महाराष्ट्र जैतापुर में नियुक्लियर पावर प्लांट के विरोध में चल रहे संघर्ष पर राजकीय दमन का चरम पर है । 2005 में जैतापुर में न्यक्लियर पावर प्लांट लगाने की अधिकारिक जानकारी मिली। 2005 से ही ग्रामीण पावन प्लांट के खिलाफ गोलबंद होना शुरू किये। इसकी लड़ाई कोर्ट में भी ले जाया गाया, लेकिन कोर्ट ने दो मिनट में इसे-न्यक्लीयर एनरजी का हवाला देते हुए प्रोजेक्ट के पक्ष में फैसला सुनाया। लेकिन ग्रामीण-किसान अपने अधिकार के लिए लड़ाई और तेज किये। सरकार जबरजस्त प्लांट के लिए स्थानीय ग्रामीणों से जमीन लेना चाह रही है। आंदोलन को कुचलने का हर हथकंड़ा सरकार अपना रही है। 3000 लोगों पर अलग-अलग झुठा मुकदमा थोम दिया गया हैं। इस इलाके में सभी तरह , बैठक करने पर सरकार रोक लगा दी है। जैतापुर से 30 किलो मीटर के बैठक करने की इजाजात है। बिना जनसुनवाई किये वहां परियोजना का काम शुरु कर दिया हैं। पर्यावरण मंत्री जयराम रामेश ने परियोजना को क्लीयारें’ देकर हरि झंण्डी दे दी है।
प्लांट के लिए तीन पंचायतों को जमीन सरकार ऩे जबरजस्त अधिग्रहण किया है। जब सरकार ग्रामीणों की मांग मानने को तैयार नहीं हैं-इस मुददे को लेकर तीनों पंचायत के ग्राम पंचायत सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया है। आंदोलन पर राजकीय दमन जिस तेजी के साथ बढ़ रहा है-जनआंदोलन उतनी ही मजबूती से आगे बढ़ रहा हैं। हर दिन सभा, बैठक करते हैं-प्रशासन जेल ले जाती है। जेल से बाहर आते ही-फिर से सभा, रैली।
ग्रामीणों ने एलान कर दिया है-लड़ते लड़ते मरना पसंद है लेकिन न्यक्लियर पावर प्लांट मंजूर नहीं।
महाराष्ट्र के जैतापुर में दो नाभिकीय रियेक्टर लगाने की योजना भारतीय नाभिकीय बिजली विभाग ने सितंम्बर 2005 में पहली बार सार्वजनिक तौर पर घोषणा किया। यह बात अमरीका भारत रागरिक सहयोग परमाणु करार पर हस्ताक्षर होने के ठीक दो महीने के बाद की है। इस करार का विचार आने के दो साल पहले 2003 एन.पी.सी.आई.एल ने जैतापूर क्षेत्रउका व्यवहार्यता अध्ययन करने का आदेश जारी किया था।
यह प्रकल्प शुरू में दो 1000 मेगावाट रियेक्टर का था। इसे फरवरी 2006 में संशोधित किया गया जब भारत और फा्रंस ने नाभिकीय सहयोग के समझौते पर हस्ताक्षर किये और जैतापुर में नाभिकीय बिजली पार्क स्थापित करने के इरादे की घोषणा की। इस पार्क में EPR (यूरोपियन पै्र’ाराइज्ड रियेक्टर्स) की 2 इकाई प्रत्येक 1650 मेगावाट की लगाने की बात तय हुई। जैतापुर में दुनिया का सबसे बड़ा नाभिकीय बिजली घर बनाने की योजना है। यह जापान के कशिवकाफी कारीवा प्लांट से भी बड़ा होगा। रियेक्टरों की डिजाइन निर्माण का काम फ़्रांस की सरकारी नाभिकीय उर्जा कंपनी अरेवा करेगी।
जैतापुर नाभिकीय प्रकप्ल 468 हैक्टयर भूंमि पर फैला होगा और इससे पांच गांव जउड़ जायेगें। ये गांव हैं-माडवन, निवेली, करेल, मिठगवने और वर्लीवाड़ा। इन गांवो की कुल आबादी 4000 है। माडवन और वर्लीवाडा प्रकल्प स्थल के लिए चुने गये है। जबकि करेल, मिठगवने में प्रकल्प कमचारियों की बस्ती बनेगी। परमाणु उर्जा आयोग (क्।म्द्ध का माना है कि जैतापुर नाभिकीय उर्जा पार्क से लोगों का कोई विस्थापन नहीं होगा और जितनी भूमिं की जरूरत है वह अनुत्पादक है। यह सच नहीं है-सच तो यह है इस इलाके के लोगों की आजीविका, सामाजिक,संस्कृतिक, आर्थिक व्यवस्था यह मूलाधार है।
जैतापुर क्षेत्र के लोगों को भूमिं अधिग्रहण आदेश 2007 में मिल गये थे और जनवरी 2010 तक महाराष्ट सरकार ने 93.026 हेक्टेयर भूमिं का अधिग्रहण पूरा कर लिया था। सरकार ने ग्रामवासियों को बंजर भूमिं का प्रतिवर्ग फुट का रू 2.86 और कृर्षि योग्य भूमिं का रू 3.70 प्रति वर्ग फुट मुआवजा देने की घोषणा की थी। बाद में इसे प्रति एकड़ 4 लाख रू तक बढ़ा दिया और अभी हल ही में इसे 10 लाख रू प्रति एकड़ कर दिया है और प्रत्येक प्रभावित परिवार को एक रोजगार देने की गारंटी दी हैं।
लेकिन जबरजस्त भूमिं अधिग्रहण करने के बावजूद 2375 प्रभावित परिवारों में केवल 114 परिवारों ने ही मुआवजा लिया है। अन्य सभी ने चेक लेने से इनकार कर दिया है। भूमिं अधिग्रहण की प्रक्रिया नितान्त अलोकतंत्रिक रही है और कभी कभी हिंसक भी।
न्यूक्लियर पावर कारपोरेशन आफ इण्डिया लि0 ने 65 प्रतिशत भूमिं को बंजर करार कर दिया है। स्थानीय लोग इसे अत्यंत अतयाचारपूर्ण मानते हैं क्योंकि यहां की भूमिं अत्यन्त उपजाउ है और यंहा चावल और दाल अन्य आज, दुनिया का सबसे मशुर आम -एलफोंसो, काजू, नारियल, कोकम, सुपारी अनन्नास और अन्य फल प्रचुर मात्रा में पैदा होते हैं। कुद भूंमि चारागाह और वर्षा आधारित खेती के लिए भी इस्तेमाल होती है।
2003 में महाराष्ट्र सरकार ने सरकारी योजनाओं के तहत रत्नागिरि को उद्यान कृर्षि जिला घोषित किया था। किसानों ने उद्यान कृर्षि, खासतौर से आम और काजू में बड़ी मात्रा में पूंजी लगायी है। और अक्सर कर्ज लेकर पूंजी लगायी है। ये शिकायत तो है कि सरकार ने उनकी बागवानी की फसलों का सही रिकार्ड नहीं रखा है। पर लोगों का यह भी दावा है कि इन फलदार वृक्षों का मुआवजा उनसे होने वाली सालाना आमदनी से बहुत कम है। जो दर आम के वृक्षों की तय की गयी है वह है 9386 रू. प्रतिशत , जबकि एक वृक्ष से लोग सलाना 10,000 से 15,000 रू. कमाते हैं। काजू वृक्ष के लिए सरकारी दर 1989 रू. प्रति वृक्ष तय की गयी है। जबकि ऐसे हर वृक्ष से सालाना कमाई सामान्यता 4000 रू. से 5000रू. है।
रत्नागिरि में 15,233 हेक्टेयर भूमिं पर आम के बागान हैं जिनकी सालाना आमदनी का अनुमान 2200 करोड़ रू. है। आम की फसल तापमान और मिटटी की रासायनिकी में हल्के से परिवर्तन से उत्यन्त संवेदनशील हो जाती है। स्थानीय लोगों को आशंका हे कि यदि यह प्रकल्प खड़ा हो गया तो उनकी आम की फसल समाप्त हो जायेगी।
खेती और बागवानी के अलावा, जैतापुर माडवन क्षेत्र में काफी बड़ी मॅंछुआवी अर्थ व्यवस्था है। मछुआरों की आबादी भी प्रभावित होगी क्योंकि प्लांट से 52.00 करोड़ लीटर गर्म पानी अरब सागर में रोज छोड़ा जायेगा। समुद्रजल का तापमान बढ़ने से साथ साथ तटीय इलाकों में कड़ी सुरक्षा भी मच्छली मारने को बड़ी मात्रा में घटायेगी।
स्थानीय समुदाय को डर है कि प्रकल्प एक बार चालू हो गया तो भारी भरकम सुरक्षा व्यस्था मछुआरों को जैतापुर और विजय दुर्ग की दो संकरी रवाडियों में निर्बाध रूप से मच्छली मारने में बाधक बनेगी। इन रवाडि़यों में उन्हें 20 फैथ्म की गहराई मिलती है जो सामान्यतः 2 से 3 बाॅटीकल मील पर अन्य तटों पर प्राप्त होती है। कुल मिलाकर नाभिकीय पार्क 40,000 लोगों को जीविका से उजाड़ेगी। इनमें 15000 लोग मच्छुवारे होंगें।
महाराष्ट्र मच्छीमार कृति समिति के अनुसार सात मछुवारों के गांव सखारी नाटं, तुलसुंडे, आम्बोल गढ़, सगवा, कथाड़ी, जभाली और नाना इंगलबाड़ी को नाभिकीय उर्जा प्रकल्प से खतरा पैदा हो जायेगा। रत्नागिरि जिले में सालाना मच्छी पकड़ने की मात्रा 1,25.000 टन है। इसमें से लगभग 40,000 टन सखारी नाटे से मिलती है।
इन गांवों में मच्छी व्यवसाय से सालाना आमदनी लगभग 15 करोड़ है। केवल नाटे में 200 बड़े टा्रवलर और 250 छोटी नावें है। इस क्षेत्र में मच्छी मारने के कारोबार पर लगभग 6000 सीधे निर्भर हैं और 10,000 से अधिक सम्बन्धित यह सहयोगी प्रतिविधियों पर निर्भर है।
जो मच्छलियाॅं यहा पकड़ी जाती हैं, उनका एक बड़ी मात्रा में यूरोप, जापान और अन्य देशों में निर्यात किया जाता है। मछलियाॅं का निर्यात भी उप्रभावित होने की संम्भावना है क्योंकि यहां के उत्पाद सायद यूरोप के कैच सटी्रफिकेट की कड़ी ‘’ार्तें न पूरी कर पायें। इन शर्तों के मछली पकड़ने के स्थान, गहराई, तापमान और समय पर ध्यान देना पड़ता है।
विकसित देशों के उपभोक्ता नाभिकीय रियेक्टरों के पड़ोस में उगायी मछलिया,या आम खाना पसंद नहीं करेगें। रत्नागिरि से जापान को आम की भेजी गयी खेपें नामंजूर कर दी गयी हैं। कयोकि पैकिंग सामग्री में कीटना’ाकों के अंस पाये गये।
जो आबादी खेती, बागवानी और बछली पालन यह सीधे निर्भर है, उसके अलावा जैतापुर माडवन में हजारों लोग हैं जो दूसरे दर्जे के पेशों से अपनी आजीविका कमा रहे हैं। आम और काजू का प्रसंसकरण, व्यापार, परिवहन, मछली पकड़ने के जाल बनाना, विभिन्न प्रकार के उपकरण और मशीनीकरण का रख-रखाव व जिसमें कुशल और A दोनों प्रकार के कारीगरों की जरूरत पड़ती है।
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