Tuesday, July 19, 2016

15-सरकारी जमीन, परती जमीन, जंगल-झाड़ी जमीन, गैर मजरूआ आम, खास जमीन को स्थानीय ग्राम सभा, बेघर वालों, गरीबों, बीपलएल परिवार तथा विस्थापित परिवारों को आबंटित किया जाए--किसी बड़े पूजिंपति, कारपोरेट या सक्षम को नहीं




17 Dec. 2015 ko Rajpal Smt. Dropadi Murmuji ne 5th Sechudule Me Bikash Yojnaon ka Pravaw per Bichar Bimarash ke liye Meeting organized ki thi, is meeting me maine in sawalon ko rakhi...
आदिवासी सामाज

देश जब अेग्रेज सम्रज्यवाद के गुलामी जंजीर से जकड़ा हुआ था -तब देश को अंग्रेज हुकूमत से आजाद करने के लिए झारखंड के आदिवासी -जनजाति व अनुसूचित जाति समुदाय ने शहादती संघर्ष कर स्वतत्रता संग्राम को मुकाम तक पहुंचाने का काम किया। शहीद सिद्वू-कान्हू, ंिसदराय-बिंदराय, जतरा टाना  भगत, बीर बिरसा मुंडा के नेतृत्व में हमारे गांव में हमारा राज-याने जल-जंगल-जमीन पर अपना परंपरागत अधिकार बरकरार रखने, गांव-समाज को पर्यावरणीय मूल्यों के साथ विकसित करनेे, अपने क्षेत्र में में अपना प्रशासनिक व्यवस्था पुर्नस्थापित करने, कर अपना भाषा-संस्कृति के साथ संचालित-नियंत्रित एवं विकसित करने का सपना था।
आजाद देश के राजनीतिज्ञों, बुधीजीवियों, एवं संविधान निर्माताओं ने यह अनुभव किया कि-देश का विकास, शांति-व्यवस्था एक तरह के कानून से संभव नहीं हैं-इसीलिए देश में दो तरह के कानून बनाये गये। एक सामान्य कानून जो सामान्य क्षेत्र के लिए दूसरा विशेष कानून जो विशेष क्षेत्र के लिए बनाया गया। प्रकृतिकमूलक आदिवासी बहुल एरिया को विशेष क्षेत्र में रखा गया। इन क्षेत्रों पांचवी अनुसूचि तथा छठी अनुसूचि में बांटा गया।
इसी अनुसूचि क्षेत्र में छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम, संताल परगना अधिनियम और पेसा कानून भी है। ये सभी कानून आदिवासी, मूलवासी, दलित, मच्छूवरा सहित 33 आदिम जनजाति समुदायों के अधिकारों रक्षा के लिए है।
लेकिन- हर स्तर पर इन कानूनों को वयलेशन-हनन किया गया
देश के विकास का इतिहास गवाह है-जबतक आदिवासी समाज अपना जल-जंगल-जमीन के साथ जुड़ा रहता है-तबतक ही वह आदिवासी अस्तित्व के साथ जिंदा रह सकता है। आदिवासी सामाज को अपने धरोहर जल-जंगल-जमीन से जैसे ही अलग करेगें-पानी से मच्छली को बाहर निकालते ही तड़प तड़पकर दम तोड़ देता है-आदिवासी सामाज भी इसी तरह अपनी धरोहर से अलग होते ही स्वतः दम तोड़ देता है।
विकास वनाम विस्थापन
अधिग्रहीत जमीन-एकड़ में---
1-एचईसी हटिया-9500 एकड़
2-बोकारो स्टील प्लांट-34227 एकड़
3-दमोदर घाटी निगम-2,88,874
4-आदित्यपुर औधोकि क्षेत्र-34,432
5-सुर्वणरेखा परियोजना-85,000
6-खनन के कारण--लाखों एकड़
7-शहरीकरण के द्वारा-लाखों एकड़-कोई हिसाब नहीं
विस्थापित आबादी-80 लाख से ज्यादा

आदिवासी -मूलवासी किसान, जनजाति, अनुसूचित जाति- समुदाय का सामाजिक, संस्कृतिक, आर्थिक, एतिहासिक मूल्य प्रकृति-जल-जंगल-जमीन-नदी-पहाड पर ही टिका हुआ है। इसे उजड़ते ही सबकुछ नष्ट हो जाता है।
विस्थापितों पर सामाजिक, राजनीतिक, संस्कृतिक, आर्थिक  प्रतिकुल प्रभाव--सामुहिकता टुटा
सामाजिक मूल्य खत्म हुआ
भाषा-संस्कृति खत्म हुआ
इतिहास खत्म हुआ
पहचान खत्म हुआ
आर्थिक स्त्रोत/आधार खत्म हुआ
जैविक संपदा खत्म हुआ
जलस्त्रोत प्रदूषित हो गया
जमीन मालिक जमीन विहीन हो गये
बंधुआ मजदूर बन गये
महिलाएं -रेजा, और जूठन धोने वाली आया बन गयीं
युवातियां यौन शोषन और हर स्तर पर हिंसा का शिकार बनी
भारी संख्या में विस्थापित राज्य से

आदिवासी आबादी अल्पसंख्यक होता जा रहा है-बहरी आबादी आदिवासी समुदाय पर हावी होता जा रहा है।
राजनीतिक चेतना कमजोर हुआ
आज -राजनीति दिशा, विकास योजनाओं का नीति, के साथ अन्य अधिकारों को निर्धारित करने का आधार समुदाय के जनसंख्या को ही पैमाना माना जा रहा है।
उदा0-डीलिमिटेशन-1- मांग उठ रहा है-81 विधानसभा सीट में से 28 सीट आदिवासी समुदाय के लिए अरक्षित है-लेकिन 28 सीट को घटाकर 21 सीट कियी जा रहा है-दलील दिया जा रहा है-राज्य में सिर्फ आदिवासी आबादी मात्र 26 प्रतिशत ही रह गया है, इसलिए छोटी आबादी के लिए 28 सीट रिर्जब रखना सही नहीं है।
2-14 लोक सभा सीट में से 4 सीट आदिवासी सामाज के लिए अरक्षित है-इसमें से 2 सीटी घटाने की वाकालत की जा रही है-
3-आदिवासी बहुल क्षेत्र में आदिवासी सामाज अपने धरोहर के साथ, अपने परंपारिक सामाजिक मूल्यों और अधिकारों के साथ ही आदिवासी सामाज को विकास हो, इसके लिए भारतीय संविधान ने झारखंड के आदिवासी सामाज को 5वीं अनूसूची के तहत-सामाजिक, संस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक , ग्राम सभा को विशेष अधिकार मिला है-इसको खत्म करने के लिए झारखंड़ हाई कोर्ट में पीआईएल किया गया है-तर्क दिया जा रहा है कि-राज्य के कई जिलों में आदिवासी आबादी 50 प्रतिशत से कम है-एैसे में उन जिलों को अनुसूचि क्षेत्र का दर्जा नहीं दिया जाए।
अगर 5वीं अनूसूचि को खत्म कर दिया जाएगा-तो उपरोक्त तमाम प्रतिकुल प्रभाव आदिवासी -मूलवासी समुदाय पर पडेगा, परिणमता-आने वाले समय में आदिवासी समुदाय के अस्तित्व बचे रहने की कल्पना नहीं की जा सकती है-
एसएआर कोर्ट-झारखंड में आदिवासी समुदाय के जमीन-जंगल को गैर कनूनी तरीके से छिने जाने को रोकने के लिए एसएआर कोर्ट है, जो आज सीएनटी एक्ट के तहत आदिवासी समुदाय के मालिकाना अधिकार को बनाये रखने का न्यूनतम व्यवस्था है, इससे भी यदि खत्म किया जाए-तब झारखंड के आदिवासी समुदाय के अधिकारों को संरक्षित करने का दावा बेईमानी होगा।
एसएआर कोर्ट को खत्म करने की जगह-जरूरत है, इस व्यवस्था या संस्थान में जिस भ्रष्टचार यह भ्रष्टव्यवस्था, लचर व्यवस्था के कारण आदिवासी ठके जा रहे हैं-इस भ्रष्टव्यवस्था को खत्म करने के साथ लचर व्यवस्था को न्यायपूर्ण बनाने की।
विस्थापितों को नौकरी-मुआवजा, घर अन्य सुविधाएं उपलब्ध करने का सरकारी वादा-
नौकरी में लेने की पद्वती-
क-जमीन लेने के पहले-सरकारी वादा-हर विस्थापित परिवार से एक व्यत्कि को
ख-विस्थापितों को पीढ़ी दर पीढ़ी नौकरी देने का वादा.......
वस्तविकता--
क-जो व्यत्कि सत्क्षार में योग्य साबित होता है उसको नौकरी, पदों की संख्यानुसार
ख-मुश्किल से परिवार के एक व्यत्कि को सिंर्फ एक बार.....इसके बाद सिर्फ माफिया या अफसरों के नाते-रिस्तदारों को ही ..........नौकरी
जमीन रहने के लिए----राज्य में जिस भी विकास योजनाओं से ग्रामीण विस्थापित हुए हैं---उन विस्थापितों को प्रत्येक परिवार को रहने के लिए सिर्फ --10 डिसमिल, 15 डिसमिल अधिकतम 20 डिसमिल जमीन दिया गया-
नोट-आज तक इस उक्त जमीन का कानूनी मलिकाना हक विस्थापितों को नहीं मिला--जमीन उनके नाम से रजिस्र्ट नहीं किया गया
परिणामता---विस्थापितों के जमीन का दबांग लोग उनके हाथ से छीन कर अपने कब्जा में ले रहे हैं, यह दूसरे को बेच रहे हैं।
विस्थापित परिवार--दूसरी बार सरकार के गैर जिम्मेदराना रवैया के कारण उनकी बची-खूची जिंदगी छिना जा रहा है
पांचवी अनुसूचि क्षेत्र में सरकार द्वारा-विभिन्न विकास योजनाओें के लिए एमओयू करना--आदिवासियों के अधिकार, ग्राम सभा के अधिकारों का वायलेशन-हनन है-
पांचवीं अनुसूचि क्षेत्र में भारतीय संविधान के ग्राम सभा को अधिकार दिया है-कि कहीं भी किसी भी विकास योजना के लिए उत्क ग्राम सभा क्षेत्र यह आदिवासी क्षेत्र में जमीन दिया जाए या ना दिया जाए ...यह तय करने का अधिकार ग्राम सभा को है-
लेकिन- जमीन अधिग्रण के संबंध में ग्राम सभा से न तो पूछा जाता है और न ही उनकी राय को मानी जाती है--
सरकार ग्राम सभा बुलाती भी है-तो रैयतो की राय नहीे मानी जाती है, सरकारी पक्ष उसी निर्णय को रैयतों को थोपते हैं-जो अधिकारी चाहते हैं-सिर्फ नाम के लिए ही बैठक होता है।
माइनर-मिनिरलस-पांचवी अनुसूचित में माइनर मिनिरलस पर ग्राम सभा को नियंत्रित-संचालित करने का अधिकार है-
लेकिन-अनुसूचि क्षेत्र के सभी बालू घाटों की निलामी की गयी
पत्थर-खदान यह के्रशर--सभी पत्थर के्रशरों या खदानों को लीजधारको को दी गयी


शहरीकारण का विकास के लिए अनुसूचि क्षेत्र के कृर्षि भूमिं को-गैर कृर्षि कार्य के लिए--
कृर्षि भूमिं का प्रकृति बदल कर हस्तंत्रित कर -भारी संख्या में आदिवासी-मूलवासी किसान समुदाय को विस्थापित किया जा रहा है
यह सीधे तौर पर आदिवासी मूलवासी, दलित, किसानों के अधिकारों का हनन है

कंपनियों के परियोजनाओं के लिए जमीन अधिग्रहण-
अब सरकार कंपनियों को स्वंय ही जमीन मालिकों से जमीन खरीदने के लिए छूट दे दी है-साम, दाम, दंड भेद अपना कर कंपनी के लठैत, बिचैलिया रैयतों से जमीन औने पौन कीमत पर जमीन जबरन हड़प रहे हैं।
ख-जो रैयत जमीन नहीं बेचना चाहता है, या नहीं छोड़ना चाहता है-उसके पुलिस बल प्रयोग कर, आतंक पैदाकर, छूठे मुकदमों में फंसा दिया जा रहा है
सभी तरफ से सरकार, प्रशासन कंपनीवाले मिलकर जमीन मालिकों के उपर दमन के कंपनी के लिए जमीन कब्जा दिला रहे हैं
इसका उदाहरण-बोकारो के चंदनकियारी प्रखंड में एल्केट्रो स्टील द्वारा जबरन जमीन अधिग्रण का विरोध करने वाले गांव भागाबांध को जा कर देखा जा सकता है
इस तरह के सौकड़ों उदाहरण राज्य भर में मिलेगा
गांव-आदिवासी गांव का मतलब -गांव सीमाना के भीतर एक-एक इंच जमीन, मिटी, गिटी, बालू, पत्थर, घांस-फूस, झाड- जंगल  मिलाकर  गांव बनता है-
इसी के आधार पर राज्य के आदिवासी बहुल गांवों का अपना परंपरिक मान्यता है। गांव घर को आबाद करने वाले आदिवासी समुदाय के पूर्वजों ने सामाजिक-पर्यावरणीय जीवनशैली के ताना बाना के आधार पर गांव बसाये हैं।
सामाज के बुजूगों ने अपने गांव सीमा को खेती-किसानी सामाजिक व्यवस्था के आधार पर व्यवस्थित किये हैं-
क-घरो को एक तरफ बासाया गया-
जहां हर जाति-धर्म समुदाय बास करता है
ख-खेत-टांड एक तरफ
गंाव सीमा भीतर के कुछ खेत-टांड को गैराही रखा, कुछ को परती रखे-ताकि गा्रमीण सामुदायिक उपयोग करे। जिसमें नदी-नाला, तालाब, कुंआ-आहर, सरना-मसना, खेल मैदान, खलिहान, अखड़ा बाजार, जतरा, मेला, चरागाह आदि के लिए।
इसी के आधार पर राज्य में आदिवासी सामाज का जमीन को आबाद करने का अपना परंपरिक व्यास्था है यही नहीं इसका अपना विशिष्ट इतिहास भी है।
रैयती जमीन
खूंटकटीदार मालिकाना
विलकिंगसन रूल क्षेत्र
गैर मजरूआ आम
गैर मजरूआ खास
परती
जंगल-झाड़ी भूंमि
नोट-1932 में जो सर्वे सेटेलमेंट हुआ-इस रिकोर्ड के आधार पर जमीन को उपरोक्त वर्गों में बांटा गया। उस समय लोगों की आबादी कम थी। कम परिवार था। 84 साल पहले जमीन को चिन्हित किया गया था-कि ये परती है, जंगल-झाडी भूमिं है।
84 वर्ष में जो भी परती-झारती था, अब वो आबाद हो चूका है। अब उस जमीन पर बढ़ी आबादी खेती-बारी कर रही है।
गैर मजरूआ आम भूंमि पर तो गांव के किसानों को पूरा अधिकार है ही, गैर मजरूआ खास जमीन पर भी ग्रामीणों का ही हक है।
आज सरकार विकास के नाम पर लैंड बैंक---बना कर आदिवासी समुदाय के हाथ से उनका जमीन-जंगल छीन कर उद्योपतियों को देने का योजना बना रही हैं-इसे आदिवासी समाज पूरी तरह कमजोर हो जाएगा
शिक्षा की स्थिति-
ग्रामीण इलाकों के स्कूल चाहे प्राइमरी हो, प्रथमिक हो, उच्चविद्यालय हो -सभी का पठन-पाठन स्थिति दयनीय है-गुणवता बिलकूल कमजोर है
सरकार का आदेश-8वी क्लास तो किसी फेल नहीं करना-सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को पंगु बनाने की साजिश है                                
3-काॅलेजों की स्थिति-खूंटि काॅलेज
खूंटि बिरसा काॅलेज -8000 विद्यिर्थी हैं-इसमें 70 प्रतिशत महिलाएं हैं-इनके लिए 300 बेड का हाॅस्टल बना है क्लयाण विभाग से
ल्ेकिन इस हाॅस्टल में सीआरपीएफ को रखा गया--होस्टल के लिए -जरूरी उपस्कर विभाग आज तक नही दे सकी
स्वस्थ्य की स्थिति-25 हजार की आबदी में हर प्रखं डमें रेफरल अस्पताल है-लेकिन वहां न तो डाक्टर, न नर्स कोई नहीं रहता-
अस्पताल में-मलेरिया टेस्ट करने का मशीन नहीं
यहां तक कि हडी टुटने पर एक्स्रे मशीन भी नहीं

स्ूाचना अधिकार कानून---
सूचना कभी भी समय पर नहीं दिया जाता है
विकास योजनाओं पर आधिकारी फर्जी सूचना उपलब्ध कराते हैं

मनरेगा कानून का पालन नहीं--

100 दिनों का रोजगार मजदूरों को कभी नहीं मिलता
किये गये काम का मजदूरी-भी नहीं मिला, मजदूरों का पैसा-ठेकेदार-दलाल हडप लेते हैं
50 दिनों को -बेरोजगार कहीं लागू नहीं किया गया

आदिवासी उपयोजना--
1975-80 के दौरान अनुसूचित जाति उप योजना व आदिवासी उप-योजना आरंभ की गयी। इसका उद्वेश्य-अनुसूचित जातियो व जनजातियों की जनसंख्या में प्रतिशत के अनुपात में बजट का न्यायसंगत हिस्सा इन समुदयों की भलाई व विकास के सही प्राथमिकता के कार्यों के लिए उपलब्ध हो।
लेकिन-हर वर्ष इस राशि का 40-50 प्रतिशत ही खर्च होता है-बाकी सरेडर हो जाता है
इस राशि का उपयोग-दूसरे मदों-फलाई ओवर व हाईवे
जेल, बड़े पैमाने का मिठाई वितरण, पशुओं के  इंजैक्शन और कामनवैल्थ खेलों में खर्च होते रहे।

आज किसी भी योजना को सरकार मनमनी ढ़ग से लागू करती है-
चाहे परियोजनाओं के लिए जमीन अधिग्रहण का मामला हो
यह कोई भी विकास योजनाओं को लागू करने मामला हो,
सरकार हमेशा आम जनता को उत्पीडीत करने वाले तत्वों को संरक्षण देने का काम करते रही है
अगर आज जनता सरकार की मनमनी के खिलाफ, भष्ट व्यवस्था, या भ्रष्ट नेता, मंत्रियों के खिलाफ आवाज बुलंद करती है-तब उसे फोल्स केस में फंसा कर जेल भेज देती है
आज कल-तो आवाज उठाने वालों को नक्सली करार दिया जा रहा है-
आज-राज्य के जेलों में 600 बेकसुर आदिवासी जेल में बंद हैं

अनुसूचित क्षेत्रों में शांति-व्यवस्था और सुशासन को सुद्वढ़ करने का उपाय---
1-पांचवी अनूसूचि में प्रदत अधिकारों को अनुसूचि क्षेत्र में अक्षरशा पालन किया जाए
2-सीएनटी एक्ट के धारा 46 को कड़ाई से लागू किया जाए
3-पेसा कानून के तहत ग्राम सभाओं को प्रदत अधिकारों का अक्षरशा पालन हो
4-एसपीटी एक्ट का पालन हो
5-वन अधिकारी कानून के तहत ग्रामीणों को समुदायिक पटा तथा खेती के लिए मिनिमम 2 हेक्टेयर जमीन का पटा दिया जाए
6-आदिवासी उप-योजना का राशि -पूरी राशि हर बजट एलोकेशन का सही लाभकारी कार्यो में खर्च किया जाए
7-जनसूचना आयूक्त आदिवासी समुदाय से ही नियुक्त किया जाए
8-लगत या फर्जी सूचना देने वाले अधिकारियों पर कड़ाई से कार्रवाई की जाए
9-प्रत्येक प्रखंड स्तर पर अस्पतालों, प्रखडों, पंचायतों में स्थानीय कर्मचारियों का नियुक्ति किया जाए
10-भाषा-सस्कृति के आधार पर स्थाीनयता निति लागू किया जाए
11-भूमिं अधिग्रहण कानून-2013 को लागू किया जाए
12-भूमिं अधिग्रहण कानून-2013 के सेक्शन-24 के तहत-नगड़ी में गलत तरीके से अधिग्रहीत 150 एकड़ किसानों की जमीन-रैयतों को वापस किया जाए
13-नगड़ी में लाॅ यूनिवरसिटी के लिए जबरन किसानों ली गयी जमीन का कीमत वर्तमान बाजार मूल्य एक लाख प्रति डिसमिल के दर से भूगतान किया जाए-तथा विस्थापित रैयतों के परिवार को पीढ़ी दर पीढ़ी प्रत्येक परिवार से एक व्यक्ति को नौकरी दिया जाए
14-राज्य में-सभी परियोजनाओं से , पूर्व में हुए तमाम विस्थापितों को -पुर्नवासित तथा नौकरी दिया जाए। जब तब पूर्व के विस्थापितों को नौकरी और पुर्नवासित नहीं किया जाएगा-दूसरा विस्थापन नहीं किया जाए
15-सरकारी जमीन, परती जमीन, जंगल-झाड़ी जमीन, गैर मजरूआ आम, खास जमीन को स्थानीय ग्राम सभा, बेघर वालों, गरीबों, बीपलएल परिवार तथा विस्थापित परिवारों को आबंटित किया जाए--किसी बड़े पूजिंपति, कारपोरेट या सक्षम को नहीं
16-मुंडारी खूंटकटी व्यवस्था के साथ छेड-छाड़ नहीं किया जाए
17-हो आदिवासी ईलाके में विलकिंशन रूल सक्षम है-के साथ छेड-छाड नहीं हो
18-ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन रोकने तथा रोजगार व्यवस्था के लिए-नदी-नालों में छोटे छोटे चेक डैम बना कर पानी किसानों के खेतो तक पहुचाया जाए
19-शिाक्ष तथा स्वस्थ्य का नीजिकरण नहीं किया जाए

                         दयामनी बरला
                         न्यू गार्डेन सिरोम टोली
                          क्लब रोड़ रांची-1
                        मे0 9431104386
                   





       

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