Wednesday, June 22, 2011

जब पहाड़ टूटता है-तब सिर्फ मिटटी, पत्थर-कंकड़, बालू, पेड़-पौधे केवल नहीं गिरते हैं। नष्ट होता है वहां का समाज, उस समाज की भाषा-संस्कृति, पहचान, उस इला


जब पहाड़ टूटता है-तब सिर्फ मिटटी, पत्थर-कंकड़, बालू, पेड़-पौधे केवल नहीं गिरते हैं। नष्ट होता है वहां का समाज, उस समाज की भाषा-संस्कृति, पहचान, उस इलाके का इतिहास, पर्यावरण, नदी-झरने। पहाड़ो के विलीन होते ही, उस इलाके की सामाजिक एकता-समुहिकता के साथ प्राकृतिकमूलक सभ्यता और सांस्कृति भी विलीन हो जाता है। और यहीं से shuru होता है-प्राकृतिक आपदाओं का सिलसिला। कभी बाढ़ तो, कभी सूखा। कभी भूकंप तो, कभी महामारी। कभी तेज गर्मी तो, कभी हडी को कंपा देनी वाली ठंढक। किसानों को आsha दिलाने वाले, आकाश में मंडराते काले बादलों की जगह विसफोटों से ध्वस्त होते पहाड़ों से उड़ते धूल और कारखानों के उगलते काले धुूओं का साम्रज्य स्थापित होता है। इसी का देन है जलवायु परिर्वतन। शायद इसी को बिश्वा के पर्यावरणविद और भूगर्भशस्त्री ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं।
पयार्वरण और प्राकृतिक सुंदरता के नाम पर देश को बिशिष्ट पहचान देने वाले हिमाचल के उपर पयार्वरण प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग का बादल मंडराता दिखाई दे रहा है। देश के सैलानियों को अपनी प्राकृतिक छटा में डुबो देने वाला शिमला अब अपना अस्तित्व खोता दिखाई दे रहा है। अब यहां भी गरर्मी अपनी उपस्थिति दर्ज कर दिया है। पानी का समस्य की कहानी शुरू हो गयी है। शिमला की मनमोहक वादियों से बाहर करीब 250 किलीमीटर निकलते ही किनौर के मरूस्थलीय तीखे पर्वतीय इलाका औद्योगिकीकरण की मार का बयान शुरू रू कर देता है। सतलुज नदी के साथ-साथ ही रिकांग पियो पहुंचा जा सकता है। नदी के दोनों किनारे तीब्र तीखी चटटान नुमा पहाड़ हैं। इस पहाड़ को काट कर, चटटान को फाड़ कर ग्रीफ ने नदी के बाजु से पियो तक रोड़ बना दिया है। दुसरे किनारे के पहाड़ पर रोड़ बनाने की प्रक्रिया शुरू रू कर दी गयी है। रोड़ के किनारे जहां तहां प्लास्टिक ढंके झोपडी मिलेगें, जिसमें झारखंड और उतरप्रदेश के मजदूर जो रोड़ में काम रहे हैं-रहते हैं। नदी पर जगह जगह डैम बांध कर पानी को रोका गया है। इस जल संग्रहण क्षेत्र में जगह जगह दर्जनों सूरंग बनाये गये हैं। कई परियोजनाओं के लिए कई सुरंगे निर्माणाधीन हैं। पूरा नदी में दर्जनों परियोजनाए पूरे हो चुके हैं। दर्जर्नों निमाणधीन है। पूरा नदी में जगह जगह सौकड़ो बुलडोजर, ट्रक, जेएसबी मशीन , मिक्सचर माशीn, डमफर दिन रात चल रहा है। जगह जगह में जे0 पी0 कंपनी का बड़ा बड़ा क्रेशर चल रहा है। कई जगहों में इसका सीमंन्ट फैक्ट्री भी चल रहा है। नदी में ही कई छोटे शहर बसते जो रहे हैं। जे0 पी0 कंपनी का कार्यालय तथा कोलोनी भी नदी के किनारे ही बनाया गया है। जहां तक नजर जाता है-कंपनियों द्वारा निर्माणाधीन कार्य ही दिखाई देता है।
नदी के दोनों किनारे पहाड़ के ढलान पर सौकड़ों गांव हैं। जो आज नहीं कल परियोजनाओं के प्रभाव में आ कर नदी में विलीन हो जाएगें। पहाड़ की उंची चोटियों में कहीं कहीं जमे सफेद बर्फ दिखाई देते हैं। इन पिघते बर्फ का स्वच्छ पानी पहाड़ से होते हुए सतलुज में जगह जगह आकर मिलता जा रहा है। लेकिन नदी में मिलते ही स्वच्छ पानी का रूप बदल जाता है। सीमेंट फैक्ट्री का पानी, बिजली सयंत्र का पानी, साथ ही गिर रहे पहाड़ का मिटटी-बालू नदी के पानी में घुलता जाता है। इस कारण पानी का रंग सिमेंट का घोल की तरह दिखाई देता है।
रिकोंग पियो पहंुचते इसका दृष्य बदल जाता है। 5 जून को सफेद बर्फ का चादर ओढे हिमाचल की वादियों से घिरे रिकोंग पियों शहर हिमाचल बचाओं-देश बचाओ, रिकोंग पियों बचाओं -पर्यावरण बचाओ, पर्यावरण का विनाश बंद करो, कंपनियों की मनमानी नहीं चलेगी के गगन भेदी नारों से गूंच उठां था। बिश्वा पर्यावरण दिवस के मौके पर सौकड़ों जनता रोड़ में उतर कर पर्यावरण-नदी-पहाड़ को सुरक्षित रखने का संकल्प लिया। अपनी बातों को जनमानस तक पहुंचाने के लिए हजारों महिला-पुरूष, युवक-युवातियां पर्यावरण बचाओ-देश बचाओ, लिखा प्लेकार्ड थामे नारा लगाते रैली भी निकाले। बाद में जिला मुख्यालय स्थित रामलीला मैदान में रैली सभा में तब्दील हो गयी। देश के कई हिसों से आये पर्यावरणविदों ने देश के पर्यावरण संकट से बढ़ रहे जलवायु परिर्वतन पर चिंता जाहिर किये। वि’व पर्यावरण दिवस के मौके पर पर्यावरण चिंतकों ने देश की धरोहर जल-जंगल-जमीन, पहाड़ नदी-नालों के साथ किसी तरह का छेड़छाड की इजाजत किसी कंपनी या सरकार को नहीं देने का संकल्प लिये। किनौर वासियों ने सतलुज नदी की रक्षा करने की मांग सरकार से किये। सभा के बाद उपायुक्त सु+श्री मामता को 20 सूत्री मांग भी सौंपा गया।
सभा ने चिंता हाजिर किया कि-हिमालय में किनौर जिला विकास के तथा कथित सौदागरों द्वारा उत्पन कई पर्यावरणीय समस्यओं का सामना कर रहा है। यह जिला सतलुज नदी के दोनों किनारों की तीब्र ढलानों पर स्थित है। यह हिमाचल के उतरपूर्व में स्थित चटटानी ढ़लान वाला क्षेत्र है। इस का कुल क्षेत्रफल 6401 वर्ग किलोमीटर है। इस क्षेत्र के गांवों की उंचाई समुद्रतल से 7000 सें 12000 फुट तक है। वांगतु से उपर वर्षा बहुत कम होती है। मौनसून हवाएं यहां तक नहीं पहंुच पाती है। वर्षा न होने के कारण यहां पर वनसपतिक आवरण न के बराबर है। इसलिए वांगतु से उपर के क्षेत्र को शीत मरूस्थल कहा जाता है। पहाड़ी मरूस्थल कितना नाजुक होता है इस का अंदाजा यहां के हर कदम पर भूस्खलन बिंन्दुओं से लगाया जा सकता है। एक ओर तो किनौर का समूचा क्षेत्र पहले से ही अत्यत संवेदनशील है वहीं दूसरी ओर 21वीं सदी के पदार्पण के साथ ही इस जिले के सामने अनेक प्राकृतिक संसांधनों के अंधाधुध दोहन से यहां का पर्यावरण खतरे में है। किनौर जिल में एक के बाद एक लगातार कई निर्माणाधीन एवं प्रस्तावित जलविद्युत परियोजनाओं के कारण इस क्षेत्र का अस्तित्व संकट में हैं। किनौर में स्थित सतलुज जल संग्रहण क्षेत्र इस इलाके की पर्यावरणीय जीवनशैली के लिए अभिशाप बन चुका है। सतलुज जल संग्रहण क्षेत्र में नाथपा-झाखडी-15 मेगावाट, संजय परियोजना-120 मेगावाट, बास्पा-2-300 मेगावाट, रूकती-1-5 मेगावाट पहले से ही क्रियान्वित है और करछम-वांगतु-1000 मेगावाट, कसांग -1, 66 मेगावाट, शोरांग 100 मेगावाट, ओर टिडोंग-100 मेगावाट परियोजनाएं निर्माणाधीन हैं। चांगो-यंगथंग-140 मेगावाट, यंगाग-खाब 261 मेगावाट, खाब-’यासो 1020 मेगावाट, जंगी-ठोपन 480 मेगावाट, ठोपन-पवारी-480, शौकगठोंग-करछम 402 मेगावाट तथा टिडोंग 2-60 मेगावाट शुरू होने को है। इस के अतिरिक्त ‘’यासो-स्पिलो 500 मेगावाट, काशांग 2-48 मेगावाट, कासंग 3-130 मेगावाट, बासपा 1-128 मेगावाट, रोपा 60 मेगावाट प्रस्तावित है। 12 हाईड्रो प्रोजक्ट प्रस्तावित -पाईपलाइन में है, जिससे लगभग 4000 मेगावाट बिजली पैदा करने की योजना है। इसके साथ ही कई अन्य कंपानियां परियाजना के लिए जमीन सर्वे का काम रही हैं।

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