्यात को कम करने के लिए गैर बासमती चावल पर 20% का सीमा शुल्क को भी लगा दिया है। केंद्रीय खाद्य सचिव सुधांशु पांडे ने कहा कि बहुत बड़े पैमाने पर टूटे चावल की खेप बाहर भेजी जाती रही है। पशु चारे के लिए भी समुचित मात्रा में टूटा चावल उपलब्ध नहीं है। इसका इस्तेमाल इथेनॉल में मिलाने के लिए भी किया जाता है। इन पहलुओं को ध्यान में रखते हुए टूटे चावल के निर्यात पर रोक लगाने का फैसला किया गया है। चावल की थोक कीमतें 1 साल में करीब 8% बढ़कर ₹3,291 प्रति क्विंटल हो चुकी

पुनर्वास व विस्थापन नीति के तहत लाभ लेने के लिए जमीन की रसीद जरूरी…

 पुनर्वास व विस्थापन नीति के तहत लाभ लेने के लिए जमीन की रसीद जरूरी…

बुडमू.. 10 सितंबर 2022

 छप्पर कोलियरी को फिर से शुरू करने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए छप्पर पंचायत में सीसीएल, मुखिया, प्रमुख, जिप सदस्य, उपप्रमुख व रैयतों की बैठक आयोजित की गई। बड़का सायल के महाप्रबंधक एके सिंह ने रैयतों को  पुनर्वास व विस्थापन नीति की जानकारी। सीओ शंकर कुमार विद्यार्थी ने कहा कि मुआवजा के लिए जमीन की रसीद, वंशावली, जाति व आवासीय प्रमाण पत्र बनाकर सीसीएल में आवेदन करें। पंचायत के सभी 5 राजस्व ग्राम में सीएसआर द्वारा सड़क, बिजली, पानी, खेल मैदान के सुंदरीकरण की सूची मांगी गई है। प्रत्येक 15 दिनों में सीसीएल स्वस्थ शिविर लगाएगी बैठक के दौरान 17 रैयतों को 108 एकड़ के मुआवजा की नोटिस दी। रैयतों के बीच खेल सामग्री व 20 सिलाई मशीन बांटी गई। दो जल मीनार का उद्घाटन भी किया गया।

झारखंड में 11 विश्विविद्यालय और 63 अंगीभूत कॉलेज हैं

 झारखंड में 11  विश्वविद्यालय और 63 अंगी भूत कॉलेज है।

उच्च  और तकनीकी शिक्षा विभाग झारखंड के अंतर्गत फिलहाल 11 विश्वविद्यालय और 63 अंगी भूत कॉलेज हैं। कूल 11 विश्वविद्यालय में 1. रांची विश्वविद्यालय 

2.विनोबा भावे विश्वविद्यालय 

3.सिद्धू कानू मुर्मू विश्वविद्यालय

4. कोल्हान विश्वविद्यालय

5. निलंबर पीतांबर विश्वविद्यालय

6. डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय 

7.जमशेदपुर विमेंस विश्वविद्यालय 

8.झारखंड रक्षा शक्ति विश्वविद्यालय 

9.बिनोद  बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय धनबाद

10. झारखंड यूनिवर्सिटी आफ टेक्नोलॉजी और झारखंड राज्य ओपन यूनिवर्सिटी शामिल है 

11.पंडित रघुनाथ मुरमू जनजातीय विश्वविद्यालय की स्थापना अभी प्रक्रिया अधीन है।

फोर्टीफाईड चावल का ग्रामीण ने क्यों विरोध करते हैं?

 झारखंड में अक्टूबर माह से राशन दुकान में फोर्टीफाईड चावल बांटने की योजना है । 

झारखंड में अक्टूबर से चावल का वितरण 25, 238 जन वितरण प्रणाली की दुकानों से प्रारंभ करने की तैयारी राज्य सरकार ने की है। फिलहाल झारखंड के 2 प्रखंडों चाकुलिया और धालभूमगढ़ में जन वितरण प्रणाली की दुकानों में फोर्टीफाईड चावल का वितरण पहले से ही हो रहा है । 16 सितंबर को जमशेदपुर में राज्य स्तरीय कार्यशाला किया गया। जिसमें खास तौर पर इसी बात पर चर्चा की गई कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के घेरे में आने वाले लोगों को फोर्टीफाईड चावल दीया जाना क्यों आवश्यक है।  एक तरह से कार्यशाला के माध्यम से राज्य में जन वितरण प्रणाली की दुकानों में फोर्टीफाईड चावल के वितरण पर सहमति बनाई गई । राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा एक्ट के तहत सबको भोजन दिलाना ही मुख्य उद्देश्य नहीं, बल्कि सबको  पौष्टिक आहार की भी बात कही गई है ।

क्या है फोर्टीफाईड चावल?

फोर्टीफाईड में आयरन, फोलिक एसिड और बी 12 का मिश्रण किया जाता है । इस चावल में आम चावल की तुलना में आयरन विटामिन b12 , फोलिक एसिड  की मात्रा अधिक है । इसके अलावा जिंक, विटामिन ए, विटामिन बी वाले  फोर्टीफाईड  भी तैयार किए जा सकते हैं। 

 खाने से भोजन में पौष्टिक तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है और स्वास्थ्य अच्छा रहता है। 

 वर्ष 2024 तक देश भर में इस योजना को लागू करने का लक्ष्य रखा गया है।

 यहां यह समझने की जरूरत है कि राज्य मेंफोर्टीफाईड चावल का वितरण 2021 के शुरुआत में ही पायलट प्रोजेक्ट के रूप में झारखंड के खूंटी जिला में वितरण करना शुरू कर दिया गया था। चावल मैं जो फोर्टीफाईड चावल मिलाया जाता है उसकी जानकारी ना तो ग्राम सभा को पहले दी गई,  और ना ही ग्राम पंचायत से संबंधित अधिकारियों को,  ना ही राशन डीलर को,  ना तो कार्ड धारियों को ।

जब ग्रामीणों ने देखा कि चावल में प्लास्टिक नुमा कुछ चावल से बड़े आकार का चीज उसमें दिखाई दिया तब ग्रामीणों क्षेत्रों में ग्राम सभा के बैनर से विरोध करना शुरू किया , और खाद्य आपूर्ति विभाग पर आरोप लगाना शुरू किया कि सरकार लोगों को प्लास्टिक के मिलावट का चावल बांट रही है। 

 लोगों ने चावल का नमूना लेकर जगह-जगह बैठक करना शुरू किया और सरकार से मांग करने लगे कि प्लास्टिक मिलावट चावल आदिवासी किसान और गरीब तबके के लोगों को हानि पहुंचाने के दृष्टिकोण से दिया जा रहा है । 


यहां इसलिए ऐसा आरोप लगने लगा क्योंकि खाद्य आपूर्ति विभाग ने इसकी जानकारी पहले से राशन कार्ड धारियों को, ग्राम सभा को, और डीलर को भी नहीं दिया था । हम लोगों ने भी इस आरोप को समझने की कोशिश किए क्योंकि खूंटी जिला के मुरहू प्रखंड अंतर्गत गुल्लू गांव में मार्च महीने में ही 15 से 20 गांवों के ग्राम प्रधान और आम राशन कार्ड धारियों ने एक बड़ी बैठक की थी। 

 जिसमें हम लोगों को भी बुलाया गया था और ग्रामीणों ने हम लोगों के सामने चावल का नमूना लेकर आए । कुछ लोगों ने चावल से प्लास्टिक नुमा चावल से बड़े आकार की ठोस वस्तु को चुनकर अलग करके लाया और दिखाते हुए बोले  ,यह प्लास्टिक मिला हुआ चावल है और सभी जानते हैं की प्लास्टिक को अगर गाय खा जाती है तो वह पचती नहीं है और वह पॉयजन/जहर बन जाता है। जिससे गाय भी मर जाती है।

 ग्रामीणों ने कई उदाहरण पेश किए जो गाय, बकरी प्लास्टिक खा के मर गए थे । इस बैठक में यह तय किया गया की इस मामले को हम खाद्य आपूर्ति मंत्री रामेश्वर उरांव, खूंटी के , जिला खाद्य आपूर्ति पदाधिकारी तक पहुंचाएं। यह जिम्मेवारी ग्रामीणों में मुझे दी। मैंने वादा किया कि इस मामले को खूंटी जिला  खाद्य आपूर्ति पदाधिकारी, डीसी और राज्य के खाद्य आपूर्ति मंत्री श्री रामेश्वर उरांव जी के पास पहुंचा देंगे। मैंने इसकी कोशिश भी की और खाद्य आपूर्ति मंत्री रामेश्वर उरांव जी से इस मामले पर बात की। श्री उरांव जी ने मुझे आश्वस्त किया कि मैं खूंटी आऊंगा और गांव के लोगों से, डीलर से, और  कार्ड धारियों  से और जहां से भी इस तरह की शिकायतें आ रही है, लोगों में भ्रम है उनके साथ बैठक करेंगे और उन्हें बताएंगे कि फोर्टीफाईड   चावल है।  जो लोगों के कुपोषण को दूर करने के लिए दिया जा रहा है। खाद्य आपूर्ति मंत्री श्री रामेश्वर उरांव जी से बातचीत के बाद  सरकार ने लोगों को जानकारी देने के लिए अखबारों में फोर्टीफाईड चावल देने की जानकारी प्रकाश श करना शुरू कर दिए ।

हिंदुस्तान अखबार, प्रभात खबर, दैनिक भास्कर में यह जानकारियां छपी जाने लगी। इसके बाद कई इलाकों में विरोध का स्वर कम हुआ। मैंने स्वयं खूंटी की dso रंजीता मेम से भी बात की और उन्होंने मैसेज भेजें की ग्रामीणों को जानकारी दीजिए कि यहां प्लास्टिक मिलावट चावल नहीं है बल्कि कुपोषण दूर करने के लिए सरकार  फोर्टीफाईड चावल दे रही है।

इसके साथ ही सरकार ने टीम बनाकर कई इलाकों में जांच के लिए भेजा और जांच के बाद सरकारी अधिकारियों ने रिपोर्ट जारी किया और ग्रामीणों को बताने की कोशिश किए कि यहां प्लास्टिक मिलावट चावल नहीं लेकिन यह फोर्टीफाईड चावल है।


फोर्टीफाईड चावल का ग्रामीण ने क्यों विरोध करते हैं?

 मैं यहां फिर से इस बात को दोहराना चाहती हूं कि सरकार इस योजना को चुपचाप गांव के बीच में वितरण करना शुरू किया, इस कारण इसका विरोध शुरू किया। दूसरी बात यह भी समझने की जरूरत है कि गांव के लोग कभी अपने शरीर का पूरी तरह से तकनीकी तौर पर बीपी की स्थिति, शुगर की स्थिति, चेक नहीं करते हैं ना ही सरकारी स्वास्थ्य विभाग भी ग्रामीणों को इस मामले में सचेत नहीं करती है। न ही कभी सरकार ग्रामीणों के हेल्थ ठीक रखने के लिए इस तरह के कोई विशेष प्रावधान भी नहीं करती है, की कौन कितना एनेमिक है ? किसका blood pressure का स्थिति क्या है ? शुगर की स्थिति क्या है ? 

इसकी जांच करने के लिए सरकारी व्यवस्था होनी चाहिए। तब सरकार सही तरीके से ग्रामीणों के स्वास्थ्य की जानकारी एकत्र करते हुए उन लोगों को किसको कितना विटामिन? किसको कितना कैल्शियम  देना चाहिए ,ताकि उनका स्वास्थ्य ठीक रहे । इसकी व्यवस्था सरकार को हर पंचायत में   व्यवस्था की जांच करने की व्यवस्था करनी चाहिए। सिर्फ आयरन मिला हुआ चावल देने से ही उनका स्वस्थ है ठीक रहेगा यहां मानना उचित नहीं होगा।

झारखंड में 15 लाख से अधिक बच्चे कुपोषित हैं

 10 सितंबर 2022

झारखंड के 38,432 anganbadi Kendra Hain

झारखंड में कुपोषण मिटाने के नारे के साथ 2 सितंबर से से पोषण जागरूकता रत निकाला गया। यह हर जिले के प्रखंडों में घूम कर बच्चों को पोषण युक्त भोजन देने का प्रचार प्रसार कर रहा है। इसके लिए आंगनबाड़ी केंद्रों ,सहायिका ,सेविका और आम लोगों को शपथ भी दिलाई जा रही है । 

इसका कारण है कि राज्य में कुपोषण की स्थिति नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 5 की कुपोषण रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में जीरो 5 वर्ष से कम उम्र वाले 36, लाख 64000 बच्चों में से 42% यानी 15 लाख से अधिक बच्चे कुपोषित हैं। इनमें भी 9 . १ प्रतिशत यानी तीन लाख के करीबी बच्चे अति गंभीर कुपोषण के शिकार हैं ।

दैनिक भास्कर की टीम कुपोषण से लड़ाई के लिए सरकारी अमले के अभियान की पड़ताल करने रांची धनबाद, जमशेदपुर और बोकारो के 55 आंगनबाड़ी केंद्रों तक पहुंचे । पड़ताल में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। पता चला कि आंगनबाड़ी केंद्रों को अप्रैल-मई से प्रति बच्चा मिलने वाली ₹250 की पोषाहार राशि मिली ही नहीं है। चावल निशुल्क उपलब्ध कराया जाता है लेकिन दाल, सब्जियां ,बदाम ,चना ,गुड़, अंडा आदि आंगनबाड़ी सेविकाओं को उधार पर खरीदनी पड़ रही है।

 उधार ₹10,000 से ज्यादा हो जाने पर दुकानदार ने राशन देना बंद कर दिया , ऐसे में कई जगहों पर बच्चों को सिर्फ दाल भात या खिचड़ी मिल रही है और कई जगह तो वह भी नहीं।


Sunday, August 7, 2022

110 प्रखंडों को Backward Block के रूप में चयन एवं अधिसूचित किया जाता है

 -झारखंड सरकार

राजस्व, निबंधन एवं भूमि सुधार विभाग

अधिसूचना

अधि0 सं0-05/स0 भू0 विधिक ( Non Profit Charitable/ Spiritual Organization) 104/16 4877/रा0 रांची, दिनांक 11-12-18


1-राज्य में(  Non profit Charitable Spiritual Organization) को शैक्षणिक/स्वास्थ्य कार्यों से संबंधित संस्थान खोलने हेतु रियायती दरों पर भूमि उपलब्ध कराने हेतु विभागीय संकल्प संख्या-4175, दिनांक-08.10.18 द्वारा नीति निधा्ररित किया गया है। उक्त संकल्प की कंडिका-1 (ख) में सुदूरवर्ती (Remote) क्षेत्र/ Backward Block की सूची सरकार द्वारा अलग से अधिसूचित करने का प्रावधान किया गया है। 

2-मंत्रिपरिषद की बैठक दिनांक -06.12.2018 के मद संख्यज्ञ-27 में लिये गये निर्णय के आलोक में Non Profit Charitable/Spiritual  Organization  को शैक्षणिक/स्वास्थ्य कार्यों से संबंधित संस्थान खोलने हेतु नियायती दरों पर भूमि उपलब्ध कराने हेतु सुदूरवर्ती (Remote ) क्षेत्र/ Backward Block के चयन हेतु संविधान की पॉंचवी अनूसूचि के तहत झारखंड राज्य के भीतर परिभाषित अनुसूचित क्षेत्र के सभी 134 प्रखंड/ अंचल में से अधिसूचति नगर निकाय के प्रखडों/ अंचलों को छोड़कर तथा बड़े नगरीय क्षेत्रों के भविष्य में संभावित विस्तार को देखते हुए निम्नवत शेष 110 प्रखंडों को Backward Block  के रूप में चयन एवं अधिसूचित किया जाता है, जिसकी सूची निम्नवत है-

क््र0 सं0----- जिला---- प्रखंड

1---- -------------रांची-------- बेड़ो

2------------------ लापुंग

3------------------ अनगड़ा

4-------------------- बुडमू

5------------------ चान्हो

6------------------ माण्डर

7-------------------- तमाड़

8------------------ सोनाहातू

9-----------------             इटकी

10--------------- राहे

11---------- खूंटी----------- तोरपा

12----------------------- रनिया

ु13-------------------------- मुरहू

14---------------------------------अड़की

15----------------------------- कर्रा

16---------------- सिमडेगा---- कोलेबिरा

17------------------------- बानो

18----------------------- जलडेगा

19----------------------- थेथईटांगर

20----------------------------- बोलबा

21------------------------- कुरडेग

22----------------------- पाकरटांड

23-------------------------- केरसई

24---------------------------- बांसजोर

25---------------- लातेहार-------- गारू

26--------------------------- महुंआटांड

27-------------------------- बरवाडीह

28-------------------------- मनिका

29----------------------- बलूमाथ

30-----------------------------------------चंदवा

31----------------------- बारियातु

32--------------------- हेरहंज

33------------------ गुमला---- भरनो

34----------------------- सिसई

35----------------------- घाघरा

36----------------------------- चैनपुर

37------------------------- डुमरी

38--------------------------- विशुनपुर

39-------------------------- रायडीह

40----------------------------- पालकोट

41---------------------------- बसिया 

42--------------------------- कामडारा

43----------------------- अलबर्ट एक्का

44--------------------- लोहरदगा-- भंडरा

45------------------------ सेन्हा

46-------------------------- किस्को

47-------------------------- कुडू

48--------------------------- कैरो

49------------------------- पेशरार

50-------- पूर्वी सिंह भूम-- घाटशिला

51----------------- धालभूमगढ.

52----------------- मुसाबनी

53----------------- डुमरिया

54---------------------- पटमदा

55--------------------- पोटका

56----------------- बहरागोड़ा

57------------------- चकूलिया

58----------------- बोड़ाम

59-------------------- गुडाबंन्दा

60--- पश्चिमी सिंहभूम--- मनोहरपुर

61----------------------- मझगांव

62----------------------- कुमारडुंगी

63----------------------- बन्दगांव

64---------------------------- मंझारी

65----------------------- खूंटपानी

66----------------------- तांतनगर

67----------------------- नोवामुण्डी

68----------------------- जगरनाथपुर

69------------------------- गोइलकेरा

70----------------------- सोनुआ

71------------------------- झींकपानी

72----------------------------- टोंन्टो

73----------------------------- गम्हरिया

74------------------------- आनंदपुर

75------------------------ गुदडी

76--- सरायकेला -खरसावां-- खरसावां

77------------------------- कुचाई

78----------------------- चाण्डिल

79----------------------- ईचागढ.

80--------------------------- नीमडीह

81------------- राजनगर(गोबिंदपुर)

82----------------------- कुकडू

83------------------ जामताड़ा नरायणपुर

84------------------ नाला

85------------------- कुढित

86------------------ करमाटांड

87---------------------- फतेहपुर

88--- दुमका------- जामा

89--------------------- शिकारीपाड़ा

90----------------- रानेश्वर

91----------------- रामगढ

92----------------- जरमुण्डी

93----------------- मसलिया

94---------------------- सरैयाहाट

95------------------ काठीकुंण्ड

96----------------- गोपीकांदर

97------ साहेबगंज--- बरहेट

98--------------------- पटना

99------------------ बोरियो

100--------------- तलझारी

101--------------- उधवा

102----------------- मंडरो

103------- पाकुड------ पाकुडिया

104------------------ महेशपुर

105--------------------- हिरणपुर

106-------------------- लिटटीपाड़ा

107------------------- अमरापाड़ा

108-- गोडडा------- सुन्दरपहाड़ी

109----------------- बोआरीजोर

110-- गढवा------- भण्डरिया

                        झारखंड राज्यपाल के आदेश से,

                          (राम कुमार सिन्हा)

                        सरकार के संयुक्त सचिव। 

Sunday, July 10, 2022

-रघुवर सरकार ने गैर मजरूआ आम, गैर मजरूआ खास, जंगल-झाड़ी जमीन को भूमि बैंक में शामिल किया है, इस भूमि बैंक को रदद किया जाए।

                                 संघर्ष संकल्प गोष्ठी

                             9 जुलाई 2022 एसआरडीसी-रांची

आइए मिल कर झारखंड को बचाएंगें। आप सभी जानते हैं कि हमारे पूर्वजों ने संाप, भालू, बाघ, बिच्छू जैसे खुंखार जंगली जानवरों से लड़कर झारखंडी की धरती को आबाद किया है।  एक नजर में अपने राज्य को देखें-झारखंड-कुल आबादी-3 करोड,, 29 लाख, 88 हजार, 134 है। कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 79,71,400 वर्ग किमी है। इसकं 30 प्रतिशत  कृषि योग्य भूमि है, इसका 22.6 प्रतिशत क्षेत्र में बोया गया क्षेत्र है। 29.3 प्रतिशत वन क्षेत्र है ।  जितना खाद्यान्न की जरूरत है, उतना  उत्पादन नहीं कर रहा है। इसमें खेती योग्य जमीन 2039000 हेक्टेयर है, जिसमें 1795000 हेक्टेयर में फसल लगायी जाती है। खेती की जाने वाली जमीन में मात्र 195000 हेक्टेयर पर ही सिंचाई होती है। बाकी जमीन में पानी रहते हुए भी सरकार सिंचाई का व्यवस्था नहीं रही है। 

विकास के नाम पर 2 लाख एकड़ से अधिक जमीन अधिग्रहण हो चुका है। खेती की जमीन तेजी से घटते जा रही है। 2 करोड़ से अधिक लोग बडे परियोजनाओं और शहरीकरण से विस्थापित हो चुके है। राज्य में बड़ी संख्या में विस्थापितों की संख्या हैं, जिनका सामाजिक, आर्थिक स्थिति बिकुल खाराब है। 2 लाख से अधिक लोग दूसरे राज्यों में रोजगार की तालाश में पलायन कर गये हैं। राज्य के आदिवासी, मूलवासी, किसानों की जनसंख्या तेजी से घटते जा रही है। दूसरी और बाहर आबादी के आने से राज्य में दूसरे समुदाय की आबादी तेजी से बढ़ते जा रही है।  

झारखंड आखिर किनके लिये बना है? 

आज राज्य बनने के बाद लगातार आदिवासी, मूलवासी समुदाय के उपर चारों ओर से हमला हो रहा है, राज्य बनने के बाद आज तक राज्य और केंन्द्र में जितने भी संवैधानिक कानूनांे में संशोधन या फेर-बदल किया गया, सीएनटी एक्ट 1908, एसपीटी एक्ट 1949, पांचवी अनूसूचि, पेसा कानून 1996, सभी को तकनीकी रूप से  अधिकार को कमजोर करने का काम किया है।

 केंन्द्र सरकार और पिछली राज्य सरकार ने भूमि बैंक बनाया, और 21 लाख एकड़ से अधिक समुदायिक संपत्ति/जमीन को भूमि बैंक में शामिल कर दिया। आज धड़ले से जमीन पर गैरकानूनी कब्जा का धंधा चरम पर है। जमीन का दस्तावेज आॅनलाइन होने के बाद रातों-रात जमीन का असली मालिक का नाम हटा कर किसी दूसरा व्यक्ति का नाम दर्ज किया जा रहा है। जमीन के खतियान जैसे मूल दस्तावेजों में भारी छेड-छोड किया जा रहा है। सरकार द्वारा नित नये कानून लाकर आदिवासी, मूलवासी, किसानों के परंपरागत एवं संवैधानिक अधिकारों का क्षरण और कमजोर करके पूुजिपतियों और कारपोरेट उद्वोगों के हित को पूरा करने जा रही है।  

आदिवासी-मूलवासी किसानों के परंपरागत अधिकार सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटी अधिकार,  5वीं अनुसूचि  के अधिकारों सहित 1932 के खतियान में प्रावधान अधिकारों का कड़ाई से पालन करने की मांग, साथ ही पांचवी अनूसूचि क्षेत्र, एवं सीएनटी एक्ट क्षेत्र के आदिवासी बहुल खूंटी जिला में ग्राम सभा को योजना को सही जानकारी दिये बिना, एवं ग्राम सभा की सहमति के बिना जबरन संपति कार्ड बनाने के लिए ग्रामीण क्षेत्र की जमीन का ड्रोन सर्वेक्षण किया जा रहा था, का लगातार जून 2022 से ही विरोध किया जा रहा है। इस विरोध के बीच ही बागोदर के माले विधायक श्री विनोद सिंह ने 10 मार्च को विधान सभा में सवाल उठाए थे। श्री विनोद सिंह जी के सवाल का जवाब स्वंय मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन ने कहा-खूंटी जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वामित्व योजना के तहत संपत्ति और जमीन का डिजिटल सर्वे डा्रेन के जरिए  हो रहा था। यह काम केन्द्र सरकार द्वारा किया जा रहा था। इसको लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में संशय की स्थिति है, इसलिए राज्य सरकार इसे फिलहाल होल्ड करने का आदेश देता है। इन्होनें कहा-इस संबंध में जांच करायी जाएगी। बजट सत्र में सीएम के आदेश के तुरंत बाद ड्रोन सर्वे को होल्ड कर दिया गया है। लेकिन यह स्थायी रूप से नहीं। 

आज आदिवासी समुदाय स्वामित्व योजना के तहत बनने वाली संपत्ति/प्रोपाॅटी कार्ड क्यों नहीं चाहती है, इस पर बहस होनी चाहिए, साथ ही देश के पांचवी अनुसूचि एवं छठी अनुसूचि क्षेत्र में आदिवासी, मूलवासी, दलित, किसान समुदाय के परंपरागत समुदायिक अधिकारों पर चर्चा करने की जरूरत है। साथ ही झारखंड के आदिवासी समुदाय के जंगल, जमीन से संबंधित सुरक्षा कवच सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंण्डारी खूंटकटी अधिकार, विलकिनसन रूल, पेसा कानून जैसे संवैधानिक अधिकारों पर भी चर्चा होनी चाहिए। इसके लिए झारखंड के इतिहास को आदिवासी समुदाय के एतिहासिक दृष्टिकोण से समझना होगा। 

पांचवी अनुसूचि, पेसा कानून, सीएनटी एक्ट, एसपीटी सक्ट का कोई जिक्र नहीं है-

वर्तमान समय में केंन्द्र सरकार द्वारा लायी जा रही पयलट प्रोजेक्ट स्वामित्व योजना भी इसका हिस्सा है। जिसके तहत प्रोपाॅटी कार्ड देने के नाम पर आदिवासी समुदाय के समुदायिक जमीन को सरकार अपने हाथ में लेने की योजना बनायी है। वर्तमान में लाया जा रहा स्वामित्व योजना इसी उद्वेश्य का एक हिस्सा है। इससे सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, 5वीं अनूसूचि, पेसा कानून, मुंडारो खूुटकटटी अधिकार, हो आदिवासी समुदाय के विल किनसन रूल में प्रावधान परंपरागत समुदायिक अधिकार पूरी तरह समाप्त हो जाएगा। 

आप सभी जानते हैं कि झारखंड में सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटकटी एवं 5वीं अनुसूचि क्षेत्र के आदिवासी बहुल जिला खूंटी में प्राॅपटी कार्ड बनाने के लिए ड्रोन से जमीन का सर्वे किया जा रहा था, आदिवासी सामाजिक संगठन लगातार इसका विरोध कर रहे हैं। बगोदर के माले विधायक श्री विनोद कुमार सिंह जी ने 10 मार्च को इस संबंध में विधान खूटी जिला 5वीं अनूसूचि क्षेत्र में आता है, बावजूद इसके ग्राम सभा की सहमति के बिना ही स्वामित्व योजना के तहत संपत्ति/जमीन का ड्रोन से सर्वे किया जा रहा है। इसके जवाब में स्वंय मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन ने कहा-खूंटी जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वामित्व योजना के तहत संपत्ति और जमीन का डिजिटल सर्वे डा्रेन के जरिए  हो रहा था। यह काम केन्द्र सरकार द्वारा किया जा रहा था। इसको लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में संशय की स्थिति है, इसलिए राज्य सरकार इसे फिलहाल होल्ड करने का आदेश देता है। इन्होनें कहा-इस संबंध में जांच करायी जाएगी। बजट सत्र में सीएम के आदेश के तुरंत बाद ड्रोन सर्वे को होल्ड कर दिया गया है। लेकिन यह स्थायी रूप से नहीं। 

ऐसे समय में कल्याणकारी राज्य के नागरिकों, मानवधिकार के शुभचितकों और आम लोगों की जिम्मेदारी है कि सामाजिक न्याय और राज्य हित में जनविरोधी नितीयों पर चिंतन करके हस्तक्षेप करें।

स्वामित योजना के तहत जमीन मालिकों के जमीन का प्राॅपटी /संपत्ति कार्ड बनायी जाएगी। जिस जमीन का दस्तावेज लोग पेस कर पायेगें, उसी जमीन का संपत्ति कार्ड बना कर गांव वालों को दिया जाएगा। बाकी जमीन का क्या होगा? उसका कोई जिक्र नहीं है। 

लैंण्ड रेकार्ड डिजिटालाइजेशन हो रहा है

डिजिटल इंडिया लैंण्ड रिकाडर्ड अधुनीकिरण कार्याक्रम के संबंध में सभी जानते हैं, फिर भी आप को सादर जानकारी दी जाती है कि अप्रैल 2020 को केंन्द्र सरकार द्वारा घाषित स्वमि

त्व योजना के तहत डिजिटल इंण्डिया लैंड रिकाॅर्ड आधुनिकीकरण कार्यक्रम के तहत ड्रोन से गांवों की संपति का सवेक्षेण कर जीअईएस मानचित्र बनाये जाऐगें। साथ ही जमीन मालिको को प्राॅपटी कार्ड बना कर दिया जाएगा। ये जीआईएस नक्से और स्थानीय डेटाबेस ग्राम पंचायतों और और राज्य सरकार के अन्य विभागों द्वारा विभिन्न कार्यों के लिए उपयोग किये जाएगें। इस स्वमित्व योजना का कई उदद्यों के साथ मूल उद्वेश्य एक राष्ट्र एक साॅफटवेयर (Digital Land Record, Digital Map  ka ka Software ) व्यवस्था करना है। 

इससे कई बड़े सवाल उभर कर आ रहे हैं-

1-आदिवासी सामुदाय की सामाजिक, सांस्कृतिक संपत्ति/धरोहर -जल, जंगल, जमीन जैसे भूईहारी खेत, डालीकतारी खेत, भूत खेता, पहनाई खेत, चरागल, सरना, मसना, ससनदीरी, हड़गड़ी, कब्रिस्तान, जहिरा, जाहेरस्थान, देवस्थान, अखड़ा, बांध, पोखरा, जतरा टांड जैसे बेलगान जमीन है। यह समाज की सामुदायिक संपत्ति है। सवाल है- स्वामित्व योजना के तहत इस धरोहर का प्राॅपटी कार्ड किसके नाम से बनेगा? 

2- आदिवासी-मूलवासी समुदाय के सामुदायिक जमीन, जो खतियान पार्ट दो में, वीलेज नोट में, सीएनटी, एसपीटी एक्ट में, पेसा कानून में सामुदायिक स्वामित्व का प्रावधान है। ग्रामीण आदिवासी, मूलवासी, किसान समुदाय का जीवनशैली इसी ताना-बाना के साथ जीवांत है, इसमें गैर मजरूआ आम, गैरजरूआ खास, गैर मजरूआ जंगल-झाड़ी, नदी-नाला, सरना, मसना, हडगडी, जाहेर, देशाउली, ससनदीरी, अखड़ा, हड्रगडी, खेल मैदान, जतरा टांड आदि का भूमि बैंक में शामिल किया गया है। यह जमीन गांव का सामुदायिक संपत्ति है-इसका संपति/स्वामित्व कार्ड किसके नाम से बनेगा?

  3- आॅनलाइन व्यवस्था होने के बाद 1932 के खतियान में भारी छेड़छाड़ हुआ है, जिसमें खतियान धारियों का नाम गलत दर्ज किया गया है। किसी में खाता संख्या गलत दर्ज है, किसी में असली जमीन मालिक को हटा कर दूसरे लोगों का नाम दर्ज कर दिया गया है । आॅनलाइन गलत अपडेट होने के कारण जमीन मालिक जमीन का रसीद नहीं काट पा रहे हैं। स्वामित्व योजना के तहत इस तरह के जमीन का प्राॅपर्टी /स्वामित्व कार्ड किसके नाम से बनेगा?

 4-सीएनटी, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून 1996, 1932 के खतियान में प्रावधान अधिकार,ं वन अधिनियम कानून 2006 एवं 5 वीं अनूसचित क्षेत्र में आदिवासी समुदाय के जल, जंगल, जमीन पर इनके परंपरागत अधिकारों का प्रावधान किया गया है। के जंगल-जमीन, सामाजिक-संस्कृतिक मूल्यों पर प्रतिकूल असर होगा। 

5-ये सभी गंभीर सवाल हैं-जमीन का आॅनलाइन व्यवस्था होने के बाद भारी संख्या में आॅनलाइन जमीन का लूट, नजायज कब्जा चल रहा है। इसको ठीक करने लिए आदिवासी, मूलवासी, किसान प्रज्ञा केंन्द्र से सीओ कार्यालय, सीओ कार्यलाय से अमीन के पास दौडतें दौड़ते दो-तीन साल बित गया, लेकिन गलती ठीक नहीं हो रहा है। इसके लिए कौन जिम्मेदार है?

प्राॅपटी कार्ड-मकान के साथ, उनके सभी जमीन को एक में लिंक किया जाएगा, तब इसका संपति कार्ड बनेगा। (जिस जमीन पर ग्रामीण अपना मालिकाना हक साबित कर सकेगें, जिस जमीन का मालिकाना हक साबित नहीं कर पाऐगें उस जमीन को सरकार अपने नाम कर लेगी), जो डिजिटल नक्सा में रखा जाएगा। 

 स्ंापति कार्ड/प्राॅपटी कार्ड लागू होने से आदिवासी इलाके को निम्नलिखित खतरों का सामना  भविष्य में करना होगा। 

1-परंपरागत आदिवासी इलाके का डेमोग्राफी -भौगोलिक स्थिति पूरी तरह से बदल जाएगा। 

2-5वीं अनुसूचि, सीएनटी, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटकटी एवं विलकिनसन रूल्स में प्रावधान गांव के सीमा के भीतर के गैर मजरूआ आम, गैर मजरूआ खास, जंगल-झाड़ी, परती-झारती, नदी-नाला आदि सामुदायिक जमीन पर बाहरी समुदाय का प्रावेश एवं कब्जा होगा।

3-प्रकृतिक जीवनशैली से जुड़े आदिवासी-मूलवासी, किसान, दलित समुदाय का परंपरागत सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, आधार ध्वस्त हो जाएगा।

4-ड्रोन सर्वे पूरा होने के साथ ही गांव का डिजिटल नक्सा बनेगा, नक्सा डिजिटल होगा, तब खतियान भी डिजिटल होगा। तब सवाल है कि-आदिवासी-मूलवासी समुदाय को सामुदाचिक अधिकार देने के साथ ऐतिहासिक पहचान देने वाला 1932 (जिससे आधार माना जाता है) खतियान का अस्तित्व बना रहेगा? या स्वतः निरस्त हो जाएगा?

5-ड्रोन से सर्वे के बाद जमीन मालिकाना हक क्लेम या दावा करने के लिए ग्रामीणों से कहा जाएगा, तब जिस जमीन का मजगुजारी रसीद काटा जा रहा है, उस जमीन का फ्रूफ या सबूत पेस करेगें, लेकिन ग्रामीणों का सामुदायिक जमीन जिसका रसीद नहीं काटा जाता है, उसका क्या होगा?

6-ग्रामीण इलाके में बढ़ते शहरी, आबादी के कारण ग्रामीण कृषि अर्थव्यवस्था, परंपरागत जलस्त्रोतों, वन व्यवस्था, जैव विविधता, एवं पर्यावरणीय व्यवस्था पर प्रतिकुल प्रभाव पड़ेगा।

7-प्राॅपटी कार्ड योजना के तहत ग्रीमीण आदिवासी इलाके में बड़ी संख्या में बाहरी आबादी के प्रवेश होने से, राज्य में आदिवासी आबादी तेजी से घटेगी। परिणाम स्वरूप आदिवासी समुदाय की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं राजनीतिक शक्ति स्वतःकमजोर होगा। 

आॅनलाइन खतियान में गलती के कारण बहुत से जमीन मालिक 4-5 वर्षों से जमीन का रसीद नहीं कटवा पा रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ खतियान से परंपरागत रैयातों का नाम हटाकर रातों-रात पांजी टू में में जमीन मालिक का नाम बदल दिया जा रहा है। कम पढ़े-लिखे सीधे, साधे आदिवासी किसानों को नहीं समझ में आ रहा कि ये क्या हो रहा है? बड़ा सवाल है कि आखिर इसके लिए कौन जिम्मेवार है?। 

इस तरह से आदिवासी-मूलवासी किसान, समुदाय से जमीन, जंगल निकलते जा रहा है। साथ ही समुदाय का सुरक्षा कवच सीएनटी, एसपीटी एक्ट, कमजोर होता जा रहा है। अब जमीन का लूट बढ़ेगा, परिवार और समाज में अशांति बढ़ेगा। इससे उत्पन्न परिस्थियों से विस्थापन, पलायन, बेरोजगारी, भूख, गरीबी, भूमिहीन, अस्वस्थ्य, सूखा-आकाल एवं पर्यावरण प्रदूषण जैसे महामारी का सामना करना होगा। 

हमारी मांगें-

1-केंन्द्र सरकार द्वारा काॅरपोरेट घराणों एवं पूंजिपतियों के लिए लायी जा रही स्वामित्व योजना के तहत प्राॅपटी/ संपत्ति कार्ड योजना का लागू नहीं किया जाए। 

2-झारखंड में सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, ं 5वीं अनुसूचि एवं पेसा कानून में प्रावधान अधिकारों को कड़ाई से लागू किया जाए। 

3-आदिवासी बहुल खूंटी जिला में प्राॅपटी कार्ड बनाने के लिए ड्रोन से जमीन /संपत्ति का सर्वे किया जा रहा था को होल्ड किया गया है, इसको पूरी तरह स्थायी रूप से रोका जाए। 

 4-रघुवर सरकार ने गैर मजरूआ आम, गैर मजरूआ खास, जंगल-झाड़ी जमीन को भूमि बैंक में शामिल किया है, इस भूमि बैंक को रदद किया जाए। 

5-राज्य के सभी जलस्त्रोंतों, नदी-नाला, झील-झरना का पानी लिफट ऐरिगेशन के तहत पाइप द्वारा किसानों के खेतों तक कृषि विकास के लिए पहुंचाया जाए। 

6-आॅनलाइन जमीन के दस्तावेजों का हो रहा ़क्षेड़-छाड़ एवं जमीन ko roka jayA

Niwedak -आदिवासी अस्तित्व रक्षा मंच,

  मुंडारी खूंटकटी परिषद। संपर्क -दयामनी बरला-9431104386

तुरतन तोपनो-7091128043, फूलचंद मुंण्डा, हादु तोपना-9801705283, राजू लोहरा-6202988865, दयाल कोनगाड़ी-8797772125, 



Sunday, June 5, 2022

हम निरंतर गाते रहेंगे जल जंगल जमीन हमारा है नारा देते रहेंगे लड़ेंगे जीतेंगे यही हमारा गीत और संगीत है।

 हम निरंतर गाते रहेंगे

जल जंगल जमीन हमारा है

नारा देते रहेंगे

लड़ेंगे जीतेंगे

यही हमारा गीत और संगीत है।

Friday, May 27, 2022

-आॅनलाइन जमीन के दस्तावेजों का हो रहा ़क्षेड़-छाड़ एवं जमीन का हेरा-फेरी बंद किया जाए।

 केंन्द्र की मोदी सरकार द्वारा काॅरपोरेट घराणों एवं पूंजिपतियों के लिए लायी जा रही स्वामित्व योजना के तहत प्राॅपटी/ संपत्ति कार्ड नहीं चाहिए। 

झारखंड में सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटकटी एवं 5वीं अनुसूचि क्षेत्र के आदिवासी बहुल जिला खूंटी में प्राॅपटी कार्ड बनाने के लिए ड्रोन से जमीन का सर्वे किया जा रहा है, को रोकने की मांग 

एवं आदिवासी-मूलवासी किसानों के परंपरागत अधिकार सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटकटी अधिकार, हो आदिवासी बहुल इलाका ......के बिलकिनशन रूल्स एवं 5वीं अनुसूचि में प्रावधान अधिकारों को कड़ाई से लागू करने की मांग को लेकर 28 फरवरी 2022 को विधान सभा के समक्ष धरना।

इतिहास गवाह है कि झारखंड में जल, जंगल, जमीन को आबाद करने का आदिवासी-मूलवासी किसान समुदाय का अपना गैरवशाली इतिहास है।  आदिवासी समुदाय खतरनाक जंगली जानवकरों से लड़ कर जंगल-झाड़ को साफ किया, गांव बसाया, जमीन आबाद किया है। आदिवासी-मूलवासी किसान समुदाय जंगल, जमीन, नदी, पहाडों की गोद में ही अपने 

भाषा-सास्कृतिक पहचान के साथ विकसित होता है। 

प्रकृतिक-पर्यावरण जीवन मूल्य के साथ आदिवासी-मूलवासी समुदाय के ताना-बाना को संरक्षित और विकसित करने के लिए ही छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908, संताल परगना काश्तकारी अधिनियम 1949 बनाया गया है। साथ ही भारतीय संविधान में 5 वीं अनूसचि एवं पेसा कानून 1996 में आदिवासी समुदाय के जल, जंगल, पर इनके खूंटकटी अधिकारा सहित अन्य परंपरागत अधिकारों का प्रावधान किया गया है। 

सर्व विदित है कि आदिवासी समुदाय के जंगल-जमीन, सामाजिक-ससर््ंतिक, असर्थिक आषार को संरक्षित एवं विकसित करने के लिए भारतीय वंविधान में विशेष कानूनी प्रावधान किये गये है। स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि-गांव के सीमा के भीतर एवं बाहर जो प्रकृतिक संसाधन है जैसे, गिटी, मिटी, बालू, झाड-जंगल, जमीन, नदी-झारना, सभी गांव की सामुदायिक संपत्ति है। इस पर क्षेत्र के ग्रामीणों का सामुदायिक अधिकार है।

ये सभी सामुदायिक अधिकार को सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून, कोल्हान क्षेत्र के लिए विलकिनशन रूल, मुंडारी खूंटकटी अधिकार में कानूनी मन्यता मिला हुआ है। ये सभी अधिकार आदिवासी समुदाय के लंबे संघर्ष और शहादत के बाद मिला है। खतियान एवं वीलेज नोट में दर्ज सामुदायिक एवं खूंटकटी अधिकार को बचाना जगरूक नागरिकों के साथ राज्य के कल्याणकारी सरकार की भी जिम्मवारी है। 5 वीं अनुसूचि क्षेत्र का संरक्षक राज्यपाल महादयहै, इनकी जिम्मेवारी है हमारे अधिकारों को संरक्षित करने का। 

वर्तमान में लाया जा रहा स्वामित्व योजना के तहत प्राॅपटी कार्ड बनायी जाएगी। 

इससे कई बड़े सवाल उभर कर आ रहे हैं-

1-आदिवासी सामुदाय क ेजल, जंगल, जमीन जैसे भूईहारी खेत, डालीकतारी खेत, भूत खेता, पहनाई खेत, चरागल, सरना, मसना, ससनदीरी, हड़गड़ी, कब्रिस्तान, जहिरा, जाहेरस्थान, देवस्थान, अखड़ा, बांध, पोखरा, जतरा टांड जैसे बेलगान जमीन का स्वामित्व योजना के तहत प्राॅपटी कार्ड किसके नाम से बनेगा? 

2-2014 के बाद आदिवासी-मूलवासी समुदाय के सामुदायिक जमीन, जो खतियान पार्ट दो में, वीलेज नोट में, सीएनटी, एसपीटी एक्ट में, पेसा कानून में एवं वन अधिकार कानून 2006 में प्रावधान है, को रघुवर दास की भाजपा सरकार ने भूमि बैंक में शामिल कर दिया है-इसका प्राॅपटी कार्ड किसके नाम से बनेगा?

3- आॅनलाइन व्यवस्था होने के बाद 1932 के खतियान में भारी छेड़छाड़ हुआ है, जिसमें खतियान धारियों का नाम गलत दर्ज किया गया है। किसी में खाता संख्या गलत दर्ज है, किसी में असली जमीन मालिक को हटा कर दूसरे लोगों का नाम दर्ज कर दिया गया है । आॅनलाइन गलत अपडेट होने के कारण जमीन मालिक जमीन का रसीद नहीं काट पा रहे हैं। स्वामित्व योजना के तहत इस तरह के जमीन का प्राॅपर्टी कार्ड किसके नाम से बनेगा?

 सीएनटी, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून 1996, 1932 के खतियान में प्रावधान अधिकार,ं वन अधिनियम कानून 2006 एवं 5 वीं अनूसचित क्षेत्र में आदिवासी समुदाय के जल, जंगल, जमीन पर इनके परंपरागत अधिकारों का प्रावधान किया गया है। के जंगल-जमीन, सामाजिक-संस्कृतिक मूल्यों पर प्रतिकूल असर होगा। 

ये सभी गंभीर सवाल हैं-जमीन का आॅनलाइन व्यवस्था होने के बाद भारी संख्या में आॅनलाइन जमीन का लूट, नजायज कब्जा चल रहा है। इसको ठीक करने लिए किसान प्रज्ञा केंन्द्र से सीओ कार्यालय, सीओ कार्यलाय से अमीन के पास दौडतें दौड़ते दो-तीन साल बित गया, लेकिन गलती ठीक नहीं हो रहा है। इसके लिए कौन जिम्मेदार है?

प्राॅपटी कार्ड-मकान के साथ, उनके सभी जमीन को एक में लिंक किया जाएगा, तब इसका संपति कार्ड बनेगा। (जिस जमीन पर ग्रामीण अपना मालिकाना हक साबित कर सकेगें, जिस जमीन का मालिकाना हक साबित नहीं कर पाऐगें उस जमीन का सरकार अपने नाम कर लेगी), जो डिजिटल नक्सा में रखा जाएगा। 

भारत सरकार पंचायत मंत्रालय की स्वामित्व योजना नियामावली के अनुसार अब जमीन का स्वामित्व पंचायत मंत्रालय के हाथ में दिया जाएगा। यहां समझने की जरूरत है कि जो परंपरागत गांव समुदाय के हाथ में जो अधिकार था, उसको सरकारी पंचायती व्यवस्था के अधिन किया जाएगा। यह नयी व्यवस्थ लागू होने पर निश्चित तौर पर कागजों में सीएनटी, एसपीटी एक्ट, पांचवी अनुसूचि, मुंडारी खूंटकटी अधिकार, कोल्हान विलकिनसन रूल्स सहित अन्य परंपरागत व्यवस्था दर्ज रहेगा, लेकिन इसका जमीनी अधिकार स्वतः कमजोर हो जाएगा। यह कहना गलत नहीे होगा कि-आने वाले समय में से सभी परंपरागत अधिकार अस्तित्व विहीन हो जाएगा। आदिवासी समुदाय पर इसका प्रतिकूल असर पड़ेगा। 

भारत सरकार की स्वामित्व योजना के पंचायत मंत्रालाय निर्देशिकानुसार ग्रामीण क्षेत्रों के जमीन का मौद्रिकरण किया जाएगा, इससे ग्रामीण क्षंत्र के जमीन व्यवसाीयकरण को बढ़ावा दिया जाएगा। इसे ग्रामीणों पर टैक्स का बोझ बढ़ेगा। जंगल, जमीन सहित सभी संसाधनों का खरीद-फरोक्त एवं लूट-भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा। 

स्ंापति कार्ड/प्राॅपटी कार्ड लागू होने से आदिवासी इलाके को निम्नलिखित खतरों का सामना  भविष्य में करना होगा। 

1-परंपरागत आदिवासी इलाके का डेमोग्राफी -भौगोलिक स्थिति पूरी तरह से बदल जाएगा।

2-5वीं अनुसूचि, सीएनटी, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटकटी एवं विलकिनसन रूल्स के तहत गांव के सीमा के भीतर के गैर मजरूआ आम, गैर मजरूआ खास, जंगल-झाड़ी, परती-झारती, नदी-नाला आदि सामुदायिक जमीन पर बाहरी समुदाय का प्रावेश एवं कब्जा होगा।

3-प्रकृतिक जीवनशैली से जुड़े आदिवासी-मूलवासी, किसान, दलित समुदाय का परंपरागत सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, आधार ध्वस्त हो जाएगा।

4-ड्रोन सर्वे पूरा होने के साथ ही गांव का डिजिटल नक्सा बनेगा, नक्सा डिजिटल होगा, तब खतियान भी डिजिटल होगा। तब सवाल है कि-आदिवासी-मूलवासी समुदाय को सामुदाचिक अधिकार देने के साथ ऐतिहासिक पहचान देने वाला 1932 (जिससे आधार माना जाता है) खतियान का अस्तित्व बना रहेगा? या स्वतः निरस्त हो जाएगा?

5-ड्रोन से सर्वे के बाद जमीन मालिकाना हक क्लेम या दावा करने के लिए ग्रामीणों से कहा जाएगा, तब जिस जमीन का मजगुजारी रसीद काटा जा रहा है, उस जमीन का फ्रूफ या सबूत पेस करेगें, लेकिन ग्रामीणों का सामुदायिक जमीन जिसका रसीद नहीं काटा जाता है, उसका क्या होगा?

क्या इसके लिए स्वामित्व योजना में पांचवी अनुसूचि के अधिकारों, सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, में प्रावधान सामुदायिक अधिकारों के लिए कोई विशेष प्रावधान किया गया है?। क्योंकि पूरे नियामावली में कहीं पर इसका जिक्र नहीं किया गया है। तब सीधे तौर पर यह माना जा सकता है कि-स्वामित्व योजना में आदिवासी, मूलवासी किसानों के परंपरागत अधिकारों के संरक्षण के लिए कोई जगह नहीं है। 

6-ग्रामीण इलाके में बढ़ते शहरी, आबादी के कारण ग्रामीण कृषि अर्थव्यवस्था, परंपरागत जलस्त्रोतों, वन व्यवस्था, जैव विविधता, एवं पर्यावरणीय व्यवस्था पर प्रतिकुल प्रभाव पड़ेगा।

7-प्राॅपटी कार्ड योजना के तहत ग्रीमीण आदिवासी इलाके में बड़ी संख्या में बाहरी आबादी के प्रवेश होने से, राज्य में आदिवासी आबादी तेजी से घटेगी। परिणाम स्वरूप आदिवासी समुदाय की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं राजनीतिक शक्ति स्वतःकमजोर होगा। 

नोट-ज्ञात हो कि झारखंड में भूमि सुधार कानून के तहत राज्य में लाखों छोटे किसानों को एक-एक एकड़, कहीं कहीं दो-तीन एकड़ तक जमीन बंदोबस्त कर दिया गया था। जब से जमीन लोगों के नाम से बंदोबस्त किया-उत्क जमीन पर लोग खेती करते आ रहे हैं, याने जमीन उनके उपयोग में है। जमीन का रसीद भी उनके नाम से काटा जा रहा था। अचानक पिछले 2014-15 के बाद से इस तरह के जमीन धारकों को राज्य सरकार की ओर से अंचल कार्यालयों से उत्क बंदोबस्ती का सक्ष्य/दसस्तावेज प्रस्तूत करने की नोटिस जारी की गयी। उत्क नोटिस में कहा गया-फलां तिथि को अंचल कार्यालय में आकर बंदोबस्त जमीन का, बंदोबस्ता कागजात, सहित अन्य कागजात अधिकारियों के समक्ष प्रस्तूत करें। यदि निर्धारित तिथि को कागजात प्रस्तूत नहीं करेगें, ऐसे स्थिति में अधिकारी अपनी तरफ से निर्णाय लेने को अधिकृत हैं। इन नोटिसों का जवाब, जिन लोगों ने कागजात सुरक्षित रख पाये थे, अधिकारियों के समक्ष प्रस्तुत किया, जो असक्षम थे प्रस्तुत नहीं किये। परिणाम यह हुआ कि-राज्य के कई इलाके में भूमिदान में बंदोबस्त जमीन का रसीद काटना बंद कर दिया गया। ग्रामीणों का समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करें?

राज्य में जमीन संबंधित काम-काज 2014-15 तक आॅफलाइन संचालित हो रहा था। जमीन मालिक आॅफलाइन रसीद हल्का कर्मचारियों के द्वारा काटने का व्यवस्था था। इसके समय तक जमीन के दस्तावेजों का आॅनलाइन नहीं हुआ था। आॅफलाइन व्यवस्था होने के कारण जो भी गडबड़ियां होती थी, संबंधित अधिकारियों के पास जा कर ठीक करवा लेते थे। 

लेकिन आॅनलाइन व्यवस्था के बाद जमीन के दस्तावेजों में के अपडेट करने में भारी गलतियां हुई हैं। आॅनलाइन खतियानों में, किसी में खाता नंबर गलत दर्ज हुआ, किसी में प्लाॅट नंबर गलत, किसी में जमीन का रकबा गलत दर्ज किया गया है। जमीन मालिक प्रज्ञा केंन्द्र रसीद कटवाने जा रहे हैं, तो उन्हें कहा जा रहा है कि जमीन आॅनलाइन नहीं दिख रहा है-रसीद नहीं कटेगा। इसको ठीक करने के लिए पज्ञा केंन्द्र से अमीन, अंचल के सीओ, उपायुक्त तक चक्कर कटते-कटते थक रहे हैं। कई पीड़ितों को सीधे कहा जा रहा है-एक प्लाॅट को ठीक करने के लिए 14 हजार से 20 हजार तक की मांग की जा रही है। 

आॅनलाइन खतियान में गलती के कारण बहुत से जमीन मालिक 4-5 वर्षों से जमीन का रसीद नहीं कटवा पा रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ खतियान से परंपरागत रैयातों का नाम हटाकर रातों-रात पांजी टू में में जमीन मालिक का नाम बदल दिया जा रहा है। कम पढ़े-लिखे सीधे, साधे आदिवासी किसानों को नहीं समझ में आ रहा कि ये क्या हो रहा है? बड़ा सवाल है कि आखिर इसके लिए कौन जिम्मेवार है?। 

ये सारी दिक्कतें तक हो रही है, जब जमीन-जंगल हमारा है। जमीन का सारा दस्तावेज गांव के लोगों के हाथ में मैनुआली मौजूद है। 1932 का खतियान, विजेल नोट, गांव का नक्सा ग्रामीणों  के हाथ में है। सच्चाई है कि जब तक जमीन संबंधित व्यवस्था आॅफलाइन था, ग्रामीण इलाकों में जमीन का हेराफेरी, गैर कानूनी कब्जा की घटनाएं हो रही थी, लेकिन आज की तुलना में कम था। कारण की, गांव वाले अपने क्षेत्र की जमीन की रक्षा अपने तरीके से करते आ रहे थे। अब ग्रामीणों के अपने व्यवस्था पर डिजिटल व्यवस्था भारी पड़ गया है। 

इस तरह से आदिवासी-मूलवासी किसान, समुदाय से जमीन, जंगल निकलते जा रहा है। साथ ही समुदाय का सुरक्षा कवच सीएनटी, एसपीटी एक्ट, कमजोर होता जा रहा है। अब जमीन का लूट बढ़ेगा, परिवार और समाज में अशांति बढ़ेगा। इससे उत्पन्न परिस्थियों से विस्थापन, पलायन, बेरोजगारी, भूख, गरीबी, भूमिहीन, अस्वस्थ्य, सूखा-आकाल एवं पर्यावरण प्रदूषण जैसे महामारी का सामना करना होगा। 

हमारी मांगें-

1-केंन्द्र सरकार की नयी स्वामित्व योजना/प्राॅपटी /संपति कार्ड बनाने के लिए आदिवासी बहुल खूंटी जिला में परंपरागत ग्राम सभा एवं आदिवासी किसान संगठनों के मांग को अनुसुनी करके, ड्रोन द्वारा जमीन का सर्वे किया जा रहा हे, को रोका जाए। 

2-मोदी सरकार द्वारा काॅरपोरेट घराणों एवं पूंजिपतियों के लिए लाया जा रहा स्वामित्व योजना को झारखंड में लागू नहीं किया जाए। 

3-सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटकटी एवं 5वीं अनुसूचि में प्रावधान ग्राम सभा के अधिकारों को कड़ाई से लागू किया जाए। एवं आदिवासी-मूलवासी समुदाय के सामुदायिक अधिकारों को संरक्षित किया जाए।

4-रघुवर सरकार ने गैर मजरूआ आम, गैर मजरूआ खास, जंगल-झाड़ी जमीन को भूमि बैंक में शामिल किया है, इस भूमि बैंक को रदद किया जाए। 

5-क्षेत्र के सभी जलस्त्रोंतों, नदी-नाला, झील-झरना का पानी लिफट ऐरिगेशन के तहत पाइप द्वारा किसानों के खेतों तक कृषि विकास के लिए पहुंचाया जाए। 

6-आॅनलाइन जमीन के दस्तावेजों का हो रहा ़क्षेड़-छाड़ एवं जमीन का हेरा-फेरी बंद किया जाए। 

नोट-धरना 11 बजे से शुरू होगा

स्थान-विधानसभा के पीछे, कुटे मैदान

दिनांक-28 फरवरी 2022

निवेदक-आदिवासी अस्तित्व रक्षा मंच

  मुंडारी खूंटकटी परिषद

आदिवासी एकता मंच




Tuesday, May 24, 2022

एक यात्रा कई अनुभवों के साथ

 एक सफर कई अनुभवों के साथ

 17, मई 2022 की सुबह, हल्की ठंड गुनगुनी हवा के स्पार्स से ताजगी चेतना, नई और सकारात्मक सोच के साथ यात्रा के लिए शुरुवात के लिए कदम बढ़ा। 

पक्का पपाया, खीरा और दो मंडुवा की थपड़ी रोटी, हरी पोई साग की  झोर के नाश्ता के बाद 7 बजे घर से बाहर । मेरे साथी तीन धुस्का और चाय की कुस्की से नस्ता का आनन्द पूरा किया।

सुबह का समय है। गांव की ओर से रांची शहर रेजा, कुली , दैनिक मजदूरी करने वाले गांव से निकले तो होंगे, लेकिन बिनगांव, लोधमा कर्रा रास्ता अभी खाली खाली है।


चलते चलते रोड़ से दूर दूर नजर जा रहा था। लाह लहलहाते हरियाली बिखेरे खेत,  धान की बालियों से झूमता खेत ,  अब बिकने के लिए तैयार हैं। एक नंबर का दोन, ऊंचा, मोटा आड़ अब समतल हो चूका है। दोन और टांड में फर्क नजर नही आ रहा है। प्राकृतिक आड़ तो बुलडोज हो गाया, अब कीमत के अनुसार जमीन का आकार, प्रकार ईट, सीमेंट , बालू के दीवारों ने ले लिया है।


आंखें उन खेतों को निहारते बढ़ रहा है, याद है इस खेत में पहली बारिश में खोंघी निलते थे। गांव वाले , महीला, बच्चे घोंघी चुनते थे। यंहा खेत था, खेत से धान काटने के बाद गांव के बच्चे मिलकर गुडु मूसा खोदते थे। आगे लम्बा चौड़ा टांड़ था। जंहा गांव के लोग गाय, बकरी, भैंस चराते थे। अब तो.. बड़े बड़े बिल्डिंग खड़ा हो गया है। कुछ जगह मे ऊंचा ऊंचा घेरा।


अब ये इलाका गांव जैसा नहीं लग रहा है। हां अब इसी क्षेत्र से फॉर लेन भारतमाला संडक योजना भी आने वाला है। ग्रीन प्रोजेक्ट। योजना के अनुसार फॉर लेन, कहीं कहीं सिक्स लेन रोड होगा, जो सिर्फ खेतों से होकर गुजरेगा। इसके लिए सकड़ों पेड़ काटेंगे, खेती की जमीन अधिग्रहित होगी, नदी, नाला, जलश्रोत का आस्तित्व मिट जायेगा। 


विकास की कहानी सब जानते हैं। विकास का दो रूप होता है, विकास और विनाश।, पर्यावरण प्रदूषण, अति वृष्टि, अना वृष्टि, सूखा और बाढ़, ग्लोबल वार्मिंग…और ना जाने क्या क्या इनके गवाह हैं। इस सचाई को इनकार। नहीं किया जा सकता।

मन में था, सुवारी के ग्रामीण बड़े पैमाने पर रोड़ किनारे नाले के पानी से सिंच कर तरबूज, ककड़ी, खीरा, झींगी, बोदी हर गर्मी में खेती करते हैं। इस बार भी तरबूज खाने को मिलेगा। जगह पर पहुंच भी ...। आंखें तरबूज खेत ढूंढने लगा। इस बार तरबूज नहीं… स्वीटकॉर्न /मीठा मकई की खेती किए हैं। शायद इसलिए..2020 और 2021 में कोरोना माहामारी के कारण लोकडाउन था। बाजार नहीं के कारण पुरी तरबूज बरबाद हो गई थी। इसलिए इस साल तरबूज का रिस्क नहीं लिए होंगे।


सोचते सोचते छोटा सा छायादार पेड़ नीचे बैठी बहन दिखी। नजदीक आते ही मन खुश हो गया। ताजा बोदी, भेंडी, झिंगी, ककड़ी, तरबूज साजा कर रखी है। पूछे तरबूज कैसन किलो..? 

15 रुपया किलो। बहन से बात कर ही रहे थे, तब तक उनके पति आ आए। बहन बोली… तोएं तो हमेशा आविस्ला। मैं उनके तरफ देख रही थी, तब तक उनका पति कटा हुआ लाल तरबूज का टुकड़ा मेरी और पढ़ाते हुए बोला लेवा खावा। मैं दाहिना हाथ बढ़ाकर तरबूज लेकर खाने लगी, ताजा  मीठा ,मेरे बाद मेरे साथी के हाथ में लाल लाल..तरबूज।

 हम दोनों तोता की तरह कुतर कुतर कर तरबूज का मजा ले रहे थे, तोरपा  की ओर से एक गाड़ी आकर सामने रुकी। गाड़ी से युवक उनके परिवार के साथ उत्तरा , तरबूज मालिक उस दंपति को भी तरबूज का लाल टुकड़ा देते हुए कहा लेवा लेवा तोहरो खावा, बेस लगी।


 दोनों दंपति तरबूज खाने लगे ।खाते-खाते युवक ने पूछा कैसन किलो देवा था? उत्तर मिला ₹15 किलो । तरबूज खाते खाते युवक ने बोला, ₹10 में सब बाजार में मिलाते थे। तरबूज वाली बहन बोली बाजार में मिला थे  ₹10 में , हमारे तो या ₹15 किलो में बेचा थी , आवे ना रांची लाली से, और कीन के ले लेजायना। जेके खाए कर मन करेला,  से दूर दूर से आए ना और ₹15 में लेईजाए ना।


बात नहीं बनी 10 ₹ किलो में , तो युवक और उनके परिवार गाड़ी में बैठ कर रांची की ओर निकल गए । हम दोनों ने 5 किलो ₹15 रुपया किलो के भाव से खरीद कर अपने साथ लेकर चल दिए। नाला के उस पार टांड़ में तरबूज का खेती किया गया है लेकिन पानी नहीं मिलने के कारण नारंग सुख दे रहा है, पत्ती सूख गया है, छोटा-छोटा तरबूज जमीन पर पड़ा हुआ है । खेत में तरबूज खेती की स्थिति देख .. सोचने लगे एक तरबूज का फसल लगाने, तैयार करने और उसमें फूल , फल लगने , तैयार करने तक 3 महीना तक मेहनत लगता है पानी खाद मेहनत..।


इस मेहनत का कीमत हम लोग को 1 किलो में ₹15 नहीं दे सकते हैं , तब अपने किसान भाई बहनों  विकास के रास्ते हम लोग किस तरह आगे बढ़ने में मदद करेंगे?  ऐसे किसानों से जुड़ा कई सवाल  मन में उठने लगा।

तोरपा मेन रोड पहुंचने के पहले बाजार के पास कुछ किसान सफेद चित काबरा तरबूज बेचने के लिए दूकान लगाकर  रखे, ग्राहकों का इंतजार कर रहे हैं।


कुलड़ा जंगल पहुंचते ही हाथियों का झुंड की आने जाने की यादें मन को ताजा करने लगा। कारो नदी का पानी बह तो नहीं रहा है लेकिन अभी भी तोरपा शहर के लोगों को इंटेक्स वेल द्वारा बड़ा पाइप से पानी पहुंचा रहा है । नदी में जहां पानी जमा हुआ है,  बच्चे किलकारियां  भरते 10:12 बच्चे खेल रहे हैं । एक तरफ गांव वाले अपने कड़ा और भैंस को नहला रहे हैं।


कोरको टोली पूरा गांव, अंबाटोली पूरा गांव ,कारो नदी से बालू निकाल कर, पानी एकत्र करके पाईप से करीब एक किलोमीटर दूर खेतों में , सब्जी, गेंहू, खीरा, ककड़ी सिंचते थे। गर्मा धान भी बूते थे। पूरा गर्मी खेत हरा भरा रहता था। इस साल सभी खेत खाली पड़ा हुआ है ,हरियाली दूर-दूर तक नजर नहीं आया। हां नाला में अभी भी भरपूर पानी है लोग अपने भैस धो रहे है। कहीं-कहीं महिलाएं बच्चों के साथ कपड़े धो रहे हैं,  नहा रहे हैं। कहीं कहीं बतख पानी में किलकारियां भर रहे हैं। ऊपर से गर्मी का ताप है, लेकिन नाला का साफ पानी, बतख, बच्चों का किलकारी... मन , तन को शितलता से भींगो दीया….।


इमली पेड़ की छांव में कई पुरुष साथी बैठे हैं हम लोगों के वहां पहुंचने पर कई महिलाएं भी आई ।अपने साथ लोटा में पानी और ग्लास,  पहले हाथ मुंह धोने के लिए लोटा में पानी दी, उसके बाद सातू पानी पीने के लिए  दी। साथियों । बताया, इस साल आम। नहीं फला है, इस कारण आम का शर्बत पीने को नहीं मिल रहा है।

पानी पीते पीते मैंने पूछा,  जब भी मैं आई हूं गांव में आप लोग घर में ककड़ी ,खीरा ,तरबूज ,खूब खिलाएं जाते समय बोदी,  भिंडी ,मकई  तोड़कर साथ में भेज देते थे। पहली बार मैं खेत में। कुछ नहीं देख रही हूं, सब्जी, गरमा धान कुछ नहीं..अभी तक खेत में गरमा धान पाक रहा होता था इन साल क्या हुआ ? कहीं पर भी ना सब्जी दिखा, ना धान।


सभी साथी एक साथ बोले एक , दो साल से हम लोग खेती नहीं कर पा रहे हैं, दिन को तो हम लोग गाय बैल बकरी से खेती को बचा लेते हैं । लेकिन रोज रात को बड़का लोग आते हैं (याने हाथी ) कई बार 10 ,12 एक साथ आते हैं । कई बार एक, तो कभी-कभी,  भटक के अकेले चलाता है । सब तरबूज ,खीरा, कादू को जाता है,  सब्जी  बोदी, भेंडि सबको पैर से रौंद के बर्बाद कर देता है । यहां तक की गांव का कई कटहल पेड़ का फल को खा कर खत्म कर दिया।


 साथियों ने बताया, पालक साग ढंडा है, इसलिए इसको छोटा छोटा पति को भी एक एक कर तोड़ कर खा लेता है।

हाथियों का झुंड कुल्डा, केनक्लोया, , उलिहतु, बानबीरा, उड़ी केल, गांवों में हमेशा आते रहता है। बच्चा छोटा रहता है तो 5,6, दिनों तक एक ही स्थान पर जमे रहते हैं। एक बार एक युवा हाथी झुंड से भटक कर बनाबिरा गांव आ गया। करिस्थान के पास 3 दिन तक डाकू पेड़ के नीचे ही खड़ा रहा। कई गांव के लोग देखने के लिए आइए ,चारों तरफ से घेर के लोग खड़े रहे। कई लोग  पत्थर उठाकर हाथी के ऊपर फैंकने लगे।  एक साथी कहते हैं , ऐसे में हाथी भागेगा और वह गुस्सा होकर लोगों पर हमला तो करेगा ही।  लेकिन किसी पर हमला नहीं किया।


जल जंगल जमीन, नदी झरना, गांव समाज, पर्यावरण बचाने की लड़ाई इस इलाके में 2006 से शुरू होकर आज तक जारी है ।इस इलाके के आदिवासी मूलवासी किसान समुदाय ने जल जंगल जमीन की रक्षा की लड़ाई का इतिहास पूरे विश्व में परचम लहराया है।

 मित्तल कंपनी 2008 में खूंटी जिला के तोरपा प्रखंड, रनिया प्रखंड ,कर्रा प्रखंड, गुमला जिला के कामदारा प्रखंड के करीब चालीसा गांव को हटाकर 50,000 करोड़ की लागत से स्टील प्लांट लगाने के लिए तत्कालीन झारखंड के मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के साथ एमओयू किया था ।इसके साथ ही अर्जुन मुंडा की सरकार आर्सेलर मित्तल कंपनी को जमीन देने की कवायद शुरू कर दी थी ।लेकिन ग्रामीण आदिवासी मूलवासी किसान समुदाय सहित इलाके के हर जाति समुदाय और वर्ग ने विस्थापन के खिलाफ आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच के बैनर तले एक मंच में आए और अपने पूर्वजों की 1 इंच भी जमीन नहीं , देंगे के नारा के साथ मैदान में डटे रहे।

 200 8 से 2010 तक के संघर्ष के बीच लक्ष्मी निवास मित्तल ने लक्जमबर्ग जो आर्सेलरमित्तल का हेड क्वार्टर है से घोषणा किया की खूंटी कामडारा क्षेत्र में जमीन लेना कंपनी के लिए संभव नहीं है क्योंकि वहां का स्थानीय संगठन बहुत मजबूत है। इसलिए कंपनी बोकारो जिला में अपना प्रोजेक्ट सिफ्ट कर रहा है।

यदि कंपनी जमीन लेने में सफल हो जाता तो, 40 गांवों को विस्थापित होना पड़ता। संघर्ष के 12 सालों में भी  संघर्ष का ऊर्जा कमजोर नहीं हुआ है । आज भी वही जोश ,वही तलाक ...हम अपने पूर्वजों का 1 इंच जमीन नहीं देंगे,  लड़ेंगे और जीतेंगे ,यही संकल्प के साथ सरकार, कंपनी, रीयल एस्टेट, माफिया, दादलों के मनसूबों में पानी फेरता रहा है।


सरकार की विकास योजनाओं पर चर्चा करते हुए साथी कहते हैं सरकार ₹1 किलो का चावल देकर लोगों को भूख से तो निजाद दे रही है, लेकिन इस ₹1 किलो का चावल हम ग्रामीण,  समुदाय के लिए घातक भी सिद्ध हो रहा है । ग्रामीण आदिवासी समुदाय हम लोग मेहनत करने वाले हैं , खेत में परिश्रम करने वाले हैं और परिश्रम करके ही बंजर भूमि में अनाज पैदा करते हैं , लेकिन ₹1 किलो का चावल हमारे लोगों को परिश्रम करने से अपने मेहनती परंपरा थी , जो समाज का पहचान था उससे अलग कर दे रहा है । यही कारण है कि आज गांव में खेतों में मजदूरी करने के लिए रूपा डोभा करने के लिए लोग नहीं मिलते हैं।  क्योंकि काम करें या ना करें महीना में ₹1 किलो वाला चावल तो मिल ही रहा है।  इससे हमारा समाज मेहनत से दूर भाग रहा है, कोढिया हो जा रहा है । 

एक बुजुर्ग साथी कहते हैं , हमको तो लगता है सरकार को इस ₹1 किलो वाला चावल का स्कीम को बंद कर देना चाहिए , यह सुनते ही यहां बैठे कई बुजुर्ग साथी एक साथ करते हैं हमको भी लगता है कि इस योजना को बंद करना चाहिए, नहीं तो हमारा समाज बर्बाद हो जाएगा। 


सभी साथियों ने इस मामले में चिंतित.. छन भर सर नीचे.. एक ने कहा.. हम सोचते हैं.. एक बार 1रुपया किलो राशन चावल को बंद करना चाहिए..। दुसरे ने कहा.. नहीं बंद न हो.. हम ही लोगों में सुधार लाने की जरुरत है.. दुसरे लोग इस चावल से फायदा उठा रहे हैं। हम लोगों को भी फायदा उठाना सीखना चाहिए। जब खाने के लिए मिल ही रहा है, तब, अपने काम को और सही तरीके से, पूरी लगन से करना होगा, चाहे खेती किसानी का काम हो, या दूसरा काम।

एक साथी.. हां देखिए न, हम लोग हर चीज में परभरोसा/ सरकार के उपर निर्भर हो जा रहें हैं। बच्चों का पढ़ाई/ लिखाई, मकान, राशन, चावल/ गेंहू, सब में, ये ठीक नहीं है। बाकी साथियों ने हमीं भरते.. सही में हम अपनी क्षमता को भूल जा रहें हैं, हमारे पास सबकुछ है, हम सबकुछ कर सकते हैं, अपनी क्षमता पर लोगों ने भरोसा करना छोड़ दिया है। इसीलिए हमारा समाज कमजोरी की दिशा….


थोड़ी देर के लिए सब शांत... रहे सभी। शानाट्टा तोड़ते.. एक दूसरे की ओर देखते, मुस्कुराते...अपना ताकत हमें पहचाना जरूरी है, खेती किसानी को और मजबूत करेगें, ग्राम सभा को मजबूत करेंगे, जंगल, झाड़, नदी, नालों को हर हाल में सुरक्षित रखेंगे... इसके लिए सामूहिक प्रयास करेगें.. लड़े हैं, जीते हैं, आगे भी लड़ेंगे और जीतेंगे...


एक सफर कई अनुभवों के साथ 17, मई 2022 की सुबह, हल्की ठंड गुनगुनी हवा के स्पार्स से ताजगी चेतना, नई और सकारात्मक सोच के साथ यात्रा के लिए शुरुवात के लिए कदम बढ़ा। पक्का पपाया, खीरा और दो मंडुवा की थपड़ी रोटी, हरी पोई साग की झोर के नाश्ता के बाद 7 बजे घर से बाहर । मेरे साथी तीन धुस्का और चाय की कुस्की से नस्ता का आनन्द पूरा किया। सुबह का समय है। गांव की ओर से रांची शहर रेजा, कुली , दैनिक मजदूरी करने वाले गांव से निकले तो होंगे, लेकिन बिनगांव, लोधमा कर्रा रास्ता अभी खाली खाली है। चलते चलते रोड़ से दूर दूर नजर जा रहा था। लाह लहलहाते हरियाली बिखेरे खेत, धान की बालियों से झूमता खेत , अब बिकने के लिए तैयार हैं। एक नंबर का दोन, ऊंचा, मोटा आड़ अब समतल हो चूका है। दोन और टांड में फर्क नजर नही आ रहा है। प्राकृतिक आड़ तो बुलडोज हो गाया, अब कीमत के अनुसार जमीन का आकार, प्रकार ईट, सीमेंट , बालू के दीवारों ने ले लिया है। आंखें उन खेतों को निहारते बढ़ रहा है, याद है इस खेत में पहली बारिश में खोंघी निलते थे। गांव वाले , महीला, बच्चे घोंघी चुनते थे। यंहा खेत था, खेत से धान काटने के बाद गांव के बच्चे मिलकर गुडु मूसा खोदते थे। आगे लम्बा चौड़ा टांड़ था। जंहा गांव के लोग गाय, बकरी, भैंस चराते थे। अब तो.. बड़े बड़े बिल्डिंग खड़ा हो गया है। कुछ जगह मे ऊंचा ऊंचा घेरा। अब ये इलाका गांव जैसा नहीं लग रहा है। हां अब इसी क्षेत्र से फॉर लेन भारतमाला संडक योजना भी आने वाला है। ग्रीन प्रोजेक्ट। योजना के अनुसार फॉर लेन, कहीं कहीं सिक्स लेन रोड होगा, जो सिर्फ खेतों से होकर गुजरेगा। इसके लिए सकड़ों पेड़ काटेंगे, खेती की जमीन अधिग्रहित होगी, नदी, नाला, जलश्रोत का आस्तित्व मिट जायेगा। विकास की कहानी सब जानते हैं। विकास का दो रूप होता है, विकास और विनाश।, पर्यावरण प्रदूषण, अति वृष्टि, अना वृष्टि, सूखा और बाढ़, ग्लोबल वार्मिंग…और ना जाने क्या क्या इनके गवाह हैं। इस सचाई को इनकार। नहीं किया जा सकता। मन में था, सुवारी के ग्रामीण बड़े पैमाने पर रोड़ किनारे नाले के पानी से सिंच कर तरबूज, ककड़ी, खीरा, झींगी, बोदी हर गर्मी में खेती करते हैं। इस बार भी तरबूज खाने को मिलेगा। जगह पर पहुंच भी ...। आंखें तरबूज खेत ढूंढने लगा। इस बार तरबूज नहीं… स्वीटकॉर्न /मीठा मकई की खेती किए हैं। शायद इसलिए..2020 और 2021 में कोरोना माहामारी के कारण लोकडाउन था। बाजार नहीं के कारण पुरी तरबूज बरबाद हो गई थी। इसलिए इस साल तरबूज का रिस्क नहीं लिए होंगे। सोचते सोचते छोटा सा छायादार पेड़ नीचे बैठी बहन दिखी। नजदीक आते ही मन खुश हो गया। ताजा बोदी, भेंडी, झिंगी, ककड़ी, तरबूज साजा कर रखी है। पूछे तरबूज कैसन किलो..? 15 रुपया किलो। बहन से बात कर ही रहे थे, तब तक उनके पति आ आए। बहन बोली… तोएं तो हमेशा आविस्ला। मैं उनके तरफ देख रही थी, तब तक उनका पति कटा हुआ लाल तरबूज का टुकड़ा मेरी और पढ़ाते हुए बोला लेवा खावा। मैं दाहिना हाथ बढ़ाकर तरबूज लेकर खाने लगी, ताजा मीठा ,मेरे बाद मेरे साथी के हाथ में लाल लाल..तरबूज। हम दोनों तोता की तरह कुतर कुतर कर तरबूज का मजा ले रहे थे, तोरपा की ओर से एक गाड़ी आकर सामने रुकी। गाड़ी से युवक उनके परिवार के साथ उत्तरा , तरबूज मालिक उस दंपति को भी तरबूज का लाल टुकड़ा देते हुए कहा लेवा लेवा तोहरो खावा, बेस लगी। दोनों दंपति तरबूज खाने लगे ।खाते-खाते युवक ने पूछा कैसन किलो देवा था? उत्तर मिला ₹15 किलो । तरबूज खाते खाते युवक ने बोला, ₹10 में सब बाजार में मिलाते थे। तरबूज वाली बहन बोली बाजार में मिला थे ₹10 में , हमारे तो या ₹15 किलो में बेचा थी , आवे ना रांची लाली से, और कीन के ले लेजायना। जेके खाए कर मन करेला, से दूर दूर से आए ना और ₹15 में लेईजाए ना। बात नहीं बनी 10 ₹ किलो में , तो युवक और उनके परिवार गाड़ी में बैठ कर रांची की ओर निकल गए । हम दोनों ने 5 किलो ₹15 रुपया किलो के भाव से खरीद कर अपने साथ लेकर चल दिए। नाला के उस पार टांड़ में तरबूज का खेती किया गया है लेकिन पानी नहीं मिलने के कारण नारंग सुख दे रहा है, पत्ती सूख गया है, छोटा-छोटा तरबूज जमीन पर पड़ा हुआ है । खेत में तरबूज खेती की स्थिति देख .. सोचने लगे एक तरबूज का फसल लगाने, तैयार करने और उसमें फूल , फल लगने , तैयार करने तक 3 महीना तक मेहनत लगता है पानी खाद मेहनत..। इस मेहनत का कीमत हम लोग को 1 किलो में ₹15 नहीं दे सकते हैं , तब अपने किसान भाई बहनों विकास के रास्ते हम लोग किस तरह आगे बढ़ने में मदद करेंगे? ऐसे किसानों से जुड़ा कई सवाल मन में उठने लगा। तोरपा मेन रोड पहुंचने के पहले बाजार के पास कुछ किसान सफेद चित काबरा तरबूज बेचने के लिए दूकान लगाकर रखे, ग्राहकों का इंतजार कर रहे हैं। कुलड़ा जंगल पहुंचते ही हाथियों का झुंड की आने जाने की यादें मन को ताजा करने लगा। कारो नदी का पानी बह तो नहीं रहा है लेकिन अभी भी तोरपा शहर के लोगों को इंटेक्स वेल द्वारा बड़ा पाइप से पानी पहुंचा रहा है । नदी में जहां पानी जमा हुआ है, बच्चे किलकारियां भरते 10:12 बच्चे खेल रहे हैं । एक तरफ गांव वाले अपने कड़ा और भैंस को नहला रहे हैं। कोरको टोली पूरा गांव, अंबाटोली पूरा गांव ,कारो नदी से बालू निकाल कर, पानी एकत्र करके पाईप से करीब एक किलोमीटर दूर खेतों में , सब्जी, गेंहू, खीरा, ककड़ी सिंचते थे। गर्मा धान भी बूते थे। पूरा गर्मी खेत हरा भरा रहता था। इस साल सभी खेत खाली पड़ा हुआ है ,हरियाली दूर-दूर तक नजर नहीं आया। हां नाला में अभी भी भरपूर पानी है लोग अपने भैस धो रहे है। कहीं-कहीं महिलाएं बच्चों के साथ कपड़े धो रहे हैं, नहा रहे हैं। कहीं कहीं बतख पानी में किलकारियां भर रहे हैं। ऊपर से गर्मी का ताप है, लेकिन नाला का साफ पानी, बतख, बच्चों का किलकारी... मन , तन को शितलता से भींगो दीया….। इमली पेड़ की छांव में कई पुरुष साथी बैठे हैं हम लोगों के वहां पहुंचने पर कई महिलाएं भी आई ।अपने साथ लोटा में पानी और ग्लास, पहले हाथ मुंह धोने के लिए लोटा में पानी दी, उसके बाद सातू पानी पीने के लिए दी। साथियों । बताया, इस साल आम। नहीं फला है, इस कारण आम का शर्बत पीने को नहीं मिल रहा है। पानी पीते पीते मैंने पूछा, जब भी मैं आई हूं गांव में आप लोग घर में ककड़ी ,खीरा ,तरबूज ,खूब खिलाएं जाते समय बोदी, भिंडी ,मकई तोड़कर साथ में भेज देते थे। पहली बार मैं खेत में। कुछ नहीं देख रही हूं, सब्जी, गरमा धान कुछ नहीं..अभी तक खेत में गरमा धान पाक रहा होता था इन साल क्या हुआ ? कहीं पर भी ना सब्जी दिखा, ना धान। सभी साथी एक साथ बोले एक , दो साल से हम लोग खेती नहीं कर पा रहे हैं, दिन को तो हम लोग गाय बैल बकरी से खेती को बचा लेते हैं । लेकिन रोज रात को बड़का लोग आते हैं (याने हाथी ) कई बार 10 ,12 एक साथ आते हैं । कई बार एक, तो कभी-कभी, भटक के अकेले चलाता है । सब तरबूज ,खीरा, कादू को जाता है, सब्जी बोदी, भेंडि सबको पैर से रौंद के बर्बाद कर देता है । यहां तक की गांव का कई कटहल पेड़ का फल को खा कर खत्म कर दिया। साथियों ने बताया, पालक साग ढंडा है, इसलिए इसको छोटा छोटा पति को भी एक एक कर तोड़ कर खा लेता है। हाथियों का झुंड कुल्डा, केनक्लोया, , उलिहतु, बानबीरा, उड़ी केल, गांवों में हमेशा आते रहता है। बच्चा छोटा रहता है तो 5,6, दिनों तक एक ही स्थान पर जमे रहते हैं। एक बार एक युवा हाथी झुंड से भटक कर बनाबिरा गांव आ गया। करिस्थान के पास 3 दिन तक डाकू पेड़ के नीचे ही खड़ा रहा। कई गांव के लोग देखने के लिए आइए ,चारों तरफ से घेर के लोग खड़े रहे। कई लोग पत्थर उठाकर हाथी के ऊपर फैंकने लगे। एक साथी कहते हैं , ऐसे में हाथी भागेगा और वह गुस्सा होकर लोगों पर हमला तो करेगा ही। लेकिन किसी पर हमला नहीं किया। जल जंगल जमीन, नदी झरना, गांव समाज, पर्यावरण बचाने की लड़ाई इस इलाके में 2006 से शुरू होकर आज तक जारी है ।इस इलाके के आदिवासी मूलवासी किसान समुदाय ने जल जंगल जमीन की रक्षा की लड़ाई का इतिहास पूरे विश्व में परचम लहराया है। मित्तल कंपनी 2008 में खूंटी जिला के तोरपा प्रखंड, रनिया प्रखंड ,कर्रा प्रखंड, गुमला जिला के कामदारा प्रखंड के करीब चालीसा गांव को हटाकर 50,000 करोड़ की लागत से स्टील प्लांट लगाने के लिए तत्कालीन झारखंड के मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के साथ एमओयू किया था ।इसके साथ ही अर्जुन मुंडा की सरकार आर्सेलर मित्तल कंपनी को जमीन देने की कवायद शुरू कर दी थी ।लेकिन ग्रामीण आदिवासी मूलवासी किसान समुदाय सहित इलाके के हर जाति समुदाय और वर्ग ने विस्थापन के खिलाफ आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच के बैनर तले एक मंच में आए और अपने पूर्वजों की 1 इंच भी जमीन नहीं , देंगे के नारा के साथ मैदान में डटे रहे। 200 8 से 2010 तक के संघर्ष के बीच लक्ष्मी निवास मित्तल ने लक्जमबर्ग जो आर्सेलरमित्तल का हेड क्वार्टर है से घोषणा किया की खूंटी कामडारा क्षेत्र में जमीन लेना कंपनी के लिए संभव नहीं है क्योंकि वहां का स्थानीय संगठन बहुत मजबूत है। इसलिए कंपनी बोकारो जिला में अपना प्रोजेक्ट सिफ्ट कर रहा है। यदि कंपनी जमीन लेने में सफल हो जाता तो, 40 गांवों को विस्थापित होना पड़ता। संघर्ष के 12 सालों में भी संघर्ष का ऊर्जा कमजोर नहीं हुआ है । आज भी वही जोश ,वही तलाक ...हम अपने पूर्वजों का 1 इंच जमीन नहीं देंगे, लड़ेंगे और जीतेंगे ,यही संकल्प के साथ सरकार, कंपनी, रीयल एस्टेट, माफिया, दादलों के मनसूबों में पानी फेरता रहा है। सरकार की विकास योजनाओं पर चर्चा करते हुए साथी कहते हैं सरकार ₹1 किलो का चावल देकर लोगों को भूख से तो निजाद दे रही है, लेकिन इस ₹1 किलो का चावल हम ग्रामीण, समुदाय के लिए घातक भी सिद्ध हो रहा है । ग्रामीण आदिवासी समुदाय हम लोग मेहनत करने वाले हैं , खेत में परिश्रम करने वाले हैं और परिश्रम करके ही बंजर भूमि में अनाज पैदा करते हैं , लेकिन ₹1 किलो का चावल हमारे लोगों को परिश्रम करने से अपने मेहनती परंपरा थी , जो समाज का पहचान था उससे अलग कर दे रहा है । यही कारण है कि आज गांव में खेतों में मजदूरी करने के लिए रूपा डोभा करने के लिए लोग नहीं मिलते हैं। क्योंकि काम करें या ना करें महीना में ₹1 किलो वाला चावल तो मिल ही रहा है। इससे हमारा समाज मेहनत से दूर भाग रहा है, कोढिया हो जा रहा है । एक बुजुर्ग साथी कहते हैं , हमको तो लगता है सरकार को इस ₹1 किलो वाला चावल का स्कीम को बंद कर देना चाहिए , यह सुनते ही यहां बैठे कई बुजुर्ग साथी एक साथ करते हैं हमको भी लगता है कि इस योजना को बंद करना चाहिए, नहीं तो हमारा समाज बर्बाद हो जाएगा। सभी साथियों ने इस मामले में चिंतित.. छन भर सर नीचे.. एक ने कहा.. हम सोचते हैं.. एक बार 1रुपया किलो राशन चावल को बंद करना चाहिए..। दुसरे ने कहा.. नहीं बंद न हो.. हम ही लोगों में सुधार लाने की जरुरत है.. दुसरे लोग इस चावल से फायदा उठा रहे हैं। हम लोगों को भी फायदा उठाना सीखना चाहिए। जब खाने के लिए मिल ही रहा है, तब, अपने काम को और सही तरीके से, पूरी लगन से करना होगा, चाहे खेती किसानी का काम हो, या दूसरा काम। एक साथी.. हां देखिए न, हम लोग हर चीज में परभरोसा/ सरकार के उपर निर्भर हो जा रहें हैं। बच्चों का पढ़ाई/ लिखाई, मकान, राशन, चावल/ गेंहू, सब में, ये ठीक नहीं है। बाकी साथियों ने हमीं भरते.. सही में हम अपनी क्षमता को भूल जा रहें हैं, हमारे पास सबकुछ है, हम सबकुछ कर सकते हैं, अपनी क्षमता पर लोगों ने भरोसा करना छोड़ दिया है। इसीलिए हमारा समाज कमजोरी की दिशा…. थोड़ी देर के लिए सब शांत... रहे सभी। शानाट्टा तोड़ते.. एक दूसरे की ओर देखते, मुस्कुराते...अपना ताकत हमें पहचाना जरूरी है, खेती किसानी को और मजबूत करेगें, ग्राम सभा को मजबूत करेंगे, जंगल, झाड़, नदी, नालों को हर हाल में सुरक्षित रखेंगे... इसके लिए सामूहिक प्रयास करेगें.. लड़े हैं, जीते हैं, आगे भी लड़ेंगे और जीतेंगे...

Sunday, May 8, 2022

जबकि रात भर की यात्रा के लिए एक सीट रिजर्व करने वाले अपना रिजर्व सीट नहीं छोड़ सकते हैं। तब हम अपने विरासत हमेशा के लिए दूसरों के विकास के लिए ,दूसरों की उन्नति के लिए, दूसरों के फायदे के लिए क्यों छोड़े?

 जिंदगी में हर कदम यह एहसास दिलाता है ,की बाघ ,भालू ,सांप ,बिच्छू जैसे जंगली जानवरों से लडकर जंगल को साफ किया, झाड़ी को साफ किया, और जमीन बनाया, खेत बनाया, गांव बसाया,  उस जंगल जमीन को आखिर आदिवासी समुदाय छोड़ेंगे?


जबकि  रात भर की यात्रा के लिए एक सीट रिजर्व

 करने वाले अपना रिजर्व सीट नहीं छोड़ सकते हैं। तब हम अपने विरासत हमेशा के लिए दूसरों के विकास के लिए ,दूसरों की उन्नति के लिए, दूसरों के फायदे के लिए क्यों छोड़े? जिन्दगी की घटनाओं से ही हम बहुत कुछ सीखते है। 


कल 19 अप्रैल 2022 की रात 8.53 बजे साहेबगंज रेलवे स्टेशन पर भगलपुर वनांचल एक्सप्रेस के बोगी no.एस 3 में रांची आने के लिए चढ़े। हम दो लोग थे । टिकट मेरे साथी के पास था । उन्होंने  बोला हम दोनों का बर्थ 32और 33 है। मैं अपने साथी के बताइए नंबर के अनुसार बर्थ नंबर 32 में बैठ गई । थोड़ी देर के बाद मैं लेट गई । करीब आधा घंटा के बाद एक लड़की आयी और तेज आवाज में बोली ,यह मेरा जगह है खाली करो ! मैं उठ कर बैठ गई और अपने साथी से बोली, एक बार टिकट देखिए 32 नंबर हम लोगों का हैं या नहीं ? मैं यह बात पूरी भी नहीं की थी तब तक फिर से जोर से चिल्लाकर बोलने लगी सुनते नहीं हैं जल्दी से खाली करो।

  मेरे साथी ने अपने पॉकेट से टिकट है निकाल कर फिर से देखा तो हम दोनों का सीट नंबर 22 और 33 था। मैं तुरंत अपना सिरहाना में रखा बैग और बाकी सामान उठाई और बगल वाले बर्थ नंबर 22 में चली गई ।तब मुझे भीतर यह एहसास होने लगा की जब हम किसी के बुक किए गए सीट पर थोड़ी देर भी बैठ नहीं सकते हैं हमें यह आधिकार नहीं है,  तब हम आदिवासी समुदाय से हमारे पूर्वजों द्वारा आबाद  किया गया जंगल, जमीन ,नदी ,पहाड़ ,गांव ,खेत, खलिहान से विकास के नाम पर बेदखल किया जाता है ।  हमें बेदखल करने का आधिकार आखिर किसने दिया है। 

एक सीट क्या? हमारा तो पूरा झारखंड ही लूटा जा रहा है। मैं सोचती हूं इसके लिए शायद हम और हमारा समाज ही जिम्मेवार है, हम अपने हक, आधिकार को नहीं समझ पाते हैं, इसकी रक्षा नहीं कर पा रहे हैं।


Friday, April 29, 2022

जबकि रात भर की यात्रा के लिए एक सीट रिजर्व करने वाले अपना रिजर्व सीट नहीं छोड़ सकते हैं। तब हम अपने विरासत हमेशा के लिए दूसरों के विकास के लिए ,दूसरों की उन्नति के लिए, दूसरों के फायदे के लिए क्यों छोड़े

 जिंदगी में हर कदम यह एहसास दिलाता है ,की बाघ ,भालू ,सांप ,बिच्छू जैसे जंगली जानवरों से लडकर जंगल को साफ किया, झाड़ी को साफ किया, और जमीन बनाया, खेत बनाया, गांव बसाया,  उस जंगल जमीन को आखिर आदिवासी समुदाय छोड़ेंगे?


जबकि  रात भर की यात्रा के लिए एक सीट रिजर्व

 करने वाले अपना रिजर्व सीट नहीं छोड़ सकते हैं। तब हम अपने विरासत हमेशा के लिए दूसरों के विकास के लिए ,दूसरों की उन्नति के लिए, दूसरों के फायदे के लिए क्यों छोड़े? जिन्दगी की घटनाओं से ही हम बहुत कुछ सीखते है। 


कल 19 अप्रैल 2022 की रात 8.53 बजे साहेबगंज रेलवे स्टेशन पर भगलपुर वनांचल एक्सप्रेस के बोगी no.एस 3 में रांची आने के लिए चढ़े। हम दो लोग थे । टिकट मेरे साथी के पास था । उन्होंने  बोला हम दोनों का बर्थ 32और 33 है। मैं अपने साथी के बताइए नंबर के अनुसार बर्थ नंबर 32 में बैठ गई । थोड़ी देर के बाद मैं लेट गई । करीब आधा घंटा के बाद एक लड़की आयी और तेज आवाज में बोली ,यह मेरा जगह है खाली करो ! मैं उठ कर बैठ गई और अपने साथी से बोली, एक बार टिकट देखिए 32 नंबर हम लोगों का हैं या नहीं ? मैं यह बात पूरी भी नहीं की थी तब तक फिर से जोर से चिल्लाकर बोलने लगी सुनते नहीं हैं जल्दी से खाली करो।

  मेरे साथी ने अपने पॉकेट से टिकट है निकाल कर फिर से देखा तो हम दोनों का सीट नंबर 22 और 33 था। मैं तुरंत अपना सिरहाना में रखा बैग और बाकी सामान उठाई और बगल वाले बर्थ नंबर 22 में चली गई ।तब मुझे भीतर यह एहसास होने लगा की जब हम किसी के बुक किए गए सीट पर थोड़ी देर भी बैठ नहीं सकते हैं हमें यह आधिकार नहीं है,  तब हम आदिवासी समुदाय से हमारे पूर्वजों द्वारा आबाद  किया गया जंगल, जमीन ,नदी ,पहाड़ ,गांव ,खेत, खलिहान से विकास के नाम पर बेदखल किया जाता है ।  हमें बेदखल करने का आधिकार आखिर किसने दिया है। 

एक सीट क्या? हमारा तो पूरा झारखंड ही लूटा जा रहा है। मैं सोचती हूं इसके लिए शायद हम और हमारा समाज ही जिम्मेवार है, हम अपने हक, आधिकार को नहीं समझ पाते हैं, इसकी रक्षा नहीं कर पा रहे हैं।