Tuesday, June 14, 2011

80 प्रतिशत पयोजना सिर्फ कागजों पर हैं, जमीन में कहीं नहीं हैं। सौकड़ों कुंआ और तालाब कागजों पर खोदे गये हैं-जमीन पर गायब हैं।

गुमला जिला

गांव स्तर में आर्थिक रूप से लोग मजबूत हों। गांव में ही रोजगार मिले, ताकि गांव से हो रहा पलायन रूके। इसके लिए भारत सरकार ने 2006 से राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना की शुरुआत की। इस कानून में कहा गया-हर सक्ष्म व्यक्ति को वर्ष में 100 दिनों का रोजगार नरेगा योजना के तहत उपलब्ध कराया जाएगा। कानून में बहुत सुंदर बात कही गयी है-जिस व्यक्ति को जॉब कार्ड बनाने के बाद 15 दिनों के बाद रोजगार नहीं मुहैया किया जाएगा-उन्हें बेरोजगार भत्ता दिया जाएगा। यह योजना शुरू किये 6 वर्ष हो गये। योजना के लिए केंन्द्र से आकुत धन राशि हर प्रखंड कार्यालय को मिला। योजनाओं को बाढ़ आया। सभी धन अधिकारियों, ठेकेदारों, और विचैलियों के तिजोरियों में जमा होते गया। योजनाओं में मिटटी काटने वाले, मिटटी ढ़ोने वाले मजदूरों का मजदूरी को ठेकेदार, दलाल, अधिकारी डकारते गये। सिर्फ मजदूरों का पैसा ही नहीं योजना के लाभूकों के नाम से भी संबंधित योजनाओं का राशि भी डकार गये। लाभूक फंस गये हैं। योजना का सचिव बना दिये गये हैं किसान, लेकिन इन्हें पता भी नहीं कि उत्क योजना का राशि उनके हस्ताक्षर के बिना कैसे निकल जाता है। 80 प्रतिशत योजना में यही हो रहा है। 80 प्रतिशत पयोजना सिर्फ कागजों पर हैं, जमीन में कहीं नहीं हैं। सौकड़ों कुंआ और तालाब कागजों पर खोदे गये हैं-जमीन पर गायब हैं। कुंआ और तालाब खोदने के नाम पर हजारों किसानों के खेत सिर्फ बरबाद हो गये। जहां पहले लोग खेती करते थे, कई क्वींटल आनाज पैदा करते थे। आज यह -न तो खेत रह गया, न ही टांड न ही कुंआ यह तालाब। इसी का नाम है नरेगा यह मनरेगा।
जन सूचना अधिकार के तहत 2006 से 2010 तक एक पंचायत में करीब कितना योजना नरेगा के तहत आया। किस गांव को कितना कुंआ, तालाब, संड़क, चबुतरा, अखड़ा, निर्माण तथा मरम्मती के लिए योजना मिला। इसकी जमीनी हकिकत क्या है। योजनाओं में काम करने वाले मजदूरों की क्या स्थिति है। इसकी जानकारी लेने किकोशिश की गयी है। अध्ययन में मिला -प्रत्येक योजना में मजदूरों का लाखों मजदूरी का भूगतान आज तक-तीन-चार साल में भी नहीं किया गया। मजदूर जब अपना कमाई मांगते हैं-तब दलाल, बिचैलिये, भ्रष्ट अधिकारी देख लेने की धमकी देतें हैं। इनका आवाज सुनने वाला कोई नहीं है-धक हार कर मजदूर चुप बैठ जाते हैं।

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