
नीति में कहा गया है कि हर विस्थापित को नौकरी देगें। सवाल है आज भी 80 फीसदी ग्रामीण अशिक्षित हैं, कईगांवों में तो एक भी मैंर्टीक पास वाले नहीं हैं। इसके लिए ग्रामीणी दोषि नहीं हैं, इसके लिए दोषि है तो सरकार औरव्यवस्था। ज्ञात हो कि आज ग्रामीण क्षेत्रों में दर्जनों उत्क्रामित स्कुल में सांइस शिक्षकों का पद खाली पड़ा है क्योंकिक्षेत्र में साइंस पढ़े-लिखे युवक-युवातियां नहीं मिल रहे हैं। तब यहां के आदिवासी-सदान किसान कंपनी के शुद्वआय तथा शेयर@डिवेंचर का मायाजाल को कितने लोग समझेगें। यह भी समझने की बात है कि जिस ईलाके मेंकंपनी प्लांट लगाएगी, उस क्षेत्र में कितने टेकनिकलहोडर हैं, कितने मेकेनिकल हैं, कितने इंजिनियर हैं, कितनेआईटीआई वाले हैं, कितने कमप्युटर में दक्ष लोग है क्योंकि कंपनी में नियोजन-नौकरी पाने वाले उम्मीदवारों कीयोग्यता और पात्रता का यही मापदंड होगा। कुछ लोगों को नौकरी मिलेगी-तीस साल नौकरी के बाद आउट होजाऐंगे। कही गयी है-कंपनी के शुद्व आय का एक प्रतिशत प्रभावित परिवारों को दिया जाएगा। सवाल है कंपनी घाटेमें चल रहा है या लाभ में इसका हिसाब कौन रखेगा-यह सर्वविदित है कि कोई भी व्यवसायिक संस्थान अपनीअर्थिक सुरक्षा को देखते हुूए अपने का घाटा में ही बताता है। जब की जंगल जमीन पर समाज पीढ़ी डर पीढ़ीजीते- आ रहाहै..
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