जलस्त्रोत, जंगल-पहाड़, पर्यावरण पर उद्वोगपतियों का कब्जा बढ़ता जा रहा है। जनता के समुदायिक-बुनियदी आधिकार पर चैरफा हमला हो रहा है।
250 किमी तक हिमाचल की वादियों में किलकारियां भरते हुए भारत की भूमिं को सिंच रही है। लगभग 150किमी किनौर की धरती को सिंचते हुए बखड़ा डैम तक पहुंच रही है। दुखद बात यह है कि इस नदी पर सौकड़ों परियाजनाएं प्रस्तावित हैं। कई दर्जन तैयार हो चुके है। नदी का पानी सुरंगों से दूसरी ओर बहा कर ले जाया जर रहा है। वह दिन दूर नहीं जब बहता सतलुज पूरी तरह से गायब हो जाएगा। सतलुज नदी shimla, कुल्लू, मांडी और बिलाsh पुर जिले में बहते हुए बखड़ा डैम तक पहुंचती है। यहां से करीब 100 किमी दूर तय कर केनल-नहर से पानी, पंजाब, हिरयाणा, चांडिगढ़, राजस्थान और दिल्ली भेजी जाती है। बखडा डैम बनने के बाद नदी अपना स्वाभाविक बहाव खो चुका है। साठ के दshक में बखड़ा डैम बना-जिसमें 20,290 एकड़ वनभूमिं, 23,863 एकड़ कृर्षि भूमिं जलमग्न हो गया। इस परियोजना से उन्ना तथा मांड़ी जिला की जमीन भी डूब गयी। 371 गांव जलमग्न हुए। बिलासपुर shहर जहां 7,206 परिवारों की 36,000 आबादी भूमिहीन हो गयी। इसी तरह बासी परियोजना से भी लोग विस्थापित हुए। साठ साल के बाद भी इन विस्थापितों का पूनर्वास और पर्नास्थापन नहीं किया गया है। दूसरी ओर बखड़ा परियोजना से 2,850 मेगावाट, तथा बासी परियोजना से 960 मेगावाट बिजली उत्पादित कर सरकार देsh को विकसित देsh होने का परिचय दे रहा है। सतलुज में और भी परियोजनाओं को उतारा जा रहा है। एक बृहद परियोजना बखड़ा के उतरी भाग पर निर्माणधीन है। एनटीपीसी हाईड्रो प्रोजेक्ट, काॅल डैम 1000 मेगावाट जल्दी ही shuरू होने वाला है। रामपुर में हाईड्रो प्रोजेक्ट 800 मेगावाट एसजेवीएन भी निर्माणधीन है। वहीं लाहिरी हाईड्रो परियाजना भी shuरूआती दौर में है।
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