Sunday, February 26, 2023

यह तस्बीर बिता इतिहास बन गया है

यह तस्बीर बिता इतिहास बन गया है यह तस्बीर लोधमा रोड जाने पर सिठियो के पहले खेत था। जहां किसान धान की खेती करते थे। आदिवासी, मूलवासी किसान समुदाय जानते हैं कि खेत-टांड में मुसा-गुडु, चुहा रहते हैं। ये किसानों के खेत के फसलों को खाते हैं साथ ही फसलों की बालियों को अपने बिलों में भंण्डारन/एकठा करते हैं भविष्य के लिए। यह भी सर्वविदित हैं कि आदिवासी, मुलवासी, दलित समुदाय इन मुसा, गुडु, चुहा का शिकार करते हैं और खाते हैं। जब किसान खेत से धान, गेंहू काट लेते हैं, तब बच्चे खेतों में इन मुसा, गुडु का बिल तलाशते हैं। बिल मिल लाता जाता है, तब उनको निकालने के लिए कुदाल से खोदते और उसे निकालते हैं। निकालते समय ध्यान देना होता है कि बिल का मुख्या रास्ता के अलावा और किधर रास्ता है। जहां से वे खोदते समय भाग सकत हैं। उन सहायक बिल के रास्तों को बंद किया जाता है। तब खोदना शुरू करते हैं। म्ुसा-गुडु, चुहा को मार कर बच्चे मिलकर आग में जलाते, बनाते हैं। इनका मांस को बढिया से भुून कर मिल-बैठ कर खाते हैं। इस तस्बीर में गांव के बच्चे का टीम खेत के बिल से मुसा निकालने के लिए खोदने में वयस्थ हैं। करीब 7-8 साल पहले याने रिंग रोड़ बनने के पहले जब मैं इस रास्ते से कर्रा की ओर जा रही थी, मैंने इस तस्बीर को खीचीं। आज यहां खेत गायब हो गया कारण कि यहां का सभी खेत पर रिंग रोड़ बन गया। यहां अब खेत दूर-दूर तक दिखाइ नहीं देता है। गांव दिखाई नहीं देता है। अब सिर्फ दौडती गाडियां ही दिखाई देती है।

Thursday, February 23, 2023

मेट्रो सिटी- कैसे तय होती है मेट्रो सिटी की परिभाषा

मेट्रो सिटी कैसे तय होती है मेट्रो सिटी की परिभाषा संविधान के 74 वें संशोधन में यह परिभाषित किया गया है कि वैसे इलाके जहां एक से ज्यादा जिले हों और दो से ज्यादा नगरपालिका या पंचायत परिषद की आबादी दस लाख से ज्यादा हो, मेट्रो कहलायेगें। राज्यपाल इसकी अधिसूचना जारी करते हैं । मुंबई, दिल्ली, बंगलोर, चेनाई, सूरत, हैदराबाद, अहमदाबाद व कोलकाता को मेट्रो सिटी का दर्जा प्राप्त है। क्या है प्रमुख मापदंड 1-हिरयाली 2-सुरक्षा 3-खाद्व 4-पब और बार 5-ट्रैफिक 6-ओपन स्पेस 7-जलवायु 8-नाइट लाइफ 9-मनोरंजन के साधन 10-घ ुमने की जगह 11-लोक व्यवहार 12-शापिंग 13-आधारभूत संरचना 14-पब्लिक टा्रंसपोट 15-रियल स्टेट 16-बेहतर अस्पताल 17-अच्छी शिक्षा 18-रोजगार 19-आईटी सेक्टर 20-उद्वोग एवं व्यापार का बढ़ना

आदिवासी और प्रकृति के बीच रचे.बसे विशिष्ठ इतिहास को समझना जरूरी है।

आदिवासी और प्रकृति के बीच रचे.बसे विशिष्ठ इतिहास को समझना जरूरी है। सांप, बाघ, भालू, बिच्छू जैसे खतारनाक जानवरों से लड़कर आदिवासी सामुदाय जंगल, झाड़, पहाड़ को साफ कर जमीन आबाद किया, गांव बसायाए खेती लायक जमीन बनया। जंगलीए कंद, मुल, फुल.फल, साग.पात इनका आहार था। पेड़ों का छांव, घने जंगलए पहाड की चोटियों और ढलानें इनका अशियाना बना। खतरनाक जीवए जंतुओं को मित्र बनाया। नदी, झील, झरना इनका जीवन दायीनी स्त्रोत बने। प्रकृति की जीवनशैली ने आदिवासियों के सामाजिकए आर्थिकए सांस्कृतिकए भाषा.सहित्य को जीवंत लय दिया। विश्व भर के आदिवासी.मूलवासी सामुदाय का प्रकृतिक धरोहर के साथ यही जीवंत रिस्ता है। विकास के दौर मेंए प्रकृति और आदिवासी सामुदाय के परंपारिक जीवन अब टुटता जा रहा है। विकास का प्रतिकूल मार ने इनके ताना.बाना की कडी को कमजोर करता जा रहा है। एक तरफ स्टेट पावर और इनकी वैश्वीक आर्थिक नीतियां आदिवासी सामुदाय के परंपरारिक और संवैधानिक आधिकारों के प्रति अपनी उतरदायित्व और जिम्मेदारियों को सीमित करता जा रहा है। दूसरी तरफ वैश्वीक पूंजी बाजार भारत ही नहीं बल्कि विश्व के आदिवासी सामुदाय को जड़ से उखाड़ने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। आदिवासी.मूलवासीए किसानए दलित सहित सभी प्रकृतिकमूलक समुदाय के हक.अधिकारों पर चारों ओर से हमले हो रहे हैं, हमला जल, जंगल, जमीन की सुरक्षा के लिए बने छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियमए संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम को खत्म करने का प्रयास हो याए पांचवी अनुसूचि क्षेत्र में इस समुदायों के लिए प्रावधान अधिकार होए या संविधान के धारा 335 में प्रावधान सेवाऔ और नौकरियों में विषेश प्रावधान होए सभी पर हमले हो रहे है। 21 सितंबर 2020 को हाइकोर्ट द्वारा झारखंड नियोजन नीति 2016 को एक मामले में खारिज कर देनाए झारखंड के आदिवासी.मूलवासी समुदाय के लिए बहुत ही दुभग्यपूर्ण माना जाएगा। इसलिए कि राज्य के अनुसूचित क्षेत्र के अधिकारों को नकारा गया है। स्थानीयता का मतलब सिर्फ नौकरी में बहाली नहीं है। स्थानीयता का मतल यहां का गैरवशाली इतिहासए आदिवासी.मुलवासी समुदाय के जीवन मूल्य इनकी भाषा.सांस्कृतिक चेतना और पहचान है। एक शिक्षक का स्थानीय स्तर पर नौकरी का मतलब सिर्फ एक पद विषेश पर सेवा देना नहीं है बल्कि जहां वो पदस्थापित होगा वहां के समुदाय के जीवन शैलीए भाषा.सांस्कृति से रूबरू होए बच्चों को शिक्षा से जोड़ना है। जब हम ़़क्षेत्रीय आदिवासी भाषाओं का विकसित करने की वाकालत करते हैंए क्षेत्रीय भाषा .सहित्य को संरक्षित और विकसित करने की बात करते हैए तब निश्चित तौर पर शिक्षकों की बहाली स्थानीय स्तर पर होना चाहिए। झारखंड को भाषा.सास्कृति के आधार पर अलग.अलग क्षेत्रों में बंाटा गया है। झारखंड में 32 आदिवासी समुदाय ;अनुसूचित जनजातिद्ध और 22 अनुसूचति जाति समुदाय हैं। सबकी अपनी बोली.भाषा है। क्षेत्र के आधार पर कुछ भाषा कोमन बोली.संर्पक भाषा बोली जाती है जैस नागपुरी। जनजातियों की बोली जानी वाली मूल भाषाएं हैं.उरांवए मुंण्डारीए खडियाए होए संतालीए खेरवारीए सदानीए खोरठाए कुडमालीए मालतीए पंचपरगानिया और नागपुरी आदि है। यदि प्राइमरी स्कूल में पढ़ाने के लिए उरांव भाषी का संथाली भाषा क्षेत्र में पदास्थापित किया जाता है तब निश्चित तौर पर एक संथाली भाषी शिक्षक के तुलना में उरांव भाषी शिक्षक को बच्चों को शिक्षा से जोडने में कठिनाई होगी। इसी तरह मुंण्डारी भाषा क्षेत्र में कुडमाली भाषा को पदस्थापित किया जाए तो उन्हें भी वहीं दिक्कदें होगी। इन बुनियादी जरूरतों के आधार पर स्थानीयता महत्वपूर्ण है। सिर्फ एक व्यक्ति की नौकरी या उनके मौलिक अधिकार का सवाल नहीं हैए बल्कि राज्य के समग्र विकास के साथ सामुदायिक मौलिक अधिकार का सवाल जुड़ा हुआ है। esi तरह स्थानीय जीवनशैलीए बोली.भाषाए सास्कृतिक मूल्यों पर सभी सेवाओं को सुनिश्चित करने की जरूरत है। 199-.96 के दशक में सरकार ने एक सरकुलर जारी किया थाए उसमें कहा गया था कि जो अधिकार जिस क्षेत्र में पदास्थापित किया जाएगाए उस क्षेत्र की क्षेत्रीय भाषा की जानकारी जरूरी है। इस निर्देश साथ सभी अंचल से लेकर जिलास्तर के पदाधिकारी जहां पदास्थापित हैंए वहां का भाषा सिखने लगे। आखिर एैसा क्यों निर्देश दिया गया इसके पिछे उद्वेश्य था। कारण की अधिकारी जिस क्षेत्र में नौकरी करते हैं वहां के लोगों के परंपरागत अधिकारोंए सामाजिक मान्यओं को समझते हुए प्रशासनिक सेवा बेहतर तरीके से दे सकें।

नये व्यवस्था जमीन संबंधित लाये गाये पिछली रघुवर दास की सरकार के द्वारा उसका समीक्षा होनी चाहिए कि आदिवासी, मूलवासी, दलित और मेहनत मजदूरी करने वाला परिवार को कितना लाभ मिला?

50 लाख कीमत तक के जमीन रजिस्ट्री 1 रूप्या मे किया गया-इसका लाभ किसको मिला? झारखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री रघुवर दास ने राज्य के सामृद्व महिलाओं को लाभ पहुुचाने के लिए भू-राजस्व एवं निबंधन विभाग के माध्यम से 50 लाख कीमत की जमीन खरीदने पर 1 रूप्या में जमीन की रजिस्ट्री करने की व्यवस्था लायी। इस व्यवस्था के बाद हर साल 70 महिलाएं इसका लाभ उठाते रहीं। इस व्यवस्था के तहत महिलाएं एक रूप्या में जमीन, मकान, प्लैट का रजिस्ट्रेशन करायी। 2 लाख से अधिक रजिस्ट्री की गयी। इससे राज्य को 1296 करोड़ राजस्व का नुकासान भी उठाना पड़ा। कोरोना काल में वर्तमान हेमंत सरकार ने इस व्यवस्था फिर से वापस लिया। तर्क दिया गया कि इस व्यवस्था के तहत गरीब महिलाएं लाभ नहीं ले पा रही हैं साथ ही राज्य का राजस्व का भी नुकसान हो रहा है। इसी को देखते हुए राज्य की गठबंधन सरकार ने इस व्यवस्था को वापस लिया। 5 सितंबर 2019 का तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास ने टवीट किया था-झारखंड देश का पहला राज्य है जहां महिलाओं के लिए 50 लाख रूप्या तक की जमीन , मकान की रजिस्ट्री सिर्फ एक रूप्ये में होती है। अब तक डेढ़ लाख से ज्यादा महिलाएं बन चुकी हैं मकान मालकिन। जानकारी के लिए-देश के बाकी राज्यों में भी महिलाओं को रजिस्ट्री में कुछ प्रतिशत की छूट मिलती है-उदाहरण के तौर में-दिल्ली में 4 प्रतिशत स्टाम्प डयूटी देनी पड़ती है। यूपी में महिलाओं द्वारा जमीन खरीदने पर सिर्फ एक (1) प्रतिशत ही स्टाम्प डयूटी में छूट दी गयी है। 23 मार्च 2021 को राज्य सरकार ने महिलाओं को 1 रूप्या में जमीन रजिस्ट्री में छूट देने से राज्य सरकार को 400 करोड़ का नुकसान बताया। राज्य के र्प्यटन, कला संस्कृति, खेलकूद एवं युवा कार्य विभाग के मंत्री हफीजुल हसन ने कहा कि पिछली सरकार ने महिला के नाम से जमीन रजिस्ट्री कराने नर छूट दी थी, इससे राज्य को करीब 400 करोड़़ रूप्ये राजस्व का नुकसान हुआ था। वह रजिस्ट्री शुल्क भी देने में सक्षम होता है। यह सिर्फ जमीन लूटने की षडयंत्र के तहत किया गया था। जो भी नये-नये व्यवस्था जमीन संबंधित लाये गाये पिछली रघुवर दास की सरकार के द्वारा उसका समीक्षा होनी चाहिए कि आदिवासी, मूलवासी, दलित और मेहनत मजदूरी करने वाला परिवार को कितना लाभ मिला?। इसकी सूची सरकार को जारी करना चाहिए, तभी सामाजिक न्याय की बात हो सकती है।

 


Ab Gaon me bhi chukana hoga Smapati-Jal Tax

 


झारखंड में जमीन की साइबर लूट ऑनलाइन रिकॉर्ड में हो रही हेराफेरी

 प्रभात खबर

30/8/2020

झारखंड में जमीन की साइबर लूट ऑनलाइन रिकॉर्ड में हो रही हेराफेरी

राज्य के अंचल कार्यालयों में काम कर रहा है अफसर-माफिया का गठजोड़-खाली प्लॉट, सरकारी जमीन व गैर मजरूआ जमीन के कागजात की हेराफेरी कर ऑनलाइन हो रही इंट्री-

आनंद मोहन-रांची

राज्य में जमीन की साइबर लूट हो रही है। आम लोगों की जेब से पेसा उड़ानेवाले जामताड़ा के साइबर अपराधियों से भी बड़ा गिरोह जमीन लूट में लगा है। जमीन के ऑन लाइन रिकॉर्ड तैयार करने के नाम पर यह हेराफेरी हो रही है। राज्य के कई अंचल कार्यालयों में भू-माफिया व अफसरों का गठजोड़ इस काम में लगा है। फर्जी दस्तावेज के सहारे मूल रैयतों की जमीन दूसरे के नाम की जा रही है। धनबाद, रांची व बोकारों सहित कई अन्य जिलों में हेराफेरी के मामले सामने आये हैं। सिर्फ धनबाद जिले के सभी चार अंचलों में सैकड़ों एकड़ जमीन की साइबर लूट हुइ है। सीएनटी एक्ट की धजियां उड़ा कर आदिवासी रैयतों की जमीन भी दूसरे के नाम की गयी है। मंत्री से लेकर आम आदमी तक की जमीन के कागजों में हेराफेरी कर दी जा रही है। 

प्रभात खबर के पास है सैकड़ों दस्तावेज-राजधानी रांची के भी कई इलाके में फर्जी दस्तावेज के सहारे दाखिल-खारिज किये गये हैं। निछले कुछ वर्षों की ऑन लाइन प्रक्रिया देखी जाये, तो दो दर्जन से ज्यादा अंचलाधिकारी जांच के घेरे में आयेेगे। दरअसल भू-माफिया जमीन व गैर मजरूआ जमीन फर्जी कागज के सहारे हेराफेरी करने का धंधा चल रहा है। ुिर इसकी ऑनलाइन इंट्री करा दी जाती है। प्रभात खबर के पास जमीन की हेराफेरी के सैंकड़ों दस्तावेज उपलब्ध है। 

मंत्री-विधायक भी नहीं बचे, उनकी जमीन के रिकॉर्ड में भी छेड़छाड़

सीएनटी एक्ट की धज्जियां उड़ा कर आदिवासी रैयतों की जमीन भी दूसरे के नाम की गयी।

वर्ष 2016 से शुरू हुई ऑन लाइन प्रक्रिया-राज्य में जमीन के दस्तावेज के कप्यूटरीकरण की प्रक्रिया 2016 से शुरू हुई है। इस प्रक्रिया के तहत अंचल कार्यालय में जमीन की खरीद-बिक्री से लेकर म्यूटेशन तक की प्रक्रिया ऑनलाइन हो रही है। सारे अभिलेख कप्यूटर पर दर्ज किये जा रहे हैं। इसी प्रक्रिया में छेड़छाड़ हो रही है। इधर पाई -पाई पैसा जोड़ कर जमीन खरीदनेवाले गरीब लुटे जा रहे हैं। कई बार तो ऑनलाइन पूरा विवरण देखने के बाद मूल रैयतों के होश उड़ रहे हैं। 

मंत्री रामेश्वर उरांव की जमीन की भी हुई थी गलत इंट्री-ऑन लाइन की प्रक्रिया में मंत्री रामेश्वर उरांव की जमीन की भी गलत इंट्री की गयी थी। उनकी अपनी जमीन दूसरे के नाम कर दी गयी थी। श्री उरांव ने कहा कि ऑनलाइन प्रक्रिया में भारी गड़बड़ी हो रही है। अंचल के स्तर पर भारी भ्रष्टाचार हो रहा है। गांव-गांव में लोगों को लड़ाने का काम हो रहा है। फिलहाल ऑन लाइन प्रकिया को बंद कर पहले दस्तावेज मैनुअली दुरूस्त कर लिये जायें। 

सामाजिक कार्यकर्ता रमेश ने धनबाद मामले में की है शिकायत-धनबाद में हो रहे जमीन घोटाले के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ने वाले सामाजिक कार्यकर्ता रमेश कुमार राही ने पूरे मामले की शिकायत सक्षम अधिकारियों से की है। उन्होंने धनबाद के उपायुक्त से लेकर भू-राजस्व विभाग के वरीय अधिकारियों की हेराफेरी से संबंधित प्रमाण सौंपे हैं। इस मामले में प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा पहल भी गयी है। श्री राही का कहना है कि पूरे राज्य में अधिकारी की मिलीभगत से एक संगठित रैकेट चल रहा है। मामले के सही तरीके से जांच हुई तो कई लोग जेल जायेंगें। गरीबों की जमीन लूटी जा रही है। आदिवासी रैयतों को बेदखल किया जा रहा है। 

गलत और अवैध म्यूटेशन के मामले

केस-1

धनबाद अंचल के मौजा साबलपुर-11 के खाता संख्या-25, प्लॉट संख्या 519, रकबा-5 कठा जमीन का म्यूटेशन सैवाल चटर्जी के नाम किया गया। जबकि खाता संख्या-25 आदिवासी खाता की भूमि है। 

केस -2

धनबाद के कोला कुसमा मौजा में सरकारी जमीन का भी दखिल-खारिज करने के साक्ष्य मिले है। खाता संख्या-217 के प्लॉट संख्या 857 का म्यूटेशन कर दिया गया। दस्तावेज बताते हैं कि इस जमीन की प्रकृति सरकारी है।

केस -3

धनबाद के ही विशुनपुर मौजा के खाता संख्या-194, प्लॉट संख्या-198, 112 की 58 डिसमिल जमीन नरेश शर्मा से क्रय किया गया। रेखा देवी के नाम से जमीन खरीदी गयी। 19.9.2019 को धनबाद अंचल में म्यूटेशन हुआ। खतियान देखा गया, तो खाता संख्या 194 में प्लॉट संख्या 198,111 नहीं है। वास्तविक खाता संख्या 496 है। निबंधन व दाखिल खारिज दोनों में गोलमाल हुआ। 

केस -4

बघमारा अंचल के महेशपुर मौजा खाता संख्या 146, प्लॉट संख्या 524, 526,525,632, 1293, 1305 और खाता संख्या 147 के प्लॉट संख्या 1097 के दाखिल-खरिज में बड़बड़ी की गयी। यह जमीन सीएनटी एक्ट की परिधि में पा्रण महतो व रघुनाथ महतो-कुर्मी जाति के नाम है जमाबंदी में रैयत में प्राण महतो के नाम है इसके बावजूद इसे दूसरी जाति के नाम से दाखिल खारिज की दिया गया है। 

केस -5

रांची जिला में तरीके से जमीन के हस्तातरण का मामला सामने आया हैं चान्हो अंचल में खात संख्या 41 की जमीन गलत तरीके से बंदोबस्त कर दी गयी है। दस्तावेज के साथ इसकी शिकायत उपायुक्त से की गयी है। 

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23-1-2023

प्रभात खबर -प्रतिनिधि, कांके

50 करोड़ की जमीन के रिकॉर्ड से की छेड़छाड़, रदद की गयी जमाबंदी, होगी जांच।

टंचल कार्यालय कांके हल्का-9 की गेतलातू मौजा की 4.44 एकड़ जमीन की पंजी -2 के साथ छेड़छाड़ का मामला प्रकाश में आया है। इस जमीन की कीमत लगभग 50 करोड़ रूपये आंकी गयी है। मामला तब पकड़ में आया, जब गेतलातू मौजा की खाता संख्या-86, प्लॉट संख्या-591, 593, 594, 634, 640, 642, 651, 652, 653, 674, 675 की 4.44 एकड़ जमीन से प्लॉट संख्या-592 की पांच डिसमिल की क्रेता शिवाजी नगर, डुमरदगा की आशा देवी ने दाखिल -खारिज के लिए आवेदन दिया। कर्मचारी व सीआइ ने जांच के क्रम में पाया कि उत्क जमीन की कभी जमाबंदी कायम ही नहीं हुई है। इसके बावजूद ऑनलाइन पंजी 2 के साथ छेड़छाड़ कर जमाबंदी खोली गयी है। उत्क सीएनटी की जमीन पर राजकुमार यादव के नाम से पंजी-2 प्लॉट संख्या-592 के भाग संख्या-01, पृष्ट संख्या-204 पर दर्ज था। ऐसा एनआइसी की साइट में छेड़छाड़ कर किया गया था। जांच में यह भी पाया गया कि राजकुमार यादव ने उत्क सीएनटी की जमीन कोलकाता से रजिस्ट्री डीड बनाकर छेड़छाड़ कर पंजी-2 में अपना नाम दर्ज कराया था। कांके सीओ को इसकी जानकारी मिलते ही अपर समाहर्ता को सूचना देकर जमाबंदी रदद करायी गयी। 

सही दस्तावेज प्रस्तुत नही ंकर पाया आरोपी-इस मामले में सीओ ने जमीन मालिक व विक्रेता बांका बिहार निवासी राजकुमार यादव, पिता बंगाली यादव व पावर होल्डर गंतलातू निवासी शिवदयाल महतो, पिता स्व लक्षण महतो को चार बार 01 नवंबर 2022, 18 नवंबर 2022, 24 दिसंबर 2022 व 07 जनवरी 2023 को नोटिस भेजकर पक्ष रखने को बुलाया, पर राजकुमार यादव एवं शिवदलाय महतो का वकील सीअसे कोर्ट में दो डेट पर हाजिरी देकर कोई भी सही दस्तावेज प्रस्तुत नही ंकर सका। 

राजकुमार यादव ने दोबारा उत्क खाता संख्या-86 के प्लॉट संख्या 591 की 1.92 एकड़ जमीन का भाग संख्या-01 पृष्ट संख्या-44 की जमाबंदी में छेड़छाड़ कर खोलवा दिया। उत्क प्लॉट पर जाकर पूछताछ करने पर पाया गया कि इसमें जमीन मालिक व पावर होल्डर के पीछे कुछ सफेदपोश लोगों का हाथ है। 

सीओ ने कहा-डीड की जांच करायी जायेगी- इस संबंध में सीओ दिवाकर सी द्विवेदी ने बताया कि पंजी-2 से छेड़छाड़ किये जाने के संबंधी सूचना वरीय पदाधिकारियों को दी गयी है। वरीय पदाधिकारियों से निर्देश प्राप्त होते ही आगे कानूनी कार्रवाई की जायेगी। सीओ ने बताया कि गतलातू मौजा की उत्क जमीन के खतियान में रैयत पलटू महतो वगैरह के नाम दर्ज है। राजकुमार यादव ने इस जमीन की कोलकाता से 18.12.80 को पलटू के वशंज सोहन महतो, कपिल महतो वगैरह से रजिस्ट्री करायी थी। इस जमीन की रजिस्ट्री रांची से नहीं कराकर बंगाल से करायी गयी डीड भी जाली हो सकती है। जांच के बाद ही पता चल सकेगा कि कोलकाता से रजिस्ट्री करायी गयी डीड असली है या नकली। 

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नई व्यवस्था से हो रही है परेशानी

 20 फरवरी 2023-दैनिक भास्कर

ई विद्यावाहिनी-स्कूली शिक्षा विभाग पहले वर्कशॉप का आयोजन कर शिक्षकों को दे प्रशिक्षण

अवकाश के आवेदन ऑनलाइन भरने पर शिक्षक बोले-हम दक्ष नहीं, कैफे में अप्लाई से डाटा हो जाता है सार्वजनिक

एजुकेशन रिपोर्टर-रांची

स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग द्वारा सरकारी स्कूलों में सेवा दे रहे शिक्षकों व कर्मचारियों को ई विद्यावाहिनी के माध्यम से ऑनलाइन अवकाश लेने की व्यवस्था लागू हो गई है। इसके साथ ही विरोध शुरू हो गया है। इनका कहना है कि अधिकांश शिक्षक कंप्यूटर और मोबाइल के दक्ष नहीं हैं । इस कारण ऑनलाइन अवकाश लेने के लिए साइबर कैफे की मदद ले रहे हैं। सिके कारण विभाग का डाटा सार्वजनिक हो जा रहा है। अखिल झारखंड प्राथमिक शिक्षक संघ के मुख्य प्रवक्ता नसीम अहमद ने कहा कि अभी तक स्कूली शिक्षा विभाग द्वारा ऑनलाइन अवकाश आवेदन भरने के संबंध में किसी प्रकार की जानकारी नहीं दी गई है। नई व्यवस्था को लागू करने से पहले स्कूली शिक्षा विभाग को जिला, प्रखंड और सीआरसी स्तर पर वर्कशॉप आयोजित कर शिक्षकों को प्रशिक्षण देना चाहिए। ताकि शिक्षक बिना किसी झिझक के नई ऑनलाइन व्यवस्था का लाभ उठा सकें। इसी सबसे पहले शिक्षकों को तकनीकी पहलूओं की जानकारी देने के लिए ट्रेनिंग देने की जरूरत है। कैफे में जाकर अवकाश आवेदन जमाकरने वाले शिक्षकों ने कहा कि इससे बेहतर अवकाश लेने का ऑफलाइन माध्यम बेहतर था। जिसमें अवकाश से संबंधित डाटा सार्वजनिक होने को डर नहीं था। 

नई व्यवस्था से हो रही है परेशानी

नई व्यवस्था लागू होने के पहले तक शिक्षक ऑफलाइन माध्यम से अवकाश लेते थे। पूर्व में ऑफलाइन से ली गई छुटटी दर्ज का ऑनलाइन सिस्टम में विकल्प नहीं होने से कुल छुटटी की संख्या में फर्क हो रहा है। अवकाश दिवस में कार्य करने पर क्षतिपूरक अवकाश दिया जाता है, जिसका विकल्प ऑनलाइन सिस्टम में नहीं है। 

छुटटी ले रहे 2 दिन, जो जा रहा 3 दिन

शिक्षकों ने कहा कि शनिवार और सोमवार को अवकाश के आवेदन देते हैं तो ऑनलाइन सिस्टम में तीन दिन अवकाश दिखा रहाहै। बीच में रविवार है, जिसका नए सिस्टम अवकाश में गिनती हो रही है। यानि दो दिन की छुटटी लेने पर तीन दिन की गिनती हो रही है। जबकि रविार को राजपत्रित अवकाश रहता है। 

ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों की हो व्यवस्था

ऑनलाइन के साथ ऑफलाइन आवेदन देने की व्यवस्था होनी चाहिए। नए सिस्टम की खामियों को दूर करने व शिक्षकों को ट्रेनिंग देने पर विभाग को ध्यान देना चाहिए। तब तक ऑफलाइन व्यवस्था देना चाहिए।

नसीम अहमद-मुख्य प्रवक्ता सह शिक्षक