Thursday, June 2, 2011

KORKO TOLI MANREGA KA HAL..-2

खूंटी जिला-दयामनी बरला
खूंटी जिला के तोरपा प्रखंड के कोरको टोली को 2006 से आज तक सिर्फ मनरेगा योजना से एक कुंआ मिला। जानकारी के अनुसार कुंआ का प्रक्कलन राशि 2 लाख 40,000 है। कुंआ सूखु तोपनो के नाम मिला। यह खबर 31 मई 11 को दैनिक प्रभात खबर में -मनरेगा किसानों के गले की फांस बनी - छपी। इस खबर के साथ ही तोरपा प्रखंड के प्रखंड विकास पदाधिकारी एवं जूनियर इंजिनियर अफरा तफरी में इस योजना के मेठ संजय को 12,600 रूपये का चेक काट कर दिये। मेठ कहते हैं-अखबार में खबर आने पर अधिकारी बोल रहे हैं-नेतागीरी करते हो-खबर छपवाये हो। मेठ कहता है-इसी पैसा को मांगने के लिए कई बार प्रखंड कार्यालय का चक्कर लगा चुके थे, लेकिन अधिकारी हमेशा घुमाते रहे। पहली बार प्रखंड के अधिकारी कुंआ देखने कोरको टोली गांव 31 मई को पहुंचे। इस टीम में प्रखंड विकास पदाधिकारी, रोजगार सेवक, कल्याण पदीधिकारी शामिल थे, साथ में मेठ को भी लेकर गये। कुंआ देखने के बाद अधिकारियों ने निर्देश दिया है-पत्थल गिरा कर कुंवा को पाटने का। मेठ कहते हैं-जो 12,600 अभी दिये हैं, ये तो लेबर पेंमेंट के लिए है, जो अभी तक नहीं मिला था। अधिकारियों के कहने पर पत्थर गिरा दिये हैं, मेटल गिराये हैं लेकिन इसके लिए पैसा नहीं मिला। मेट ने बताया-पत्थल आदि का भूगतान करने के लिए इन्होंने अपना स्कूटी बेच दी। इन्होंने आज तक कुंआ प्ररंभ करने से लेकर अभी तक -बांस, छोड़ा, रस्सी आदि के लिए भी खुद ही पैसा खर्च किये। मेठ भी मनरेगा में फंस गये हैं। इन्होंने बताया-आज तक लेबर पेमेंट के नाम पर -शुरु में 11,600, बीच में 7,500 और अभी 12,600रू ही मिला है। इसके अलावे एक रू भी नहीं मिला। जब कि कुंआ 21 फीट खोदा गया है।
बाजार में पत्थल का दाम प्रति पत्थल आठ रू में बिक रहा है, प्रखंड कार्यालय से 5000 पत्थल का मात्र 5,515रू ही देना चाह रहे हैं। मनरेगा का काम देखना भी आज मेठ के लिए भारी पड़ गया है। बताते हैं-अधिकारी कहते हैं-केस कर देगें-तुम फंसोगे। विदित हो कि 31 मई के पहले कोई भी अधिकारी कुंआ किस तरह खोदा जा रहा है-इसको देखने की जरूरत नहीं समझे। अधिकारियों का यह रवैया किसी से छुपा हुआ नहीं है। कदम-कदम में पीसी। अगर आप देने को तैयार नहीं हैं-तो आप का एमबी नहीं बनेगा। आप प्रखंड कार्यालय का चक्कर लगाते लगाते थक जाऐगें। यही कारण है कि आज पूरे राज्य में जो भी मनरेगा का लाभूक बना-घर-द्वार बेचना पड़ रहा है। अधिकारी तो साफ निकल जाते हैं-फंस जा रहे हैं-लाभूक, मेठ।

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