Tuesday, November 16, 2021

भगवान बिरसा मुंडा का गांव का तस्बीर बदल गया हे। लेकिन दुखद है कि उलिहातू सहित इस इलाके का तकदीर नहीं बदला।

 दयामनी बरला

बिरसा मुंडा के 146 वें जयंांती पर बिरसा मुंडा जन्मस्थाली उलीहातू में आप सभी का स्वागत है-जोवर गी मर सोबेन कुपुल को। राज्य के बाहर से आने वाले सभी मेहमानों का रांची स्थित बिरसा मुंडा एयरपोर्ट में राज्य के आदिवासी-मूलवासी किसान समुदाय द्वारा परंगरात गीत-गोडधोवी के साथ जमा जोवर। आप यहां से सीधे बिना परेषानी के चलाचक डबल लेन रोड़ से खूंटी जिला के अड़की प्रखंड में सरजोम, मुरूद, इचआ, सेकरेज, तीरील, तरोब जैसे परंपरागत जंगल-झाड़ो से अच्छादित हरियाली वादियों की गोद में बसा बिरसा मुंडा का गांव सिर्फ डेढ़ घंण्टा में पहुंच जाएगें।अब उलिहातू गांव का नाक्सा बदला-बदला दिखता है। सभी तरफ सोलर प्लेट, जगह-जगह स्वाच्छ जल का पानी टांकी, सौच मुक्त गांव का वादा पूरा करता घर-घर में सौचालय, बिरसा मुंडा कम्पेक्स, बिरसा स्टेडियम, आवासीय स्कूल, सामुदायिक भवन, ग्राम संसद भवन, अस्पताल भवन, बडा चाबूतरा, बैंक भी है। इसके अलावा उद्योग विभाग का बोर्ड सहित विभिन्न योजनाओं पर जागरूकता फैलाने के लिए कई बोर्ड लगा हुआ है। दिल खुष हो जाता है कि भगवान बिरसा मुंडा का गांव का तस्बीर बदल गया हे। लेकिन दुखद है कि उलिहातू सहित इस इलाके का तकदीर नहीं बदला। 

 खूंटी से तमाड़ रोड़ में थोड़ी सावधानी बरतनी होगी, कारण की चैड़ी फिसलन रोड़ में दस चक्का वाले भारी माल वाहन हर 10-12 मिनट में दौड़ता हैं। छोटी गाडियों का तो संख्या ज्यादा है और स्पीड भी ज्यादा है। सोयको का गाया मुंडा चैक बहुत विकसित हो गया है। बस अब 11 किमी ही दूर है उलिहातू गांव।  सांप, बाघ, भालू जैसे खुंखार जंगली जानवरो से लड़कर जिस धरती को आदिवासी सामुदाय ने आबाद किया था, जिस पर इनका खूंटकटी अधिकार था, जहां अबुआ हातु रे अबुआ राईज की परंपरा थी। 1771 में ईस्ट इंडिया कंपनी का झारखंडमेंष्षासकीय अधिकार स्थापित हुआ। अंग्रेजो ष्षासकों के सहयोगी, जमींदारों द्वारा खूंटकटी हक पर हमला के खिलाफ तमाड़ के बिसू मानकी, दुखन मानकी, रूदु मुंडा, कोंता मुंडा आदि षहीदों के नेतृत्व में मुुडा सरदारी आंदोलन चरम पर था। तब उलिहातु के सुगना मुंडा और करमी मुंडी के गोद में वीर बिरसा पैदा हुआ। मुंडा उलगुलान की तपती धरती में बालक बिरसा युवा हुआ। मात्र 21 साल की उम्र में ही बिरसा मुंडा के अबुआ दिषुम रे अबुआ राईज का उलगुलान ने अंग्रेज षासक को लोहा मनवाया और सीएनटी एक्ट बना।

हक-अधिकार की लड़ाई को कमजोर करने के लिए बिरसा को रोगोतो जंगल से गिरत्फार कर रांची के जेल में रखा गया। आज जेल का नामकेंन्द्री बिरसा मुंडाकारागह है। पुराने जेल परिसर को अब 146 करोड़ खर्च कर बिरसा स्मृति स्थल बना दिया। यहां बिरसा मुंडा का 25 फीट का प्रतिमा बना है साथ ही करीब 12 झारखंड के वीर षहीदों की प्रतिमा बनायी गयी।  राज्य में बिरसा मुंडा के नाम पर सौंकडो व्यावसायिक संस्थान बाजार की षोभा बढ़ा रहें हैं। बिरसा मुंडा के नाम से राज्य और देष की राजनीति गुलजार है। 

झारखंड अलग राज्य की लड़ाई, जल, जंगल, जमीन, भाषा, सांस्कृति को संगक्षित एवं विकसित करने के लिए था। यहां के मिटटी से उपजी नौकरी, रोजगार, जीविका के संसाधनों पर अधिकार यहां के लोगों के हाथों में हो, यही था अलग राज्य का सपना। षायद इसी सपना को पूरा करने के लिए बिरसा मुंडा के 125 वें जयंती पर, 15 नंवोंबर 2000 को अलग राज्य का पुर्नगठन किया गया। राज्य बनने के बाद जिनकी तकदीर बदलनी थी, खूब बदली। अबुआ हातु -दिषुम रे अबुआ राईज का सपना विकास के मुख्यधारा में विलीन हो गया। राज्य पूर्नगठन से पहले से ही देष की कई राजनीतिक पार्टीयों के षीर्ष नेताओं ने बिरसा मुंडा के गांव उलिहातू की माटी को नमन करते आ रहे हैं। ये गर्व का विषय है। 

मुंडा आदिवासी बहुल इस जंगली इलाके का विकास के लिए 12 सितंबर 2007 में रांची जिला से अलग कर खूंटी जिला बना। जिला बनने के बाद प्रखंड मुख्यालाय से लेकर जिला मुख्यालाय तक दर्जनों प्रषानिक अधिकारियों को बहाल किया गया। अधिकारी आये और गये। उलिहातू पहुंचने वाले नेता, विधायकों, मंत्रियों, मुख्यमंत्रीयों, संासदों, केंन्द्रीय मंत्रीयों, गृह मंत्रीयों, उपायुक्तों, प्रखंड पदाधिकारियों, सर्किल अधिकारियों ने सौंकड़ों वादा किये। आष्वासन दिये । उलिहातु को नमन करने वालों की गिनती की जाए तो, सूची बहुत लंबी है, सूची को रखने में थोड़ी झिझक होती है, लगता है यह तो बिरसा मुंडा सहित तमाम राज्य के षहीदों का अपमान है, कि जो वादा आप ने किया था, पूरा नहीं किया। 

बिरसा मुंडा की परपोती जौनी मुंडा सब्जी बेचकर पढ़ाई कर रही है, अखबार के खबर के साथ बाॅलीवूड के अभिनेता सोनू सदू ने जौनी कीे पढ़ाई का खर्च उठाने के लिए सामने आया। साथ ही राजस्थान के दो संासद ने भी मदद की पेषकष की। नौकरी के नाम पर बिरसा के खनदान के दो लोगों को खूंटी जिला मुख्यालय में चपरासी की नौकरी मिली। 

गांव के लोगों ने सरकारी वादों पर भरोसा न करते हुए स्वंय अपना विकास करने का रास्ता तलाष रहे हें। गांव में 20-25 से अधिक मैट्रिक पास युवा हैं। 6-7 बीए पास हैं। बेरोजगार युवा अपनी पूंजी से गांव में ही छोटा-छोटा गुमटी बना कर किराना दुकान का समान से लेकर आॅनलाइन ग्राहक केंन्द्र के तौर पर मुंडा समुदाय का सेवा कर रहे हैं। कई लड़कियों ने बतायी वे 9वीं क्लास तक पढ़ाई किये, लेकिन आर्थिक कमी के कारण आगे पढ़ नहीं पायी। कस्तुबरा स्कूल जहां फीस नहीं लगता है, आवेदन दी थी, लेकिन नहीं हुआ। इस कारण कई लड़कियां बाहर पलायन कर गयी हैं। जाने के बाद अभी तक वापस नहीं आयी हैं। युवकों ने बताया-हम लोग पढने की कोषिष कर रहे हैं, लेकिन सरकारी सहयोग किसी तरह का नही है, इस कारण कई युवा पढ़ाई छोड़कर गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा मजदूरी करने चले गये। 

अस्पताल भवन तो उलिहातु में बना है, लेकिन बीमारी के समय गांव के लोग खूंटी, अड़की या रांची इलाज कराने जाते हैं। लघु ग्रामीण जलापूर्ति योजना के तहत जलमीनार बना हुआ है, पानी घर-घर पहुंचाने के लिए सभी मिटटी के मकानों के आंगन में लोहा का पाईप खड़ा कर दिया गया है। लोगों ने बताया यह करीब चार साल से बंद पड़ा हुआ है। जगह-जगह चपाकल है, सभी टूटा पड़ा है। दर्जनों पानी टंकी लगा है, इसमें से सिर्फ एक टंकी में केवल बरसात में पानी रहता है। 2017 गृह मंत्री के घोषणा के बाद षहीद गांव मे 160 पका मकान निर्माण के लिए आबंटित है । प्रत्येक मकान 2 लाख 60 हजार का है। गांव में तीन-चार मकान षुरू किया मिला, एक-दो मकान का दीवार 5 फीट तक चढ़ा है। बाकी इंतजार में। बिरसा कृषि विविद्यालय की ओर से ग्रामीणों को मधुपालन का प्रषिक्षण दिया गया, बक्सा दिया गया, रस निकालने की मषीन दी गयी, गांव वालों ने बताया, सभी मधुमखी भाग गये, एक भी नहीं हैं। हां, ध्यान रखियेगा, यूरिन लगेगा तो थोड़ी परेषानी होगी, सौचालय है लेकिन घुस नहीं सकते हैं। इस बार के जयंती समाहरोह में उलिहातु पहुंचने वाले, बिरसा ओडआ में बिरसा की प्रतीमा पर श्रधासुमन अर्पित करने के बाद, गांव वाले जिस चुंवा, डोभा, नाला का पानी लाकर पीते हैं, उनका भी दर्षन करते आयें, तो उलिहातु गांव के लोगों का उपकार होगा। 


Saturday, November 13, 2021


 bahut din bad aayi hun, sabhi ko johar

Tuesday, September 14, 2021

corporete kheti nahi-paramparagat kheti kisani ko bikshit kiya jay

 corporete kheti nahi-paramparagat kheti kisani ko bikshit kiya jay

dheyan dene wali sachai yah hai ki in tino naye krishi kanun se sirph anaj yah phasal upjane wale kishanon per sankat nahi aayega, balki kishano ke phaslon ke asthaniye chote beyopari awam upbhogta ya, kharidne walon ki bhi pareshani badhegi. samaj ke sabhi bargon ki pareshani badhegi. chale wah upbhogta yah, kharid kar khane wala ho, chota -bada beyopari ho.

Friday, September 3, 2021

तीन कृषि बिल

 तीन कृषि बिल

1-आवश्यक वस्तु  संशोधन अध्यादेश 2020

2-किसान (सशत्किकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवा पर करार अध्यादेश 2020

3-किसान उपज (संर्वधन एवं सुविधा) व्योपार एवं वाणिज्य अध्यादेश 2020

1-आवश्यक वस्तु संशोधन अध्यादेश 2020-इस कानून में अनाज, खाद्यान्न तेल, प्याज, आलू, दलहन को आवश्यक वस्तु की सूची से अलग कर दिया गया है। 

केंन्द्र सरकार का दावा है कि-आपादा की स्थिति में इसे आवश्यक वस्तु की सूचि में शामिल किया जाएगा। 

नोट-आवश्क वस्तु काननू को 1955 में ऐसे समय में बनाया गया था, जब देश में खाद्यान्न की भारी कमी से जूझ रहा था। इस काननू को बनाने का खास उद्वेश्य था-वस्तुओं की जमाखोरी और कालाबाजारी को रोकना। ताकि उचित मूल्य पर सभी को खाने का सामान मिले।

क्या है आवश्यक वस्तु अधिनियम? 2020

आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 के तहत केंन्द्र सरकार के माध्यम से कुल आठ(8) श्रेणी के वस्तुओं पर नियंत्रण रखती थी-इसमें संशोधन कर निम्नलिखित को इसमें रखा गया-

इसमें-1-ड्रग्स

2-उर्वरक

3-खाद्य तिलहन, तेल समेत खाने की चीजें

4-कपास से बना धागा

5-पेट्रोलियम तथा पेट्रोलियम उत्पाद

6-कच्चा जूट और जूट वस्त्र

7-खाद्य, फसलों के बीज और फल, सब्जियां, पशुओं के चारे के बीज, कपास के बीज तथा जुट के बीज

8-फेस मास्क तथा हैंड सैनिटाइजर शामिल है। 

केंन्द्र सरकार इस कानून में दी गयी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए राज्य सरकारों को नियंत्रण आदेश जारी करने के लिए कहता है, जिसके तहत वस्तुओं को स्टाॅक याने जमा करने की सीमा तय की जाती है और समान के अवागमन पर नजर रखती है। 

नोट-अब सरकार इस कानून में संशोधन करने अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेलों, प्याज और आलू को धारा 3(1) के दायरे से अलग कर दिया है-जिसके तहत केंन्द्र सरकार को आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन, आपूर्ति, वितरण पर नियंत्रण करने अधिकार प्राप्त है। 

मोदी सरकार का मानना है कि-अब इन वस्तुओं का उत्पादन प्रर्याप्त हो रहा है, इसलिए इस पर नियंत्रण की जरूरत नहीं है। 

मोदो सरकार का मानना है कि-उत्पादन, भंण्डारण, ढुलाई, वितरण और आपूर्ति करने की आजादी से व्यापक स्तर पर उत्पादन बढ़ेगा साथ ही कृषि क्षेत्र में निजी प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित किया जा सकेगा। इसे कोल्ड स्टोरेज में निवेश बढ़ाने और खाद्य आर्पित श्रंखला (सप्लाई चेन) के अधुनिकीकरण में मदद मिलेगी। 

नोट-निजीकरण, कृषि पर काॅरपोरेट पूंजि निवेश और एवं काॅरपोरेट बाजार को आमंत्रित करना है। 

2- किसान (सशत्किकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवा पर करार अध्यादेश 2020

इसका उद्वेश्य-कृषि उजप विपणन समितियों (एपीएमसी) मंडियों के बाहर भी कृषि उत्पाद बेचने और ,खरीदने की व्यवस्था तैयार करना है। 

किसान और विशेषज्ञों की चिंता-यह कानून लागू होने से एपीएमसी व्यवस्था खत्म हो जाएगा।

एैसे में एगमार्कनेट द्वारा कृषि उत्पादों के मूल्यों को बड़ा झटका लगेगा और देश के विभिन्न क्षेत्रों में वस्तुओं का असली मूल्य का पता लगाना असंभव हो जाएगा। 

ऐसे में सरकार को कृषि उत्पादों के मूल्य आकलन करने में भी मुश्किल होगा।

सरकार का उद्वेश्य-इस कानून का उद्वेश्य कृषि में इफ्रास्ट्रचर जैसे, कोल्ड स्टोरेज और सप्लाई चेन के अधुनिकीकरण आदि को बढ़वा देना है। 

केंन्द्र का मानना है-वैसे तो भारत में ज्यादातर कृषि उत्पादों के उत्पादन में अधिशेष (सरप्लस ) की स्थिति होती हे। इसके बामजूद कोल्ड स्टोरेज, प्रोसेसिंग और निर्यात में निवेश के अभाव में किसान अपनी उपज उचित मूल्य पाने में असमर्थ रहे हैं-कारण आवश्यक वस्तु अधिनियम की तलवार लटक रही है। 

केंन्द्र का तर्क है-ऐसे में जब भी शीघ्र नष्ट हो जाने वाले कृषि उपज की बंपर पैदवार होती है तो किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। 

यदि प्र्याप्त प्रसंस्करण सुविधाएं उपलब्ध हो तो बड़े पैमाने पर इस तरह की बर्बादी रोकी जा सकती है। 

पूर्व कृषि सचिव-सिराज हुसैन

इन्होनें कहा-इस नये कानून में कई खमियां हैं। 200-2004 में बेइमान गेंहू निर्यातकों ने आॅपन मार्केट सेल स्कीम (निर्यात) के तहत निर्यात जारी रखने के लिए कई खामियों का उपयोग कर उत्पादित निर्यात किया। इस कारण देश में खाद्यान्न की भारी कमी हो गयी, इस कमी को पूरा करने के लिए 5.5 मिलियन टन गेंहू आयात करना पड़ा। 

सिराज जी ने कहा-केंन्द्रीय पूल के स्टाॅक के मामले में न केवल लोगों को स्टाॅक की मात्रा के बारे जानकारी होती हैं-परंतु सरकार को भी एफसीआई के कम्पूटरीकरण स्टाॅक प्रबंधन प्रणाली के माध्यम से किस जगह कितना स्टाॅक पड़ा है-जानकारी होती है। 

लेकिन प्राईवेट स्केटर में रखे स्टाॅक के बारे कोई जानकारी नहीं होती है। 


3-किसान(सशक्तिकरण एवं संवर्धन) मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवा पर करार अध्यादेश-2020

यह कानून फसल की बुआई के पहले किसान को अपनी फसल को तय मानकों और तय कीमत के अनुसार बेचने का अनुबंध करने की सुविधा देता है।

इस कानून में काॅन्ट्रेक्ट फर्मिंग की बात है। 

केंन्द्र सरकार का मानना है-

इसे किसान का जोखिम कम होगा

खरीददार ठुंढने के लिए कहीं जाना नहीं पडे़गा

यह कानून किसानों को शोषण के भय के बिना समानता के आधार पर खुदरा कारोबारियों, नियात्तकों आदि के साथ जोड़ेगा। 


सवाल-इस अध्यादेश में -तीन, चार एकड़ जोत वाले किसानों का क्या होगा?


धारा -4 में कहा गया है-किसानों पैसा/कीमत तीन कार्य दिवस में दिया जाएगा

  छोटे किसान जिनका पैसा जहां फंसा है-वहां बार-बार जाकर क्या पैसा वासुल सकते हैं?


छोटे किसान-आॅनलाईन खरीद-बिक्री नहीं कर सकता है।


स्रकार वन नेशन वन मार्केट की बात कर रही है-इसे मंडियां खत्म हो जाएगें।


इस कानून से कृषि उपज विपणन समितियां खत्म हो जाएगी-इसे बिचैलियों और काॅरपोरेट का मनमानी चलेगा। 


केंन्द्र सरकार का मानना है-यह कानून किसानों के लिए लाभदायक है-

सवाल-1-यदि ये तीनों कानून किसानों के लिए लाभ दायक हैं तो राज्यसभा में इस कानून के पक्ष-विपक्ष में होने वाले बहस एवं वोटिंग को क्यों नहीं होने दिया गया?


2-तीनों कानून किसानों के लिए लाभदायक है तो-इस कानून में किसानों को, जब वे छले जाऐगें, इस पर न्याय के लिए कोर्ट जाने के अधिकार का प्रावधान क्यों नहीं किया गया?

इस काननू में किसानों को न्याय की मांग को लेकर कोर्ट जाने की जगह उन्हें जिला के एसडीएम एवं उपायुक्त के पास ही जाने का प्रावधान किया गया है। 


Wednesday, September 1, 2021

राज्य के 14 काॅलेजों में क्षेत्रीय भाषाओं के 200 शिक्षकों की होगी नियुक्ति

 24 अगस्त 2021

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन न पद सृजन की मंजूरी दी--

राज्य के 14 काॅलेजों में क्षेत्रीय भाषाओं के 200 शिक्षकों की होगी नियुक्ति

कोल्हान विश्वविद्यालय चाईबासा के 14 अंगीभूत काॅजेलों में क्षेत्रीय भाषाओं के 200 से अधिक शिक्षकों की नियुक्ति होगी। सीएम हेमंत सोरेन ने 159 विश्वविद्यालय शिक्षकों के पद सृजन पर सोमवार को सहमति दे दी। सीएम ने कहा कि उनका उद्वेश्य सिर्फ सरकारी नौकरियों में ही झारखंड की समृद्व स्थानीय भाषाओं को प्राथमिकता देना नहीं है, बल्कि इससे जुड़े पाठयक्रम को भी सशत्क करना है। जिन क्षेत्रीय भाषाओं के लिए शिक्षकों को नियुक्ति की जाने है, उनमें संथाली, हो, कुडुख, खोरठा, कुरमाली और मुंडारी भाषा शामिल है। 159 क्षेत्रीय भाषाओं के शिक्षकों के नए पद सृजित करने के लिए सीएम को प्रस्ताव भेजा गया था। 

159 विवि में सर्वाधिक 147 सहायक शिक्षकों के पद कोल्हान विवि में एवं जनजातीय भाषा के अंतर्गत संथाली, हो कुकुडख, कुरमाली और मुंडारी भाषा में कुल 159 शिक्षकों के पद सृजन का प्रस्ताव है। इसमें सहायक अध्यापक के 147, सह प्राध्यापक के 8 और प्राध्यापक के 4 पद शामिल है। 

काॅलेजों में किस भाषा के कितने पद

भाषा--------पद

कुडुख-------06

संथाली------39

कुरमाली-----39

मुंडारी------12

पीजी सेंटर्स में इन भाषाओं के पद

संथाली-----06

हो--------06

कुरमाली----06

मुंडारी-----06


वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने 6 लाख करोड़ रू. जुटाने की योजना लाॅन्च की-- रेलवे, हाईवे, रांची एयरपोर्ट समेत 13 सरकारी संपत्तियों में हिस्सेदारी इस वर्ष से निजी हाथों में-

 वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने 6 लाख करोड़ रू. जुटाने की योजना लाॅन्च की-- रेलवे, हाईवे, रांची एयरपोर्ट समेत 13 सरकारी संपत्तियों में हिस्सेदारी इस वर्ष से निजी हाथों में-

मोनेटाइजेशन पाइपलाइन के तहत मालिकाना हक सरकार के पास ही रहेगा-

केंन्द्री वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को नेशलन मोनेटाइजेशन पाइपलान (एनएमपी) लाॅन्च की। इसके तरह विभिन्न क्षेत्रों की सरकारी संपतियों में हिस्सेदारी बेचकर या संपित को लीज पर इेकर 6 लाख करोड़ रू. जुटाने का लक्ष्य है। वित्त मंत्रालय ने सोमवार को पूरा खाका पेश करते हुए बताया कि लीज पर देने की प्रकिया 4 साल, यानी 2025 तक चरणबद्व तरीके से चलेगी। निर्मला ने साफ किया कि जिन रोड़, रेलवे स्टेशन या एयरपोटर्स को लीज पर दिया जाएगा, उनका मालिकाना हक सरकार के पास ही रहेगा। लीज एक तय समयसीमा के लिए होगी। उसके बाद पूरा इफ्रास्टक्चर सरकार के पास आ जाएगा। इसमें रांची एयरपोर्ट भी शामिल है। 

कुल 13 ताह की सरकारी संपत्तियों में हिस्सेदारी बिकेगी या लीज पर दी जाएगी-

सड़कों , रेलवे से सबसे ज्यादा 3 लाख करोड़ रू. जुटाने की तैयारी-

हाईवे 1.6 लाख करोड़

रेलवे 1.5 लाख करोडऋ

पावर ट्रांसमिशन 45,200 करोड. जुटाये जायेगें

पावर जेनरेशन 39,832 करोड़ का लक्ष्य रखा है

टेलीकाॅम 35,100 करोड़

वेयरहाउसिंग 28,900 करोड़

न्ेोचुरल गैस पाइपलाइन 24,,462 करोड़

प्रोडक्ट पाइपलाइन/अन्य 22,504 करोड़

खनन 28,747 करोड़

एविएशन 20,782 करोड़

पोटर्स 12,828 करोड़

स्टेडियम 11,450 करोड़

अर्बन रियल एस्टेट 15,000 करोड़, इसमें ज्यादातर संपति दिल्ली में


हाईवेः 27600 किमी सड़कें दी जाएंगी, जो देश की कुल सड़कों की 27 प्रतिशत है-सरबार को हाईवे से ही सबसे ज्यादा पैसा मिलने की उम्मीद है। उत्तर भारत की 29 सड़कें, दक्षिण की 28, पूरब की 22 और पश्चिमी भारत की 25 सड़कें लीज पर दी जाएगी। निजी क्षेत्र इनका संचालन निर्धारित अवधि तक करेगें। यह अवधि कितनी होगी यह बाद में तय किया जाएगा। 

सड़कें निजी हाथों में जाने से क्या ज्यादा टोल देना पड़ेगा, इस सवाल के जवाब में अफसरों ने कहा कि यह कहना अभी सही नहीं है। क्योंकि टोल को नियंत्रित रखने का फाॅरमूर्ला बनना अभी बाकी है। 


रेलवेः 400 स्टेशन, 90 पैसेंजर ट्रेन, 1400 किमी के ट्रैक लीज पर देगें-सड़कों के बाद सबसे ज्यादा 1.52 लाख करोड़ रू. रेलवे में हिस्सेदारी बेचकर जुटाया जाएगा। 400 स्टेशन, 90 पैसेंजर ट्रेन, 1400 किमी के ट्रैक लीज पर देगें। साथ ही पहाड़ी इलाकों में रेलवे संचालन भी निजी हाथों में जाएगें। इसमें कालका-शिमला, दिर्जिलिंग-नीलगिरी, माथेरन ट्रैक शामिल हैं। 

265 गुडस शेड लीज पर दिए जाएगें। साथ ही 673 किमी डीएफसी भी निजी क्षेत्र को दी जाएगी। इनके अलावा चुनिंदा रेलवे काॅलोनी, रेलवे के 15 स्टेडियम को संचालन 

भी लीज पर दिया जाएगा। 


25 एयरपोर्ट भी, इनमें से 12 डेढ साल में-

6 एयरपोर्ट इसी वित्तवर्ष-

एयरपोर्ट------आय

भुनेश्वर -----  900 

वाराणसी-----500

अमृसर------500

त्रिची-------700

इंदौर-------400

रायपुर------600


6 एयरपोर्ट अगले वित्तवर्ष

एयरपोर्ट   ----आय

चेनाई -------2800

विजयवाडा-----600

तिरूपति------260

बड़ोदरा------245

भोपाल-------159

ळुबली-------130


झारखंड में होटल अशोक, दो एनएच और कई कोयला खदानें भी दायरे में-इस योजना में रांची एयरपोट, होटल अशोक, रांची समेत दो एनएच और कोल ब्लाॅक भी हैं। रोची एयरपोर्ट की अनुमनित कीमत 708 करोड़ रू. रखी गई है। यहीे होटल अशोक के लिए कीमत तय नहीं है। वहीं 79 किमी गढ़वा-बरवाछीह एनएच और 77 किमी चास-रामगढ एनएच को निजी क्षेत्रों को बेचा जाएगा। झारखंड समेत कई राज्यों की 19 कोयला खदानों की नीलामी होगी। 



Wednesday, August 11, 2021

400 बेरोजगारों ने राची के मोराबादी मैदान में सरकार से नौकरी मांगने के लिए प्रर्दशन किया.

 जटेट पास अभ्यर्थि संघ, झारखंड युथ एसैसिएशन, पंचायत सचिवालय स्वयंसेवक संघ, झारखंड होमगार्ड, और पोलेटेक्निक छात्र संघ के 400 बेरोजगारों ने राची के मोराबादी मैदान में सरकार से नौकरी मांगने के लिए प्रर्दशन किया.

‌*जेटेट पास अभ्यर्थि संघ  --सभी जेटेट उत्तीर्ण अभ्यर्थीयो की बहाली की जाए.

‌*झारखंड युथ एसैसिएशन-कारा वाहन चालकों की अबिलंब नियुक्ति की जाए.

‌*पंचायत सचिवालय स्वयंसेवक संघ-पंचायत सचिवालय स्वयंसेवक को नियमित किया जाए प्रोत्साहन राशि हटा कर एक उचित मानदेय दिया जाए.मृत पंचायत सचिवालय स्वयंसेवकों के परिजनों को जल्द से जल्द अर्थिक सहयोग दिया जाए.

‌*झारखंड होमगार्ड-सभी चयनित होमगार्ड अभ्यर्थियों को रोजगार दिया जाए, कयोकि सभी की उम्र सीमा समाप्त हो रही है.

‌*पोलेटेक्निक छात्र संघ-सात वषोॅ से बिना बहाली के 

 पोलेटेक्निक छात्र बेरोजगार हैं.जुनियर इंजीनियर और एमवीआई की बहाली में उत्तीर्ण अभ्यर्थियों को प्रथमिकता मिले.

Tuesday, August 10, 2021

How we can Become more powered in Economic

 by Advocate Dhanic Gudia on 9th Agust 2021 in Khunti, About Ribal Rights and  Livelihood.
Advocate Dhnic Gudia ne Adivasi Samuday se Appile kiya, Ham Krishi ke sath Business me bhi aage aayn. Jangal, Jameen, Nadi, pani, minirals sabhi hamare jameen me hai. ham logon ko apne hi jangal jameen se hata kar punjipati loha, koyla, abrakh, sona, chandi nikal kar desh ka sabse 
 amir admi ban rha hai, aour ham log kangal ban rahe hain. ab ham  logon ko bhi apne khet, jameen ke upaj ka pewpar, business khud karna hoga. apne jangal ke upaj ka bewpar khud karna hoga, tabhi hamara bikas hoga, apne sansadhan per ham khud hi niyantran karenge, tab hamar binas nahi hoga. 

Saturday, July 31, 2021

रांची की सोना खान समेत 28 ब्लॉक की होगी नीलामी--30 जुलाई 2021.

 

रांची की सोना खान समेत 28 ब्लॉक की होगी नीलामी--30 जुलाई 2021.
इन प्रमुख खदानों की होगी निलिमी...
लौह अयस्क--मेरालगडा----115.22 हेक्टेयर
                   घाट कुरी-----138.84 हेक्टेयर
बरालजोडी मैगजीन खदान--21.24 हेक्टेयर
शराय बुरु टाटीबा लौह एवं मैगजीन खदान--258.98
हेक्टेयर
घाटकुरी 1-149.74 हेक्टेयर
ठाकुरानी-84.68 हेक्टेयर
एनकेपीके--84.68 हेक्टेयर
करमपदा इस्ट और वेस्ट लौह अयस्क खदान

बोकसाइड--दुरघापाट ललोहरदगा--130 हेक्टेयर
दुघापाट 1--80 हेक्टेयर
लोधापाट गुमला--63 हेक्टेयर
इसके अलावा गुमला स्थित रिशाटोली, हापुड़,मधुपाट, व लोहरदगा स्थित महुआपाट.

कोपर--बरांगडा, गिरिडीह--59,159 हेक्टेयर
पलामू के पोंची व रेवारी में ग्रेफाइट
गढवा के खुटिया डोलोमाइट खदान
रांची के पियरटांड लाइमस्टोन व अन्य खदान भी निलाम होगें..

Sunday, July 4, 2021

अखिर सरकार अपने ग्रामीण जनता Kishanon के प्रति किस तरह और कितना इम्मान और जिम्मेवार एवं जवाबदेह बनेगा, यह झारखंड के आदिवासी-मूलवासी किसानो के लिए सबसे बड़ा सवाल हैंै।

 27 मार्च 2012

आज आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच की ओर से सीएनटी एक्ट को लेकर खूंटी जिला मूख्यालय में रैली और सभा का आयोजन किया गया है। रैली 10 बजे से तोरपा रोड़ दयासागर के समीप से निकलेगी। गरर्मी तेज होते जा रही है। इसलिए साथियों ने कहा-कि गांव से लोग जल्दी निकलें, ताकि हमलोग रैली निकाल सकें। मैंने जलसंसाधन विभाग खूंटी के नाम एक आरटीआई आवेदन -तजना नदी में प्रस्तावित डैम के बारे में जानकारी मांगने के लिए लिखी हूं। मैं 4 मार्च को इस आवेदन के साथ  कदमा स्थित जलसंसाधन कार्यालय भी गयी थी। उस दिन एक्जक्यूटिव इंजिनियर श्री बचनेश्वरजी बुंडू गये, मंत्री सुदेश महतो का कार्यक्रम के लिए । उनके कर्मचारियों के साथ डेम के संबंध में बातें र्हुए, आरटीआई आवेदन के बारे भीं। लेकिन एक्जक्यूटिव इंजिनियर जी ने मुझे मना किया आवेदन देने से। बोले-मेडम आप को जो भी सूचना चाहिए, मैं आप को दे दुंगा। मैं रांची में आप के बगल ही रहता हैं-रविवार को काॅपी आप के घर पहुंचा दुंगा। मैंने विश्वास किया और आवेदन छोड़ कर नहीं आयी।

लेकिन आज तक संबंधित डैम संबंधित जानकारी कोई भी कागजात मुझे नहीं मिला। आज खूंटी जाना है। मैंने जाते समय एक्जक्यूटिव इंजिनियर से फोन की-बोली आज मैं आप के पास आ रही हुं-आप को डैम से संबंधित जानकारी की काॅपी मांगी थी-फोटो काॅपी करके रखे रहिएगा-मैं आ रही हूुं। जवाब में एक्जक्यूटिव इंजिनियर ने कहा-मैडम आप को मिल जाएगा लेकिन मैं अभी रांची में एक बैठक में हुं। दूसरी बेला ही खूंटी जा सकता हूं। मैं ने कहा-ठीक है-मैं इंतजार करूंगी। आज खूंटी का रैली के लिए मेरे साथ कांके-नगड़ी में आईआईएम और लाॅ कालेज के लिए सरकार किसानों का 227 तकड़ जमीन पुलिस के बल पर कब्जा करने जा रही हैं। इसके खिलाफ में संघर्षरत ग्रमीण 3 मार्च 2012 से अपने खेत में सत्यग्रह आंदोलन में बैठे हैं। इन लोगों के बीच से सविता और मंजुला मेंरे साथ आज खूंटी जा रहे हैं। 

11.3.0 बजे तक आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच के तोरपा के कई गांवों के साथी आ पहूंचे हैं। कर्रा में कांटी जलाशय के खिलाफ संघर्षरत-डैम प्रभावित संघर्ष समिति से भी जबड़ा से आ चुके हैं। कुलड़ा और कनकलोया के साथी रास्ते में है,ं पहुंचे नहीं हैं। इन सभी साथियों का इंतजार कर रहे हैं-क्योंकि सभी रैली के लिए निकले हैं। 5 मिनट के भीतर ही कोरको टोली का ट्रक पहुंच गया। इसमें महिला, पुरूष, नवजवान तथा बच्चे हर उम्र के लोग आये हैं। बंधना और बुधवा ने बताया-दीदी कुलड़ा वालों को ड्राईवर नहीं मिल रहा था-हमलोग अपना गांव का लड़का को कुलड़ा वालों का गाड़ी चलाने के लिए लाये हैं। वो लोग हम लोगों के पीछे थे-पहुंच ही रहे हैं। जैसे ही कुलडा वाले पहुंचे-रैली निकल गयी।

रैली में एक माईक आगे आगे रिक्सा में था। दूसरा माईक बीच में पुरूषों के साथ था। लोग साईकिल में बैटरी को बांधे हुए थे और चोंगा को एक पुरूष साथी कंधा पर ढ़ोया हुआ था। रैली में नारा बहुत बुलंदी के साथ साथी लगा रहे थे। नारा दूर दूर तक गुंज रहा था, विकास के नाम पर आदिवासी-मुलवासियों का जमीन लूटना बंद करो, सीएनटी को कडाई से लागू करो, जल-जंगल-जमीन हमारा है, हम अपने पुर्वजों की एक इंज जमीन नहीं देगें। रैली की अगुवाई कोई आगे आगे चल कर नहीं कर रहे थे-आगे बैनर वाले थे। लेकिन रैली किधर से गुजरेगी-यह स्वत अगुवाई आगे चल रहे साथी कर रहे थे। इतना गंभीर और अनुशासित, मैं इसे देख बहुत गर्भ महसूस कर रही हुं। कि जो मेहनत मैंने लोगों को तैयार करने में की -वह आज दिखाई दे रहा है। 

कई गांव के किसान दयासागर अस्पताल के समीप रोड़ में जमा होने लगे। सब गांव के किसानों के पहुंचने के बाद वहां रैली निकली। रैली नीचे चैक होते हुए उपर चैक तक जाकर बाजार के रास्ते वापस नीचे चैक होते हुए चाईबासा रोड़ पहुंचे। खूंटी काॅलेज के सामने से खूंटी बाजार टांड पार किये ही थे-कि ई टी वी के शैलेंन्द्ररजी, हिन्दुस्तान के संवाददाता और एक दो लोग पहुंचे। कचहरी मैंदान में छोटा सा टेंन्ट लगा हुआ था। जहां 10-15 कुर्सी रखा हुआ है। मैदान रैली पहुंचने पर 5-10 मिनट तक सभी नारा लगाते रहे। धूप के कारण कुछ लोग रैली में नही शामिल हो सके वे, पहले ही मैदान में सामने  पेड़ की छाया में बैठे रैली पहुंचने का इंतजार कर रहे थे। बाद में तुरतन तोपनो, हादु तोपनो और उनके साथियों ने माईक में सबको बैठने का अग्राह किये। साथ ही गांव के मुल-मुल साथियों को मंच में बुलाया। 

जैसे ही रैली मंच के करीब पहुंचने लगी-नारा और बुलंद होने लगा। 

नारा-सी एन टी एक्ट की मूल धारा 46 को कड़ाई से लागू करो-लागू करो, सी एन टी एक्ट के मूल धारा 46 में किसी तरह का संषोधन मंजूर नहीं-मंजूर नहीं।  हमारे पूर्वजों का जमीन मत लूटो-मत लूटो, विकास के नाम पर आदिवासी मूलवासियों का विस्थापन बंद करो-बंद करो, सी एन टी एक्ट के मूलधारा 46 में किसी तरह का छेड़-छाड़ बरदस्त नहीं -बरदस्त नहीं, झारखंड के दलालों होष में आओ-होश में आओ, जमीन दलाल होश में आओ-होश में आओ, दूध मांगों तो खीर देगें-जमीन मांगों तो चीर देगें के गगन भेदी नारा गूंज रहा था। 

सभा का संचलान का अध्यक्षता के लिए आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच के अध्यक्ष श्री रेजन तोपनो ने किया तथा संचालन का भार  सेरनुस तोपनो को सौंपा गया। सभा को बोनिफस तोपनो, सुखनाथ सिंह, पुष्पा आइंद, शिवचरण मिश्र, बिरसा तोपनो, ने मंच की ओर से संबोधित किये। खूंटी के वकील श्री धनिक गुड़िया ने-सभा को संबोंधित करते हुए कहा-सी एन टी एक्ट कानून झारखंड के आदिवासी मूलवासियों के जंगल-जमीन के साथ इनके भाषा-संस्कृति का सुरक्षा कवच है, इसको कड़ाई से लागू करना होगा, इसके लिए हम लोगों का सरकार पर दबाव क बनाने की जरूरत हैं। इस कानून के रहते हुए-हमारा जंगल-जमीन खूले आम छीना जा रहा है-अगर यह कानून खत्म हो जाएगा, तो हम हर हालात में खत्म हो जाऐगें। 

धनामुंजी से आये जोसेफ ने कहा-हम तो यहां आप लोगों को अपना दुख बांटने आये हैं। एक सप्ताह पहले एक अखबार में खबर छापा था-कि तजना नदी में जिला का सबसे बड़ा डैम बनेगा। कई गांवों का खेती का जमीन पूरी तरह से डूब जाएगा। हम लोगों का जीने का मात्र आधार सिर्फ खेत-टांड ही है। आप लोग तो लड़ाई लड़ रहे हैं-ंअब हम लोगों को भी साथ दिजीएगा। हम लोग अभी नये लोग हैं लड़ाई लड़ने के मामले में । अभी हम लोग बैठ करना शाुरू कर दिये हैं-आप लोगों को भी बुलाएगें। कांके-नगड़ी से आयी मंजूली जी ने भी बात रखी-कांके -नगड़ी के किसानों की जमीन को सरकार पुलिस के बल पर आई आई एक और लाॅ कालेज के लिए कब्जा कर रही है। जमीन को घेराबंदी कर रही है। हम लोग 3 मार्च से अपना जमीन बचाने के लिए सत्यग्रह आंदोलन प्ररंभ कर दिये हैं। आप लोगों से अग्राह है कि आप लोग भी हम लोगों को साथ दिजीएगा ताकि हम सभी मिलकर हमारा जमीन छीना जा रहा है-इसको रोकेगें। 

सभा को कोयलकारो जनसंगठन के साथि अमृत गुड़िया ने संबोधित करते हुए कहा-हम किसी भी कीमत में सी एन टी एक्ट के साथ किसी तरह का खिलवाड़ होने नहीं देगें। यह बिरसा मुंडा के खून से हमारो जमीन -जंगल की रक्षा के लिए लिखा गया कानून है। इसकी रक्षा करना हमारा -पहला जिम्मेवारी है। बसंत सुरिन को अपनी बात रखने के लिए कहा गया-इन्होंने माईमक थामते ही -नारा देने लगा-मीडिया की राजनीति बंद करो, मीडिया वाले-सी एन टी एक्ट पर गलत लिखना बंद करो, मीडिया वाले होष में आओ। मैं समझ नहीं पर रही थी कि ये क्या कह रहा है। लेकिन दो मिनट के बाद मैंने खड़ी होकर बसंत को रोकने की कोषिष की, इसके बाद वह गलत नारा देना बंद किया। इसे आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच ने महसूस किया -यह हमारे सिद्वांत के खिलाफ है-हमारी मीडिया से नहीं है, हमारी लड़ाई तो उन से है-जो विकास के नाम पर हमें उजाड़ना चाहते हैं-इसमें सरकार ही क्यों न हों। मंच ने महसूस किया कि-नये लोगों को आदिवाी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच के मंच में किसी भी नये साथी, जो हमारे अन्य गतिविधियों में ष्षामिल न रहा हो यह सिरियस नहीं है-उसे हमारे मंच में जगह नहीं देना चाहिए। केरको टोली के साथियों ने बिरसा मंुडा के उलगुलान के दो गीत गाये। सभा के अंतिम में खूंटी उपायुक्त को दिये जाने वाले मांग पत्र को सभा में पढ़ा गया-एक स्वर में इसे पास किया गया। इसके बाद एक प्रतिनिधि मंडल उपायूक्त कार्यालय जाकर मांग पत्र सौंपा। 


शाम 5 बजे मैने जलसंशाधन विभाग के एक्जक्यूटिव इंजिनियर को फोन किये कि आप कार्यालय में हैं-मैं आ रही हूं। करीब 5.30 बजे हम लोग खूंटी बाजार निकट स्थित स्वस्थ्य पेय जल संसाधन विभाग कार्यालय में पहुंचे। मैंने  से एक्जक्यूटिव इंजिनियर तजना नदी में प्रस्तावित डैम के डी पी आर के बारे में जानकारी मांगी थी, इस के संबंध में बातें की। एक्जक्यूटिव इंजिनियर ने एक 5 पेज का रिर्पाट मुझे दिये। इस रिर्पोट को मैं पलटकर देखने लगी। लेकिन इसे बहुत कुछ समझ में नहीं आ रहा था। एक्जक्यूटिव इंजिनियर ने कहा-यह रिर्पोट करीब 40 साल पहले बना हुआ है, इसका आज कुछ महत्व नहीं है। परियोजना के लिए नये सिरे से सर्वे रिर्पोट बनेगा। इसके लिए हैदराबद की कंपनी मेसर्स अवंतिका कंस्ट्रक्श्न को टार्रनकी बेसिस पर ठेका दिया गया है। 

एक्जक्यूटिव इंजिनियर ने बताया कि-दिये गये ठेका के आधार पर कंपनी ही सर्वे करेगा, नक्सा बनाएगा और डिजाईन भी करेगा।  इन्होंने बताया कि कंपनी न एक सर्वे टीम हैदराबाद से लेकर आया था। सर्वे किया, रिर्पोट भी तैयार कर दिया, लेकिन इसमें कुछ खामियां है। इसलिए फिर से सर्वे करने का निर्देष दिया गया है। हम लोग चाहते हैं कि एक भी घर विस्थापित न हो। अगर एक-दो घर भी डूबेगा तो उसके लिए बेहतर-पुनर्वास किस तरह किया जा सकता है-इसकी कोशिश की जाएगी। 

इंजिनियर के अनुसार कंपनी के द्वारा सर्वे करने के बाद ही पता चलेगा कि -किन किसानों का कितना जमीन डैम से प्रभावति होगा या डूबेगा। सर्वे रिर्पोट तैयार करने के बाद, नाक्सा और डिजाइंनिग के बाद -यह भू-अर्जन विभाग को भेजा जाएगा। जमीन का कीमत दक्षिणी छोटानागपुर के आयुक्त तय करेगें। लेकिन काम शुरू करने की घोषणा तो आप लोग कर दिये हैं। जबाव दिये-जी सर्वे तो हो गया। काम का प्रक्रिया भी प्ररंभ कर दिया गया है। इन्होंने बताया कि यह परियोजना 28 साल पूराना है। 

एक्जक्यूटिव इंजिनियर के अनुसार योजना के वित्तीय वर्ष 7-8 के पत्रांक संख्या 23, प्रशासनिक स्वीकृति दिनांक 22 फरवरी 08 को मिली है। उस समय स्वीकृत बजट 74.42 करोड़ की थी। इसका टेंडर 2008 में श्री सिंह (जाना-माना ठेकेदार) को दिया गया था। इससे 2010 में राष्ट्रपति शासन के समय इसे रदद किया गया। रदद करने का कारण पूछने पर श्री सिंह ने बताया- सिंह कोनर्टेक्टर का प्रक्कलित बजट 18.2 प्रशित अधिक था। उस समय सरकार का प्रक्कलित बतट 58 करोड़ था, इसमें लगभग 20 प्रतिशात अतिरिक्त था। याने कुल 68 करोड का था। इन्होंने बताया कि- सिंह कोनक्टेटर का टेंडर रदद किये जाने के बाद ठेकेदार ने सरकार पर केस किया हाई कोर्ट में। बहस के लिए इन्होंने सुप्रीम कोर्ट से वकील लाया था। लेकिन वह केस हर गया। इसके बाद सरकार ने दिसंबर 2010 में फिर से नया टेंडर निकाला। इस नये टेंडर में हैदराबाद की कंपनी अवांतिका को टेंडर मिला। 

ग्रामीण बताते हैं-हम लोगों को पता भी नहीं था, कि हमारे यहां तजना नदी में डैम बनने वाला है। हम लोग अखबार में पढ़े -जिसमें लिखा हुआ था-जिला का सबसे बड़ा डैम तजना नदी पर बांधने वाला है। कहते हैं-कुछ दिन पहले कहां से कुछ लोग आये थे-क्या सब  नाप-जोख रहे थे-कुछ पुछने पर कुछ जवाब भी नहीं देते थे, हिन्दी भी नहीं बोल पाते थे। विदित हो कि उक्त परियोजनो को लेकर ठेकेदार और सरकार के बीच केस भी हुआ-लेकिन जिन किसानों के जमीन पर उत्क परियोना बननी है, उन किसानों को पता भी नहीं है कि उनके खेत-टांड, जमीन-जंगल में डैम बनाने के लिए किसी ठेकेदार को टेंडर भी दिया जा चूका है और उसने-किसानों के जमीन पर डैम बनाने के लिए हाई कोर्ट में केस भी चल रहा है। यह अपने आप में अजीब सी बात है कि जिनके खेत-खलिहान को निलामी की जा रही है। अखिर सरकार अपने ग्रामीण जनता के प्रति किस तरह और कितना इम्मान और जिम्मेवार एवं जवाबदेह बनेगा,  यह झारखंड के आदिवासी-मूलवासी किसानो के लिए सबसे बड़ा सवाल हैंै। 


Saturday, July 3, 2021

Save The Earth--Save Environment

SAVE THE ENVIRONMENT
Without Saving Land, Forest and Water Bodies , We can't Save the Environment 

 

Thursday, July 1, 2021

Hul Jari Rahega

Sabhi saathiyon ko bula Johar

Thursday, March 4, 2021

बजट 21-22, झारखंड सरकार

 बजट 21-22, झारखंड सरकार

91,277 करोड़

हेमंत सरकार का वित्तीय वर्ष 2021-22 का बजट-गांव और गरीब पर केंन्द्रीत किया गया है। सरकार ने बजट में ग्रामीण विकास विभाग, सिंचाई, कृषि, सहकारित व पशुपालन विभाग के लिए 18,653 करोड़ रूप्ये का प्रावधान कर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का प्रयास किया है। किसानों को जोड़ा बैल, प्शुपालकों को दो गाय, गरीब के लिए भोजन, मनरेगा मजदूरी में 31 रूपये की वृद्वि, बंधुआ मजदूरों के पुनर्वास के लिए काॅर्पस फंड, विदेश में प्रवासी मजदूरों की मौत पर पांच लाख का मुआवजा, महिलाओं को स्वालंबी बनाने के उद्वेश्य से फूलो-झानों आर्शीबाद योजना को आगे बढ़ाने का प्रावधान करते हुए सरकार ने समाज के अंतिम व्यक्ति पहुंचाने की कोशिश की है। खास बात यह है कि लोगों पर किसी तरह का नया टैक्स नहीं लगाया गया है, यह सरकार का मानना है। ं

कृषि-पशुपालान-राज्य में बकरी प्रक्षेत्र बनाया जायेगा, जोड़ा बैल बांटने की भी योजना । 80 लाख लीटर दूध प्रतिदिन उत्पादन का लक्ष्य, खूंटी के गौरियाकरमा में चूजा प्रजनन केंन्द्र की होगी स्थापना। जमशेदपुर व गिरिडिल में डेयरी प्लांट खुलेगा। रांची में मिल्क प्रोडक्ट व मिल्क पाउडर प्लांट की होगी स्थापना। 

स्वास्थ्य

500 बेड का सदर अस्पताल रांची में, इसी महीने से शुरू होगा। दुर्गम स्थानों पर पर रहने वाले लोगो को मोबाइल वैन से चिकित्सा सेवा उपलब्ध होगी।

समाज कल्याण

बुजुर्गों की समस्या का समाधान करने के लिए चालू होगी टेलीफोर हेल्पलाइन, सरकारी स्वास्थ्य केंन्द्रों पर सस्ती दवाओं के लिए जन औषधि केंन्द्र खुलेंगें।

श्रम नियोजन

थ्वदेश गये प्रवासी श्रमिक की असामयिक मौत पर उनके आश्रित को एकमुश्त पांच लाख रूपये का भुगतान शिल्पियों को अनुदान पर सामान।

ग्रामीण विकास

सखी मंडलों के उत्पादन और करोबार को पलाश ब्रांड के जरिये बढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित, बिरसा ग्राम विकास योजना के लिए 61 करोड़ं।

खेलकूद-पर्यटन

सभी गांवों में एक-एक सिदो-कान्हू खेल कल्ब की स्थापना की जायेगी। लुगुबुरू व रजरप्पा को बृहद पर्याटन गंतव्य के रूप में विकसित किया जायेगा। 

राजस्व व्यय--75,755.01 करोड

पूंजीगत व्याय-15,521.99 करोड़

सामान्य क्षेत्र-26,734.05 करोड़

सामाजिक क्षेत्र-33,625.72 करोड़

आर्थिक क्षेत्र-30,917.23 करोड़

महत्वपूर्ण विभागों को बजट आवंटन-राशि करोड़ रूपये में

ग्रामीण विकास-7388.42

पंचायती राज-2196.36

प्राथमिक शिक्षा-4039.32

उर्जा विभाग-4200.00

पथ विभाग-3480.00

स्वास्थ्य विभाग-2983.72

कृषि विभाग-2973.20

न्गर विकास-2702.95

खाद्य आपूर्ति-2060.13

डद्योग विभाग-3350.00

ग्रामीण क्षेत्रों में आधारभूत संरचना के लिए-2125.36 करोड़

क-पंचायत समिति-304.03

ख-ग्राम पंचायतों को-1,618.65

ग-जिला परिषद-202.68


Wednesday, March 3, 2021

ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए अबांटित 18,653 करोड़ राशि को राज्य के विकास के लिए बुनियादी ढांचों की स्थापना को प्रमुखता देने की जरूरत है।

 झारखंड सरकार- बजट 2021-22 

झारखंड की गंठबंधन सरकार ने 2021-22 के लिए 91,277 करोड़ का बजट पेस किया है। इसमे 18,653 करोड़ रूपये ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए रखा है।  इसके लिए राज्य की हेमंत सरकार को निमीलिखित नीतिगत फैसला लेने की जरूरत है। इसके लिए निम्नलिखित कदम उठाते हुए, ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए अबांटित 18,653 करोड़ राशि को राज्य के विकास के लिए बुनियादी ढांचों की स्थापना को प्रमुखता देने की जरूरत है। 

1--पांचवी अनुसूचि में प्रावधान अधिकारों को स्थापित करना-स्थानीय ग्रामीणों के लिए प्रावधान अधिकारों को लागू करते हुए सरकार राज्य के लघुवनोउपज और लघु उद्वोगों को स्थापित एवं संचालित करने की जिम्मेदारी स्थानीय ग्राम सभा को दे, इसके लिए ग्राम सभा इकाइयों का पंजीकरण को प्रथमिकता दी जाए। इसके लिए राज्य सरकार ग्राम सभा समितियों को काॅपरेटिव लाइसेंस दे, ताकि राज्य के खनिज संपदा के उपयोग पर स्थानीय लोगों की भागीदारी सुनिश्चित हो सके।

2--गांव-पंचायत के अंदर गिटटी, बालू, पत्थर खदान का लीज स्थानीय गांव समितियों को दंे। क्योंकि यह ग्रामीणों का कानूनी अधिकार है, जो आज तक किसी भी सरकार ने ग्रामीणों को नहीं दिया। इसके लिए ग्रामीणों को प्रशिक्षित करने का अभिायान चलाये। 

3--राज्य के खनिज से हर साल करोड़ो रूपया का रोयल्टी राज्य को मिलता है। इसका उपयोग, कृषि विकास, शिक्षा, स्वस्थ्य, रोजगार सृजन को विकसित करने में उपयोग हो, इसके लिए नीति बने। 

4--स्थानीय बेरोजगारों को कौशल विकास का प्रशिक्षण देकर स्थानीय स्तर पर ही रोजगार का अवसर दिये जाने का प्रावधान किया जाए। 

5--राज्य में कृषि विकास को प्रथमिकता देते हुए कृषि विश्वविद्यालय को सशत्क किया जाए, और यह जिम्मेवारी दी जाए की राज्य में कृषि के परंपरागत तकनीकी को सुद्धीढ किया जाए। कृषि विभाग स्वेतपत्र जारी करे कि, राज्य में कितना कृषि भूमि पिछले 50 वर्षों में घट गया है। यह भी जारी करे कि राज्य में आबादी के अनुपात खाद्यान की क्या स्थिति है? ताकि राज्य में खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए कृषि क्षेत्र को विकसित किया जा सके। 

6--पुनासी जलाशय, औरंगा जलाशय, उतरी कोयल जलाशय, बटेश्वर नहर योजना, भैखा जलाशय, सुरू जलाशाय, नकटी जलाशय, रामरेखा जलाशय, झरझरा जलाशय, घगरी जलाशाय, केशो जलाशाय, बटाने जलाशाय, सलैया जलाशाय,, कांस जलाशाय, सतपोटका जलाशाय,, तोराई जलाशाय, कतरी जलाशाय, धनसिंह जलाशाय, आदि बनाये गये हैं। राज्य में औद्योगिक विकास के लिए तिलैया डैम, कोनार, मैथन, पंचेत, तेनुघाट डैम, चांडिल डैम, इन सभी डैमों का पानी को पाईप लाईन द्वारा उन क्षेत्रों के किसानों के खेतों तक पहुंचाना सुनिश्चित किया जाए। इसे राज्य में कृषि भूमि का विस्तार के साथ कृषि उत्पादन  भी बढ़ेगा। ताकि झारखंड खाद्यन्न उत्पदान के साथ पर्यावरण संरक्षण को लेकर विश्व में मोडल पेश कर सके। 

7--राज्य में औद्योगिकीकरण के कारण जितने जलस्त्रोत प्रदूषित हो चुके हैं, उनको प्रदूषण मुत्कि किया जाए। ताकि राज्य में पानी का अभाव दूर किया जा सके। 

8--राज्य को भौगोलिक क्षेत्र सिर्फ  79,741 वर्गकिलो मीटर है। इस सीमित जंल-जमीन एवं प्रकृतिक धरोहर के साथ सस्टेनेबल विकास(टिकाउ विकास) के मोडल को लागू करने की जरूरत है। इसके लिए विकास का रोड़ मैप तैयार किया जाए, जैसे आवागमन के लिए रेलमार्ग, संडक मार्ग, हवाई मार्ग के लिए कुल कितना जमीन उपयोग करना है, कितना क्षेत्रफल कृषि के लिए, जंगल-प्र्यावरण के लिए, कितना उद्योगों के लिए उपयोग करना है। शिक्षण संस्थानो-स्कूल, काॅलेजं, इंजिनीयरिंग, टेनिकल, विश्वविद्यालयों,  अस्पताल, मेडिकल आदि की स्थापना के लिए भी जमीन उपयोग का रोड मैप तय हो । 

9--राज्य के गैर मजरूआ आम, खास, परती, जंगल-भूमि, जमीन को सरकार लेंड बेंक के दायरे में आयी हे, इन सभी नेचर के भूमि को  भूमि बैंक से मुक्त किया जाए, तभी राज्य का पर्यावरण ओैर कृषि उद्योग को विकसित हो। 

10--बड़े उद्योगों के लिए कितना पानी की जरूत है, यह तय होना चाहिए। एैसा न हो कि सारा पानी सिर्फ बड़े औद्योगिकों को ही प्रथमिकता में रखा जाता है। दूसरी ओर कृषि-पर्यावरण और सामुदाय के उपयोग के लिए पानी का हाहाकार मच जाता है। 

11--मनरेगा योजना के तहत -गांव सभा तय करे के गांव में क्या चाहिए, कृषि, जलसंसाधन और पर्यावरण को विकसित करना है, ना कि संड़क केवल बनाया जाए। 

12--राज्य में सिर्फ 13 राजकीय टेकनिकल सेंटर हैं, उससे बढाया जाये, ताकि राज्य के अधिक छात्राओं को प्रशिक्षित किया जा सके

13--राज्य में खेती किसानीं के काॅरपोरेटीकरण करने वाली किसी व्यवस्था को लागू नहीं किया जाए। ताकि ग्रामीण किसान अपने परंपरागत खेती-किसानी को विकसित कर सकेगें। 

14--किसानों के उत्पादों को बिक्री करने के लिए बाजार का उचित व्यवस्था हो, जहां किसान अपना उत्पाद उचित मूल्यों में बेच सके। 

15--राज्य में उपलब्ध वनोपज तथा कृषि उत्पाद की उपलब्धता के अनुसार राज्य के सभी जिला मुख्यालायों में एक फूड प्रशेषिंग यूनिट बनाया जाए।

16--कृषि उत्पादन एवं वनोपज की उपलब्धता के अनुसार हर प्रखंड एव जिला मुख्यालय में सरकारी कोल्ड स्टोरेज की व्यवस्था की जाने चाहिए। 

17--राज्य के अधिकांश जिलों में कुसुम, पलाश, बैर के पेड अधिकाई से मिलेगें, जिसमें किसान पहले से हि लाह खेती करते आया है, इसको और बेहतर कैसे किया जाए, इसकी नीति बनाने की जरूरत है

18--राज्य के अधिकांश जिलों में बांस होती है, आदिवासी गांवों में बहुत अधिक पैमाने पर बांस मिलेगा, इसको कुटीर -बांस उद्योग से जोड़ने की जरूरत है।

19--राज्य के भाषा-संस्कृति, लिपि, कला-संस्कृति, को विकसित -संरक्षित करने के लिए स्थानीय कलाकारों को प्रोत्साहित करने के लिए नीति बननी चाहिए। 

राज्य के सभी प्रखंड मुख्यलयों  के रेफरल अस्पतालों में दवा एवं डाक्टर, नर्स की उपस्थिति सुनिश्चित करने  के साथ जिला स्थित सदर अस्पतालों में एक-दो आईसीयू की व्यवस्था हो, ऐसी स्वास्थ्य नीति राज्य में बननी चाहिए।

-20---आॅउट सोरशिंग बद करके-स्थानीय बेरोजगारों को रोजगार प्रदान करने के लिए सभी प्रखंड मुख्यालय, स्कूल-काॅलेज, अस्पताल, पंचायत भवनों एवं जिला मुख्यालायों में चपरासी से लेकर कमप्यूटर आॅपरेटर तक स्थानीय युवाओं को नियुक्त करना होगा। 



Tuesday, March 2, 2021

विषय- तीनों नये कृषि कानून 2020 को रदद करने मी मांग एव परंपरागत खेती-किसानी को सशक्त करने की मांग के संबंध में।

 सेवा में प्रधान मंत्री महोदय                           पत्रांक.....01....

मननीय श्री नरेंन्द्र मोदी जी                          दिनांक...28.Jan. 2021....

भारत सरकार

नई दिल्ली

विषय- तीनों नये कृषि कानून 2020 को रदद करने मी मांग एव परंपरागत खेती-किसानी को सशक्त करने की मांग के संबंध में। 

महाशय,

भारत एक कृषि प्रधान देश है। देश की 80 प्रतिशत आबादी परंपरागत कृषि अर्थव्यवस्था पर निर्भर है। झारखंड में 80 प्रतिशत जनता खेती और वनोपज पर निर्भर करती हैं, इन आदिवासी-मूलवासी, किसानों का सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक अस्तित्व का जीवंत ताना-बाना जंगल, जमीन, नदी-नाला, खेत-खलिहान के साथ है। खाद्यान्न के लिए खेतों की उपज और वनोपज ही हमारी जीवन का मूल आधार है, जो हमारे अत्मनिर्भरता का सशक्त स्थंभ है। 

परंपरागत खेती-किसानी ही राज्य के पौने चार करोड़ आबादी के खाद्यान्न की आवश्यकता पूरा कर सकता है। किसानों की आय दोगुणी करने के लिए राज्य में उपलब्ध जलस्त्रों के पानी को पाईपलाइन द्वारा किसानों के खेतों तक पहुंचाना, एवं राज्य की बंजर भूमि एवं असिंचिंत भूमि को कृषि उपज के लिए विस्तार करना भी राज्य सरकार की जिम्मेदारी है। 

तथाकथित विकास के नाम पर करोड़ों झारखंडी आदिवासी-मूलवासी किसान पहले ही अपने धरोहर से विस्थापित हो चुके हैं, जिनको आज तक न तो नौकरी मिला, और न आर्दश पूनर्वास किया है। किसानों को अपने खेत-खलिहान, जंगल-नदी, झारना से अलग करने वाली काॅरपोरेट खेती, कंपनियों का किसानों के खेती-किसानी में किसी तरह का दखल या हस्तक्षेप की इजाजत झारखंडी किसान नहीं देगें।

राज्य में भूमिहीन परिवार, विस्थापित परिवार, मेहनत-मजदूरी कर जिंदगी गुजारने वालों की संख्या भी काफी है। तीनों नये कृषि कानून से सिर्फ अनाज यह फसल उपजाने वाले किसानों पर ही संकट नहीं आएगा, बल्कि किसानों के फसलों के स्थानीय छोटे व्यापारी एवं उपभोगक्ता या खरीदकर खाने वालों की भी परेशानी बढ़ेगी, क्योंकि काॅरपोरेट, कंपानियां अपने गोदाम में जमा किये, खाद्यान्न को उंची दाम पर उपभोक्ताओं को बेचेगें। इसे मंहगाई और भूखमरी बढ़ेगी। 

हमारी जनता में शिक्षा का दर कम है, इसके कारण काॅरपोरेट और मुकदमों के दांव-पेंच में ठगे जाएंगें । इतिहास गवाह है कि आजादी के बाद बड़े बड़े उद्योग धंधों से विस्थापित जनता को मुअवाजे में रूपया दिया गया था, उस पैसों से बिजनेस और व्यापार नहीं कर सके और भूमिहीन मजदूर बन कर शहरों के श्लाम में खो गये। हमारी जमीन गयी, हमारी जीविका चली गयी, हमारी आबादी घटी, हमारी परंपरा, पहचान, गयी। अब इसका पुनरावृति झारखंड में नही ंहोने देगें। 

तीनों नये कृषि कानून 2020 जो लाये गये हंै, उसका झारखंड के किसानों, पर जिनके पास छोटा जोत है, प्रतिकूल असर पड़ेगा। इसलिए यहां की जनता तीनों नये कृषि कानून 2020  का विरोध करती हैं। 

राज्य के करीब 56 लाख विभिन्न राशन कार्डधारी परिवारों को पौष्टिक खाद्यान्न की अपूर्ति के लिए, जरूरी है कि राज्य के परंपरागत खेती-किसानी को सशक्त करें, किसानों के गोपालन, मुर्गीपालन, बत्तक पालन, मधुमक्खी पालन, मतस्य पालन आदि को बढ़वा दें, ताकि किसानों की अमदनी के टिकाउ स्त्रोत बनी रहे।  

हमारी परंपरागत खेती-किसानी को संरक्षित एवं विकसित करतेे हुए राज्य कि किसानों की आय दोगुणी करने एवं टिकाउ विकास को सशक्त बनाने  के लिए हमारी मांगें हैं-

1-तीनों नये कृषि कानून को रदद किया जाए

2-धान के साथ हमारा परंपारिक फसल मडुंआ, शकरकंद, मक्का, मुंगफली, सुरगुजी, तिल आदि फसलों के साथ सब्जियों का एमएसपी (न्यूनतम सर्मथन मूल्य) तय किया जाए

3-पांचवी अनुसूचि क्षेत्र में गांवों के भीतर एवं गांवों की सीमाओं के गैर मजरूआ आम, गैर मजरूआ खास जमीन गांव की है, इसको भूमि बैंक में शामिल किया गया है, जो किसानों के परंपरागत अधिकार का हनन है, इसलिए भूमि बैंक को रदद किया जाए।

4-क्षेत्र के सभी जलस्त्रोतों, नदी-नाला का पानी लिफट ऐरिगेशन के तहत पाइप लाइन द्वारा किसानों के खेतों तक पहुंचाया जाए।

5-जमीन का आॅनलाइन व्यवस्था से भारी संख्या में किसानों के जमीन के दस्तावेजों में छेड़-छाड़ किया जा रहा है। इससे किसानों के जमीन की लूट बढ़ रही है। इसलिए आॅनलाइन जमीन के दस्तावेजों का हो रहा छेड़-छाड़ एवं जमीन का हेरा-फेरी बंद किया जाए।

6-संविधान के पांचवी अनुसूचि को कड़ाई से लागू किया जाए।

7-आदिवासी समुदाय के जमीन का सुरक्षा कवच, सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंण्डारी खूंटकटी कानून का कड़ाई से पालन  करते हुए गांव के भूमिहीन परिवार को 5 एकड खेती के जमीन उपलब्ध कराया जाए।

8-किसानों को भूमिहीन एवं गरीब बनाने वाली -भारतमाला सड़क परियोजना, जो खूंटी जिला के कर्रा प्रखंड के किसानों के खेतो से होकर गुजरने वाली है, को रदद किया जाए। क्योंकि रांची से उडिसा, सम्बलपुर, बोम्बे तक जाने के लिए पहले से ही रेल मार्ग,(डबल लाईन), राज्यमार्ग सहित कई संड़कों का जाल बिछा हुआ है। 

           निवेदक-आदिवासी-मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच

           मुंण्डारी खूंटकटी परिषद

           आदिवासी एकता मंच


Monday, February 8, 2021

राज्य के लिए संचालित कल्याणकारी योजनाओं का लाभ झारखंड के जनजातीय बहुल इस इलाके के लोगों को मिले, इसके लिए राज्य की स्थपना हुई थी, लेकिन आर्थिक विकास की नयी गति के साथ-साथ buniyadi सेवाओं में बढ़ोत्तरी नहीं हो पायी

 


राज्य के लिए संचालित कल्याणकारी योजनाओं का लाभ झारखंड के जनजातीय बहुल इस इलाके के लोगों को मिले, इसके लिए राज्य की स्थपना हुई थी, लेकिन आर्थिक विकास की नयी गति के साथ-साथ buniyadi सेवाओं में बढ़ोत्तरी नहीं हो पायी। राज्य के किसानों के बीच नवीनतम तकनीकी संदेश पहुंचाने के उद्वेश्य से बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना की गयी थी, लेकिन सरकार की उदासिनता के कारण राज्य के किसानों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। अपनी खनिज एवं वन संपदा के लिए पूरे देश में अद्वितीय पहचान रखने वाला झारखंड कृषि के क्षेत्र में विकसित राज्यों की तुलना में काफी पिछड़ा हुआ है। यह अपनी खाद्यान्न जरूरत के अनुकूल उत्पादन नहीं कर रहा है। 

झारंखड में खाद्यान्न उत्पादन लाख टन में

2018-19 में उत्पादन-46.15

2019-20 में उत्पादन-55.59 है

दुध उत्पादन लाख टन में

2018-19 में उत्पादन-21.83 

2019-20  में उत्पादन-24.72

मच्छली उत्पादन लाख टन में

2018-19 में उत्पादन- 208840

2019-20  में उम्पादन- 230000

काॅरपोरेट कंपनियों को असानी से जमीन उपलब्ध कराने की पूरी व्यवस्था करने के बाद केंन्द्र की मोदी सरकार ने देश के किसानों के खेती-किसनाी पर काॅरपोरेट कंपनियों को घुसपैठ कराने के लिए तीन नये कृषि कानून को राज्य सभा में संसादों के असहमति के बावजूद जबरण कानून का रूप दिया

 झारखंड देश के संविधान में पांचवीं अनुसूचि के अतंर्गत आता है। पांचवी अनूसूचि के तहत गांव सभा या ग्राम सभा को अपने गांव के सीमा के भीतर-बाहर के जंगल-जमीन, लधुवनोपज, जलस्त्रोतों, लघु खनीज पर अपना परंपरागत अधिकार दिया है। सीएनटी, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून भी इनके परंपरागत अधिकार को रेखांकित करता है। लेकिन तात्कालीन रघुवर सरकार ने पांचवी अनुसूचि में प्रावधान ग्राम सभा, परंपारगत गांव सभा के अधिकारों को हनन करते हुए काॅरपोरेट पूंजि घरानों के लिए गांव के सीमा के भीतर के सामुदायिक धरोहर को चिन्हित कर भूमि बैंक बना दिया। सरकार के इस असंवैधानिक काम को रोकने के लिए झारखंड के आदिवासी-मूलवासी किसान समुदाय लगातार संघर्ष कर रही है। 

केंन्द्र की मोदी सरकार ने झारखंड सहित देश के किसानों, आदिवासी -मूलवासी समुदाय क ेजल, जंगल, जमीन को देश के बड़े बड़े कंपनियों के हवाले करने की तैयारी अलग-अलग तरीकें से देश के विभिन्न राज्यों में पिछले 2014 के बाद से जुटी हुई है। 2015-16 में झारखंड में भाजपा की रघुवर सरकार थी, तब झारखंड के ग्रामीण इलाके के गांवों के सामुदायिक जमीन, जंगल-झाड़ को चिन्हित कर भूमिं बैंक बनाया गया। इसकी अधिकारिक घोषणा भी रघुवर सरकार ने कर दिया। इन्हेंने काॅरपोरेट घरानों को झारखंडं में जहां वे चाहेगें, वहां जमीन उन्हें बिना बिलंब किये उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने सिंगल विंडों सिस्टम बनाया। इसके लिए राज्य के सभी जमीन के दस्तावेजों को आॅनलाइन किया गया। इस सिस्टिम के तहत देश-विदेश के पूंजिपति आॅनलाइन जमीन सर्च करेगें, जमीन देखेगें, पंसंद करेंगें और आॅनलाइन ही जमीन की खरीद-बिक्री की जाएगी, जमीन का मोटेशन भी आॅनलाइन ही किया जाएगा। यह प्रक्रिया राज्य में शुरू हो चुका है, इस प्रक्रिया के तहत जीयाडा और राज्य सरकार ने कई उद्योगपतियों को जमीन हस्तंत्रित कर चुका है। 

20 सितंबर 2020 को प्रभात खबर में एक रिपोर्ट छपि थी, इसे यह स्पष्ट हो जाता है कि, केंन्द्र की मोदी सरकार ने आज जो तीन नये कृषि कानून लाकर किसानों के खेतों पर काॅरपोरेट कब्जा, परंपारिक खेती-किसानी खत्म कर, काॅरपोरेट खेती को बढ़ाने के लिए पृष्टभूमि तौयार कर लिया है। उक्त रिपोर्ट अनुसार केंन्द्र की मोदी सरकार का मनना है कि राष्ट्रीय भूमि बैंक तैयार किया जा रहा है, झारखंड में भी इसकी तैयारी चल रही है। जो रिपोर्ट में छपी खबर इस तरह है-

राष्ट्रीय भूमि बैंक हो रहा तैयार, झारखंड में भी तैयारी-केंन्द्र

रांची-केंन्द्र सरकार निवेशकों को आकर्षित करने के लिए राष्ट्रीय भूमि बैंक बना कर इससे संबंधित जानकारी आॅनलाइन उपलब्ध करायेगी। इसे लेकर झारखंड में भी तैयारी चल रही है। केंन्द्र सरकार ने बताया कि झारखंड के आंकड़े अपलोड़ हो रहे हैं। गाइडलाइन के मुताबिक, राज्य में पोर्टल तैयार किया जा रहा है। राज्यसभा सांसद महेश पोद्वार के सवाल पर केंन्द्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने संसद में इसकी जानकारी दी। केन्द्र सरकार ने बताया कि कोरोना की वजह से वैश्विक स्तर पर ये व्यापारिक परिदृश्य में भारत की दुनिया की फैक्ट्री और व्यापार का सबसे आकर्षक केंन्द्र बनाने के लिए मोदी सरकार प्रतिबद्व है। दुनिया के किसी भी कोने से निवेशक अपने निवेश की जरूरतों के मुताबिक जमीन की उललब्धता के बारे में जानकारी ले सकेंगे। केन्द्रीय मंत्री ने बताया कि सरकार ने पहले चरण में औद्योगिक सूचना प्रणाली (आइआइएस) को छह राज्यों की शामिल किया है। राष्ट्रीय भूमि बैंक बनाने के लिए कंेन्द्र सरकार ने भखूंड स्तरीय जानकारी सहित औद्योगिक भूमि, वहां की संपर्क सुविधा, मूलभूत सुविधाओं व अन्य उपलब्ध सुविधाओं का व्योरा और पार्क के प्राधिकारणों/डेवलपर्स की संपर्क जानकारी मांगी है। झारखंड भी भूमि बैंक जीआइएस सिस्टम को आइआइएस पोर्टल के साथ जोड़नेवाले आठ राज्यों में शामिल है। झारखंड ने पोर्टल पर पहले ही भूमि संबंधी आंकड़े मैनुअली अपलोड़ किये हैं। झारखंड की तकनीकी टीम इस दिशा में काम कर रही केंन्द्रीय टीम के साथ संपर्क में है। 

हो रहा विरोध-पूर्ववर्ती रघुवर सरकार ने वैसी जमीन को चिन्हित करने का आदेश दिया था, जो उपयोग में नहीं है। इसमें गैर मजरूआ जमीन में लेकर विभिन्न औद्योगिक इकाइयों द्वारा अधिग्रहित जमीन भी है, पिछले दिनों विधानसभा में भी मामला उठा था। सदन में सरकार ने कहा था कि रैयतों व विस्थापितों की जमीन लौटायी जायेगी। सरकार भूमि बैंक तैयार करने के फैसले पर विचार करेगी। ऐसे में केन्द्र सरकार की योजना में झारखंड के शामिल होने को लेकर संशय की स्थिति है। 

काॅरपोरेट कंपनियों को असानी से जमीन उपलब्ध कराने की पूरी व्यवस्था करने के बाद केंन्द्र की मोदी सरकार ने देश के किसानों के खेती-किसनाी पर काॅरपोरेट कंपनियों को घुसपैठ कराने के लिए तीन नये कृषि कानून को राज्य सभा में संसादों के असहमति के बावजूद जबरण कानून का रूप दिया। जन विरोधी आर्थिक विकास के एजेंड़े को आगे बढ़ाने के लिए मोदी सरकार ने कोरोना महामारी काल के बीच देश के लिए तीन कृषि बिल/अध्यादेश 5 जून 2020 को लेकर आया है । 1- किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) अध्यादेश 2020 , 2- किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवा पर करार अध्यादेश 2020। 3- आवश्यक वस्तु (संशोधन) अध्यादेश 2020 । 14 सितंबर के पहले इन अध्यादेशों को संसद सत्र के पहले दिन  ही इन अध्यादेशों की जगह कानून लाया गया। 

इस कानून को देश के किसानों ने काला कानून मानते हुए, इससे रदद करने की मांग को लेकर ढाई महिनों से कड़ाके की ढड में दिल्ली बोर्डर पर डेरा डाले हुए हैं। इसके साथ ही देश के कई राज्यों में आंदोलन चल रहा है। 


Sunday, February 7, 2021

कारपोरेट खेती नहीं-परंपरागत खेती-किसानी को विकसित करो

 कारपोरेट खेती नहीं-परंपरागत खेती-किसानी को विकसित करो

तीनों नये कृषि कानून रदद करने की मांग को लेकर 28 जनवरी 2021      को खूंटी में रैली-सभा की गयी। 

ध्यान देने वाली सचाई यह है कि इन तीनों नये कृषि कानून से सिर्फ अनाज यह फसल उपजाने वाले किसानों पर संकट नहीं आएगा, बल्कि किसानों के फसलों के स्थानीय छोटे व्यापारी एवं उपभोगक्ता या खरीदकर खाने वालों की भी परेशानी बढ़ेगी। 

झारखंड राज्य के किसानों के आय को दोगुणी करने के लिए ग्रामीण आदिवासी-मूलवासी किसानों के जल, जंगल, जमीन, झील-झरना, पहाड़ -नदी नाला जैसे परंपरागत प्रकृतिक धरोहर की सुरक्षा की गारंटी करने की जरूरत है। राज्य के सवा तीन करोड़ आबादी को प्रर्याप्त भोजन-खाद्यान उपलब्ध कराना राज्य की पहली प्रथमिकता है। राज्य में भूख से किसी की मौत न हो, साथ ही राज्य के 56 लाख बीपीएल परिवारों को पोषक खाद्यान उपलब्ध कराने लिए प्रकृतिक संसाधनों, खेती की जमीन, जगल, वनोपज, जलस्त्रोंतों, और पयार्वरण को संरक्षित एवं विकसित करना हमारा परम दायित्व है। 

जन विरोधी आर्थिक विकास के एजेंड़े को आगे बढ़ाने के लिए मोदी सरकार ने कोरोना महामारी काल के बीच देश के लिए तीन कृषि बिल/अध्यादेश 5 जून 2020 को लेकर आया है । 1-आवश्यक वस्तु (संशोधन) अध्यादेश 2020, 2-किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) अध्यादेश 2020 और 3-किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवा पर करार अध्यादेश 2020। 14 सितंबर के पहले इन अध्यादेशों को संसद सत्र के पहले दिन  ही इन अध्यादेशों की जगह कानून लाया गया। 

इन तीनों कानूनों पर बारीकी नजर डालने पर यह स्पष्ट है कि इनका वास्तविक लक्ष्य है-कृषि क्षेत्र एवं कृषि उपज व्यापार को कमजोर करने के लिए कापोरेट समुदाय को प्रवेश का खुला अवसर देना है। कृषि उत्पादों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की व्यवस्थ और राज्यों की मंडियों (एग्रीकल्चर प्रोडूयज मार्केट कमेटियां) को खत्म करना, साथ ही न्यूनतम समर्थन मूल्यों पर कृषि उत्पादों की खरीद की व्यवस्था को खत्म करना एवं भारतीय खाद्य निगम को भंग करना।

जिन तीनों कानूनों की बात हो रही है, उनका सीधा प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ने वाला है जो हम बाजार से खरीदते और खाते हैं। आवश्यक वस्तु अधिनियम में जो संशोधन किया गया है, उसके अनुसार अब अनाज, दाल, तिलहन, खाद्याय तेल, आलू, प्याज को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटा दिया गया है। इससे जमाखोरी और कालाबाजारी को छूट मिल जाएगी। ये सामान कंपनियां जैसे चाहेगें, अपने गोदाम में भर लेगें और मांग बढ़ने पर मनमाने दाम पर बेचेगी।  इन कानूनों के तहत कारपोरेट खेती को बढाना है। 

नये कानून कृषि क्षेत्र में बडे़ कोरपोरेट कंपनियों को खेती करने के लिए आमंत्रित करता है। जब कंपनी वाले खेती करेगें तो वह अपना बीज, खाद, पानी, बिजली इस्तेमाल करेगा। जब अपना बीज और खाद का उपयोग करेगा, तो निश्चित तौर पर खेती का अपना तकनीकी, मशीनों का उपयोग करेगा। कंपनी अपना उत्पादन बडे बाजार के अमीर ग्रहकों को बेचेगा, हम लोग जो दिहाड़ी, मजदूरी करके खरीद खाने वालों के क्षमता के बाहर होगा। कोरपोरेट खेती से हमारी बेरोजगारी बढेगी, खेती-किसानी पर कंपनी का कब्जा होगा।

नये कानून के लागू होने से हमारी परंपरागत खेती किसानाी, देशी खाद, बीज, अनाज सभी खत्म होगा। अगर एक किसान के पास 10 एकड़ जमीन है, तो 10 एकड़ में भूमि के आकार-प्रकार के आधार पर उसमें गोड़ा, मडुआ, बदाम, शकरकंदा, कुरथी, उरद, सुरगुजा, तिल, चंवरा धान, एवं अन्य कई तरह के धान अपनी इच्छानुसार खेती करते हैं। हमारे खेत-टांड के अगल-बगल हर मौसम में परंपरागत साग-सब्जी अपने से उगता है। जैसे चांकोड साग, सिलयारी साग, मुचरी साग, बेंग साग, सुनसुनिया, ठेपा साग, लाल भाजी, हरा भाजी, खुखडी, रूगड़ा, कोयनार, पुटकल जो बिना खेती किये होता है। जो बाजार में अच्छा किमत में बिकता है। यह हमारे लिए पौष्टिक आहार भी है। कोरपोरेट खेती से यह सभी नष्ट हो जाएगा। 

तीनों नये कृषि कानून पर विस्तार से चर्चा करने की जरूरत है, ताकि आने वाले समय में इससे होने वाले क्षति से सामाज को बचाया जा 

हमारी मांगें हैं-

1-तीनों नये कृषि कानून को रदद किया जाए

2-धान के साथ सब्जियों का एमएसपी (न्यूनतम सर्मथन मूल्य) तय किया जाए

3-गैर मजरूआ आम, गैर मजरूआ खास जमीन, को भूमि बैंक में शामिल किया गया है को रदद किया जाए।

4-क्षेत्र के सभी जलस्त्रोतों, नदी-नाला का पानी लिफट ऐरिगेशन के तहत पाइप लाइन द्वारा किसानों के खेतों तक पहुंचाया जाए।

5-आॅनलाइन जमीन के दस्तावेजों का हो रहा छेड़-छाड़ एवं जमीन का हेरा-फेरी बंद किया जाए।

6-संविधान के पांचवी अनुसूचि को कड़ाई से लागू किया जाए।

7-सीएनटी, एसपीटी एक्ट, मुंण्डारी खूंटकटी अधिकार, कोल्हान मानकी-मुंण्डा व्यवस्था को कड़ाई से पालान करते हुऐ गांव के भूमि हीन परिवार को 5 एकड खेती का जमीन उपलब्ध कराया जाए।

8-किसानों को भूमिहीन बनाने वाली -भारतमाला सड़क परियोजना, जो खूंटी जिला के कर्रा प्रखंड के किसानों के खेतो से होकर गुजरने वाली है, को रदद किया जाए। क्योंकि रांची-उडिसा, संम्बलपुर, बोम्बों जाने के लिए इसी क्षेत्र से रांची-उडिसा रेलवे मार्ग(डबल लाइन हो रहा है), संड़क मार्ग, संडक राजमार्ग सहित कई व्यवस्था पहले ही किया गया है। 


निवेदक-आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच, मुंण्डारी खूंटकटी परिषद, आदिवासी एकता मंच।