Wednesday, July 16, 2014

आज अच्छ दिन तो आ गये हैं लेकिन किनका अच्छा दिन? आम आदमी को, किसानों का, आदिवासियों को, मूलासियों का यह फिर कारपोरेट घरानों का ?

अच्छे दिन आएंगे का सपना देश  के नागरिकों को दिखा कर मोदी सरकार ने सत्ता में आयी। सत्ता में आने के पहले जनता को वादा किया गया था कि देश  में बढ़ती मंहगाई को रोका जाएगा। गदी पर बैठने के एक माह में कई महत्वपूर्ण लिये। इन निर्णयों में कोई भी निर्णय देश  की आम जनता के हित में नहीं लिया गया। मोदी सरकार की विकास की गाड़ी पटर पर सरपट दौड़ना  शुरू कर दिया है। एक माह में 
1-डिजल का कीमत बढ़ा दिया गया
2-पेट्र्रोल का कीमत बढ़ा दिया
3-चीनी का कीमत बढा
4-रेल भाड़ा बढाया
5-रसवाई गैस का कीमत बढ़ा
देश  के विकास योजनाओं को तैयार करने में सबकी भागीदारी सुनिच्’िात करने के लिए पिछली सरकारों ने योजना आयोग में नेता-मंत्री के अलावे देश  के बुधिजीवि, अर्थस्त्री, सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी शमिल किया गया था। मोदी सरकार के सत्ता पर बैठते ही योजना आयोग का आकार छोटा करने का निर्णय लिया गया। अब उम्मीद है योजना आयोग में उन्हीं लोगों को केवल रखा जाएगा-जिन कारपोरेट घरानों ने चुनाव लड़ने के लिए रूप्या दिये थे। 
देश  में विभिन्न योजनाओं के लिये जमीन अधिग्रहण को जनपक्षी तथा जमीन मालिकों के हितों की सुरक्षा को देखते हुए पिछली सरकार ने भू-अधिग्रहण कानून बनाया गया था। इस कानून में एक क्लाॅज था जिसमें जमीन अधिग्रहण के पहले -उस क्षेत्र के सामाजिक अस्तित्व को अक्षुण रखने के लिए -जमीन अधिग्रण से होने वाले प्रभाव को अकलन करने के लिए ‘’शोशल एशेषमेन्ट समेंट का प्रावधान किया गया है-को जमीन अध्रिग्रहण में देरी को कारण बताते हुए इसे खत्म करने का निर्णय लेने की तैयारी चल रही है। 
यही नहीं इसी कानून में जमीन अधिग्रहण के पहले ग्राम सभा को जो अधिकार दिया गया था-जिसके तहत प्रावधान था-यदि कंपनी के लिये जमीन अधिग्रहण करना हो तो-70 प्रतिशत ग्राम सभा की सहमति पर ही जमीन अधिग्रहण हो सकता है। इसी कानून में कहा गया है-यदि जमीन सरकार अधिग्रहण करेगा-तो 80 प्रतिशत ग्राम सभा की सहमति के बाद ही जमीन अधिग्रहण किया जा सकेगा। 
इन दोनों क्लोज को जमीन अधिग्रहण में बाधा मानते हुए दोनों क्लोज को खत्म कर जमीन अधिग्रहण प्रक्रिया में ग्राम सभा को दिये गये कानूनी प्रावधान को ही खत्म करने का निर्णय लिया जा रहा है। 
रेल बजट तथा आम बजट में झारखंड प्रदेश  को पूरी तरह से दर किनार किया गया। सबसे खतरनाक बात तो यह है कि-मोदी सरकार के आम बजट में आदिवासी, मूलवासी किसान, गांव-देहात के ग्रामीणों तथा विस्थापितों का नमोनिशान  नहीं है। बजट का हर पहलू सिर्फ कारपोरेट घरानों का विकास को केंन्द्र माना गया है। बजट में देश  की आम आदमी कहीं भी नहीं हैं। आज अच्छ दिन तो आ गये हैं लेकिन किनका अच्छा दिन? आम आदमी को, किसानों का, आदिवासियों को, मूलासियों का यह फिर कारपोरेट घरानों का ?