Friday, April 1, 2011

आज जल-जंगल-जमीन, भोजन, शिक्षा एवं स्वास्थ्य को बहुराष्ट्रीय कम्पनियां मुनाफा कमाने का साधन बना रहे हैं इस साजिश को समझने और रोकने की जरूरत है।-SARHUL-



OUR HERITAGE...
आज जरूरत है झारखंड के तमाम उजाड़े जंगलों के ठूठों में हरियाली भरने की। सर्वविदित है कि आदिवासी जहां हैजंगल वहीं बच सकता है। जल-जंगल-जमीन-पर्यावरण के संरक्षक और पालक आदिवासी ही हो सकतें है।सरकारी तंत्र नहीं। सर्व विदित है कि झारखंउ सरकार ने दस सालों में 104 देशी -बिदेशी कंपानियों के साथ एमओयूसाईन किया है। यदि सभी कंपानियां यहां उद्योग लगाएगें, सबको पानी चाहिए, खदान के लिए जंगल-जमीनचाहिए, तो एक समय आएगा, यहां के किसानों आदिवासियों के हाथ एक इंच भी जंगल-जमीन नहीं बच पाएगा।इसलिए उन तमाम विनाश एवं विस्थापन मूलक नीतियों कें खिलाफ जनगोलबंद खड़ा करने की जरूरत है। छहअप्रैल को सरहुल शोभा यात्रामें लाखों जन शैलाब ढोल मांदर-नगाडा के साथ मेन रोड में उमडेगा, उस शैलाब कोजंगल-जमीन, सरना-ससनदीरी की रक्षा के लिए नवसाम्राज्यवाद एवं फासिस्ट शत्कियों के खिलाफ संघर्ष केलिए किस तरह तैयार किया जाएगा, यह एक अहम सवाल है। आज जल-जंगल-जमीन, भोजन, शिक्षा एवंस्वास्थ्य को बहुराष्ट्रीय कम्पनियां मुनाफा कमाने का साधन बना रहे हैं इस साजिश को समझने और रोकने कीजरूरत है।

No comments:

Post a Comment