Thursday, March 10, 2011

MAHANGI KE LIYE KOUN JIMMEWAR HAI..PART-2

MAHANGAI..KYON NAHI BADHEGA?

AAP DEKH RAHE HAIN JIS KHET ME DAHN ROPNI KAR RAHE HAIN..DHAN KATNE KE BAD IS KHET ME GENHNU, MAKAI, AALU, BEEN, BODI, TAMATAR, GOVI, ADRAK, MIRCHA..KE KHETI KARTE HAIN....LEKIN IS JAMIN KO AB SARKAR..PAWER GREED BANANE KE LIYE ADHIGRAHAN KARNE WALI HAI...

कृर्षि भूमि पर कारपोरेट कब्जे का प्रतिरोध करने, भूमिं अधिग्रहण संशोधन विधेयक-2007, पुनर्वास और पुनस्र्थापन विधेयक-2007 तथा सीजेडएम अधिसूचना-2007 का विरोध करने के लिए 28-30 अप्रैल 08 को देश 18 राज्यों के जनआंदोलनों ने जंतर-मंतर में धरना दिया। इस दौरान इंसाफ ने बढ़ती महंगाई का सच क्या है से परदा हटाते हुए एक परचा जारी किया। इनके आधार पर यदि आंकड़ों पर गौर किया जाय तो कृर्षि योग्य भूमि को गैर- कृर्षि उपयोग में तब्दील किये जाने की प्रक्रिया न केवल चैंकाने वाली है बल्कि भयावह भी है। 1990-91 से 2004-05 के बीच प्रत्येक साल औसतन 2,95,500 हेक्टेयर कृर्षि भूमि को आवासीय व्यवस्था, एक्सप्रेसवे, सैन्य प्रतिष्ठान, औद्योगीकरण, मोडल और बाजारों के निर्माण और विकास परियोजनाओं जैसे कार्यों के नाम पर गैर- कृर्षि उपयोग की जमीन में बदल दिया गया है। कृर्षि योग्य भूमि को समाप्त किए जाने की यह दर 1999 के बाद लगातार बढ़ी है। 1990 से 1999 के बीच में जहां 5,75,000 हेक्टैयर कृर्षि योग्य भूमि को गैर कृर्षि भूमिं में बदल दिया गया, वहीं 2004-05 आते आते 17,73,000 हेक्टेयर कृर्षि भूमिं को गैर कृर्षि इस्तेमाल में बदल दिया गया। यानी 5 सालों में तीन गुना से ज्यादा कृर्षि योग्य भूमि विदेशी कंपनियों, देश के नेताओं, भवन निर्माताओं और ठेकेदारों की मिलीभगत की भेंट चढ़ गयी।

No comments:

Post a Comment