VOICE OF HULGULANLAND AGAINST GLOBLISATION AND COMMUNAL FACISM. OUR LAND SLOGAN BIRBURU OTE HASAA GARA BEAA ABUA ABUA. LAND'FORESTAND WATER IS OURS.
Wednesday, November 24, 2010
kya ham aajad bhart ke nagrik hai-3
केंद्र सरकार देश से उग्रवादी एवं माओवादियों को ख़तम करने के लिए देश के कई राय्जों में ग्रीन हंट चला रही है. सायद इस तस्बीर को देख कर आप मन में यही सोच रहे हैं, ये वर्दी वाले, बन्दुक लेकर हरिलायाली खेत के बीच क्या खोज रहे हैं। जी आप सुने होंगे, आँध्रप्रदेश के सोमपेट इलाके में नागार्जुन कम्पनी थर्मल पवार प्लांट बनाने जंहा रही है। किसान, आदिवासी, मछुवारे अपना जमीन, गाँव, विल्ला, झरना, ताड़, नारियल, काजू का जंगल नहीं छोड़ना चाह रहे है, ये सरकार और कम्पनी का विरोध कर रहे हैं। आप जिन हथियारधारी पुलिस , मेलेट्री को देख रहे हैं, ये किसानों का, खेती-बारी, जंगल का, जलस्रोतों का, आदिवासियों का, मछुवारों का, दलितिओं का, विल्ला का ग्रीन हंट करने सरकार, पुसिस, मेलेट्री, आये हुए हैं। यही है-केंद्र सरकार और पी चिदंबरम का ग्रीन हंट.
यह तस्बीर १४ माई २०१० का है,
सरकार और कंपनी के व्योहार से लोग खपा हैं। कहते हैं, सुने थे अंग्रेज सरकार बहुत क्रूर था, लेकिन हमारी सरकार जिस तरह से दौड़ा दौड़ा कर पीटा हमारी सरकार अंग्रेज सरकार से भी ज्यादा दमन कर रही है। विस्थापन के खिलाफ संघर्षरत संगठन पर्यावरण परिरक्षण संगधम, मानव अधिकार संगठन सहित सभी समर्थक संस्थाओं ने सवाल उठाया है कि, आँध्रप्रदेश सरकार ने पर्यावरण क्लीयरेंस के बिना ही नगार्जून कंपनी को थर्मल पावर प्लांट लगाने के लिए जमीन अधिग्रहण करने की इजाजत दे रही है-जो कानून अवैध है। स्थानीय किसान और मछुवारे हतप्रभ हैं कि 18 अगस्त 2009 को संपन जनसुनवाई में 99 प्रतिशत जनता अधिकारियों के सामने घोषणा की थी- अपना बीला किसी भी कीमत में थर्मलपावर प्लांट के लिए नहीं देगें, लेकिन सबंधित अधिकारियों ने इनकी बातों को बदलते हुए रिर्पोट दिया कि कुछ ही लोग जमीन अधिग्रहण का विरोध कर रहे हैं। देश की पूरी मशीनरी किसानों के खिलाफ खड़ी है- इसका गवाह अंटारटीका में प्रख्यात अध्ययन करने वाली राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान (chhanjapavadans pdejapajanajam v ivbamandavahatanchiil lavan ) द्वारा तैयार रिर्पोट है, जिसमें कहा गया है कि- उक्त क्षेत्र मानव तथा पर्यावरण-जैविक विधितता तथा कृर्षि के लिए उपयुक्त नहीं है। एक विषे’ाज्ञ मूल्यंकन समिति ने भी इलाके का भ्रमण करने के बाद chhanjapavadans pdejapajanajam v ivbamandavahatanchiil lavan aur ainataamal v ipdakapan bhlakamatanink ke रिर्पोट का समर्थन करते हुए रिर्पोट दिया कि-यह क्षेत्र समुद्रतटीय नियंत्रण क्षेत्र में नहीं आता है। इसकी जानकारी 15 जुलाई 2010 को भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने अपने प्रेस रिलिज में दिया। ये सारे रिर्पोट इस इलाके के पर्यावरणीय, जैविकविधिता तथा प्रकृतिकमूलक सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ है। यह सोमपेटा क्षेत्र का बीला-धरती जो आनाज पैदा कर पूरे राज्य की जनता के साथ पूरे दे’ा को अन्न खिलाती है।
तमाम घटनाएं इस ओर isara करती हैं कि desh की कल्याणकारी कहे जाने वाली (ॅमसंितम ैजंजम) सरकार और आम नागरिकों के बीच का संबंध समाप्त होता जा रहा है। सरकार नागरिकों के संवैधानिक अधिकार, उनके हक-हुकूक, अमन-shanti कायम करने की जिम्मेवारी से पलाझाड़ कर, अब सरकार की भूमिंका काॅरपोरेट घरानों के सुख-सुविधा, उनके मुनाफा की गरांटी करने की ओर बढ़ रही है।
andhrapradesh की सरकार नर्गाजुन kanstrkshan कंपनी को प्लांट लगाने के लिए जमीन देने के लिए किसानों के खेती की जमीन को वेस्टलैंड तथा वारेनलैंड घोषित कर दिया है। यही नहीं किसानों की मिलकीयत की जमीन को राजस्व विभाग नें लैंड रिकोड में इसे वेस्टलैंड तथा वारेनलैंड घोषित कर दिया है। यहां यह जनाने की जरूरत है कि राजस्व विभाग एक ओर इस जमीन को वेस्टलैंड और वारेनलैंड दिखा कर यह बताने की को’िा’ा कर रहे हैं कि इस जमीन का कोई पटटाधारी नहीं हैं। दूसरी ओर इसी आॅफिस के एक फाईल में)(ना.272@08)(म्3) रिकोड तथा दूसरे में 78.90 एकड़ के पटटाधारियों का जिक्र है। दूसरे में 31.35 एकड़ के पटटा का विवरण हैं। चैंकाने वाली बात है कि andhrapradsh की पूरी parashasan व्यवस्था नर्गाजुन कंपनी को जमीन कब्जा दिलाने के लिए हर हथकंडा अपनाने की koshish में जुटा हुआ है।
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vishtapa ka sawal to hai hi pr sarkar nahi saki to mileter ka fores lag diya. mere ghar me hami ko began bana diya
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