Monday, June 13, 2011

जिस माँ से अशिर्बाद की उम्मीद में हम उनका चरण स्पर्ष करते हैं, धन की लोलूपता इस माँ को लूटने में भी कोई कसर नहीं छोड़ती है



bidhwa Baso Devi...
जिस माँ से अशिर्बाद की उम्मीद में हम उनका चरण स्पर्ष करते हैं, धन की लोलूपता इस माँ को लूटने में भी कोई कसर नहीं छोड़ती है। ये हैं बासो देवी, विधवा माँ घर है गुमला जिला के बसिया प्रखंड के पोकट गांव में। रहने के लिए छत्त नहीं है। पड़ासियों ने अपने घर में पनहा दिया है। बेघरों को इंदिरा गांधी आवास योजना के तहत इंदिरा आवास दी जाती है। बासो देवी को भी सरकार की ओर से इंदिरा आवास मिला है। इसके तहत 45,000 रू स्वीकृत की गयी है। इसमें से 20,000 रू इन्होंने निकाला। ताकि घर बनाना प्ररंभ कर सके। 6 जून 2011 को जब पोकटा पंचायत में मनरेगा योजना में काम किये मजदूरों को मजदूरी का भूगतान नहीं किया गया है, इस संबंध में मजदूरों की बैठक हुई। इस बैठक में बासों देवी भी सामने आयी। दुखड़ा सुनाई। उम्र इतना हो गया है कि अब बासो जी बिना डंडा के खड़ी भी नहीं हो पाती है एक तरफ उनमें माँ की मामता छलकती है, तो दूसरी ओर सामाज द्वारा छल्ल-कपट की शिकार पीडि़त वृद्व औरत का दर्द भी छलक रहा है। कहती है-इंदिरा आवास बना थों-नवीण कहलक पत्थल-इंटा गिराय देबु पैसा दे। 9000(नौ हजार) लेईगेलक आज तक तो इंटा गिरायेल ना तो पखन। कई धर गेलों कहेकले-कि गिराय दे-कहते रहाई गेलक हां गिराय देबु-आईज तक कोनो नंखे। कहती है-अब हम मिटटी का ही दिवाल उठा रहे है। घर तो किसी तरह तैयार करना ही हैं-इसलिए कि दूसरों के घर में हुं। सवाल है आखिर हमने कैसा सामाज बनया है। अपने ही माँ पड़ोस, भाई-बहन को लूट रहे हैं। बाहरी लूटेरों से तो लड़ सकते हैं-लेकिन अपने बनाये समाज से कौसे लड़गें, सुरुआत कहां से हो-यह अपने समाज के भीतर और बाहर सबसे बड़ा सवाह है। इस लड़ाई को आसानी से जीता जा सकता है-यदि सरकारी मशीनरी , प्रशासन इस लूट तंत्र को रोकने के प्रति कटिबद्व हो। साथ ही समाज को भी सोचना होगा की..क्या हम इसे तरह के समाज में रहना चाहते हैं..यह इसे बदलने की जरुरत है...जिस समय में शांति और neyay ho...

1 comment:

  1. एक एसे सिस्टम में जहा धूर्तता ही जीवन में श्रेष्ठत्व का मापदंड हो तो समाज के निचले पाय दान
    पर खड़े आदमी के लिये क्या बच जाता है.
    समाज के तथाकथित उच्च और कुलीन लोगो ने जो उदाहरन पेस किया है उसी का नतीजा है
    की आज सबसे निचे स्तर पर लोग अपने स्वार्थ के लिये किसी भी हद तक जा रहे है,
    अम्बानी टाटा से लेकर समाचार पत्रो के मालिको तक ....

    और दुःख ये है की निचले पायदान पर खड़ा आदमी इस अबाध लूट को देख कर
    अपने से कमजोर को ही लूटने की कोसिस करता है क्यों की आपने से बड़े पर तो उसकी चलती नही है
    या वहा तो उससे बड़े मगरमच्छ बैठे है .....

    ये सवाल महत्वपूर्ण हो जाता है की इस के लिये किसे जिमेवार ठहरये की उस आदमी को चोर किसने बनाया ...?

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