
7.12 में कहा गया है-जिस परिवार को नौकरी नहीं मिलेगा, उसको उनके जमीन के एवज में प्रति एकड़ प्रतिमाहरू मिलेगा 30 वर्षों तक दिया जाएगा-यह वार्षिक पालिसी के तहत दिया जाएगा प्रतिएकल परिवार को।उदा-एक परिवार में दस सदस्य हैं, और इस परिवार का पांच एकड़ जमीन अधिग्रहण कर लिया गया। इस परिवारका जमीन के एवज में अब प्रतिमाह पांच हजार रूपया मिलगा बिना मेहनत किये। यहां यह भी देखना है कि अबइस परिवार को हर चीज पौसों से खरीद कर ही जीना है, चठी-बरही, शिक्षा-दिक्षा, शादी-विवाह सभी सामाजिकदायित्व पूरा करना है। वार्षिक पोलिसी तहत मिलने वाले इस राशि को जमीन का पेंशन भी कह सकते हैं। जिनकिसानों के पास अधिक जमीन है-यह इस मुगालतें में रहें कि उनको प्रतिएकड़ एक हजार रूपया मिलेगा तोजिनकी 15-20 एकड़ जमीन लेली गयी, उसको 15-20 हजार प्रतिमाह मिलेगा, एैसा नहीं है। नीति कहता है- वार्षिक पालिसी के अधीन अधिकतम राशि प्रति माह हस जहार रूपये प्रति परिवार तक सीमित होगी। इसी नीतिमें कहा गया है-एक वर्ष की अवधि के लिए प्रति माह पच्चीस दिनों की न्यूनतम कृषि मजदूरी के बराबर मासिकजीविका भत्ता दिया जाएगा-यहां सवाल उठता है-पिछले तीन साल से केंन्द्र सरकारी की बहुमुखी राष्टीय ग्रामीणरोजगार योजना चलायी जा रही है। इस एक्ट में प्रावधान है कि जिस दिन से मजदूर रोजगार के लिए फार्म भरता हैइसके 15 दिनों तक यदि उत्क व्यत्कि को रोजगार नहीं मिलता है तो उसे 50 दिनों का बेरोजगार भत्ता दियाजाएगा। इस योजना को कर्यान्वित करने के लिए प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री, बीडीओ से लेकर पंचायत सेवकतथा लाभुक समिति तक जिम्मेवार है। जगजाहिर है इस योजना की स्थिति का, योजना को सही तरीके से लागूकरनो वाले युवक ललित मेहता की हत्या तथा हाजीरीबाग के तापस सोरेन की अत्महत्या ने दुनिया का बता दियाकि यहां का लूट तंत्र कितना निर्मम और कठोर है। तब सवाल है कि विस्थापितों को न्यूनतमकृषि मजदूरी केबराबर मासिक जीविका भत्ता मिलना कितना कठिन होगा यह तो समय ही बताएगा।
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