भाग-4
अपनी धरती में कंगाल क्यों?
जब अपनी ही धरती के सोना, हिरा, चांदी, लोहा, लौह अयस्क, अबरख जैसे खनिज से पुजिपतियों और कारपोरेट घरानों का मुनाफा चैगुणा बढ रहा है, माफिया, दलाल मालेमाल हैं। दूसरी ओर खनिज सम्पदा के गर्भ से पैदा हुए आदिवासी मुलवासी किसान सबसे गरीब हैं। सेंटर फाॅर साइंस ने अपने किताब में इनकी स्थिति को रिच लैंण्ड़ पुवर पीपुल्स की संग्या दी है। मानिंग कंपनियां विस्थापित प्रभावित आबादी के विकास के नाम पर डिस्ट्रीक मिनिरल फंण्ड में हर साल करोड़ो धनराशी देती है, लेकिन इसका कितना लाभ उनलोगों तक पहुंच रही है, यह बड़ा सवाल है। साथ तमाम तरह के खनिजों का करोड़ों रोल्यटी मिलता है, सवाल है इसमें कितना प्रति त विस्थापितों को मिलता है, यह जांच का विषय है।
यदि प्रवासी मजदूरों के समस्याओं को स्थायी तौर हल करना है, तो वर्तमान सरकार को अग्राह है कि-राज्य को मिलने वाले डिस्ट्रीक मिनिरल फंण्ड, खनिज से प्रप्त लभांष/ रोल्यटी की राशी , आदिवासी सबप्लान की आबंटित राशि जो मिला था, और इनका खर्च कहां-कहां किया गया, इसका स्वेतपत्र जारी करे। इसका एनालिशीश हो, ताकि इसका लाभ, यहां के विस्थापित, पलायित प्रवासी मजदूरों को भी मिले।
प्रवासी मजदूरों की खोजखबर लेने का काम हर स्तर पर हो रहा है। सरकार ने 10 फोन नंबर दिये हैं, जिसमे बाहर फंसे मजदूरों से संपर्क करके अपनी पीड़ा साझा करने का अग्राह किया गया है। सरकार और जो लोग इस काम में लगें हैं वे हैरान और चिंचित भी हैं कि पलायन का आंकड़ा आदिवासी समुदाय का सबसे अधिक होता है। आदिवासी सबसे अधिक देश भर के ईट भठों में पलायन किये है। पंजाब-हरियाणा में खेत मजदूर के रूप में झारखंड के आदिवासी भरे पडें है। पंजाब-हरियाया की खेती इन्हीं पर टिकी हुई है। गोवा, गुतरात, सूरत, बोम्बे, कर्नाटक, दिल्ली, उत्तरप्रदेश , हिमालय प्रदेश जैसे राज्यों में हमेश लोग पलायन कर जाते हैं। इन मजदुरों की पीड़ा का दस्तां हमेश सामाजिक संगठन, मानव अधिकार संगठन उठाते रहे। लेकिन सत्ता के गलियारे में आवाज दबते रही है।
झारखंड अलग राज्य बनने के पहले से महिला संगठन, लेखक, राज्य के षुभ चिंतक राज्य से होने वाले महिलाओं का पलायन, आदिवासी लड़कियों को ट्राफिकिंग और उनके शोषण , दमन रोकने की मांग सभी सरकार चाहे राज्य सरकार या केंन्द्र सबसे किया गया। साथ में यह भी उठता रहा कि पंचायत स्तर पर तथा प्रखंड स्तर पर गांव से कहीं भी पलायन करने वालों की रजिस्टर बने, कहां, किसके साथ जा रहा है, रजिस्टर में दर्ज हो। एैसी व्यवस्था सरकारी स्तर पर होना चाहिए। ताकि प्रवासी लोग मानसिक, आर्थिक तथा शरीरिक शो षण-दमन का शिकार नहीं हों। लेकिन यह मांग सामाजिक संगठनों का आंदोलन केवल बन कर रह गया। लिखित मांग कुड़ो के ढेर के साथ जला दिया गया। अलग राज्य बनने के तुरंत बाद मैं और वासवी जी एक वरिष्ठ राजनीतिक नेता के पास गये, चर्चा में था कि वही मुख्यमत्रीं बनेगे, हमदोनों पूछने के लिए गये थे-आप मुख्यमंत्री बनेगें तो राज्य से पलायन कर गयी है लड़कियां जिनका चैतरफा शोषण होता है, उनको राज्य में क्या वापस लाने का काम करेगें, और उन्हें राज्य में ही रोजगार देने का व्यवस्था करेगें? इसके जवाब में माननीय ने जवाब दिये-यदि कोयलकारो डैम बांधने दोगे, तभी उन्हें वापस ला सकते हैं। आगे कहा-आप लोग तो डैम बनने ही नहीं देते हैं।
शेष भाग --५ में पढ़ें
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