Sunday, June 26, 2011

sangharsh jari hai..9


हाईवे में तब्दील होता सतलुज नदी
किनौर जिले को संविधान के अनुच्छेद 244 (1) के तहत अनुसूचित क्षेत्र घोषित किया गया है । साथ ही इस क्षेत्र में रहने वाले जनजीतीय लोगों के संरक्षण व हितों के मदेनजर अनेक संवैधानिक प्रावधान किये गये है। जिनमें हिमाचल प्रदेsh भूमि अन्तरण (विनियमन) अधिनियम-1968 , पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार)अधिनियम 1996 पेसा एवं जनजाति एवं अन्य परंपरागत वन निवासी ( वन अधिकारो की मान्यता) अधिनियम-2006 प्रमुख है। अनुसूचित क्षेत्रों में किसी भी प्रकार के विकासात्मक योजनाओं व जल विद्युत परियोजनाओं के लिए निजी भूमि अधिग्रहण तथा वन भूमि प्रत्यावर्तन (हस्तातरण) से पहले संबंधित ग्राम सभाओं से सहमति प्राप्त करना अनिवार्य है। हिमलोक जागृति मंच किनौर ने चिंता जाहिर किया है कि इन तमाम कानूनी प्रावधान के बावजूद आज किनौर में करच्छम-बांगतू जैसी वृहद जल विद्युत पिरयोजनाओं का निर्माण बिना ग्राम सभाओं की सहमति के पुलिस बल प्रयोग द्वारा जबरदस्ती shuru किया जा रहा है। इन परियोजनाओं के विरोध में सम्पूर्ण किनौर में आंदोलन shuru हो गया है। सरकार व कंपनी आंदोलनकारियों पर लाठी चार्ज व गोलीवारी कर आंदोलनों का दबा रहे हैं। यही नहीं जन-जातीय लोगों पर झूठे आपराधिक मामले दर्ज कर रही है। विदित हो कि देsh के कई आदिवासी बहुल राज्यों में पंचायत चुनाव हो चुका है, लेकिन इस इलाके मे पंचायत चुनाव नहीं हुआ है।
वन जनजातीय जीवन का आधार है परन्तु यह कैसी बिडम्बना है कि जब जनजातीय जीवन के उस आधार पर सरकार और उद्योगपति सभी कुठाराघात कर रहे हैं। लेकिन इनकी सुनने वाला कोई नहीं है। वास्तव में यह स्थिति आत्मरक्षा के नैसर्गिक व कानून की रक्षा के विपरीत है। अब वन अधिकार अधिनियम की धारा-5 के तहत वन अधिकार धारकों को वन, वन्य, pashu , और जैव-विविधता के संरक्षण करने की जिम्मेदारी दी गयी है और रक्षा करने लिए सsh क्त किया गया है। aise स्थिति में ग्रामीण खास तौर पर ग्राम सभा से अपने विवके के अनुसार कार्रवाई के लिए सक्ष्म है। लेकिन दुखद बात है कि भारतीय संविधान ने अपने नागरिकों के हित, पर्यावरण संरक्षण संबंधित कानूनों, जंगल-जमीन पर सामुयादिक अधिकारों, पानी पर स्थानीय जनता के सामुहिक अधिकारों का दमन स्वंय कर रही है। इन तमाम समाज के बुनियादी अधिकारों को छीन कर मुनाफा कमाने वाले तमाम कंपानियों के हाथों सौंप दे रही है। दूसरी ओर सरकार भारतीय नागरिकों के मानवअधिकारों की रक्षा की भी राग अलापती है। सरकार की इन नीतियों ने सामाजिक लोकतांत्रिक अधिकारों को रौंदने के दिsha में तेजी से आगे बढ़ रही है।

सतलुज तराई को काट कर बनाया गया रोड़
किनौर में Asian Development Bank के सह से हो रहे नागरिक अधिकारों के दमन के खिलाफ-जनविरोध
किनौर जिले में के आदिवासी क्षेत्रों में Asain Development Bank द्वाराHpccl स्थापित कर भारत सरकार पर्यावरण, जंगल और आदिवासियों के कानूनी अधिकारों का उलंघन कर रही है। इस इलाके की सभी परियोजनाएं ।Asian Development Bank द्वारा वित्तीय सहयोग दिया जा रहा है। स्थानीय जनता इन तमाम योजनाओं द्वारा अपने हक-अधिकारों के हो रहे दमन का विरोध कर रही है। तमाम नियम-नियम कानूनों का धजियां उड़ाकर इन परियोजनाओं को जमीन पर उतारा जा रहा है-स्थानीय जनता इसका तीब्र विरोध कर रही है। जनता को आरोप है कि खाब सह’ाहो 1020 मेगावाट परियोजना का निर्माण कार्य ग्रामीणों के जनविरोध के कारण पेन्डिंग में है। ग्रामीण 2007 से ही इसका विरोध में है। इस परियोजना को भी Asian Development Bank कर रहा है।Hpccl द्वारा निर्माणधीन इनटीग्रेट कसहांग हाईड्रो एल्केटिक परियोजना 243 मेगावाट बिना फोरेस्ट क्लीयारेंस से ही shuरू किया। इसको ग्रामीणों राष्ट्रीय पर्यावरण एथोरिटी के यहां कानूनी चुनौती दी है। इसी तरह shongtong करछम हाईड्रो परियोजना 420 मेगावाट को भी अभी तक फोरेस्ट क्लीयारेंस नहीं मिला है। इसको भी एडीबी बैंक सहयोग कर रहा है। इसका भी प्रभावित जनता विरोध कर रही है।

हिमाचल की इस हिरयाली को बचाने का संघषर््ा जारी है
हिमाचल प्रदे’ा के पर्यावरण संरक्षण,, नदी-पानी, जंगल पर समाज के समुहिक अधिकार, मानवअधिकारों की रक्षा, इस इलाकों को भूकम्प से बचाने, तथा राष्ट्रीय सुरक्षा की मांग को लेकर लंम्बे से जनता संघर्ष करते आ रही है। हिमाचल नीति अभियान के श्री गुमान सिंह, आर एस नेगी, अजित राठैर, बिनय नेगी, भगत सिंह किन्नर ने कहा-देsh को shudh हवा, अनुकूलित मौसम देने मे हिमाचल का बहुत बड़ा योगदान हैं। यदि इसे नहीं बचाया जाएगा तब-ग्लेshiyar पिघलेगा, और देsh के अन्य हिसों को भी इसके तबाही का खमियाजा छेलना होगा। हिमाचल की जनता हिमालय नीति अधियान, हिम लोक जाग्रती मंच, के बैनर तले गोलबंद होकर अपनी मांग को लगातार उपयायुक्त तथा महामहिम राज्यपाल तथा प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह को देते आ रहे हैं। इनमें से निम्न मुख्य मांग हैं-
1-निर्माणाधीन करक्षम -वांगतु परियोजना, जे0 पी0 कंपनी द्वारा बरती गयी अनियमितताएं, जिन में 400 बीघा वन भूमि पर अवैध कब्जा, अवैध सुरंगों का निर्माण, अवैज्ञानिक ढंग से किया जा रहा मक डम्पिंग, पर्यावरणीय एवं जनजातीय कानूनों का उल्लंघन प्रमुख है-के विरूद्वshighar व निर्णायक कार्यवाही की जाये और परियोजना निर्माण पर रोक लगा दी जाए।
2-जे0 पी0 कंपनी द्वारा अवैज्ञानिक ढंग से किये जा रहे निर्माण कार्य के कारण प्रभावित क्षेत्र के लोगों के मकान, सेब, चिलगुजा तथा अन्य फसलों का उत्पान प्रभावित हुए हैं, उस की भरपाई तुरंत की जावे। उसी तरह जल स्त्रोत सूख गये है, यह जलस्तर घट गये हैं, उसका जीर्वोदार किया जाये।
3-नाथपा व कण्डार गांव नाथपा-झाखडी 1500 मेगावाट परियोजन के प्रभावित गांव हैं। परियोजना के डैम व टनल निर्माण कार्यो में भारी ब्लास्टिंग से इन गांवों के पूर्वी भाग में चटटाने गिरने से दोनों गांवा क्षतिग्रस्त हो गये हैं और भारी मात्रा में जान माल को नुकसान हुआ-इनका जांच कर उचित कार्रवाई की जाए, तथा क्षतिपूर्ति की जाए।
4-कण्डार गांव के विस्थापितों को कंपनी टीन-’ौडस में ’िाफट किया है और मकान बनाने के लिएप्रति परिवार 2 लाख 40 हजार रू . दिया है, इस rashi को बढ़ाया जाए, ताकि मकान का निर्माण पूर्ण हो सके।
5-नाथपा गांव में अभी तक चटटानों के गिरने से 6 लोगों की मौत हो चुकी है और मकान व सम्पति की भारी छति हुई है। नाथपा और कण्डार गांव को भी भू-वैज्ञानिकों ने असुरक्षित घोषित कर दिया है। दोनों गांवों का यथा shighar पुर्नावास व पुनर्वास्थापन किया जाए।
6-243 मेगावाट एकीकृत kashang जलविद्युत परियोजना में आसरंग, लिप्पा, जंगी तथा रारंग पंचायतों के ग्रामीणों ने का’ांग चरण 2, 3, 4 का विरोध किया है। इस परियोजना के कारण पर्यावरण प्रभाव अत्यंत गंभीर होने और स्थानीय लोगों के जलस्त्रोंतों पर विपरीत परिणाम के मदेनजर चरण-2, 3, 4 को रदद किया जाए।
7-100 मेगावाट -टिडोंग-1 विद्युत परियोजना के निर्माण कार्य में कंपनी ने अवैध रूप से हजारों besh कीमती चिलगोजे व देवदार के पेड़ों को नष्ट किया है और वन भूमि प्रत्यावर्तन मंजूरी व पर्यावरणीय मंजूरी की sharton का सरासर उल्लंघन किया है। वन भूमि हस्तांतरण में राजस्व कानूनों के अंतर्गत लीज prakriya पूर्ण किए बगैर निर्माण कार्य shuru कर सरकारी भूमि पर अतिक्रमण किया है। अतः कानूनों के उल्लंघन करने के लिए परियोजना प्रस्तावक पर दण्डात्क कार्यवाही की जाए।
8-सीमांत क्षेत्र किनौर की अति संवेदनshil भौगोलिक स्थिति के मददेनजर जंगी-ठोपन-पौवारी, टिडोंग- में 2, खाब-’ाासो, चांगो-यंगथंग, यंगथंग-खाब, बास्पा-1, ‘’ाासो-स्पीलो तथा रोपा जल विद्युत परियोजनाओं को रदद किया जाए।
9-निर्माणाधीन करछम-वांगतु परियोजना के प्रस्तावक जे0 पी0 कंपनी द्वारा वांगतु से अब्दुल्लापुर तक के टांसमि’ान लाईन को सतलुज के बाएं किनारे के बजाये दांए किनारे से ले जाया जाये क्योंकि बाएं किनारे से टां्रसमि’ान लाईन के निर्माण से 12,000 बंे’ाकीमती देवदार के पेड़ नष्ट होगें। जे0 पी0 के इस प्रस्तावित लाईन के निर्माण करने के बाद वांगतु से झाखडी तक बासपा-2 के लिए बिछाई गई ट्रासंमि’ान लाईन को बंद किया जाए।
10-भारत सरकार भूरिया कमेटी की द्वितीय रिपोर्ट को तुरंत स्वीकार करे, जिससे स्थानीय प्रभावित जनजातीय लोगों को परियोजना का उचित लाभांsh मिल सकें
11-स्थानीय बेरोजगार पढ़े लिखे नौजवानों को रोजगार दिलाने के लिए इस क्षेत्र में लघु, सूक्षम एवं बवदबमदजतंजमक सोलर उर्जा प्राप्त हो, और यहां के पढ़े लिखे बेरोजगार युवाओं को भी स्थायी स्वरोजगार उपलब्ध हो।
12-अनुसूचित जनजातियो एवं अन्य परंपरागत वन निवासी-वन अधिकारों का मान्यता- अधिनियम 2006 के प्रावधानों को उस की मूल भावनाओं के अनुरूप लागू किया जाए तथा इस अधिनियम के अंतर्गत प्राप्त व्यक्तिगत तथा सामुदायिक दावों को मंजूर करने की प्राक्रिया तुरंत पूरी की जाए।
13-प्रदेsh सरकार ने टी. डी. के लिए जो नियम तैयार किया है इसे रदद किया जाए। इस विषय में ग्राम सभा स्तर पर व्यापक pramarsh किया जाए तथा टी. डी नियम पेसा व वन अधिकार कानूनों के प्रासधानों की मूल भावनाओं के अनुरूप तैयार किया जाए। राज्य सरकार ने हाल ही में जो टी. डी नियम जारी किया है वह किनौर वासियों को कतई मान्य नहीं है। टी. डी के अधिकार किनौर के जनजातीय लोगों को परंपरागत अधिकार है जो वन बंदोबस्त व राज्य के अभिलेखों में दर्ज है। वन अधिकार अधिनियम 2006 के लागू होने पर यह परंपरागत अधिकार अब कानूनी अधिकार बन गया है। अतः इस अधिकार से छेड़-छाड़ व इस का अल्पीकरण न्याससंगत नहीं है।

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