VOICE OF HULGULANLAND AGAINST GLOBLISATION AND COMMUNAL FACISM. OUR LAND SLOGAN BIRBURU OTE HASAA GARA BEAA ABUA ABUA. LAND'FORESTAND WATER IS OURS.
Thursday, July 21, 2011
विश्व बैंक विकास के नाम पर किस तरह से गुल खिला रहा है
विश्व बैंक विकास के नाम पर किस तरह से गुल खिला रहा है।
ग्रामीण महिलाओं को साश्कत करने के लिए पूरे देश के गांवों में महिलाओं को स्वंय सहायत समूह बनवाकर उनके खून-पसीना के कमाई का लाभ सीधे तौर से विश्व बैंक ले रहा है। महिलाएं तो अपना एक-एक बचत ग्रामीण बैंकों में जमा कर रही हैं। यदि एक ग्रामीण बैंक में 250 स्वंय सहायता समूह ने खाता खोल कर पैसा जमा किया है, और हर महिला समूह ने दस से पंद्रह हजार रूपया न्यूनतम जमा किया है। इसमें से मात्र 3-4 समूह ने बैंक से किसी तरह का व्यवसाय करने के लिए बैंक से लोन ली है। अगर प्रखंड कार्यलयों से सबस्डी देने की भी बात करें तो, ग्रेडिंग के बाद 10-12 समूहों को ही दस हजार की सबस्डी पर 25 हजार मिला है। महिलाओं को ग्रुप बनाने के लिए विश्व बैंक ने सभी एनजीओ को करोड़ो रूपया दे रखा है। दूसरा उदाहरण-महाराष्ट के किसानों से अपना परंपरागत खेती, बीज, खाद छीन लिया और नगदी फसल के रूप में गने की खेती शुरू करावायी गयी, आज गने की खेती उन किसानों के लिए मंहगी होती जा रही है। इससे विर्दवा के किसान सर्ववईव नहीे कर पा रहे हैं। हर साल ऋण के बोझ से दबते जा रहे हैं और किसानों के अत्महत्या करने की संख्या बढ़ते जा रही है। विश्व बैंक की मेहरवानी होगी कि अब भारत के दूसरे राज्य के किसान जो देश को चावल -दाल, तेल, रागी, तिल, उराद पैदा कर दे रहे हैं। ऐसे किसानो के हाथ से भी अपना परंपरागत खेती, यह दलील देकर छीन रहा है कि यह आप का पुराना बीज, खाद से उन्नत किस्म का चावल पैदा नहीं हो सकता है, साथ ही पैदवार भी बहुत कम हो रहा है। इसलिए उन्नत बीज लगाने को विवस कर रहा है। हाईब्रीड का बीज किसानों को दिया जा रहा है। इस बीज के लिए दो-तीन तरह का रसायनिक खाद खेत में डालना ही है। साथ ही जितना मात्रा में पानी उस पैधा को चाहिए, उतना पानी नहीं मिल पाया तो खेत में पौधा तो खड़ा दिखेगा लेकिन उसमें बालियां ही नहीं लगेंगी। रसायन से खेत की मिटटी कठोर होते जाएगा और उरर्वता शून्य की ओर बढ़ता जाएगा। कुछ सालों तक तो किसानों को अच्छा पैदवार मिलेंगा, लेकिन समय के साथ यह खेती बहुत महंगी होगी, रसायनिक खादों का दाम, बीज का दाम, मेहनत का दाम जोडतें किसानों का कमर टूट जाएगा, धान-गेंहू , दाल खेती करने वाले किसान भी अपने को ऋण से घिरे पाएगें। इसके बाद इनके पास एक रास्ता होगा आत्महत्या का। इस खेती पद्वति से विश्व बैंक किसानों के बीच तीन तरह के कंपनियों का बाजार स्थापित कर रहा है-पहला- रसायनिक खात बनाने वाले कंपनी, दूसरा- रसायनिक खाद के सहयोग से पैदवार देने वाले हाईब्रीड बीज को सर्पोट करने वाली दवाईयों की कंपनियां (दवाईयों का छिड़कावा भी खेत में आतिआवश्यक है)। तीसरा-बीज कंपनिया-हर साल किसानों को खेत में बीज डालने के लिए 100रू किलो के दर बीज खरीदना होगा। क्योंकि पुराना बीज से पैधा नहीं लगेगे, यदि लगेगा भी तो उसमें बालियां ही नहीं लग रही हैं। इस खेती के लिए मौसमी बरसात का पानी प्रयाप्त नहीं होगा तो आने वाले दिनों में किसानों को पानी भी खरीदना होगा खेत के लिए। बात यहीं समाप्त नहीं होता है-इस हाईब्रीड खेती से पर्यावरण के साथ जमीन की इकोलोजिकल सिस्टम नष्ट हो रहा है, खेतों से मच्छलियां, केकड़ा, मेढक गायब हो रहे हैं। इसे किसानों की आर्थिक स्थिति पर प्रतिकुल प्रभाव पड़ रहा है। गांव की आर्थिक व्यवस्था इसके कारण दिनों दिन कमजोर होता जा रहा हैं। रासायनिक खाद के कारण आज पर्यावरण का भरी नुकशान हो रहा है. ग्रामीण जिस जिस पेड़ -पौधे, झाड़- लाटर, घांस-फूस, कांड-मूल जीविका का एक आधार मन जाता था..पूरी तरह प्रभावित है..d
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