TRADITONAL ART,KNOWLEDGE AND SCIENCE ...
बुनकर समिति के हाथों बुना कपड़ा आज देश बिदेश में अपना पहचान बना चुका है।
राज्य एवं केंद्र सरकार बड़े बड़े उद्योगपतियों को अस्थिपित और बिकसित करने के हर कदम उठा रही है, लेकिन राज्य के बुनकरों के कला -बिज्ञान, पारंपरिक-ज्ञान-बिज्ञान को बिकसित नहीं करना चाहती है.
निर्यात वस्त्र उत्पादक छोटानागपुर हरिजन आदिवासी औधोगिक सहयोग समिति के नाम से 60 सदस्यों ने समिति को गठन किये हैं। जीपसूडीह बुनकर केंद्र में हमेशा 13 बुनकर लूम में रहते हैं। महिलाएं घर में चरखा में धागा सीधा करती हैं। यहां हर मौसम के तथा हर डीजाईन के कपड़े बनाये जाते हैं। आदिवासी मूलवासी समाज में शादी के समय उपयोग करने वाला मायसारी, पढिया साडी, बरकी, करेया, पेछाउरी आदि बनाते हैं। इसके साथ ही जड़ा के लिए उनी सोल, उनी चादर, असनी मफलर, सिंगल बेडसीट, डबल बेडसीट, टेबलक्लोथ, दिवान कवर, रनर, आसन, टेबल मेट सेट, सोफा कवर, विकास चादर, कवर, पढिया लहांगा, सूती सोल, वीरू सोल तथा आदि बनाये जाते हैं। बुनकर बताते हैं-कपड़ा के साईज पर मजदूरी तय किया गया है। हर बुनकर सप्ताह दिन अच्छा से काम करते हैं तो प्रति बुनकर 500-600 रूप्या कमा लेते हैं। कहते हैं-ठीका में काम करते हैं, जितना काम, उतना पैसां।
बुनकर कहते हैं-आडर मिलता है तो साल भर काम चलते रहता है। कभी कभी इतनी अधिक आडर रहता है कि पूरा करने नहीं सकते हैं। कहते हैं तैयार माल के लिए बाजार का कोई दिक्कत नहीं हैं, रांची, कलकत्ता, दिल्ली, बोम्बे सभी जगहों में जाता है। बुनकरों ने बताया कि आज तक सरकार की ओर से काम को बढ़ाने के लिए किसी तरह का अनुदान नहीं मिला है। भारत सरकार बिहार राज्य था तक दो लूम अनुदान में दिया था। समिति सदस्य कहते हैं-यहां डीसी, एसडीओ भी आये थे और सामान रखीद कर चले गये। कई बार अधिकारियों से बिजली लगा देने के लिए कहा गया था, लेकिन अ’वासन के अलावे कुछ नहीं मिला। कोंता संवासी, बरजू संवासी, खला सवांसी, सुकराम, टुटी, कुशल , बुधवा, लुखी, महादेव, विश्राम ने बताया कि 1996 से हमलोग समिति बनाकर यहां काम करना ’शुरू किये हैं। सचित बिरसमनी देवी यहां के बच्चों का पंचवा क्लास तक पढ़ाने का काम करती है, साथ ही समिति का लेखा जोखा भी देखती हेै। समिति का रजिस्ट्रेसन वीटर हेकर के सहयोग से हुआ। समिति के लिए एक बड़ा हॉल बुनने के लिए, दो कमरो को स्कुल तथा एक कार्यालय भवन जर्मनी के सहयोग से हेकर बना दिया है। सरकारी तथा नेताओं की उपेक्षा पर समाज सेवी सुमनजन तिडू कहते हैं-सरकार के पास स्थानीय विकास नीति ही नहीं हैं यही कारण है कि ये बुनकर सरकारी स्तर पर उपेक्षित हैं।
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