Wednesday, November 3, 2010

बिकास का असली चेहरा-3

१९ ५६-५७ में एच ई सी की स्थापना हुई. एच सी
प्रबंधन ने १६ गाँव के ८५०० एकड़ जमीन आदिवासी मूलवासी किसानो से अधिग्रहण किया था। इस अधिग्रहित जमीन में से करीब ५००० एकड़ जमीन का उपयोग किया। जिसमे प्लांट, हेड ऑफिस , सहित प्लांट की कई इकाइयाँ , तथा कवाटर एवं अन्य सुविधा खड़ा किया। बाकी ३५०० एकड़ जमीन में किसी तरह का ना तो कोई ढांचा खड़ा किया, ना ही किसी उपयोग में प्रबंधन ने लाया। इस जमीन में आज तक मूल जमीन मालिक खेती कर अपने रोज़ी रोज़गार चला रहे हैं। (कुछ किसान) कुछ जमीन पर बहरी लोगों ने कब्ज़ा जमा लिया है। कंपनी एक्ट के अनुसार जो जमीन प्रबंधन ने जिस उदेश्य के लिए अधिग्रहण किया था, १५ साल तक यदि उस जमीन को उस काम के लिए उपयोग नहीं करती है, तो उस जमीन को मूल जमीन मालिकों(रैयतों) को वापस करने का प्रावधान है। बिस्थापित इस बाकी जमीन की वापसी के लिए १९६७-६८ से ही मन करते आ रहे हैं। इसके लिए आज भी बिस्थापित मैदान के साथ कोट में भी केस लड़ रहे हैं। लेकिन झारखण्ड राज्य बन्ने के बाद झारखण्ड सरकार इस जमीन को दुसरे इकाइयों को बेचने का काम कर रही है। एच सी ने इस जमीन को किसानो से ३००० रुपिया एकड़ ख़रीदा था। आज इस जमीन को प्रबंधन ५८ लाख एकड़ की दर से बेच रही है।
बिस्थापित इसका बिरोध करते आ रही है। लेकिन किसानो को न्याय नहीं मिल रहा है। आज भी केस कोट में चल रहा है। दूसरी और प्रबंधन सी आई एफ, खेल बिभाग को जमीन बेच दिया। २००८ से बिस्थापित इसके खिलाफ लगातार एक साल तक सी ई एस एफ द्वारा कब्ज़ा किये जा रहे जमीन पर धरना तथा भूख हड़ताल में बैठे। लेकिन सरकार तथा प्रबंधन ने इसकी सुधि नहीं ली। दुखद बात है की आज प्रबंधन और सरकार दोनों जमीन का दलाल की भूमिका में हैं.
एच सी .के नाम पर आज राज्य सरकार तथा देश नाज करती है। दूसरी और जिन लोगों ने अपना जमीन दिया, जंगल दिया, घर दवार दिया, समाज दिया, सब कुछ दिया। उनको आखिर क्या मिल? मिल- भूख, बीमारी, बेरोज़गारी, अशिक्षा, बेघर, भूमिहीन, बंधुआ मजदूर की जिंदगी।
एच सी

1 comment:

  1. काम शब्दों में बेहतरीन आलेख

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