
नन्हा केकड़ा
कोई नहीं जानता एक दिन में कितना बार
संमुद्र की लहर ने तुम्हें उजाड़ा, दिन भर में कितने
पैरों ने रौंदा, मसला, यह पीड़ा तो सिर्फ तुम ही समछ
सकते हो।
तुम्हारा अपना परिवार होगा, घर आबाद होगा
हर लहर ने तुम्हारा परिवार छिना होगा
कई पैरों ने तुम्हारे बच्चों को रौंदा होगा
तुमने अंशु पीकर अपने दर्द को सिना में दबाये रखा।
कोई नहीं जानता जिंदगी में कितने लहरों ने तुम्हें तबाह किया
कोई नहीं जानता जिंदगी में कितने पैरों ने तुम्हें रौंदा
कितनी बार तुमने महल खड़ा किये और कितने बार
रेत में विलीन हो गया तुम्हारा महल
यह तो सिर्फ तुम ही जानते हो।
फिर भी तुम में जीने का जजबा कम नहीं हुआ
संघर्ष करने की ताकात कम नहीं हुई
हर तुफान के बाद तुमने नया जीवन शुरू करने
के लिए सर उठाया।
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