Sunday, June 29, 2014

यह निश्चित रूप में अंग्रेज सरकार के समय ही लगायी गयी थी ताकि यात्रा करते समय यात्री फल भी खा संके और धुप के दिन छाया भी मिल सके. निश्चित रूप इस मामले में अंग्रेज सरकार रोड को केवल गाड़ी दौडने के लिए नहीं बनती थी, लेकिन आम यात्रिओं के भोजन-पानी, के साथ और भी बुनियादी जरूरतों के साथ जोड़ कर देखती थी।

बिकास कर नाम पर उजड़ता पर्यावरण 
बिकास कर नाम पर उजड़ता पर्यावरण --सरकार राज्य में बिकास के नाम पर सैकड़ो सड़कें बन रही है, दर्जनो हाईवे बन राहे हैं।  इसके लिए लाखों पेड़ -पौधे, जंगल झाड़ कटे जा रहे हैं ,  विदित हो की जितने भी सड़कें  हैं - इन सड़कों के किनार दोनों ओर फलदार और छायादार पेड़ लगाये  हैं।  यह निश्चित रूप में अंग्रेज सरकार के समय ही लगायी गयी थी ताकि यात्रा करते समय यात्री फल भी खा संके और धुप के दिन छाया भी मिल सके. निश्चित रूप इस मामले में अंग्रेज सरकार रोड को केवल गाड़ी दौडने के लिए नहीं बनती थी, लेकिन आम यात्रिओं के भोजन-पानी, के साथ और भी बुनियादी जरूरतों के साथ जोड़ कर देखती थी।  
लेकिन आज हमारी सरकार रोड के किनारे सॉ साल से खड़े बिशाल पेड़ों को रोड चुड़ीकरण करण के नाम पर लाखों पेड़ों को काट कर खत्म कर दे रही है ,,जिससे पर्यावण की आपुनिये छाती हो रही है।इसे सिर्फ आम लोगों का ही केवल हानि नहीं है लेकिन। .पूरी पर्यावरण को उजाड़ने की साजिश ही है 

Wednesday, June 25, 2014

खूंटी की जनता के समक्ष घोषणा करती हुं कि मैं संविधान और बिरसा मुंडा को साक्षी मान कर घोषणा करती हुं कि आखिरी सांस तक इन मुददों पर संघर्ष में आप के साथ रहंुगी।

मेरा घोषणा पत्र
लोक सभा चुनाव 2014
खूंटी की धरती से ही बिरसा के अबुआ राइज का नारा पूरी दुनिया में गुजा था। अब उसे और बुलंद करना है। पूंजीपतियों की लूट और पूंजिनतियों की गोद में बैठे नेताओं से मुक्त झारखंड बनाने की यह लड़ाई हम सब के लिए एक साथ लड़ने और जीतने की चुनौती दे रहा है। 
पिछले 14 सालों में झारखंड में ग्रामीणों की स्थिति बद से बदत्तर हो गयी है। सरकारी कार्यक्रमों में बड़े पैमाने में व्यप्त भ्रष्टाचार, ग्रामीणों के प्रति सरकार एवं राज-नेताओं की उदासीनता दशार्ती है। स्थानीय शासन तथा सरकारी कार्यक्रमों में लोगों की भागीदारी सुनिशचत नहीं की जाती है तथा पंचायतों को अधिकार देना कोई प्राथमिकता नहीं है। 
जनता के आम मुदे जैसे भूख, कुपोषण, आदिवासी, महिला, किसानों के उपर हिंसा, विस्थापन, पलायन, बेरोजगारी, सिंचाई एवं पेचजल की कमी, इत्यादि किसी पार्टियाॅं नागरिकों को धर्म, जाति, एवं संप्रदाय के आधर पर बांट कर वोट की राजनीति कर रहे हैं।
दयामनी ग्रामीणों के मूल मुददों से लम्बें समय से जुड़ी हुई है। दयामनी ने बड़े विस्थापन की परियोजना के खिलाफ लंबा संघर्ष किया है, जिसमें लाखों आदिवासी-मूलवासी परिवार बेघर होने की संभावना थी। अब उन्होंने अपने कंधे पर पूरे क्षेत्र का आम सहमति से विकास की रणनीति बनायी है। वे पारंपरिक ग्राम सभा और महिला समूहों को जीवित कर विकास की ओर आगे बढ़ने की पे्ररणा देती रही है।
इस चुनाव में दयामनी नीचे उल्लेखित मुददों के साथ आप पार्टी की ओर से खड़ी है।
भ्रष्टाचार, विस्थापन, पलायन मुक्त झारखंड
जल, जंगल, जमीन के साथ स्थानीय स्तर पर प्रगती और रोजगार के अवसर के सृजन करना होगां
सीएनटी, एसपीटी एक्ट को चाने के लिए हम संकल्पबद्व हैं। हमारा मकसद इसे और मजबूत बनाने के लिए है।
खनिज और तमाम प्राकृतिक संसाधनों की लूट खत्म की जाएगी एवं कृर्षि एवं सिचाई की समुचित व्यवस्था की जाएगी।
खनिज, जंगल और वन संसाधन पर ग्राम सभा का अधिकार निशिचत किया जाएगा।
आदिवासियों और मूलवासियों के भूंमि कानूनों और खतिचानों में कोई दखल नहीं दिया जाए।
विस्थापन आयोग का गठन हो ताकि अबं तक विस्थापित हुए लोगों की पचहचान हो और उन्हें सुविधाएं दी जाए।
देशज विकास का झारखंड जिसमें सारे निर्णय के अधिकार ग्रामसभाओं के होंगें।
पेसा (झएड) कानून के तहत स्थानीय स्व-शासन एवं पंचायतों को अधिकार विकेन्द्रित करें।
शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की गारंटी के लिए समुचित पहल की जाएगी।
खाद्यय सुरक्षा और जन वितरण प्रणाली तथा वृद्वा पेंशन इंदिरा अवास की सहज उपलब्धता और हर गांव में आंगनबाड़ी के लिए पुरजोर आवाज उठाया जाएगा।
झारखंड को कुपोषण मुक्त बनाया जाएगा।
काॅमन स्कूल सिस्टम लागू किया जाएगा एवं सरकारी स्कूलों को शिक्षा का कारगर केंन्द्र बनाया जाएगा एवं स्थानीय भाषाओं में प्राथमिक ’िाक्षा की गारंटी की जाएगी।
रोजगार का स्थानीय स्तर पर सृजन के लिए लघु और कुटीर उद्योगों को प्राथमिकता दी जाएगी। 
महिलाओं को सुरक्षा, सम्मान एवं विकास के कामों को महिला संगठनों के द्वारा अगुवाई।
भाषा-संस्कृति और सामािजक सदभाव की रक्षा।
आदिवासियों और मूलवासियों की पहचान को बचाना हर कीमत पर जरूरी है कि स्थानीय नीति तुरंत बनाया जाए और इसके लिए जनांदोलन को समझौताविहीन किया जाएगा। 
शाति, सदभाव और हर एक का सम्मान हमारी प्राथमिकता रहेगी।
समाज कमजोर समुहों की आर्थिक निर्णय प्रक्रिया में भागीदारी सुनि’िचत की जाएगी।
विकास के विस्थापनमूलक नीति को बदलने के लिए सामुहिक पहल की जाएगी।
पर्यावरण को नुकसान किसी भी हालत में नहीं पहुंचाया जाय एवं नदियों और झरनों को स्वाभविक रूप से बहने दिया जाएगा।
झारखं डमें अब तक हुए एमओयू की न्याचिक समीक्षा की जाए और इसमें हुए भ्रष्टाचार के लिए दोषी नेताओं और अफसरों को सजा दिया जाए।
ज्ेल में बंद पड़े निर्दोष झारखंडियों की तुंरत रिहाई का प्रयास किया जाएगा।
ग््रामीणों न्यूनतम मजदूरी को सम्मानजनक किया जाए और उसके तुरंत भुगतान की गारंटी की जाएगी।
थ्कसी भी निर्माण कार्य का भुगतान तब ही जा जब उस की गुणवता ग्रास सभा प्रमाणित कर दे।
आम लोग ही तब करेंगे कि उनके गांव की उन्नति के लिए योजना कैसी होनी चाहिए।
खूंटकटी ग्रामों की पहचान रखी जाए एवं 4 हजार गांवों को पूण्र खूंटकटी गांव का दरजा दिलाने के लिए संघर्ष होगा।
हाथियों से प्रभावित गांवों और खेती के नुकसान के सवाल पर गंभीरता से पहल किया जाएगा। 
आदिवासियों को वनवासी कहने का विरोध किया जाएगा। 
कमीशन और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई की जाएगी।
यह चुनाव खूंटी के लोगों को ही लड़ना है ताकि वे खुद निर्णय करने के हकदार बनें। 
आइए राजनति बदलें और समाज बदलें
आइए कारपोरेट और राजनीतिक लूट को खत्म करें
आइए मिल कर हर नागरिक को सशक्त बनाएं
आइए कारपोरेट एजेंटों से राजनीति को मुक्त करें
आइए एक नए झारखंड लेकिन समुन्नत झारखंड के लिए एकजुट हों
आइए हम सब मिल कर अपने शहीदों के अरमानों को पूरा करने की दिशा  में कदम उठाएं, चुनाव को हम बदलाव के तुफान में बदल दें। 
मैं दयामनी बरला खूंटी की जनता के समक्ष घोषणा करती हुं कि मैं संविधान और बिरसा मुंडा को साक्षी मान कर घोषणा करती हुं कि आखिरी सांस तक इन मुददों पर संघर्ष में आप के साथ रहंुगी। 
लड़ेगें-जीतेंगें

Tuesday, June 24, 2014

चिलचिलाती धूप में तापती धरती की ताप में तुफान की झोंकों में ओला के गोलों की मार में भी शांत खड़ी सब सह लेती हो तुम काश मै तुम से सिख सकती

पुटुस तुम को
लोग जंगली कहते हैं
लेकिन मैं ही जानती हुं
की तुम कितना महान हो
तुम लोगों की निगह में जंगली हो
जहां-तहां तुम जन्म लेते हो
गंदगी के बीच
कीचड़ के बीच
खेत में 
खलिहान में
टांड में आड़ में
पहाड़ पर
टोंगरी पर
जंगल में
गांव में, टोला में
महला में
सभी जहग मौजूद हो
सभी हर जगह तुम्हारा है
जड़ा में
गरमी में
बरसात में
तुम खिलते हो
फलते हो
हरियाली, सफेद,
लाल-पीला
सबके  मन को खिंच लेते
बच्चों के मन में 
फूल के नन्हीं
नलों में
मीठी मीठी रस की बुंदे
कभी छोटी नन्हीं
चिंटी आती रस चुसने
तो कभी आप पर छोटी तितली
प्यार से चिपकती
हर फूल के
डंडी पर बीसियों 
छोटे छोटे हरी हरी
गोल गोल पुटुस 
फलों की बंधी मुठी
हरे गोल गोल
अब धीरे धीरे भूरापन
भूरापन अब अहिस्ते अहिस्ते
काला काला
कुछ तो नीलापन लिये-काला
अब मैना, गेंरवा, गिलहरी
चुटिया-मुसा 
बच्चें-बच्चियाॅं
युवा-बुजूर्ग 
पुटुस का पक्का मीठ
फल का स्वाद अपने
अंदाज के साथ 
ले रहे हैं
पेट भी ’ाांत होता है
पेट अब भूख भूख नहीं चिलाएगा
जब लोग असुरक्षित
महसुस करते हैं
अपने घर आंगन में
धान, मंडुआ, गोडा खेत में
तब तुम उनका रक्षक
बन कर चारों ओर उनके
खड़े हो कर
डनको पहरा देते हो 
घोरना बन कर
जब भी चुरू में भात
पकाना हो तुम 
हाजिर हो इंधन बन कर
और पकता है भात
तुम झुरी लकड़ी 
के बिना परिवार भूखे
पेट सोता है
तो फिर तुम कहां कमजोर हो??
नहीं नहीं कमजोर नहीं
तुम महान हो
सुबह बासी मुंह
को साफ करना हो
गांव कंपनी को
पुटुस दतवन आप 
के सामने खड़ा रहता है
गाय, बकरी चराते 
पैर की अंगुलियांे
पर ठेस लगता है
दर्द करहा रहा है
देशी  दवा पुटुस 
पत्ता को हाथ से
मल कर रस निचोड़
कर जख्म को राहत 
पहुंचाती हो तुम
चिलचिलाती धूप में
तापती धरती की ताप में 
तुफान की झोंकों में
ओला के गोलों की 
मार में भी
शांत खड़ी सब सह
लेती हो तुम
काश मै तुम से सिख सकती 


Tuesday, June 17, 2014

25 जनवरी 2012 को झारखंड हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि सीएनटी एक्ट 1908 की धारा 46 को कड़ाई से पालन किया जाए ।

सेवा में,                                              पत्रांक.......2......
उपायुक्त महोदय                                        दिनांक....17 जून 2014............
खूंटी
विषय-सीएनटी एक्ट के मूल धारा 46 को कड़ाई से लागू करने के संबंध में
महाशय,
इतिहास गवाह है कि बिरसा उलगुलान में हमारे नायकों के शहादत के बाद हमारी जमीन की रक्षा के लिए तत्कालीन सरकार छोटानागपुर काशतकारी अधिनियम 1908 बनाया. जब जमींदार हमारी जमीन छीन रहे थे, वह एक ऐसा समय था जब पुरखों ने जिस जंगल-जमीन को साँप  -भालू, बिच्छू से लड़कर बनाये थे, इससे जमींनदार, इजारेदार और भूमि-माफिया खुले आम छीनते जा रहे थे।  इसी जमीन की लूट को रोकने और आदिवासियों-मूलवासियों के धरोहर-जल-जंगल-जमीन की रक्षा के लिए अंग्रेज सरकार ने  सी एन टी एक्ट  कानून १९०८ बनाया। इस कानून के बनने के बाद हमारी जमीन का संरक्षण हुआ।. कानून के बावजूद आदिवासियों और मूलवासियों की जमीन बेदर्दी से गैर-कानूनी तरीके से छीनते जा रही है। .हम जानते हैं कि झारखंड राज्य गठन के बाद से ही  झारखंड पर कापरोरेट घरानों, देशी -विदेशी  कंपनियों  और भूमि माफिया की गिद्ध दृष्टि  लगी हुई है.। पहले ही लाखों झारखंडी विस्थापित किए गए हैं और यदि यह कानून भी बदल दिया गया तो तय है कि झारखंडियों का कोई नामोनशान नहीं बचेगा।. झारखंडी अस्मिता और अस्तित्व को यदि बचाना है तो सीएनटी की मूल धारा 46 को मजबूती से लागू करवाना होगा और गैर-कानूनी तरीके से छीनी गयी जमीन की वापसी का भी अभियान चलाना होगा. यह सरकार की जिम्मेवारी है। 
विदित हो कि 25 जनवरी 2012  को झारखंड हाईकोर्ट ने  आदेश  दिया कि सीएनटी एक्ट 1908 की धारा 46 को कड़ाई से पालन किया जाए । 
हमारी मांगे-
1-.सीएनटी एक्ट की मूलधारा 46 को कड़ाई से लागू किया जाए 
2-खतियानों का आॅन लाईन करना सीएनटी एक्ट का घोर उल्लंघन है, यह सीएनटी एक्ट को स्वतः खत्म करने की बड़ी साजिश  है।  इसलिए खतियानों का आॅन लाईन का बंद किया जाए।
3-झारखंड हाइकोर्ट का यह फैसला कि सीएनटी एक्ट की धारा 46 (1),(2) और 64 को सख्ती से लागू किया जाए-इसका आक्षरसा पालन किया जाए।
4-. गैर कानूनी तरीके से आदिवासी-मूलवासियों की छीनी गयी जमीन की वापसी का अभियान चलाया जाए
5-. पांचवी अनुसूचि क्षेत्र में गा्रम सभा को जमीन संरक्षण के लिए दिये गये अधिकारों को कड़ाई से पालन किया जाए( ग्राम सभा के अनुमति के बिना किसी तरह का जमीन अधिग्रहण नहीं)।
6- सीएनटी एक्ट में आदिवासी-मूलवासियों के जमीन की रक्षा के लिए उपायुक्त को दिये गये अधिकार का अक्षरसा पालन किया जाए
7- झारखंड का समुन्नत विकास के लिए स्थानीयता नीति लागू किया जाए।

                                                             निवेदक
                                                 आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच 
                                                      आम आदमी पार्टी 

Sunday, June 1, 2014

जिंदगी के लंबे और चुनौति भरा सफर में आप लोग मेरी ताकत बन कर, दोस्ता बनकर, सहयोगी बन कर, चिंतक बनकर, मेरा प्रशासक बन कर, ’शुभ चिंतक बन कर हर कदम, हर स्वांस में मेरे साथ निरंतर रहे और आशा है-आगे कई वैचारिक मत भेदों के बावजूद हम-आप साथ रहेगें।

1995 के 5 जुलाई को कोयल कारो परियोजना का घोषणा के साथ ही झारखंड के तत्कालीन रांची जिला के तोरपा प्रखंड और तत्कालीन गुमला जिला के कमडारा प्रखंड, बसिया प्रखंड, पालकोट प्रखंड, सिसई प्रखंड और गुमला प्रखंड, प’शिचमी सिंहभूंम के .गांव सहित ...कुल 245 गांवों में विस्थापन का बादल मंडराने लगा था। कोयलकारो जनसंगठन ने नारा दिया-हम जान देगें-जमीन नहीं देगें। कोयलकारो जनसंगठन के साथ विस्थापन के खिलाफ संघर्षरत जनआंदोलनों ने भी आवाज बुलंद किया। मैं धन्यबाद देती हूॅं-कोयलकारो जनसंठन को-जो हम सभी को आंदोलन में अपने साथ खड़ा होने का मौका दिया। लड़ने सिखाया। झारखंड के इतिहास, भाषा-संस्कृति, सामाजिक मूल्यों की रक्षा के लिए समझौताविहीन संघर्ष के अस्तित्व को आगे बढ़ाने सिखलाया। 2 फरवरी 2001 को कोयलकारो जनसंगठन पर पुलिस फायरिगं हुआ-आठ साथी शहीद हुऐ। 23 साथी घायल हो गये। करीब दो माह तक घायलों का इलाज रिम्स में चला। तब पहली बार घायलों के साथ रहने, उनका सेवा करने का मौका मिला। 
सरकार के अनुसार 2 फरवरी के गोली कांड में एक पुलिस भी मारा गया था। इसको लेकर जनसंगठन के साथियों पर केस हुआ। केस की वापसी को लेकर जनसंगठन और पुलिस प्रशासन के बीच कई बार वर्ता हुआ। वर्ता में जनसंगठन ने मुझे ग्रामीण एसपी से बात करने की जिम्मेवारी दी। लगातार ग्रामीण एसपी के साथ केस वापसी को लेकर वर्ता चली-मैं एक ही बिंन्दु में अड़ी रही-कि जनसंगठन पर थोपा गया केस बिना वार्ता  वापस लिया जाए। लेकिन प्रशासन हमारी शर्त  नहीं मानी। 
दूसरी ओर जीवन में पहली बार केस लड़ने के लिए कार्ट का दरवाजा भी देखना पड़ां। जनसंगठन के हितौशी  साथियों के साथ मिल कर केस रांची कोर्ट के वकील....को दिये। उनको कोयलकारो आंदोलन, सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, जल-जंगल-जमीन के साथ आदिवासी -मूलवासी समाज का रिस्ता -इन तमाम पहलू पर वकील के साथ चर्चा किये। इसमें वासवीजी, वरिष्ठ पत्रकार फैसल अनुरागजी, डा. रमेश  शरणं जी आदि सक्रिया भूमिंका निभाये। 
रांची कोर्ट में वकील साहब ने केस अपील किये। केस के लिए आवश्याक कागजात थाना से लाना कर वकील को देना, विधान सभा में जो चर्चा चला था-उसका प्रति माले विधायक काॅ0 महेंन्द्र सिंह के विधायक आवास जाकर लाना, और इसको वकील को पहुंचाना। हर दिन वाकील के पास जरूरी कागजात को लेकर जाना, साथ ही केस लड़ने के लिए पैसा चंदा करके जनसंगठन को देना, वकील को देना -जिंदगी और संघर्ष को करीब से समझने का मौका था। 
जनसंगठन पर थोपा गया केस वापसी, घायलों को मुआवजा दिलाने की लड़ाई, ‘’शहीद परिवार को सरकारी नौकरी देने की मांग लड़ाई -में काॅ0 महेंन्द्र सिंह के साथ लाकर साथ खड़ा कर दिया। क्योंकि मैं लगातार इस मामले को लेकर विधायक महेंन्द्र सिंह के विधायक आवास पर जाती थी। महेंन्द्र सिंह के सहयोग, पे्रम भाव और जुझारूपन से भी इसी दौरन परिचाय हुईं । 
इसके बाद लगातार जनमुदों को लेकर गांव-सामाज से लेकर राज्य से लेकर देश  स्तर पर जो भी संघर्ष विभिन्न जनआंदोलनों, जनआंदोलनों के समूहों, एनएपीएम, इंसाफ आदि के बैनरों से देश  भर में लड़ी जा रही तमाम जनआंदोलनों में भाग लेने, सिखने, आंदोलन को सहयोग करने, सहयोग लेने का भी मौका मिला। ये सभी अवसर निश्चित  रूप से आप सभों ने दी दिया। 
2006 से 2010 तक अर्सेलर मित्तल जो वर्तमान खूंटी जिला के तोरपा प्रखंड, रनिया प्रखंड, कर्रा प्रखंड तथा गुमला जिला के कमडारा प्रखंड़ों के करीब 40 गांवों को विस्थापित कर 12 मिलियन टन का स्टील प्लांट लगाना चाहता था-ग्रामीण गांव छोड़ना नहीं चाहते थे। ग्रामीण अपने पूर्वजों का जमीन बचाने के लिए कंपनी के खिलाफ झंण्डा बुलंद कियें। कई बार कंपनी और दलालों ने जान से मारने की धमकी दी। फान पर -बोला-तुम गांव में बैठक करना छोड़ दो, कंपनी के खिलाफ गांव वालों को भड़काना बंद करो-नही ंतो इतना गोली मारेगें कि -शव का ’शिनाख्त  नहीं होगा, तुम्हारा लाश  को कोई नहीं पहचानेगें। दूसरी बार फिर फोन आया-तुम सुधर नहीं रही हो-वारनिंग दे रहे हैं-गांव में बैठक करना छोड़ दो-नही तो लोगों के बीच से ही उठा लेंगें। आप लोगों का प्यार-सहयोग ने मुझें और मजबूती के साथ खड़ा रखा। 
हमने हमारे पूर्वजों की दी विरासत को कंपनी के हाथ-जाने से बचा के अभी तक रखा।  2010 से छाता नदी पर गैर कानूनी तरीके से कंटी जलाशय के नाम पर डैम बनना प्ररंभ्म किया गया थां। विरोध करने पर एक ग्रामीण की हत्या भी हो गयी। इस घटना के बाद मुझे गांव में बुलाया गया। 17 दिसंबर को पहली बार जबड़ा गांव आयी। दो बेगुनाह लोगों को पुलिस पांच दिनों तक अपने कस्टडी में रखी, इन लोगों को पुलिस से मुक्त करवाये। ग्रामीणों के अग्राह पर डैम के विरोध आंदोलन को आगे बढ़ाये। डैम के बारे जानकारी लेने के लिए सरकारी दफतरों में-प्रखंड विकास पदाधिकारी, अंचल अधिकारी, जिला में-एसडीओ, अपर सर्माहर्ता, उपायुक्त खूंटी, राज्य जलसं’ााधन विभाग, वि’ोष भूर्अजन विभाग में आरटीआई से जानकारी मांगी। सरकारी दफतरों से मिली जानकारी के अनुसार जनंआदोलन को तैयार करने की को’शिष  की। जनआंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए-डेम प्रभावित जनसंघर्ष समिति बनाये। कई धमकियां आयी, अढचन आये, फिर भी आज तक जमीन, गांव सभी सुरक्षित है। 
2012 में नगड़ी में सरकार आईआईएम सहित कई संस्थानों के लिए 227 एकड़ जमीन जबरन अधिग्रहण करना प्ररंभ्म कर दिया था। 227 एकड़ जमीन को चारों ओर से घेराबंद किया जा रहा था। इस भूखंड के चारों ओर पुलिस बल, को उतार दिया था। सरकार का तर्क था-जमीन 1957-58 में ही सरकार खरीद चुकी है। दूसरी ओर गांव वाले दावा कर रहे थे कि हमलोगों ने जमीन नहीं बेची है। दोनों पक्षों के हकिकत को समझने के लिए मैंने भूअर्जन विभाग से आरटीआई के तहत जानकारी मांगी। जानकारी मिला-1957-58 में 153 रैयत थे, इनमें से 128 रैयतों ने मुआवजा नहीं लिया और वो पेसा रांची ट्रेजरी में जमा है। यह साफ हो गया-कि किसान जमीन का पैसा नहीं लिये हैं-तब सरकार जमीन कैसे खरीदी। 
इसकी जानकरी उपलब्ध सरकारी दस्तावेज के साथ 2 मार्च को राज्यपाल को मांग प्रत्र देकर -जबरन अधिग्रहण को रोकने का आग्रह किये। 2 मार्च से 4 जूलाई तक नंगड़ी के खेत में दिन-रात धरना ग्रामीणों ने दिया। पूरा आंदोलन में साथ रहे। धरना के साथ सभी मोरचों पर आंदोलन चला। सरकार ने हल निकालने के लिए पांच आइएस अधिकारियों का एक उच्चस्तरीय समिति बनायी। इस हाईलेबल समिति का अध्यक्ष भूराजस्व मंत्री श्री मथुरा महतो को बनाया गया था। जमीन मालिको और हाईलेबल समिति के बीच तीन बार बैठक हुई। तीनों बार ग्रामीणों ने बताया कि-जमीन बिका नहीं है, और न ही बेचना चाहते हैं। श्री महतो जी बोलते रहे-जमीन मालिकों की भावनाओं का ख्याल रखा जाएगा। 
सरकार को सुकुरहूटू का जमीन -जहां 1900 एकड़ बंजर भूमि हैं-लगातार विकल्प के रूप में बताते रहे। लेकिन सरकार अपने जिद पर अड़ी रही। दूसरी ओर सरकार मुझे जेल भेजने की तैयारी में जुट गयी। 2006 के मानरेगा में ग्रामीणों को जोब कार्ड दिलाने के लिए रैली निकाली गयी थी-इसी मामले में मेरे नाम पर वारंट निकाला गया और जेल भेज दिया। जेल से तब तक बाहर नहीं निकलने दिया-जब तक कि लाॅ यूनिर्वसिटी के लिए 70 एकड़ जमीन पूरी तरह से घेराबंदी और कब्जा में लिया। मेरे जेल जाने के बाद आंदोलन को किसी ने आगे नहीं बढ़ाया, यह दुखद रहा। फरवारी 2013 को तत्कालीन केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री श्री जयराम रमेश जी प्रभात खबर आये थे। तब प्रभात खबर के प्रधान संपाद श्री हरिवंश जी के अमंत्रण में मैं भी जयरामजी के छोटी मुलाकात में गयी थी। साथ में जयरामजी के नाम नगड़ी का जमीन वापस करने और इसके लिए विकल्प में सूकुरहूट में जमीन देखने के लिए मांग पत्र बना कर दिये। इस मुददे पर 35 मिनट तक मंत्री जी से बात हुई। दो माह के बाद जयराम रमे’ाजी के पहल पर नगड़ी से आई आई एम सहित अन्य संस्थानों को सूकूरहूटू स्थानंत्रित करने का फैसला लिया गया। जो मेरे लिए सुखद रहा। 
2011 से ही खूंटी जिला के तजना नदी पर डैम बनाने की सुगबुगाहट हो रही है। लेकिन डैम के खिलाफ आंदोलन 2013 से ज्यादा सक्रिया हुआ है। सरकारी अधिकारी भी 2013 में डैम बनाने के लिए पूरी ताकत के साथ जनसुनवाई कराने की कोशिश  किये। लेकिन सरकार असफल रही। 
मेरा मनना है-जींदगी में जितने भी उतार-चढ़ाव हम लोगों ने देखा-सामना किये, हर कदम में आप सभों का सहयोग प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रहा है। आप के प्रेम -दुलार ने ही हर कदम को मजबूती से आये बढ़ाया। आज गर्व के साथ कह सकते हैं-कि हमन बिरसा मुंडा के विरासत के साथ किसी तरह का समझौता नहीं किया। कोयल नदी, कारो नदी, छाता नदी और तजना नदी का बहता पानी इसका साक्षी है। 
इस लबें संघर्ष के कडुआ अनुभवों ने एक कदम आगे बढ़ने का निर्णय लिया। जिस जल-जंगल-जमीन को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं-इसको संरक्षित करने, पूंजीपतियों, कारपोरेट के हाथें निलामी करने का कानून -नीति लोक सभा में और विधान सभा में ही बनाया जाता है। पालन भी इन्हीं संस्थानों के द्वारा किया जाता है। इस लिए सभों ने आंदोलन के साथियों ने निर्णय लिये कि-हम लोगों को राजनीतिक हस्तक्षेप में जाना चाहिए-जहां कानून और नीतियां तय की जाती हैं। 
चुनाव की तैयारी आप लोगों ने जनआंदोलन के तर्ज पर किये। नामंकन के पहले सभी अपने देवी-देवता, शत्कि के प्रतिक भगवानों को नमन-दर्’शन करते हैं। आप लोगों ने झारखंड के समझौताविहीन ’शहादती बिरसा मुंडा  के उलगुलान को याद करके-झारखंड की विरासत की हिफाज के लिए बिरसा मुंडा के शहादती आंदोलन के साथ राजनीतिक शत्कि को बनाने का संकल्प डोम्बारी बुरू में लिये। और तय किये कि हमारा रास्ता बिरसा का रास्ता होगा। 
खूंटी लोक सभा क्षेत्र चार जिलों के 6 विधान सभा क्षेत्र में फैला है। इसमें खूुटी जिला में तोरपा विधान सभा, और खूंटी विधान सभा है। सिमडेगा जिला में  कोलेबिरा विधान सभा और, सिमडेगा विधान सभा है। रांची जिला में  तमाड़ विधान सभा है, और खरसंवा जिला में खरसंवा विधान सभा है। पूरा देश -दुनिया जानता है कि-पूरा खूंटी लोक सभा क्षेत्र में माओवादी, पीएलएफआई से लेकर दर्जनों छोटे-बड़े उग्रवादी समूह सक्रिया हैं। यह भी सभी जानते हैं-इसमें से कई विधान सभा पर उग्रवादी संगठनों का शतप्रतिशत वर्चास्व है। इन उग्रवादि संगठनों के इच्छा के बिना कई क्षेत्रों में पता भी डोल नहीं सकता है।
 पिछले विधान सभा चुनाव के दौरान तोरपा विधान सभा क्षेत्र में उग्रवादी संगठन ने फरमान जारी किया था-कि हमारा आदमी को वोट नहीं करोगे तो -हम रात में आएगें, और वोट करोग तो दिन में आएगें। इस फरमान से पूरा तोरपा विधान सभा क्षेत्र आतांक में डुब गया। चाहते-ना चाहते हुए भी लोागों ने भय से उनका उम्मीदवार को भारी मतों से जितवाया। 
2014 के लोक सभा चुनाव में सभा उग्रवादी संगठनों ने अपना अपना उम्मीदवार खड़ा किया था। जो अपना उम्मीदवार खड़ा नहीं किया-वो संगठन उम्मीदवारों से भारी राशि  लेकर उनके पक्ष में वोट डालवाने का जिम्मेवादी उठाया। मेरे साथियों से सीधे तौर पर कहा-दयामनी को वोट करोगे तो-पूरा गांव जला देगें। नामांकन के दिन से ही मेरे साथियों को खूंटी नामांकन के लिए आने से रोकना शुरू किया। मेरे समर्थकों को कहा गया-दयामनी को वोट करोगे तो अंजाम ठीक नहीं होगा। नामांकन के दिन से लगातार -दिन-रात हर गांव में मेरे साथियों को प्रचार करने से रोकते रहे। धमकियां देते रहे। 
7 अप्रैल को बिरबांकी में हमारे साथियों  को बंधक बनाया, गाड़ी की चाभी छीन लिये। चार घंण्टा तक बंधक रखने के बाद शाम सात बजे साथी वहां से किसी तरह भाग निकले। सातों साथी रात भर बिरबांकी के जंगल में भटकते रहे। 18 घंण्टा के बाद साथी खूंटी पहुंचे। चलते चलते पैरों पर छले ओ गये थे। पूरा देह में जंगल झाडी -कांटों का खंरोच, देख कर मन सिहर जाता था। सात साथियों की जिंदगी हमारे लिये कीमती था। हमलोगों ने प्रशासन को  रिपोर्ट देर से ही लिखवायी, कारण की पहले हमारे साथियों के वापस आने का इंतजार कर रहे थे। 
9 अप्रैल को कर्रा थाना के बिकवादाग में पीएलफआई ने हमारे साथियों को मारा-पीटा, गाड़ी का चाबी छीन लिया। बाद में हमारे नेतृत्वकारी साथी को कैद में लिया और बाकी छह को वहां से भागने को कहा, उन लोगों को हिदायत दी गयी कि कोई पिछे मुडकर नहीं देखेगा-जितना जल्दी हो भागो यहां से। जिस साथी को छह बंदूकधारियों ने कैद में रखा-उनसे वहां खड़े ब्रहम्णों का पैर छू कर प्रणाम करके हाथ जोड़कर कहलवाया-एनोश  एक्का को वोट दो। पुलिस वहां पहुंची, इस कारण उनका जान बच गया। 
एक बुजूर्ग साथी से इसी संगठन के लोगों ने पूछा-तुम दयामनी का काम कर रहे हो? उस सज्जन ने जवाब दिया-हां काम कर रहे हैं। तब उन लोगों ने धमकाया-दयामनी को वोट कराओगे तो अंजाम ठीक नहीं होगा। भयमुक्त उस सज्जन ने जवाब दिया-यदि सचाई और समाज के लिए आप लोग मार भी दीजिएगा-तो इतिहास बनेगा, कि हमारी जान समाज की रक्षा के लिए गयी। 
एक दूसरा व्यक्ति ने हिम्मत दिखायी-17 अप्रैल को चुनाव के दिन-उसी संगठन के लोग मातदाताओं को अपने तरफ वोट करवाने के लिए खाने-पिने का आयोजन किये थे। वहां सभी को जाना था। वहां निर्देष दिया गया-सिर्फ झारखंड पार्टी के एनो’श को ही वोट करना है, प्रत्यक्षदशिर्यों के अनुसार-एक बुजुर्ग ने जवाब दिया-हम तो दयामनी को ही वोट देगें। इतना सूनना था-कि उक्त बुजुर्ग को लोगों ने खूब पीटा। इसी रात को वोट के बाद कर्रा थाना क्षेत्र के एक गांव के हमारे मूख्य अगुवा साथी के घर लोग पहुंचे-और यह कहते पीटा की तुम लोग दयामनी को वोट किये हो। 
केलेबिरा विधान सभा क्षेत्र में मेरा परचा बांट रहे युवक के उपर गोली चलायी गयी। जैसे ही गोली चलाया-परचा बांट रहा युवक सिर झुका दिया। बाल बाल बच गया। 
मैं आप लोगों को यह भी बताना चाहती हुं-कि मुझे भी बोला गया कि-5 लाख रूपया दो, नही ंतो गांव में घुसने नहीं देगें। मैं ने एक ही जवाब दी-जब गांव बचाने का लड़ाने मैंने भी लड़ा है , तब गांव बचा है-आज इसी गांव में घुसने के लिए 5 लाख रूप्रया मांग रहे हो। हमने सीधा कहा-हम नहीं दे सकते हैं। 
मित्रो-राजनीतिक भ्रष्टाचार के खिलाफ यह एक बड़ी लड़ाई थी। जहां कहीं भी हमारे लोगों से वोट करने के लिए पैसा मांगा-हमारे साथियों ने हाथ जोड़ कर सीधा अनुरोध करते हुए कहा-यदि आप को वोट के लिए पैसा चाहिए तो आप हम को वोट मत दीजिए। हमारी टीम ने चुनाव प्रचार में यह भी नहीं कहा-कि आप हम को ही वोट करो, हाॅ आप अपना वोट पैसों से, लालच से मत बेचो, आप का एक वोट ही इस राज्य और दे’ा को बना सकता है और विगाड सकता है। 
मुझे गर्भ है-कि जिस उदे’य के साथ राजनीति में कदम रखे थे-हम उस उदे’य को हाशिल कर लिए हैं। हमारा उद्देश्य  था- जल-जंगल-जमीन-भाषा-संस्कृति, अस्तित्व-पहचान की लड़ाई को राजनीतिक प्लेटफाॅम में लाना, जहां दूसरे राजनीतिक पार्टीयों के यह हमारी अस्तित्व-विरासत मुददा के रूप कभी नहीं देखा गया। हम ने घोषणा भी किया हे-कि इसकी रक्षा के लिए अंतिम स्वांस तक हम आप लोगों के साथ रहेगें। 
हमारी टीम उन तमाम साथियों को भी धन्यवाद देना चाहती है-जिन्होंने मार खा कर, जुल्म सह कर भी समाज-व्यवस्था बदलने और अपने हक-अधिकार, जल-जंगल-जमीन और विरासत के लिए वोट किये। हमारी टीम धन्यवाद करती है-आप लोगों ने एक-एक मुठा चावल, एक-एक फड़ा लकड़ी, पातल, दाल, सुखा साग-सब्जी जमा कर चुनाव लड़ने का जजबा का आगे बढ़ायें। हम आप तमाम साथियों को भी धन्यवाद देना चाहते हैं, ,जिन्होंने दूर रह कर भी हमारी टीम के बहुत करीब हर कदम में, हर दुख-सुख में साथ रहे। हम आप सभों को भी धन्यवाद देना चाहते हैं-जिन्होंने अपने चिंतन में हमशा  हम लोगों के साथ रहे। हमारी टीम मीडिया के सभी साथियों को धन्यवाद देती है-कि आप ने हमारे प्रति अपनी जिम्मेवारी निभाते हुए -राज्य और देश  को हमारे चिंतन और कामों से हमेशा  अवगत करने का काम किये। हमारी टीम आप सभी अपील करती हे-कि इस लड़ाई को हम अकेले लड़ नहीं सकते हैं-आप सभी से सहयोग की अपील करती है। 
1995 के 5 जुलाई को कोयल कारो परियोजना का घोषणा के साथ ही झारखंड के तत्कालीन रांची जिला के तोरपा प्रखंड और तत्कालीन गुमला जिला के कमडारा प्रखंड, बसिया प्रखंड, पालकोट प्रखंड, सिसई प्रखंड और गुमला प्रखंड, प’शिचमी सिंहभूंम के .गांव सहित ...कुल 245 गांवों में विस्थापन का बादल मंडराने लगा था। कोयलकारो जनसंगठन ने नारा दिया-हम जान देगें-जमीन नहीं देगें। कोयलकारो जनसंगठन के साथ विस्थापन के खिलाफ संघर्षरत जनआंदोलनों ने भी आवाज बुलंद किया। मैं धन्यबाद देती हूॅं-कोयलकारो जनसंठन को-जो हम सभी को आंदोलन में अपने साथ खड़ा होने का मौका दिया। लड़ने सिखाया। झारखंड के इतिहास, भाषा-संस्कृति, सामाजिक मूल्यों की रक्षा के लिए समझौताविहीन संघर्ष के अस्तित्व को आगे बढ़ाने सिखलाया। 2 फरवरी 2001 को कोयलकारो जनसंगठन पर पुलिस फायरिगं हुआ-आठ साथी शहीद हुऐ। 23 साथी घायल हो गये। करीब दो माह तक घायलों का इलाज रिम्स में चला। तब पहली बार घायलों के साथ रहने, उनका सेवा करने का मौका मिला। 
सरकार के अनुसार 2 फरवरी के गोली कांड में एक पुलिस भी मारा गया था। इसको लेकर जनसंगठन के साथियों पर केस हुआ। केस की वापसी को लेकर जनसंगठन और पुलिस प्रशासन के बीच कई बार वर्ता हुआ। वर्ता में जनसंगठन ने मुझे ग्रामीण एसपी से बात करने की जिम्मेवारी दी। लगातार ग्रामीण एसपी के साथ केस वापसी को लेकर वर्ता चली-मैं एक ही बिंन्दु में अड़ी रही-कि जनसंगठन पर थोपा गया केस बिना वार्ता  वापस लिया जाए। लेकिन प्रशासन हमारी शर्त  नहीं मानी। 
दूसरी ओर जीवन में पहली बार केस लड़ने के लिए कार्ट का दरवाजा भी देखना पड़ां। जनसंगठन के हितौशी  साथियों के साथ मिल कर केस रांची कोर्ट के वकील....को दिये। उनको कोयलकारो आंदोलन, सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, जल-जंगल-जमीन के साथ आदिवासी -मूलवासी समाज का रिस्ता -इन तमाम पहलू पर वकील के साथ चर्चा किये। इसमें वासवीजी, वरिष्ठ पत्रकार फैसल अनुरागजी, डा. रमेश  शरणं जी आदि सक्रिया भूमिंका निभाये। 
रांची कोर्ट में वकील साहब ने केस अपील किये। केस के लिए आवश्याक कागजात थाना से लाना कर वकील को देना, विधान सभा में जो चर्चा चला था-उसका प्रति माले विधायक काॅ0 महेंन्द्र सिंह के विधायक आवास जाकर लाना, और इसको वकील को पहुंचाना। हर दिन वाकील के पास जरूरी कागजात को लेकर जाना, साथ ही केस लड़ने के लिए पैसा चंदा करके जनसंगठन को देना, वकील को देना -जिंदगी और संघर्ष को करीब से समझने का मौका था। 
जनसंगठन पर थोपा गया केस वापसी, घायलों को मुआवजा दिलाने की लड़ाई, ‘’शहीद परिवार को सरकारी नौकरी देने की मांग लड़ाई -में काॅ0 महेंन्द्र सिंह के साथ लाकर साथ खड़ा कर दिया। क्योंकि मैं लगातार इस मामले को लेकर विधायक महेंन्द्र सिंह के विधायक आवास पर जाती थी। महेंन्द्र सिंह के सहयोग, पे्रम भाव और जुझारूपन से भी इसी दौरन परिचाय हुईं । 
इसके बाद लगातार जनमुदों को लेकर गांव-सामाज से लेकर राज्य से लेकर देश  स्तर पर जो भी संघर्ष विभिन्न जनआंदोलनों, जनआंदोलनों के समूहों, एनएपीएम, इंसाफ आदि के बैनरों से देश  भर में लड़ी जा रही तमाम जनआंदोलनों में भाग लेने, सिखने, आंदोलन को सहयोग करने, सहयोग लेने का भी मौका मिला। ये सभी अवसर निश्चित  रूप से आप सभों ने दी दिया। 
2006 से 2010 तक अर्सेलर मित्तल जो वर्तमान खूंटी जिला के तोरपा प्रखंड, रनिया प्रखंड, कर्रा प्रखंड तथा गुमला जिला के कमडारा प्रखंड़ों के करीब 40 गांवों को विस्थापित कर 12 मिलियन टन का स्टील प्लांट लगाना चाहता था-ग्रामीण गांव छोड़ना नहीं चाहते थे। ग्रामीण अपने पूर्वजों का जमीन बचाने के लिए कंपनी के खिलाफ झंण्डा बुलंद कियें। कई बार कंपनी और दलालों ने जान से मारने की धमकी दी। फान पर -बोला-तुम गांव में बैठक करना छोड़ दो, कंपनी के खिलाफ गांव वालों को भड़काना बंद करो-नही ंतो इतना गोली मारेगें कि -शव का ’शिनाख्त  नहीं होगा, तुम्हारा लाश  को कोई नहीं पहचानेगें। दूसरी बार फिर फोन आया-तुम सुधर नहीं रही हो-वारनिंग दे रहे हैं-गांव में बैठक करना छोड़ दो-नही तो लोगों के बीच से ही उठा लेंगें। आप लोगों का प्यार-सहयोग ने मुझें और मजबूती के साथ खड़ा रखा। 
हमने हमारे पूर्वजों की दी विरासत को कंपनी के हाथ-जाने से बचा के अभी तक रखा।  2010 से छाता नदी पर गैर कानूनी तरीके से कंटी जलाशय के नाम पर डैम बनना प्ररंभ्म किया गया थां। विरोध करने पर एक ग्रामीण की हत्या भी हो गयी। इस घटना के बाद मुझे गांव में बुलाया गया। 17 दिसंबर को पहली बार जबड़ा गांव आयी। दो बेगुनाह लोगों को पुलिस पांच दिनों तक अपने कस्टडी में रखी, इन लोगों को पुलिस से मुक्त करवाये। ग्रामीणों के अग्राह पर डैम के विरोध आंदोलन को आगे बढ़ाये। डैम के बारे जानकारी लेने के लिए सरकारी दफतरों में-प्रखंड विकास पदाधिकारी, अंचल अधिकारी, जिला में-एसडीओ, अपर सर्माहर्ता, उपायुक्त खूंटी, राज्य जलसं’ााधन विभाग, वि’ोष भूर्अजन विभाग में आरटीआई से जानकारी मांगी। सरकारी दफतरों से मिली जानकारी के अनुसार जनंआदोलन को तैयार करने की को’शिष  की। जनआंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए-डेम प्रभावित जनसंघर्ष समिति बनाये। कई धमकियां आयी, अढचन आये, फिर भी आज तक जमीन, गांव सभी सुरक्षित है। 
2012 में नगड़ी में सरकार आईआईएम सहित कई संस्थानों के लिए 227 एकड़ जमीन जबरन अधिग्रहण करना प्ररंभ्म कर दिया था। 227 एकड़ जमीन को चारों ओर से घेराबंद किया जा रहा था। इस भूखंड के चारों ओर पुलिस बल, को उतार दिया था। सरकार का तर्क था-जमीन 1957-58 में ही सरकार खरीद चुकी है। दूसरी ओर गांव वाले दावा कर रहे थे कि हमलोगों ने जमीन नहीं बेची है। दोनों पक्षों के हकिकत को समझने के लिए मैंने भूअर्जन विभाग से आरटीआई के तहत जानकारी मांगी। जानकारी मिला-1957-58 में 153 रैयत थे, इनमें से 128 रैयतों ने मुआवजा नहीं लिया और वो पेसा रांची ट्रेजरी में जमा है। यह साफ हो गया-कि किसान जमीन का पैसा नहीं लिये हैं-तब सरकार जमीन कैसे खरीदी। 
इसकी जानकरी उपलब्ध सरकारी दस्तावेज के साथ 2 मार्च को राज्यपाल को मांग प्रत्र देकर -जबरन अधिग्रहण को रोकने का आग्रह किये। 2 मार्च से 4 जूलाई तक नंगड़ी के खेत में दिन-रात धरना ग्रामीणों ने दिया। पूरा आंदोलन में साथ रहे। धरना के साथ सभी मोरचों पर आंदोलन चला। सरकार ने हल निकालने के लिए पांच आइएस अधिकारियों का एक उच्चस्तरीय समिति बनायी। इस हाईलेबल समिति का अध्यक्ष भूराजस्व मंत्री श्री मथुरा महतो को बनाया गया था। जमीन मालिको और हाईलेबल समिति के बीच तीन बार बैठक हुई। तीनों बार ग्रामीणों ने बताया कि-जमीन बिका नहीं है, और न ही बेचना चाहते हैं। श्री महतो जी बोलते रहे-जमीन मालिकों की भावनाओं का ख्याल रखा जाएगा। 
सरकार को सुकुरहूटू का जमीन -जहां 1900 एकड़ बंजर भूमि हैं-लगातार विकल्प के रूप में बताते रहे। लेकिन सरकार अपने जिद पर अड़ी रही। दूसरी ओर सरकार मुझे जेल भेजने की तैयारी में जुट गयी। 2006 के मानरेगा में ग्रामीणों को जोब कार्ड दिलाने के लिए रैली निकाली गयी थी-इसी मामले में मेरे नाम पर वारंट निकाला गया और जेल भेज दिया। जेल से तब तक बाहर नहीं निकलने दिया-जब तक कि लाॅ यूनिर्वसिटी के लिए 70 एकड़ जमीन पूरी तरह से घेराबंदी और कब्जा में लिया। मेरे जेल जाने के बाद आंदोलन को किसी ने आगे नहीं बढ़ाया, यह दुखद रहा। फरवारी 2013 को तत्कालीन केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री श्री जयराम रमेश जी प्रभात खबर आये थे। तब प्रभात खबर के प्रधान संपाद श्री हरिवंश जी के अमंत्रण में मैं भी जयरामजी के छोटी मुलाकात में गयी थी। साथ में जयरामजी के नाम नगड़ी का जमीन वापस करने और इसके लिए विकल्प में सूकुरहूट में जमीन देखने के लिए मांग पत्र बना कर दिये। इस मुददे पर 35 मिनट तक मंत्री जी से बात हुई। दो माह के बाद जयराम रमे’ाजी के पहल पर नगड़ी से आई आई एम सहित अन्य संस्थानों को सूकूरहूटू स्थानंत्रित करने का फैसला लिया गया। जो मेरे लिए सुखद रहा। 
2011 से ही खूंटी जिला के तजना नदी पर डैम बनाने की सुगबुगाहट हो रही है। लेकिन डैम के खिलाफ आंदोलन 2013 से ज्यादा सक्रिया हुआ है। सरकारी अधिकारी भी 2013 में डैम बनाने के लिए पूरी ताकत के साथ जनसुनवाई कराने की कोशिश  किये। लेकिन सरकार असफल रही। 
मेरा मनना है-जींदगी में जितने भी उतार-चढ़ाव हम लोगों ने देखा-सामना किये, हर कदम में आप सभों का सहयोग प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रहा है। आप के प्रेम -दुलार ने ही हर कदम को मजबूती से आये बढ़ाया। आज गर्व के साथ कह सकते हैं-कि हमन बिरसा मुंडा के विरासत के साथ किसी तरह का समझौता नहीं किया। कोयल नदी, कारो नदी, छाता नदी और तजना नदी का बहता पानी इसका साक्षी है। 
इस लबें संघर्ष के कडुआ अनुभवों ने एक कदम आगे बढ़ने का निर्णय लिया। जिस जल-जंगल-जमीन को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं-इसको संरक्षित करने, पूंजीपतियों, कारपोरेट के हाथें निलामी करने का कानून -नीति लोक सभा में और विधान सभा में ही बनाया जाता है। पालन भी इन्हीं संस्थानों के द्वारा किया जाता है। इस लिए सभों ने आंदोलन के साथियों ने निर्णय लिये कि-हम लोगों को राजनीतिक हस्तक्षेप में जाना चाहिए-जहां कानून और नीतियां तय की जाती हैं। 
चुनाव की तैयारी आप लोगों ने जनआंदोलन के तर्ज पर किये। नामंकन के पहले सभी अपने देवी-देवता, शत्कि के प्रतिक भगवानों को नमन-दर्’शन करते हैं। आप लोगों ने झारखंड के समझौताविहीन ’शहादती बिरसा मुंडा  के उलगुलान को याद करके-झारखंड की विरासत की हिफाज के लिए बिरसा मुंडा के शहादती आंदोलन के साथ राजनीतिक शत्कि को बनाने का संकल्प डोम्बारी बुरू में लिये। और तय किये कि हमारा रास्ता बिरसा का रास्ता होगा। 
खूंटी लोक सभा क्षेत्र चार जिलों के 6 विधान सभा क्षेत्र में फैला है। इसमें खूुटी जिला में तोरपा विधान सभा, और खूंटी विधान सभा है। सिमडेगा जिला में  कोलेबिरा विधान सभा और, सिमडेगा विधान सभा है। रांची जिला में  तमाड़ विधान सभा है, और खरसंवा जिला में खरसंवा विधान सभा है। पूरा देश -दुनिया जानता है कि-पूरा खूंटी लोक सभा क्षेत्र में माओवादी, पीएलएफआई से लेकर दर्जनों छोटे-बड़े उग्रवादी समूह सक्रिया हैं। यह भी सभी जानते हैं-इसमें से कई विधान सभा पर उग्रवादी संगठनों का शतप्रतिशत वर्चास्व है। इन उग्रवादि संगठनों के इच्छा के बिना कई क्षेत्रों में पता भी डोल नहीं सकता है।
 पिछले विधान सभा चुनाव के दौरान तोरपा विधान सभा क्षेत्र में उग्रवादी संगठन ने फरमान जारी किया था-कि हमारा आदमी को वोट नहीं करोगे तो -हम रात में आएगें, और वोट करोग तो दिन में आएगें। इस फरमान से पूरा तोरपा विधान सभा क्षेत्र आतांक में डुब गया। चाहते-ना चाहते हुए भी लोागों ने भय से उनका उम्मीदवार को भारी मतों से जितवाया। 
2014 के लोक सभा चुनाव में सभा उग्रवादी संगठनों ने अपना अपना उम्मीदवार खड़ा किया था। जो अपना उम्मीदवार खड़ा नहीं किया-वो संगठन उम्मीदवारों से भारी राशि  लेकर उनके पक्ष में वोट डालवाने का जिम्मेवादी उठाया। मेरे साथियों से सीधे तौर पर कहा-दयामनी को वोट करोगे तो-पूरा गांव जला देगें। नामांकन के दिन से ही मेरे साथियों को खूंटी नामांकन के लिए आने से रोकना शुरू किया। मेरे समर्थकों को कहा गया-दयामनी को वोट करोगे तो अंजाम ठीक नहीं होगा। नामांकन के दिन से लगातार -दिन-रात हर गांव में मेरे साथियों को प्रचार करने से रोकते रहे। धमकियां देते रहे। 
7 अप्रैल को बिरबांकी में हमारे साथियों  को बंधक बनाया, गाड़ी की चाभी छीन लिये। चार घंण्टा तक बंधक रखने के बाद शाम सात बजे साथी वहां से किसी तरह भाग निकले। सातों साथी रात भर बिरबांकी के जंगल में भटकते रहे। 18 घंण्टा के बाद साथी खूंटी पहुंचे। चलते चलते पैरों पर छले ओ गये थे। पूरा देह में जंगल झाडी -कांटों का खंरोच, देख कर मन सिहर जाता था। सात साथियों की जिंदगी हमारे लिये कीमती था। हमलोगों ने प्रशासन को  रिपोर्ट देर से ही लिखवायी, कारण की पहले हमारे साथियों के वापस आने का इंतजार कर रहे थे। 
9 अप्रैल को कर्रा थाना के बिकवादाग में पीएलफआई ने हमारे साथियों को मारा-पीटा, गाड़ी का चाबी छीन लिया। बाद में हमारे नेतृत्वकारी साथी को कैद में लिया और बाकी छह को वहां से भागने को कहा, उन लोगों को हिदायत दी गयी कि कोई पिछे मुडकर नहीं देखेगा-जितना जल्दी हो भागो यहां से। जिस साथी को छह बंदूकधारियों ने कैद में रखा-उनसे वहां खड़े ब्रहम्णों का पैर छू कर प्रणाम करके हाथ जोड़कर कहलवाया-एनोश  एक्का को वोट दो। पुलिस वहां पहुंची, इस कारण उनका जान बच गया। 
एक बुजूर्ग साथी से इसी संगठन के लोगों ने पूछा-तुम दयामनी का काम कर रहे हो? उस सज्जन ने जवाब दिया-हां काम कर रहे हैं। तब उन लोगों ने धमकाया-दयामनी को वोट कराओगे तो अंजाम ठीक नहीं होगा। भयमुक्त उस सज्जन ने जवाब दिया-यदि सचाई और समाज के लिए आप लोग मार भी दीजिएगा-तो इतिहास बनेगा, कि हमारी जान समाज की रक्षा के लिए गयी। 
एक दूसरा व्यक्ति ने हिम्मत दिखायी-17 अप्रैल को चुनाव के दिन-उसी संगठन के लोग मातदाताओं को अपने तरफ वोट करवाने के लिए खाने-पिने का आयोजन किये थे। वहां सभी को जाना था। वहां निर्देष दिया गया-सिर्फ झारखंड पार्टी के एनो’श को ही वोट करना है, प्रत्यक्षदशिर्यों के अनुसार-एक बुजुर्ग ने जवाब दिया-हम तो दयामनी को ही वोट देगें। इतना सूनना था-कि उक्त बुजुर्ग को लोगों ने खूब पीटा। इसी रात को वोट के बाद कर्रा थाना क्षेत्र के एक गांव के हमारे मूख्य अगुवा साथी के घर लोग पहुंचे-और यह कहते पीटा की तुम लोग दयामनी को वोट किये हो। 
केलेबिरा विधान सभा क्षेत्र में मेरा परचा बांट रहे युवक के उपर गोली चलायी गयी। जैसे ही गोली चलाया-परचा बांट रहा युवक सिर झुका दिया। बाल बाल बच गया। 
मैं आप लोगों को यह भी बताना चाहती हुं-कि मुझे भी बोला गया कि-5 लाख रूपया दो, नही ंतो गांव में घुसने नहीं देगें। मैं ने एक ही जवाब दी-जब गांव बचाने का लड़ाने मैंने भी लड़ा है , तब गांव बचा है-आज इसी गांव में घुसने के लिए 5 लाख रूप्रया मांग रहे हो। हमने सीधा कहा-हम नहीं दे सकते हैं। 
मित्रो-राजनीतिक भ्रष्टाचार के खिलाफ यह एक बड़ी लड़ाई थी। जहां कहीं भी हमारे लोगों से वोट करने के लिए पैसा मांगा-हमारे साथियों ने हाथ जोड़ कर सीधा अनुरोध करते हुए कहा-यदि आप को वोट के लिए पैसा चाहिए तो आप हम को वोट मत दीजिए। हमारी टीम ने चुनाव प्रचार में यह भी नहीं कहा-कि आप हम को ही वोट करो, हाॅ आप अपना वोट पैसों से, लालच से मत बेचो, आप का एक वोट ही इस राज्य और दे’ा को बना सकता है और विगाड सकता है। 
मुझे गर्भ है-कि जिस उदे’य के साथ राजनीति में कदम रखे थे-हम उस उदे’य को हाशिल कर लिए हैं। हमारा उद्देश्य  था- जल-जंगल-जमीन-भाषा-संस्कृति, अस्तित्व-पहचान की लड़ाई को राजनीतिक प्लेटफाॅम में लाना, जहां दूसरे राजनीतिक पार्टीयों के यह हमारी अस्तित्व-विरासत मुददा के रूप कभी नहीं देखा गया। हम ने घोषणा भी किया हे-कि इसकी रक्षा के लिए अंतिम स्वांस तक हम आप लोगों के साथ रहेगें। 
हमारी टीम उन तमाम साथियों को भी धन्यवाद देना चाहती है-जिन्होंने मार खा कर, जुल्म सह कर भी समाज-व्यवस्था बदलने और अपने हक-अधिकार, जल-जंगल-जमीन और विरासत के लिए वोट किये। हमारी टीम धन्यवाद करती है-आप लोगों ने एक-एक मुठा चावल, एक-एक फड़ा लकड़ी, पातल, दाल, सुखा साग-सब्जी जमा कर चुनाव लड़ने का जजबा का आगे बढ़ायें। हम आप तमाम साथियों को भी धन्यवाद देना चाहते हैं, ,जिन्होंने दूर रह कर भी हमारी टीम के बहुत करीब हर कदम में, हर दुख-सुख में साथ रहे। हम आप सभों को भी धन्यवाद देना चाहते हैं-जिन्होंने अपने चिंतन में हमशा  हम लोगों के साथ रहे। हमारी टीम मीडिया के सभी साथियों को धन्यवाद देती है-कि आप ने हमारे प्रति अपनी जिम्मेवारी निभाते हुए -राज्य और देश  को हमारे चिंतन और कामों से हमेशा  अवगत करने का काम किये। हमारी टीम आप सभी अपील करती हे-कि इस लड़ाई को हम अकेले लड़ नहीं सकते हैं-आप सभी से सहयोग की अपील करती है। 
जय झारखंड
जय भारत
जिंदगी के लंबे और चुनौति भरा सफर में आप लोग मेरी ताकत बन कर, दोस्ता बनकर, सहयोगी बन कर, चिंतक बनकर, मेरा प्रशासक बन कर, ’शुभ चिंतक बन कर हर कदम, हर स्वांस में मेरे साथ निरंतर रहे और आशा  है-आगे कई वैचारिक मत भेदों के बावजूद हम-आप साथ रहेंगे 
जय भारत
जय झारखण्ड