भाग --१
आज हम विकास कि जिन उंचाई पर खड़े है, एक आम आदमी समझ भी नहीं सकता है। बैश्विक विकास के प्रतिस्पर्धा की दौड़ में हम जिंदगी के अस्तित्व के ताना को भी रैंद डाल रहे रहें है। हम भूल जा रहे है कि हम चांद के साथ कई और उपग्रहों पर भी अधिपत्य जमा लें, लेकिन जिंदा रहने के लिए आॅक्सीजन तो चाहिए , और ऑक्सीजन पेड़ -पौधों ,जंगल -झाड़ और प्रकृति से ही मिल सकता है । भूख मिटाने के लिए कुछ समय तक भोजन के सबसीटीयूट से भूख शांत कर सकते हैं, पानी के प्यास को किसी कृत्रिम पेय पदार्थ से प्यास बुझा सकते हैं। लेकिन सवाल है इससे कब तक स्वस्थय और जीवित रह सकते हैं।
आज विकास के जो मोडल अपना कर हम प्रकृति-पर्यावरण, का सेहत बिगाड़ कर, विगड़े मौसम, बिगड़े पर्यावरण और सेहत को बिगाड़े ,अब इससे फिर से ठीक करने के लिए चिंतित हैं। इस बिगड़े पर्यावरण की सेहत के साथ अपनी सेहत को सुधारने के लिए हम अपने जीवन शेेली को बदलने का राह तलाशने में जुटें है। अब सब चाहते हैं सबस्टेनिबल डवलपमेंट के साथ ओरगेनिक भोजन वस्तु मिले। ऑर्गेनिक भोजन के साथ हम स्वास्थ्य रहें।
आज जब पुरी दुनिया बैश्विक कोवोट-19 के महामारी से तबाह है। बिश्वा के ताकातवर देश , अमेरिका, स्पेन, इटली, इग्लैंण्ड, फ्रांच, चीन, जर्मर्नी, रूस, बेलजियम, ईरान, तुर्की सबको कोरोना महामारी ने घुटनों में ला दिया है। बिश्व को आर्थिक, तकनीकी और राजनीतिक तौर पर नियंत्रित करने वाले देशों के राजसत्ता की ताकत, पूंजीपतियों और कारपोरेट घरानों के वैश्विक आर्थिक ताकत तथा विज्ञानिकों की बैद्विक ताकत भी कोरोना महामारी के सामने अपने को लाचार महसूह कर रहा है।
महामारी ताकतवर देश के प्रधानमंत्री आवास, भारत के राष्ट्रपति आवास से लेकर बिश्वा के अमीर, पूंजिपति और गरीब वर्ग किसी को नहीं छोड़ा। विकास की वैश्विक ताकत भी महामारी को रोकने में कमजोर ही दिख रहा है। प्रतिदिन हजारों लोग महामारी का शिकार हो रहे हैु., महामारी का मौत प्रतिदिन हजारों लोगों को निगल जा रहा है। महामारी के कारणों का भी पता लगाने में वैश्विक ताकत के भी पसीने छूट रहे हैं।
आज सभी ग्लोबल है। देश की आर्थव्यस्था ग्लोबल, देश की बाजार व्यवस्था ग्लोबल, देश की पूंजी व्यवस्था ग्लोबल, शिक्षा, स्वस्थ्य व्यवस्था सभी ग्लोबल है,हमारी सोच भी गलोबल हो चुकी हे। इसी से जुड़ा कोरोना महामारी भी ग्लोबल व्यवस्था का ही एक हिस्सा है। हैरानी की बात तो यह है कि-कोरोना महामारी के पहले हमेशा पूरा वबिश्वा दावा करता था कि, आज कोई भी बीमारी लालईलाज नहीं है। दावा था-जितना तरह का बीमारी, उतने तरह के दवाओं और इलाजों को इजाद किया जा रहा है। लेकिन कोरोना महामारी के लिए कोई भी देश इलाज के लिए न दवा, न वैक्शीण इजाद करने में अपनी लचारी जाहिर कर रहा है। खबरें मिलती है-इसके लिए बैक्सीन तैयार करने में अभी दो साल लग जाएगा।
शेष भाग -२ में पढ़ें
आज हम विकास कि जिन उंचाई पर खड़े है, एक आम आदमी समझ भी नहीं सकता है। बैश्विक विकास के प्रतिस्पर्धा की दौड़ में हम जिंदगी के अस्तित्व के ताना को भी रैंद डाल रहे रहें है। हम भूल जा रहे है कि हम चांद के साथ कई और उपग्रहों पर भी अधिपत्य जमा लें, लेकिन जिंदा रहने के लिए आॅक्सीजन तो चाहिए , और ऑक्सीजन पेड़ -पौधों ,जंगल -झाड़ और प्रकृति से ही मिल सकता है । भूख मिटाने के लिए कुछ समय तक भोजन के सबसीटीयूट से भूख शांत कर सकते हैं, पानी के प्यास को किसी कृत्रिम पेय पदार्थ से प्यास बुझा सकते हैं। लेकिन सवाल है इससे कब तक स्वस्थय और जीवित रह सकते हैं।
आज विकास के जो मोडल अपना कर हम प्रकृति-पर्यावरण, का सेहत बिगाड़ कर, विगड़े मौसम, बिगड़े पर्यावरण और सेहत को बिगाड़े ,अब इससे फिर से ठीक करने के लिए चिंतित हैं। इस बिगड़े पर्यावरण की सेहत के साथ अपनी सेहत को सुधारने के लिए हम अपने जीवन शेेली को बदलने का राह तलाशने में जुटें है। अब सब चाहते हैं सबस्टेनिबल डवलपमेंट के साथ ओरगेनिक भोजन वस्तु मिले। ऑर्गेनिक भोजन के साथ हम स्वास्थ्य रहें।
आज जब पुरी दुनिया बैश्विक कोवोट-19 के महामारी से तबाह है। बिश्वा के ताकातवर देश , अमेरिका, स्पेन, इटली, इग्लैंण्ड, फ्रांच, चीन, जर्मर्नी, रूस, बेलजियम, ईरान, तुर्की सबको कोरोना महामारी ने घुटनों में ला दिया है। बिश्व को आर्थिक, तकनीकी और राजनीतिक तौर पर नियंत्रित करने वाले देशों के राजसत्ता की ताकत, पूंजीपतियों और कारपोरेट घरानों के वैश्विक आर्थिक ताकत तथा विज्ञानिकों की बैद्विक ताकत भी कोरोना महामारी के सामने अपने को लाचार महसूह कर रहा है।
महामारी ताकतवर देश के प्रधानमंत्री आवास, भारत के राष्ट्रपति आवास से लेकर बिश्वा के अमीर, पूंजिपति और गरीब वर्ग किसी को नहीं छोड़ा। विकास की वैश्विक ताकत भी महामारी को रोकने में कमजोर ही दिख रहा है। प्रतिदिन हजारों लोग महामारी का शिकार हो रहे हैु., महामारी का मौत प्रतिदिन हजारों लोगों को निगल जा रहा है। महामारी के कारणों का भी पता लगाने में वैश्विक ताकत के भी पसीने छूट रहे हैं।
आज सभी ग्लोबल है। देश की आर्थव्यस्था ग्लोबल, देश की बाजार व्यवस्था ग्लोबल, देश की पूंजी व्यवस्था ग्लोबल, शिक्षा, स्वस्थ्य व्यवस्था सभी ग्लोबल है,हमारी सोच भी गलोबल हो चुकी हे। इसी से जुड़ा कोरोना महामारी भी ग्लोबल व्यवस्था का ही एक हिस्सा है। हैरानी की बात तो यह है कि-कोरोना महामारी के पहले हमेशा पूरा वबिश्वा दावा करता था कि, आज कोई भी बीमारी लालईलाज नहीं है। दावा था-जितना तरह का बीमारी, उतने तरह के दवाओं और इलाजों को इजाद किया जा रहा है। लेकिन कोरोना महामारी के लिए कोई भी देश इलाज के लिए न दवा, न वैक्शीण इजाद करने में अपनी लचारी जाहिर कर रहा है। खबरें मिलती है-इसके लिए बैक्सीन तैयार करने में अभी दो साल लग जाएगा।
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