Friday, April 24, 2020

भाग-3-- जो जंगल हमें इस प्रकृति ने अपनी पूरी भव्यता में उपलब्ध कराएं हैं, वही नदियां, वही पहाड़ और जंगल क्या हमारी आने वाली पीढ़ियों को इसी भव्य रूप में उपलब्ध रह पाऐगें?

                                                                           भाग-3
औद्योगिकीकरण और पर्यावरण-
ग्लोबल वार्मिंग और paryawaran को लेकर आम जनता से लेकर देश  के नीति निर्देषक, सत्तासंचालक सभी समय समय पर अपनी चिंता प्रकट करते हैं। पर्यावरण  मेले में सेमिनार का उदघाटन करते मेघालय के राज्यपाल महामहिम गंगा प्रसाद ने कहा था-प्र्यावरण सिर्फ शहरों में सीमित नहीं रह गया, बल्कि यह गांव और जंगलों तक पहुंच गया है। जीवों की संख्या में लगातार कमी आ रही है तथा कुछ जीव विलुप्त भी हो चुके है। औद्योगिक विकास के लिए देश  की जीडीपी अहम है-परंन्तु प्रदूषण जीडीपी पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।

लाॅकडाउन के दौरान देश  भर के कलकारखाने, उद्वोग-धंधे, छोटे-बड़े सभी व्यसायिक प्रतिष्ठान एवं सभी सरकारी कार्यालय, ट्रांसपोट, रेलयात्रा सहित सभी तरह के परिवाहन बंद थे। इस कारण देश भर में वायु प्रदूषण, ध्वानी प्रदूषण, जलप्रदूषण सहित सभी स्तर के प्रदूषण कम हो गया। आकश  साफ नीला, शाम होते ही चांद और तारे आकाश  में चमकने लगे। सुबह होते ही निर्भयता पूर्वक चिडिंयों को चहचहाट से वातावरण गुंजने लगा। कई लोगों इस दौरान के वातावरण पर अपनी भावनाऐं अखबारों के माध्यम से, शोशल  मिडिया में साझा कर चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने सोमवार को पर्यावरणीय बदलाव के अपने अनुभव वीडियो काॅन्फ्रेंसिंग के माध्यम से हो रही सुनवाई के दौरान वकील से साझा  किए। उन्होंने कहा- लाॅकडाउन से पहले आमतौर पर वातावरण काफी प्रदूषित था। मगर अब ये बदल गया है। इतने सालों से दिल्ली में रहते हुए ऐसा पहली बार हुआ है कि मैंने रात में आसमान में बहुत सारे तारे देखे। घर के सामने गार्डन में मोरों  का झुंड भी चहकते देखा। यह सब दिल को छू लेने वाला अनुभव है।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंदजी ने अपने आलेख प्रकृति से हमें सिखने की जरूरत शीर्सक  में कई सवाल उठाये और इसका हल के तैार पर अपने सोच भी साझा किये-आगामी 2 अक्टूबर के दिन हम सब महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मनाजे जा रहे हैं। यह एक राष्ट्रीय पर्व है। 2022 में हमारी आजादी की 75वीं वर्षगांठ भी एक राष्र्टीय पर्व के रूप में मनाई जाएगी। इसमें कोई संदेह नहीं कि इन महत्वपूर्ण अवसरों पर देश में अनेक सार्थक योजनाएं आरंभ की जाएंगी। 2047 में जब भारत की आजादी के 100 वर्ष पूरे होगें,  उस समय का भारत कैसा होगा? जब 2069 में हम गांधी जी की 200वां जयंती मना रहे होगें, उस समय का भारत कैसा होगा?

हम लोग ही यह तय करेगें कि हजारो हजार वर्षों से जो नदियां, जो पहाड़ और हमारे पास आज इन प्रश्नो  के बहुत स्पष्ट उतर नहीं हैं। लेकिन सामजिक, बौद्विक, नैतिक और प्रकृति एवं पर्यावरण के क्षेत्रों में जो कुछ भी निवेश आज की पीढ़ी कर रही है, उसी पर हमारे इन सवालों का जवाब निर्भर है। हम लोग ही यह तय करेगें कि अगले 25 से 50 वर्षो में इस भारत का निर्माण करने वाले लोगों के पास कैसी  ताकत होगी, कैसी क्षमता होगी। जो भाग-3
औद्योगिकीकरण और पर्यावरण-ग्लोबल वार्मिंग और प्र्यावरण को लेकर आम जनता से लेकर देष के नीति निर्देषक, सत्तासंचालक सभी समय समय पर अपनी चिंता प्रकट करते हैं। प्र्यावरण मेले में सेमिनार का उदघाटन करते मेघालय के राज्यपाल महामहिम गंगा प्रसाद ने कहा था-प्र्यावरण सिर्फ षहरों में सीमित नहीं रह गया, बल्कि यह गांव और जंगलों तक पहुंच गया है। जीवों की संख्या में लगातार कमी आ रही है तथा कुछ जीव विलुप्त भी हो चुके है। औद्योगिक विकास के लिए देष की जीडीपी अहम है-परंन्तु प्रदूषण जीडीपी पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।

लाॅकडाउन के दौरान देष भर के कलकारखाने, उद्वोग-धंधे, छोटे-बड़े सभी व्यसायिक प्रतिष्ठान एवं सभी सरकारी कार्यालय, ट्रांसपोट, रेलयात्रा सहित सभी तरह के परिवाहन बंद थे। इस कारण देष भर में वायु प्रदूषण, ध्वानी प्रदूषण, जलप्रदूषण सहित सभी स्तर के प्रदूषण कम हो गया। आकाष साफ नीला, षाम होते ही चांद और तारे आकाष में चमकने लगे। सुबह होते ही निर्भयता पूर्वक चिडिंयों को चहचहाट से वातावरण गुंजने लगा। कई लोगों इस दौरान के वातावरण पर अपनी भावनाऐं अखबारों के माध्यम से, षोषल मिडिया में साझा कर चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने सोमवार को पर्यावरणीय बदलाव के अपने अनुभव वीडियो काॅन्फ्रेंसिंग के माध्यम से हो रही सुनवाई के दौरान वकील से साझ किए। उन्होंने कहा- लाॅकडाउन से पहले आमतौर पर वातावरण काफी प्रदूषित था। मगर अब ये बदल गया है। इतने सालों से दिल्ली में रहते हुए ऐसा पहली बार हुआ है कि मैंने रात में आसमान में बहुत सारे तारे देखे। घर के सामने गार्डन में मोरों  का झुंड भी चहकते देखा। यह सब दिल को छू लेने वाला अनुभव है।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंदजी ने अपने आलेख प्रकृति से हमें सिखने की जरूरत षिरसक में कई सवाल उठाये और इसका हल के तैार पर अपने सोच भी साझा किये-आगामी 2 अक्टूबर के दिन हमस ब महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मनाजे जा रहे हैं। यह एक राष्ट्रीय पर्व है। 2022 में हमारी आजादी की 75वीं वर्षगांठ भी एक राष्र्टीय पर्व के रूप में मनाई जाएगी। इसमें कोई संदेह नहीं कि इन महत्वपूर्ण अवसरों पर देश में अनेक सार्थक योजनाएं आरंभ की जाएंगी। 2047 में जब भारत की आजादी के 100 वर्ष पूरे होगें,  उस समय का भारत कैसा होगा? जब 2069 में हम गांधी जी की 200वां जयंती मना रहे होगें, उस समय का भारत कैसा होगा?
हम लोग ही यह तय करेगें कि हजारो हजार वर्षों से जो नदियां, जो पहाड़ और हमारे पास आज इन प्रष्नों के बहुत स्पष्ट उतर नहीं हैं। लेकिन सामजिक, बौद्विक, नैतिक और प्रकृति एवं पर्यावरण के क्षेत्रों में जो कुछ भी निवेष आज की पीढ़ी कर रही है, उसी पर हमारे इन सवालों का जवाब निर्भर है। हम लोग ही यह तय करेगें कि अगले 25 से 50 वर्षो में इस भारत का निर्माण करने वाले लोगों के पास सैसी ताकत होगी, कैसी क्षमता होगी। जो जंगल हमें इस प्रकृति ने अपनी पूरी भव्यता में उपलब्ध कराएं हैं, वही नदियां, वही पहाड़ और जंगल क्या हमारी आने वाली पीढ़ियों को इसी भव्य रूप में उपलब्ध रह पाऐगें?

यह वन बिल्कुल उसी तरह हमारी देख -भाल करता है जैसे कोई मां अपनी संतान की भरण-पोषण करती है। प्रकृति हमें प्यार करती है और हम उसे प्यार करते हैं।

कभी कभी एैसा भी होता है कि किसी साधारण सी यात्रा में भी कोई बड़ा विचार पनप जाता है। यहां आकर अनेकों विचार मेरे मन में आए। मैंने सोचा कि यह धरती मां कितनी अच्छी तरह से हमारा पोषण करती है। लेकिन हम इसके पोषण के लिए क्या करते हैं? हम इसके लिए क्या कर सकते हैं? अगर हमें यह सुनिश्चित करना है कि यह प्रकृति एक संसाधन के रूप में, स्त्रोत के रूप में, मित्र के रूप में हमारी आने वाली पीढ़ियों को उपलब्ध रहे, तो इसके लिए हमें क्या करना चाहिए? क्या आने वाली पीढ़ियों के प्रति, अपनी संतति के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का एकसास है या नहीं?

यह वन बिल्कुल उसी तरह हमारी देख -भाल करता है जैसे कोई मां अपनी संतान की भरण-पोषण करती है। प्रकृति हमें प्यार करती है और हम उसे प्यार करते हैं।

कभी कभी एैसा भी होता है कि किसी साधारण सी यात्रा में भी कोई बड़ा विचार पनप जाता है। यहां आकर अनेकों विचार मेरे मन में आए। मैंने सोचा कि यह धरती मां कितनी अच्छी तरह से हमारा पोषण करती है। लेकिन हम इसके पोषण के लिए क्या करते हैं? हम इसके लिए क्या कर सकते हैं? अगर हमें यह सुनिश्चित करना है कि यह प्रकृति एक संसाधन के रूप में, स्त्रोत के रूप में, मित्र के रूप में हमारी आने वाली पीढ़ियों को उपलब्ध रहे, तो इसके लिए हमें क्या करना चाहिए? क्या आने वाली पीढ़ियों के प्रति, अपनी संतति के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का एकसास है या नहीं?
शेष भाग --४ में पढ़ें 

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