VOICE OF HULGULANLAND AGAINST GLOBLISATION AND COMMUNAL FACISM. OUR LAND SLOGAN BIRBURU OTE HASAA GARA BEAA ABUA ABUA. LAND'FORESTAND WATER IS OURS.
Saturday, August 20, 2011
ग्रामीणों को सोलर लैंम्प सौंप दिया गया। यह भी तय किया गया कि इससे सिर्फ बच्चे ही नहीं पढ़ेगे, बाल्कि युवा वर्ग तथा प्रौढ भी इसका लाभ उठा सकते हैं।
खूंटी जिला
कर्रा प्रखंड के लिमडा+ पंयाचत के अतंर्गत सबसे दूरस्थ गांव है चान्हू। यह उरांव आदिवासी गांव है। यहां 62 उरांव परिवार रहते हैं। जनसंख्या 300 के करीब है। कर्रा प्रखंड में यह सबसे पिछड़ा गांव है। विकास की किरण से महरूम इस गांव से हर साल रोजगार की तलाश में भारी संख्या में युवक-युवातियों का पलायन दूसरे राज्यों में होता है। उरांव आदिवासी गांव होने के बावजूद यहां के लोग अपनी भाषा बोल नहीं सकते है। सभी मुंडारी भाषा ही बोलते हैं. शिक्षा के क्षेत्र में भी यह गांव पिछड़ा हुआ है। यहां सिर्फ एक युवक बीए पास था २०१०तक. । ननमैट्रिक -4 लोग है, तथा एक आने वाला साल मैट्रिक लिखेगा। ज्ञात हो कि कर्रा प्रखंड पहले रांची जिला में था। 11 अक्टोबर 2007 को खूंटी जिला का निर्माण हुआ। इसके बाद कर्रा प्रखंड को भी खूंटी जिला में शामिल किया गया।
गांव में बच्चों की संख्या 40 से कम नहीं है। यहां के बच्चों को न तो आंगनबाड़ी से शिक्षा की सुविधा मिलती है न ही दवाई या पोषाहार ही। गांव में प्राईमरी स्कूल भी नहीं है। बगल गांव हुटूब में स्कूल है जहां 5वीं क्लास तक है। लेकिन यहां स्कूल का यह हाल है कि यहां शिक्षक- शिक्षिका सही तरीक से स्कूल आते ही नहीं हैं। गांव से 5 किमी दूर सेमला गांव में स्कूल है जो नदी पार करके जाना होता है। गांव के 30-35 बच्चे यहीं पढ़ने जाते हैं। नदी में पुल नहीं होने के कारण बरसात में बच्चे स्कूल जा नहीं सकते हैं, इस कारण इनकी पढ़ाई पूरी बरसात रूक जाती है।
बैठक में ग्रामीणों ने चिंता जाहिर किया कि इस गांव में अधिकांश लोग ठेपा छाप हैं जो हमारे समाज के पिछड़ने का सबसे बड़ा कारण है। हम लोग पढ़े-लिखे नहीं हैं, इसकारण विकास योजनाओं का लाभ भी हमारे गांव को नहीं मिल रहा है। इसलिए हम चाहते हैं कि हमारे लोगों को जो प्रौढ़ हैं उन्हें भी पढ़ना-लिखना सिखाया जाए। इसके लिए कोई व्यवस्था हो। बच्चों को भी हम अच्छी शिक्षा देना चाहते है। लेकिन स्कूल दूर है साथ ही बरसात में बच्चे गांव में ही रहने को विवश हो जाते है।
गांव का राशन दुकान चापी-बिकवादाग में हैं। गांव में कई लोगों के पास न तो लाल कार्ड है न ही पीला कार्ड ही। ग्रामीण कहते हैं- राशन के नाम पर सिर्फ दो लीटर किरासन तेल ही मिलता है। जगजाहिर है कि यह भी सही तरीके से नहीं मिलता है। गांव वाले कहते हैं-हम लोग बच्चों को स्कूल तो भेजते हैं-लेकिन बच्चे घर में रात को पढ़ नहीं पाते हैं क्योंकि डिबरी बती जलाने के लिए किरासन तेल नहीं मिलता है। बाजार में इतना मंहगा है कि गरीब परिवार खरीद नहीं सकते हैं। ग्रामीणों ने बैठक में इच्छा जाहिर किये कि यदि बच्चों के पढ़ाई के लिए बती का व्यवस्था हो तोगाँव को बड़ी सहायता हो सकती है। विदित हो कि प्रखंड मुख्यालय से दूर किसी भी गांव में बिजली आज तक नहीं पहुंची है।
बैठक में गांव के कई मुददों पर चर्चा के बाद बच्चों के पढाई के लिए सोलर लैंम्प देने की घोषण की गयी। 10 ग्रामीण सोलर लैम्प की देख रेख के लिए लिखित जिम्मेवारी लिये। जो सोलर लैंम्प सही तरीक से उपयोग हो रहा है या नहीं इसके लिए जिम्मेवार होगें। इसी के आधार पर ग्रामीणों को सोलर लैंम्प सौंप दिया गया। यह भी तय किया गया कि इससे सिर्फ बच्चे ही नहीं पढ़ेगे, बाल्कि युवा वर्ग तथा प्रौढ भी इसका लाभ उठा सकते हैं।
आज के बैठक में गाँव के सभी उम्र के लोगों ने भाग लिया। करीब 101 लोगों की उपस्थिति रही, बच्चों को छोड़ कर। इसकी प्रती भेज रही हुं। इस बैठक में भी आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच. तथा झारखंड अचरा जनसंघर्ष समिति के सदस्य सहित गांव का प्रधान श्री शिवा राम उरांव भी उपस्थित थे।
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