Sunday, August 28, 2011

भूमि की प्रकृति बदल कर.नहीं बनेगी इमारतें..२४ जुलाई 2011


विदित हो की आज पूरे देश में बड़े उद्योग घरेने ..उद्योग लगाने के लिए ..किसानों, आदिवासियों, मूलवासियों, मछुवारो के hath से जंगल जमीन नदी पहाड़ छीने की कोशिश कर रही है..सभी उपजाऊ..खेती की जमीन है..कंही कंही तीन फसल भी होता है..लेकिन कंपनियों को जमीन देने के लिए..कृषि भूमि, जंगल, जल स्रोत का प्रकृति..बदल कर इसे बंजर ..वेस्ट लैंड करार दे रही है..और इसे जबरजस्त अधिग्रहण की कोशिश कर रही है..बन्दुक के नोक पर..

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