
इस मुहाला की देख कर सायद आप नाक और मुंह ढँक रहे होंगे। इसे देख कर आप कर दिमाक में शहर के झुगी-झोपडी में रहने वालों की जिंदगी की तशबीर खिंच गयी होगी। गंदगी देख कर आप इन मुहलेवासियों को गली दे रहे होंगे, की कितने फूहड़ लोग हैं, जो इस तरह कीचड़ में रहते हैं। इस मुहाला की सूरत देख कर आप के मन में उनके प्रति कई नीच बिचार आ रहे हैं। मै जान रहे हूँ।
आप के मन में ये तमाम बिचार सिर्फ इस मुहाले की तशबीर देख कर उठ रहे हैं। यदि आप इस मुहाले में रहते, इस रास्ते से आप गुजरते, तो सायद आप के लेई मुश्किलें बढ़ जाती। आप एक हाथ से आप का सामान संभलते, एक हाथ से नाक और मुंह ढंकते, नजर इस्थिर कर कीचड़ में अपना एक एक पांव कंहा सम्हाल कर रखते ॥?
हाँ हमें जानना चाहिए, यह कौन सा मुहाला है। कंहा है। कौन लोग रहते हैं। क्यों ऐसा रहते हैं। इस तरह की जिंदगी क्यों जी रहे हैं। इसके लिए क्या ये खुद जिमेदार हैं। यह किसने इन्हें इस तरह की जिंदगी इन्हें भेंट की है.
देश के नक़्शे में झारखण्ड का एक बिशेष पहचान है। जी हाँ खनिज सम्पदा के नाम पर दुनिया में मशहुर है।
झारखण्ड की राजधानी रांची के मात्र ८ किलो मीटर दूर रांची खूंटी रोड में अवस्थित है नया सतरंजी गांव. नया सब्द सुन कर हार कोई मन उत्साहित होता है, की नयी बात क्या है. सायद आप ही उत्साहित हो रहे होंगे, जानने की लिए।
तो आप थोडा समय दीजिये, मै बताती हूँ। आजादी के बाद देश बिकास के लिए १९५६-५७ में रांची जिला के हटिया इलाके में हेबी इंजीनियरिंग कारपोरेसन यानि एच ई सी बना. कारखाना बना ने के लिए १६ गाँव को उजड़ना पड़ा था। इसमें सतरंजी गाँव भी था। गाँव से उजड़ने के बाद सतरंजी के लोगों को सरकार पुनर्वास याने पुन स्थापित करने के नाम पर यंहा किसी परिवार को १० डिसमिल तो किसी को १५ डिसमिल जमीन दे कर बसाया था। नए जगह में बसाया गया सतरंजी गाँव को। इसलिए इस गाँव को नया सतरंजी का नाम दिया गया।
गानों को हटाने के पहले सरकार ग्रामीणों से वादा किया था। तुम लोगों को आदर्श गाँव में बसायेंगे। वंहा स्कूल होगा, अस्पताल होगा, पका माकन देंगे, रोड बना देंगे। बिजली देंगे। पानी देंगे। खेल मैदान देंगे। बचों के खेलने के लिए पार्क देंगे। कब्रस्थान देंगे। आदिवासिओं के लिए सरना, मसना, हद गाड़ी, मंदिर, मज्जिद देंगे। लोगों को जीविका के लिए पीढ़ी दर पीढ़ी नौकरी देने का वादा किया था।
कहने की जरुरत नहीं है। इन्हें क्या मिला। मुहाला -गाँव देख कर समझ गए होंगे। यंहा करीब १०० घर हैं। आज तक इस गाँव के लोगों ने बिजली का रौशनी अपने घरों में नहीं देखा। २ अगस्त २०१० को जब मै इनके पास गयी थी, लोगों ने एक पोल खूंटा खड़ा किया गया था, को दिखा कर बताये..पिछले रबिवर को हम लोग इस खूंटा को खरीद कर गड़े हैं। अब फिर से गाँव से पैसा जमा कर बिजली लेन का कोशिश करेंगे। आज इस गाँव में एच ई सी में मात्र ८-१० लोग नौकरी करने वाले हैं। बाकी कुली, रेज़ा, दिहाड़ी मजदूरी, शराब बेचती हैं- महिलाये और बचियाँ। पुरुष रिक्शा चलते हैं। यही नयापन है, इनके जिंदगी में। पहले ये जमीन, जंगल, खेत के मालिक थे। ये आनाज पैदा कर देश को खिलते थे।
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