Monday, February 8, 2021

राज्य के लिए संचालित कल्याणकारी योजनाओं का लाभ झारखंड के जनजातीय बहुल इस इलाके के लोगों को मिले, इसके लिए राज्य की स्थपना हुई थी, लेकिन आर्थिक विकास की नयी गति के साथ-साथ buniyadi सेवाओं में बढ़ोत्तरी नहीं हो पायी

 


राज्य के लिए संचालित कल्याणकारी योजनाओं का लाभ झारखंड के जनजातीय बहुल इस इलाके के लोगों को मिले, इसके लिए राज्य की स्थपना हुई थी, लेकिन आर्थिक विकास की नयी गति के साथ-साथ buniyadi सेवाओं में बढ़ोत्तरी नहीं हो पायी। राज्य के किसानों के बीच नवीनतम तकनीकी संदेश पहुंचाने के उद्वेश्य से बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना की गयी थी, लेकिन सरकार की उदासिनता के कारण राज्य के किसानों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। अपनी खनिज एवं वन संपदा के लिए पूरे देश में अद्वितीय पहचान रखने वाला झारखंड कृषि के क्षेत्र में विकसित राज्यों की तुलना में काफी पिछड़ा हुआ है। यह अपनी खाद्यान्न जरूरत के अनुकूल उत्पादन नहीं कर रहा है। 

झारंखड में खाद्यान्न उत्पादन लाख टन में

2018-19 में उत्पादन-46.15

2019-20 में उत्पादन-55.59 है

दुध उत्पादन लाख टन में

2018-19 में उत्पादन-21.83 

2019-20  में उत्पादन-24.72

मच्छली उत्पादन लाख टन में

2018-19 में उत्पादन- 208840

2019-20  में उम्पादन- 230000

काॅरपोरेट कंपनियों को असानी से जमीन उपलब्ध कराने की पूरी व्यवस्था करने के बाद केंन्द्र की मोदी सरकार ने देश के किसानों के खेती-किसनाी पर काॅरपोरेट कंपनियों को घुसपैठ कराने के लिए तीन नये कृषि कानून को राज्य सभा में संसादों के असहमति के बावजूद जबरण कानून का रूप दिया

 झारखंड देश के संविधान में पांचवीं अनुसूचि के अतंर्गत आता है। पांचवी अनूसूचि के तहत गांव सभा या ग्राम सभा को अपने गांव के सीमा के भीतर-बाहर के जंगल-जमीन, लधुवनोपज, जलस्त्रोतों, लघु खनीज पर अपना परंपरागत अधिकार दिया है। सीएनटी, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून भी इनके परंपरागत अधिकार को रेखांकित करता है। लेकिन तात्कालीन रघुवर सरकार ने पांचवी अनुसूचि में प्रावधान ग्राम सभा, परंपारगत गांव सभा के अधिकारों को हनन करते हुए काॅरपोरेट पूंजि घरानों के लिए गांव के सीमा के भीतर के सामुदायिक धरोहर को चिन्हित कर भूमि बैंक बना दिया। सरकार के इस असंवैधानिक काम को रोकने के लिए झारखंड के आदिवासी-मूलवासी किसान समुदाय लगातार संघर्ष कर रही है। 

केंन्द्र की मोदी सरकार ने झारखंड सहित देश के किसानों, आदिवासी -मूलवासी समुदाय क ेजल, जंगल, जमीन को देश के बड़े बड़े कंपनियों के हवाले करने की तैयारी अलग-अलग तरीकें से देश के विभिन्न राज्यों में पिछले 2014 के बाद से जुटी हुई है। 2015-16 में झारखंड में भाजपा की रघुवर सरकार थी, तब झारखंड के ग्रामीण इलाके के गांवों के सामुदायिक जमीन, जंगल-झाड़ को चिन्हित कर भूमिं बैंक बनाया गया। इसकी अधिकारिक घोषणा भी रघुवर सरकार ने कर दिया। इन्हेंने काॅरपोरेट घरानों को झारखंडं में जहां वे चाहेगें, वहां जमीन उन्हें बिना बिलंब किये उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने सिंगल विंडों सिस्टम बनाया। इसके लिए राज्य के सभी जमीन के दस्तावेजों को आॅनलाइन किया गया। इस सिस्टिम के तहत देश-विदेश के पूंजिपति आॅनलाइन जमीन सर्च करेगें, जमीन देखेगें, पंसंद करेंगें और आॅनलाइन ही जमीन की खरीद-बिक्री की जाएगी, जमीन का मोटेशन भी आॅनलाइन ही किया जाएगा। यह प्रक्रिया राज्य में शुरू हो चुका है, इस प्रक्रिया के तहत जीयाडा और राज्य सरकार ने कई उद्योगपतियों को जमीन हस्तंत्रित कर चुका है। 

20 सितंबर 2020 को प्रभात खबर में एक रिपोर्ट छपि थी, इसे यह स्पष्ट हो जाता है कि, केंन्द्र की मोदी सरकार ने आज जो तीन नये कृषि कानून लाकर किसानों के खेतों पर काॅरपोरेट कब्जा, परंपारिक खेती-किसानी खत्म कर, काॅरपोरेट खेती को बढ़ाने के लिए पृष्टभूमि तौयार कर लिया है। उक्त रिपोर्ट अनुसार केंन्द्र की मोदी सरकार का मनना है कि राष्ट्रीय भूमि बैंक तैयार किया जा रहा है, झारखंड में भी इसकी तैयारी चल रही है। जो रिपोर्ट में छपी खबर इस तरह है-

राष्ट्रीय भूमि बैंक हो रहा तैयार, झारखंड में भी तैयारी-केंन्द्र

रांची-केंन्द्र सरकार निवेशकों को आकर्षित करने के लिए राष्ट्रीय भूमि बैंक बना कर इससे संबंधित जानकारी आॅनलाइन उपलब्ध करायेगी। इसे लेकर झारखंड में भी तैयारी चल रही है। केंन्द्र सरकार ने बताया कि झारखंड के आंकड़े अपलोड़ हो रहे हैं। गाइडलाइन के मुताबिक, राज्य में पोर्टल तैयार किया जा रहा है। राज्यसभा सांसद महेश पोद्वार के सवाल पर केंन्द्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने संसद में इसकी जानकारी दी। केन्द्र सरकार ने बताया कि कोरोना की वजह से वैश्विक स्तर पर ये व्यापारिक परिदृश्य में भारत की दुनिया की फैक्ट्री और व्यापार का सबसे आकर्षक केंन्द्र बनाने के लिए मोदी सरकार प्रतिबद्व है। दुनिया के किसी भी कोने से निवेशक अपने निवेश की जरूरतों के मुताबिक जमीन की उललब्धता के बारे में जानकारी ले सकेंगे। केन्द्रीय मंत्री ने बताया कि सरकार ने पहले चरण में औद्योगिक सूचना प्रणाली (आइआइएस) को छह राज्यों की शामिल किया है। राष्ट्रीय भूमि बैंक बनाने के लिए कंेन्द्र सरकार ने भखूंड स्तरीय जानकारी सहित औद्योगिक भूमि, वहां की संपर्क सुविधा, मूलभूत सुविधाओं व अन्य उपलब्ध सुविधाओं का व्योरा और पार्क के प्राधिकारणों/डेवलपर्स की संपर्क जानकारी मांगी है। झारखंड भी भूमि बैंक जीआइएस सिस्टम को आइआइएस पोर्टल के साथ जोड़नेवाले आठ राज्यों में शामिल है। झारखंड ने पोर्टल पर पहले ही भूमि संबंधी आंकड़े मैनुअली अपलोड़ किये हैं। झारखंड की तकनीकी टीम इस दिशा में काम कर रही केंन्द्रीय टीम के साथ संपर्क में है। 

हो रहा विरोध-पूर्ववर्ती रघुवर सरकार ने वैसी जमीन को चिन्हित करने का आदेश दिया था, जो उपयोग में नहीं है। इसमें गैर मजरूआ जमीन में लेकर विभिन्न औद्योगिक इकाइयों द्वारा अधिग्रहित जमीन भी है, पिछले दिनों विधानसभा में भी मामला उठा था। सदन में सरकार ने कहा था कि रैयतों व विस्थापितों की जमीन लौटायी जायेगी। सरकार भूमि बैंक तैयार करने के फैसले पर विचार करेगी। ऐसे में केन्द्र सरकार की योजना में झारखंड के शामिल होने को लेकर संशय की स्थिति है। 

काॅरपोरेट कंपनियों को असानी से जमीन उपलब्ध कराने की पूरी व्यवस्था करने के बाद केंन्द्र की मोदी सरकार ने देश के किसानों के खेती-किसनाी पर काॅरपोरेट कंपनियों को घुसपैठ कराने के लिए तीन नये कृषि कानून को राज्य सभा में संसादों के असहमति के बावजूद जबरण कानून का रूप दिया। जन विरोधी आर्थिक विकास के एजेंड़े को आगे बढ़ाने के लिए मोदी सरकार ने कोरोना महामारी काल के बीच देश के लिए तीन कृषि बिल/अध्यादेश 5 जून 2020 को लेकर आया है । 1- किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) अध्यादेश 2020 , 2- किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवा पर करार अध्यादेश 2020। 3- आवश्यक वस्तु (संशोधन) अध्यादेश 2020 । 14 सितंबर के पहले इन अध्यादेशों को संसद सत्र के पहले दिन  ही इन अध्यादेशों की जगह कानून लाया गया। 

इस कानून को देश के किसानों ने काला कानून मानते हुए, इससे रदद करने की मांग को लेकर ढाई महिनों से कड़ाके की ढड में दिल्ली बोर्डर पर डेरा डाले हुए हैं। इसके साथ ही देश के कई राज्यों में आंदोलन चल रहा है। 


Sunday, February 7, 2021

कारपोरेट खेती नहीं-परंपरागत खेती-किसानी को विकसित करो

 कारपोरेट खेती नहीं-परंपरागत खेती-किसानी को विकसित करो

तीनों नये कृषि कानून रदद करने की मांग को लेकर 28 जनवरी 2021      को खूंटी में रैली-सभा की गयी। 

ध्यान देने वाली सचाई यह है कि इन तीनों नये कृषि कानून से सिर्फ अनाज यह फसल उपजाने वाले किसानों पर संकट नहीं आएगा, बल्कि किसानों के फसलों के स्थानीय छोटे व्यापारी एवं उपभोगक्ता या खरीदकर खाने वालों की भी परेशानी बढ़ेगी। 

झारखंड राज्य के किसानों के आय को दोगुणी करने के लिए ग्रामीण आदिवासी-मूलवासी किसानों के जल, जंगल, जमीन, झील-झरना, पहाड़ -नदी नाला जैसे परंपरागत प्रकृतिक धरोहर की सुरक्षा की गारंटी करने की जरूरत है। राज्य के सवा तीन करोड़ आबादी को प्रर्याप्त भोजन-खाद्यान उपलब्ध कराना राज्य की पहली प्रथमिकता है। राज्य में भूख से किसी की मौत न हो, साथ ही राज्य के 56 लाख बीपीएल परिवारों को पोषक खाद्यान उपलब्ध कराने लिए प्रकृतिक संसाधनों, खेती की जमीन, जगल, वनोपज, जलस्त्रोंतों, और पयार्वरण को संरक्षित एवं विकसित करना हमारा परम दायित्व है। 

जन विरोधी आर्थिक विकास के एजेंड़े को आगे बढ़ाने के लिए मोदी सरकार ने कोरोना महामारी काल के बीच देश के लिए तीन कृषि बिल/अध्यादेश 5 जून 2020 को लेकर आया है । 1-आवश्यक वस्तु (संशोधन) अध्यादेश 2020, 2-किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) अध्यादेश 2020 और 3-किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवा पर करार अध्यादेश 2020। 14 सितंबर के पहले इन अध्यादेशों को संसद सत्र के पहले दिन  ही इन अध्यादेशों की जगह कानून लाया गया। 

इन तीनों कानूनों पर बारीकी नजर डालने पर यह स्पष्ट है कि इनका वास्तविक लक्ष्य है-कृषि क्षेत्र एवं कृषि उपज व्यापार को कमजोर करने के लिए कापोरेट समुदाय को प्रवेश का खुला अवसर देना है। कृषि उत्पादों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की व्यवस्थ और राज्यों की मंडियों (एग्रीकल्चर प्रोडूयज मार्केट कमेटियां) को खत्म करना, साथ ही न्यूनतम समर्थन मूल्यों पर कृषि उत्पादों की खरीद की व्यवस्था को खत्म करना एवं भारतीय खाद्य निगम को भंग करना।

जिन तीनों कानूनों की बात हो रही है, उनका सीधा प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ने वाला है जो हम बाजार से खरीदते और खाते हैं। आवश्यक वस्तु अधिनियम में जो संशोधन किया गया है, उसके अनुसार अब अनाज, दाल, तिलहन, खाद्याय तेल, आलू, प्याज को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटा दिया गया है। इससे जमाखोरी और कालाबाजारी को छूट मिल जाएगी। ये सामान कंपनियां जैसे चाहेगें, अपने गोदाम में भर लेगें और मांग बढ़ने पर मनमाने दाम पर बेचेगी।  इन कानूनों के तहत कारपोरेट खेती को बढाना है। 

नये कानून कृषि क्षेत्र में बडे़ कोरपोरेट कंपनियों को खेती करने के लिए आमंत्रित करता है। जब कंपनी वाले खेती करेगें तो वह अपना बीज, खाद, पानी, बिजली इस्तेमाल करेगा। जब अपना बीज और खाद का उपयोग करेगा, तो निश्चित तौर पर खेती का अपना तकनीकी, मशीनों का उपयोग करेगा। कंपनी अपना उत्पादन बडे बाजार के अमीर ग्रहकों को बेचेगा, हम लोग जो दिहाड़ी, मजदूरी करके खरीद खाने वालों के क्षमता के बाहर होगा। कोरपोरेट खेती से हमारी बेरोजगारी बढेगी, खेती-किसानी पर कंपनी का कब्जा होगा।

नये कानून के लागू होने से हमारी परंपरागत खेती किसानाी, देशी खाद, बीज, अनाज सभी खत्म होगा। अगर एक किसान के पास 10 एकड़ जमीन है, तो 10 एकड़ में भूमि के आकार-प्रकार के आधार पर उसमें गोड़ा, मडुआ, बदाम, शकरकंदा, कुरथी, उरद, सुरगुजा, तिल, चंवरा धान, एवं अन्य कई तरह के धान अपनी इच्छानुसार खेती करते हैं। हमारे खेत-टांड के अगल-बगल हर मौसम में परंपरागत साग-सब्जी अपने से उगता है। जैसे चांकोड साग, सिलयारी साग, मुचरी साग, बेंग साग, सुनसुनिया, ठेपा साग, लाल भाजी, हरा भाजी, खुखडी, रूगड़ा, कोयनार, पुटकल जो बिना खेती किये होता है। जो बाजार में अच्छा किमत में बिकता है। यह हमारे लिए पौष्टिक आहार भी है। कोरपोरेट खेती से यह सभी नष्ट हो जाएगा। 

तीनों नये कृषि कानून पर विस्तार से चर्चा करने की जरूरत है, ताकि आने वाले समय में इससे होने वाले क्षति से सामाज को बचाया जा 

हमारी मांगें हैं-

1-तीनों नये कृषि कानून को रदद किया जाए

2-धान के साथ सब्जियों का एमएसपी (न्यूनतम सर्मथन मूल्य) तय किया जाए

3-गैर मजरूआ आम, गैर मजरूआ खास जमीन, को भूमि बैंक में शामिल किया गया है को रदद किया जाए।

4-क्षेत्र के सभी जलस्त्रोतों, नदी-नाला का पानी लिफट ऐरिगेशन के तहत पाइप लाइन द्वारा किसानों के खेतों तक पहुंचाया जाए।

5-आॅनलाइन जमीन के दस्तावेजों का हो रहा छेड़-छाड़ एवं जमीन का हेरा-फेरी बंद किया जाए।

6-संविधान के पांचवी अनुसूचि को कड़ाई से लागू किया जाए।

7-सीएनटी, एसपीटी एक्ट, मुंण्डारी खूंटकटी अधिकार, कोल्हान मानकी-मुंण्डा व्यवस्था को कड़ाई से पालान करते हुऐ गांव के भूमि हीन परिवार को 5 एकड खेती का जमीन उपलब्ध कराया जाए।

8-किसानों को भूमिहीन बनाने वाली -भारतमाला सड़क परियोजना, जो खूंटी जिला के कर्रा प्रखंड के किसानों के खेतो से होकर गुजरने वाली है, को रदद किया जाए। क्योंकि रांची-उडिसा, संम्बलपुर, बोम्बों जाने के लिए इसी क्षेत्र से रांची-उडिसा रेलवे मार्ग(डबल लाइन हो रहा है), संड़क मार्ग, संडक राजमार्ग सहित कई व्यवस्था पहले ही किया गया है। 


निवेदक-आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच, मुंण्डारी खूंटकटी परिषद, आदिवासी एकता मंच।