Friday, April 24, 2020

भाग-5--रोजगार की तलाश में पलायन करने वाले मेनपावर को अपने राज्य में सशत्क बना कर राज्य हित में उपयोग करने के लिए, आज तक कोई पोलिसि नहीं बना पाया है।


                                                                      भाग-5
अभी तो हमे सबक लेने का समय हे,--
 जो काम राज्य बनने के तुरंत बाद कर लेना चाहिए था। हमने नहीं किया, रोजगार की तलाश  में पलायन करने वाले मेनपावर को अपने  राज्य में सशत्क बना कर राज्य हित में उपयोग करने के लिए, आज तक कोई पोलिसि नहीं बना पाया है। लाॅकडाउन के कारण देश  के विभिन्न इलाकेां में फसे प्रवासी मजदूरों की बड़ी संख्या , जो आज चैतरफा संकटों से घिरा हुआ है। एक तरफ महामारी से स्वंय को बचाने की चिंता, रोटो की चिंता, अपने परिवार वालों की चिुता, पैसे का अभाव। जहां काम कर रहे थे, लाॅकडाउन में सब खत्म हो गया। घर का किराया देने के लिए पैसा नही, आखिर एक ही रास्ता दिखा, पैदल ही चलकर किसी तरह अपने परिवार वालों के पास पहुंचना। पैदल ही निकल पड़े, कोई 200 किलो मीटर, कोई 600 किलो मीटर, कोई 1000 किलो मीटर तो कोई 2000 किलो मीटर, ...चलते चलते कई लोगों ने रास्ते में ही दम तोड़ दिये। रास्ते भूखे-प्यासे एक -एक कदम बढ़ाते रहे। कहीं पुलिस वाले प्यार से रोके, समझाये कि यहां रूक जाओ, तो कहीं उन लोगों को मार खाना पड़ा, मारा’-पीटा भी गया। पैरो में छले पड़े, कई लाख इसी हालात में घर पहुंच गये है, करीब दस लाख तक अभी भी राज्य से बाहर फंसे हुए हैं। शयद पहली बार हम सभों ने प्रवासी मजदूरों के बारे गहराई सोचा-समझा होगा।

राज्य से प्रवासी मजदूरों पलायन करना सिर्फ रोजगार का तलाश  करना नहीं है, बलिक झारखंड का मैनपावर पलायन कर रहा है। ये प्रवासी मजदूर, सिर्फ मजदूर नहीं हैं, यह हमारे राज्य को सजाने-संवारने वाले कस्तकार, और राज्य के निमार्ण करने वाले मजबूत पिलर हैं। ये अपनी क्षमता-दक्षता अनुसार विभिनन क्षेत्रों में अपनी सेवायें दे रहे हैं। याद है एक गीत-जब मैं छोटी थी तो, सुनती थी-रांची शाहर को कौन? कौन बनाया? सरकार नहीं बनाया, रेजा-कुली बनाया,.... सरकार नहीं बनाया...रेजा-कुली बनाया। प्ंजाब-हरियाणा के खेतो में दिन-रात सोना उपजाने वाले हमारे ही राज्य के बेटे-बेटियां, भाई-बहन हैं। जो रोटी की तलाश  में प्रवासी मजदूर बन कर गये हैं। विकास के नाम पर विकसित रियलस्टेट का व्यवसाय का रीढ हमारे ही प्रवासी भाई-बहन जो देश  भर के ईंट भठों में उनके खून-पसीना से सने ईटों से रियलस्टेट की इमारातें उंची की जाती हैं। जिंन्हें निर्माण मजदूर का दर्जा दिया गया है। देश  के हर इलाके में लघु उद्योग, कुटीर उद्योर, जुट मिल, कपड़ा मिल, से लेकर ईट भठा, पत्थर खदान, सहित सौंकड़ो छोटे-मझोले उद्योग, व्योपार इन्हीं मेनपावर के बदौलत देश  को अपनी सेवाये दे रहा है। प्रवासी मजदूर भले ये नीति निर्धारक नहीं हो सकते, लेकिन इस राज्य की तकदीर बदलने में अहम भूमिका निभा सकते  हैं। 

कोरोना से जंग लड़ने के लिए देश  की कमजोर  आर्थिक व्यवस्था, कमजोर स्वास्थ्य व्यवस्था के सहारे कोरोना हराना संभंव नहीं था। इसलिए इस जंग को जीतने के लिए देश  में लाॅकडाउन ही एम मात्र दवा है। लाॅकडाउन अचानक ही घोषित किया गया, इस कारण जो प्रवासी मजदूर बाहर जहां भी रोजगार करने गये हैं, उन्हें अपने राज्य तथा गांव-घरों में वापस आना संभव नहीं हो पाया। लाॅकडाउन को सफल करने के लिए सरकार ने सभी लोगों से अपील किया कि, जो जहां पर है, वो वहीं रूक जाये। लाॅकडाउन से बनी स्थिति में प्रवासी मजदूरों की मदद के लिए राज्य सरकार, मीडिया, सामाजिक संगठन, गैर सरकारी संस्थाएं, प्रषासन, सहित सभी वर्ग आगे आये हैं। कोई इनकी खोज में हैं कि कौन कहां, किस हाल में है। काई लोग उन तक जरूरी सुविधाऐं पहुंचाने में लगा है। प्रशासन के साथ पूरी मेडिकल टीम भी इनके दुख-दर्द बांट रहे हैं। अमीर से लेकर गरीब सभी अपने भोजन का कुछ हिस्सा उन गों तक पहुंचाने में लगे हैं। इस संकट की घड़ी में जाति, धर्म, साप्रदाय और राजनीति से उपर उठकर मदद में हाथ बढ़ाये हैं। आज सच में मानव और मानवता के बीच मजबूत संबंध दिख रहा है। लेकिन क्या यह संबंध आगे तक इसी तरह रहेगी, अगर ऐसा होता तो निश्चित तौर  पर हमारा देश  और राज्य सामाजिक न्याय का नया बुनियाद खड़ा कर सकता है।
शेष भाग --६ में पढ़ें 

No comments:

Post a Comment