Sunday, March 13, 2011

लेकिन ओद्योगीकिकरण का ही देन है कि बडें होटलों में आप पानी पियेगें तो पानी का अलग से पैसा भुगतान करना होगा। helsinki-4

फिनलैंड में 60]000 टापू, 60]000 झील है। हेलसिंकी शहर समुद्र के तट पर है। लेकिन ओद्योगीकिकरण का ही देन है कि बडें होटलों में आप पानी पियेगें तो पानी का अलग से पैसा भुगतान करना होगा। यहां प्रकृतिक-कृर्षि आधारित आर्थिक व्यवस्था सिमटते जा रही है। वनोपज के नाम पर यहां 15-16 तरह के ही पेड़ पाये जाते है। जिससे कुछ लोग नगदी फसल के रूप में इस्तेमाल करते हैं। कुछ लोग जलावन के रूप में उपयोग करते हैं। वैश्वीक अर्थव्यस्था का यहां के आदिवासी-मूलवासी समाज पर गहरा असर डाला है। 25 अप्रैल को हेलसिंकी विश्वविद्वालय के आदिवासी-सामी भाषा के छात्रों तथा प्राफेशर ने फिनलैंड केे आदिवासियों तथा भारत के आदिवासियों के परंपरागत जीवन शैली, भाषा-सांस्कृति, जल-जंगल-जमीन तथा औद्योगिक व्यवस्था के इस दौर में इनके सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृति पहलुओं पर हो रहे बदलाव पर चर्चा का आयोजन किये। इन्होंनंे बताया कि पहले फिनलैंड में सामी आदिवासियों की जनसंख्या अधिक था। यह समूदय मूल रूप से मच्छली मारने, चरवाही तथा शिकार करने से जुड़ा हुआ था। ओद्योगीकिकरण के चलते अब इनका परंपरागत पेशा खत्म होता जा रहा है। इन्होंने बताया कि अब सामी समूदाय अधुनिक तकनीकी शिाक्षा में भी आग बढ़ गया है। फिर भी अपनी भाषा-सांस्कृति को जिंदा रखना चाहते हैं। इसी प्रयास में सभी सामी बच्चों को पहले सामी भाषा के स्कूल में पढ़ाते हैं उसके बाद दूसरे स्कूलों में भेजते हैं। प्रोफेसर जरिजा कहती हैं-मैं अपने भाषा-सांस्कृति का मरने देना नहीं चाहती हूं, इसीलिए सामी भाषा का शोध कर शिक्षा देने का काम कर रही हूं। इन्होंने यह भी बताया कि औद्योगिकीकरण के इस दौर में एक बार तो यहां के सामी समूदाय को लगा कि अपना भाषा-सांस्कृति अच्छा नहीं है, सभी अधुनिक परिवेश को बेहतर समझने लगे, लेकिन बाद में इन्हें इहसास होने लगा कि अपना भाषा-सांस्कृति ही हमारा पहचान है। इसलिए अब सभी इसे पूर्नाजीवित करने में लगे हैं। हेलसिंकी विश्वविद्वालय में तीस छात्र-छात्राएं सामी भाषा की पढ़ाई कर रहे हैं। झारखंड के आदिवासियों के विस्थापन का दर्द सुनने के बाद सभी अपना बिता सामाजिक इतिहास को याद करते हैं-कहते हैं हमारे पूर्वज पहले यहां के पालतू पशू रेडिंयर चराने का काम करते थे, एक समूदाय शिकार करता था। अब चरागाह और खेत, जंगल में करखाना बन गया, रोड़ बन गया, मकान बन गया। अब हम लोग भी अपने परंपरारिक जीविका से विस्थापित हो गये, हमारी आबादी लुप्त होते जा रही है और यहां बाहरी लोग भर गये हैं।

1 comment:

  1. Bahut acha kaam kar rahe hai aap, hum aapke saath hain, Santhali lipi k janak Pandit Raghunath Murmu ji ne kaha tha" Ror menah khan aam ho menam, dhorom menah khan aam ho menam, Ror aar dhorom em aah keh khan aam hom aah ena" It mean when you loose your Language and culture, you loose your identity.

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