आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच की लड़ाई सिर्फ आर्सेलर मित्तल द्वारा स्टील प्लांट के लिए जमीनअधिग्रहण के खिलाफ नहीं है। हमारी लड़ाई समाज, भाषा-संस्कृति, पर्यावरण नदी, झरना, खेती-किसानी, हवा-पानी, मानव सभ्यता को बचाने के साथ ग्लोबल वार्मिंग के खिलाफ संघर्ष है. हमने नारा दिया है-हम अपनेपुर्बजों की एक इंच जमीन नहीं देंगे। हमारे इस बिराशत-इतिहास और पहचान को किसी मुवाजे की राशी से नहींभरा जा सकता है, ना ही इसको पुनर्वासित किया जा सकता है। हम बिकास चाहते है- लेकिन हमारे कीमत परनहीं। आजादी के ६३ सालों में हमने देख लिया- हमने राज एवं देश बिकास के लिए तमाम बुनियादी आवस्यकताखान- खनिज, नदी- पहाड़-पानी, जंगल-जमीन दिया। लेकिन बिकास के नाम पर सिर्फ उजड़ा गया। आजादी केबाद राज के ८० लाख आदिवासी मूलवासी किसानो को बिस्थापित किया गया। इसमें से मटर ४-५ प्रतिशत कोकिसी तरह से पुनर्वासित किया गया है। बाकी बिस्थापित आज एक बेला की रोटी के लिए, रोजगार के लिएbहटाक रहे हैं. उनके बचों को पढ़ने की कोई बेवस्थ नहीं है. स्वस्थ की सुबिधा नहीं है. उनके ऊपर छात नहीं है। उनके बदन में कपडे नहीं हैं। बिकास के नाम पर उन्हें बंधुआ मजदुर, रजा, कुली, नौकरानी, घर बिहीन बना दिया।
ना राज सरकार को इसकी चिंता है, ना केंद्र सरकार को। सरकार पूंजीपतियों के लिए दर्जनों बिकास नीति बनायीं, लेकिन बिकास के नाम पर उजड़े गए लोगों के बिकास के ना तो किसी के पास सोच है, और ना ही चिंता ही। इसलिए हमने संकल्प लिए है- अब हम अपने पुर्बजों की एक इंच जमीन नहीं देंगे। हम बिकास चाहते हैं- अपनेभाषा -संस्कृति, जंगल-जमीन, पर्यावरण, कृषि, नदी-झरनों के साथ.
किसी को चिन्ता नहीं है दूसरे की. सिर्फ और सिर्फ अपने स्वार्थ की पूर्ति में लगे हैं सब लोग..
ReplyDeleteमुझे आप के द्वारा लिये गये पोजीसन और एंगल बहूत ही भाते है ... ये यूनिक है ....
ReplyDelete