25 जनवरी 2012 को हाईकोर्ट के आदेश -सीएनटी एक्ट का धारा 46 को कड़ाई से लागू किया जाए, इस आदेश के बाद पूरा राज्य उथल-पुथल होता जा रहा है। गैर आदिवासी, राजनेताएं, पूंजिपति, कारपोरेट घराने सभी रोना रो रहे हैं-कि अब राज्य का विकास रूक जाएगा। मीडिया इस आदेश को राज्य को दो भाग में बांटने का साजिश मान रही है। यह अलग बात है-कि कोई सीधे तैर पर बोल नही रहे हैं। इस सीएनटी एक्ट को आदिवासी मूलवासी विरोधी ताकतें विकास का बाधक मान रहे हैं। सीडिया समाज के भीतर लोगों से अपने मनअनुसार बातें कहलवाकर समाज में सीएनटी एक्ट को लेकर जहर और शीत युद्व फैलाने की पूरी कोशीश कर रही है। लोग बयान दे रहे हैं-कि यह अंग्रेजों का बनया कानून है, कुछ कह रहे हैं-यह 103 साल पूराना है, इसे बदलने की जरूरत है। मैं रोज आ रहे-मुख्य धारा और मध्यम वर्ग के गैर आदिवासी मूलवासी समाज के लोगों से हैरान हुं। कभी इस वर्ग ने आदिवासी मूलवासी हित -हक-अधिकार की चिंता नहीं की, आज हाईकोर्ट के आदेश के बाद-सीएनटी एक्ट को गाली देने लगे हैं, इस कानून से दुखित हैं।
नीचे सीएनटी एक्ट की शक्ति- पर दैनिक भास्कर की छपी रिर्पोट को मैंने हुबहू टाईप की हुं यहां। इस रिर्पोट को पढ़ने के बाद यही उजागर होता है कि आज तक सरकार, राजनेताएं, सरकारी तंत्र, ठेकेदार, माफिया, बिल्डर, कारपोरेट घराने छोटनागपुर kashatkari अधिनियम 1908 का खुला उल्लंघन किये हैं। आदिवासी जमीन को गैर कानूनी तरीके से औन-पौने दामों पर, या हड़पकर उस जमीन पर बैंको से लोन लेकर व्यवसाय करते आये हैं।
सीएनटी एक्ट की धारा 46-
आदिवासियों की जमीन गैर आदिवासियों (एसटी) के हाथ नहीं जाये, इसके लिए ब्रिटिश सरकार ने छोटानागपुन टेनैसी एक्ट (सीएनटी) 1908 लागू किया। बाद में 1947 में इस एक्ट में धारा 46 जोड़ कर अनुसूचित जाति (एससी) व पिछ+ड़े वर्गों (बीसी) को भी शामिल कर दिया गया। इनकी जमीन की खरीद-बिक्री बिना उपायुक्त की अनुमति के नहीं की जायेगी। एससी व बीसी की जमीन की खरीद-बिक्री के पूर्व उपायुक्त की अनुमति लेना जरूरी है। इस कानून का आज तक घोर उल्लंघन होते आया है। नीचे के रिर्पोट यह स्पष्ट होता है कि ये क्या आदिवासी समुदाय के हैं यह किस समुदाय से। यदि आदिवासी समुदाय से नहीं हैं-तब निशचत रूप से सीएनटी एक्ट का उल्लंघन कर आदिवासी जमीन का व्यवसाय कर लोगों ने करोड़ों में करते रहे हैं।
सीएनटी की शक्ति-दैनिक भास्कर 7 फरवरी 2012
बैंकों ने रोके होम लोन-
सिविल इंजीनियर, कांट्रैक्टर व ठेकेदार और मजदूर बेरोजगार
बीते एक हफते में आधा दर्जन से ज्यादा साइटस पर काम बंद हुआ
राजधानी की बड़ी कंस्ट्रक्नशन कंपनी जयश्री डेवलपर्स प्रा. लि. ने गत एक सप्ताह में अपने आठ साइट बंद कर दिये ।इन साइटों पर लगभग डेढ हजार इंजीनियर, कांट्रैक्टर, एलेक्ट्रिसियान , कारीगर व मजदूर काम करते थे। वन वृंदावन प्रा. लि. समेत कई कंस्ट्रक्शंन कंपनियों का भी कमोबेश यही हाल है। डायरेक्टर रमेश सिंह कहते हैं, दो चार दिनों में सीएनटी का विवाद नहीं सुलझा, रजिस्ट्री शुरू नहीं होगी और बैंको से लोन नहीं आएगा, तो काम रोकना ही पड़ेगा।
बात केवल बिल्डरों की नहीं है। लाखों देकर फैल्ट बुक करने वाल हजारों लोग टेंशन में हैं। कंस्ट्रक्शंन कंपनी में सिविल कांर्टक्टर मुकेश कुमार, इलेक्ट्रिक्टर राजा खान, मार्बल कांट्रैक्टर संजय तांती सभी बेरोजगार हो गए। न जाने ऐसे कितने कांक्ट्रक्टर बेरोजगार होग गए, जिनके अधीन सैंकडक्षें ऐसे कारीगर काम करते थे, जिनकी दिहाड़ी 300 से 400 रूप्ये थी। लेकिन अब सभी बेरोजगार है।। सबकी वजह 103 वर्ष पुराना सीएनटी एक्ट है।
बैंक लोन के कैस गए ठंडे बस्ते में-
अरगोडा चैक से महज कुछ फर्लांग की दूरी पर जयश्री ग्रीन सिटी में छह ब्लाक (ए टु एफ) में 216 फैल्ट बन रहे हैं। चार ब्लाक कम्पलीटिंग पोसिसन में हैं। लगभग 50 लोगों की फैल्ट की रजिस्ट्री भी हो चुकी है। ए ब्लाक में एनके सिंह, एन प्रकाश, बीके ओझा समेत 36 लोगों ने फैल्ट बुक कराए हैं। दर्जनों लोगों के लोन इस सप्ताह क्लियर होने वाले थे, लेकिन बैंकरें ने सभी के लोन ठंडे बस्ते में डाल दिये हैं। एक कस्टमर तो खुद बैंक अधिकारी है, लेकिन उन्हें भी लोन नहीं मिल रहा है। बिल्डर नीतिश कुमार ने बताया कि कुछ फैल्ट का तो लोन पास होने के बाद भी भुगतान रोक दिया गया है।
लैंड मार्गंज में आ रही समस्या-
बैंक अधिकारियों ने बताया कि लैंड मार्गेज में समस्या के कारण लोन नहीं मिल रहा है। जब तब रजिस्ट्री नहीं होगी, तब त बवह प्रापर्टी कस्टमर की नहीं मानी जाएगी। रजिस्ट्री नहीं का मतलब है कि प्रापर्टी पर बैंक लोन देकर अपना पैसा कैसे फंसा सकता है। हालांकि, बैंकों को उपर से लोन स्वीकृत न करने का आदेश नहीं आया है। लेकिन सीएनटी एक्ट के प्रावधानों के तहत राजधानी की मैक्तिसमम जमीन आ जा रही है। पहले बैंक एससी व एसटी लैंड पर कंसनट्रेट करते थे, पर अब उसमें बीसी का नया अध्याय जुट गया है। जिसे लेकर बैंक ज्यादा कंसस हो गये हैं।
रजिस्ट्री का काम पड़ा धीमा--
सीएनटी एक्ट को लेकर सिर्फ राजनीतिक बयानबाजी हो रही है। सरकार सुस्त है। रजिस्ट्रारों को पता नहीं है कि किन जातियों की जमीन बेची जा सकती है, किनकी नहीं। क्योंकि किसी को निर्धारित जातियों की सूची अभी तक मिली ही नहीं है, जिन जातियों की जमीन बेचना प्रतिबंधित हो। जिसका परिणाम है कि अन्य जातियों की जमीन भी रजिस्ट्री नहीं हो पा रही है।
रजिस्ट्री कम हुई- रांची में शुक्रवार को 26 और शानिवार को 38 रजिस्ट्री हुई। जबकि शुक्रवार को खूंटी में डीसी की अनुमति के बाद दो आवेदन आए। वहीं, धनबाद, कोडरमाख् गिरिडीह व लोहरदगा में रजिस्ट्री का खाता भी नहीं खुल सका।
बिल्डिंग मेटेरियल की बिक्री भी बंद-
निर्माण कार्य बंद होने से बिल्डिंग मेटेरियल की बिक्री भी लगभग ठप हो चुकी है। ठेकेदार प्रशांत शामल बताते हैं कि पहले राजधानी में प्रतिदिन 200 से 300 ट्रक बिल्डिंग मेटेरियल की खपत होती थी, अभी मुश्किल से 40 से 50 ट्रक रह गयी है। यही हाल मार्बल व्यवसायियों का भी है। सीमेंट की बिक्री भी काफी कम हो गई है। यही हाल रहा तो पूरा का पूरा व्यवसाय चैपट हो जाएगा।
रोजगार नहीं मिल रहा बेरोजगारी बढ़ी-
कंस्ट्रक्शान कंपनियों के काम बंद करने से मजदूर परेशान हैं। लालपुर चैक, मोरहाबादी व अन्य जगहों पर पहले जहां मजदूरों के लिए आपाधापी मची रहती थी, अब वहां मजदूरों को सिर्फ इंतजार करना पड़ता है। कम मजदूरी के बाद भी दर्जनों मजदूरों वापस जाना पड़ता है। अरगोड़ा ग्रीन सिटी में और दिवन टावर में नरकोपी, नयासराय, लोधमा, हटिया, ब्रांबे, हरदाग, गोला, चितरपुर, दसमाईल व सोस आदि दर्जनों गांव के मजदूरों को रोजगार मिलता था, जो अब बंद हो चुका है।
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