Wednesday, November 24, 2010

क्या हम आजाद भारत के नागरिक हैं-1



क्या हम आजाद भारत के नागरिक हैं? यह सवाल आज देश की तमाम उत्पीडि़त समाज पूछ रही है जिनकी जिंदगी जल-जंगल-जमीन नदी-पहाड़ में सदियों से रचा-बसा है। इस नैसर्गिक धरोहर के साथ इनके सामाजिक मूल्य, भाषा-संस्कृति, पहचान-अस्तित्व जुड़ा है। क्या हम आजाद हैं-क्या हम राज्य के नागरिक नहीं हैं? यह सवाल हर मानसपटल में गुंज रहा है-जिनके हाथ से उनके हक-अधिकार, जल-जंगल-जमीन, नदी-झारणों को पुलिस और सीआरपी के बंदुक की नोक और कंपनी के गुंडों के अत्याचार के आतंक के बल पर छीनने की कोशिश की जा रही है। जनता के इस सवाल का जवाब देने की नैतिक ताकत सायद देश की कल्याणकारी कहे जाने वाली सरकार के पास भी नहीं है।
क्या हम आजाद भारत के नागरिक हैं? 14 जुलाई को अंध्रप्रदेश के श्रीकाकुलम जिला के सोमपेटा, काविती और कानचीली मंडल (प्रखंड) में अपने पूर्वजों द्वारा मिली विरासत, जंगल-जमीन-पानी, पर्यावरण की रक्षा के लिए बच्चनबद्व निहाथे ग्रामीणों को पुलिस और कंपनी के गुड़ों द्वारा बरबरता पुर्वक फायरिंग और पीटाई में दो लागों की मौत तथा 60 से अधिक लोगों के गंभीर रूप से घायल होने के बाद स्थानीय पीडि़त जनता यह सवाल कर रही है।
पुलिस फायरिंग में गनापा कृष्णामूर्ति -गांव-लाखावरम, तथा पाण्डे जोगोराव-पलासापूरम शहीद हुए। साथ ही 60 से अधिक घायल हुए। जो विभिन्न अस्पतालों में इलाज कराये। धरणास्थ्ल से करीब 4 किमी दूर सरकारी अस्पताल में पीनेटी लक्ष्मी नारायण,इदौला मोहन राव, तेपाला पर्वती (जांघ मे चोट), गोना कामराज, मधुकुडी, श्रीमम्बा, ऐलेट पायर, डी गोपाराव, तुम्बी तताया, भानू मुर्ति पानी ग्राही (सर पर चोट), कोजरी बायरी, डुम्मू दिनबंधु, पतरी रवी (पूरे शारीर पर लाठी का चोट), स्कूल बच्चों के लिए साईकिल में पेन, kopi, चोकलेट आदि बेचने के लिए जा रहा था।
दो साथियों की मौत और 60 से अधिक साथियों के गंभीर घायल के बाद भी ग्रामीण अपने विरासत की रक्षा के लिए सीना तान खड़े हैं। सोमपेटा सरकारी अस्पताल में गंभीर रूप से घायल दर्जनों इलाजरत पीडि़त बुलंदी से कह रहे हैं -हम जान देगें-लेकिन एक इंच भी जमीन नहीं। हमें प्लांट नहीं चाहिए, हमको अपना बीला-खेत-खलिहान चाहिए। एैसे ही हम मार खा रहे हैं-हम मरने को तैयार हैं, लेकिन किसी कीमत में जमीन नहीं देगें। किसी के सर पर गंभीर चोट, किसी के जांघ पर बोलेट, किसी के सर और पैर पर बुलेट, तो किसी के पूरे शारीर पर लाठी का चोट, किसी के पूरे पीठ पर लाठी के निशाना इलाजरत घायलों के चोट देखते लोगों का तन-मन सिहर उठता है। आंखे जखमों को पूरी नजर से देखने की हिम्मत नहीं जंुटा पा रही थी। चार साथियों की स्थिति अत्यंत गंभीर थी। घायल कहते हैं-हम अपने जंगल-जमीन के लिए हर कीमत में लड़ाई जारी रखेगें। जख्मी देह में दर्द है लेकिन साथ ही संघर्ष का जजबा भी।
17 जुलाई को इंसाफ की टीम पीडितों से मिलने अस्पताल पहुंची थी। सोमपेटा के गुडू राजू के पूरे पीठ पर लाठी का दाग आज भी ताजा था। वह ’ारीर का चोट दिखाते-बताता है, हम काम करके लैट रहे थे तभी कंपनी के गुडों ने पकड़ कर पीटा। राजू के बगल वाले बेड़ में लाखापुरम की 50 वर्षीय एन. श्रीमामबा अपने जांघ पर लगे चोट दिखाते कहती है-प्लांट हमलोगों को नहीं चाहिए। बीला हमारा अन्नदाता है, उसको किसी भी कीमत में नहीं देंगे श्रीमामबा के दहिने जांघ पर गंभीर चोट था। युवा ए0 बाईरी-सोमपेटा सिर पर लगे चोट दिखाते हुए-बताता है , कि वह गाय को घांस चराने के लिए जा रहा था-तभी उनको पकड़ कर पीटा गया। यही हाल सोमपेटा के डी0 गोपालराम का भी हाल है। गोपालराम के अनुसार वह रिक्सा चला कर लौट रहा था, उसको रोक कर पुलिस ने पीटा।

1 comment:

  1. कतई नहीं.. पहले अंग्रेज लाटसाहब मारते थे. अब हमारे काले लाटसाहब और नक्सली.. please remove word verification..

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