Saturday, June 25, 2011

स्थानीय लोगों ने चिंता जाहिर किया कि अब इस क्षेत्र की सामाजिक समरसता, संस्कृतिक और राजनीतिक पहचान भी खतरे में पड़ गया हैं-7



वायु प्रदूषण -जल विद्युत परियोजना रन आफ दी रीवर के निर्माण कार्य में भारी संख्या में mashinari , गाडि़यों, कम्प्रैshरों, बुलडोजरों आदि का प्रयोग होता है। इसके अतिरिक्त कई बड़े क्रशर प्लांटों को भी स्थापित किया जा रहा है। हजारों टन विस्फोट पदार्थ ब्लास्टिंग के लिए उपयोग किया जाता है। इन प्रदूषण स्त्रोतों से भारी मात्रा में कार्बन मोनो आॅकसाईड, कार्बन डाई आॅक्साईड कलोरोफलोरोकार्बन, मेथैन, सलफर डाईआक्ससाईड, नाईट्रोजन डाई आॅक्साईड आदि गैस उत्पन होगी और वायु प्रदूषण होगा।
मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव-कार्बन मोनोआॅक्साईड की मात्रा बढ़ जाने से दम घुटन होती है और आॅजोन रिक्तीकरण से त्वचा को कैंसर होता है। सल्फर डाईआॅक्साईड के कारण गाल, आंख वफेफड़े की बीमारी पैदा होती है। नाईट्रिक आॅक्साईड गैस बढ़ने सेवास सबंधी बीमारी होती है और निमोनिया जैसे आम बीमारी होने लगी है।

स्तलुज नदी में जेपी कंपनी के कर्मचारियों का आवास
किनौर क्षेत्र भारत के भूकंम्पीय मान चित्र के जोन 4 में स्थित है। किनौर जिला शीतमरुस्थालिया अर्ध शीतमरुस्थालिया क्षेत्र में स्थित होने के कारण यहां की भौगोलिक स्थिति अत्यंत नाजुक है। भूकंम्प की स्थिति में भूस्खलन आदि के कारण अत्यंत भौगोलिक हलचल हो सकता है और जान माल की भारी हानि हो सकती है। किनौर में अत्यंत तीब्रता वाले भूकम्प चुके हैं। और भारी जान माल की क्षति हुई है। वर्ष 1975 में किनौर में रिक्टर स्केल पर 6.8 तीब्रता वाला भूकम्प चुका है। किनौर में निर्मित, निर्माणाधीन और प्रस्तावित जल विद्युत परियोजनओं के जलाशयों लम्बी लंम्बी सुरंगों के कारण आने वाले दिनों में इस इलाके में भूकंम्प की स्थिति में भारी जान माल की स्थिति से इंकार नहीं किया जा सकता है।बिश्वा में अनेक उदाहरण हैं जहां भूकम्प से बांधो को नुकसान पहुंची है।
अचानक बाढ़-सतलुज जल संग्रहण क्षेत्र मरूस्थलीय एवं उंचे पहीड़ी क्षेत्र में स्थित होने के कारण कभी भारी वार्षा या बादल फटने की घटना घटती है तो नदी में महा प्रलंयकारी अचानक बाढ़ जाती है। जिससे घाटी में तबाही मच जाती है। जान -माल की भारी हानि होती है। इस प्रकार की प्रलंयकारी बाढ़ से नदी पर बनी परियोजनाएं नष्ट हो सकती हैं और जलाशयों के टूट जाने से बाढ़ की स्थिति और भयानक हो सकती है। वर्ष 2000 2005 में सतजुल में आई अचानक बाढ़ 2005 में वास्पा नदी में आई बाढ़ से नाथपा-झाखडी वास्पा-2 विद्युत परियोजनाएं बुरी तरह प्रभावित हुई थी। वास्पा नदी में बाढ़ आने पर परियोजना के सभी गेटस खोल देने से डाउनस्ट्रीम में भारी तबाही हुई और 4-5 गांव बुरी तरह प्रभावित हुए। पूर्व में 1988 में तिरूंग खड, 1993 में पूनंग खड, 1997 में पानवी खड में अचानक बाढ़ आने संे सतलुज घाटी में भारी तबाही मची थी।

गाद (सिल्ट) की समस्या- बाढ़ की त्रास्दी के अतिरिक्त सतलुज बेसिन में स्थित जल विद्युत परियोजनाओं का एक अन्य गंभीर समस्या से जूझना पड़ता है। वह है गाद, नदीं में वर्ष के अधिकाश समय में अत्यधिक गाद का बहना। गाद का आकार 0.2 एम0 एम0 से बड़ा हो या गाद की मात्रा 5,000 पी0 पी0 एम0 से अधिक हो तो परियोजना को भी बंद रखना पड़ता है। 2005 की बाढ़ के समय नदी में गाद की मात्रा डेढ़ लाख पी0 पी0 एम0 से भी उपर हो गयी थी। गाद की मात्रा अधिक बहने का मुख्य कारण नदी का 90 प्रतिशत जल संग्रहण क्षेत्रशीत मरूस्थलीय क्षेत्र में है।
पेड़-पौधों पर प्रभाव
ओजोन रिक्तीकरण के कारण पेड़-पौधों में फोटोसिनथिसिस, पानी का प्रयोग क्षमता तथा पेड़-पौधों की फल देने की क्षमता में बहुत कमी रही है। इससे जमीन में नमी की कमी के कामरण कृर्षि फल उत्पादन में भारी कमी रही है। श्री अजित राठैर कहते हैं-अब यहां मौसम में परिवर्तन के कारण पठारी क्षेत्र के पेड़-पौधों का विकास हो रहा है। आम आदि अब यहां भी फलने लगा है। इन्होंने चिंता जाहिर किया-मेरा चार बड़ा सेब का बागान है, इसमेे पहले बहुत अधिक फल लगता था, कम हो गया है। सल्फर डाईआॅक्साईड एवं ग्रीन हाउस गैसों के कारण भी पेड़-पौधे प्रभावित हो रहे हैं। वायुमंडल में अधिक मात्रा में धूल-कण होने से फलों की सैटिंग पर भी प्रभाव पड़ रहा है।
स्थानीय लोगों ने चिंता जाहिर किया कि अब इस क्षेत्र की सामाजिक समरसता, संस्कृतिक और राजनीतिक पहचान भी खतरे में पड़ गया हैं। यहां के जनजातियों की अपनी समाजिक-संस्कृतिक पहचान है। किनौर जिले में करीब 80 हजार जनसंख्या हैं। इसमें करीब 40 हजार वोटरस हैं। इस इलाके में तेजी से बढ़ती औद्योगीकिकरण के कारण बहरी आबादी भी तेजी से प्रवेश कर रही है। जो यहां की आबादी पर हावी होता जाएगा। इससे यहां की जातिय सामाजिक- संस्कृतिक अस्तित्व अपना पहचान खोता जाएगा।

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