Wednesday, July 20, 2011

देश की सरकार कल्याणकारी सरकार अपना अस्तित्व को खारिज कर कंपनियो के अस्तित्व को स्थापित तथा विकसीत करने के देशा में आगे बढ़ रही है

देश की सरकार कल्याणकारी सरकार अपना अस्तित्व को खारिज कर कंपनियो के अस्तित्व को स्थापित तथा विकसीत करने के देशा में आगे बढ़ रही है। आज सरकार विकास का हर ऐजेंड़ा पाब्लिक पा्रईवेट पटनरशिप के तहत कंपनियों के साथ तय कर रही है। हमारी कल्याणकारी सरकार पंगु हो चुकी हैं। कंपनियों के हाथों देश के सौंप चुकी है-जो आने वाले समय में देश के आदिवासी-मूलवासी, किसानों, कस्तकारों,मेहनतकशों मजदूर के अस्तित्व को पूरी तरह से मिटाने की कोशिश है।इस खतरे की घंटी को हम आम आवाम अनुभव तो कर रहे हैं, लेकिन इसको रोकने के लिए गोलबंद नहीं हो पा रहे हैं। यह हमारे लिए सबसे बड़ा खतरा है।
भारत एक लोकतंत्र देश है। इस लोकतंत्र को संचालित-नियंत्रित-विकसीत करने के लिए सरकार ने संविधान में जो प्रावधान किये थे-इसके तहत सरकार एक कल्याणकारी व्यवस्था के तहत अपने देशवासियों को उनके मौलिक अधिकार दिये थे। इस नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए भी संविधान में दर्जनों नियम-कानून बनाये गये। लेकिन अब सरकार अपने देशवासियों के मौलिक अधिकारों की पूर्ति, उनकी सुरक्षा देने से भाग रही है। कल्याणकारी की आवधारणा को पूरी तरह से खत्म कर दे रही है। अब अपने नागरिकों के मौलिक अधिकारो की पूर्ति, सेवा आपूर्ति की जिम्मेवारी को दरकिनार कर नीजि मालिकों, पूजिंपतियों, कंपनियों के हाथों सौंप रही है। जनता के प्रति सरकार की गौरजिम्मेदाराना का ही परिणाम है हर सेवाओं की आपूर्ति के लिए निजी कंपनियों की ओर...ताकना। आज सरकार को अपनी शत्कि -क्षमता पर भरोसा खत्म होता जा रहा हैं। यही कारण है कि-विकास का सारा जिम्मेवारी निजी कंपनियों के हाथों सौंप रही है। अब राज्य में सरकार जनता के प्रति अपने जिम्मदारियों से पूरी तरह पला झाड़ने की तैयारी कर चुकी है। जीवन की हर बुनियादी आव’यकताओं के लिए अब हर आम नागरिक को कंपनियों को पैसा देकर खरीदना होगा। सुद्व स्वांस लेने के लिए भी -पैसा भुगतान करना होगा।
राज्य के मुख्यमंत्री से लेकर पूरा मंत्रीमंडल, नगर निगम से लेकर पंचायत स्तर तक के सभी विकास योजनाओं के लिए सरकार कंपनियों पर ही आसरा लगाये बैठी है। शिक्षा स्वस्थ्य, पानी, बिजली, भोजन, नाली साफ की सफाई, संडक, कृर्षि, पर्यावरण, आवागमन, पुल-पुलिया, आवास, फोन, वित्तीय संस्थान, जंगल, जमीन, नदी-जलस्त्रोतों, अधुनिक तकनीकि सभी सेवाओं को निजी कंपनियों को सौंप रही है। दुखद बात है-सरकार हमेंशा रोना रोती है कि-विकास के लिए धन राशि नहीं है। सवाल है-राज्य से जो भी खनिज राज्य के भीतर और राज्य से बाहर दूसरे कंपनियों के साथ दूसरे राज्यों को बेची जा रही है। उसका पैसा कहां जा रहा है। आज हर नागरिक के नाम से बिदेशों से विकास के नाम पर सरकार-ऋण ले रही है-वो कहां जा रहा है। हर नागरिक-अपने जीवन के हर स्तर में सरकार को टैक्स दे रही है-एक व्यक्ति 10-12 तरह का टैक्स प्रत्यक्ष -अप्रत्यक्ष रूप में भुगतान कर रही है। आखिर ये सभी धन कहां जा रहा है। सरकार आज हर नागरिक को लाखोंधनराशी का ऋणी बना दिया है। फिर भी सरकार अपने नागरिकों के प्रति -सेवाएं उपलब्ध कराने में अक्षम है।
दूसरी ओर सरकार उन तमाम लूटेरों को संरक्षण दे रही है-जो राज्य के तमाम खनिजों का गैर कानून दोहन कर रहे हैं, बेच रहे हैं। गांव को लूट रहे हैं। यह माफिया, अपराधी राजनीतिक-प्रशासनिक गांठजोड की देन है। आज जिसको भी अपना प्रतिनिधि चुन कर किसी भी -किर्सी पर बैठा रही है-वहीं वह जनता के अधिकारों का सौदा कर रहा है। अब सरकारी योजनओं, सरकारी धनराशी के प्रति-हमारे जनप्रतिनिधों को कोई रूचि नहीं है, इसलिए की-सरकारी योजनाऐं-छोटी होती हैं, इसमें पीसी कम मिलेगा। वहीं कंपनियों से अपनी बोली लगाकर पीसी वासूल सकते हैं। प्रतिस्र्पाधा के इस बाजार में हर निवेशक अपना बाजार सफल करना चाहता है-अपना मुनाफा अधिक से अधिक बढ़ाना चाहता है-इसके लिए वह पीसी का भी प्रतिस्र्पाधा में आगे निकलना चाहता है।
सेवा के सभी क्षेत्रों में पाब्लिक प्राईवेट पर्टनरशिप को सर्वात्म समझा जा रहा है-लेकिन यह भी सच है-कि जो भी निवेशक होगा-उनका लक्ष्य सिर्फ मुनाफा बढ़ाना है ना कि जनसेवा है। पाब्लिक प्राईवेट पर्टनशिप पर आधारित अर्थव्यवस्था में सिर्फ अमीर, पूजिंपति और मीडिल क्लास का जीवन ही खूशहाल हो सकता है। इस व्यवस्था में छोटे पूजिंवालों, मेहनतकशों मजदूरों, आदिवासियों, मूलवासियों, किसानों, दलितों, अल्पसंख्याकों की जींदगी नहीं संवर सकती हैं। इस व्यवस्था में ये गुमनामी के अंधेरे में धकेल दिये जाऐंगे।

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