VOICE OF HULGULANLAND AGAINST GLOBLISATION AND COMMUNAL FACISM. OUR LAND SLOGAN BIRBURU OTE HASAA GARA BEAA ABUA ABUA. LAND'FORESTAND WATER IS OURS.
Thursday, November 25, 2010
हम मिल कर बनायेंगे नया JHARKHAND
इस तस्बीर को देख कर सोच रहे होंगे की, क्यों इतनी सारी तस्बीरें सजाई गयी हैं। सायद आप लोग आज तक उन्ही खेलाड़ियों को सजे सजाये मैदान में दौड़ते, बोल उछालते देखे होंगे। लेकिन उन खेलाड़ियों को देख रहे हैं, जो दिन रात खेत में हल चलाते हैं, नदी-नालों में गाय बकरी, चाराते, मछली मरते, जंगल-झाड़ में खेती -बारी करते, घांस-पात तोड़ते, गोडा-मडुवा, धान , गेंहू उपजा कर समाज को खिलते हैं, राज्य के कृषि और पर्यावरण समृद्ध बनाते हैं।
ये हैं आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच के साथी। मंच का लड़ाई सिर्फ मित्तल कम्पनी के खिलाफ नहीं है- हमारी लड़ाई जल, जंगल, जमीन, के साथ स्वंय का विकास।
इस तस्बीर में आप देख रहे हैं-रेफरी को, मुह में सिटी लिये। इसके नीचे मंच के अधिकारी। दाहिनी ओर महिला फूटबोल विजेता कुल्डा की टीम. नीचे -खेलाड़ियों की टीम
उलगुलान का MASHAL
15 नवंबर 1875 भारत के कालेंडर में एक महत्वपूर्ण दिन है। भारत में जब इस्ट इंडिया कंपनी ने व्यवसाय करने के लिए अपना कदम रखा और धीरे धीरे अपना पांव छोटानागपुर आज (jharkhand) की धरती पर फैलाया। इस कंपनी के माध्यम से अंगे्रजी हुकूमत ने देश की स्वतंत्रता छीन कर अपना शासन थोपा। एक-एक करके यहां के संसाधनों पर कब्जा जमा लिया। समाज को अपना बंधुवा मजदूर बना लिया। देश की स्वतंत्रता के साथ पूरी मानव सभ्यता निरंकुश अंग्रेज हुकूमत के हाथों जकड़ चुका था।
छांेटानागपुर वर्तमान झारखंड की धरती जहां अबुआ हातु रे अबुआ राईज, हमर गांव में हमर राईज का वस्तविक अत्मा था, की हत्या अंगे्रजों की गुलामी ने की। यहां की विरासत-जल, जंगल, जमीन, समाज पर कब्जा करने के लिए दमन किया जाने लगा। बैठबेगारी से समाज तार तार होने लगा था।
एैसे समय में 15 नवंबर 1875 को छोटानागपुर की धरती में बिरसा मुंडा का जन्म उलीहातु के सुगना मुंडा के घर हुआ। पिता सुगना मुंडा और मां करमी मुंडा के गोद पैदा हुआ बालक बाद में अंग्रेजों के गुलामी का जंजीर तोड़ने के लिए उलगुलान का म’ााल थामा। वीर बिरसा मुंडा 25 साल की उम्र में उलगुलान के नायक बने। इनके अगुवाई में झारंखड में मुक्ति संग्राम के नगाड़ा से पूरा छोटानागपुर डोल रहा था। बिरसा मंुडा ने अंग्रेज shasan के सामने घुटना नहीं टेका। मुक्ति का हथियार जनआंदोलन की जन’ाक्ति को बनाया।
इनके संघर्ष और बलिदान ने छोटानागपुर की जल-जंगल-जमीन, भाषा-सांस्कृति, मानव समाज, पर्यावरण की रक्षा के लिए छोटानागपुर का’तकारी अधिनियम(ब्दज ।बज 1908) बनाने को मजबूर किया। इनकी रक्षा के लिए झारखंड अलग राज्य की मांग की गयी थी। इसके लिए आदिवासियों-मूलवासियों ने लंबी लड़ाई लड़ी।
15 नवंबर 2000 को अलग राज्य बना। लेकिन यह यहां के आदिवासियों-मूलवासियों के अलग राज्य के सपनों को साकार करने के लिए राज्य का पूर्नाठन नहीं किया गया। इसके पीछे राज्य के प्रकृतिक संसाधनों पर पूजींपतियों को कब्जा दिलाने का रास्ता प्रस्सत करना था। अलग राज्य बनने के दास साल में राजतंत्र ने 101 बड़े पूंजीपतियों के साथ एमओयू हस्ताक्षर कर यह साबित कर दिया है। आज पूरी व्यवस्था, सरकारी मशीनरी प्रशासन, राजनीतिक तंत्र झारंखंड के जल-जंगल-जमीन-नदी, झरना, खेत-खलिहान सभी को कंपनियों को सौंपने के लिए हर साम-दाम-दंड-भेद अपना कर किसानों पर दमन का नया दौर शुरू कर दिया है। बडे डैम के खिलाफ संघर्षरत कोयलकारो जनसंगठन पर हुए 2 फरवरी 2001 को पुलिस फायरिग, 6 दिसंबर 2008 को पवार प्लांट तथा कोयला खदान के खिलाफ संघर्षरत जनता पर पुलिस फायरिंग इसका गवाह है।
आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच 15 नवंबर 1875 के इतिहास को आज राज्य के नवनिर्माण में मत्वपूर्ण भूमिंका मानता है। जो आज राज्य को फिर से पूंजिपतियों, भ्रष्टाचारियों, झारखंड के सौदागारों के हाथों गिरवी रखने के तमाम प्रयासों को बेनाकाब करने की कोशिश करेगा। इसी प्रयास में आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच 15 नवंबर 2010 को बिरसा उलगुलान को आगे बढ़ाने के लिए बिरसा जयंती मनाया
कार्यक्रम-युवा वर्ग के लिए-
1-युवाकों का होकी टूर्नामेंट
2-युवातियों का फूटबल टूर्नामेंट
3-महिलाओं का खेल प्रतियोगित-स्थानीय जीवनसैली से संबंधित होगा
4-पुरूष वर्ग के लिए प्रतियोगिता-स्थानीय जीवनसैली
5-तीरंदाजी प्रतियोगित-सभी वर्ग के लिए
स्थान-किता टोली -मैंदान-मरचा रनियां चैक के पास -दुगलू बगाईचा
नोट- कार्याक्रम 13 नोवंबर से लड़कियों का फूटबल टुरनामेंट बनाविरा मैंदान में ‘शुरू किया गया। साथ ही लड़कों का हाकी खसी टुरनामेंट भी ‘शुरू किया गया।
13 से 17 नोवेबर के बीच संगठन इलाके गावों से कुल 18 पुरूष होकी टीम खेला
17 नोवेबर के फाइनल में कुलड़ा टीम ने पोजे की टीम को हरा कर जीत हाशिल किया। चुकरू की टीम ने उरमुडिंग की टीम का हरा कर जीत हाशिल किया।
बिजेता तथा उपविजेता टीम को खसी दिया गया। साथ ही सभी टीम को बिरसा मुंडा का आदम कद छाप बना टीसट दिया गया।
माहिला फूटबल में कुलडा की टीम ने टीटी की टीम को हरा कर जीत दर्ज किया।
15 नोवेम्बर को सुबह से सांस्कृतिक कार्यक्रम चला। कार्यक्रम के प्ररंभ में वीर बिरसा मुंडा के प्रतिमा में मल्यापर्ण किया गया। बाहर से आये अतिथियों को भी स्वागत किया गया। कुलडा के बाल कलाकारों ने उलगुलान का मशाल के साथ-हम नया समाज बनाऐंगे के गीत के नाच प्रस्तुत किया।
महिला तीरंदाजी 25 महिलाओं नंे भाग ली।
पुरुस में 36 लोगों ने भाग लिया।
बच्चों का बिस्कुट रेस हुआ-इसमें 60 बच्चों ने भाग लिया।
महिलाओं का कुर्सी रेसी हुआ-30 लोगों ने भाग ली ।
हमारह बच्चनबद्वता है-1-जल, जंगल, जमीन का रक्षा करना
2-मानव संसाधन का विकास
3-भाषा-संस्कृति की रक्षा
4-पर्यावरणा और मानवसभ्यता का विकास
5-ग्लोबल वामिंग को रोकना
Wednesday, November 24, 2010
kya ham aajad bhart ke nagrik hai-3
केंद्र सरकार देश से उग्रवादी एवं माओवादियों को ख़तम करने के लिए देश के कई राय्जों में ग्रीन हंट चला रही है. सायद इस तस्बीर को देख कर आप मन में यही सोच रहे हैं, ये वर्दी वाले, बन्दुक लेकर हरिलायाली खेत के बीच क्या खोज रहे हैं। जी आप सुने होंगे, आँध्रप्रदेश के सोमपेट इलाके में नागार्जुन कम्पनी थर्मल पवार प्लांट बनाने जंहा रही है। किसान, आदिवासी, मछुवारे अपना जमीन, गाँव, विल्ला, झरना, ताड़, नारियल, काजू का जंगल नहीं छोड़ना चाह रहे है, ये सरकार और कम्पनी का विरोध कर रहे हैं। आप जिन हथियारधारी पुलिस , मेलेट्री को देख रहे हैं, ये किसानों का, खेती-बारी, जंगल का, जलस्रोतों का, आदिवासियों का, मछुवारों का, दलितिओं का, विल्ला का ग्रीन हंट करने सरकार, पुसिस, मेलेट्री, आये हुए हैं। यही है-केंद्र सरकार और पी चिदंबरम का ग्रीन हंट.
यह तस्बीर १४ माई २०१० का है,
सरकार और कंपनी के व्योहार से लोग खपा हैं। कहते हैं, सुने थे अंग्रेज सरकार बहुत क्रूर था, लेकिन हमारी सरकार जिस तरह से दौड़ा दौड़ा कर पीटा हमारी सरकार अंग्रेज सरकार से भी ज्यादा दमन कर रही है। विस्थापन के खिलाफ संघर्षरत संगठन पर्यावरण परिरक्षण संगधम, मानव अधिकार संगठन सहित सभी समर्थक संस्थाओं ने सवाल उठाया है कि, आँध्रप्रदेश सरकार ने पर्यावरण क्लीयरेंस के बिना ही नगार्जून कंपनी को थर्मल पावर प्लांट लगाने के लिए जमीन अधिग्रहण करने की इजाजत दे रही है-जो कानून अवैध है। स्थानीय किसान और मछुवारे हतप्रभ हैं कि 18 अगस्त 2009 को संपन जनसुनवाई में 99 प्रतिशत जनता अधिकारियों के सामने घोषणा की थी- अपना बीला किसी भी कीमत में थर्मलपावर प्लांट के लिए नहीं देगें, लेकिन सबंधित अधिकारियों ने इनकी बातों को बदलते हुए रिर्पोट दिया कि कुछ ही लोग जमीन अधिग्रहण का विरोध कर रहे हैं। देश की पूरी मशीनरी किसानों के खिलाफ खड़ी है- इसका गवाह अंटारटीका में प्रख्यात अध्ययन करने वाली राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान (chhanjapavadans pdejapajanajam v ivbamandavahatanchiil lavan ) द्वारा तैयार रिर्पोट है, जिसमें कहा गया है कि- उक्त क्षेत्र मानव तथा पर्यावरण-जैविक विधितता तथा कृर्षि के लिए उपयुक्त नहीं है। एक विषे’ाज्ञ मूल्यंकन समिति ने भी इलाके का भ्रमण करने के बाद chhanjapavadans pdejapajanajam v ivbamandavahatanchiil lavan aur ainataamal v ipdakapan bhlakamatanink ke रिर्पोट का समर्थन करते हुए रिर्पोट दिया कि-यह क्षेत्र समुद्रतटीय नियंत्रण क्षेत्र में नहीं आता है। इसकी जानकारी 15 जुलाई 2010 को भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने अपने प्रेस रिलिज में दिया। ये सारे रिर्पोट इस इलाके के पर्यावरणीय, जैविकविधिता तथा प्रकृतिकमूलक सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ है। यह सोमपेटा क्षेत्र का बीला-धरती जो आनाज पैदा कर पूरे राज्य की जनता के साथ पूरे दे’ा को अन्न खिलाती है।
तमाम घटनाएं इस ओर isara करती हैं कि desh की कल्याणकारी कहे जाने वाली (ॅमसंितम ैजंजम) सरकार और आम नागरिकों के बीच का संबंध समाप्त होता जा रहा है। सरकार नागरिकों के संवैधानिक अधिकार, उनके हक-हुकूक, अमन-shanti कायम करने की जिम्मेवारी से पलाझाड़ कर, अब सरकार की भूमिंका काॅरपोरेट घरानों के सुख-सुविधा, उनके मुनाफा की गरांटी करने की ओर बढ़ रही है।
andhrapradesh की सरकार नर्गाजुन kanstrkshan कंपनी को प्लांट लगाने के लिए जमीन देने के लिए किसानों के खेती की जमीन को वेस्टलैंड तथा वारेनलैंड घोषित कर दिया है। यही नहीं किसानों की मिलकीयत की जमीन को राजस्व विभाग नें लैंड रिकोड में इसे वेस्टलैंड तथा वारेनलैंड घोषित कर दिया है। यहां यह जनाने की जरूरत है कि राजस्व विभाग एक ओर इस जमीन को वेस्टलैंड और वारेनलैंड दिखा कर यह बताने की को’िा’ा कर रहे हैं कि इस जमीन का कोई पटटाधारी नहीं हैं। दूसरी ओर इसी आॅफिस के एक फाईल में)(ना.272@08)(म्3) रिकोड तथा दूसरे में 78.90 एकड़ के पटटाधारियों का जिक्र है। दूसरे में 31.35 एकड़ के पटटा का विवरण हैं। चैंकाने वाली बात है कि andhrapradsh की पूरी parashasan व्यवस्था नर्गाजुन कंपनी को जमीन कब्जा दिलाने के लिए हर हथकंडा अपनाने की koshish में जुटा हुआ है।
क्या हम आजाद भारत के नागरिक हैं-2
17 मई जब इस इलाके हमारी टीम आयी थी ।गोलागांड़ी गांव पहुंचते ही चारों तरफ से ग्रामीण निकल कर आते हैं। इसी भीड़ में श्री खान राव लंड़ाते लंड़ाते आते हैं और कमीज उतार कर पीठ तथा दहिने पैर पर लगे जख्म को दिखाते हैं। इतने में ही महिलाओं का झुंड हमारी टीम को आकर घेर लेती है। सभी अपना दस्तान सुनाते हैं। कहते हैं-हम लोग सुने थे कि अंग्रेज सरकार का मनहुस चेहरा था, उस समय लोगों को जानवरों की तरह पीटा जाता था-लेकिन हम लोगों ने अपना सरकार का मनहुस चेहरा भी देख लिया। जो अपने जल-जंगल-जमीन की बात करने वालों को दौड़ा दौड़ा कर पीटा। महिलाएं कहती हैं-न तो किसी का उम्र देखा न ही किसी का लाज रखा। कहती हैं ईसे ईसे जगह पर पीटा कि बताया भी नहीं जा सकता है। देखते देखते पूरा गांव निकल कर आ गया। सभी एक स्वर में बोलने लगे-बीला ही हमारा सबकुछ है। हम लोग अपना बीला नहीं देगें। ग्रामीण बताते हैं-पूरे देश में जब पानी के लिए हाहाकार मचा रहता है-तभी हमारे बीला(ॅंजमत ठवकल) में 365 दिन पानी उपलब्ध रहता है। इसी बीला से हजारों एकड़ भूमिं सिंचित होता है। इस बीला-जलस्त्रोत के कारण इस इलाके का जलस्त्रोत सुखता नहीं है। यही नही, यही बीला इस इलाके में आने वाले बाढ़ को भी रोकता है। विदित हो कि खेती की जमीन को स्थानीय भाषा में बीला कहते हैं। जैसे ही गोलगांड़ी एरिया में प्रवेश करेगें, आप को लगेगा आप मिनी केरल में हैं। 15-20 किमी तक प्रकृति की अदभूत हरियाली छटा। नरियल, काजू, ताड़, खजूर, आम आदि से पटी धरती। 300 किमी की लंम्बी संड़क यात्रा के बाद भी यहां पहुंचते ही तन-मन का थकान हरियाली में बिलीन हो जाता हैं। इस घने पेड़ों के नीचे जोताइ्र्र कर किसान कई तरह के फसल लगाने की तैयारी में जुटे हैं। गरमी की उष्म तो थी, लेकिन एक ’ाीतल स्पर्ष के साथ। 5-6 युवक बैठक स्थल की ओर आ रहे हैं। हरेक अपने साथ 3-4 डाब (ताड़ फल) लेकर आये। तुरंत काटते गये, एक-एक कर साथियों को पिलाते गये। एक घूंट पीते ही हर साथी एक दूसरे को देखकर -वाह कितना मीठा है, कहते अपनी खु’ाी जता रहे थें। प्रभावित क्षेत्र के करीब 30 गांवों के ग्रामीण नर्गाजुन कन्सट्रक्’ान कंपनी द्वारा प्रस्तावित कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांट के खिलाफ पर्यावरण परिरक्षण संगघम के बैनर तले गोलबंद हो कई सालों से प्रोजेक्ट का विरोध करते आ रहे हैं। संगठन ने नारा दिया है-अबीरूदी पेरूतो-नाच्छीनम च्छियादु,(विकास के नाम पर विना’ा नहीं चाहिए)। आजादी के बाद पूरे दे’ा में विकास के नाम पर हो रहे विस्थापन का सवाल उठाते हुए-इस इलाके की जनता सरकार के वर्तमान विकास मोडल के खिलाफ ”अबुरूदी याबराकी-खसटालु याबराकी“ का नारा दे रही है। (विकास किसका-विना’ा किसका)। जैविक विविधता का यह ईलाका यहां के किसान और मछुवारों का जिंदगी तो ही है साथ ही एक वि’िाष्ट पहचान भी। यहां आने वाला हर मन यही चाहेगा कि-यह इलाका इसी तरह जैविक विविधता के साथ बनी रहे। यही पर्यावरण देश के ग्लोबल वामिंग को रोकने में सक्षम होगा। इस बीला ( जंगल-जमीन, जलस्त्रोत की रक्षा का मतलब है-देश का पर्यावरण और जैविक विविधता की रक्षा। बीला में एक साल में दो फसल होता है। धान के अलावे यहां घांस भी होता है-जिसे ग्रामीण चटटाई बनाते हैं। साथ ही इसे घर का छपर भी बनाते हैं। यह मवेशियों का चरागाह भी है। 14 जुलाई की घटना के बारे ग्रामीण बताते हैं-पहले दिन गांव में 2000 की संख्या में पुलिस आयी थी। इसमें से 1000 तो गुड़े थे। पुलिस अपने साथ पंप्लेट लेकर आयी थी-इससे दिखाकर पुलिस वाले बोल रहे थे-अब यह जमीन कंपनी का हो गया है। यहां काम सुशुरु किया जाएगा। पंप्लेट में हिदायत दिया गया था-यदि कोई विरोध करेगा तो उस पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। एक एक लाठी का चोट और बुलेट का जख्म इनके आंदोलन को मजबूत कर रहा है। घटना के बाद अपनी मांगो को लेकर किसान -मछुवारे धरणा में बैठे हैं। धरणास्थल जान देगें -जमीन नहीं देगें के नारों से गुंज रहा है। गांव गांव में माकुदु माकुदु-पावर प्रोजेक्ट माकुदु का नारा गुंज रहा है। (नहीं चाहिए-नहीं चाहिए, पावर प्रोजेक्ट नहीं चाहिए) धरणास्थल में लगातार लासपुरम, कोरलम, बरूआ, मंडपीली, सोमपेटा, जिंगबदरा, बिंकली, बालगंडी, इस्कालापालम, रामईपटनम, मंडा पाली, कुतमु, रूसुगुदा, अमागारी उटुगा आदि गांवों के सैंकड़ो लोग धरणा में बैठकर जमीन अधिग्रहण का विरोध करते आ रहे हैं। धरणास्थल में पर्यावरण परिरक्षण संगधम के अध्यक्ष डा। वाई कृष्णामूर्ती, धर्माराव, टी. कालीदास, दामेयान्ती, जिलामा, वीरअम्मा, उमा, बलामा, ’shakuntala, सुशीला सहित सैंकडों आंदोलनकारियों ने कहा-हम जान दे सकते हैं-लेकिन किसी भी कीमत में जमीन नहीं दे सकते हैं।
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