Saturday, October 13, 2012

ye   kaisa  lok tantar..??????????
Nagdi  me  kheti  karne  ke  liye  kishan  apne  khet  jote...prashasan  ne  Case  kar  di

Trafiking in Jharkhand...


Thursday, August 16, 2012


15 AUGUST 2012...GHERA KE BHITAR...JOTE AUR DHAN ROP DIYE

KARIB 50 HAL- BAIL LA KAR JOTE


4 JULY 2012 LATHI CHARGED BY POLICE IN NAGDI CHANWRA

24 JUNE 2012 ...PAHLA HAL CHALANE KE KIYE KHET ME JOTNE AAYE GRAMINON KO ROKTI PULICE

Friday, August 10, 2012

जमीन हमारा है, हल जोतेगे और खेती करेगें ही। ।


HAL CHALATE GRAMINO KO ROKTI PULICE PRASHASHAN

नगड़ी में आई आई एम और लो कालेज के नाम पर 227 एकड़ जमीन सरकार जबरन कब्जा कर रही है। इस जमीन कब्जा के खिलाफ 4 मार्च 2012 से जमीन मालिक अपने खेत में सत्यग्रह आंदोलन में बैठना शुरू किये। चिलचिलाती धूप में 150 दिनों तक सत्यग्री धरना में बैठे। धूप से बचने के लिए पेड़ों की टहनियां, पतों की छवनी बनाये थे। दिन को पूरा गांव के लिए एक साथ खिचड़ी बनता था। कुछ साथी अपने अपने घरों से भात-रोटी, दाल, सब्जी ले कर आते थे। सभी एक साथ खाते थे। जो साथी बाहर से जाते थे, उन्हें सभी मिल कर खिलाते थे। एक थाली में थोड़ा थोड़ा कर 15 परिवार का सब्जी, परोसते थे। पानी बरसने का इंतजार कर रहे थे, हल चलाने के लिए। सरकार पुलिस तैनात कर चाहरदिवारी का काम पुरा करने में व्यस्त है। 9 जून 2012 को जब राज्यपाल को मेमोरंडम देने के लिए गये थे-नगड़ी का जमीन वापस करने के लिए-तब महिला साथी नंदी कच्छप ने राज्य पाल से बोली थी-महामहिम आप के पास अपनी मांग को लेकर पहले ही तीन बार आ चुके हैं, आज चैथी बार आये हैं। अब हमलोग आप के पास नहीं आऐगें-पानी आएगा तो खेत में हल चलाऐगें, आप के पास तो पुलिस है, आप गोली चलवाईऐगा, हमलोग खेत में मन जाना पसंद करेगें-लेकिन भूंमिहीन हो कर जीना नहीं चाहते हैं।
नंदी जी ने राज्यपाल को कहा बचन 24 जून को खेत में पहला हल चला कर साबित कर दी। मनसून लेट से आया। 21-22 जून से पानी बरसना ‘’शुरू हुआ। 24 जून को नंदी हल-बैल लेकर बोंग ठिपा-नगड़ी चंवरा में पहुंची। हल जोतना ‘शुरू की। कराब आधा घंटा के भीतर सैकड़ों पुलिस फोर्स खेत में उतर आये और हल चलाने से माना करने लगे। पुलिस के साथ कांके आंचल के आंचल अधिकारी, बी. डी. ओ, एस. डी. ओ शेखर जमुवारजी पुलिस फोर्स के साथ दल-बल पहुंचे और हल चलाने से -रोकना चाहे, लेकिन साथियों ने कहा-जमीन हमारा है, हल जोतेगे और खेती करेगें ही। ।

Thursday, August 9, 2012

Askhir Nagdi ke Dard ko koun Samjhe..??? Iske liye koun Jimmewar hai.?????????

25 जुलाई बंदी के दौरान जो तोड़-फोड़ हुआ, खून बहा वहा, यह दुखद रहा। जो नहीं
होना चाहिये था। हिंसा से किसी भी समस्य का हल नहीं निकलता है। नगड़ी का
आंदोलन भी अहिंसा के रास्ते ही यहां तक पहूंचा है, जो अपने भीतर कई दर्द और
सवालों को दबाये रखा है। 25 की घटनाओं को तो दुनिया के सामने रख ही दिया गया
है। लेकिन नगड़ी के ग्रामीणों का क्या कसूर है? 7 जनवरी 2012 को बेकसूर 12
ग्रामीणों पर निर्माण कार्य में बाधा डालने का केसा थोपा गया। इस केस में हर
तीसरे दिन एसडीओ कोर्ट में हाजरी देना पड़ता था। 9 जनवरी 12 से सैंकड़ों पुलिस
फोर्स खेत में उतार कर चहारदिवारी का काम प्ररंम्भ किया सरकार ने। 9 जनवरी
2012 के बाद ग्रामीणों को अपने खेत में उतरने पर रोक लगा दिया गया । कोई खेत
में जा नहीं सकता है। पूरे 227 एकड़ जमीन में 144 धारा लगा दिया गया और पूरे
खेत में सैंकड़ों पुलिस बल को तैनात कर दिया गया। खेत में गाय-बैल,
मुर्गी-चेंगना को भी चरने के लिए जाने नहीं दिया जाता था। बाद में आंदोलन तेज
होने के साथ ही बैल-बकरियों, को खेत में चरने दिया जाने लगा। नदी के किनारे
100 एकड़ से अधिक जमीन में किसान गेहुं, चना, आलू, मटर, गोभी, आदि सब्जी लगा
दिये थे-सबको पुलिस वाले बुलडोज कर दिये।
सच क्या है?
सरकार कहती है 1957-58 में इस जमीन का अधिग्रहण किया गया है। दूसरी तरफ
ग्रामीण आज भी इस जमीन पर खेती कर रहे हैं, जमीन का जमाबंदी दे रहे हैं। सच
क्या है इसकी तड़ताल करने के लिए मैंने भूमिं अर्जन विभाग में आर टी आई के तहत
सूचनाएं मांगी-कि राजेंन्द्र कृर्षि बिश्वा विद्यालय के लिए कुल कितना एकड़
जमीन, किन किन किसानों का, खाता ना0, प्लोट ना0 और रकबा सहित जानकारी दें, साथ
ही यदि किसानों का जमीन अधिग्रहण किया गया है-तो उस जमीन का कीमत किसानों को
किस दर से भुगतान किया गया है-इसकी जानकारी मनी रिसिप्ट के साथ उपलब्ध करायें।
इन सभी सवालों को उत्तर देते हुए भूमिं अर्जन विभाग ने 29 फरीवरी 2012 को
लिखित उत्तर दिया, जिसमें लिखा हुआ हैं कि-1957-58 में जब जमीन अधिग्रहण किया
गया उस समय 153 राईयत थे-इसमें से 128 राईयतों ने पैसा लेने से इंकार कर दिये,
इसलिए वह राशि रांची कोषागार में जमा है।
भू-अर्जन विभाग द्वारा 29 फरवरी को प्रप्त लिखित उत्तर के अनुसार 57-58 में
बिरसा एग्रीकलचर यूनिर्वसिटी के लिये जमीन अधिग्रहण किया गया था। सही तथ्य
क्या है-इसको समझने के लिए मैंने बिरसा एग्रीकलचर यूनिर्वसिटी में भी आर टी आई
डाली। जिसमें निम्न जानकारी मांगी थी-
1-purbotar राज्य सरकार (बिहार) द्वारा 1957-58 में राजेंन्द्र कृर्षि
बिश्वबिद्यालय / बिरसा कृर्षि बिश्वबिद्यालय कांके के नाम पर नगड़ी थाना सं0
53 में कितना एकड़ भूमिं अधिग्रहण किये है?
2-किन किन रैयतों का जमीन कौन सा खाता नं0, प्लाट नां0 एवं कितना रकबा
अधिग्रहण किया गया हे?
3-जिन रैयतों की जमीन बिश्वबिद्यालय अधिग्रहण किया गया है, उन्हें जमीन का
कीमत कितना भुगतान किया गया, पावती रसीद सहित
4-रैयतों को जमीन को कीमत किस दर से भुगतान किया गया है, यदि जमीन को अधिग्रहण
किया गया है तब उसका उपयोग आप किस उद्वे’य से अब तब करते आये हैं?
उपरोक्त तीन सवालों का जवाब निदेशालय, बीज एवं प्र+क्षेत्र बिरसा कृर्षि
विश्वाविद्यालय कांके रांची ने-दिया है कि-इसकी कोई जानकारी निदेशालय बीज एवं
प्रक्षेत्र में नहीं है। चैथा सवाल का जवाब में इन्होंने कहा है-निदेशालय बीज
एवं प्रक्षेत्र द्वारा किसी प्रकार का जमीन अधिग्रहण के फलस्वरूप भुगतान नहीं
किया गया न ही उक्त जमीन का किसी प्रकार को उपयोग किया गया।
इसके पहले का रिकोट को भी देखने की जरूरत है। 2008 में इसी जमीन होते हुए रिंग
रोड़ बनाने की योजना आयी, अधीक्षण आभियानता पथ निर्माण विभाग ने भू-अर्जन
विभाग से नो ओबजेक्शान सर्टिफिकेट मांगा, तब भू-अर्जन विभाग ने पथ निर्माण
विभाग को जवाब दिया, उक्त जमीन बिरसा कृर्षि बिश्वबिद्यालय कांके के मालिकाना
के अधिन है, इसलिए नो ओबजेकशान सर्टिफिकेट बिरसा कृर्षि बिश्वबिद्यालय कांके
से मांगा जाए। इसी निदेशानुसार पथ निर्माण विभाग ने बिरसा कृर्षि
विश्वाविद्यालय कांके को पत्र लिखा।
पथ निर्माण विभाग के पत्र के जवाब में बिरसा कृर्षि विश्वाविद्यालय कांके
अपने पत्रांक एफ 39-369/08-09, दिनांक 17/8/08 को लिखा-जिन प्लोटों एवं रकबों का
वर्णन आप के पत्र में है-के आलोक में यह सूचित करना है कि अभी तक भूमिं को
विश्वाविद्यालय अधिग्रहित ही नहीं कर पायी है, इसलिए उक्त भूमिं का अनापति
प्रमाण पत्र निर्गत करने का प्रशन ही नहीं उठता है।
भू- अर्जन विभाग के इस लिखित उत्तर प्रप्ती के बाद अपनी कृर्षि भूमिं की रक्षा
के लिए 4 मार्च 12 से लगातार चिलचिलाती धूप में 150 दिनों तक नगड़ी चांवरा में
सत्यग्रह-धरना में बैठे रहे। इस दौरान हमारी माँ, बेटियां, बहुएं, बहनें,
स्कूल के बच्चे, कॉलेज के बच्चे, माँ -बाप सभी चिलचिलाती धूप में भी धरना
स्थल में डटे रहे। गरमी के दिन में पेड़ की टहनियों -पत्तियों से बने छावनी
में दिन-रात बिताये। बरसात भी पहुंच गया। बरसात में तिरपाल के छत के नीचे रात
को भी वहीं खुला आशमान के नीचे, अपनी जमीन बचाने के लिये रात बिताये। तब किसी
का दिल क्यों नहीं पिघला? मानवता के नाते इनके जिंदगी के दर्र्द को न तो किसी
अखबार ने, न ही किसी व्यक्ति ने महसूस किया।
इस दौरान लू लगने से हमारी तीन माँ -1-मुंदरी उरांव 2-दशमी केरकेटा 3-पोको
तिर्की की मौत हो गयी। सवाल है-आखिर इनकी मौत के लिए कौन जिम्मेवार है, इनके
हत्यारे कौन हैं? सत्यग्रह आंदोलन-धरना शुरू होने के बाद 6 मार्च से चहरदिवारी
निमार्ण का कार्य 30 अप्रैल तक बंद रहा। लेकिन किसानों का सत्यग्रह धरना नगड़ी
चांवरा में जारी रहा। इस बीच बार अशोशियेशन ने निमार्ण कार्य को पुना
प्ररंम्भ करने के लिए हाई कार्ट में पीआईएल दायर किया। इसका फैसला देते हुए 30
अप्रैल को हाई कोर्ट ने आदेश दिया-48 घंण्टे के भीतर निमार्ण कार्य शुरू करो।
बार अशिशियेशन ऩे कहा की- लो कॉलेज में पढने वाले लड़के-लड़कियों के लिए क्लास
रूम की कमी हो रही है. इसलिए जल्दी निर्माण कार्य पूरा किया जाय.
2 मई को हजारों पुलिस फोर्स नगड़ी चांवर में फिर से उतारा गया। (कई बटालियन
से) पांच थाना की पुलिस को भी उतारा गया। पांच मजिस्ट्रट को लगा दिया गया।
एसडीओ श्री शेखर जमूआरजी सत्यग्रह धरना स्थल सौकड़ों पुलिस बल के साथ पहुंचे
वे -ग्रामीणों से बोले, आप लोग यहां से हट जाओं काम ’शुरू करने जा रहे हैं-और
नहीं हटोगे तो इसका अंजाम उठाने के लिए तैयार रहो। एक स्वर में धरना स्थल के
साथियों ने जवाब दिया-आप को गोली चलाना है चला दिजीए-लेकिन अपने जमीन से हम
नहीं हटेगें।
ग्रामीण दिन-रात सत्यग्रह धरना स्थल में ही जमे रहे। माँ -बाप धरना हैं-छोटे
स्कूली बच्चे भी साथ में खेत में ही रहते थें। यहीं से स्कूल जाते थे, स्कूल
से वापस यहीं लौटते थे और स्कूल का होमवार्क, स्टटी यहीं करते थे। कोलेज में
पढ़ने वाले 70-80 युवक-युवातियां भी काजेल जाना छोड़ कर धरना स्थल में जमे
रहे, अपना जमीन बचाने के लिएं। इस बीच नगड़ी सत्यग्रह धरना में बैठे दर्जनों
विद्यार्थीयों ने मैट्रीक की परिक्षा दी, इसमें अधिकांश फेल हो गये, जो कभी
स्कूल में एक बार भी फेल नहीं हुए थे। कई लड़के-लड़कियां एसएससी का कमपिटिशन
लिखे, लेकिन फेल हो गये, कारण की जमीन बचाने के लिए धरना में बैठे रहे।
हमारा सवाल है- बार अशोशियेशन लो कॉलेज में पढने वाले बिद्यार्थियों के लिए
चिंतित है..की उनके लिए क्लास रूम नहो हो रहा है..लेकिन नगदी के किसानो के इन
बच्चों की निंदगी का कोई कीमत नहीं है ? जो आज अपना जिंदगी उजड़ता देख, नगदी
चंवरा में दिन रात सत्याग्रह-धरना में बैठ रहे हैं, scool - कॉलेज छोड़
कर..इनके लिए कौन जिमेवार है ? क्या इन बच्चों को औरों की तरह जीने का
अधिकार नहीं है..?
दूसरी ओर पुलिस फोर्स लगाकर सरकार चहरदिवार का निमार्ण कार्य को आगे बढ़ाता
रहा। धरना स्थल में बैठे ग्रामीण एक -एक ईंट से अपने खेत को घेरा बंदी कर
कब्जा करते निरीह निगाहों से दिखते रहे। धरना स्थल में एक साथ खिजड़ी पका कर
खाते थे। दोपहर को खाने के समय दिल को दहला देने वाली स्थितियों का भी सामना
करना पड़ रहा था। थाली में भात, हाथ थाली के भात में है, और एक टक नजर अपने
खेत में खड़ा हो रहा दिवार पर है, आंसू आंख से बहते हुए गाल में पानी के बुंद
की तरह लुढ़क रहा है। कई बार टोकने पर भी कोई आवाज नहीं, न तो पलक ही झपक रहा
है।
सत्यग्रह स्थल के नीचे चांवरा में किसानों का एक कुंआ है-वहीं से धरना स्थल के
लिए पानी ले जाते थे। बाद में इस कुंआ को भी घेर लिया गया। ग्रामीणों ने
अग्राह किया कि पानी लेने के लिए रास्ता छोड़ दिया जाए, लेकिन ठेकेदार के
लोगों ने नहीं माना। पानी लाने गयी महिलाओं के साथ बसह हुआ-तब वहां फिर से
पुलिस कांके थाना को बुला लिया गया। अब पानी के लिए दिक्क्त होने लगा। अब गांव
से ही लोग पानी लेकर आ रहे थे।
हम लोगों ने अपनी मांगों को लेकर लोकतत्रिक व्यवस्था में जनता की बात-समस्याओं
को रखी और सुनी जाने वाली सभी मंचों पर ले कर गये। जनवरी 12 से जून 2012 तक
चार बार महामहिम राज्यपाल के पास लिखित मांग के साथ गये। एक बार डीसी के पास,
एक बार कमिश्नर के पास गये। एक बार उप मूख्यमंत्री श्री सुदेश कुमार महतोजी,
एक बार उप मुखिया मंत्री श्री हेमंत सोरेन एवं गुरूजी श्री शिबू सोरने के पास
गये। सभी अधिकारियों को अपनी मांग के साथ, आई आई एम और लाॅ कालेज बनाने के लिए
कांके प्रखंड में उपलब्ध बंजर भूमिं को देखने -का भी सूझाव दिया गया। ग्रामीण
लिखित देते रहे कि हम लोग लो कालेज और आई आई एम का विरोध नहीं कर रहे
हैं-लेकिन हमारी जीविका -कृर्षि भूमिं, जो हमारा जीविका का एक मत्र साधन है को
उजाड़ कर नहीं। लेकिन न तो सरकार हमारी मांगों पर ध्यान देना चाहा, न ही सुझाव
पर ।
न्यायपालिका भी हमारे साथ नहीं है
लोकतंत्र में जनता की समस्याओं को सुनने का जो, सबसे महत्मपूर्ण जगह है-वह है
न्यायालय। ग्रामीणों ने अपनी समस्या को लेकर मननीय उच्च न्यायालय भी गये। जब
देश के विकास में सहयोग करने की बात है-तो नगड़ी क्षेत्र से गुजरने वाली
निमार्णधीन रिंग रोड़ के लिए जमीन की जरूरत थी तो ग्रामीणों ख़ुशी से जमीन
देने के लिए तैयार हो गये। रिंग रोड़ के लिए लिये जा रहे जमीन का मुआवजा दूसरे
सभी गांवों के जमीन मालिकों को मिला, लेकिन नगड़ी के ग्रामीणों को जब सरकार
नहीं दे रही है, तब ग्रामीणों ने रिंग रोड़ में जा रहे 13.47 एकड़ जमीन के लिए
ग्रामीणों ने मुआवजा के लिए हाई कोर्ट में गये। कोर्ट ने रिंग रोड़ में जा रहे
13.47 एकड़ का फैसला नहीं सुनाया, बल्कि 227 एकड़ जमीन का फैसला देते हुए
कहा-15 प्रतिशत व्याज राशि बढ़ा कर ग्रामीणों को मुआवजा दिया जाए। यहां यह
साफ होना चाहिए कि ग्रामीण जमीन का पैसा न तो 1957-58 में लिये आज भी लेना
नहीं चाहते हैं।
इस फैसला के बाद भी ग्रामीणों का अस्था उच्चतम न्यायालय के प्रति नहीं कम हुआ।
दूसरी बार मई 2012 में ग्रामीण फिर अपनी बात कहने के लिए उच्चतम न्यायालय
पहुंचे। लेकिन ग्रामीणों को यह पता नहीं था कि-जिस न्यायालय में न्याय मांगने
की अर्जी कर रहे हैं-उस न्यायालय के मननीय न्याय मूर्ति -जज उस लाॅ
यूनिर्वसिर्टी के चंश्लर -वीसी हैं, जिस लो यूनिर्वसिटी के लिए पुलिस के बल
पर नगड़ी के राईयतों का जमीन कब्जा किया जा रहा है। यही कारण है कि हाईकोर्ट
से ग्रामीण को न्याय नहीं मिला। 16 मई को हाई कोर्ट ने किसानों के केस को
खारिज कर दिया।
हाई कोर्ट से जब ग्रामीणों को न्याय नहीं मिला, तब ग्रामीणों ने सुप्रीम कोर्ट
की शरण ली। यहां पर मैं यह कहना चाहती हुं कि दो-दो बार हाई कोर्ट ने
ग्रामीणों के खिलाफ फैसला दिया, फिर भी न्यायपालिका के प्रति ग्रामीणों का
अस्था बना रहा। ग्रामीण सुप्रीम कोर्ट की ओर आशा भरी नजरों से न्याय का
इंतजार करते रहे। अततः 28 जून 2012 को नगड़ी का फाईल सुप्रीम कोर्ट के जज जीएल
गोखले और रंजना देशई के डबल बेंच में दिन के 11 बजे पहुंची। मननीय जज ने यह
कहते फाईल को एक किनारे फेंक दिये कि यह 50 साल पुराना केस है, इसको रिओपन
क्यों कर रहे हो, इसको हम सुन नहीं सकते हैं। sawal hai..RAM MANDI AUR BABRI MASJIT KA CASE SAIKDONO SAL PURANA THA, ko yahi supime court suna..bahash kiya aur Faishla bhi sunaya..Desh ki Neyaypalika Aakhir kyon alag alag bhumika me dikh rahi hai.?????????
मथुरा समिति के सामने 16 जुलाई को ग्रामीणों ने अपनी बात रखी कि-हमारी कृर्षि
भूमिं का कभी अधिग्रहण नहीं हुआ है, सरकार हमारी खेती की जमीन को जबरन छीन रही
है, हम अपनी कृर्षि भूमिं किसी भी कीमत पर नहीं देगें। अखबार में मैं पढ़ी
थी-कि नगड़ी के केस को उचित मंच में ले जाना चाहिए था। मैं जनना चाहती हुं
कि-उपरोक्त जगह जहां जहां हम लोग गये क्या इससे भी और कोई उचित मंच है इस
लोकतंत्र में।
बरसात पहुंच गया। खेती करने के लिए किसान अपने खेतों में हल चलाने के लिए
उतरे। तब भी किसानों को पुलिस बल बुला कर चह चलाने से रोकने की कोशीश की गयी।
पुलिस और ग्रामीणों के बीच बहस हुआ। आतंक में जी रहे किसान अपने खेतों में
खेती करने नहीं उतर पा रहे हैंं। जब हल जोतने किसान खेतों में उतरते
हैं-अखबारों में खबरें छपती है-ग्रामीणों ने आई आई एम की जमीन पर हल चला दिया,
तो कभी अखबारों में छप रहा है कि-ट्रिपल आई टी के जमीन पर किसानों ने हल चला
दिया। किसान हैरान हैं-कि हमने तो अपना खेत में हल चलाया-लेकिन हम पर यह अरोप
क्यों लगाया जा रहा है-कि हमने आई आई एम की जमीन पर हल चला दिया?
4 जुलाई के लाठी चार्ज में दर्जनों महिलाएं घायल हुई। कई बुजुर्ग महिलाओं का
हाथ टुटा। जिनकी उम्र 45 से 65 साल तक है। दो महिला साथियों को घायल अवस्था
में ही अरेस्ट किया गया। बंधनी टोप्पो( लगभग 45) और जामी( 55) को। 12 दिनों तक
रिम्स में पुलिस कस्टटी में इलाज चलता रहा। थोड़ा ठीक होने पर दोनों को होटवार
जेल में बंद कर दिया गया। दो पुरूष साथी को 4 जुलाई की रात को ही जेल भेज दिया
गया। आप लोगों को यह भी बताना जरूरी है कि-बंधनी टोप्पो के पति एक दरोगा हैं
और जामी का बेटा और बहु दोनों झारखंड पुलिस में हैं। इससे ज्यादा सादगी और
इमानदारी का, और कौन सा मिसाल नगड़ी के ग्रामीण दे सकते हैं?
कानून के संगरक्षक ही कानून की धजियां उड़ा रहे हैं
नगड़ी के जिस खेती की जमीन को सरकार अधिग्रहित मानती है, वह गलत तरीके से
अधिग्रहण किया गया है। तत्कालीन राजेंन्द्र एग्रीकलचर यूनीर्वसीटी के लिए जिस
227 एकड़ जमीन को 1957-58 में सरकार भूमिं अधिग्रहण कानून 1894 के धारा 4,
धारा 5, धारा 6, धारा 7 और 9 के तहत अधिग्रहित बता रही है वह गैर कनूनी तरीके
से अधिग्रहण किया गया है। धारा 4 में किसी अरजेंन्सी केस के किसी भूमिं
अधिग्रहण करने का प्रावधान है। यदि एग्रीकलचर यूनिर्वसिटी के लिए जमीन
अधिग्रहण करना अरजेंन्सी था-तब 50 साल तक उस जमीन अधिग्रहण क्यों नहीं किया
गया। सवाल दूसरा यह है-कनून कहता है-जिस जमीन को जिस परपस से आप अधिग्रहण कर
रहे हैं-उस जमीन का जिस परपस से लिया गया है, उसके लिए यदि 10 साल तक उपयोग
नहीं किया गया-तब वह जमीन स्वतः मूल राईत को वापस हो जाएगा।
कानून की बात करें तो यह-भारतीय संविधान में पांचवी अनुसूचि में आता है, इस
इलाके के लिए कानूनी प्रावधान है कि-जिस भी योजना के लिए जमीन अधिग्रहण किया
जाएगा-संबंधित ग्राम सभा या ग्रामीणों से सहमति लेना जरूरी है। इस संबंध में
धारा 5 के तहत ग्रामीणों की सहमति के लिए आम सभा बुलायी जाती है। नगड़ी के
जमीन अधिग्रहण के सवाल को लेकर 1957-58 में भी आप सभा के लिए सरकारी अधिकारी
नगड़ी आये थे। लेकिन ग्रामीणों ने हम अपना जमीन किसी भी कीमत में नहीं देगें
की घोषणा करते हुए, आम सभा के लिए आए सरकारी अधिकारियों को गांव से खदेड़ दिये
थे। उस समय जमीन अधिग्रहण के खिलाफ कई सालों तक आंदोलन चला। यही कारण है
कि-सरकार जमीन का मुआवजा देने की कोशीश की थी-लेकिन ग्रामीणों ने पैसा लेने
से इंकार कर दिया। जिस पैसा को सरकार रांची टेजरी में जमा है कहती है।
9 जून को 2012 को ग्रामीणों ने बिरसा शहादत दिवस के दिन राज्यपाल से जवाब
मांगने के लिए कि-हमारी जमीन, हमारी सहमति के बिना क्यों कब्जा किया जा रहा
है? के सवाल के साथ राजभवन का घेराव किये। अपनी लिखित मांग इस बार भी रैयतों
ने महामहिम को सौंपे। मांग पत्र सौपते हुए महिला साथी -नंदी कचाप जी ने
ग्रमीणों की पीड़ा को रखी-बोली, महामहिम आप के पास पहले ही हमलोग अपनी जमीन
बचाने के लिए आप के पास आ कर अपनी दुख का बयान कर चुके हैं। महामहिम -अब हम
लोग आप के पास और नहीं आएगें, पानी बरसेगा-हम लोग खेत जोतेगें, खेती करेगें,
आप के पास पुलिस है, पुलिस गोली चालाएगी, हम लोग खेत में ही मर जाना चाहते
हैं-लेकिन भूमिंहीन हो कर जीना नहीं चाहते हैं।
इसके उतर में महामहिम ऩे कहा- आप लोगों की समस्या को लेकर मैंने दो बार सरकार
को पात्र लिखा, लेकिन अब तक सरकार ऩे कोई रिपोर्ट नहीं दिया. हम लोगों ऩे
राजपाल को बोले- महामहिम, सरकार रिपोर्ट नहीं देगी,,कारण की सरकार ही हाई
कोर्ट को भी गुमराह किया है..की जमीन का अधिग्रहण हो चूका है..
11 जून को ठेकेदार के लोग जमीन का चहरदिवारी बढ़ाने के लिए दूसरी तरफ खोदने
लगे। इसी बीच 5-6 लोगों ने उन लोगों से अग्राह किये-अभी केस कोर्ट में है
इसलिए इधर अभी काम आगे मत बढ़ाइये। इस पर ग्रामीणों सौंकड़ों ग्रमाीणों पर
मार-पीट, काम में बाधा डालने का आरोप लगा कर केस किया गया। यहां समझने की
जरूरत है-कि अपने ही खेत की बात करने वाले करने वाले किसानों पर अभी तक 4 बार
केस किया जा चूका है। ये कैसा लोकतंत्र है? और आखिर न्यायपालिका किसके लिए है?
सिर्फ सरकार के लिए, अमीरों के लिए? आखिर आदिवासी-मूलवासी किसानों के न्याय के
लिए कहीं कोई जगह है?
मैं आप लोगों को याद दिलाना चाहती हु की आप के घर में यदि एक चूहा घुस जाता
है, आप के कमरे में वह घुमने लगता है-तब आप उसको देखकर असुरक्षित महसूस करने
लगते हैं। और आप उसे कमरा बंद करके उसे जान से मारने की कोशीश करते हैं। जब
आप उसे से मारते हैं-जब तक उनके देह में ताकत होता है-वह अपनी बचाव में आप पर
भी झपटने की कोशीश करता है। दांत मारने की कोशीश करता है।
4 जुलाई के लाठी चार्ज के बाद 13 ग्रामीणों पर केस किया गया। इसमें प्रशासन ने
धारा 307 भी लगाया गया है। एक दूसरा केस वहां निमार्ण कार्य कर रहे पटना के
ठेकेदार ने सरकारी काम में बाधा डालने का आरोप लगा कर केस किया इसके आधार पर
धारा 353 भी थोपा गया है। आज चार किसान होटवार जेल से बंद हैं।
सरकार द्वारा जबरन जमीन कब्जा को रोकने की मांग को लेकर 6 जुलाई को कोर कमेटी
के सदस्य, नगड़ीवासी, सहयोग संगठन के लोग मिल कर शिबू सोरेन के पास मिलने के
लिए गये उनके आवास में। हम लोगों ने पूरी बात उनके सामने रखे। गुरूजी बोले-आप
लोगों का जमीन लूटा जा रहा है, आप लोग लड़ रहे हो, चोट भी लगी है, केस हुआ है
जेल भी जाओगे। जेल जाओगे -तो हम तुम लोगों के साथ रहुंगा।
मैं आप से कहना चाहती हुंं-हम लोग अपनी कृर्षि भूमिं की रक्षा के लिए 150 दिन
तक अपने ही खेत में सत्यग्रह आंदोलन-धरना में बैठे रहे। लेकिन हम पर धारा 307
और 353 जैसा संगीन अरोप लगा कर हम ग्रामीणों को अपराधी करार दिया जा रहा है।
नगड़ी के ग्रामीणों का जमीन वापसी के समर्थन में 25 जुलाई 2012 को झारखंड बंद
का अहवान किया गया था। 24 जुलाई की शाम को कई समर्थक संगठनों द्वारा रांची के
अर्बट एक्का चैक में मशाल जुलूस निकाला गया। 25 जुलाई की सुबह 8 बजे से ही बंद
समर्थक रोड़ में उतरे। नगड़ी के ग्रमीण भी बंद के सर्मथन में रोड़ में उतरे।
बंद के दौरान शहर के विभिन्न इलाकों में छिट पुट तोड़-फोड़ की घटनाएं घटी।
25 को बंदी के दौरान हुए तमाम घटनाओं के लिए हम लोगों को जिम्मेवार ठहराया
गया। बंद का असर गुमला जिला, रामगढ जिला, धनबाद, बोकारो, गिरिडीह और रांची में
रहा। प्रशासन ने माले के जनार्दन प्रसाद, बहादुर उरांव, गुनी उरांव, ग्लेडशन,
मैं सहित तीन सौ लोगों पर कोतवाली थाना में एफ आई आर दर्ज हुआ। प्रताप,
ग्लेडशन और मेंरे उपर लालपुर थाना भी केस दर्ज हुआ। मेरे उपर लोअर बाजार थाना
में दो केस दर्ज किया गया। पुलिस 28 जुलाई को गिफितार करने के लिए भी आयी,
लेकिन तब मैं नगड़ी में ही थी। इस तरह से सरकार का राज्य प्रयोजित दमन नगड़ी
को ले कर चल रहा है। Askhir Nagdi ke Dard ko koun Samjhe..???
Iske liye koun Jimmewar hai.?????????

Tuesday, August 7, 2012

NAGDI KE GRAMINON KA DARD KOUN SAMJHE

25 जुलाई बंदी के दौरान जो तोड़-फोड़ हुआ, खून बहा वहा, यह दुखद रहा। जो नहीं होना चाहिये था। हिंसा से किसी भी समस्य का हल नहीं निकलता है। नगड़ी का आंदोलन भी अहिंसा के रास्ते ही यहां तक पहूंचा है, जो अपने भीतर कई दर्द और सवालों को दबाये रखा है। 25 की घटनाओं को तो दुनिया के सामने रख ही दिया गया है। लेकिन नगड़ी के ग्रामीणों का क्या कसूर है? 7 जनवरी 2012 को बेकसूर 12 ग्रामीणों पर निर्माण कार्य में बाधा डालने का केसा थोपा गया। इस केस में हर तीसरे दिन एसडीओ कोर्ट में हाजरी देना पड़ता था। 9 जनवरी 12 से सैंकड़ों पुलिस फोर्स खेत में उतार कर चहारदिवारी का काम प्ररंम्भ किया सरकार ने। 9 जनवरी 2012 के बाद ग्रामीणों को अपने खेत में उतरने पर रोक लगा दिया गया । कोई खेत में जा नहीं सकता है। पूरे 227 एकड़ जमीन में 144 धारा लगा दिया गया और पूरे खेत में सैंकड़ों पुलिस बल को तैनात कर दिया गया। खेत में गाय-बैल, मुर्गी-चेंगना को भी चरने के लिए जाने नहीं दिया जाता था। बाद में आंदोलन तेज होने के साथ ही बैल-बकरियों,  को खेत में चरने दिया जाने लगा। नदी के किनारे 100 एकड़ से अधिक जमीन में किसान गेहुं, चना, आलू, मटर, गोभी, आदि सब्जी लगा दिये थे-सबको पुलिस वाले बुलडोज कर दिये। 
सच क्या है? 
सरकार कहती है 1957-58 में इस जमीन का अधिग्रहण किया गया है। दूसरी तरफ ग्रामीण आज भी इस जमीन पर खेती कर रहे हैं, जमीन का जमाबंदी दे रहे हैं। सच क्या है इसकी तड़ताल करने के लिए मैंने भूमिं अर्जन विभाग में आर टी आई के तहत सूचनाएं मांगी-कि राजेंन्द्र कृर्षि बिश्वा विद्यालय के लिए कुल कितना एकड़ जमीन, किन किन किसानों का, खाता ना0, प्लोट ना0 और रकबा सहित जानकारी दें, साथ ही यदि किसानों का जमीन अधिग्रहण किया गया है-तो उस जमीन का कीमत किसानों को किस दर से भुगतान किया गया है-इसकी जानकारी मनी रिसिप्ट के साथ उपलब्ध करायें। इन सभी सवालों को उत्तर देते हुए भूमिं अर्जन विभाग ने 29 फरीवरी 2012 को लिखित उत्तर दिया, जिसमें लिखा हुआ हैं कि-1957-58 में जब जमीन अधिग्रहण किया गया उस समय 153 राईयत थे-इसमें से 128 राईयतों ने पैसा लेने से इंकार कर दिये, इसलिए वह राशि रांची कोषागार में जमा है। 
भू-अर्जन विभाग द्वारा 29 फरवरी को प्रप्त लिखित उत्तर के अनुसार 57-58 में बिरसा एग्रीकलचर यूनिर्वसिटी के लिये जमीन अधिग्रहण किया गया था। सही तथ्य क्या है-इसको समझने के लिए मैंने बिरसा एग्रीकलचर यूनिर्वसिटी में भी आर टी आई डाली। जिसमें निम्न जानकारी मांगी थी-
1-purbotar  राज्य सरकार (बिहार) द्वारा 1957-58 में राजेंन्द्र कृर्षि बिश्वबिद्यालय / बिरसा कृर्षि बिश्वबिद्यालय  कांके के नाम पर नगड़ी थाना सं0 53 में कितना एकड़ भूमिं अधिग्रहण किये है? 
2-किन किन रैयतों का जमीन कौन सा खाता नं0, प्लाट नां0 एवं कितना रकबा अधिग्रहण किया गया हे?
3-जिन रैयतों की जमीन बिश्वबिद्यालय अधिग्रहण किया गया है, उन्हें जमीन का कीमत कितना भुगतान किया गया, पावती रसीद सहित
4-रैयतों को जमीन को कीमत किस दर से भुगतान किया गया है, यदि जमीन को अधिग्रहण किया गया है तब उसका उपयोग आप किस उद्वे’य से अब तब करते आये हैं?
उपरोक्त तीन सवालों का जवाब निदेशालय, बीज एवं प्र+क्षेत्र बिरसा कृर्षि विश्वाविद्यालय कांके रांची ने-दिया है कि-इसकी कोई जानकारी निदेशालय बीज एवं प्रक्षेत्र में नहीं है। चैथा सवाल का जवाब में इन्होंने कहा है-निदेशालय बीज एवं प्रक्षेत्र द्वारा किसी प्रकार का जमीन अधिग्रहण के फलस्वरूप भुगतान नहीं किया गया न ही उक्त जमीन का किसी प्रकार को उपयोग किया गया। 
इसके पहले का रिकोट को भी देखने की जरूरत है। 2008 में इसी जमीन होते हुए रिंग रोड़ बनाने की योजना आयी, अधीक्षण आभियानता पथ  निर्माण विभाग ने भू-अर्जन विभाग से नो ओबजेक्शान  सर्टिफिकेट मांगा, तब भू-अर्जन विभाग ने पथ निर्माण विभाग को जवाब दिया, उक्त जमीन बिरसा कृर्षि बिश्वबिद्यालय कांके के मालिकाना के अधिन है, इसलिए नो ओबजेकशान  सर्टिफिकेट बिरसा  कृर्षि  बिश्वबिद्यालय कांके से मांगा जाए। इसी निदेशानुसार पथ निर्माण विभाग ने बिरसा  कृर्षि विश्वाविद्यालय कांके को पत्र लिखा। 
पथ निर्माण विभाग के पत्र के जवाब में बिरसा  कृर्षि विश्वाविद्यालय कांके अपने पत्रांक एफ 39-369@08, दिनांक 17@2@08 को लिखा-जिन प्लोटों एवं रकबों का वर्णन आप के पत्र में है-के आलोक में यह सूचित करना है कि अभी तक भूमिं को विश्वाविद्यालय अधिग्रहित ही नहीं कर पायी है, इसलिए उक्त भूमिं का अनापति प्रमाण पत्र निर्गत करने का प्रशन  ही नहीं उठता है। 
भू- अर्जन विभाग के इस लिखित उत्तर प्रप्ती के बाद अपनी कृर्षि भूमिं की रक्षा के लिए 4 मार्च 12 से लगातार चिलचिलाती धूप में 150 दिनों तक नगड़ी चांवरा में सत्यग्रह-धरना में बैठे रहे।  इस दौरान हमारी माँ, बेटियां, बहुएं, बहनें, स्कूल के बच्चे, कॉलेज  के बच्चे, माँ -बाप सभी चिलचिलाती धूप में भी धरना स्थल में डटे रहे। गरमी के दिन में पेड़ की टहनियों -पत्तियों से बने छावनी में दिन-रात बिताये। बरसात भी पहुंच गया। बरसात में तिरपाल के छत के नीचे रात को भी वहीं खुला आशमान के नीचे, अपनी जमीन बचाने के लिये रात बिताये। तब किसी का दिल क्यों नहीं पिघला? मानवता के नाते इनके जिंदगी के दर्र्द को न तो किसी अखबार ने, न ही किसी व्यक्ति ने महसूस किया। 
इस दौरान लू लगने से हमारी तीन माँ -1-मुंदरी उरांव 2-दशमी केरकेटा 3-पोको तिर्की की मौत हो गयी। सवाल है-आखिर इनकी मौत के लिए कौन जिम्मेवार है, इनके हत्यारे कौन हैं? सत्यग्रह आंदोलन-धरना शुरू होने के बाद 6 मार्च से चहरदिवारी निमार्ण का कार्य 30 अप्रैल तक बंद रहा। लेकिन किसानों का सत्यग्रह धरना नगड़ी चांवरा में जारी रहा। इस बीच बार अशोशियेशन  ने निमार्ण कार्य को पुना प्ररंम्भ करने के लिए हाई कार्ट में पीआईएल दायर किया। इसका फैसला देते हुए 30 अप्रैल को हाई कोर्ट ने आदेश  दिया-48 घंण्टे के भीतर निमार्ण कार्य शुरू करो। बार अशिशियेशन ऩे कहा की- लो कॉलेज में पढने वाले लड़के-लड़कियों के लिए क्लास रूम की कमी हो रही है. इसलिए जल्दी निर्माण कार्य पूरा किया जाय.
2 मई को हजारों पुलिस फोर्स नगड़ी चांवर में फिर से उतारा गया। (कई बटालियन से) पांच थाना की पुलिस को भी उतारा गया। पांच मजिस्ट्रट को लगा दिया गया। एसडीओ श्री शेखर जमूआरजी सत्यग्रह धरना स्थल सौकड़ों पुलिस बल के साथ पहुंचे वे -ग्रामीणों से बोले, आप लोग यहां से हट जाओं काम ’शुरू करने जा रहे हैं-और नहीं हटोगे तो इसका अंजाम उठाने के लिए तैयार रहो। एक स्वर में धरना स्थल के साथियों ने जवाब दिया-आप को गोली चलाना है चला दिजीए-लेकिन अपने जमीन से हम नहीं हटेगें। 
ग्रामीण दिन-रात सत्यग्रह धरना स्थल में ही जमे रहे। माँ -बाप धरना हैं-छोटे स्कूली बच्चे भी साथ में खेत में ही रहते थें। यहीं से स्कूल जाते थे, स्कूल से वापस यहीं लौटते थे और स्कूल का होमवार्क, स्टटी यहीं करते थे। कोलेज में पढ़ने वाले 70-80 युवक-युवातियां भी काजेल जाना छोड़ कर धरना स्थल में जमे रहे, अपना जमीन बचाने के लिएं। इस बीच नगड़ी सत्यग्रह धरना में बैठे दर्जनों विद्यार्थीयों ने मैट्रीक की परिक्षा दी, इसमें अधिकांश  फेल हो गये, जो कभी स्कूल में एक बार भी फेल नहीं हुए थे। कई लड़के-लड़कियां एसएससी का कमपिटिशन लिखे, लेकिन फेल हो गये, कारण की जमीन बचाने के लिए धरना में बैठे रहे। 
हमारा सवाल है- बार अशोशियेशन लो कॉलेज में पढने वाले बिद्यार्थियों के लिए चिंतित है..की उनके लिए क्लास रूम नहो हो रहा है..लेकिन नगदी के किसानो के इन बच्चों की निंदगी का कोई कीमत नहीं है ? जो आज अपना जिंदगी उजड़ता देख, नगदी चंवरा में दिन रात सत्याग्रह-धरना में बैठ रहे हैं, scool - कॉलेज छोड़ कर..इनके लिए कौन जिमेवार है ? क्या इन बच्चों को औरों   की तरह जीने का अधिकार नहीं है..?  
दूसरी ओर पुलिस फोर्स लगाकर सरकार चहरदिवार का निमार्ण कार्य को आगे बढ़ाता रहा। धरना स्थल में बैठे ग्रामीण एक -एक ईंट से अपने खेत को घेरा बंदी कर कब्जा करते निरीह निगाहों से दिखते रहे। धरना स्थल में एक साथ खिजड़ी पका कर खाते थे। दोपहर को खाने के समय दिल को दहला देने वाली स्थितियों का भी सामना करना पड़ रहा था। थाली में भात, हाथ थाली के भात में है, और एक टक नजर अपने खेत में खड़ा हो रहा दिवार पर है, आंसू आंख से बहते हुए गाल में पानी के बुंद की तरह लुढ़क रहा है। कई बार टोकने पर भी कोई आवाज नहीं, न तो पलक ही झपक रहा है। 
सत्यग्रह स्थल के नीचे चांवरा में किसानों का एक कुंआ है-वहीं से धरना स्थल के लिए पानी ले जाते थे। बाद में इस कुंआ को भी घेर लिया गया। ग्रामीणों ने अग्राह किया कि पानी लेने के लिए रास्ता छोड़ दिया जाए, लेकिन ठेकेदार के लोगों ने नहीं माना। पानी लाने गयी महिलाओं के साथ बसह हुआ-तब वहां फिर से पुलिस कांके थाना को बुला लिया गया। अब पानी के लिए दिक्क्त होने लगा। अब गांव से ही लोग पानी लेकर आ रहे थे। 
हम लोगों ने अपनी मांगों को लेकर लोकतत्रिक व्यवस्था में जनता की बात-समस्याओं को रखी और सुनी जाने वाली सभी मंचों पर ले कर गये। जनवरी 12 से जून 2012 तक चार बार महामहिम राज्यपाल के पास लिखित मांग के साथ गये। एक बार डीसी के पास, एक बार कमिश्नर  के पास गये। एक बार उप मूख्यमंत्री श्री सुदेश कुमार महतोजी, एक बार उप मुखिया मंत्री  श्री हेमंत सोरेन एवं गुरूजी श्री शिबू सोरने के पास गये। सभी अधिकारियों को अपनी मांग के साथ, आई आई एम और लाॅ कालेज बनाने के लिए कांके प्रखंड में उपलब्ध बंजर भूमिं को देखने -का भी सूझाव दिया गया। ग्रामीण लिखित देते रहे कि हम लोग लो  कालेज और आई आई एम का विरोध नहीं कर रहे हैं-लेकिन हमारी जीविका -कृर्षि भूमिं, जो हमारा जीविका का एक मत्र साधन है को उजाड़ कर नहीं। लेकिन न तो सरकार हमारी मांगों पर ध्यान देना चाहा, न ही सुझाव पर ।
न्यायपालिका भी हमारे साथ नहीं है
 लोकतंत्र में जनता की समस्याओं को सुनने का जो, सबसे महत्मपूर्ण जगह है-वह है न्यायालय। ग्रामीणों ने अपनी समस्या को लेकर मननीय उच्च न्यायालय भी गये। जब देश  के विकास में सहयोग करने की बात है-तो नगड़ी क्षेत्र से गुजरने वाली निमार्णधीन रिंग रोड़ के लिए जमीन की जरूरत थी तो ग्रामीणों ख़ुशी  से जमीन देने के लिए तैयार हो गये। रिंग रोड़ के लिए लिये जा रहे जमीन का मुआवजा दूसरे सभी गांवों के जमीन मालिकों को मिला, लेकिन नगड़ी के ग्रामीणों को जब सरकार नहीं दे रही है, तब ग्रामीणों ने रिंग रोड़ में जा रहे 13.47 एकड़ जमीन के लिए ग्रामीणों ने मुआवजा के लिए हाई कोर्ट में गये। कोर्ट ने रिंग रोड़ में जा रहे 13.47 एकड़ का फैसला नहीं सुनाया, बल्कि 227 एकड़ जमीन का फैसला देते हुए कहा-15 प्रतिशत व्याज राशि  बढ़ा कर ग्रामीणों को मुआवजा दिया जाए। यहां यह साफ होना चाहिए कि ग्रामीण जमीन का पैसा न तो 1957-58 में लिये आज भी लेना नहीं चाहते हैं। 
इस फैसला के बाद भी ग्रामीणों का अस्था उच्चतम न्यायालय के प्रति नहीं कम हुआ। दूसरी बार मई 2012 में ग्रामीण फिर अपनी बात कहने के लिए उच्चतम न्यायालय पहुंचे। लेकिन ग्रामीणों को यह पता नहीं था कि-जिस न्यायालय में न्याय मांगने की अर्जी कर रहे हैं-उस न्यायालय के मननीय न्याय मूर्ति -जज उस लाॅ यूनिर्वसिर्टी के चंश्लर -वीसी हैं, जिस लो  यूनिर्वसिटी के लिए पुलिस के बल पर नगड़ी के राईयतों का जमीन कब्जा किया जा रहा है। यही कारण है कि हाईकोर्ट से ग्रामीण को न्याय नहीं मिला। 16 मई को हाई कोर्ट ने किसानों के केस को खारिज कर दिया। 
हाई कोर्ट से जब ग्रामीणों को न्याय नहीं मिला, तब ग्रामीणों ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली। यहां पर मैं यह कहना चाहती हुं कि दो-दो बार हाई कोर्ट ने ग्रामीणों के खिलाफ फैसला दिया, फिर भी न्यायपालिका के प्रति ग्रामीणों का अस्था बना रहा। ग्रामीण सुप्रीम कोर्ट की ओर आशा  भरी नजरों से न्याय का इंतजार करते रहे। अततः 28 जून 2012 को नगड़ी का फाईल सुप्रीम कोर्ट के जज जीएल गोखले और रंजना देशई के डबल बेंच में दिन के 11 बजे पहुंची। मननीय जज ने यह कहते फाईल को एक किनारे फेंक दिये कि यह 50 साल पुराना केस है, इसको रिओपन क्यों कर रहे हो, इसको हम सुन नहीं सकते हैं। 
मथुरा समिति के सामने 16 जुलाई को ग्रामीणों ने अपनी बात रखी कि-हमारी कृर्षि भूमिं का कभी अधिग्रहण नहीं हुआ है, सरकार हमारी खेती की जमीन को जबरन छीन रही है, हम अपनी कृर्षि भूमिं  किसी भी कीमत पर नहीं देगें। अखबार में मैं पढ़ी थी-कि नगड़ी के केस को उचित मंच में ले जाना चाहिए था। मैं जनना चाहती हुं कि-उपरोक्त जगह जहां जहां हम लोग गये क्या इससे भी और कोई उचित मंच है इस लोकतंत्र में।
बरसात पहुंच गया। खेती करने के लिए किसान अपने खेतों में हल चलाने के लिए उतरे। तब भी किसानों को पुलिस बल बुला कर चह चलाने से रोकने की कोशीश  की गयी। पुलिस और ग्रामीणों के बीच बहस हुआ। आतंक में जी रहे किसान अपने खेतों में खेती करने नहीं उतर पा रहे हैंं। जब हल जोतने किसान खेतों में उतरते हैं-अखबारों में खबरें छपती है-ग्रामीणों ने आई आई एम की जमीन पर हल चला दिया, तो कभी अखबारों में छप रहा है  कि-ट्रिपल आई टी के जमीन पर किसानों ने हल चला दिया। किसान हैरान हैं-कि हमने तो अपना खेत में हल चलाया-लेकिन हम पर यह अरोप क्यों लगाया जा रहा है-कि हमने आई आई एम की जमीन पर हल चला दिया?
4 जुलाई के लाठी चार्ज में दर्जनों महिलाएं घायल हुई। कई बुजुर्ग महिलाओं का हाथ टुटा। जिनकी उम्र 45 से 65 साल तक है। दो महिला साथियों को घायल अवस्था में ही अरेस्ट किया गया। बंधनी टोप्पो( लगभग 45) और जामी( 55) को। 12 दिनों तक रिम्स में पुलिस कस्टटी में इलाज चलता रहा। थोड़ा ठीक होने पर दोनों को होटवार जेल में बंद कर दिया गया। दो पुरूष साथी को 4 जुलाई की रात को ही जेल भेज दिया गया। आप लोगों को यह भी बताना जरूरी है कि-बंधनी टोप्पो के पति एक दरोगा हैं और जामी का बेटा और बहु दोनों झारखंड पुलिस में हैं। इससे ज्यादा सादगी और इमानदारी का, और कौन सा मिसाल नगड़ी के ग्रामीण दे सकते हैं? 
कानून के संगरक्षक ही कानून की धजियां उड़ा रहे हैं
नगड़ी के जिस खेती की जमीन को सरकार अधिग्रहित मानती है, वह गलत तरीके से अधिग्रहण किया गया है। तत्कालीन राजेंन्द्र एग्रीकलचर यूनीर्वसीटी के लिए जिस 227 एकड़ जमीन को 1957-58 में सरकार भूमिं अधिग्रहण कानून 1894 के धारा 4, धारा 5, धारा 6, धारा 7 और 9 के तहत अधिग्रहित बता रही है वह गैर कनूनी तरीके से अधिग्रहण किया गया है। धारा 4 में किसी अरजेंन्सी केस के किसी भूमिं अधिग्रहण करने का प्रावधान है। यदि एग्रीकलचर यूनिर्वसिटी के लिए जमीन अधिग्रहण करना अरजेंन्सी था-तब 50 साल तक उस जमीन अधिग्रहण क्यों नहीं किया गया। सवाल दूसरा यह है-कनून कहता है-जिस जमीन को जिस परपस से आप अधिग्रहण कर रहे हैं-उस जमीन का जिस परपस से लिया गया है, उसके लिए यदि 10 साल तक उपयोग नहीं किया गया-तब वह जमीन स्वतः मूल राईत को वापस हो जाएगा।
कानून की बात करें तो यह-भारतीय संविधान में पांचवी अनुसूचि में आता है, इस इलाके के लिए कानूनी प्रावधान है कि-जिस भी योजना के लिए जमीन अधिग्रहण किया जाएगा-संबंधित ग्राम सभा या ग्रामीणों से सहमति लेना जरूरी है। इस संबंध में धारा 5 के तहत ग्रामीणों की सहमति के लिए आम सभा बुलायी जाती है। नगड़ी के जमीन अधिग्रहण के सवाल को लेकर 1957-58 में भी आप सभा के लिए सरकारी अधिकारी नगड़ी आये थे। लेकिन ग्रामीणों ने हम अपना जमीन किसी भी कीमत में नहीं देगें की घोषणा करते हुए, आम सभा के लिए आए सरकारी अधिकारियों को गांव से खदेड़ दिये थे। उस समय जमीन अधिग्रहण के खिलाफ कई सालों तक आंदोलन चला। यही कारण है कि-सरकार जमीन का मुआवजा देने की कोशीश  की थी-लेकिन ग्रामीणों ने पैसा लेने से इंकार कर दिया। जिस पैसा को सरकार रांची टेजरी में जमा है कहती है। 
9 जून को 2012 को ग्रामीणों ने बिरसा शहादत दिवस के दिन राज्यपाल से जवाब मांगने के लिए कि-हमारी जमीन, हमारी सहमति के बिना क्यों कब्जा किया जा रहा है? के सवाल के साथ राजभवन का घेराव किये। अपनी लिखित मांग इस बार भी रैयतों ने महामहिम को सौंपे। मांग पत्र सौपते हुए महिला साथी -नंदी कचाप जी ने ग्रमीणों की पीड़ा को रखी-बोली, महामहिम आप के पास पहले ही हमलोग अपनी जमीन बचाने के लिए आप के पास आ कर अपनी दुख का बयान कर चुके हैं। महामहिम -अब हम लोग आप के पास और नहीं आएगें, पानी बरसेगा-हम लोग खेत जोतेगें, खेती करेगें, आप के पास पुलिस है, पुलिस गोली चालाएगी, हम लोग खेत में ही मर जाना चाहते हैं-लेकिन भूमिंहीन हो कर जीना नहीं चाहते हैं।
इसके उतर में महामहिम ऩे कहा- आप लोगों की समस्या को लेकर मैंने दो बार सरकार को पात्र लिखा, लेकिन अब तक सरकार ऩे कोई रिपोर्ट नहीं दिया. हम लोगों ऩे राजपाल को बोले- महामहिम, सरकार रिपोर्ट नहीं देगी,,कारण की सरकार ही हाई कोर्ट को भी गुमराह किया है..की जमीन का अधिग्रहण हो चूका है..
11 जून को ठेकेदार के लोग जमीन का चहरदिवारी बढ़ाने के लिए दूसरी तरफ खोदने लगे। इसी बीच 5-6 लोगों ने उन लोगों से अग्राह किये-अभी केस कोर्ट में है इसलिए इधर अभी काम आगे मत बढ़ाइये। इस पर ग्रामीणों सौंकड़ों ग्रमाीणों पर मार-पीट, काम में बाधा डालने का आरोप लगा कर केस किया गया। यहां समझने की जरूरत है-कि अपने ही खेत की बात करने  वाले करने वाले किसानों पर अभी तक 4 बार केस किया जा चूका है। ये कैसा लोकतंत्र है? और आखिर न्यायपालिका किसके लिए है? सिर्फ सरकार के लिए, अमीरों के लिए? आखिर आदिवासी-मूलवासी किसानों के न्याय के लिए कहीं कोई जगह है?
मैं आप लोगों को याद दिलाना चाहती हु  की आप के घर में यदि एक चूहा घुस जाता है, आप के कमरे में वह घुमने लगता है-तब आप उसको देखकर असुरक्षित महसूस करने लगते हैं। और आप उसे कमरा बंद  करके उसे जान से मारने की कोशीश करते हैं। जब आप उसे से मारते हैं-जब तक उनके देह में ताकत होता है-वह अपनी बचाव में आप पर भी झपटने की कोशीश  करता है। दांत मारने की कोशीश  करता है। 
4 जुलाई के लाठी चार्ज के बाद 13 ग्रामीणों पर केस किया गया। इसमें प्रशासन ने धारा 307 भी लगाया गया है। एक दूसरा केस वहां निमार्ण कार्य कर रहे पटना के ठेकेदार ने सरकारी काम में बाधा डालने का आरोप लगा कर केस किया इसके आधार पर धारा 353 भी थोपा गया है। आज चार किसान होटवार जेल से बंद हैं। 
सरकार द्वारा जबरन जमीन कब्जा को रोकने की मांग को लेकर 6 जुलाई को कोर कमेटी के सदस्य, नगड़ीवासी, सहयोग संगठन के लोग मिल कर शिबू  सोरेन के पास मिलने के लिए गये उनके आवास में। हम लोगों ने पूरी बात उनके सामने रखे। गुरूजी बोले-आप लोगों का जमीन लूटा जा रहा है, आप लोग लड़ रहे हो, चोट भी लगी है, केस हुआ है जेल भी जाओगे। जेल जाओगे -तो हम तुम लोगों के साथ रहुंगा। 
मैं आप से कहना चाहती हुंं-हम लोग अपनी कृर्षि भूमिं की रक्षा के लिए 150 दिन तक अपने ही खेत में सत्यग्रह आंदोलन-धरना में बैठे रहे। लेकिन हम पर धारा 307 और 353 जैसा संगीन अरोप लगा कर हम ग्रामीणों को अपराधी करार दिया जा रहा है। नगड़ी के ग्रामीणों का जमीन वापसी के समर्थन में 25 जुलाई 2012 को झारखंड बंद का अहवान किया गया था। 24 जुलाई की शाम  को कई समर्थक संगठनों द्वारा रांची के अर्बट एक्का चैक में मशाल जुलूस निकाला गया। 25 जुलाई की सुबह 8 बजे से ही बंद समर्थक रोड़ में उतरे। नगड़ी के ग्रमीण भी बंद के सर्मथन में रोड़ में उतरे। बंद के दौरान शहर के विभिन्न इलाकों में छिट पुट तोड़-फोड़ की घटनाएं घटी।
25 को बंदी के दौरान हुए तमाम घटनाओं के लिए हम लोगों को जिम्मेवार ठहराया गया। बंद का असर गुमला जिला, रामगढ जिला, धनबाद, बोकारो, गिरिडीह और रांची में रहा। प्रशासन ने माले के जनार्दन प्रसाद, बहादुर उरांव, गुनी उरांव, ग्लेडशन, मैं सहित तीन सौ लोगों पर कोतवाली थाना में एफ आई आर दर्ज हुआ। प्रताप, ग्लेडशन और मेंरे उपर लालपुर थाना भी केस दर्ज हुआ। मेरे उपर लोअर बाजार थाना में दो केस दर्ज किया गया। पुलिस 28 जुलाई को गिफितार करने के लिए भी आयी, लेकिन तब मैं नगड़ी में ही थी। इस तरह से सरकार का राज्य प्रयोजित दमन नगड़ी को ले कर चल रहा है।

Saturday, June 2, 2012

WITHE C.K. JANNU



WITH C.K . JANU IN KERALA PROGRAMME..ON 24 MARCH 2012

Monday, May 21, 2012

6134 करोड़ रूपया के घाटा के लिए आखिर कौन जिम्मेवार है?????????????? क्या सरकार जिम्मेवार नहीं है?????????????????????

महंगी होगी बिजली.........
6134 करोड़ रूपया के घाटा के लिए आखिर कौन जिम्मेवार है??????????????
क्या सरकार जिम्मेवार नहीं है?????????????????????
यह आम जनता???????????
अगर सरकार जिम्मेवार है तब....इसका बोझ आम जनता क्यों उठाये??????????????
नए टैरीफ के अनुसार आम उपभोक्ताओं पर प्रति यूनिट 25 से 30 पैसे का अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा जबकि कोमर्शियल उपभोक्ताओं को 30 से 90 पैसे अतिरिक्त देने होगें। जेएसइबी की ओर से सौंपे गये प्रस्ताव में 20 फीसदी बिजली की दर बढ़ाने का प्रस्ताव है।
प्रस्ताव के तहत बोर्ड ने हर माह 308 करोड़ रूपये राजस्व का लक्ष्य रखा है। वर्तमान टैरिफ में 2500 करोड़ रूपये सालाना राज्यस्व का प्रावधान है। इसकी वजह है बिजली बोड हर माह लगभर 250 करोड़ रूपये की बिजली खरीद रहा है।
रविवार को जमशेदपूर में हुई जनसूनवाई आयी सूचनाअनुसार जेएसइबी का टीवीएनएल, डीवीसी के्रन्द्र और राज्य सरकार, पेंड्रिंग केस सर्टिफिकेट केस और सीसीएल के पास 6134 करोड़ रूपया बकाया है जिसको सरकार घाटै के रूप में प्रस्तूत कर रही है। इनत माम घाटों को पटाने को बोझ सरकार पर डाल रही है।
बिजली बोड का बाकाया.............
टीवीएनएल... 2000 करोड़
सीसीएल.......430.90 करोड़
डीवीसी.........2500 करोड़
बोर्ड का दावा.....600 करोड़

Thursday, May 17, 2012

यह कैसा न्याय व्यवस्था है ??????????? चिट भी आप का पट भी आप का




यह कैसा न्याय व्यवस्था है ???????????
चिट भी आप का पट भी आप का
कांके नगड़ी में आई आई एम और लो कालेज के लिए 227 एकड़ जमीन राईयतों के हाथ से जबरजस्ती पुलिस के बल पर छिना जा रहा है। इसको लेकर राईयतों ने हाईकोट में जनहित याचिका दर्ज किये 3 मई 12। केस ना0 २३४७/12 का सुनवाई 16 मई 12 को शाम 4 बजे कोट १ में चीफ जस्टिस न्यायमूर्ति प्रकाश टाटिया व न्यायमूर्ति अपरेश कुमार सिंह की खंडपीठ ने ग्रामीणों की हस्तक्षेप याचिका पर सुनवाई करते हुए खारिज कर दिया। विदित हो कि जिस लो कोलेज के लिए राईयतों का जमीन अधिग्रहण किया जा रहा है उसका चान्सलर न्यायमूर्ति प्रकाश टाटिया ही हैं।

Sunday, April 29, 2012

sathiyon ka sath chahiye

kuch दिनों से तकनिकी दिकतें आ रही है...इससे समझने की कोशी कर रही हूँ...

Tuesday, April 17, 2012

लोग मुझ से पूछते हैं-तुम कब इस लाईन याने सामाजिक सेवा में हो, कैसे इस लाइन में आने की सोची, तुम्हारा जन्म कब हुआ है ? इन तीन सवालों का जबाव मेरे पास न

लोग मुझ से पूछते हैं-तुम कब इस लाईन याने सामाजिक सेवा में हो, कैसे इस लाइन में आने की सोची, तुम्हारा जन्म कब हुआ है ? इन तीन सवालों का जबाव मेरे पास नहीं हैं। कब से ? मैं नहीं जानती । इसलिए की जब से मैं होश संभाली मैं कभी अपने परिवार को लूटाते देखी, कभी पूरा समाज को लूटाते तो कभी पूरा राज्य को लूटाते देखते आ रही हूँ । 10-12 साल की उम्र की मैं थी तब अपने माता-पिता को लूटाते देखी। मेरे अनपढ़ पिताजी को सादा कागज में अंगुठा का निशान लगवा कर पिता जी को मिला मझियस जमीन को गुमला कोर्ट में गुमला जिला के कमडारा प्रखंड के सालेगुटू के साहू के नाम कर दिया गया। मेरा परिवार जमीन वापस पाने के लिए कई सालों तक अरहारा गांव से गुमला कोर्ट दो दिनों तक पैदल चल कर लड़ते रहे। साहू परिवार और ओहदार परिवार ने गांव वालों को इतना धमकी दे रखा था कि मेरे पिता के तरफ से एक भी गवाही देने कोर्ट खड़ा नहीं हो सके।
मेरे माता-पिता 10-12 एक जमीन के मालिक थे। अब भूमिंहीन हो गये ।साल भर खूद खाते और दूसरों को भी खिलाते थे-अब पूरा परिवार दूसरों का नौकर बन गये। चैथा क्लास में ही मैं परिवार विलीन हो गयी। पिता जी दूर दूसरे गांव में धांगर, मझिला बडा+ भाई, अपने ही गांव में दूसरों घर नौकर, माँ रांची में अमीरों के घर दाई, मझिला बड़ा भाई रांची में कुली। मैं और मुझसे बड़ा भाई अपने घर में। जो खाली घर रह गया था। गाय-बैल-भैंस, बकरी, सुवर सभी केस सभी केस लड़ते लड़ते बिक चुके।

१२-१३ साल की उम्र से दूसरों के खेत-टांड में मजदूरी कर जिंदगी नयी यात्रा शुरू की। महुआ, लाह, करंज, आम, कटहल, इमली, डुमर, पाकर, बर, साग-पात तोड़ कर चुन-बिन कार जीना जीवन का एक हिस्सा बन गया। लेकिन जाने-अनजाने अंगुलियों ने जो कलम-कागज थाम लिये थे, वो हमेशा साथ रहा। चिलचिलाती धूप, मूसलाधर पानी, गरती बिजली, कड़कती ढंड ने हमेशा लड़ने और जीने का हौसला बुलंद किया।

पता नहीं चला कब मिडिल स्कूल पास की। अब हाई स्कूल -ग्लोशॉप मेमोरियल हाई स्कूल भी पास की। माँ रांची में दाई-नौकरानी, भाई कुली कर रहे हैं। पता नहीं वो कहां रहते हैं-लेकिन अब वहीं खुद भी पढ़ने की इच्छा है। हाथ में आठवीं पास सर्टिफिकेट लिये रांची अकेले आ गयी। सभी नया था। एक गोलाह में गाय के साथ एक कोने में रहना, अमिरों के दाई-नौकर, धोबी, कुली-रेजा मेरे दोस्त बने।

संत मरग्र्रेट हाई स्कूल रांची की नौवीं क्लास की छात्रा भी अब मैं थी। गांव का स्कुल और यहां का जमीन और आसमान का अंतर। अपने सहपठियों का और सिक्चाकों का भरपूर प्यार और सहयोग मिला। जीने के लिए मेन रो+ड़ सुजाता चैक के पुलिस छावनी में दाई-नौकरानी का नौकरी मिला। यहां से केवल खर्च नहीं चलने लगा-तो शहर के कई घरों में स्कूल जाने के पहले और स्कूल से लौट कर वर्तन साफ करने का मौका मिला।

मन में एक ही सवाल था-परीक्षा पास करना है। काॅलेज जाना है। यह अवसर भी मिला। कई संस्थानों में पार्ट टाईम काम करके, बच्चों को टूय’ान पढ़ा कर एम कम पास भी कर गयी। जिंदगी में दो साल एक एनजीओ में काम की। यहां भी वही छलावा, झूठ-फरेब। विद्रोह कर नौकरी से बाहर। मेरे सामने दो रास्ते थे। अपना जिंदगी के लिए नौकरी के रास्ते को चुनना यह फिर आदिवासी-मूलवासी, किसानों, दलितों, और जरूरतमंदों के साथ जीना। मैं सिर्फ संघर्षपूर्ण जिंदगी ही देखी, इसके अलावे और कुछ होता होगा तो मुछे नहीं पता।

मुझे दूसरा रास्ता अच्छा लगा-जहां से आज मैं आप के बीच हूं। 1995 में वर्तमान खूंटी जिला और गुमला जिला में बह रही कोईल और कारो नदी को बांध कर 710 मेगावाट का बिजली बनाने की सरकार ने घोषणा की। इस डैम के बांध जाने से 256 गांव डैम में डूब जाते। ढ़ाई लाख की आबादी अपने रहवास-धरीहर से उजड़ जाते। कुल 55 हजार एकड़ जमीन जलमग्न हो जाता जिसमें 27 हजार एकड़ जंगल भी डूब जाता। आदिवासियों के धार्मिक-सांस्कृतिक, इतिहासिक स्थल में 107 सरना, हजारों ससन दिरी भी जलमग्न हो जाता। एक ही नारा था-जान देगें लेकिन जमीन नहीं देगें। 2000 में आठ साथियों के शहादत के बाद आंदोलन बिजय हशील किया। 1993-94 में गुमला चैनपूर और पलामू जिला के नेतरहाट के पाठ में 245 गांवों को हटा कर फील्ड फायरिंग रेज बनाने की योजना केंन्द्र सरकार की थी। 30 सालों तक फयरिंग अभ्यास यहां चलता रहा। इस दौरान 60 महिलाएं सैनिकों के सामूहिक बलात्कार का शिकार हुई।

1996 से वरिष्ठ पत्रकार श्री फैसल अनुराग और पत्रकार श्री वासवी किडो के मार्ग दर्शन में 7-8 आदिवासी युवाक-युवातियां मिलकर हम लोगों ने जनहक पत्रिका निकलाना प्ररंभ किये। जिम्मेवारी बढ़ी, गांव गांव की बातों का लेखन के मध्यम में राजतंत्र और जिम्मेदार व्यक्तियों ने सामने लाना। साथ ही पत्रिका के लिए पाठक तैयार करना। आदिवासियों के इतिहास, भाषा-संस्कृति और वर्तमान चुनौतियों पर लेखन को आगे बढ़ाने का अवसर प्रभात खबर ने दिया। 2000 में वरिष्ठ पत्रकार श्री पी साईनाथ जी की ओर से ग्रामीण पत्रकारिता के लिए काउंटर मीडिया पुरस्कार मिला। पुरस्कार में 10 हजार रू, एक कैमरा, एक टेपरेकाॅडर मिला। इसे मेरी जिम्मेवारी समाज के प्रति और अढ़ गयी। क्योंकि यह सम्मान-आदिवासी, मूलवासी, दलित, बंचित और दबे-कुचलों के आवाज को मिला।

राज्य के आदिवासियों के अपने हक अधिकार के संघर्ष में रहते हुए पहली बार 2000 में बंगला देश के आदिवासियों के बीच जाने का मौका मिला। वहां कई देशों के आंदोलन के प्रतिनिधि आये हुए थे। देश के हर कोने में चह रहे आंदोलनों को समझने का मौका मिला। साथ ही अंग्रेजों के समय झारखंड से कुली काम करने के लिए जे जाए गये आदिवासियों के बं’ाजों से मिलकर उनके पिड़ा को भी समझने का मौका मिला। 2000 अगस्त में ही झारंखड से दक्षिण अफ्रीका 5 लोगों की टीम एक्सपोजर के लिए गयी थी। उसी समय डरबन में रेशिजम पर सम्मेलन हो रहा था। उस सम्मेलन में विशव के आदिवासी मूददों को समझने का मौका तो मिला ही, साथ ही अंगे्रजी में अपनी अपना सवाल भी रखी। 25 दिनों का अफ्रीका प्रवास के दौरान ही पानी का नीजिकरण, बिजली का निजीकरण, टेलिफोन को निजीकरण आदि के वास्तविक प्रभाव को लोगों के जीवन में देखने-समझने का मौका मिला। अन्य गतिविधदियँा
1-जल, जंगल- जमीन रक्षा आंदोलन में भागीदारी- 1993 से 1994 तक नेतरहाट-फील्ड
फायरिंग आंदोलन में भागीदारी ।
1995 से आज तक कोयलकारो जल विद्युत
परियोजना के खिलाफ आंदोलन में भागीदारी
कर महिला नेतत्व खडा करना ।

2-विस्थापितों के सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक स्थिति का अघ्ययन-
(क)-एच ई सी विस्थापितों का-जिला रांची- 1999-2000 ई में
(ख)- चांडिल डैम विस्थापितों का-जिला सराईकेला खरसंवा-2000 ई में
(ग)- तुरामडीह विस्थापितों का यूसीईएल कंपनी-से विस्थापित-पूर्वी सिंहभूम-2003 ई में

(घ)- तेनुघाट डैम विस्थापितों का-जिला बोकारो- 2006 ई में

(ड.)-बोकारो स्टील प्लांट विस्थापितों का- 2006 ई में

(च)-राउरकेला स्टील प्लांट विस्थापितों का-2008 ई में-उडिसा

3-महिला हक-अधिकार- वर्तमान खूंटी जिला, गुमला जिला तथा सिमडेगा जिला के कई प्रखंडों के
गाँव गाँव में बैठक, सेमिनार, सभांए करना@ स्त्री अधिकारों पर बहस करना, स्त्री स्वास्थ्य
पर चर्चा एवं क्तव्य रखना
(क) -गांव सभा में महिलाओं की भागीदारी के लिए महिलाओं को संगठित करना
(ख)-ग्राम सभा में महिलाओं की भागीदारी के लिए

(ग)- जनआंदोलनों में महिलाओं की भागीदारी के लिए

(घ)- विकास योजनाओं में महिलाओं की भागीदारी के लिए

(ड.)-राजनीति में महिलाओं के भागीदारी के सवाल का पर

1998 से 2000 तक स्त्री स्वास्थ्य एवं परंपरागत चिकित्सा पद्वति को लेकर तोरपा
प्रखंड के गाँंवों में कार्य ।

5- 1996 के 73वें संसोधन के पंचायत विस्तार कानूने पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद-चले स्वसा’ान आंदोलन में सक्रिया भागीदारी-आज तक

लेखन- 1995 से स्वतंत्र पत्रकार के रूप में प्रभात खबर के लिए गांवों के समस्याओं पर रिपोटिग -शुरू की

1ः विषय महिला हिंसा, अत्याचार और शोषण के विरूद MAHILAON
को आवाज देना

2ः महिलाओं को हक, अधिकार और न्याय की पहचान
कराना ।

3ः विस्थापितों की स्थिति पर

4ः आदिवासियों के इतिहास, झारखंड का इतिहास, झारखंड की वर्तमान स्थिति, नयी बाजार व्यवस्था में झारखंडी आदिवासी समाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, इतिहासिक पहचान पर मंडराता खतरा पर

5ः ग्रामीण आदिवासी महिलाओं, युवातिायों के पलायन पर अध्ययन परक लेख
6ः ग्रामीण इलाकों में विकास योजनाओं स्थिति पर अध्ययन परक लेख

7ः पी डी एस -ग्रामीणों इलाकों में इसकी स्थिति पर अध्ययन परक लेख
8ः नरेगा की स्थिति पर अध्ययन परक लेख

5ः पत्र-पत्रिकाएं, जिनमें लेख
रिपोर्ट आदि प्राकाशित हुए
1996 में हिन्दी दैनिक अखबार ”प्रभात खबर“ -हिन्दी एवं मुणडारी में

1996 से 1999 तक हिन्दी मासिक पत्रिका ”जनहक“ ।

1999 से 2001 तक हिन्दी दैनिक अखबार ”झारखंड जागरण“ ।

1997 से अब तक हिन्दी त्रैमासिक पत्रिका ”अभियान“ ।

1997 से अब तक महिलाओं के लिए हिन्दी त्रैमासिक पत्रिका
”आधी दुनिया“ ।

1998 से अब तक हिन्दी पत्रिका ”नारी संवाद“ ।

2000 से 2001 तक हिन्दी मासिक पत्रिका ”जनहूल“ ।

2001 से अब तक हिन्दी में प्रकाशित पत्रिका ”युद्वरत आम आदमी “ ।

2003 से अब तक हिन्दी ”घर बंधु“ पत्रिका में ।

समय समय पर हिन्दुस्तान, दैनिक जगरण, डाईणीख़ भास्कर आदि को भी लेख

6ः एन एफ आई डिसंबर 2003 से जून 2004 तक
(नेशनल फाउंडेशन फाॅर विषय-परंपरागत व्यवस्था में महिलाओं की स्थिति,
इंण्डिया) फेलोशिप पंचायकती राज तथा संसादीय राजनीति में
महिलाओं की स्थिति पर अध्यायन ।



7ः नरंेगा योजना में मजदूरों पर हो रहे शोषण के खिलाफ गुमला जिला के बसिया प्रखंड में आंदोलन-2006-7 में
8 -जनसूचना अधिकार के तहत गुमला जिला तथा खूंटी जिला के प्रखंडों से विकास जोयनाओं की जानकारी निकालकर ग्रामीणों का देना-

1ः बसिया प्रखंड- 2006-7 में -नरेगा योजनाओं की जानकारी
2ः सिसई प्रखंड-2007 में- नरेगा योजनाओं की जानकारी

3ः कमडारा प्रखंड-2006 - अंत्योदय, अन्नपूर्ण, बीपीएल सूची की जानकारी तथा पुरे प्रखंड के लाभुकों का मिलने वाले कुल रा’ान की जानकारी

4.ः कमडारा प्रखंड -नरेगा योजना 2006-7, 2008 की जानकारी

खूंटी जिला-1ः कर्रा प्रखंड -नरेगा योजना -2006-7 की जानकारी

2ः तोरपा प्रखंड- नरेगा योजना-2006-7 की जानकारी

3ः रनिया प्रखंड- रनेगा योजना-2006-7 की जानकारी

9- गुमला जिला और खूंटी जिला में कृर्षि का विकास के क्षेत्र में सरकार द्वारा किये गये -सिंचाई संबंधित कार्यो की जानकारी -जनसूचना कानून के तहत निकला कर ग्रामीणों को इसकी जानकारी देना-जारी है

10- संगठनों से जुड़ाव- 1ः सभी विस्थापितों के आंदोलनों के साथ-बोकारो बेरमो अनुमंडल विस्थापित समिति-बोकारो, एचईसी विस्थापित संयुक्त मोर्चा, तेनुघाट विस्थापित समिति

2ः आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच

3ः भूमि सुरक्षा समिति

4ः विस्थापन विरोधी नव निर्माण मोर्चा-झारखंड

5ः इप्टा-झारखंड

6ः नेशनल एलांश आफ वीमेन-नावो

7ः इंडियन सोशल एक्शान फाॅरम-इंसाफ

11- पुरस्कार- 1ः बेहतर ग्रामीण पत्रकारिता के लिए 8 जून,2000
को काउंटर मीडिया पुरस्कार ।

2ः बेहतर पत्रकारिता के लिए 2003 में मांझी सम्मान
3ः नेशनल मीडिया एवाड- 2003-4

4ः चिनगारी एवाड-2008


12- विदश यात्राएं- 1ः 2000 में- ढाका-बंगला दश - विस्थापन, आदिवासी सवालों पर सम्मेलन में
स्वराज फाउनडेशन गोवा के साथ
2ः 2000 में -दक्षिण अफ्रीका- एक्सपोजर वीजिट-आदिवासियों के बीच
बिरसा चाईबासा-झारखंड के साथ
3ः 2003 में- थईलैंड- बडे डैम के सवाल पर सम्मेलन में भाग
4ः 2004 में- फीलिपिंस- आदिवासी महिलाओं के सवालों पर सम्मेलन
5ः 2007 में -हेलसिंकी-फिनलैंड- विस्थापन एवं आदिवासी सवाल पर सम्मेलन
आदिवासी कोडिनेशन फिनलैंड के आमंत्रण पर

6ः 2007 में-अमेरिका-एआईडी के साथियों के आमंत्रण पर

7‘ 2008 में-फिनलैD - आदिवासी एवं विस्थापन के सवाल पर-
आदिवासी कोडिनेशन के आमंत्रण पर

8ः 2009 में -फिलिपिंस- खनिजों का दोहन एवं विस्थापन पर सम्मेलन

9ः 2009 में- जर्मनी- आदिवासी एवं विस्थापन के सवाल पर
आदिवासी कोडिनेशन जर्मनी के आमंत्रण पर
१०- फिलिपींस...ग्लोबल वार्मिंग
११- डरबन--ग्लोबल वार्मिंग--

14ः पुस्तिका- 1-1998 मे ”उलगुलान की औरतें“ पुस्तिका का संपादन ।

2-2007 में विस्थापन का दर्द
3-एक इंच जमीन नहीं देगें

4-2009 में स्वीट पोयजन

5-2009- दो दुनिया-अमेरिका यात्रा संस्मरण
13- जीविका का आधार-चाय की दुकान, होटल-क्लब रोड़ रांची

आज देश की सरकार पूरी तरह से देश -विदेश के पूंजिपतियों के समर्थन में उत्तर आयी है। किसानों के हाथ से एक एक इंच जमीन छीन कर पूंजिपतियों को मुनाफा कमाने के लिए सौंप रही है। पूरे देश के आदिवासी मूलवासी, किसान आंदोलित हैं। केंन्द्र सरकार अपने जजबात-हक अधिकार के से संघर्षरत आदिवासी मूलवासी, किसानों को गोलियों से भून रही है। झारखंड अलग राज्य बने ग्यारह साल हो गये। दस साल में राज्य सरकार ने 104 कंपानियों के साथ एम ओ यू किया हैं। इसमें मित्तल कंपनी भी एक बड़ी कंपनी है। जो खूंटी जिला और गुमला जिला कमडारा प्रखंड, तोरपा, रनिया और कर्रा प्रखंड के 38 कई दर्जन गांवों को उजाड़ कर स्टील प्लांट लगाना चाहती थी। 2006 से गांव गांव घूम कर लोगों को इसके बारे जानकारी देने, गोलबंद करने में सफल हुए। लगातार छह सालों तक दिन-रात आंदोलन चला। इस दरमियान दिन कहां बिताये, शाम कहां और रात कहां-पता भी नहीं चला। 2010 में मित्तल कंपनी को कहना पड़ा-कि इस इलाके में जनआंदोलन बहुत मजबूत है, इस कारण जमीन अधिग्रहण करना संभव नहीं है, हम दूसरा जगह देखेगें। ये जनता की
जीत रही।
२००६ से २०१२ के बीच जल-जंगल-जमीन की रक्छा का संघर्ष जीते..
१- खूंटी -गुमला जिला में मित्तल कंपनी १२ मिलियन टन का स्टील कारखाना लगाना चाहता था ४० गांवों को उजाड़ कर. इसके खिलाफ २००६ से संघष शुरू किये. २०१० के फ़रवरी महिना में मित्तल कंपनी ने कहा- खूंटी ओउर गुमला जिला में बिरोध के करना जमें अधिरहण संभव नहीं है, अपना प्रस्तावित प्रोजेक्ट के लिए दूसरा साईट देखेंगे..

२- खूंटी जिला के कर्रा ब्लाक के जबड़ा और घोर्पेंदा के बिच झट नदी में काँटी जलाशय के नाम पर १०३ करोड़ का बांध नन्ने वाला था..इसे १२ गाँव बिस्थापित होते..इसके खिलाफ संघर्ष शुरे किये १७ दिसंबर २०१० से- १२ जनवरी को कर्रा अंचल अधिकारी ने ग्रामीणों को बुला कर ..ग्रामीणों का बयां दर्ज किया..की ग्रामीण जमीन देना नहीं चाहते हैं..इस रिपोर्ट को जिला उपायुक्त के पास भेजा..