Friday, April 29, 2022

जबकि रात भर की यात्रा के लिए एक सीट रिजर्व करने वाले अपना रिजर्व सीट नहीं छोड़ सकते हैं। तब हम अपने विरासत हमेशा के लिए दूसरों के विकास के लिए ,दूसरों की उन्नति के लिए, दूसरों के फायदे के लिए क्यों छोड़े

 जिंदगी में हर कदम यह एहसास दिलाता है ,की बाघ ,भालू ,सांप ,बिच्छू जैसे जंगली जानवरों से लडकर जंगल को साफ किया, झाड़ी को साफ किया, और जमीन बनाया, खेत बनाया, गांव बसाया,  उस जंगल जमीन को आखिर आदिवासी समुदाय छोड़ेंगे?


जबकि  रात भर की यात्रा के लिए एक सीट रिजर्व

 करने वाले अपना रिजर्व सीट नहीं छोड़ सकते हैं। तब हम अपने विरासत हमेशा के लिए दूसरों के विकास के लिए ,दूसरों की उन्नति के लिए, दूसरों के फायदे के लिए क्यों छोड़े? जिन्दगी की घटनाओं से ही हम बहुत कुछ सीखते है। 


कल 19 अप्रैल 2022 की रात 8.53 बजे साहेबगंज रेलवे स्टेशन पर भगलपुर वनांचल एक्सप्रेस के बोगी no.एस 3 में रांची आने के लिए चढ़े। हम दो लोग थे । टिकट मेरे साथी के पास था । उन्होंने  बोला हम दोनों का बर्थ 32और 33 है। मैं अपने साथी के बताइए नंबर के अनुसार बर्थ नंबर 32 में बैठ गई । थोड़ी देर के बाद मैं लेट गई । करीब आधा घंटा के बाद एक लड़की आयी और तेज आवाज में बोली ,यह मेरा जगह है खाली करो ! मैं उठ कर बैठ गई और अपने साथी से बोली, एक बार टिकट देखिए 32 नंबर हम लोगों का हैं या नहीं ? मैं यह बात पूरी भी नहीं की थी तब तक फिर से जोर से चिल्लाकर बोलने लगी सुनते नहीं हैं जल्दी से खाली करो।

  मेरे साथी ने अपने पॉकेट से टिकट है निकाल कर फिर से देखा तो हम दोनों का सीट नंबर 22 और 33 था। मैं तुरंत अपना सिरहाना में रखा बैग और बाकी सामान उठाई और बगल वाले बर्थ नंबर 22 में चली गई ।तब मुझे भीतर यह एहसास होने लगा की जब हम किसी के बुक किए गए सीट पर थोड़ी देर भी बैठ नहीं सकते हैं हमें यह आधिकार नहीं है,  तब हम आदिवासी समुदाय से हमारे पूर्वजों द्वारा आबाद  किया गया जंगल, जमीन ,नदी ,पहाड़ ,गांव ,खेत, खलिहान से विकास के नाम पर बेदखल किया जाता है ।  हमें बेदखल करने का आधिकार आखिर किसने दिया है। 

एक सीट क्या? हमारा तो पूरा झारखंड ही लूटा जा रहा है। मैं सोचती हूं इसके लिए शायद हम और हमारा समाज ही जिम्मेवार है, हम अपने हक, आधिकार को नहीं समझ पाते हैं, इसकी रक्षा नहीं कर पा रहे हैं।



Saturday, April 16, 2022

Asam ke chay bagan me jharkhand ke adivas

 

Asam ke chay bagan me jharkhand ke adivasi

pure Asam ka chay bagan inhi asivasi samuday ke mehnat ke bal per chal raha hai. lekin in chy pati todne wale samuday ka dard bhi samajhne ki jarurat hai, jo aaj tak logon ne undekhi hi kar diya hai.

Gram Swaraj

 

Gaon ka Economy

Gram Swaraj 

apna khet, apni kheti, apna khad,  apni upaj, apni kolhu, apna pure sudh sarshon ka tel.

Hukka with Mother

 


Thursday, April 7, 2022

आदिवासी-मूलवासी किसानों के परंपरागत अधिकार सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटी अधिकार, हो इलाके के विलकिनसन रूल्स एवं 5वीं अनुसूचि के अधिकारों सहित 1932 के खतियान का कड़ाई से लागू किया जाए।

 सेवा में,

माननीय पंचायती राज मंत्री

श्री आलमगीर आलम                            पत्रांक-02/2022

झारखंड सरकार                                दिनांक-28/2/2022

विषय- केंन्द्र की ओर से थोपी जा रही स्वामित्व योजना के तहत प्रोपटी/ संपति कार्ड की जरूरत नहीं- पांचवी अनुसूचि क्षेत्र एवं सीएनटी एक्ट क्षेत्र के आदिवासी बहुल खॅटी जिला में ग्रामसभाओं को सही जानकारी बिना दिये,  साथ ही ग्रामसभाओं की सहमति के बिना जबरन ड्रोन से जमीन का सर्वे किया गया है को रð किया जाए, एवं सर्वे कार्य को रोका जाए। 

                     एवं

आदिवासी-मूलवासी किसानों के परंपरागत अधिकार सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटी अधिकार, हो इलाके के विलकिनसन रूल्स एवं 5वीं अनुसूचि के अधिकारों सहित 1932 के खतियान का कड़ाई से लागू किया जाए। 

महाशय

आप को सादर जानकारी दी जाती है कि अप्रैल 2020 को केंन्द्र सरकार द्वारा घाषित स्वमित्व योजना के तहत डिजिटल इंण्डिया लैंड रिकाॅर्ड आधुनिकीकरण कार्यक्रम के तहत ड्रोन से गांवों की संपति का सवेक्षेण कर जीअईएस मानचित्र बनाये जाऐगें। साथ ही जमीन मालिको को प्राॅपटी कार्ड बना कर दिया जाएगा। ये जीआईएस नक्से और स्थानीय डेटाबेस ग्राम पंचायतों और और राज्य सरकार के अन्य विभागों द्वारा विभिन्न कार्यों के लिए उपयोग किये जाएगें। इस स्वमित्व योजना का कई उदद्वयों के साथ मूल उद्वेश्य एक राष्ट्र एक साॅफटवेयर (One Nation One Software) व्यवस्था करना है। 

 लेकिन हमारा इतिहास गवाह है कि झारखंड में जल, जंगल, जमीन को आबाद करने का आदिवासी-मूलवासी किसान समुदाय का अपना गैरवशाली इतिहास है। आदिवासी समुदाय खतरनाक जंगली जानवरों से लड़ कर जंगल-झाड़ को साफ कर गाॅंव बसाया, जमीन आबाद किया है। आदिवासी-मूलवासी किसान समुदाय जंगल, नदी, पहाडों की गोद में ही अपने इतिहास, भाषा-संास्कृति, पहचान के साथ विकसित होता है। 

प्रकृतिक-पर्यावरण जीवन मूल्य के  साथ आदिवासी -मूलवासी समुदाय के ताना-बाना को संरक्षित और विकसित करने के लिए ही छोटानापुर काश्तकारी अधिनियम 1908, संताल परगना काश्तकारी अधिनियम 1949 बनाया गया है। साथ ही भारतीय संविधान में पेसा कानून 1996 एवं पांचवी अनुसूचि में आदिवासी समुदाय के जल, जंगल, जमीन पर इनके खूंटकटी अधिकार सहित अन्य परंपरागत अधिकारों का प्रावधान किया गया है। यही हमारा स्वमित्व का पहचान है। 

सर्व विदित है कि आदिवासी समुदाय के जंगल, जमीन, सामाजिक-संस्कृतिक, आर्थिक आधार को संरक्षित एवं विकसित करने के लिए भारतीय संविधान में विशेष कानूनी प्रावधान किये गये हैं। सीएनटी, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून में, फोरेस्ट राईट एक्ट 2006 में, विशेष प्रावधान है। इसके तहत गांव के सीमा के भीतर एवं बाहर जो प्रकृतिक संसाधन है जैसे गिटी, मिटी, बालू, झाड़-जंगल, जमीन, नदी-झरना, सभी गांव की सामुदायिक संपति है। इस पर क्षेत्र के ग्रामीणों का सामुदायिक अधिकार है। ये अधिकार 1932 के खतियान और विपेज नोट में भी दर्ज है। 

ये सभी अधिकार आदिवासी समुदाय के लंबे संघर्ष और शहादत के बाद मिला है। खतियान एवं वीलेज नोट में दर्ज सामुदायिक एवं खूंटकटी अधिकार को बचाना जगरूक नागरिकों के साथ राज्य की कल्याणकारी सरकार की भी जिम्मेदारी है।

वर्तमान में लाया जा रहा केंन्द्र सरकार की स्वामित्व योजना का उदेश्य भारत के लिए एक एकीकृत संपति सत्यापन -समाधान के तहत पूरे देश के लिए एक ही डिजिटल लैंण्ड रिकार्ड बनाना है, जो पांचवी अनुसूचि क्षेत्र, एवं सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंण्डारी खूंटकटी अधिकार, हो आदिवासी बहुल क्षेत्र के परंपरागत अधिकारों के खिलाफ है। 

हम सभी नम्रतापूर्वक निम्नलिखित बिंन्द ुओं पर आप का ध्यान खिंजना चाहते हैं- स्वमित्व योजना के कार्यान्वयन के लिए रूपरेखा है, उसमें झारखंड के 5वीं अनुसूचि क्षेत्र के प्रावधानों, सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून के अधिकारों के संबंध में कुछ भी नहीं कहा गया है। याने इन अधिकारों को केंन्द्र की इस योजना पूरी तरह नजरअंदाज कर रही है। 

आदिवासी परंपरागत व्यवस्था अनुसार सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट में भूईहरी जमीन, भूतखेता, डालीकतारी, पहनाई जमीन, महतोई जमीन, बैठखेत जमीन हैं, जो समुदाय के सेवा देने के लिए व्यवस्था किया है। जिसको लगान मुक्त रखा गया है।  इस व्यवस्था को बनाये रखने के लिए, सरकार क्या व्यवस्था कर रही है यह स्पष्ट करना होगा। 

मुंण्डारी खूंटकटी क्षेत्र, विलकिनसन रूल, माझी परगना क्षेत्र के परंपरागत आदिवासी समुदाय के जमीन संबंधी व्यवस्था को बरकरार रखने के लिए क्या व्यवस्था राज्य सरकार कर रही है? जो आदिवासी समुदाय के लिए  गंभीर का विषय है। 



बड़ा सवाल यह भी है कि-जो जमीन भूमि बैंक में डाला गया है-वह समुदाय की सामुदायिक संपति है। इसको यथावत समुदाय के हाथ में सुरक्षित रखने का कोई चिक्र या प्रावधान नहीं किया गया है। 

2014 के बाद लैंण्ड रिकाॅर्ड आॅनलाइन होने के बाद, 1932 के खतियान में दर्ज समुदाय के सामुदायिक अधिकार को डिजिटल खतियान में पूरी तरह से हटा दिया गया है। जो पांचवी अनुसूचि, सीएनटी, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून, मुंण्डारी खूंटकटी अधिकार एवं 1932 के खतियान का अतिक्रमण याने खात्म करने की साजिश है। 

जमीन संबंधित मुददे राज्य सरकार के अधिन है। यह क्षेत्र पांचवी अनुसूचि में है, ऐसे में केंन्द्र सरकार का स्वामित्व योजना को लागू करने के पहले नियमतः जनजातीय परामर्शदात्री समिति -टीएसी में चर्चा होनी चाहिए थी, इसके बाद राज्य में लागू करना था। इसकी जानकारी राज्य आदिवासी समुदाय को भी देनी थी। जो नहीं हुआ। 

आदिवासी-मूलवासी जंगल-जमीन के संबंध में कई समस्याओं से जुझ रहे हैं-2014 के बाद जो भूमि बैंक बना, आखिर किस नीति के तहत बना? क्या सीएनटी, एसपीटी एक्ट में संशोधन कर लाया गया? या पांचवी अनूसूचि के पेसा कानून में संशोधन कर भूमि बैंक बनाया गया? इस सवाल का जवाब कौन देना? राज्य का आदिवासी-मूलवासी समुादाय जानना चाहती है। 

संपति कार्ड/प्राॅपर्टी कार्ड लागू होने से आदिवासी इलाके में निम्नलिखित खतरे भविष्य में होगें। 

1- परंपरागत ग्रामीण आदिवासी इलाके का डेमोग्राफी -भौगोलिक एरिया पूरी तरह बदल जाएगा-कारण 2016 में ही ग्रामीण इलाके के गैरमरूआ आम भूमि, गैरमरूआ खास, जंगल-झाडी, नदी-नाला, सरना-मसना, ससनदीरी, अखड़ा जैसे सामुदायिक भूमि को चुन-चुन कर भूमि बैंक में डाल दिया गया, जिसका आॅनलाइन खरीद-फरोक्त चरम पर हो रहा है। 

2-5 वीं अनुसूचि क्षेत्र, सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटकटी एवं विलकिसन रूल्स के तहत गांव के सीमा के भीतर के गैर मजरूआ आम, खास, जंगल-झाड़ी, परती-झरती, नदी-नाला आदि सामुदायिक जमीन की, खरीद-फरोक्त के कारण भारी संख्या में अब  बाहरी सामुदाय का प्रावेश एवं कब्जा होगा। 

3-आदिवासी ग्रामीण इलाके में शहरी आबादी के प्रवेश स,े प्रकृतिक जीवनशैली से जुडे आदिवासी-मूलवासी किसान, दलित समुदाय का परंपरागत सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, आधार टूट जाएगा।

4-ड्रोन सर्वे पूरा होने के साथ ही गांव का नया डिजिटल नक्सा बनेग। इस नये डिजिटल  नक्सा और 1932 के खतियान कोई मेल नहीं रहेगा। ताजा उदाहरण है -आॅनलाइन डिजिटल खतियान और 1932 का मैनुअल-आॅफलाइन खतियान। तब निश्चित है कि नया डिजिटल नक्या बनने के साथ ही आदिवासी-मुलवासी समुदाय को, समुदायिक अधिकार देने के साथ एैतिहासक पहचान देने वाला 1932 का खतियान अस्तित्व विहीन हो जाएगा।

5-परिणामस्वरूप आदिवासी समुदाय के अधिकार, सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, पांचवी अनूसूची, मुंडारी खूंटकटी अधिकार, कोल्हान क्षेत्र का विल्किनसन रूल्स स्वता कमजोर हो जाएगा।

6-ड्रोन से सर्वे के बाद में जमीन का मालिकाना हक क्लेम-दावा करने के लिए ग्रामीण आदिवासी, मूलवासी, दलित समुदाय से, अपना जमीन संबंधित संभवता कई तरह के दस्वावेज मागे जाएंगें, भोले-भाले ग्रामीण दस्तावेज पेस नहीं कर पायेगें-ऐसे परिस्थिति में जमीन उनके हाथ से निकल जाएगा। 

7-ग्रामीण इलाके में बढ़ते शहरी आबादी के कारण ग्रामीण कृषि अर्थव्यवस्था, वन व्यवस्था, जल स्त्रोत एवं पर्यावरणीय व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। 

8- ग्रामीण आदिवासी इलाके में बड़ी संख्या में बाहरी आबादी के प्रवेश होने से, राज्य में आदिवासी आबादी तेजी से घटेगी, परिणाम स्वरूप आदिवासी सामुदाय की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं राजनीतिक शक्ति स्वतः कमजोर होगा। 

फोरेस्ट राईट एक्ट के तहत सरकारी व्यवस्था के सामने दावा साबित नहीं कर पाने के कारण, परंपरागत वासिदे कानून का लाभ नहीं ले पा रहे-इसका ताजा उदाहरण-

1-विगत सुप्रीम कोट का फैसला-जिसमें झारखंड से 1,07,187 लोगों ने दावा पेस किया गया, इसमें 27,809 आवेदकों के दावापत्र रदद करने का फैसला दिया था। कारण कि लोगों ने अपना दावा साबित नहीं कर पाया। इससे बहुत सारी बातों का समझा जा सकता है। 


2-जमीन पर कब्जा ग्रामीणों के हाथ में है, जोत-कोड कर रहे हैं, पहले जमीन का रसीद काटता था-अब रसीद काटना बंद कर दिया- 

झारखंड में भूमि सुधार कानून के तहत राज्य में लाखों छोटे किसानों को एक-एक एकड, कहीं कहीं दो-तीन एकड़ तक जमीन बंदोबस्त कर दिया गया था। लोग इस जमीन का मलगूजारी रसीद भी काटते थे, लेकिन अब कई इलाके में इस जमीन का रसीद काटना बंद कर दिया गया, और किसानों को उक्त जमीन की बंदोबस्ती संबंधित कई तरह के कागजात मांगें जाते हैं।  लोग अधिकारियों के समुख कागजात पेस नहीं कर पा रहे हैं, इस कारण ग्रामीण जमीन का रसीद भी नहीं काट पा रहे हैं। 

3-जमीन आॅनलाइन व्यवस्था में भारी गड़बडी-

राज्य में जमीन संबंधित काम-कागज 2014-15 तक आॅफलाइन हो रहा था। जमीन मालिक आॅफलाइन रसीद हल्का करमचारी द्वारा कटवा रहे थे। आॅनलाइन व्यवस्था होने के बाद जमीन का खतियान में भारी गडबडियां हो गयी हैं। किसी का खतियान में रैयत का नाम गलत है, खाता नबंर गलत है, प्लोट नंबर गलत है, जमीन का रकबा भी गलत है। इसको सुधरवाने के लिए लोग अमीन के पास, सीओ के पास दौडते दौडते थक रहे हैं-कोई कार्रवाई नहीं हो रहा है। 

4-आॅनलाइन खतियान में गलती के कारण-बहुत से किसान जमीन का मलगुजारी रसीद 4-5 सालों से नहीं कटवा पा रहे हैं। 

इस तरह से आदिवासी -मुलवासी, किसान, दलित समाज से जमीन निकल जाएगा। यही नहीं समुदाय का सुरक्षा कवच सीएनटी, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून में मिला अधिकार मुंडारी खूंटकटी अधिकार कागजों में रह जाएगा, लेकिन वास्तविक अधिकार स्वतः खत्म हो जाएगा।

उपरोक्त परिणामों से जमीन का लूट बढेगा। परिवार और समाज में अशांति बढ़ेगा। इससे उत्पन्न परिस्थ्यिों से विस्थापन, पलायन, बेरोजगारी, भूख, भूमिहीन, अस्वस्थ्य, सूखा-आकाल एवं प्रदूषण जैसे महामारी का ही सामना करना पड़ेगा। 

 हमारी मांगें हैं-

1-केंन्द्र सरकार की नयी स्वामीत्व योजना /प्रोपटी/संपति कार्ड बनाने के लिए आदिवासी बहुल खूंटी जिला में परंपरागत ग्राम सभी एवं आदिवासी किसान संगठनों ने  ड्रोन द्वारा जमीन का सर्वे नहीं करने की मांग कर रहे हें, इसलिए बजरन किया गया सर्वे का रदद किया जाए साथ ही तत्काल सर्वे को रोका जाए। 

2-1932 के खतियान को यथावत कडा़ई से लागू किया जाए।  

3-प्रा्रपाॅटी काडगर्् नहीं -सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटकटी एवं 5वीं अनुसूची में प्रावधान ग्राम सभा के अधिकारों को कड़ाई से लागू किया जाएं एवं आदिवासी-मूलवासी समुदाय के सामुदायिक अधिकारों को संरक्षित किया जाए। 

4-भूमि बैंक को रदद किया जाए-रघुवर सरकार ने गैर मजरूआ आम, गैर मजरूआ खास जमीन, को भूमि बैंक में शमिल किया गया है,  इस भूमि बैंक को रदद किया जाए।

5-क्षेत्र के सभी जलस्त्रोतों, नदी-नाला का पानी लिफट ऐरिगेशन के तहत पाइप लाइन द्वारा किसानों के खेतों तक कृषि विकास के लिए पहुंचाया जाए।

6-आॅनलाइन जमीन के दस्तावेजों का हो रहा छेड़-छाड़ एवं जमीन का हेरा-फेरी बंद किया जाए।

                                   निवेदक

        मुंडारी खूंटकटी परिषद, आदिवासी एकता मंच ं

              संयुक्त पड़हा समिति एव सभी ग्राम सभाए


विषय- केंन्द्र की ओर से थोपी जा रही स्वामित्व योजना के तहत प्रोपटी/ संपति कार्ड की जरूरत नहीं- पांचवी अनुसूचि क्षेत्र एवं सीएनटी एक्ट क्षेत्र के आदिवासी बहुल खॅटी जिला में ग्रामसभाओं को सही जानकारी बिना दिये, साथ ही ग्रामसभाओं की सहमति के बिना जबरन ड्रोन से जमीन का सर्वे किया गया है को रð किया जाए, एवं सर्वे कार्य को रोका जाए।

 सेवा में,

माननीय मुख्यमंत्री

श्री हेमंत सोरेन                              पत्रांक-02/2022

झारखंड सरकार                              दिनांक-28/2/2022

विषय- केंन्द्र की ओर से थोपी जा रही स्वामित्व योजना के तहत प्रोपटी/ संपति कार्ड की जरूरत नहीं- पांचवी अनुसूचि क्षेत्र एवं सीएनटी एक्ट क्षेत्र के आदिवासी बहुल खॅटी जिला में ग्रामसभाओं को सही जानकारी बिना दिये,  साथ ही ग्रामसभाओं की सहमति के बिना जबरन ड्रोन से जमीन का सर्वे किया गया है को रð किया जाए, एवं सर्वे कार्य को रोका जाए। 

                     एवं

आदिवासी-मूलवासी किसानों के परंपरागत अधिकार सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटी अधिकार, हो इलाके के विलकिनसन रूल्स एवं 5वीं अनुसूचि के अधिकारों सहित 1932 के खतियान का कड़ाई से लागू किया जाए। 

महाशय

आप को सादर जानकारी दी जाती है कि अप्रैल 2020 को केंन्द्र सरकार द्वारा घाषित स्वमित्व योजना के तहत डिजिटल इंण्डिया लैंड रिकाॅर्ड आधुनिकीकरण कार्यक्रम के तहत ड्रोन से गांवों की संपति का सवेक्षेण कर जीअईएस मानचित्र बनाये जाऐगें। साथ ही जमीन मालिको को प्राॅपटी कार्ड बना कर दिया जाएगा। ये जीआईएस नक्से और स्थानीय डेटाबेस ग्राम पंचायतों और और राज्य सरकार के अन्य विभागों द्वारा विभिन्न कार्यों के लिए उपयोग किये जाएगें। इस स्वमित्व योजना का कई उदद्वयों के साथ मूल उद्वेश्य एक राष्ट्र एक साॅफटवेयर (One Nation One Software) व्यवस्था करना है। 

 लेकिन हमारा इतिहास गवाह है कि झारखंड में जल, जंगल, जमीन को आबाद करने का आदिवासी-मूलवासी किसान समुदाय का अपना गैरवशाली इतिहास है। आदिवासी समुदाय खतरनाक जंगली जानवरों से लड़ कर जंगल-झाड़ को साफ कर गाॅंव बसाया, जमीन आबाद किया है। आदिवासी-मूलवासी किसान समुदाय जंगल, नदी, पहाडों की गोद में ही अपने इतिहास, भाषा-संास्कृति, पहचान के साथ विकसित होता है। 

प्रकृतिक-पर्यावरण जीवन मूल्य के  साथ आदिवासी -मूलवासी समुदाय के ताना-बाना को संरक्षित और विकसित करने के लिए ही छोटानापुर काश्तकारी अधिनियम 1908, संताल परगना काश्तकारी अधिनियम 1949 बनाया गया है। साथ ही भारतीय संविधान में पेसा कानून 1996 एवं पांचवी अनुसूचि में आदिवासी समुदाय के जल, जंगल, जमीन पर इनके खूंटकटी अधिकार सहित अन्य परंपरागत अधिकारों का प्रावधान किया गया है। यही हमारा स्वमित्व का पहचान है। 

सर्व विदित है कि आदिवासी समुदाय के जंगल, जमीन, सामाजिक-संस्कृतिक, आर्थिक आधार को संरक्षित एवं विकसित करने के लिए भारतीय संविधान में विशेष कानूनी प्रावधान किये गये हैं। सीएनटी, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून में, फोरेस्ट राईट एक्ट 2006 में, विशेष प्रावधान है। इसके तहत गांव के सीमा के भीतर एवं बाहर जो प्रकृतिक संसाधन है जैसे गिटी, मिटी, बालू, झाड़-जंगल, जमीन, नदी-झरना, सभी गांव की सामुदायिक संपति है। इस पर क्षेत्र के ग्रामीणों का सामुदायिक अधिकार है। ये अधिकार 1932 के खतियान और विपेज नोट में भी दर्ज है। 

ये सभी अधिकार आदिवासी समुदाय के लंबे संघर्ष और शहादत के बाद मिला है। खतियान एवं वीलेज नोट में दर्ज सामुदायिक एवं खूंटकटी अधिकार को बचाना जगरूक नागरिकों के साथ राज्य की कल्याणकारी सरकार की भी जिम्मेदारी है।

वर्तमान में लाया जा रहा केंन्द्र सरकार की स्वामित्व योजना का उदेश्य भारत के लिए एक एकीकृत संपति सत्यापन -समाधान के तहत पूरे देश के लिए एक ही डिजिटल लैंण्ड रिकार्ड बनाना है, जो पांचवी अनुसूचि क्षेत्र, एवं सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंण्डारी खूंटकटी अधिकार, हो आदिवासी बहुल क्षेत्र के परंपरागत अधिकारों के खिलाफ है। 

हम सभी नम्रतापूर्वक निम्नलिखित बिंन्द ुओं पर आप का ध्यान खिंजना चाहते हैं- स्वमित्व योजना के कार्यान्वयन के लिए रूपरेखा है, उसमें झारखंड के 5वीं अनुसूचि क्षेत्र के प्रावधानों, सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून के अधिकारों के संबंध में कुछ भी नहीं कहा गया है। याने इन अधिकारों को केंन्द्र की इस योजना पूरी तरह नजरअंदाज कर रही है। 

आदिवासी परंपरागत व्यवस्था अनुसार सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट में भूईहरी जमीन, भूतखेता, डालीकतारी, पहनाई जमीन, महतोई जमीन, बैठखेत जमीन हैं, जो समुदाय के सेवा देने के लिए व्यवस्था किया है। जिसको लगान मुक्त रखा गया है।  इस व्यवस्था को बनाये रखने के लिए, सरकार क्या व्यवस्था कर रही है यह स्पष्ट करना होगा। 

मुंण्डारी खूंटकटी क्षेत्र, विलकिनसन रूल, माझी परगना क्षेत्र के परंपरागत आदिवासी समुदाय के जमीन संबंधी व्यवस्था को बरकरार रखने के लिए क्या व्यवस्था राज्य सरकार कर रही है? जो आदिवासी समुदाय के गंभीर का विषय है। 


बड़ा सवाल यह भी है कि-जो जमीन भूमि बैंक में डाला गया है-वह समुदाय की सामुदायिक संपति है। इसको यथावत समुदाय के हाथ में सुरक्षित रखने का कोई चिक्र या प्रावधान नहीं किया गया है। 

2014 के बाद लैंण्ड रिकाॅर्ड आॅनलाइन होने के बाद, 1932 के खतियान में दर्ज समुदाय के सामुदायिक अधिकार को डिजिटल खतियान में पूरी तरह से हटा दिया गया है। जो पांचवी अनुसूचि, सीएनटी, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून, मुंण्डारी खूंटकटी अधिकार एवं 1932 के खतियान का अतिक्रमण याने खात्म करने की साजिश है। 

जमीन संबंधित मुददे राज्य सरकार के अधिन है। यह क्षेत्र पांचवी अनुसूचि में है, ऐसे में केंन्द्र सरकार का स्वामित्व योजना को लागू करने के पहले नियमतः जनजातीय परामर्शदात्री समिति -टीएसी में चर्चा होनी चाहिए थी, इसके बाद राज्य में लागू करना था। इसकी जानकारी राज्य आदिवासी समुदाय को भी देनी थी। जो नहीं हुआ। 

आदिवासी-मूलवासी जंगल-जमीन के संबंध में कई समस्याओं से जुझ रहे हैं-2014 के बाद जो भूमि बैंक बना, आखिर किस नीति के तहत बना? क्या सीएनटी, एसपीटी एक्ट में संशोधन कर लाया गया? या पांचवी अनूसूचि के पेसा कानून में संशोधन कर भूमि बैंक बनाया गया? इस सवाल का जवाब कौन देना? राज्य का आदिवासी-मूलवासी समुादाय जानना चाहती है। 

संपति कार्ड/प्राॅपर्टी कार्ड लागू होने से आदिवासी इलाके में निम्नलिखित खतरे भविष्य में होगें। 

1- परंपरागत ग्रामीण आदिवासी इलाके का डेमोग्राफी -भौगोलिक एरिया पूरी तरह बदल जाएगा-कारण 2016 में ही ग्रामीण इलाके के गैरमरूआ आम भूमि, गैरमरूआ खास, जंगल-झाडी, नदी-नाला, सरना-मसना, ससनदीरी, अखड़ा जैसे सामुदायिक भूमि को चुन-चुन कर भूमि बैंक में डाल दिया गया, जिसका आॅनलाइन खरीद-फरोक्त चरम पर हो रहा है। 

2-5 वीं अनुसूचि क्षेत्र, सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटकटी एवं विलकिसन रूल्स के तहत गांव के सीमा के भीतर के गैर मजरूआ आम, खास, जंगल-झाड़ी, परती-झरती, नदी-नाला आदि सामुदायिक जमीन की, खरीद-फरोक्त के कारण भारी संख्या में अब  बाहरी सामुदाय का प्रावेश एवं कब्जा होगा। 

3-आदिवासी ग्रामीण इलाके में शहरी आबादी के प्रवेश स,े प्रकृतिक जीवनशैली से जुडे आदिवासी-मूलवासी किसान, दलित समुदाय का परंपरागत सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, आधार टूट जाएगा।

4-ड्रोन सर्वे पूरा होने के साथ ही गांव का नया डिजिटल नक्सा बनेग। इस नये डिजिटल  नक्सा और 1932 के खतियान कोई मेल नहीं रहेगा। ताजा उदाहरण है -आॅनलाइन डिजिटल खतियान और 1932 का मैनुअल-आॅफलाइन खतियान। तब निश्चित है कि नया डिजिटल नक्या बनने के साथ ही आदिवासी-मुलवासी समुदाय को, समुदायिक अधिकार देने के साथ एैतिहासक पहचान देने वाला 1932 का खतियान अस्तित्व विहीन हो जाएगा।

5-परिणामस्वरूप आदिवासी समुदाय के अधिकार, सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, पांचवी अनूसूची, मुंडारी खूंटकटी अधिकार, कोल्हान क्षेत्र का विल्किनसन रूल्स स्वता कमजोर हो जाएगा।

6-ड्रोन से सर्वे के बाद में जमीन का मालिकाना हक क्लेम-दावा करने के लिए ग्रामीण आदिवासी, मूलवासी, दलित समुदाय से, अपना जमीन संबंधित संभवता कई तरह के दस्वावेज मागे जाएंगें, भोले-भाले ग्रामीण दस्तावेज पेस नहीं कर पायेगें-ऐसे परिस्थिति में जमीन उनके हाथ से निकल जाएगा। 

7-ग्रामीण इलाके में बढ़ते शहरी आबादी के कारण ग्रामीण कृषि अर्थव्यवस्था, वन व्यवस्था, जल स्त्रोत एवं पर्यावरणीय व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। 

8- ग्रामीण आदिवासी इलाके में बड़ी संख्या में बाहरी आबादी के प्रवेश होने से, राज्य में आदिवासी आबादी तेजी से घटेगी, परिणाम स्वरूप आदिवासी सामुदाय की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं राजनीतिक शक्ति स्वतः कमजोर होगा। 

फोरेस्ट राईट एक्ट के तहत सरकारी व्यवस्था के सामने दावा साबित नहीं कर पाने के कारण, परंपरागत वासिदे कानून का लाभ नहीं ले पा रहे-इसका ताजा उदाहरण-

1-विगत सुप्रीम कोट का फैसला-जिसमें झारखंड से 1,07,187 लोगों ने दावा पेस किया गया, इसमें 27,809 आवेदकों के दावापत्र रदद करने का फैसला दिया था। कारण कि लोगों ने अपना दावा साबित नहीं कर पाया। इससे बहुत सारी बातों का समझा जा सकता है। 


2-जमीन पर कब्जा ग्रामीणों के हाथ में है, जोत-कोड कर रहे हैं, पहले जमीन का रसीद काटता था-अब रसीद काटना बंद कर दिया- 

झारखंड में भूमि सुधार कानून के तहत राज्य में लाखों छोटे किसानों को एक-एक एकड, कहीं कहीं दो-तीन एकड़ तक जमीन बंदोबस्त कर दिया गया था। लोग इस जमीन का मजगूजारी रसीद भी काटते थे, लेकिन अब कई इलाके में इस जमीन का रसीद काटना बंद कर दिया गया, और किसानों को उक्त जमीन की बंदोबस्ती संबंधित कई तरह के कागजात मांगें जाते हैं।  लोग अधिकारियों के समुख कागजात पेस नहीं कर पा रहे हैं, इस कारण ग्रामीण जमीन का रसीद भी नहीं काट पा रहे हैं। 

3-जमीन आॅनलाइन व्यवस्था में भारी गड़बडी-

राज्य में जमीन संबंधित काम-कागज 2014-15 तक आॅफलाइन हो रहा था। जमीन मालिक आॅफलाइन रसीद हल्का करमचारी द्वारा कटवा रहे थे। आॅनलाइन व्यवस्था होने के बाद जमीन का खतियान में भारी गडबडियां हो गयी हैं। किसी का खतियान में रैयत का नाम गलत है, खाता नबंर गलत है, प्लोट नंबर गलत है, जमीन का रकबा भी गलत है। इसको सुधरवाने के लिए लोग अमीन के पास, सीओ के पास दौडते दौडते थक रहे हैं-कोई कार्रवाई नहीं हो रहा है। 

4-आॅनलाइन खतियान में गलती के कारण-बहुत से किसान जमीन का मलगुजारी रसीद 4-5 सालों से नहीं कटवा पा रहे हैं। 

इस तरह से आदिवासी -मुलवासी, किसान, दलित समाज से जमीन निकल जाएगा। यही नहीं समुदाय का सुरक्षा कवच सीएनटी, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून में मिला अधिकार मुंडारी खूंटकटी अधिकार कागजों में रह जाएगा, लेकिन वास्तविक अधिकार स्वतः खत्म हो जाएगा।

उपरोक्त परिणामों से जमीन का लूट बढेगा। परिवार और समाज में अशांति बढ़ेगा। इससे उत्पन्न परिस्थ्यिों से विस्थापन, पलायन, बेरोजगारी, भूख, भूमिहीन, अस्वस्थ्य, सूखा-आकाल एवं प्रदूषण जैसे महामारी का ही सामना करना पड़ेगा। 

 हमारी मांगें हैं-

1-केंन्द्र सरकार की नयी स्वामीत्व योजना /प्रोपटी/संपति कार्ड बनाने के लिए आदिवासी बहुल खूंटी जिला में परंपरागत ग्राम सभी एवं आदिवासी किसान संगठनों ने  ड्रोन द्वारा जमीन का सर्वे नहीं करने की मांग कर रहे हें, इसलिए बजरन किया गया सर्वे का रदद किया जाए साथ ही तत्काल सर्वे को रोका जाए। 

2-1932 के खतियान को यथावत कडा़ई से लागू किया जाए।  

3-प्रा्रपाॅटी काडगर्् नहीं -सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटकटी एवं 5वीं अनुसूची में प्रावधान ग्राम सभा के अधिकारों को कड़ाई से लागू किया जाएं एवं आदिवासी-मूलवासी समुदाय के सामुदायिक अधिकारों को संरक्षित किया जाए। 

4-भूमि बैंक को रदद किया जाए-रघुवर सरकार ने गैर मजरूआ आम, गैर मजरूआ खास जमीन, को भूमि बैंक में शमिल किया गया है,  इस भूमि बैंक को रदद किया जाए।

5-क्षेत्र के सभी जलस्त्रोतों, नदी-नाला का पानी लिफट ऐरिगेशन के तहत पाइप लाइन द्वारा किसानों के खेतों तक कृषि विकास के लिए पहुंचाया जाए।

6-आॅनलाइन जमीन के दस्तावेजों का हो रहा छेड़-छाड़ एवं जमीन का हेरा-फेरी बंद किया जाए।

             निवेदक-आदिवासी-मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच

               मुंडारी खूंटकटी परिषद

              आदिवासी एकता मंच ं

              संयुक्त पड़हा समिति एव सभी ग्राम सभाए


विषय- केंन्द्र की ओर से थोपी जा रही स्वामित्व योजना के तहत प्रोपटी/ संपति कार्ड की जरूरत नहीं- पांचवी अनुसूचि क्षेत्र एवं सीएनटी एक्ट क्षेत्र के आदिवासी बहुल खॅटी जिला में ग्रामसभाओं को सही जानकारी बिना दिये, साथ ही ग्रामसभाओं की सहमति के बिना जबरन ड्रोन से जमीन का सर्वे किया गया है को रð किया जाए, एवं सर्वे कार्य को रोका जाए।

 सेवा में,

माननीय पंचायती राज मंत्री

श्री आलमगीर आलम                            पत्रांक-02/2022

झारखंड सरकार                                दिनांक-28/2/2022

विषय- केंन्द्र की ओर से थोपी जा रही स्वामित्व योजना के तहत प्रोपटी/ संपति कार्ड की जरूरत नहीं- पांचवी अनुसूचि क्षेत्र एवं सीएनटी एक्ट क्षेत्र के आदिवासी बहुल खॅटी जिला में ग्रामसभाओं को सही जानकारी बिना दिये,  साथ ही ग्रामसभाओं की सहमति के बिना जबरन ड्रोन से जमीन का सर्वे किया गया है को रð किया जाए, एवं सर्वे कार्य को रोका जाए। 

                     एवं

आदिवासी-मूलवासी किसानों के परंपरागत अधिकार सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटी अधिकार, हो इलाके के विलकिनसन रूल्स एवं 5वीं अनुसूचि के अधिकारों सहित 1932 के खतियान का कड़ाई से लागू किया जाए। 

महाशय

आप को सादर जानकारी दी जाती है कि अप्रैल 2020 को केंन्द्र सरकार द्वारा घाषित स्वमित्व योजना के तहत डिजिटल इंण्डिया लैंड रिकाॅर्ड आधुनिकीकरण कार्यक्रम के तहत ड्रोन से गांवों की संपति का सवेक्षेण कर जीअईएस मानचित्र बनाये जाऐगें। साथ ही जमीन मालिको को प्राॅपटी कार्ड बना कर दिया जाएगा। ये जीआईएस नक्से और स्थानीय डेटाबेस ग्राम पंचायतों और और राज्य सरकार के अन्य विभागों द्वारा विभिन्न कार्यों के लिए उपयोग किये जाएगें। इस स्वमित्व योजना का कई उदद्वयों के साथ मूल उद्वेश्य एक राष्ट्र एक साॅफटवेयर (One Natioan One Software) व्यवस्था करना है। 

 लेकिन हमारा इतिहास गवाह है कि झारखंड में जल, जंगल, जमीन को आबाद करने का आदिवासी-मूलवासी किसान समुदाय का अपना गैरवशाली इतिहास है। आदिवासी समुदाय खतरनाक जंगली जानवरों से लड़ कर जंगल-झाड़ को साफ कर गाॅंव बसाया, जमीन आबाद किया है। आदिवासी-मूलवासी किसान समुदाय जंगल, नदी, पहाडों की गोद में ही अपने इतिहास, भाषा-संास्कृति, पहचान के साथ विकसित होता है। 

प्रकृतिक-पर्यावरण जीवन मूल्य के  साथ आदिवासी -मूलवासी समुदाय के ताना-बाना को संरक्षित और विकसित करने के लिए ही छोटानापुर काश्तकारी अधिनियम 1908, संताल परगना काश्तकारी अधिनियम 1949 बनाया गया है। साथ ही भारतीय संविधान में पेसा कानून 1996 एवं पांचवी अनुसूचि में आदिवासी समुदाय के जल, जंगल, जमीन पर इनके खूंटकटी अधिकार सहित अन्य परंपरागत अधिकारों का प्रावधान किया गया है। यही हमारा स्वमित्व का पहचान है। 

सर्व विदित है कि आदिवासी समुदाय के जंगल, जमीन, सामाजिक-संस्कृतिक, आर्थिक आधार को संरक्षित एवं विकसित करने के लिए भारतीय संविधान में विशेष कानूनी प्रावधान किये गये हैं। सीएनटी, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून में, फोरेस्ट राईट एक्ट 2006 में, विशेष प्रावधान है। इसके तहत गांव के सीमा के भीतर एवं बाहर जो प्रकृतिक संसाधन है जैसे गिटी, मिटी, बालू, झाड़-जंगल, जमीन, नदी-झरना, सभी गांव की सामुदायिक संपति है। इस पर क्षेत्र के ग्रामीणों का सामुदायिक अधिकार है। ये अधिकार 1932 के खतियान और विपेज नोट में भी दर्ज है। 

ये सभी अधिकार आदिवासी समुदाय के लंबे संघर्ष और शहादत के बाद मिला है। खतियान एवं वीलेज नोट में दर्ज सामुदायिक एवं खूंटकटी अधिकार को बचाना जगरूक नागरिकों के साथ राज्य की कल्याणकारी सरकार की भी जिम्मेदारी है।

वर्तमान में लाया जा रहा केंन्द्र सरकार की स्वामित्व योजना का उदेश्य भारत के लिए एक एकीकृत संपति सत्यापन -समाधान के तहत पूरे देश के लिए एक ही डिजिटल लैंण्ड रिकार्ड बनाना है, जो पांचवी अनुसूचि क्षेत्र, एवं सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंण्डारी खूंटकटी अधिकार, हो आदिवासी बहुल क्षेत्र के परंपरागत अधिकारों के खिलाफ है। 

हम सभी नम्रतापूर्वक निम्नलिखित बिंन्द ुओं पर आप का ध्यान खिंजना चाहते हैं- स्वमित्व योजना के कार्यान्वयन के लिए रूपरेखा है, उसमें झारखंड के 5वीं अनुसूचि क्षेत्र के प्रावधानों, सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून के अधिकारों के संबंध में कुछ भी नहीं कहा गया है। याने इन अधिकारों को केंन्द्र की इस योजना पूरी तरह नजरअंदाज कर रही है। 

आदिवासी परंपरागत व्यवस्था अनुसार सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट में भूईहरी जमीन, भूतखेता, डालीकतारी, पहनाई जमीन, महतोई जमीन, बैठखेत जमीन हैं, जो समुदाय के सेवा देने के लिए व्यवस्था किया है। जिसको लगान मुक्त रखा गया है।  इस व्यवस्था को बनाये रखने के लिए, सरकार क्या व्यवस्था कर रही है यह स्पष्ट करना होगा। 

मुंण्डारी खूंटकटी क्षेत्र, विलकिनसन रूल, माझी परगना क्षेत्र के परंपरागत आदिवासी समुदाय के जमीन संबंधी व्यवस्था को बरकरार रखने के लिए क्या व्यवस्था राज्य सरकार कर रही है? जो आदिवासी समुदाय के लिए  गंभीर का विषय है। 



बड़ा सवाल यह भी है कि-जो जमीन भूमि बैंक में डाला गया है-वह समुदाय की सामुदायिक संपति है। इसको यथावत समुदाय के हाथ में सुरक्षित रखने का कोई चिक्र या प्रावधान नहीं किया गया है। 

2014 के बाद लैंण्ड रिकाॅर्ड आॅनलाइन होने के बाद, 1932 के खतियान में दर्ज समुदाय के सामुदायिक अधिकार को डिजिटल खतियान में पूरी तरह से हटा दिया गया है। जो पांचवी अनुसूचि, सीएनटी, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून, मुंण्डारी खूंटकटी अधिकार एवं 1932 के खतियान का अतिक्रमण याने खात्म करने की साजिश है। 

जमीन संबंधित मुददे राज्य सरकार के अधिन है। यह क्षेत्र पांचवी अनुसूचि में है, ऐसे में केंन्द्र सरकार का स्वामित्व योजना को लागू करने के पहले नियमतः जनजातीय परामर्शदात्री समिति -टीएसी में चर्चा होनी चाहिए थी, इसके बाद राज्य में लागू करना था। इसकी जानकारी राज्य आदिवासी समुदाय को भी देनी थी। जो नहीं हुआ। 

आदिवासी-मूलवासी जंगल-जमीन के संबंध में कई समस्याओं से जुझ रहे हैं-2014 के बाद जो भूमि बैंक बना, आखिर किस नीति के तहत बना? क्या सीएनटी, एसपीटी एक्ट में संशोधन कर लाया गया? या पांचवी अनूसूचि के पेसा कानून में संशोधन कर भूमि बैंक बनाया गया? इस सवाल का जवाब कौन देना? राज्य का आदिवासी-मूलवासी समुादाय जानना चाहती है। 

संपति कार्ड/प्राॅपर्टी कार्ड लागू होने से आदिवासी इलाके में निम्नलिखित खतरे भविष्य में होगें। 

1- परंपरागत ग्रामीण आदिवासी इलाके का डेमोग्राफी -भौगोलिक एरिया पूरी तरह बदल जाएगा-कारण 2016 में ही ग्रामीण इलाके के गैरमरूआ आम भूमि, गैरमरूआ खास, जंगल-झाडी, नदी-नाला, सरना-मसना, ससनदीरी, अखड़ा जैसे सामुदायिक भूमि को चुन-चुन कर भूमि बैंक में डाल दिया गया, जिसका आॅनलाइन खरीद-फरोक्त चरम पर हो रहा है। 

2-5 वीं अनुसूचि क्षेत्र, सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटकटी एवं विलकिसन रूल्स के तहत गांव के सीमा के भीतर के गैर मजरूआ आम, खास, जंगल-झाड़ी, परती-झरती, नदी-नाला आदि सामुदायिक जमीन की, खरीद-फरोक्त के कारण भारी संख्या में अब  बाहरी सामुदाय का प्रावेश एवं कब्जा होगा। 

3-आदिवासी ग्रामीण इलाके में शहरी आबादी के प्रवेश स,े प्रकृतिक जीवनशैली से जुडे आदिवासी-मूलवासी किसान, दलित समुदाय का परंपरागत सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, आधार टूट जाएगा।

4-ड्रोन सर्वे पूरा होने के साथ ही गांव का नया डिजिटल नक्सा बनेग। इस नये डिजिटल  नक्सा और 1932 के खतियान कोई मेल नहीं रहेगा। ताजा उदाहरण है -आॅनलाइन डिजिटल खतियान और 1932 का मैनुअल-आॅफलाइन खतियान। तब निश्चित है कि नया डिजिटल नक्या बनने के साथ ही आदिवासी-मुलवासी समुदाय को, समुदायिक अधिकार देने के साथ एैतिहासक पहचान देने वाला 1932 का खतियान अस्तित्व विहीन हो जाएगा।

5-परिणामस्वरूप आदिवासी समुदाय के अधिकार, सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, पांचवी अनूसूची, मुंडारी खूंटकटी अधिकार, कोल्हान क्षेत्र का विल्किनसन रूल्स स्वता कमजोर हो जाएगा।

6-ड्रोन से सर्वे के बाद में जमीन का मालिकाना हक क्लेम-दावा करने के लिए ग्रामीण आदिवासी, मूलवासी, दलित समुदाय से, अपना जमीन संबंधित संभवता कई तरह के दस्वावेज मागे जाएंगें, भोले-भाले ग्रामीण दस्तावेज पेस नहीं कर पायेगें-ऐसे परिस्थिति में जमीन उनके हाथ से निकल जाएगा। 

7-ग्रामीण इलाके में बढ़ते शहरी आबादी के कारण ग्रामीण कृषि अर्थव्यवस्था, वन व्यवस्था, जल स्त्रोत एवं पर्यावरणीय व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। 

8- ग्रामीण आदिवासी इलाके में बड़ी संख्या में बाहरी आबादी के प्रवेश होने से, राज्य में आदिवासी आबादी तेजी से घटेगी, परिणाम स्वरूप आदिवासी सामुदाय की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं राजनीतिक शक्ति स्वतः कमजोर होगा। 

फोरेस्ट राईट एक्ट के तहत सरकारी व्यवस्था के सामने दावा साबित नहीं कर पाने के कारण, परंपरागत वासिदे कानून का लाभ नहीं ले पा रहे-इसका ताजा उदाहरण-

1-विगत सुप्रीम कोट का फैसला-जिसमें झारखंड से 1,07,187 लोगों ने दावा पेस किया गया, इसमें 27,809 आवेदकों के दावापत्र रदद करने का फैसला दिया था। कारण कि लोगों ने अपना दावा साबित नहीं कर पाया। इससे बहुत सारी बातों का समझा जा सकता है। 


2-जमीन पर कब्जा ग्रामीणों के हाथ में है, जोत-कोड कर रहे हैं, पहले जमीन का रसीद काटता था-अब रसीद काटना बंद कर दिया- 

झारखंड में भूमि सुधार कानून के तहत राज्य में लाखों छोटे किसानों को एक-एक एकड, कहीं कहीं दो-तीन एकड़ तक जमीन बंदोबस्त कर दिया गया था। लोग इस जमीन का मलगूजारी रसीद भी काटते थे, लेकिन अब कई इलाके में इस जमीन का रसीद काटना बंद कर दिया गया, और किसानों को उक्त जमीन की बंदोबस्ती संबंधित कई तरह के कागजात मांगें जाते हैं।  लोग अधिकारियों के समुख कागजात पेस नहीं कर पा रहे हैं, इस कारण ग्रामीण जमीन का रसीद भी नहीं काट पा रहे हैं। 

3-जमीन आॅनलाइन व्यवस्था में भारी गड़बडी-

राज्य में जमीन संबंधित काम-कागज 2014-15 तक आॅफलाइन हो रहा था। जमीन मालिक आॅफलाइन रसीद हल्का करमचारी द्वारा कटवा रहे थे। आॅनलाइन व्यवस्था होने के बाद जमीन का खतियान में भारी गडबडियां हो गयी हैं। किसी का खतियान में रैयत का नाम गलत है, खाता नबंर गलत है, प्लोट नंबर गलत है, जमीन का रकबा भी गलत है। इसको सुधरवाने के लिए लोग अमीन के पास, सीओ के पास दौडते दौडते थक रहे हैं-कोई कार्रवाई नहीं हो रहा है। 

4-आॅनलाइन खतियान में गलती के कारण-बहुत से किसान जमीन का मलगुजारी रसीद 4-5 सालों से नहीं कटवा पा रहे हैं। 

इस तरह से आदिवासी -मुलवासी, किसान, दलित समाज से जमीन निकल जाएगा। यही नहीं समुदाय का सुरक्षा कवच सीएनटी, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून में मिला अधिकार मुंडारी खूंटकटी अधिकार कागजों में रह जाएगा, लेकिन वास्तविक अधिकार स्वतः खत्म हो जाएगा।

उपरोक्त परिणामों से जमीन का लूट बढेगा। परिवार और समाज में अशांति बढ़ेगा। इससे उत्पन्न परिस्थ्यिों से विस्थापन, पलायन, बेरोजगारी, भूख, भूमिहीन, अस्वस्थ्य, सूखा-आकाल एवं प्रदूषण जैसे महामारी का ही सामना करना पड़ेगा। 

 हमारी मांगें हैं-

1-केंन्द्र सरकार की नयी स्वामीत्व योजना /प्रोपटी/संपति कार्ड बनाने के लिए आदिवासी बहुल खूंटी जिला में परंपरागत ग्राम सभी एवं आदिवासी किसान संगठनों ने  ड्रोन द्वारा जमीन का सर्वे नहीं करने की मांग कर रहे हें, इसलिए बजरन किया गया सर्वे का रदद किया जाए साथ ही तत्काल सर्वे को रोका जाए। 

2-1932 के खतियान को यथावत कडा़ई से लागू किया जाए।  

3-प्रा्रपाॅटी काडगर्् नहीं -सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटकटी एवं 5वीं अनुसूची में प्रावधान ग्राम सभा के अधिकारों को कड़ाई से लागू किया जाएं एवं आदिवासी-मूलवासी समुदाय के सामुदायिक अधिकारों को संरक्षित किया जाए। 

4-भूमि बैंक को रदद किया जाए-रघुवर सरकार ने गैर मजरूआ आम, गैर मजरूआ खास जमीन, को भूमि बैंक में शमिल किया गया है,  इस भूमि बैंक को रदद किया जाए।

5-क्षेत्र के सभी जलस्त्रोतों, नदी-नाला का पानी लिफट ऐरिगेशन के तहत पाइप लाइन द्वारा किसानों के खेतों तक कृषि विकास के लिए पहुंचाया जाए।

6-आॅनलाइन जमीन के दस्तावेजों का हो रहा छेड़-छाड़ एवं जमीन का हेरा-फेरी बंद किया जाए।

                                   निवेदक

        मुंडारी खूंटकटी परिषद, आदिवासी एकता मंच ं

              संयुक्त पड़हा समिति एव सभी ग्राम सभाए


 सेवा में,

माननीय महामहिम राज्यपाल                    पत्रांक-02/ 2022

झारखंड सरकार                              दिनांक-28/2/2022

विषय- केंन्द्र की ओर से थोपी जा रही स्वामित्व योजना के तहत प्रोपटी/ संपति कार्ड की जरूरत नहीं- पांचवी अनुसूचि क्षेत्र एवं सीएनटी एक्ट क्षेत्र के आदिवासी बहुल खॅटी जिला में ग्रामसभाओं को सही जानकारी बिना दिये,  साथ ही ग्रामसभाओं की सहमति के बिना जबरन ड्रोन से जमीन का सर्वे किया गया है को रð किया जाए, एवं सर्वे कार्य को रोका जाए। 

                     एवं

आदिवासी-मूलवासी किसानों के परंपरागत अधिकार सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटी अधिकार, हो इलाके के विलकिनसन रूल्स एवं 5वीं अनुसूचि के अधिकारों सहित 1932 के खतियान का कड़ाई से लागू किया जाए। 

महाशय

आप को सादर जानकारी दी जाती है कि अप्रैल 2020 को केंन्द्र सरकार द्वारा घाषित स्वमित्व योजना के तहत डिजिटल इंण्डिया लैंड रिकाॅर्ड आधुनिकीकरण कार्यक्रम के तहत ड्रोन से गांवों की संपति का सवेक्षेण कर जीअईएस मानचित्र बनाये जाऐगें। साथ ही जमीन मालिको को प्राॅपटी कार्ड बना कर दिया जाएगा। ये जीआईएस नक्से और स्थानीय डेटाबेस ग्राम पंचायतों और और राज्य सरकार के अन्य विभागों द्वारा विभिन्न कार्यों के लिए उपयोग किये जाएगें। इस स्वमित्व योजना का कई उदद्वयों के साथ मूल उद्वेश्य एक राष्ट्र एक साॅफटवेयर (व्दम छंजपवद व्दम ैवजिूंतम) व्यवस्था करना है। 

 लेकिन हमारा इतिहास गवाह है कि झारखंड में जल, जंगल, जमीन को आबाद करने का आदिवासी-मूलवासी किसान समुदाय का अपना गैरवशाली इतिहास है। आदिवासी समुदाय खतरनाक जंगली जानवरों से लड़ कर जंगल-झाड़ को साफ कर गाॅंव बसाया, जमीन आबाद किया है। आदिवासी-मूलवासी किसान समुदाय जंगल, नदी, पहाडों की गोद में ही अपने इतिहास, भाषा-संास्कृति, पहचान के साथ विकसित होता है। 

प्रकृतिक-पर्यावरण जीवन मूल्य के  साथ आदिवासी -मूलवासी समुदाय के ताना-बाना को संरक्षित और विकसित करने के लिए ही छोटानापुर काश्तकारी अधिनियम 1908, संताल परगना काश्तकारी अधिनियम 1949 बनाया गया है। साथ ही भारतीय संविधान में पेसा कानून 1996 एवं पांचवी अनुसूचि में आदिवासी समुदाय के जल, जंगल, जमीन पर इनके खूंटकटी अधिकार सहित अन्य परंपरागत अधिकारों का प्रावधान किया गया है। यही हमारा स्वमित्व का पहचान है। 

सर्व विदित है कि आदिवासी समुदाय के जंगल, जमीन, सामाजिक-संस्कृतिक, आर्थिक आधार को संरक्षित एवं विकसित करने के लिए भारतीय संविधान में विशेष कानूनी प्रावधान किये गये हैं। सीएनटी, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून में, फोरेस्ट राईट एक्ट 2006 में, विशेष प्रावधान है। इसके तहत गांव के सीमा के भीतर एवं बाहर जो प्रकृतिक संसाधन है जैसे गिटी, मिटी, बालू, झाड़-जंगल, जमीन, नदी-झरना, सभी गांव की सामुदायिक संपति है। इस पर क्षेत्र के ग्रामीणों का सामुदायिक अधिकार है। ये अधिकार 1932 के खतियान और विपेज नोट में भी दर्ज है। 

ये सभी अधिकार आदिवासी समुदाय के लंबे संघर्ष और शहादत के बाद मिला है। खतियान एवं वीलेज नोट में दर्ज सामुदायिक एवं खूंटकटी अधिकार को बचाना जगरूक नागरिकों के साथ राज्य की कल्याणकारी सरकार की भी जिम्मेदारी है।

वर्तमान में लाया जा रहा केंन्द्र सरकार की स्वामित्व योजना का उदेश्य भारत के लिए एक एकीकृत संपति सत्यापन -समाधान के तहत पूरे देश के लिए एक ही डिजिटल लैंण्ड रिकार्ड बनाना है, जो पांचवी अनुसूचि क्षेत्र, एवं सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंण्डारी खूंटकटी अधिकार, हो आदिवासी बहुल क्षेत्र के परंपरागत अधिकारों के खिलाफ है। 

हम सभी नम्रतापूर्वक निम्नलिखित बिंन्द ुओं पर आप का ध्यान खिंजना चाहते हैं- स्वमित्व योजना के कार्यान्वयन के लिए रूपरेखा है, उसमें झारखंड के 5वीं अनुसूचि क्षेत्र के प्रावधानों, सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून के अधिकारों के संबंध में कुछ भी नहीं कहा गया है। याने इन अधिकारों को केंन्द्र की इस योजना पूरी तरह नजरअंदाज कर रही है। 

आदिवासी परंपरागत व्यवस्था अनुसार सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट में भूईहरी जमीन, भूतखेता, डालीकतारी, पहनाई जमीन, महतोई जमीन, बैठखेत जमीन हैं, जो समुदाय के सेवा देने के लिए व्यवस्था किया है। जिसको लगान मुक्त रखा गया है।  इस व्यवस्था को बनाये रखने के लिए, सरकार क्या व्यवस्था कर रही है यह स्पष्ट करना होगा। 

मुंण्डारी खूंटकटी क्षेत्र, विलकिनसन रूल, माझी परगना क्षेत्र के परंपरागत आदिवासी समुदाय के जमीन संबंधी व्यवस्था को बरकरार रखने के लिए क्या व्यवस्था राज्य सरकार कर रही है? जो आदिवासी समुदाय के गंभीर का विषय है। 



बड़ा सवाल यह भी है कि-जो जमीन भूमि बैंक में डाला गया है-वह समुदाय की सामुदायिक संपति है। इसको यथावत समुदाय के हाथ में सुरक्षित रखने का कोई चिक्र या प्रावधान नहीं किया गया है। 

2014 के बाद लैंण्ड रिकाॅर्ड आॅनलाइन होने के बाद, 1932 के खतियान में दर्ज समुदाय के सामुदायिक अधिकार को डिजिटल खतियान में पूरी तरह से हटा दिया गया है। जो पांचवी अनुसूचि, सीएनटी, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून, मुंण्डारी खूंटकटी अधिकार एवं 1932 के खतियान का अतिक्रमण याने खात्म करने की साजिश है। 

जमीन संबंधित मुददे राज्य सरकार के अधिन है। यह क्षेत्र पांचवी अनुसूचि में है, ऐसे में केंन्द्र सरकार का स्वामित्व योजना को लागू करने के पहले नियमतः जनजातीय परामर्शदात्री समिति -टीएसी में चर्चा होनी चाहिए थी, इसके बाद राज्य में लागू करना था। इसकी जानकारी राज्य आदिवासी समुदाय को भी देनी थी। जो नहीं हुआ। 

आदिवासी-मूलवासी जंगल-जमीन के संबंध में कई समस्याओं से जुझ रहे हैं-2014 के बाद जो भूमि बैंक बना, आखिर किस नीति के तहत बना? क्या सीएनटी, एसपीटी एक्ट में संशोधन कर लाया गया? या पांचवी अनूसूचि के पेसा कानून में संशोधन कर भूमि बैंक बनाया गया? इस सवाल का जवाब कौन देना? राज्य का आदिवासी-मूलवासी समुादाय जानना चाहती है। 

संपति कार्ड/प्राॅपर्टी कार्ड लागू होने से आदिवासी इलाके में निम्नलिखित खतरे भविष्य में होगें। 

1- परंपरागत ग्रामीण आदिवासी इलाके का डेमोग्राफी -भौगोलिक एरिया पूरी तरह बदल जाएगा-कारण 2016 में ही ग्रामीण इलाके के गैरमरूआ आम भूमि, गैरमरूआ खास, जंगल-झाडी, नदी-नाला, सरना-मसना, ससनदीरी, अखड़ा जैसे सामुदायिक भूमि को चुन-चुन कर भूमि बैंक में डाल दिया गया, जिसका आॅनलाइन खरीद-फरोक्त चरम पर हो रहा है। 

2-5 वीं अनुसूचि क्षेत्र, सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटकटी एवं विलकिसन रूल्स के तहत गांव के सीमा के भीतर के गैर मजरूआ आम, खास, जंगल-झाड़ी, परती-झरती, नदी-नाला आदि सामुदायिक जमीन की, खरीद-फरोक्त के कारण भारी संख्या में अब  बाहरी सामुदाय का प्रावेश एवं कब्जा होगा। 

3-आदिवासी ग्रामीण इलाके में शहरी आबादी के प्रवेश स,े प्रकृतिक जीवनशैली से जुडे आदिवासी-मूलवासी किसान, दलित समुदाय का परंपरागत सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, आधार टूट जाएगा।

4-ड्रोन सर्वे पूरा होने के साथ ही गांव का नया डिजिटल नक्सा बनेग। इस नये डिजिटल  नक्सा और 1932 के खतियान कोई मेल नहीं रहेगा। ताजा उदाहरण है -आॅनलाइन डिजिटल खतियान और 1932 का मैनुअल-आॅफलाइन खतियान। तब निश्चित है कि नया डिजिटल नक्या बनने के साथ ही आदिवासी-मुलवासी समुदाय को, समुदायिक अधिकार देने के साथ एैतिहासक पहचान देने वाला 1932 का खतियान अस्तित्व विहीन हो जाएगा।

5-परिणामस्वरूप आदिवासी समुदाय के अधिकार, सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, पांचवी अनूसूची, मुंडारी खूंटकटी अधिकार, कोल्हान क्षेत्र का विल्किनसन रूल्स स्वता कमजोर हो जाएगा।

6-ड्रोन से सर्वे के बाद में जमीन का मालिकाना हक क्लेम-दावा करने के लिए ग्रामीण आदिवासी, मूलवासी, दलित समुदाय से, अपना जमीन संबंधित संभवता कई तरह के दस्वावेज मागे जाएंगें, भोले-भाले ग्रामीण दस्तावेज पेस नहीं कर पायेगें-ऐसे परिस्थिति में जमीन उनके हाथ से निकल जाएगा। 

7-ग्रामीण इलाके में बढ़ते शहरी आबादी के कारण ग्रामीण कृषि अर्थव्यवस्था, वन व्यवस्था, जल स्त्रोत एवं पर्यावरणीय व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। 

8- ग्रामीण आदिवासी इलाके में बड़ी संख्या में बाहरी आबादी के प्रवेश होने से, राज्य में आदिवासी आबादी तेजी से घटेगी, परिणाम स्वरूप आदिवासी सामुदाय की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं राजनीतिक शक्ति स्वतः कमजोर होगा। 

फोरेस्ट राईट एक्ट के तहत सरकारी व्यवस्था के सामने दावा साबित नहीं कर पाने के कारण, परंपरागत वासिदे कानून का लाभ नहीं ले पा रहे-इसका ताजा उदाहरण-

1-विगत सुप्रीम कोट का फैसला-जिसमें झारखंड से 1,07,187 लोगों ने दावा पेस किया गया, इसमें 27,809 आवेदकों के दावापत्र रदद करने का फैसला दिया था। कारण कि लोगों ने अपना दावा साबित नहीं कर पाया। इससे बहुत सारी बातों का समझा जा सकता है। 


2-जमीन पर कब्जा ग्रामीणों के हाथ में है, जोत-कोड कर रहे हैं, पहले जमीन का रसीद काटता था-अब रसीद काटना बंद कर दिया- 

झारखंड में भूमि सुधार कानून के तहत राज्य में लाखों छोटे किसानों को एक-एक एकड, कहीं कहीं दो-तीन एकड़ तक जमीन बंदोबस्त कर दिया गया था। लोग इस जमीन का मजगूजारी रसीद भी काटते थे, लेकिन अब कई इलाके में इस जमीन का रसीद काटना बंद कर दिया गया, और किसानों को उक्त जमीन की बंदोबस्ती संबंधित कई तरह के कागजात मांगें जाते हैं।  लोग अधिकारियों के समुख कागजात पेस नहीं कर पा रहे हैं, इस कारण ग्रामीण जमीन का रसीद भी नहीं काट पा रहे हैं। 

3-जमीन आॅनलाइन व्यवस्था में भारी गड़बडी-

राज्य में जमीन संबंधित काम-कागज 2014-15 तक आॅफलाइन हो रहा था। जमीन मालिक आॅफलाइन रसीद हल्का करमचारी द्वारा कटवा रहे थे। आॅनलाइन व्यवस्था होने के बाद जमीन का खतियान में भारी गडबडियां हो गयी हैं। किसी का खतियान में रैयत का नाम गलत है, खाता नबंर गलत है, प्लोट नंबर गलत है, जमीन का रकबा भी गलत है। इसको सुधरवाने के लिए लोग अमीन के पास, सीओ के पास दौडते दौडते थक रहे हैं-कोई कार्रवाई नहीं हो रहा है। 

4-आॅनलाइन खतियान में गलती के कारण-बहुत से किसान जमीन का मलगुजारी रसीद 4-5 सालों से नहीं कटवा पा रहे हैं। 

इस तरह से आदिवासी -मुलवासी, किसान, दलित समाज से जमीन निकल जाएगा। यही नहीं समुदाय का सुरक्षा कवच सीएनटी, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून में मिला अधिकार मुंडारी खूंटकटी अधिकार कागजों में रह जाएगा, लेकिन वास्तविक अधिकार स्वतः खत्म हो जाएगा।

उपरोक्त परिणामों से जमीन का लूट बढेगा। परिवार और समाज में अशांति बढ़ेगा। इससे उत्पन्न परिस्थ्यिों से विस्थापन, पलायन, बेरोजगारी, भूख, भूमिहीन, अस्वस्थ्य, सूखा-आकाल एवं प्रदूषण जैसे महामारी का ही सामना करना पड़ेगा। 

 हमारी मांगें हैं-

1-केंन्द्र सरकार की नयी स्वामीत्व योजना /प्रोपटी/संपति कार्ड बनाने के लिए आदिवासी बहुल खूंटी जिला में परंपरागत ग्राम सभी एवं आदिवासी किसान संगठनों ने  ड्रोन द्वारा जमीन का सर्वे नहीं करने की मांग कर रहे हें, इसलिए बजरन किया गया सर्वे का रदद किया जाए साथ ही तत्काल सर्वे को रोका जाए। 

2-1932 के खतियान को यथावत कडा़ई से लागू किया जाए।  

3-प्रा्रपाॅटी काडगर्् नहीं -सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटकटी एवं 5वीं अनुसूची में प्रावधान ग्राम सभा के अधिकारों को कड़ाई से लागू किया जाएं एवं आदिवासी-मूलवासी समुदाय के सामुदायिक अधिकारों को संरक्षित किया जाए। 

4-भूमि बैंक को रदद किया जाए-रघुवर सरकार ने गैर मजरूआ आम, गैर मजरूआ खास जमीन, को भूमि बैंक में शमिल किया गया है,  इस भूमि बैंक को रदद किया जाए।

5-क्षेत्र के सभी जलस्त्रोतों, नदी-नाला का पानी लिफट ऐरिगेशन के तहत पाइप लाइन द्वारा किसानों के खेतों तक कृषि विकास के लिए पहुंचाया जाए।

6-आॅनलाइन जमीन के दस्तावेजों का हो रहा छेड़-छाड़ एवं जमीन का हेरा-फेरी बंद किया जाए।

             निवेदक-आदिवासी-मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच

     मुंडारी खूंटकटी परिषद, आदिवासी एकता मंच ं

              संयुक्त पड़हा समिति एव सभी ग्राम सभाए


Wednesday, April 6, 2022

 सेवा में,

माननीय महामहिम राज्यपाल                    पत्रांक-01/21

झारखंड सरकार                              दिनांक-14/12/2022

विषय- केंन्द्र की मोदी सरकार द्वारा काॅरपोरेट घराणों एवं पूंजिपतियों के लिए लायी जा रही स्वामित्व योजना के तहत प्रोपटी/ संपति कार्ड नहीं चाहिए

पांचवी अनुसूचि क्षेत्र सह सीएनटी एक्ट क्षेत्र के आदिवासी बहुल खॅटी जिला में ग्रामसभाओं को सही जानकारी बिना दिये,  साथ ही ग्रामसभाओं की सहमति के बिना ड्रोन से जमीन का सर्वे जबरन किया जा रहा है, को रोका जाए। 

                     एवं

आदिवासी-मूलवासी किसानों के परंपरागत अधिकार सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटी अधिकार, हो इलाके के विलकिनसन रूल्स एवं 5वीं अनुसूचि को कड़ाई से लागू किया जाए। 

महाशय

इतिहास गवाह है कि झारखंड में जल, जंगल, जमीन को आबाद करने का आदिवासी-मूलवासी किसान समुदाय का अपना गैरवशाली इतिहास है। आदिवासी समुदाय खतरनाक जंगली जानवरों से लड़ कर जंगल-झाड़ को साफ कर गाॅंव बसाया, जमीन आबाद किया है। आदिवासी-मूलवासी किसान समुदाय जंगल, नदी, पहाडों की गोद में ही अपने इतिहास, भाषा-संास्कृति, पहचान के साथ विकसित होता है। 

प्रकृतिक-पर्यावरण जीवन मूल्य के  साथ आदिवासी -मूलवासी समुदाय के ताना-बाना को संरक्षित और विकसित करने के लिए ही छोटानापुर काश्तकारी अधिनियम 1908, संताल परगना काश्तकारी अधिनियम 1949 बनाया गया है। साथ ही भारतीय संविधान में पेसा कानून 1996 एवं पांचवी अनुसूचि में आदिवासी समुदाय के जल, जंगल, जमीन पर इनके खूंटकटी अधिकार सहित अन्य परंपरागत अधिकारों का प्रावधान किया गया है। 

सर्व विदित है कि आदिवासी समुदाय के जंगल, जमीन, सामाजिक-संस्कृतिक, आर्थिक आधार को संरक्षित एवं विकसित करने के लिए भारतीय संविधान में विशेष कानूनी प्रावधान किये गये हैं। सीएनटी, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून में विशेष प्रावधान है कि गांव के सीमा के भीतर एवं बाहर जो प्रकृतिक संसाधन है जैसे गिटी, मिटी, बालू, झाड़-जंगल, जमीन, नदी-झरना, सभी गांव की सामुदायिक संपति है। इस पर क्षेत्र के ग्रामीणों का सामुदायिक अधिकार है। जो खतियान और विपेज नोट में भी दर्ज है। 

ये सभी सामुदायिक अधिकार को सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून, कोल्हान क्षेत्र के लिए विलकिनसन रूल, मुंडारी खूुंटकटी अधिकार में कानूनी मन्यता मिला हुआ है। ये सभी अधिकार आदिवासी समुदाय के लंबे संघर्ष और शहादत के बाद मिला है। खतियान एवं वीलेज नोट में दर्ज सामुदायिक एवं खूंटकटी अधिकार को बचाना जगरूक नागरिकों के साथ राज्य की कल्याणकारी सरकार की भी जिम्मेदारी है।

वर्तमान में लाया जा रहा केंन्द्र सरकार की स्वामित्व योजना का उदेश्य भारत के लिए एक एकीकृत संपति सत्यापन -समाधान करना है। 

इसके तहत व्यक्तिगत ग्रामीण संपति के सीमांकन के अलावा, अन्य ग्राम पंचायत और सामुदायिक संपत्ति जैसे गांव की सड़कें, तालाव, नहरें, खुले स्थान, स्कूल, आंगनबाड़ी, स्वास्क्य उपकेंन्द्र आदि का भी सर्वेक्षण किया जाएगा और जीआईएस मानचित्र बनाए जाएंगे। देखें-पेज-एक-पारा 2(स्वमित्त योजना के कार्यान्वयन के लिए रूपलेखा, पंचायती राज मंत्रालय भारत सरकार)

जबकि खूंटी जिला के गांवों में ड्रोन से सर्वे किया जा रहा है-अधिकारियों से सवाल करने पर कहते हैं-सिर्फ घर का सर्वे हो रहा है-जो कई सवालों को खड़ा कर रहा है। क्या ड्रोन से घर का केवल सर्वे होगा? या फिर गांव की सारी संपत्ति का?। 

विदित हो कि पूरे राज्य के आदिवासी-मूलवासी जंगल-जमीन के संबंध में कई समस्याओं से जुझ रहे हैं-2014 के बाद जो भूमि बैंक बना, आखिर किस नीति के तहत बना? क्या सीएनटी, एसपीटी एक्ट में संशोधन कर लाया गया? या पांचवी अनूसूचि के पेसा कानून में संशोधन कर भूमि बैंक बनाया गया? इस सवाल का जवाब कौन देना? राज्य का आदिवासी-मूलवासी समुादाय जानना चाहती है। 

संपति कार्ड/प्राॅपर्टी कार्ड लागू होने से आदिवासी इलाके में निम्नलिखित खतरे भविष्य में होगें। 

1- परंपरागत ग्रामीण आदिवासी इलाके का डेमोग्राफी -भौगोलिक एरिया पूरी तरह बदल जाएगा-कारण 2016 में ही ग्रामीण इलाके के गैरमरूआ आम भूमि, गैरमरूआ खास, जंगल-झाडी, नदी-नाला, सरना-मसना, ससनदीरी, अखड़ा जैसे सामुदायिक भूमि को चुन-चुन कर भूमि बैंक में डाल दिया गया, जिसका आॅनलाइन खरीद-फरोक्त चरम पर हो रहा है। 

2-5 वीं अनुसूचि क्षेत्र, सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटकटी एवं विलकिसन रूल्स के तहत गांव के सीमा के भीतर के गैर मजरूआ आम, खास, जंगल-झाड़ी, परती-झरती, नदी-नाला आदि सामुदायिक जमीन की, खरीद-फरोक्त के कारण भारी संख्या में अब  बाहरी सामुदाय का प्रावेश एवं कब्जा होगा। 

3-आदिवासी ग्रामीण इलाके में शहरी आबादी के प्रवेश स,े प्रकृतिक जीवनशैली से जुडे आदिवासी-मूलवासी किसान, दलित समुदाय का परंपरागत सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, आधार टूट जाएगा।

4-ड्रोन सर्वे पूरा होने के साथ ही गांव का नया डिजिटल नक्सा बनेग। इस नये डिजिटल  नक्सा और 1932 के खतियान कोई मेल नहीं रहेगा। ताजा उदाहरण है -आॅनलाइन डिजिटल खतियान और 1932 का मैनुअल-आॅफलाइन खतियान। तब निश्चित है कि नया डिजिटल नक्या बनने के साथ ही आदिवासी-मुलवासी समुदाय को, समुदायिक अधिकार देने के साथ एैतिहासक पहचान देने वाला 1932 का खतियान अस्तित्व विहीन हो जाएगा।

5-परिणामस्वरूप आदिवासी समुदाय के अधिकार, सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, पांचवी अनूसूची, मुंडारी खूंटकटी अधिकार, कोल्हान क्षेत्र का विल्किनसन रूल्स स्वता कमजोर हो जाएगा।

6-ड्रोन से सर्वे के बाद में जमीन का मालिकाना हक क्लेम-दावा करने के लिए ग्रामीण आदिवासी, मूलवासी, दलित समुदाय से, अपना जमीन संबंधित संभता कई तरह के दस्वावेज मागे जाएंगें, भोले-भाले ग्रामीण दस्तावेज पेस नहीं कर पायेगें-ऐसे परिस्थिति में जमीन उनके हाथ से निकल जाएगा। 

7-ग्रामीण इलाके में बढ़ते शहरी आबादी के कारण ग्रामीण कृषि अर्थव्यवस्था, वन व्यवस्था, जल स्त्रोत एवं पर्यावरणीय व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। 

8- ग्रामीण आदिवासी इलाके में बड़ी संख्या में बाहरी आबादी के प्रवेश होने से, राज्य में आदिवासी आबादी तेजी से घटेगी, परिणाम स्वरूप आदिवासी सामुदाय की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं राजनीतिक शक्ति स्वतः कमजोर होगा। 

फोरेस्ट राईट एक्ट के तहत सरकारी व्यवस्था के सामने दावा साबित नहीं कर पाने के कारण, परंपरागत वासिदे कानून का लाभ नहीं ले पा रहे-इसका ताजा उदाहरण-

1-विगत सुप्रीम कोट का फैसला-जिसमें झारखंड से 1,07,187 लोगों ने दावा पेस किया गया, इसमें 27,809 आवेदकों के दावापत्र रदद करने का फैसला दिया था। कारण कि लोगों ने अपना दावा साबित नहीं कर पाया। इससे बहुत सारी बातों का समझा जा सकता है। 


2-जमीन पर कब्जा ग्रामीणों के हाथ में है, जोत-कोड कर रहे हैं, पहले जमीन का रसीद काटता था-अब रसीद काटना बंद कर दिया- 

झारखंड में भूमि सुधार कानून के तहत राज्य में लाखों छोटे किसानों को एक-एक एकड, कहीं कहीं दो-तीन एकड़ तक जमीन बंदोबस्त कर दिया गया था। लोग इस जमीन का मजगूजारी रसीद भी काटते थे, लेकिन अब कई इलाके में इस जमीन का रसीद काटना बंद कर दिया गया, और किसानों को उक्त जमीन की बंदोबस्ती संबंधित कई तरह के कागजात मांगें जाते हैं।  लोग अधिकारियों के समुख कागजात पेस नहीं कर पा रहे हैं, इस कारण ग्रामीण जमीन का रसीद भी नहीं काट पा रहे हैं। 

3-जमीन आॅनलाइन व्यवस्था में भारी गड़बडी-

राज्य में जमीन संबंधित काम-कागज 2014-15 तक आॅफलाइन हो रहा था। जमीन मालिक आॅफलाइन रसीद हल्का करमचारी द्वारा कटवा रहे थे। आॅनलाइन व्यवस्था होने के बाद जमीन का खतियान में भारी गडबडियां हो गयी हैं। किसी का खतियान में रैयत का नाम गलत है, खाता नबंर गलत है, प्लोट नंबर गलत है, जमीन का रकबा भी गलत है। इसको सुधरवाने के लिए लोग अमीन के पास, सीओ के पास दौडते दौडते थक रहे हैं-कोई कार्रवाई नहीं हो रहा है। 

4-आॅनलाइन खतियान में गलती के कारण-बहुत से किसान जमीन का मलगुजारी रसीद 4-5 सालों से नहीं कटवा पा रहे हैं। 

इस तरह से आदिवासी -मुलवासी, किसान, दलित समाज से जमीन निकल जाएगा। यही नहीं समुदाय का सुरक्षा कवच सीएनटी, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून में मिला अधिकार मुंडारी खूंटकटी अधिकार कागजों में रह जाएगा, लेकिन वास्तविक अधिकार स्वतः खत्म हो जाएगा।

उपरोक्त परिणामों से जमीन का लूट बढेगा। परिवार और समाज में अशांति बढ़ेगा। इससे उत्पन्न परिस्थ्यिों से विस्थापन, पलायन, बेरोजगारी, भूख, भूमिहीन, अस्वस्थ्य, सूखा-आकाल एवं प्रदूषण जैसे महामारी का ही सामना करना पड़ेगा। 

 हमारी मांगें हैं-

1-केंन्द्र सरकार की नयी स्वामीत्व योजना /प्रोपटी/संपति कार्ड बनाने के लिए आदिवासी बहुल खूंटी जिला में परंपरागत ग्राम सभी एवं आदिवासी किसान संगठनों के मांग को अनसुनी करके, ड्रोन द्वारा जमीन का सर्वे किया जा रहा है, को रोका जाए। 

2-मोदी सरकार द्वारा काॅरपोरेट घराणों एवं पूंजिपतियों के लिए लाया जा रहा स्वामित्व योजना को झारखंड में लागू नहीं किया जाए। साथ ही इस योजना को झारखंड में लागू नहीं किया जाए। 

3-सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटकटी एवं 5वीं अनुसूची में प्रावधान ग्राम सभा के अधिकारों को कड़ाई से लागू किया जाएं एवं आदिवासी-मूलवासी समुदाय के सामुदायिक अधिकारों को संरक्षित किया जाए। 

4-भूमि बैंक को रदद किया जाए-रघुवर सरकार ने गैर मजरूआ आम, गैर मजरूआ खास जमीन, को भूमि बैंक में शमिल किया गया है,  इस भूमि बैंक को रदद किया जाए।

5-क्षेत्र के सभी जलस्त्रोतों, नदी-नाला का पानी लिफट ऐरिगेशन के तहत पाइप लाइन द्वारा किसानों के खेतों तक कृषि विकास के लिए पहुंचाया जाए।

6-आॅनलाइन जमीन के दस्तावेजों का हो रहा छेड़-छाड़ एवं जमीन का हेरा-फेरी बंद किया जाए।

             निवेदक-आदिवासी-मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच

               मुंडारी खूंटकटी परिषद

              आदिवासी एकता मंच एव सभी ग्राम सभाएं

                 संर्पक Dayamani Barla , तुरतन तोपनो, हादु तोपनो, दयाल कोनगाड़ी, सिमोन कच्छप, फुलचंद मुंण्डा, एतो मुंण्डा, मानसिंह मुंण्डा, सुचित सांगा, संदीप सांगा, सुलेमान तोपनो, आनंद तोपनो, सुलामी तोपनो, राजू लोहरा, ज्वालन तोपनों, शिवशरण मित्र, रेंघवा मुंण्डा।         


 सेवा में,

माननीय  मुख्यमंत्री

श्री हेमंत सोरेन                              पत्रांक-01/21

झारखंड सरकार                              दिनांक-14/12/2022

विषय- केंन्द्र की मोदी सरकार द्वारा काॅरपोरेट घराणों एवं पूंजिपतियों के लिए लायी जा रही स्वामित्व योजना के तहत प्रोपटी/ संपति कार्ड नहीं चाहिए-पांचवी अनुसूचि क्षेत्र सह सीएनटी एक्ट क्षेत्र के आदिवासी बहुल खॅटी जिला में ग्रामसभाओं को सही जानकारी बिना दिये,  साथ ही ग्रामसभाओं की सहमति के बिना ड्रोन से जमीन का सर्वे किया जा रहा है, को रोका जाए। 

                     एवं

आदिवासी-मूलवासी किसानों के परंपरागत अधिकार सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटी अधिकार, हो इलाके के विलकिनसन रूल्स एवं 5वीं अनुसूचि को कड़ाई से लागू किया जाए। 

महाशय

इतिहास गवाह है कि झारखंड में जल, जंगल, जमीन को आबाद करने का आदिवासी-मूलवासी किसान समुदाय का अपना गैरवशाली इतिहास है। आदिवासी समुदाय खतरनाक जंगली जानवरों से लड़ कर जंगल-झाड़ को साफ कर गाॅंव बसाया, जमीन आबाद किया है। आदिवासी-मूलवासी किसान समुदाय जंगल, नदी, पहाडों की गोद में ही अपने इतिहास, भाषा-संास्कृति, पहचान के साथ विकसित होता है। 

प्रकृतिक-पर्यावरण जीवन मूल्य के  साथ आदिवासी -मूलवासी समुदाय के ताना-बाना को संरक्षित और विकसित करने के लिए ही छोटानापुर काश्तकारी अधिनियम 1908, संताल परगना काश्तकारी अधिनियम 1949 बनाया गया है। साथ ही भारतीय संविधान में पेसा कानून 1996 एवं पांचवी अनुसूचि में आदिवासी समुदाय के जल, जंगल, जमीन पर इनके खूंटकटी अधिकार सहित अन्य परंपरागत अधिकारों का प्रावधान किया गया है। 

सर्व विदित है कि आदिवासी समुदाय के जंगल, जमीन, सामाजिक-संस्कृतिक, आर्थिक आधार को संरक्षित एवं विकसित करने के लिए भारतीय संविधान में विशेष कानूनी प्रावधान किये गये हैं। सीएनटी, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून में विशेष प्रावधान है कि गांव के सीमा के भीतर एवं बाहर जो प्रकृतिक संसाधन है जैसे गिटी, मिटी, बालू, झाड़-जंगल, जमीन, नदी-झरना, सभी गांव की सामुदायिक संपति है। इस पर क्षेत्र के ग्रामीणों का सामुदायिक अधिकार है। जो खतियान और विपेज नोट में भी दर्ज है। 

ये सभी सामुदायिक अधिकार को सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून, कोल्हान क्षेत्र के लिए विलकिनसन रूल, मुंडारी खूुंटकटी अधिकार में कानूनी मन्यता मिला हुआ है। ये सभी अधिकार आदिवासी समुदाय के लंबे संघर्ष और शहादत के बाद मिला है। खतियान एवं वीलेज नोट में दर्ज सामुदायिक एवं खूंटकटी अधिकार को बचाना जगरूक नागरिकों के साथ राज्य की कल्याणकारी सरकार की भी जिम्मेदारी है।

वर्तमान में लाया जा रहा केंन्द्र सरकार की स्वामित्व योजना का उदेश्य भारत के लिए एक एकीकृत संपति सत्यापन -समाधान करना है। 

इसके तहत व्यक्तिगत ग्रामीण संपति के सीमांकन के अलावा, अन्य ग्राम पंचायत और सामुदायिक संपत्ति जैसे गांव की सड़कें, तालाव, नहरें, खुले स्थान, स्कूल, आंगनबाड़ी, स्वास्क्य उपकेंन्द्र आदि का भी सर्वेक्षण किया जाएगा और जीआईएस मानचित्र बनाए जाएंगे। देखें-पेज-एक-पारा 2(स्वमित्त योजना के कार्यान्वयन के लिए रूपलेखा, पंचायती राज मंत्रालय भारत सरकार)

जबकि खूंटी जिला के गांवों में ड्रोन से सर्वे किया जा रहा है-अधिकारियों से सवाल करने पर कहते हैं-सिर्फ घर का सर्वे हो रहा है-जो कई सवालों को खड़ा कर रहा है। क्या ड्रोन से घर का केवल सर्वे होगा? या फिर गांव की सारी संपत्ति का?। 

विदित हो कि पूरे राज्य के आदिवासी-मूलवासी जंगल-जमीन के संबंध में कई समस्याओं से जुझ रहे हैं-2014 के बाद जो भूमि बैंक बना, आखिर किस नीति के तहत बना? क्या सीएनटी, एसपीटी एक्ट में संशोधन कर लाया गया? या पांचवी अनूसूचि के पेसा कानून में संशोधन कर भूमि बैंक बनाया गया? इस सवाल का जवाब कौन देना? राज्य का आदिवासी-मूलवासी समुादाय जानना चाहती है। 

संपति कार्ड/प्राॅपर्टी कार्ड लागू होने से आदिवासी इलाके में निम्नलिखित खतरे भविष्य में होगें। 

1- परंपरागत ग्रामीण आदिवासी इलाके का डेमोग्राफी -भौगोलिक एरिया पूरी तरह बदल जाएगा-कारण 2016 में ही ग्रामीण इलाके के गैरमरूआ आम भूमि, गैरमरूआ खास, जंगल-झाडी, नदी-नाला, सरना-मसना, ससनदीरी, अखड़ा जैसे सामुदायिक भूमि को चुन-चुन कर भूमि बैंक में डाल दिया गया, जिसका आॅनलाइन खरीद-फरोक्त चरम पर हो रहा है। 

2-5 वीं अनुसूचि क्षेत्र, सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटकटी एवं विलकिसन रूल्स के तहत गांव के सीमा के भीतर के गैर मजरूआ आम, खास, जंगल-झाड़ी, परती-झरती, नदी-नाला आदि सामुदायिक जमीन की, खरीद-फरोक्त के कारण भारी संख्या में अब  बाहरी सामुदाय का प्रावेश एवं कब्जा होगा। 

3-आदिवासी ग्रामीण इलाके में शहरी आबादी के प्रवेश स,े प्रकृतिक जीवनशैली से जुडे आदिवासी-मूलवासी किसान, दलित समुदाय का परंपरागत सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, आधार टूट जाएगा।

4-ड्रोन सर्वे पूरा होने के साथ ही गांव का नया डिजिटल नक्सा बनेग। इस नये डिजिटल  नक्सा और 1932 के खतियान कोई मेल नहीं रहेगा। ताजा उदाहरण है -आॅनलाइन डिजिटल खतियान और 1932 का मैनुअल-आॅफलाइन खतियान। तब निश्चित है कि नया डिजिटल नक्या बनने के साथ ही आदिवासी-मुलवासी समुदाय को, समुदायिक अधिकार देने के साथ एैतिहासक पहचान देने वाला 1932 का खतियान अस्तित्व विहीन हो जाएगा।

5-परिणामस्वरूप आदिवासी समुदाय के अधिकार, सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, पांचवी अनूसूची, मुंडारी खूंटकटी अधिकार, कोल्हान क्षेत्र का विल्किनसन रूल्स स्वता कमजोर हो जाएगा।

6-ड्रोन से सर्वे के बाद में जमीन का मालिकाना हक क्लेम-दावा करने के लिए ग्रामीण आदिवासी, मूलवासी, दलित समुदाय से, अपना जमीन संबंधित संभता कई तरह के दस्वावेज मागे जाएंगें, भोले-भाले ग्रामीण दस्तावेज पेस नहीं कर पायेगें-ऐसे परिस्थिति में जमीन उनके हाथ से निकल जाएगा। 

7-ग्रामीण इलाके में बढ़ते शहरी आबादी के कारण ग्रामीण कृषि अर्थव्यवस्था, वन व्यवस्था, जल स्त्रोत एवं पर्यावरणीय व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। 

8- ग्रामीण आदिवासी इलाके में बड़ी संख्या में बाहरी आबादी के प्रवेश होने से, राज्य में आदिवासी आबादी तेजी से घटेगी, परिणाम स्वरूप आदिवासी सामुदाय की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं राजनीतिक शक्ति स्वतः कमजोर होगा। 

फोरेस्ट राईट एक्ट के तहत सरकारी व्यवस्था के सामने दावा साबित नहीं कर पाने के कारण, परंपरागत वासिदे कानून का लाभ नहीं ले पा रहे-इसका ताजा उदाहरण-

1-विगत सुप्रीम कोट का फैसला-जिसमें झारखंड से 1,07,187 लोगों ने दावा पेस किया गया, इसमें 27,809 आवेदकों के दावापत्र रदद करने का फैसला दिया था। कारण कि लोगों ने अपना दावा साबित नहीं कर पाया। इससे बहुत सारी बातों का समझा जा सकता है। 


2-जमीन पर कब्जा ग्रामीणों के हाथ में है, जोत-कोड कर रहे हैं, पहले जमीन का रसीद काटता था-अब रसीद काटना बंद कर दिया- 

झारखंड में भूमि सुधार कानून के तहत राज्य में लाखों छोटे किसानों को एक-एक एकड, कहीं कहीं दो-तीन एकड़ तक जमीन बंदोबस्त कर दिया गया था। लोग इस जमीन का मजगूजारी रसीद भी काटते थे, लेकिन अब कई इलाके में इस जमीन का रसीद काटना बंद कर दिया गया, और किसानों को उक्त जमीन की बंदोबस्ती संबंधित कई तरह के कागजात मांगें जाते हैं।  लोग अधिकारियों के समुख कागजात पेस नहीं कर पा रहे हैं, इस कारण ग्रामीण जमीन का रसीद भी नहीं काट पा रहे हैं। 

3-जमीन आॅनलाइन व्यवस्था में भारी गड़बडी-

राज्य में जमीन संबंधित काम-कागज 2014-15 तक आॅफलाइन हो रहा था। जमीन मालिक आॅफलाइन रसीद हल्का करमचारी द्वारा कटवा रहे थे। आॅनलाइन व्यवस्था होने के बाद जमीन का खतियान में भारी गडबडियां हो गयी हैं। किसी का खतियान में रैयत का नाम गलत है, खाता नबंर गलत है, प्लोट नंबर गलत है, जमीन का रकबा भी गलत है। इसको सुधरवाने के लिए लोग अमीन के पास, सीओ के पास दौडते दौडते थक रहे हैं-कोई कार्रवाई नहीं हो रहा है। 

4-आॅनलाइन खतियान में गलती के कारण-बहुत से किसान जमीन का मलगुजारी रसीद 4-5 सालों से नहीं कटवा पा रहे हैं। 

इस तरह से आदिवासी -मुलवासी, किसान, दलित समाज से जमीन निकल जाएगा। यही नहीं समुदाय का सुरक्षा कवच सीएनटी, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून में मिला अधिकार मुंडारी खूंटकटी अधिकार कागजों में रह जाएगा, लेकिन वास्तविक अधिकार स्वतः खत्म हो जाएगा।

उपरोक्त परिणामों से जमीन का लूट बढेगा। परिवार और समाज में अशांति बढ़ेगा। इससे उत्पन्न परिस्थ्यिों से विस्थापन, पलायन, बेरोजगारी, भूख, भूमिहीन, अस्वस्थ्य, सूखा-आकाल एवं प्रदूषण जैसे महामारी का ही सामना करना पड़ेगा। 

 हमारी मांगें हैं-

1-केंन्द्र सरकार की नयी स्वामीत्व योजना /प्रोपटी/संपति कार्ड बनाने के लिए आदिवासी बहुल खूंटी जिला में परंपरागत ग्राम सभी एवं आदिवासी किसान संगठनों के मांग को अनसुनी करके, ड्रोन द्वारा जमीन का सर्वे किया जा रहा है, को रोका जाए। 

2-मोदी सरकार द्वारा काॅरपोरेट घराणों एवं पूंजिपतियों के लिए लाया जा रहा स्वामित्व योजना को झारखंड में लागू नहीं किया जाए। साथ ही इस योजना को झारखंड में लागू नहीं किया जाए। 

3-सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटकटी एवं 5वीं अनुसूची में प्रावधान ग्राम सभा के अधिकारों को कड़ाई से लागू किया जाएं एवं आदिवासी-मूलवासी समुदाय के सामुदायिक अधिकारों को संरक्षित किया जाए। 

4-भूमि बैंक को रदद किया जाए-रघुवर सरकार ने गैर मजरूआ आम, गैर मजरूआ खास जमीन, को भूमि बैंक में शमिल किया गया है,  इस भूमि बैंक को रदद किया जाए।

5-क्षेत्र के सभी जलस्त्रोतों, नदी-नाला का पानी लिफट ऐरिगेशन के तहत पाइप लाइन द्वारा किसानों के खेतों तक कृषि विकास के लिए पहुंचाया जाए।

6-आॅनलाइन जमीन के दस्तावेजों का हो रहा छेड़-छाड़ एवं जमीन का हेरा-फेरी बंद किया जाए।

             निवेदक-आदिवासी-मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच

               मुंडारी खूंटकटी परिषद

              आदिवासी एकता मंच एव सभी ग्राम सभाएं

         

संर्पक.दयामनी बरला, तुरतन तोपनो, हादु तोपनो, दयाल कोनगाड़ी, सिमोन कच्छपए,फुलचंद मुंण्डा,एतो मुंण्डा, मानसिंह मुंण्डा, सुचित सांगा,संदीप सांगा, सुलेमान तोपनो, आनंद तोपनो, सुलामी तोपनो, राजू लोहरा, ज्वालन तोपनों, शिवशरण मित्र] रेंघवा मुंण्डा।         


 सेवा में,

माननीय ग्रामीण विकास मंत्री

श्री आलमगीर आलम                          पत्रांक-01/21

झारखंड सरकार                              दिनांक-14/12/2022

विषय- केंन्द्र की मोदी सरकार द्वारा काॅरपोरेट घराणों एवं पूंजिपतियों के लिए लायी जा रही स्वामित्व योजना के तहत प्रोपटी/ संपति कार्ड नहीं चाहिए-पांचवी अनुसूचि क्षेत्र सह सीएनटी एक्ट क्षेत्र के आदिवासी बहुल खॅटी जिला में ग्रामसभाओं को सही जानकारी बिना दिये,  साथ ही ग्रामसभाओं की सहमति के बिना ड्रोन से जमीन का सर्वे किया जा रहा है, को रोका जाए। 

                     एवं

आदिवासी-मूलवासी किसानों के परंपरागत अधिकार सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटी अधिकार, हो इलाके के विलकिनसन रूल्स एवं 5वीं अनुसूचि को कड़ाई से लागू किया जाए। 

महाशय

इतिहास गवाह है कि झारखंड में जल, जंगल, जमीन को आबाद करने का आदिवासी-मूलवासी किसान समुदाय का अपना गैरवशाली इतिहास है। आदिवासी समुदाय खतरनाक जंगली जानवरों से लड़ कर जंगल-झाड़ को साफ कर गाॅंव बसाया, जमीन आबाद किया है। आदिवासी-मूलवासी किसान समुदाय जंगल, नदी, पहाडों की गोद में ही अपने इतिहास, भाषा-संास्कृति, पहचान के साथ विकसित होता है। 

प्रकृतिक-पर्यावरण जीवन मूल्य के  साथ आदिवासी -मूलवासी समुदाय के ताना-बाना को संरक्षित और विकसित करने के लिए ही छोटानापुर काश्तकारी अधिनियम 1908, संताल परगना काश्तकारी अधिनियम 1949 बनाया गया है। साथ ही भारतीय संविधान में पेसा कानून 1996 एवं पांचवी अनुसूचि में आदिवासी समुदाय के जल, जंगल, जमीन पर इनके खूंटकटी अधिकार सहित अन्य परंपरागत अधिकारों का प्रावधान किया गया है। 

सर्व विदित है कि आदिवासी समुदाय के जंगल, जमीन, सामाजिक-संस्कृतिक, आर्थिक आधार को संरक्षित एवं विकसित करने के लिए भारतीय संविधान में विशेष कानूनी प्रावधान किये गये हैं। सीएनटी, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून में विशेष प्रावधान है कि गांव के सीमा के भीतर एवं बाहर जो प्रकृतिक संसाधन है जैसे गिटी, मिटी, बालू, झाड़-जंगल, जमीन, नदी-झरना, सभी गांव की सामुदायिक संपति है। इस पर क्षेत्र के ग्रामीणों का सामुदायिक अधिकार है। जो खतियान और विपेज नोट में भी दर्ज है। 

ये सभी सामुदायिक अधिकार को सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून, कोल्हान क्षेत्र के लिए विलकिनसन रूल, मुंडारी खूुंटकटी अधिकार में कानूनी मन्यता मिला हुआ है। ये सभी अधिकार आदिवासी समुदाय के लंबे संघर्ष और शहादत के बाद मिला है। खतियान एवं वीलेज नोट में दर्ज सामुदायिक एवं खूंटकटी अधिकार को बचाना जगरूक नागरिकों के साथ राज्य की कल्याणकारी सरकार की भी जिम्मेदारी है।

वर्तमान में लाया जा रहा केंन्द्र सरकार की स्वामित्व योजना का उदेश्य भारत के लिए एक एकीकृत संपति सत्यापन -समाधान करना है। 

इसके तहत व्यक्तिगत ग्रामीण संपति के सीमांकन के अलावा, अन्य ग्राम पंचायत और सामुदायिक संपत्ति जैसे गांव की सड़कें, तालाव, नहरें, खुले स्थान, स्कूल, आंगनबाड़ी, स्वास्क्य उपकेंन्द्र आदि का भी सर्वेक्षण किया जाएगा और जीआईएस मानचित्र बनाए जाएंगे। देखें-पेज-एक-पारा 2(स्वमित्त योजना के कार्यान्वयन के लिए रूपलेखा, पंचायती राज मंत्रालय भारत सरकार)

जबकि खूंटी जिला के गांवों में ड्रोन से सर्वे किया जा रहा है-अधिकारियों से सवाल करने पर कहते हैं-सिर्फ घर का सर्वे हो रहा है-जो कई सवालों को खड़ा कर रहा है। क्या ड्रोन से घर का केवल सर्वे होगा? या फिर गांव की सारी संपत्ति का?। 

विदित हो कि पूरे राज्य के आदिवासी-मूलवासी जंगल-जमीन के संबंध में कई समस्याओं से जुझ रहे हैं-2014 के बाद जो भूमि बैंक बना, आखिर किस नीति के तहत बना? क्या सीएनटी, एसपीटी एक्ट में संशोधन कर लाया गया? या पांचवी अनूसूचि के पेसा कानून में संशोधन कर भूमि बैंक बनाया गया? इस सवाल का जवाब कौन देना? राज्य का आदिवासी-मूलवासी समुादाय जानना चाहती है। 

संपति कार्ड/प्राॅपर्टी कार्ड लागू होने से आदिवासी इलाके में निम्नलिखित खतरे भविष्य में होगें। 

1- परंपरागत ग्रामीण आदिवासी इलाके का डेमोग्राफी -भौगोलिक एरिया पूरी तरह बदल जाएगा-कारण 2016 में ही ग्रामीण इलाके के गैरमरूआ आम भूमि, गैरमरूआ खास, जंगल-झाडी, नदी-नाला, सरना-मसना, ससनदीरी, अखड़ा जैसे सामुदायिक भूमि को चुन-चुन कर भूमि बैंक में डाल दिया गया, जिसका आॅनलाइन खरीद-फरोक्त चरम पर हो रहा है। 

2-5 वीं अनुसूचि क्षेत्र, सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटकटी एवं विलकिसन रूल्स के तहत गांव के सीमा के भीतर के गैर मजरूआ आम, खास, जंगल-झाड़ी, परती-झरती, नदी-नाला आदि सामुदायिक जमीन की, खरीद-फरोक्त के कारण भारी संख्या में अब  बाहरी सामुदाय का प्रावेश एवं कब्जा होगा। 

3-आदिवासी ग्रामीण इलाके में शहरी आबादी के प्रवेश स,े प्रकृतिक जीवनशैली से जुडे आदिवासी-मूलवासी किसान, दलित समुदाय का परंपरागत सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, आधार टूट जाएगा।

4-ड्रोन सर्वे पूरा होने के साथ ही गांव का नया डिजिटल नक्सा बनेग। इस नये डिजिटल  नक्सा और 1932 के खतियान कोई मेल नहीं रहेगा। ताजा उदाहरण है -आॅनलाइन डिजिटल खतियान और 1932 का मैनुअल-आॅफलाइन खतियान। तब निश्चित है कि नया डिजिटल नक्या बनने के साथ ही आदिवासी-मुलवासी समुदाय को, समुदायिक अधिकार देने के साथ एैतिहासक पहचान देने वाला 1932 का खतियान अस्तित्व विहीन हो जाएगा।

5-परिणामस्वरूप आदिवासी समुदाय के अधिकार, सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, पांचवी अनूसूची, मुंडारी खूंटकटी अधिकार, कोल्हान क्षेत्र का विल्किनसन रूल्स स्वता कमजोर हो जाएगा।

6-ड्रोन से सर्वे के बाद में जमीन का मालिकाना हक क्लेम-दावा करने के लिए ग्रामीण आदिवासी, मूलवासी, दलित समुदाय से, अपना जमीन संबंधित संभता कई तरह के दस्वावेज मागे जाएंगें, भोले-भाले ग्रामीण दस्तावेज पेस नहीं कर पायेगें-ऐसे परिस्थिति में जमीन उनके हाथ से निकल जाएगा। 

7-ग्रामीण इलाके में बढ़ते शहरी आबादी के कारण ग्रामीण कृषि अर्थव्यवस्था, वन व्यवस्था, जल स्त्रोत एवं पर्यावरणीय व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। 

8- ग्रामीण आदिवासी इलाके में बड़ी संख्या में बाहरी आबादी के प्रवेश होने से, राज्य में आदिवासी आबादी तेजी से घटेगी, परिणाम स्वरूप आदिवासी सामुदाय की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं राजनीतिक शक्ति स्वतः कमजोर होगा। 

फोरेस्ट राईट एक्ट के तहत सरकारी व्यवस्था के सामने दावा साबित नहीं कर पाने के कारण, परंपरागत वासिदे कानून का लाभ नहीं ले पा रहे-इसका ताजा उदाहरण-

1-विगत सुप्रीम कोट का फैसला-जिसमें झारखंड से 1,07,187 लोगों ने दावा पेस किया गया, इसमें 27,809 आवेदकों के दावापत्र रदद करने का फैसला दिया था। कारण कि लोगों ने अपना दावा साबित नहीं कर पाया। इससे बहुत सारी बातों का समझा जा सकता है। 


2-जमीन पर कब्जा ग्रामीणों के हाथ में है, जोत-कोड कर रहे हैं, पहले जमीन का रसीद काटता था-अब रसीद काटना बंद कर दिया- 

झारखंड में भूमि सुधार कानून के तहत राज्य में लाखों छोटे किसानों को एक-एक एकड, कहीं कहीं दो-तीन एकड़ तक जमीन बंदोबस्त कर दिया गया था। लोग इस जमीन का मजगूजारी रसीद भी काटते थे, लेकिन अब कई इलाके में इस जमीन का रसीद काटना बंद कर दिया गया, और किसानों को उक्त जमीन की बंदोबस्ती संबंधित कई तरह के कागजात मांगें जाते हैं।  लोग अधिकारियों के समुख कागजात पेस नहीं कर पा रहे हैं, इस कारण ग्रामीण जमीन का रसीद भी नहीं काट पा रहे हैं। 

3-जमीन आॅनलाइन व्यवस्था में भारी गड़बडी-

राज्य में जमीन संबंधित काम-कागज 2014-15 तक आॅफलाइन हो रहा था। जमीन मालिक आॅफलाइन रसीद हल्का करमचारी द्वारा कटवा रहे थे। आॅनलाइन व्यवस्था होने के बाद जमीन का खतियान में भारी गडबडियां हो गयी हैं। किसी का खतियान में रैयत का नाम गलत है, खाता नबंर गलत है, प्लोट नंबर गलत है, जमीन का रकबा भी गलत है। इसको सुधरवाने के लिए लोग अमीन के पास, सीओ के पास दौडते दौडते थक रहे हैं-कोई कार्रवाई नहीं हो रहा है। 

4-आॅनलाइन खतियान में गलती के कारण-बहुत से किसान जमीन का मलगुजारी रसीद 4-5 सालों से नहीं कटवा पा रहे हैं। 

इस तरह से आदिवासी -मुलवासी, किसान, दलित समाज से जमीन निकल जाएगा। यही नहीं समुदाय का सुरक्षा कवच सीएनटी, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून में मिला अधिकार मुंडारी खूंटकटी अधिकार कागजों में रह जाएगा, लेकिन वास्तविक अधिकार स्वतः खत्म हो जाएगा।

उपरोक्त परिणामों से जमीन का लूट बढेगा। परिवार और समाज में अशांति बढ़ेगा। इससे उत्पन्न परिस्थ्यिों से विस्थापन, पलायन, बेरोजगारी, भूख, भूमिहीन, अस्वस्थ्य, सूखा-आकाल एवं प्रदूषण जैसे महामारी का ही सामना करना पड़ेगा। 

 हमारी मांगें हैं-

1-केंन्द्र सरकार की नयी स्वामीत्व योजना /प्रोपटी/संपति कार्ड बनाने के लिए आदिवासी बहुल खूंटी जिला में परंपरागत ग्राम सभी एवं आदिवासी किसान संगठनों के मांग को अनसुनी करके, ड्रोन द्वारा जमीन का सर्वे किया जा रहा है, को रोका जाए। 

2-मोदी सरकार द्वारा काॅरपोरेट घराणों एवं पूंजिपतियों के लिए लाया जा रहा स्वामित्व योजना को झारखंड में लागू नहीं किया जाए। साथ ही इस योजना को झारखंड में लागू नहीं किया जाए। 

3-सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटकटी एवं 5वीं अनुसूची में प्रावधान ग्राम सभा के अधिकारों को कड़ाई से लागू किया जाएं एवं आदिवासी-मूलवासी समुदाय के सामुदायिक अधिकारों को संरक्षित किया जाए। 

4-भूमि बैंक को रदद किया जाए-रघुवर सरकार ने गैर मजरूआ आम, गैर मजरूआ खास जमीन, को भूमि बैंक में शमिल किया गया है,  इस भूमि बैंक को रदद किया जाए।

5-क्षेत्र के सभी जलस्त्रोतों, नदी-नाला का पानी लिफट ऐरिगेशन के तहत पाइप लाइन द्वारा किसानों के खेतों तक कृषि विकास के लिए पहुंचाया जाए।

6-आॅनलाइन जमीन के दस्तावेजों का हो रहा छेड़-छाड़ एवं जमीन का हेरा-फेरी बंद किया जाए।

             निवेदक-आदिवासी-मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच

               मुंडारी खूंटकटी परिषद

              आदिवासी एकता मंच एव सभी ग्राम सभाएं

 संर्पक-दयामनी बरला, तुरतन तोपनो, हादु तोपनो, दयाल कोनगाड़ी, सिमोन कच्छप, फुलचंद मुंण्डा, एतो मुंण्डा, मानसिंह मुंण्डा, सुचित सांगा, संदीप सांगा, सुलेमान तोपनो, आनंद तोपनो, सुलामी तोपनो, राजू लोहरा, ज्वालन तोपनों, शिवशरण मित्र, रेंघवा मुंण्डा।         


 केंन्द्र की मोदी सरकार द्वारा काॅरपोरेट घराणों एवं पूंजिपतियों के लिए लायी जा रही स्वामित्व योजना के तहत प्रोपटी/ संपति कार्ड नहीं चाहिए

झारखंड में सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खुंटकटी  एवं 5वीं अनुसूचि के आदिवासी बहुल खॅटी जिला में प्राॅपर्टी कार्ड बनाने के ड्रोन से जमीन का सर्वे किया जा रहा है, को रोकने की मांग

                           एवं

आदिवासी-मूलवासी किसानों के परंपरागत अधिकार सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटी अधिकार, हो इलाके के विलकिनसन रूल्स एवं 5वीं अनुसूचि में प्रावधान अधिकारों को कड़ाई से लागू  करने की मांग को लेकर 28 फरवरी 2022 को विधानसभा के समक्ष धरना। 

इतिहास गवाह है कि झारखंड में जल, जंगल, जमीन को आबाद करने का आदिवासी-मूलवासी किसान समुदाय का अपना गैरवशाली इतिहास है। आदिवासी समुदाय खतरनाक जंगली जानवरों से लड़ कर जंगल-झाड़ को साफ कर गाॅंव बसाया, जमीन आबाद किया है। आदिवासी-मूलवासी किसान समुदाय जंगल, नदी, पहाडों की गोद में ही अपने इतिहास, भाषा-संास्कृतिक  पहचान के साथ विकसित होता है। 

प्रकृतिक-पर्यावरण जीवन मूल्य के  साथ आदिवासी -मूलवासी समुदाय के ताना-बाना को संरक्षित और विकसित करने के लिए ही छोटानापुर काश्तकारी अधिनियम 1908, संताल परगना काश्तकारी अधिनियम 1949 बनाया गया है। साथ ही भारतीय संविधान में पेसा कानून 1996 एवं पांचवी अनुसूचि में आदिवासी समुदाय के जल, जंगल, जमीन पर इनके खूंटकटी अधिकार सहित अन्य परंपरागत अधिकारों का प्रावधान किया गया है। 

सर्व विदित है कि आदिवासी समुदाय के जंगल, जमीन, सामाजिक-संस्कृतिक, आर्थिक आधार को संरक्षित एवं विकसित करने के लिए भारतीय संविधान में विशेष कानूनी प्रावधान किये गये हैं। सीएनटी, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून 1996, 1932 के खतियान में, एवं वन अधिकार कानून 2006 में भी विशेष प्रावधान दर्ज है। गांव के सीमा के भीतर एवं बाहर जो प्रकृतिक संसाधन है जैसे गिटी, मिटी, बालू, झाड़-जंगल, जमीन, नदी-झरना, सभी गांव की सामुदायिक संपति है। इस पर क्षेत्र के ग्रामीणों का सामुदायिक अधिकार है।

ये सभी समुदायिक अधिकार को सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून, कोल्हान क्षेत्र के लिए विलकिनसन रूल, मुंडारी खूुंटकटी अधिकार में कानूनी मन्यता मिला हुआ है। ये सभी अधिकार आदिवासी समुदाय के लंबे संघर्ष और शहादत के बाद मिला है। खतियान एवं वीलेज नोट में दर्ज सामुदायिक एवं खूंटकटी अधिकार को बचाना जगरूक नागरिकों के साथ राज्य की कल्याणकारी सरकार की भी जिम्मेदारी है। 5वीं अनुसूचि क्षेत्र का संरक्षक राज्यपाल महोदय हैं, उनकी जिम्मेवारी है हमारे अधिकारों को संरक्षित करने का। 

वर्तमान में लाया जा रहा स्वामित्व योजना के तहत प्राॅपर्टी बनायी जायेगी। 

सबसे बड़ा सवाल -1-है-आदिवासी सामुदाय के जल, जंगल, जमीन जैसे भईहरी खेत, भूत खेता, डालीकतारी जैसे बेलगान जमीन, नदी-नाला, आहर-पोखर, ससनदीरी, सरना, मसना, मंदिर, मसजिद, जतरा टांड, खेल मैदान आदि का प्राॅपर्टी कार्ड किसके नाम से बनेगा? 

सवाल 2-रघुवर सरकार के समय गांव के समुदायिक जमीन को लैंण्ड बैंक में शामिल कर दिया गया है-इस जमीन का स्वामित्व कार्ड किसके नाम पर बनेगा?

सवाल -3-1932 के खतियान में आॅनलाइन छेडछाड़ किया गया है-जिसमें खतियानधारियों का नाम गलत दर्ज किया है, किसी में खाता संख्या गलत हे, किसी में प्लाॅट गायब है, गलत अपडेट के कारण जमीन मालिकों का रसीद नहीं कट रहा है, इस जमीन का संपति कार्ड किसके नाम से बनेगा? 

ये सभी गंभर सवाल है- जमीन का आॅनलाइन व्यवस्था होने के बाद भारी संख्या में आॅनलाइन जमीन का लूट, नजायज कब्जा चल रहा है, इसको ठीक करने के लिए किसान प्रज्ञा केंन्द्र से सीओ, अंचल कार्यालय, अमीन के पास दौड़ते दौडते दो-तीन साल बित गया, लेकिन गलती ठीक नहीं हो रहा है। इसके लिए कौन जिम्मेदार हैं?  

प्राॅपर्टी कार्ड बनने के लिए ड्रोन से जो सर्वे किया जा रहा है, इसके साथ ही डिजिटल नाक्सा बनेगा। इस दौरान जमीन संबंधी कई पुराने दस्तावेज बदले जाएगें। इस दौरान जमीन मालिकों से, अपना जमीन का मालिकाना हक साबित करने के लिए दस्तावेज मांगें जाएगें। जब जमीन मालिक दस्तावेज पेस नहीं कर पायेगा, तब क्या होगा? इन सभी सवालों का जवाब तो चाहिए ही, चाहिए। 

 संपति कार्ड -मकान के साथ, उनके सभी जमीन को एक में लिंक किया जाएगा, तब इसका संपति कार्ड बनेगा। (जिस जमीन पर अपना मालिकाना हक साबित कर पाएगा)। जो डिजिटल नाक्सा में रखा जाएगा। 

भारत सरकार पंचायत मंत्रालय की स्वामित्व योजना नियामवली के अनुसार अब जमीन का स्वामित्व पंचायत मंत्रालय के हाथ में दिया जाएगा। यहां समझने की जरूरत है कि-जो परंपरागत गांव समुदायक के हाथ में जो अधिकार था-उसको सरकारी पंचायती व्यवस्था के अधिन किया जाएगा। 

यह नयी व्यवस्था लागू होने पर निश्चि तौर पर कागजों में सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, पांचवीं अनुसूचि, मुंडारी खूंटकटी अधिकार सहित सभी परंपरागत व्यवस्था दर्ज रहेगा। लेकिन जमीनी अधिकार स्वतः कमजोर हो जाएगा। सामाजिक, संस्कृतिक, आर्थिक तौर प्रतिकुल असर डालेगा। ग्रामीणों के सामुदायिक जमीन का मौद्रिकरण किया जाएगा, इससे ग्रामीण क्षेत्र के जमीन का व्यवसायीकरण को बढ़ावा दिया जाएगा। इसे ग्रामीणों पर टैक्स का बोझ बढेगा। जमीन, जंगल सहित अन्य सभी संसाधनों के खरीद-फरोक्त, एंव लूट-भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा।

संपति कार्ड/प्राॅपर्टी कार्ड लागू होने से आदिवासी इलाके में निम्नलिखित खतरे भविष्य में होगें। 

1-परंपरागत ग्रामीण आदिवासी इलाके का डेमोग्राफी-भौगोलिक स्थिति पूरी तरह बदल जाएगा।

2-5वीं अनुसूचि, सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटकटी एवं विलकिसन रूल्स के तहत गांव के सीमा के भीतर के गैर मजरूआ आम, खास, जंगल-झाड़ी, परती-झरती, नदी-नाला आदि सामुदायिक जमीन पर बाहरी सामुदाय का प्रावेष एवं कब्जा होगा।

3-प्रकृतिक जीवनशैली से जुडे आदिवासी-मूलवासी किसान, दलित समुदाय का परंपरागत सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, आधार टूट जाएगा।

4-ड्रोन सर्वे पूरा होने के साथ ही गांव का डिजिटल नक्सा बनेगा। डिजिटल नक्सा होगा तो खतियान भी होगा। तब सवाल है, आदिवासी-मुलवासी समुदाय को, समुदायिक अधिकार देने के साथ एैतिहासक पहचान देने वाला 1932 का खतियान अस्तित्व बना रहेगा? 

5-सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, पांचवी अनूसूचि के होते हुए-ग्रामीणों के सामुदायिक जमीन का भूमि बैंक बनाकर, सिंगल विंडि व्यवस्था माध्यम से सामुदाय से बाहर के लोगों को गांव का जमीन, स्थानीय ग्राम सभा के सहमति के बिना कब्जा दिलाना, निश्चित तौर पर  आदिवासी समुदाय के अधिकार, सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, पांचवी अनूसूची, मुंडारी खूंटकटी अधिकार, कोल्हान क्षेत्र का विल्किनसन रूल्स स्वता कमजोर किया जा रहा है। 

6-ड्रोन से सर्वे के समय या बाद में जमीन का मालिकाना हक क्लेम-दावा करने के लिए ग्रामीणों से कहा जाएगा, तब जिस जमीन का मलगुजारी रसीद काटा रहा है, उसका फू्रफ पेस करेगें, लेकिन ग्रामीणों का सामुदायिक जमीन जिसका रसीद नहीं काटा जाता है, उसका क्या होगा? 

7-ग्रामीण इलाके में बढ़ते शहरी आबादी के कारण ग्रामीण कृषि अर्थव्यवस्था, वन व्यवस्था, जल स्त्रोत एवं पर्यावरणीय व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। 

8-प्राॅपटी कार्ड योजना के तहत ग्रामीण आदिवासी इलाके में बड़ी संख्या में बाहरी आबादी के प्रवेश होने से, राज्य में आदिवासी आबादी तेजी से घटेगी, परिणाम स्वरूप आदिवासी सामुदाय की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं राजनीतिक शक्ति स्वतः कमजोर होगा। 

ज्ञात हो कि झारखंड में भूमि सुधार कानून के तहत राज्य में लाखों छोटे किसानों को एक-एक एकड, कहीं कहीं दो-तीन एकड़ तक जमीन बंदोबस्त कर दिया गया था। लोग इस जमीन का मजगूजारी रसीद भी काटते थे, लेकिन अब कई इलाके में इस जमीन का रसीद काटना बंद कर दिया गया, और किसानों को उक्त जमीन की बंदोबस्ती संबंधित कई तरह के कागजात मांगें गाये, लोग अधिकारियों के समुख कागजात पेस नहीं कर पा रहे हैं। 

राज्य में जमीन संबंधित काम-कागज 2014-15 तक आॅफलाइन हो रहा था। जमीन मालिक आॅफलाइन रसीद हल्का करमचारी द्वारा कटवा रहे थे। आॅनलाइन व्यवस्था होने के बाद जमीन का खतियान में भारी गडबडियां हो गयी हैं। किसी का खतियान में रैयत का नाम गलत है, खाता नबंर गलत है, प्लोट नंबर गलत है, जमीन का रकबा भी गलत है। इसको सुधरवाने के लिए लोग अमीन के पास, सीओ के पास दौडते दौडते थक रहे हैं-कोई कार्रवाई नहीं हो रहा है। 

आॅनलाइन खतियान में गलती के कारण-बहुत से किसान जमीन का मलगुजारी रसीद 4-5 सालों से नहीं कटवा पा रहे हैं। 

यहीं दूसरी तरफ खतियान से परंपरागत रैयातों का नाम हटाकर रातों-रात पांजी दो में जमीन मालिक बदल दिये जा रहे हैं। कम पढ़े-लिखे, सीधे-साधे आदिवासी किसानों को नहीं समझ में आ रहा है कि ये क्या हो रहा है। आखिर इसके लिए कौन जिम्मेवार हैै? 

ये सारी दिक्कतें तब हो रही है-जब जमीन-जंगल हमारा है, 1932 का खतियान हमारे पास है, विलेज नोट हमारे पास है, गांव का नक्सा हमारे पास है। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? सच्चाई है कि जब तक जमीन संबंधित व्यवस्था आॅफलाइन था, ग्रामीण इलाके में जमीन का हेराफरी, भ्रष्टाचार, जमीन का लूट कम होता था। गांव वाले अपने क्षेत्र की रक्षा अपने तरह से करते आ रहे थे। अब ग्रामीणों के इस व्यवस्था पर डिजिटल हमला हो रहा है। 

इस तरह से आदिवासी -मुलवासी, किसान, दलित समाज से जमीन निकलता जा रहा है यही नहीं समुदाय का सुरक्षा कवच सीएनटी, एसपीटी एक्ट स्वतः टुटने लगेगा, पेसा कानून में मिला अधिकार खत्म हो जाएगा, मुंडारी खूंटकटी अधिकार खत्म हो जाएगा। जमीन का लूट बढेगा। परिवार और समाज में अषांति बढ़ेगा।  इससे उत्पन्न परिस्थ्यिों से विस्थापन, पलायन, बेरोजगारी, भूख, भूमिहीन, अस्वस्थ्य, सूखा-आकाल एवं प्रदूषण जैसे महामारी का ही सामना करना पड़ेगा, इसके लिए जिम्मेवार कौन होगा?। बहुत सारे गंभीर सवाल हैं। 

 हमारी मांगें हैं-

1-केंन्द्र सरकार की नयी स्वामीत्व योजना /प्रोपटी/संपति कार्ड बनाने के लिए आदिवासी बहुल खूंटी जिला में परंपरागत ग्राम सभी एवं आदिवासी किसान संगठनों के मांग को अनसुनी करके, ड्रोन द्वारा जमीन का सर्वे किया जा रहा है, को रोका जाए। 

2-मोदी सरकार द्वारा काॅरपोरेट घराणों एवं पूंजिपतियों के लिए लाया जा रहा स्वामित्व योजना को झारखंड में लागू नहीं किया जाए। साथ ही इस योजना को झारखंड में लागू नहीं किया जाए। 

3-सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटकटी एवं 5वीं अनुसूची में प्रावधान ग्राम सभा के अधिकारों को कड़ाई से लागू किया जाएं एवं आदिवासी-मूलवासी समुदाय के सामुदायिक अधिकारों को संरक्षित किया जाए। 

4-रघुवर सरकार ने गैर मजरूआ आम, गैर मजरूआ खास जमीन, को भूमि बैंक में शमिल किया गया है,  इस भूमि बैंक को रदद किया जाए।

5-क्षेत्र के सभी जलस्त्रोतों, नदी-नाला का पानी लिफट ऐरिगेशन के तहत पाइप लाइन द्वारा किसानों के खेतों तक कृषि विकास के लिए पहुंचाया जाए।

6-आॅनलाइन जमीन के दस्तावेजों का हो रहा छेड़-छाड़ एवं जमीन का हेरा-फेरी बंद किया जाए।

नोट-धरना 11 बजे से शुरू होगा, 

स्थान-विधानसभा के पीछे, कुटे मैदान

    दिनांक- 28 फरवरी 2022 

निवेदक-आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच

       मुंडारी खुंटकटी परिषद

आदिवासी एकता मंच-

(संपर्क-दयामनी-बरला-9431104386, तुरतन तोपना-7091128043, राजू लोहरा, अल्र्बट होरो, छोटन पाहन,  नियरजन तोपनो, ज्वालन तोपनो, शिवसरण मिश्रा, छात्री हेमरोम, जशिनता, फिूलचंद मुंडा, संदीप सांगा, सूचित सांगा, मंगरा मुंडा, बिरसा सांगा, बिरसा, मुंडा, पौलुस मुंडा, दयाल कोनगाड़ी, हादुु तोपनो, पूरन तोपनो, एनेम तोपनो, मोरिश तोपनो, कुलदीप हेमरोम, सुलेमान तोपनो, सूनिल कच्छप, सिमोन मुंडा, कोका पाहन, खुदिया पाहन, अशियन होरो, प्रभुसहाय सोय, श्याम सोय, अब्राहम मुंडा, एतवा मुंडा, मनसिंह मुंडा, बुधन लाल,। 


 सेवा में,                                                                                          27-10-2022

माननीय प्रधानमंत्री महोदय                                                             prank-01/21

भारत सरकार

द्वारा

उपायुक्त महोदय

खूंटी जिला

झारखंड

विषय- प्रोपटी/ संपति कार्ड नहीं चाहिए-आदिवासी-मूलवासी किसानों के परंपरागत अधिकार सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटी अधिकार एवं 5वीं अनुसूचि  को कड़ाई से लागू किया जाए। इसलिए खूंटी जिला में संपति कार्ड बनाने के लिए प्रस्वाति ड्रोन सर्वेक्षण को रोका जाए। 

महाशय

इतिहास गवाह है कि झारखंड में जल, जंगल, जमीन को आबाद करने का आदिवासी-मूलवासी किसान समुदाय का अपना गैरवशाली इतिहास है। आदिवासी समुदाय खतरनाक जंगली जानवरों से लड़ कर जंगल-झाड़ को साफ कर गाॅंव बसाया, जमीन आबाद किया है। आदिवासी-मूलवासी किसान समुदाय जंगल, नदी, पहाडों की गोद में ही अपने इतिहास, भाषा-संास्कृति, पहचान के साथ विकसित होता है। प्रकृतिक-पर्यावरण जीवन मूल्य के  साथ आदिवासी -मूलवासी समुदाय के ताना-बाना को संरक्षित और विकसित करने के लिए ही छोटानापुर काश्तकारी अधिनियम 1908, संताल परगना काश्तकारी अधिनियम 1949 बनाया गया है। साथ ही भारतीय संविधान में पेसा कानून 1996 एवं पांचवी अनुसूचि में आदिवासी समुदाय के जल, जंगल, जमीन पर इनके खूंटकटी अधिकार सहित अन्य परंपरागत अधिकारों का प्रावधान किया गया है। 

सर्व विदित है कि आदिवासी समुदाय के जंगल, जमीन, सामाजिक-संस्कृतिक, आर्थिक आधार को संरक्षित एवं विकसित करने के लिए भारतीय संविधान में विशेष कानूनी प्रावधान किये गये हैं। सीएनटी, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून में विशेष प्रावधान है कि गांव के सीमा के भीतर एवं बाहर जो प्रकृतिक संसाधन है जैसे गिटी, मिटी, बालू, झाड़-जंगल, जमीन, नदी-झरना, सभी गांव की सामुदायिक संपति है। इस पर क्षेत्र के ग्रामीणों का सामुदायिक अधिकार है। 

ये सभी सामुदायिक अधिकार को सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून, कोल्हान क्षेत्र के लिए विलकिनसन रूल, मुंडारी खूुंटकटी अधिकार में कानूनी मन्यता मिला हुआ है। ये सभी अधिकार आदिवासी समुदाय के लंबे संघर्ष और शहादत के बाद मिला है। 

खतियान एवं वीलेज नोट में दर्ज सामुदायिक एवं खूंटकटी अधिकार को बचाना जगरूक नागरिकों के साथ राज्य की कल्याणकारी सरकार की भी जिम्मेदारी है।

वर्तमान में लाया जा रहा स्वामित्व योजना, आदिवासी सामुदाय के जल, जंगल, जमीन के सामुदायिक अधिकार को खत्म करेगा, सामाजिक, संस्कृतिक, आर्थिक तौर प्रतिकुल असर डालेगा। ग्रामीणों के सामुदायिक जमीन का मौद्रिकरण किया जाएगा, इससे ग्रामीण क्षेत्र के जमीन का व्यवसायीकरण को बढ़ावा दिया जाएगा। इसे ग्रामीणों पर टैक्स का बोझ बढेगा। जमीन, जंगल सहित अन्य सभी संसाधनों के खरीद-फरोक्त, एंव लूट-भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा।

इस तरह से आदिवासी समाज का सुरक्षा कवच सीएनटी, एसपीटी एक्ट स्वतः टुटने लगेगा, पेसा कानून में मिला अधिकार खत्म हो जाएगा, मुंडारी खूंटकटी अधिकार खत्म हो जाएगा। परिवार और समाज में अशांति बढ़ेगा।  इससे उत्पन्न परिस्थ्यिों से विस्थापन, पलायन, बेरोजगारी, भूख, भूमिहीन, अस्वस्थ्य, सूखा-आकाल एवं प्रदूषण जैसे महामारी का ही सामना करना पड़ेगा। 

 

हमारी मांगें हैं-

1-केंन्द्र सरकार की नयी स्वामीत्व योजना /प्रोपटी/संपति कार्ड, को धरातल पर लागू नहीं किया जाए। 

2-सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटकटी एवं 5वीं अनुसूची में प्रावधान कानून को कड़ाई से लागू किया जाएं एवं आदिवासी-मूलवासी समुदाय के सामुदायिक अधिकारों को संरक्षित किया जाए। 

3-तीनों नये कृषि कानून को रदद किया जाए

4-गैर मजरूआ आम, गैर मजरूआ खास जमीन, को भूमि बैंक में शामिल किया गया है को रदद किया जाए।

5-क्षेत्र के सभी जलस्त्रोतों, नदी-नाला का पानी लिफट ऐरिगेशन के तहत पाइप लाइन द्वारा किसानों के खेतों तक पहुंचाया जाए।

6-आॅनलाइन जमीन के दस्तावेजों का हो रहा छेड़-छाड़ एवं जमीन का हेरा-फेरी बंद किया जाए।

7-किसानों द्वारा लिया गया कृषि लोन माफ किया जाए। 


निवेदक-आदिवासी-मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच

        मुंडारी खूंटकटी परिषद

        आदिवासी एकता मंच

        ग्राम सभाएं


 सेवा में,                                                                               27-10-2022

उपायुक्त महोदय                                                                prank-01/21

खूंटी जिला

झारखंड

विषय- प्रोपटी/ संपति कार्ड नहीं चाहिए-आदिवासी-मूलवासी किसानों के परंपरागत अधिकार सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटी अधिकार एवं 5वीं अनुसूचि  को कड़ाई से लागू किया जाए। इसलिए खूंटी जिला में संपति कार्ड बनाने के लिए प्रस्वाति ड्रोन सर्वेक्षण को रोका जाए। 

महाशय

इतिहास गवाह है कि झारखंड में जल, जंगल, जमीन को आबाद करने का आदिवासी-मूलवासी किसान समुदाय का अपना गैरवशाली इतिहास है। आदिवासी समुदाय खतरनाक जंगली जानवरों से लड़ कर जंगल-झाड़ को साफ कर गाॅंव बसाया, जमीन आबाद किया है। आदिवासी-मूलवासी किसान समुदाय जंगल, नदी, पहाडों की गोद में ही अपने इतिहास, भाषा-संास्कृति, पहचान के साथ विकसित होता है। प्रकृतिक-पर्यावरण जीवन मूल्य के  साथ आदिवासी -मूलवासी समुदाय के ताना-बाना को संरक्षित और विकसित करने के लिए ही छोटानापुर काश्तकारी अधिनियम 1908, संताल परगना काश्तकारी अधिनियम 1949 बनाया गया है। साथ ही भारतीय संविधान में पेसा कानून 1996 एवं पांचवी अनुसूचि में आदिवासी समुदाय के जल, जंगल, जमीन पर इनके खूंटकटी अधिकार सहित अन्य परंपरागत अधिकारों का प्रावधान किया गया है। 

सर्व विदित है कि आदिवासी समुदाय के जंगल, जमीन, सामाजिक-संस्कृतिक, आर्थिक आधार को संरक्षित एवं विकसित करने के लिए भारतीय संविधान में विशेष कानूनी प्रावधान किये गये हैं। सीएनटी, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून में विशेष प्रावधान है कि गांव के सीमा के भीतर एवं बाहर जो प्रकृतिक संसाधन है जैसे गिटी, मिटी, बालू, झाड़-जंगल, जमीन, नदी-झरना, सभी गांव की सामुदायिक संपति है। इस पर क्षेत्र के ग्रामीणों का सामुदायिक अधिकार है। 

ये सभी सामुदायिक अधिकार को सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून, कोल्हान क्षेत्र के लिए विलकिनसन रूल, मुंडारी खूुंटकटी अधिकार में कानूनी मन्यता मिला हुआ है। ये सभी अधिकार आदिवासी समुदाय के लंबे संघर्ष और शहादत के बाद मिला है। 

खतियान एवं वीलेज नोट में दर्ज सामुदायिक एवं खूंटकटी अधिकार को बचाना जगरूक नागरिकों के साथ राज्य की कल्याणकारी सरकार की भी जिम्मेदारी है।

वर्तमान में लाया जा रहा स्वामित्व योजना, आदिवासी सामुदाय के जल, जंगल, जमीन के सामुदायिक अधिकार को खत्म करेगा, सामाजिक, संस्कृतिक, आर्थिक तौर प्रतिकुल असर डालेगा। ग्रामीणों के सामुदायिक जमीन का मौद्रिकरण किया जाएगा, इससे ग्रामीण क्षेत्र के जमीन का व्यवसायीकरण को बढ़ावा दिया जाएगा। इसे ग्रामीणों पर टैक्स का बोझ बढेगा। जमीन, जंगल सहित अन्य सभी संसाधनों के खरीद-फरोक्त, एंव लूट-भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा।

इस तरह से आदिवासी समाज का सुरक्षा कवच सीएनटी, एसपीटी एक्ट स्वतः टुटने लगेगा, पेसा कानून में मिला अधिकार खत्म हो जाएगा, मुंडारी खूंटकटी अधिकार खत्म हो जाएगा। परिवार और समाज में अशांति बढ़ेगा।  इससे उत्पन्न परिस्थ्यिों से विस्थापन, पलायन, बेरोजगारी, भूख, भूमिहीन, अस्वस्थ्य, सूखा-आकाल एवं प्रदूषण जैसे महामारी का ही सामना करना पड़ेगा। 

 

हमारी मांगें हैं-

1-केंन्द्र सरकार की नयी स्वामीत्व योजना /प्रोपटी/संपति कार्ड, को धरातल पर लागू नहीं किया जाए। 

2-सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटकटी एवं 5वीं अनुसूची में प्रावधान कानून को कड़ाई से लागू किया जाएं एवं आदिवासी-मूलवासी समुदाय के सामुदायिक अधिकारों को संरक्षित किया जाए। 

3-तीनों नये कृषि कानून को रदद किया जाए

4-गैर मजरूआ आम, गैर मजरूआ खास जमीन, को भूमि बैंक में शामिल किया गया है को रदद किया जाए।

5-क्षेत्र के सभी जलस्त्रोतों, नदी-नाला का पानी लिफट ऐरिगेशन के तहत पाइप लाइन द्वारा किसानों के खेतों तक पहुंचाया जाए।

6-आॅनलाइन जमीन के दस्तावेजों का हो रहा छेड़-छाड़ एवं जमीन का हेरा-फेरी बंद किया जाए।

7-किसानों द्वारा लिया गया कृषि लोन माफ किया जाए। 


निवेदक-आदिवासी-मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच

        मुंडारी खूंटकटी परिषद

        आदिवासी एकता मंच

        ग्राम सभाएं