Ise Khet par Hamare kai pidhi..Jiwika..Jindagi...Bitaye...Our Jab tak ye Dharti rahegi...Aane wala kai Pidhi ise me jita--palta..rahega...Khud to Kisan khet ka upaj khate hi hai..pure Desh ko bhi khilate hain..
नीति के 7.2 में कहा गया है-प्रत्येक विस्थापित परिवार को ग्रामीण क्षेत्रों अधिकतम 10 डिसमिल तथा शहर में 5 डिसमिल होगा दिया जाएगा, जिसका कारपेट एरिया 100 वर्ग मीटर होगा। इसी जमीन पर एक पक्का मकानजिसमें दो कमरा, एक ड्राईंग रूम तथा एक किचन होगा बना कर दिया जाएगा। जो इस जमीन पर घर नहीं चाहताहै को एक मुश्त तीन लाख रूपया दे दिया जाएगा, इस तीन लाख रूपया से कहीं दूसरा जगह जाकर जमीन खरीदोऔर घर बनाओ। कहा गया है-जिनके पशुधन हैं-मुर्गी-चेंगना, गाय-बैल, भेड़-बकरी, काडा-भैंस, बत्तक इनकोरखने के लिए भी इसी 10 डिसमिल जमीन में गाय-बैल-बकरी गोहार बनाना है। सुअर के लिए सुअरगुड़ा भी इसीमें बनाना है। कुत्ता-बिल्ली तो साथ रहेगें ही।
इस नीति के ड्रफट में किसानों के जमीन जिसको अधिग्रहण किया जाएगा -उसका क्या कीमत होगा, किस दर सेहोगा, इसका कोई जिक्र नहीं है। यहां यह भी समझने की जरूरत है कि जब राज्य सरकार और कंपनी के बीच, जिसभी कंपनी के साथ एमओयू किया गया है, उसमें क्या-क्या शर्तें हैं। जमीन अधिग्रहण संबंधी, मुआवजा यह अन्य प्रावधानों पर सरकार और कंपनी के बीच क्या शर्तें हैं। विस्थापितों के प्रति कंपनी कहां-कहां उत्तरदायी है औरसरकार किन-किन दायित्वों के लिए जवाबदेह होगी। इसका खुलासा आखिर सरकार जनता के सामने क्यों नहींकरती है। जिस जनता के जिंदगी के कीमत का सौदा किया जा रहा है-उनके सामने एकरारनामा एमओयू काखुलासा आखिर क्यों नहीं किया जा रहा है। एमओयू को परदे के पीछे रख कर पुनर्वास्थापन और पुनर्वास नीतिकैबिनेट में पारित करना आदिवासी-मूलवासी किसानों के साथ बहुत बड़ा धोखा है।
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