Sunday, March 31, 2013

2012 मेरे जीवन का महत्वपूर्ण वर्ष रहा--भाग 3


2012 मेरे जीवन का महत्वपूर्ण वर्ष रहा--भाग 3


इसके बाद  भाग -१ से २ भी जरुर देखिएगा 
कोयलकारो जनसंगठन ने बहुत कुछ सिखलाया। लड़ाई के मैदान में रहते हुए बहुत कुछ दिया। ईमनदारी से लड़ना, समझौता नहीं करना, अपने लोगों को धोखा नहीं देना, अहिंसा को संघर्ष का हथियार बनाना। अपने संसाधनों से आंदोलन को बढ़ाना, जाति धर्म और राजनीति से उपर उठकर संगठनिक ताकत को मजबूत करना। नेतृत्व को सम्मान देना। सामुहिक नेतृत्व से आंदोलन को मजबूत करना। इसी रास्ते से मित्तल कंपनी के खिलाफ आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच ने विस्थापन के खिलाफ आंदोलन को आगे बढ़ाया। आरर्सेलर मित्तल कंपनी गुमला जिला और खूंटी जिला के 40 गांवों का उजाड़ कर स्टील कारखाना बैठाना चाह रही थी। इससे एक लाख तक किसान विस्थापित होते। आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच ने लोकतंत्रिक रास्ते से हम अपने पूर्वजों का एक इंच जमीन नहीं देगें-के संकल्प के साथ आगे बढ़ता गया। 2006 में आंदोलन का जन्म जमीन बचाव संगठन के नाम से कर्रा  प्रखंड में हुआ जो 2008 में आदिवासी-मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच के रूप में जवां हुआ और desh  ही नहीं पूरे biswa  में अपना पहचान बना लिया। 2010 में अरर्सेलर मित्तल के मालिक लक्ष्मीनिवास मित्तल को अपने हेडक्वाटर लगजंमर्वग से कहना पड़ा-खूंटी और गुमला जिला में जनआंदोलन बहुत मजबूत है-इस कारण वहां जमीन अधिग्रहण करना मु’िकल है। इसलिए अब अपना प्लांट के लिए जमीन दूसरा जगह देखेंगे। 
मित्तल कंपनी और राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री अर्जुन मुंडा के बीच एमओयू हुआ था। एमओयू की काॅपी मैंने आरटीआई के तहत आवेदन देकर निकाल ली थी-ताकि सही तथ्यों की जानकारी मिल सके। एमओयू का काॅपी आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच के साथियों के साथ बैठ कर एक-एक लाईन पढ़े। ताकि हर व्यक्ति जाने कि सरकार ने गांव वालों के जमीन पर मित्तल कंपानी के साथी किस तरह का करार किया है। जमीन ग्रामीणों का और सरकार ग्रामीणों से बिना पूछे, बिना किसी तरह का सहमति लिये-उनके जमीन-जंगल, नदी-झरणों को कंपनी को देने का समझौता किया। 
12 दिसंबर 2010 को कर्रा के साथियों ने फोन किया-कि जबड़ा गांव में एक डैम बन रहा है-गांव के लोग नहीं चाहते हैं कि उनका जंगल-जमीन और गांव को उजाड़ा जाए। इसलिए ग्रामीण डैम बनाने का विरोध कर रहे हैं। गांव वालों का विरोध को दबाने के लिए दो लोगों का अपहरण हुआ और इसमें से एक की हत्या कर दी गयी। और के दो लोगों को पुलिस उठा कर ले गयी। 5 दिन हो चुका है पुलिस गांव वालों को छोड़ नहीं रही है-हो सकता है इन निर्दोष लोगों को हत्या के जुल्म में जेल भेज देगी। इसलिए आप इन निर्दोषों को छुड़ाने के लिए आईये। मैं जबाव दी-आप लोग संगठित नहीं रहते हें, अपने गांव-समाज के प्रति जिम्मेवारी नहीं उठाना चाहते हें इस कमजोरी को सभी जानते हैं-यही कारण है कि आप लोगों के गांव में जबरजस्ती डैम बना रहे हैं सरकारी और जमीन माफिया। आप लोगों के कमजोरी के कारण लोगों को पुलिस दबा रही है-यही कारण हे कि निर्दोष लोगों 5 दिनों तक पुलिस बंधक बना कर रखी है। साथियों ने बार बार अग्राह किया-निर्दोषों को थाना से छुड़ाने के लिए। 
17 दिसंबर 2010 को मैं पहली बार जबड़ा गांव गयीं। जबड़ा गांव में ही बैठे ग्रामीणों के साथ। मैं पहली बार देखी-बैठक में जितने भी लोग बैठे थे-सबका आंख आंसू से डबडबा गया था। महिलाओं के गोद में छोटे छोटे बच्चे थे। महिलाआएं आंसू रोकने का कोशिश  कर रही थी-लेकिन आंसू रूकने का नाम नहीं ले रहा था। ग्रामीणों ने बताया-हमलोग जमीन देना नहीं चाहते हैं-जमीन चला जाएगा तो हम लोग कैसे जिंदा रहेगें?। हम लोगों का जिंदगी नरक हो जाएगा। हमारा सब कुछ उजड़ जाएगा। लेकिन सब धमकी दे रहे हैं-तुम लोग जमीन नहीं भी देना चाहोगे-फिर भी डैम बनाने के लिए जमीन तो देना ही होगा, क्योंकि यह जमीन तुम लोगों को नहीं-सरकार की है। बताते बताते ग्रामीणों का गला भर जा रहा था। 
तब मैंने पूछा-आप लोग अपनी जमीन बचाने के लिए खड़ा होना चाहते हो? ग्रामीणों ने जवाब दिया-दीदी आप साथ दीजिएगा तो जरूर खड़ा होगें-हम लोग चाहते हैं कि-कोई अगुवाई करे। मैं उन लोगों की बातें सुनने के बाद -शर्त  रखी, अदि अदि आप लोग खड़ा होना चाहते हैं-तो पूरी तरह खड़ा होना होगा, एैसा नहीं हो कि आप लोग फिर आगे-पीछे होने लगियेगा। लोग बोले नहीं-आप जैसा बोलेगें-हम लोग खड़ा रहेगें। मैं ने लड़को को कर्रा थाना में बंद थे को छुड़ाने के लिए थाना पहुंची। थाना प्रभारी से लंबी  बात हुई डैम के बारे। इन्होंने बताया कि इन दो लोगों को छोड़ देगें-बस एसपी साहब के आदेश  का इंतजार कर रहे हैं-क्योंकि एसपी साहब ने ही इन लोगों को गांव से लेकर आये हैंं । 
मैंने थाना प्रभारी के सामने बात रखी-किसी भी केस का जांच-पड़ताल करने के लिए किसी आदमी को थाना लाया जाता है-एैसी स्थिति में 25 घंटा के भीतर पूछ-ताछ की प्रक्रिया पूरी कर छोड़ दिया जाता है, लेकिन किस आधार पर आप लोगों ने इन दोनों को 5 दिनों तक रखे हुए हैं। मैंने इस संबंध में खूंटी जिला के एसपी साहब से भी बात रखी। एसपी साहब ने भरोसा दिये कि-कल तक छोड़ दे रहा हुं। थाना प्रभारी ने बताया कि-एसपी साहब बहुत गुस्सा में हैं कंपानी वालों से। मैंने पूछी क्यों गुस्सा में हैं? थाना प्रभारी ने बताया-इतना बड़ा प्रोजेक्ट है, डैम बनाना  शुरू  भी कर दिया, लेकिन एसपी साहब को भी जानकारी नहीं दी गयी। थाना प्रभारी ने यह भी बताये कि-इसके बारे यहां के बीडीओ, सीओ को भी जानकारी नहीं है। 
सच क्या है इसको समझने के लिए मैंने 18 दिसंबर को खूंटी जिला मूख्यालय गयी। उपायुक्त श्री राकेश जी से डैम के संबंध में पूछी। उपायुक्त साहब ने कहा-इसके बारे जिला को कोई जानकारी नहीं है, कोई सूचना नहीं है। उपायुक्तजी ने पूछा-कहां पर बनाया जा रहा है? कौन बना रहा है?ं। जब इस संबंध में मैं जिला के अपरसमाहरता श्री रेमंड केरकेटा से पूछे-इन्होंने भी अनभिग्यता जाहिर की। मैं जिला के एस डी ओ श्री परमे’वर भगतजी से इस डैम के बार जानना चाही। एसडीओ साहब ने पूछने लगे-कौन बना रहा है? कितना बड़ा बना रहा हैं? कहां पर बन रहा है? किसके द्वारा बनाया जा रहा है?। मैं हैरान रही यह सून कर। इसके बाद मैंने जल संसाधन विभाग, भूअर्जन विभाग में भी आरटीआई के तहत आवेदन डाली कि आप ने कितना जमीन अधिग्रहण किये हैं? जिन किसानों के जमीन अधिग्रहण किये हैं उनका सूची, कितना एकड़ जमीन डैम के पानी में डूबेगा, कितना पेड़-पौधा डैम के पानी में डूबेगा, डैम की उचाई कितनी होगी, पानी का जमाव एरिया कितना होगा? डैम का डीपीआर क्या है-इसकी जानकारी मांगी। 
सभी विभागों से जानकारी मिला, लेकिन चैंकाने वाला। सभी विभाग ने कहा-कर्रा के छाता नदी पर हमारा किसी तरह का काम नहीं चल रहा है। न ही इसकी जानकारी हमारे पास है। मैंने सभी विभागों के आरटीआई का जवाब को एक तरफ तथा जमीन पर किस तरह से काम किये जा रहा है, डैम का काम प्ररंभ कर दिया गया है-का दस हजार पमप्लेट छाप कर बांटवाये। कर्रा प्रखंड के बीडीओ, सीओ, थाना, डीसी कार्यालय, एसडीओ कर्यालय, एसपी कर्यालय, क’िमनर कर्यालय तथा गृह सचिव को भी जानकारी दिये कि-इस परियोजना के बारे में इनके कार्यालय को कोई जानकारी नहीं है। 
सभी सच्चाई सामने आने के बाद लोगों ने गलत तरीके से ग्रामीणों का जमीन कब्जा किया जा रहा है-इसके खिलाफ आंदोलन को मजबूती के साथ खड़ा किये। डेढ़ साल तक जोरदार आंदोलन चला। उपरोक्त सभी अधिकारियों को मांग पत्र दिये-जिसमें हमलोगों का मूल मांग था-गलत तरीके से किसानों का जमीन कब्जा किया जा रहा है इससे रोका जाए। हम ग्रामीण किसी भी कीमत में अपने पूर्वजों का एक इंच जमीन डेम पानी में डूबने नहीं देगें। हमलागे ने अभी तक तो जीत हासिल किये हैं-एक इंच भी जमीन लेने नहीं दिये हैं। 
 12 जनवरी 2012 को कांके नगड़ी के ग्रामीणों ने गांव के बैठक में आमंत्रित किये थे। गांव पहुंचने के पहले पता नहीं था कि लोग किस विषय में बात-चीत करने के लिए बुलाये हैं। रांची से निकल के कांके होते हुए नगड़ी पहंुचना था। कांके बिरसा एग्रीकल्चर यूनिर्वसटिी पार करते हुए जुमार नदी पहंुचे। जुमार नदी पार करते ही रोड़ के किनारे किनारे जहां-तहां तीन-चार पुलिस गाडि़यां खडी थी। खेत के किनारे किनारे चारों ओर पुरूष और महिला पुलिस भरी हुई थी। समझ में नहीं आ रहा था कि-यहां क्या हो रहा है। एैसा लग रहा था-यहां कोई बहुत बड़ी घटना घटी है।  भारत-पाकिस्तान का बोडर लग रहा था। नदी से लेकर गांव तक पुलिस थी। 
गांव के अखड़ा में बैठक रखा गया था। अखड़ा में पहुचने के बाद याद  आया कि इसी अखड़ा में 6 जनवरी 2008 को गांव वालों ने बैठक की थी-उस समय सरकार द्वारा काॅलेज बनाने के नाम पर ग्रामीणों का खेती की जमीन अधिग्रहण करना चाहती है-उसको रोकने के संबंध में था। आज अखड़ा में बहुत सारे आदिवासी नेता, पंचायत प्रतिनिधि और ग्रामीण अखड़ा में मौजुद थे। 
बैठक का अध्यक्षता पंचायत समिति के श्री......ने किया। बैठक में चर्चा होने लगी-नगड़ी के 227 एकड़ जमीन को सरकार जबरजस्ती पुलिस के बल पर कब्जा कर रही है। राजकुमार पाहन ने ग्रामीणों द्वारा 2009 में हाईकोर्ट में दायर पिटिशन का हाईकोर्ट का फैसला पढ़कर कर सुनाये। दूसरी तरफ गा्रमीणों ने भूर्अजन विभाग को 2011-12 को जमाबंदी दिये गये रसीद की कापी दिखा रहे है। ग्रामीण बता रहे हैं-कि हम लोगों ने जमीन का पैसा नहीं लिया है और न ही जमीन देना चाहते है। गांव वालों ने बताया-1957-58 में सरकार जमीन अधिग्रहण करने का दावा कर रही है-वह बिलकूल झूठ है-हम लोगों ने जमीन का न पैसा लिये हैं-न ही जमीन दियें हैं। आज भी ग्रामीणों ने संकल्प लिया कि-जमीन किसी भी कीमत में सरकार को लेने नहीं देगे।
आज के बैठक में निर्णय लिया गया कि-18 जनवरी को यहां एक बड़ी रैली निकालेगें। रैली जतरा मैदान से निकलेगी और रोड़ -रोड़ जाकर निर्धारित स्थल पर सभा होगी। लोगों ने जिम्मेवारी भी बांट लिये रैली को सफल बनाने के लिए। सभा में कांके प्रखंड के कई पंचायतों के मुख्यिा, पंयाचत समिति सदस्य उपस्थित थे। धर्मिक संगठन से बंधन तिगा, और राजनीतिक संगठन से प्रभाकर तिर्की, रतन तिर्की भी उपस्थित थे। रैली रोड़ रोड़ नदी तक ले जाने का विचार नहीं था लेकिन गांव की महिलाओं के जिद से नदी तक रैली का ले जाया गया। 
इसे रैली के बाद नगड़ी अखड़ा में और कई बैठक हुआ। इस बीच तय किया गया कि-सरकार जबरजस्ती जमीन अधिग्रहण कर रही है इस सवाल को लेकर राज्य के मुख्या मंत्री श्री अर्जुन मुंडी जी से भी मिला जाए। इसके लिए मांग पत्र बनाने के जिमा श्री राजू पाहन लिया। गांव वालों को कचहरी स्थिति धरती भवन के सरना 

Monday, March 25, 2013

2012 मेरे जीवन का महत्वपूर्ण वर्ष रहा-भाग -4 (पोस्ट करने की सुविधा को लेकर इस इससे मैं 5 भाग में बांट कर आप के सामने रख रही हुं-1 से 3 भाग भी अव’व देखें)


2012 मेरे जीवन का महत्वपूर्ण वर्ष रहा-भाग -4
(पोस्ट करने की सुविधा को लेकर इस इससे मैं 5 भाग में बांट कर आप के सामने रख रही हुं-1 से 3 भाग भी अव’व देखें)

वहां ग्रामीण इकत्र थे। मेधाजी लोगों का बात सुनी। इसके बाद इनके आंदोलन को साथ देने की बात भी की। इन कार्यक्रमों के बाद नगड़ी के मामले को लेकर आंदोलन की गतिविधियां धीरे धीरे स्थिल होने लगी। इस बीच मैं समझने की कोशिशि  की कि-अखिर सच क्या है, जमीन का अधिग्रहण होने की बात सरकार क्यों कर रही है। जबकि जमीन पर आज भी ग्रामीण खेती कर रहे हैं, जमीन का पटा-खाता खतियान पर आज भी ग्रामीणों का ही नाम है। जमीन का मलगुजारी आज भी ग्रामीण ही चुकाते आ रहे हैं। आज भी ग्रामीण जमीन नहीं देने की बात करे रहे हैं। सच क्या है-को समझने के लिए मैंने भूर्अजन विभाग को आर टी आई के तहत आवेदन डाला जिसमें निम्नलिखित सवाल थे-
1-नगड़ी में कितना एकड़ जमीन अधिग्रहण किया गया है?
2-जिन किसानों का जमीन आपने अधिग्रहण किये हैं-उन किसानों की सूच
3-जिन किसानों की जमीन अधिग्रहण किये हैं-उस जमीन का विवरण, खाता ना0, प्लोट ना0 रकबा सहित
4-जिन किसानों की जमीन अधिग्रहण किये हैं-उस जमीन के एवज में कितना रूप्या किस दर से आप ने भूगतान किये हैं-मनी रिसिप्ट की कोपी  के साथ जानकारी दें
इसका जवाब-भूर्अजन विभाग ने 29 फरवरी 2012 को दिया-जिसमें निम्नलिखित मूल जवाब है-
1-1957-58 में 158 रैयत थे, इसमें से 128 लोगों ने पैसा नहीं लिया, जिनका पैसा रांची कोषागार में जमा है।
2- नगड़ी थाना सं0 53 में भू-अर्जन वाद संख्या 21-57-58 द्वारा कृर्षिवि’वविद्यालय, कांके के विस्तार हेतु कुल 202.27 एकड़ भूमिं का अर्जन किया गया था
3-.भू-अर्जन वाद संख्या-31-58-59 से मौजा-नगड़ी में सीड फार्म कृर्षि विभाग हेतु 25.44 एकड़ भूमिं अर्जित की गई है।
भूर्अजन विभाग द्वारा इस जानकारी को प्रप्त करने के बाद हम लोगों ने विधायक श्री बुधु तिर्की एवं नगड़ी के ग्रामीण 2 मार्च 2012 को राज्यपाल ‘’ायद अहमदजी से नगड़ी मुदे पर मिलने गये थे। माननीय राज्यपाल महोदय को मांग पत्र दिये- सरकार ग्राम सभा के अनुमति के बिना ही जबरस्त पुलिस बल से जमीन पर कब्जा कर रही है-इसे रोका जाए। क्योंकि हमारे पूर्वजों ने जमीन सरकार को नहीं दिया है-नहीं हमारे पूर्वजों ने जमीन का पैसा लिया है। हम ग्रामीणों के लिए यही खेती की जमीन जीविका का एक मात्र साधन है इसलिए इस कृर्षि भूमिं को किसी भी कीमत में हम नहीं देगें। ग्रामीणों अपने मांग पत्र  में कहा-हम लोग बिकाश sansthano  के विरोध में नहीं है-बने लेकिन हमारे कृर्षि भूमिं नहीं। सभी विकाश  संस्थान बने-लेकिन बंजर भूमिं पर, जो सरकार भूमिं भी है और किसी तरह के कृर्षि कार्य में उपयोग भी नहीं किया जा रहा है। 

विधान सभा सच चल रहा था-विधान सभा में नगड़ी का सवाल उठे ताकि सरकार पर जमीन पर जबरन कब्जा न करे -इसके लिए दबाव बनना था। श्री बंधु तिर्की, तथा बिनोद सिंह ने विधान सभी में सवाल उठाये भी। इसके बाद लोग 4 मार्च 2012 से नगड़ी चैंरा पर अनिशिचित कालीन धरना पर बैठे। भूर्अजन विभाग से मिले आरटीआई के जवाब में लिखा हुआ है-कि 202 एकड़ जमीन बिरसा कृर्षि वि’वविद्यालय के लिए तथा 25 एकड़ जमीन बिरसा कृर्षि विश्वा  विद्यालय के सीड फार्म  के लिए अधिग्रहण किया गया है-इसकी सचाई जनने के लिए मैं मार्च के पहली सप्ताह में बिरसा कृर्षि वि’वविद्यालय को आरटीआई डाली और निम्नलिखित जानकारी मांगे-
1-बिरसा बिरसा कृर्षि वि’वविद्यालय के लिए आप ने कितना एकड़ जमीन अधिग्रहण किये हैं
2-किन किन किसानों का, खाता ना0, प्लोट ना0 एवं रकबा सहित
3-जिन किसानों का जमीन अधिग्रहण किये हैं-उन किसानों को जमीन के एवज में किस दर से कितना पैसा भुगतान किये हे।
4-यदि आप जमीन का पैसा भुगतान किये हैं-उनका मनी रिशिपेट  का कापी के साथ
5-जिस जमीन को आप अधिग्रहण उस जमीन का 1957-58 से लेकर अब तक उत्क जमीन का उपयोग किस रूप में करते आ रहे हैं-
इसका जवाब बिरसा कृर्षि वि’वविद्यालय ने आरटीआई को टाप प्रायोरिटि में लेते हुए दो जगह से जवाब दिया, एक मेनेजमेंट कार्यालय से दूसरा सीड फार्म  कार्यालय से। जिसमें 1 से 4 तक का जवाब दिया-इस संबंद में हमारे कार्यालय में किसी तरह का कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है, दोनों कार्यालय से यही जवाब मिला। 5 सवाल के जवाब में उत्तर मिला-जबकि जमीन पैसा दिये ही नहीं है, न ही अधिग्रहण हुआ है-तब इसका कैसे उपयोग किया जाएगा।

विदित हो इसका भूर्अजन विभाग तथा बिरसा कृर्षि वि’वविद्यालय से मिला जवाब सारा साबूत दे रहा है कि जमीन का अधिग्रहण नहीं किया गया है। दूसरी ओर भूर्अजन विभाग जमीन का अधिग्रहण होने का कागजात भी पेस करता है। मैंने दोनो कागजातों का अध्ययन की-दोनों आरटीआई के जवाब का, और अधिग्रहण करने के कागजात का भी। अधिग्रहण संबंधित कागजात में कहा गया है कि-1957-58 में नगड़ी के थाना संख्या 53 में 227 एकड़ जमीन का अधिग्रहण लैंड एक्यूजिशन एक्ट 1894 के धारा 4, 5, 6, 7, 8 और 9, 11 के तहत किया गया है। 
जब इस संबंध में ग्रामीणों से जनने कोशिश की-तब सच्चाई कुछ ओर ही सामने आया। मैंने गांव के उन बुर्जूग लोगों से बात की-जो आज 85-90 साल के हैं। जिन्होंने 1957-58 में जब सरकार जमीन अधिग्रहण करना चाहती थी, इसके लिए अधिग्रहण का प्रोसेस शुरू  की थी-तब ग्रामीणों ने बिलकुल शुरुआत  से ही हर तरह से जमीन अधिग्रहण का विरोध करते आ रहे हैं। जब लैंड एक्यूजिशन एक्ट के धारा 4 के तहत अधिग्रहण की सूचना प्रसारित की गयी और इसके बाद धारा 5 के तहत गांव वालों से ग्राम सभा करके जमीन अधिग्रहण करने की सहमति लेने के लिए सरकारी अधिकारियों ने नगड़ी गांव में ही बैठक ग्रामीणों की बुलायी-तब ग्रामीणों इस बैठक का विरोध किया। बैठक नहीं होने दिया। गांव में आये अधिकारियों को ग्रामीणों ने विरोध में गांव से खादेड़ दिया। यही नहीं, ग्रामीणों ने लगातार विरोध में आंदोलन कई वर्षा तक मैदान पर भी करते रहे। 

ग्रामीण बताते हैं-उस समय निरल ऐनेम होरो (झारखंड पार्टी के भिषमपितामाह) भी आंदोलन को समर्थन दिये थे। उस समय स्व0 शुशील  कुमार बागेजी विधायक थे-इनको भी जमीन किसी भी कीमत में नहीं देने -का मांग पत्र सौंपे थे। ग्रामीणों ने बताये-जब बिहार के तत्कालीन मुख्य....थे, जब वे रांची आये थे-तब उनका भी ग्रामीणों ने घेराव किये थे-और जमीन नहीं देने का लिखित मांग भी इन्हे सौंपा गया था। बुर्जूग बताते हैं-उसी समय मंत्री महोदय ने ग्रामीणों से कहा था-कि आप लोगों का जमीन नहीं लिया जाएगा। इसके बाद से फिर कभी ने तो सरकारी अधिकारी जमीन अधिग्रहण करने को लेकर गांव आये, ना ही किसी तरह का कारईवाई सरकार ने जमीनी स्तर पर किया। यही कारण है-कि नगड़ी के रैयत अपने पूर्वजों से लेकर अभी तक अपनी जमीन में खेती करते आ रहे हैं। यही नहीं सरकार और जमीन मालिक-याने रैयत के बीच जो कानूनी प्रावधान है, रैयत हर साल सरकार के भूमिंसुधार एवं रेवेन्यू विभाग को जमीन का मलगुजारी भूगतान करते हैं, रैयत लगातार 2008-9, 2010, किसी किसी ने 2011-12 तक का भी भूगतान किये हैं। अंचल कार्यालय द्वारा रैयतों को दिया गया -लैंड रेंटल भुगतान रसीद इसका प्रमाण है। 

इसके पहले का रिपोट को भी देखने की जरूरत है। 2008 में इसी जमीन होते हुए रिंग रोड़ बनाने की योजना आयी, अधीक्षण अभियंता पथ निर्माण विभाग ने भू-अर्जन विभाग से नो ओबजेक्शन  सर्टिफिकेट मांगा, तब भू-अर्जन विभाग ने पथ निर्माण विभाग को जवाब दिया, उक्त जमीन बिरसा कृर्षि वि’वविद्यालय कांके के मलिकाना के अधिन है, इसलिए नो ओबजेक्’शन सर्टिफिकेट बिरसा  कृर्षि वि’वविद्यालय कांके से मांगा जाए। इसी निदेशनुसार पथ निर्माण विभाग ने बिरसा  कृर्षि वि’वविद्यालय कांके को पत्र लिखा। 
पथ निर्माण विभाग के पत्र के जवाब में बिरसा कृर्षि वि’वविद्यालय कांके अपने पत्रांक एफ 39-36/08, दिनांक 17/08 को लिखा-जिन प्लोटों एवं रकबों का वर्णन आप के पत्र में है-के आलोक में यह सूचित करना है कि अभी तक भूमिं को वि’वविद्यालय अधिग्रहित ही नहीं की है, इसलिए उक्त भूमिं का अनापति प्रमाण पत्र निर्गत करने का प्र’न ही नहीं उठता है। 
उपरोक्त तमाम सक्षों का फाईल बनाकर मैंने नगड़ी के ग्रामीणों के साथ मिल कर मीडिया के सभी दत्फरों में पहुंचाई-कि सच क्या है। यही नहीं इन तमाम कागजातों का फाईल राज्य तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री अर्जुन मुंडाजी, उपमुख्यमंत्री श्री सुदेश  कुमार महतोजी, उपमुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेनजी तथा समन्वय समिति के अध्यक्ष श्री शिबू  सोरेन जी को भी सौंपे। नगड़ी के सवाल का हल निकालने के लिए हाईकोर्ट के आदेशनुसार सरकार ने 5 आई एस अधिकारी तथा राज्य के भूमिंसुधार एवं रेवेन्यू मिनि’नटर श्री मथुरा महतो जी के नेतृत्व में हाई पावर कामेटी बनायी गयी थी। इस हाई पावर कामेटी ने 16 जुलाई 22 जुलाई और 28 जुलाई को नगड़ी के रैयतों के साथ बैठक की। सभी बैठको में ग्रामीणों ने अपनी बात रखी-कि हमारे पूर्वजों ने जमीन सरकार को 1957-58 में नहीं दिया है, हमारे पूर्वजों ने सरकार से जमीन का पैसा भी नहीं लिया है। आज भी हमलोग जमीन किसी भी कीमत में देना नहीं चाहते हैं-इसलिए कि यही कृर्षि भूंमि हम लोगों का जीविका का एम मात्र साधन है।  आइ आइ एम और लाॅ यूनिर्वसिटी बने लेकिन हमारी कृर्षि भूंमि पर नहीं, बंजर भूमिं पर बने। 
हमलोगों ने तय किया -कि जबतक हमारी मांगें सुनी नहीं जाएगी-लोकतंत्रिक तरीके से हमलोग आंदोलन जारी रखेगें। इसी निर्णय के साथ उपमुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरने का आवास, समन्वय समिति के अध्यक्ष श्री शिबु सोरेन जी का आवास, उपमुख्यमंत्री श्री सुदेश  महतो जी का आवास, भूमिं सुधार एवं राज्सस्व मंत्री श्री मथुरा महतो जी का आवास, मुख्यमंत्री श्री अर्जुन मुंडी जी का आवास काला झंडा लेकर बारी  बारे से घेराव किये।

Sunday, March 24, 2013

2012 mere jiwan ka mahtwapurn varsh raha---ise mai 5 paart me ki hun...iske bad aap baki 1-4 ko bhi dekhenge...yahi meri aasha hai 2012 मेरे जीवन का महत्वपूर्ण वर्ष रहा--भाग 5


2012 mere jiwan ka mahtwapurn  varsh raha---ise mai 5 paart me ki hun...iske  bad  aap baki 1-4 ko bhi dekhenge...yahi meri  aasha  hai

2012 मेरे जीवन का महत्वपूर्ण वर्ष रहा--भाग 5
दूसरी ओर सरकार और prashashanik  अधिकारी, माफिया, कारपोरेट ताकतें मुझे कमजोर करने की koshish  में जुटे। 14 फरवरी 2012 की रात आठ बजे चुटिया थाना के एसआई आये मेरे क्लब रोड़ स्थित होटल में। मेरे पति से सवाल किये-यही दयामनी बरला का होटल है? मेरे पतिजी जवाब दिये-हां यही है। एसआई ने उनसे कई अपातीजनक सवाल करने लगे-दयामनी कहां कहां जाती है, किस के साथ जाती है। आप लोगों पर अरोप है-आप के घर में असामाजिक तत्व आते -जाते हैं और बैठक करते हैं। आप के होटल में भी असामाजिक तत्व आते -जाते हैं और रात को बैठक करते हैं। एसआई के इन बातों से आहत मेरे पति ने मुझे फोन कर होटल में आने के लिए कहा, इस समय मैं अपने डेरा में ही थी। मैं होटल पहुंची, एक पुलिस मोबाईल वेन बाहर खड़ी है। दो पुसिल वाले बाहर खड़े हैं। अंदर एक पुलिस वाला हाथ में एक कागज ले कर खड़ा है। मैं अंदर घुसते ही उसे नमास्कार की। उसने पूछा-आप ही दयामनी बरला हैं? मैंने जवाब दी-जी मैं ही हुं।
मैंने पुलिस वाले को बैठने का अग्राह की-इन्होंने ने बैठने से इंकार किय। उसने पूछना ‘’शुरू  किया-आप कहां कहां जाती हैं? आप के साथ कौन कौन लोग जाते हैं? आप किनके किनके बैठक में जाती हैं? उस बैठक में कौन कौन लोग आते हैं? इतना लंबा सवाल का जवाब मुझे देना है-और जवाबों को पुलिस वाले को लिखना हैं। तब मैंने उसे दूवारा अग्राह की बैठने के लिए। इस बार भी वे टालने की  में थे-नहीं, नहीं बैठगें। तब मैंने उनसे कहा-आप को मेरा जवाब नोट करना है-तो खड़े खड़े कैसे लिखिएगा-बैठ कर लिखिए। इस बार वे बैठने के लिए तैयार हो गये। 
मैंने बताना ’शुरू  की-मैं एक दिन में कभी कभी तीन-चार बैठकों में जाती हुं। जहां जरूरतमंद लोग मुझको बुलाते हैं-सभी जगह जाती हुं। सवाल रहा कि-उस बैठक में कौन कौन लोग आते हैं-कौन कौन लोग थे-यह बताना मेरे लिए संभव नहीं हैै। क्योंकि आयोजक मुझे बुलाते हैं वही औरों को भी बुलाते हैं। तब मैं कैसे बता सकती हुं। हां मैंने अभी हाल ही में 8-9 जनवरी को गांव में दो दिनों का कार्यक्रम रखी थी डोम्बारी दिसव के अवसर पर। दोनों दिन हमारे युथों को हाॅकी और फुटबाॅल प्रतियोगिता खेलाये। फाईनल मैंच के बाद संगठन का बैठक हुआ। अब इस बैठक में कौन कौन था-ये पूछियेगा तो मैं नाम नहीं बता सकती हुं-इसलिए कि हमारे संगठन के बैठक में पूरा गांव ही ’शमील  होता है। 
पुलिस वाले ने पूछा आप का संगठन का क्या नाम है?
मैं ने बतायी-आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच
तब मेरे मन में आया-आखिर ये क्यों इतना जिरह कर रहे हैं? क्या कारण है? 
तब मैंने उनसे बोली-आप मुझ से क्यों इस तरह पूछ रहे हैं? आप के पास क्या कोई लिखित नोटिस या कोई भी कागजात है? मुझे दिखाईये
मेरे इस सवाल पर -एसआई बोले, मेरे पास कोई कागजात नहीं है। बस मुझे भेजा गया है-आप के बारे जानकारी लेने।
जब मैं जिद करने लगी-अगर आप के पास लिखित कोई कागजात नहीं है-तब आप मुझको क्यों परेशान  कर रहे हैं? बिना कारण के मैं आप को नहीं बता सकती हुं। 
इसके बाद एसआई बोले-ठीक है, मैं जाता हुं, कहते हुए वे चले गये। मैंने फैसल दा को इसकी जानकारी दी-उन्होंने मुझको बोले-तुम बात करो क्यों ये सब जनना चाहता है। एसआइ जब जाने लगे तो -मैंने उनसे बोली, मैं कोई  चोर गुडा, बदमाश  नहीं हुं-जिस दिन आप मुझे गिरत्फार करने आएगा-तब भी मैं यहीं मिलूंगी। दूसरे दिन मैं अपने साथियों-श्री प्रका’ाजी, फैसलजी को बुलायी और बोली-मैं एस एस पी के पास जा रही हुं। मुझे एस एस पी से पूछना था-कि आप बताईये कि मेरे पास कौन असामाजिक तत्व आते हैं? कौन असामाजिक तत्व मेरे घर में आते है और वे असामाजिक तत्व कौन हैं? मुझे बताया जाए। और पुलिस क्यों मेरे बारे में इतना जिराह कर रही है-कि मेरे साथ कौन उठता-बैठता हैं। और कौन असामाजिक तत्व मेरे घर में बैठकें करते हैं? एस एस पी साकेत कुमार सिंह आवास में थे। लेकिन आवासीय कार्यालय के कर्मचारी बताये-अभी साहब बोली बोल खेल  रहे हैं। वे इतना समय किसी से नहीं मिलते हैं-आप कल आईएगा। मैं बोली-नहीं मैं साहब से मिल कर ही वापस जाऊँगी । मैं वहीं बैठ गयी और इंतजार करने लगी। मैं तत्कालीन उपायुक्त श्री के के सोन को फोन की और बतायी कि मैं एसएसपी से मिलने आयी हुं, आप लोगों ने मेरे उपर अरोप लगा रहे हैे कि मैं असामाजिक तत्वों के साथ उठती-बैठती हुं, असामाजिक तत्व मेरे घर में आते हैं-मेरे घर में असामाजिक तत्वों के साथ बैठक करते हैं। मेरे होटल में असामाजिक तत्व आते-जाते हैं। इसलिए मैं एसएसपी से मिलने आयी हुुं-लेकिन यहां के कार्यचारी बोल रहे हैं-वह इस समय किसी से नहीं मिलते हैं, आप एसएसपी साहब को बोल दीजिए-मैं बिना मिले नहीं जाएउंगी, मैं यहीं धरना पर बैठ रही हुं-रात भर, जब तक एकॉपी सएसपी नहीं मिलेगें। 
एसएसपी श्री साकेत कुमार सिंह जी आये-5 मिनट बाद। हमलोगों को कार्यालय में बुलाये। मैंने अपना परिचय दी और मेरा लिखित आवेदन भी उनके हाथ में दी। मैंने अपनी पूरी बात रखी। इस पर उन्होंने कहा-कि आप के बारे कहीं से एक पत्र आया है उसको लेकर आप से पूछताछ के लिए मैं ही आदेश  दिया था, इस फाईल को निपटा देना चाहता हूँ -नही तो वह फाईल पेंडिग रह जाएगा, और मेरे बाद कोई दूसरा आएगा-तो वो तो करेगा ही। और कहां से आया है-कौन भेजा है यह तो सिक्यूरिटी का मामला हैं -इसलिए नहीं बता सकते हैं। मैंने पूछी इसकी  तो आप थाना भेजे होगें? 
एसएसपी बोले हां भेजे हैं
मैं ने जो गया था उसे मैं मांगी लेकिन, उन्होंने नहीं बता, हां जब मैं होटल आयी तब तो उनके हाथ में एक पेज का कागज था, जिससे वो देख रहे थे और बाद में अपना पोकेट मेे रख लिये। 
एसएसपी-ठीक है मैं वहां ले (थाना) से दिलवा देता हुं। 
मैं -मैं थाना नहीं जाउॅंगी, आप किसी से बोल दीजिए वे खुद ही मेरे पास पहुंचा देगें। उन्होंने मेरे ही सामने चुटिया थाना को फोन किये-बोले दयामनी मैडम को वो कागज आप भेजवा दीजिएगा, जो यहां से भेजा गया है। 
दूसरा दिन थाना वाले कागज लेकर मेरा होटल आये थे-लेकिन मैं नहीं थी, इसलिए वे कागज किसी के हाथ में नहीं छोड़े। दूसरे दिन प्रवीण जा कर कागज ले आया। उस कागज में लिखा हुआ है-मेरे सिरोम टोली, क्लब रोड़ स्थित होटल में असामाजिक तत्व आते-जाते हैं, और बैठ भी करते हैं। 
मैंने इसका फोटीकापी की और जिस आवेदन को एसएसपी के नाम दी, उसी का एक कोपी आईजी श्री रेजि डुंगडुंगजी को भी उनके आवास में जा कर दी। साथ में जो कागज थाना से मिला था, उसका फोटी काॅपी भी। डुंगडुग साहब बोले-तुम आदिवासियों के लिए क्यों इतना चिंतित रहती हो? मस्त रहो आराम से। लोग नाचते हैं-गाते हैं कोई आता है तो उनके स्वागत में। इतना खुश  हैं लोग, फिर तुम क्यों परेशान  रहती हो?।
मैंने हंसते हुए बोली-क्या करते, मैं अपना जिम्मेवारी पूरा कर रही हुं। लोग नहीं सोचते हैं तो मैं क्या कर सकती हुं-सिर्फ मैं कोशिश ही कर सकती हुं।
डुंगडुगजी बोली-देख रहे हैं-आज कल तुम नगड़ी में लगी हो।
जी गांव के लोग आये लेने के लिए तो मैं चली गयी। और आप को तो पता है कि नहीं-सरकार ने उस जमीन को अधिग्रहण नहीं किया है। गांव वाले भी जमीन का पैसा सरकार से नहीं लिए है। गांव वाले आज भी जमीन का मजगुजारी दे रहे हैं। 
डुगडुग साहब-ठीक है लोग लड़ रहे हैं। लेकिन वहां जिन लोगों के साथ तुम हो, तुम नहीं सकोगी, तुम उन लोगों को नहीं पहचानती हो। मैं 25 साल से लोगों को देख रहा हुं। मैं समझ गयी-वह किन लोगों के बारे बोल रहे हैं। 
मैं बोली-ठीक है, नहीं सकेगें तो छोड़ देगे, और आप तो जानते हैं कि मैं किसी गलत लोगों के साथ नहीं खड़ा हो सकती हुं। डुगडुग साहब बोले-देख लो तुम।
इस मामले को लेकिन मैंने ग्रामीण एसपी श्री आशीम  विक्रात मिंजजी और डीएसपी श्री अनुरंजन किस्पोटा जी से भी मिली और अपना लिखित आवेदन -एसएसपी को दी थी, इसी को इन अधिकारियों को संबोधित करते हुए दी। दोनों अधिकारियों ने कहा-अगर आप के बार कोई कुछ बोल रहा है-तो हमारा काम है, उसको जांच करना। इसमें परे’ाान नहीं होना चाजिए-इसलिए कि आप तो सामाजिक कार्यकर्ता हैं। 
जिस तरह से सरकार का रवेया नगड़ी के रैयतों के प्रति विपरित रूख था, मुझे समझ में आ रहा था कि-सरकार जरूर मेरे खिलाफ कोई न कोई जाल बिछाएगी। जब अचानक 23 सिंतबर 2012 को चुटिया थाना के एसआई ने मेरे खिलाफ कुर्की जब्ती का वारंट लेकर आया। थाना वाले से मैं पूछी ये किस अरोप के तहत यह कुर्की वारंट है? एसआई भी नहीं बता सके।
एसआई मेरे होटल में ही आये थे। उन्होंने कागज को उपट-पुलट कर देखे, लेकिन नहीं बता सके कि-यह वारंट किस संबंध में है। तब इन्होंने सजेस्ट किये-कि आप इस जीआर ना0 को लिख लीजिए और कोर्ट से पत्ता कीजिए कि-ये कौन सा केस है। इसकी जानकारी मैं अपने साथियों को दी। फैसल दी ने कोर्ट से पत्ता करने की जिम्मेवारी शुशन्तो  जी को दिये। शुशन्तो  जी दूसरे दिन कोर्ट से पत्ता किये-यह 2006 का केस है, जो अनगड़ा प्रखंड कार्यालय में जोब कार्ड की मांग को लेकर ग्रामीणों ने अबुआ बेंजाई संगी होड़ो के बैनर तले रैली निकाले थे। इस रैली को पुलिस वालों ने रोड़ पर ही रोक लिया था। रोड़ पर ही पुलिस वालों ने गाड़ी को खड़ा कर रोड़ को सामने ब्लाॅक कर दिये थे। इस परिस्थिति में रैली आगे नहीं जा सकती थी। इस कारण रैली रोड़ में रूक गया। इसी मामले को लेकर ब्लाॅक वाले केस कर दिये थे। 
मुझे पत्ता नहीं था कि केस हुआ है। एक दिन अनगड़ा थाना के छोटा बाबू श्री कुजूरजी फोन किये और बोले-मैडम आप एक दिन समय निकाल कर आईए हमारे यहां थाना चाय पीने के लिए। मैं पूछी -क्यों थाना में चाय पीने के लिए? 
श्री कुजूर बोले-हमेशा  आप तो गांव गांव घुमते रही हैं-तो एक दिन मेरे यहां भी आईए। अपने लोग हैं तो मिलना चाहिए। इसके बाद से छोटा बाबू हरदम आने के लिए बोलते रहते थे। एक दिन मैं और अलाका कुजूर गयी थाना। छोटा बाबू चाय-नास्ता भी खिलाये। इसी क्रम में उन्होंने बताये कि-रैली के दिन का केस हुआ है आप कहां कोर्ट-कचहारी जाईऐगा, आप का समय भी नहीं रहता है-सो यहीं बेल दे दे रहे हैं। उन्होंने एक सादा कागज पर लिखा 1000 के मुचुलके पर दयामनी को बेल दे रहे हैं। अलोका इस कागज में साईन की बेललर के रूप में। 
इसी केस का कुर्की जब्ती का वारंट आया है। थाना से बेल लेने के बाद मुझे कभी भी न तो किसी साथी ने इस संबंध में बताये कि-यह केस कोर्ट में चल रहा है, न ही कोर्ट से कभी इस संबंध में कोई नोटिस या सूचना, सम्मन, या उपस्थित होने के लिए कोई वारंट नहीं आया। एक ही बार यह कुर्की जब्ती का वारंट आया। कुर्की जब्ती का वारंट लाने के पहले 24 अगस्त को पुलिस मेरे डेरा पर आया थी। मेरे घर मालिक बताये थे कि दा-तीन पुलिस वाले घर आये थे बंदूक के साथ। उस दिन मैं नगड़ी गयी हुई थी। घर मालिक का बात सून कर सोची कोई जानकारी लेना था होगा, इसलिए पुलिस आयी थी। 
इसके बाद हर दूसरे -तीसरे दिन पुलिस मेंरे होटल में आ जा रहे थे। पुलिस से दो-तीन दिन का समय मांगें थे बेल लेने के लिए। बेल लेने के लिए दो बार कोर्ट जा कर प्रयास किये एस के माजाराज के कोर्ट में। लेकिन जज साहब बेल नहीं दिये। इस परिस्थिति में दूसरा कोई रास्ता नहीं था बचने का। तब हम लोगों ने निर्णय लिये-कि कोर्ट में फिर से अपील करेगें बेल के लिए और नहीं मिलेगा तब सरेंडर करेगें। छोटा केस से एक -दो दिन के भीतर बेल हो जाएगा। हम लोगों ने यह भी निर्णय लिये कि-इसका खबर किसी को नहीं होने दिया जाएगा-चुपचाप से सरेंडर करेंगें और चुपचाप बेल लेकर निकल भी जाएगें। मीडिया को पता नहीं लगने देगें-ताकि अगर सरकार चाहेगी कि आर केस डालने का तो नहीं कर पाये। 
हम लोगों ने 4 अक्टोबर को शरेंदार  करने का निर्णय लिये। लेकिन साथियों ने कहा-इस बीच 3-4 दिन कोर्ट बंद है। बेल के लिए कागजात निकालने और बेल लेने में समय लगेगा, इसलिए 4 को सरेंडर नहीं कारेगें। नही ंतो जेल में आठ दिन तक रहना हो सकता है। तब तय किये 11 अक्टोबर को। 11 अक्टोबर को भी साथियोंने बोले कि-इस बीच दो दिन कोर्ट बंद है। 11 अक्टोबर को आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच से 7-8 साथी, नगड़ी से 5-6 लोग सरेंडर के समय साथ कोर्ट जाने के लिए आये थे। कांके के चैडी बस्ती से लोग तय किये थे कि हम लोग 100 तक की संस्खया में कोर्ट पहुंचेगे दीदी जब सरेंडर करेगी। लेकिन 11 को फिर टाल दिया गया। इसके बाद तय हुआ 16 अक्टोबर को सरेंडर करने का। 
14 अक्टोबर को आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच का करमा महोत्सव मनाये। 13 अक्टोबर को डैम प्रभावित संघर्ष समिति कर्रा करमा महोत्सय मानाने का निर्णय लिया था। लेकिन मेरा जेल जाने को लेकर गांव वालों न कहा-बाद में ही मनाऐगें। 16 अक्टोबर को सुबह अखबार में देखे-नगड़ी के ग्रामीणा जमीन वापसी की मांग को लेकर अमरणअनशान  पर आज से बैठ रहे हैं। इसकी जानकारी नगड़ी से किसी ने पहले नहीं दिये। इस खबर ने हमे चैंका दिया, आखिर लोग क्यों नहीं बताये कि अमरणअनशान  का निर्णय लिये हैं। यह हमारे लिए बहुत बड़ा सवाल खड़ा हो गया। 
हम लोगों ने तय किये थे-कि चुपचाप 16 अक्टोबर को सरेंडर करेगें-इस निर्णय में नगड़ी वाले भी ’शमिल थे। लेकिन इन लोगों का अचानक और गुप्त तरीके से अमरणअन’न में बैठने का निर्णय ....। अखबार पढ़ने के बाद मैंने अलोका को फोन की और बतायी कि-नगड़ी वाले आज से अमरणअनशन पर बैठ रहे है-सो समझ नहीं आ रहा है कि आखिर इन लोगों ने आज से ही बैठने का क्यों निर्णय लिया। ऐसी स्थिति में तो चुपचाप सरेंडर करना ठीक नहीं है। अन’शन तो 5-6 दिन चलेगा ही। और इस बीच में मैं गायब हुं, यह मेंरे लिए बहुत बड़ा सवाल है कि आखिर मैं अनशन में भाग क्यों नहीं ले रही हूं। 
मैंने तत्काल निर्णय ली-कि चुपचाप सरेंडर नहीं करना है अब, मीडिया को बता कर जाना है कि किन परिस्थिति में मैं सरेंडर हो रही हुं। तब अलोका, फैसल दी और श्रीप्रकाश , सुशानतो और कई मित्र तय किये कि-मीडिया को बोल कर जाना है। तब मैं नेलशन, अलोका नगड़ी अनशन स्थल पहुंचे। अनशनकारियों को माला पहनाये। करीब एक घंण्टा तक वहां रहे। वहां भी मीडिया को बताये कि-किन परिस्थिति में मुझे सरंेनडर करना पड़ रहा है। वहां से सीधे कोर्ट पहुंचे। कोर्ट के पास आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच, डैम प्रभावित संघर्ष समिति कर्रा-खूंटी के करीब 50-60 साथी आ चुके थे। मेरे वाकील ने बेल के लिए फिर से अग्राह किया-लेकिन जज साहब देना नहीं चाहे। तब मुझे वहीं से कस्टडी में लिया गया।  
हम लोगों को उम्मीद था कि-दो दिन में बेल मिल जाएगा और तीसरे दिन जेल से बाहर निकल जाएगें। लेकिन सरकार और हमारे विरोधियों की मानसा को समझ नहीं पाये थे। अनगड़ा का केस में मुझे 18 अक्टोबर को बेल मिल गया था। जब मेरी रिहाई की तैयारी हो गयी-गांव से लोग जेल पहुंचे मुझे लेने के लिए -तब तक एक दूसरा केस कर दिया गया। और मेरे उपर वारंट प्रोक्सन लगाया गया। गांव वाले निराश  वापस लौटे। इसी तरह अब केस और प्रोडक्नशन  वारंट का सिलसिला चलने लगा। जब दूसरे केस मे  भी मुझे बेल हो  गया और रिहाई आदेश  तैयार किया जा रहा है-तब तक तीसरा केस डाल दिया गया। इस तरह से रिहाई-गिरत्फारी-रिहाई-गिरत्फारी का सिलसिला चलता रहा और 68 दिनों तब जेल में रही। 21 दिसंबर को हाईकोर्ट से मुझे बेल मिला। साथी रिहाई के लिए तैयारी में जुटे। 22 दिसंबर को मेरी रिहाई कागज तैयार करने साथी कोर्ट पहुंचे-इसी बीच एक थाना प्रभारी फिर से एक प्रोडक्नशन  वरांट लेकर आये। लेकिन इसके पहले ही ......और मुझे 22 की शाम  को जेल से निकाला गया। ढाई महिना के अंदर मेंरे उपर अब 9 केस चल रहा है-सभी कोर्ट में ट्रायल में है।