Thursday, March 10, 2011

MAHANGAI KE LIYE KOUN JIMMEWAR HAI..PART-3

जिस दिन से भारत के सत्ताधारी अभिजात्य वर्ग ने खुले दिल से अमेरीकी-ब्रिटिश निगमों के गंठजोड द्वारा नियोजित नव-उदारवाद के रास्ते पर जाने का निश्चय किया है, तभी से भारत के प्राकृतिक संसाधनों तक वैश्विक पहुंच के लिए निरंतर दबाव बढ़ता जा रहा है। इन नव-उदारवादी आकांक्षाओं के मकसद को पूरा करने का एकमात्र रास्ता यही है कि एक आम भारतीय को पारंपरिक और सामाजिक व्यवहार के रूप में प्राप्त जल, जंगल, जमीन तक उसकी पहुँच और उन पर उसके नियंत्रण को किसी तरह समाप्त कर दिया जाए। देखा जाए तो हमारे देश की विभिन्न सरकारें 1991 से 1996 तक कांग्रेस, 1998 से 2004 तक भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार और 2010 से अब तक कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार सत्ता में रही। इन सभी सरकारों ने कारपोरेट ताकतों को संतुष्ट करने के लिए दिन-रात नियमों और कानूनों में फेरबदल करने में जी-जान से जुटे रहे। काश्कारी, भूमिं उपयोग और सीलिंग संबंधी कानूनों और प्रक्रियाओं में दी गयी ढ़ील, सेज अधिनियम 2005, तटीय क्षेत्र प्रबंधन अधिसूचना 2007 का क्रियान्वयन, भूमिं अधिग्रहण संशोधन विधेयक 07 तथा पुनर्वास और पुनस्र्थापन विधेयक 2007 जैसे प्रस्ताव सभी एक ही दिशा में की गई भिन्न कार्रवाईयां हैं। जगजाहिर है कि कृर्षि भूमिं में अब मकानों की खेती की जा रही है।



2003 में गैट के तहत सीमा शुल्क को तत्कालीन केंद्र की एनडीए सरकार ने हटाया, इसके साथ ही कई तरह के उत्पादकों के लिए लाईसेंस भी हटवा दिया। सीमाशुल्क 2003 में हटाया गया था इसका परिणाम 2008 में महंगाई की बढ़ती तेजी के रूप में दिखाई दे रहा है। यहां ध्यान देने की बात है कि koi भी नीतिगत परिर्वतन का प्रभाव तुरंत दिखाई नहीं देता है लेकिन अहिस्ते-अहिस्ते 3-4 सालों में दिखाई देता है। जाहिर है कि सेज अधिनियम 2005 को लागू करने के बाद तो परिदृश्य बद से बदतर हो गया है। मूल्य वृद्वी का मामला सिर्फ यह नहीं है कि कितना कीमत में वृद्वी हो रहा है लेकिन सवाल यह है कि आप के पाकेट में कितना पैसा है। बढ़ती महंगाई एवं उपरोक्त तमाम कानूनें दुनिया में सिर्फ अमीरो और समृद्वों के अस्तित्व को ही स्थापित करने के दिशा में बढ़ रही है। परिणाम सामने है-सन 2000 से लेकर अब तक जमीन अधिग्रहण का एक भी मामला नहीं देखने को आया है जहां राज्य ने जनता के प्रतिरोध को कुचलने के लिए दमनकारी कार्रवाई का इस्तेमाल न किया हो। कोयलकारो जनआंदोलन पर फायरिंग, काशीपुर की घटना, कालिंग नगर तथा नंदीग्राम की घटना, नार्गाजुन कंपनी द्वारा पावर प्लांट लगाने के लिए जब्रदस्त किसानों के जमीन पर कब्जा जिसके तहत 15 मई 2010 को andhrapradesh के श्रीकाकुलम में पुलिस फायरिंग तीन लोगों की हत्या। झारखंड के दुमका जिला में 6 दिसंबर 2008 को आर पी जी ग्रूप द्वारा आदिवासियों के जमीन अध्रिग्रहण के खिलाफ जनदोलनरत साथियों पर पुलिस फायरिंग जिसमे लूखी राम टुटू सहित और दो साथियों की जान गयी। ओडिशा के ठिंकिया, बालितूथ इलाके में पोस्को द्वारा जब्रजस्त किसानों की 4000 एकड़ कृर्षि जहां साल में दो फसल होता है में, कारखाना लगाने का प्रयास इसकी पुष्टि करता है। यहां यह भी समझने की बात है कि जो भी सरकार सत्ता पर बैठती है उनके बजट में विकास तथा कल्याणकारी बजट मदों से कई गुणा अधिक सुरक्षा बजट होता है, जो बाहरी दुश्मनों से सुरक्षा में इस्तेमाल के लिए नहीं होता, लेकिन अपने हक, जंगल-जमीन की रक्षा के लिए आवाज उठाने वालों को शांत करने में इस्तेमाल किया जाता है। नव-उदारवाद के इस दौर में अपने अस्तित्व को नैतिक वैधता प्रदान करने के लिए सरकार आतंकबाद और नक्सलवाद से निबटने के लिए उठाये गये कदम के नाम पर काफी तेजी से नागरिक स्वतंत्रता, संगठित होने के अधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को समाप्त करने का प्रयास में है। ताकि अमीर और समृद्व हमेशा अमीर बने रहे। इसीलिए खाना, पानी, स्वास्थ्य, जल, जंगल, जमीन और शिक्षा जैसी मानव जवीन की बुनियादी आवश्वकताओं को मुनाफा कमाने वाले उद्यमों के रूप में तब्दील किया जा रहा है। विजन 2020 को पूरा करने की पूर्व शर्त यह है कि जल, जंगल और जमीन तक पहुंच से गरीबों को बेदखल कर दिया जाए ताकि अमीर और समृद्व इन संसाधनों पर नियंत्रण स्थापित कर हमेशा सुखी रह सकें। झारखंड के संदर्भ में देखा जाए, यदि राज्य सरकार द्वारा जिन 101 बड़े कंपनियों के साथ किये गाये एमओयू के आधार पर ये कंपनियां झारखंड में उद्योग लगाऐंगें तो, आने वाले समय में यहां आनाज पैदा करने वाले किसान यहां एक भी नहीं मिलेंगे। विदित हो कि इन 101 कंपनियों में से 89 सिर्फ स्टील कंपनियां हैं। इसके बाद यहां की भौगोलिक स्थिति के साथ अर्थव्यवस्था भी बदलेगा। जहां किसान आनाज उपजाते थे वहां सिर्फ स्टील ही स्टील पैदा होगा। तब एक समय ऐसा आएगा-जिनके पास हवा, पानी, भोजन, दवा, शिक्षा, स्वास्थ्य, मकान खरीदने के लिए पैसा रहेगा, वही जिंदा रह पाऐगा।

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