Thursday, June 30, 2011

कंपनियों की जागीर नहीं ---- हमारे पूर्वजों की -झारखंड हमारा है

संकल्प सह हुलउलगुलान दिवस



कंपनियों की जागीर नहीं हमारे पूर्वजों की -झारखंड हमारा है एक इंच जमीन नहीं देगें


जल जंगल जमीन-भाषा संस्कृति, इतिहास, अस्तित्व को बचाने का झारखंड़ का गैरवपूर्ण इतिहास रहा है। 1700 के दशक से 1900 ई0 का दशक अपने अस्तित्व इतिहास बचाने का अंग्रेज साम्राज्यवाद -जमीनदारों के खिलाफ झारखंडियों ने समझौताविहीन संघर्ष का इतिहास रचा। इस संर्घष में आदिवासियों ने अंग्रेज हुकूमत के सामने कभी घुटना नहीं टेका। अंग्रेजों के गोलियों का सामना सिना तान कर किया-लेकिन पीठ दिखाकर कर आदिवासी समाज पीछे कभी नहीं हटा। 30 जून 1856 में संथाली आदिवासियों ने सिद्वू-कान्हू के नेतृत्व में भोगनाडीह में अंग्रेज के गोलियों का सामना करते हुए-10,000 की संख्या में समुहिक शहादत दिये । 9 जून 1900 में बिरसा मुंडा के आगुवाई में डोम्बारी बुरू में अंग्रेजों के बंदुक के गोलियों को सामना करते हुए 500 लोग शहीद हुए।
झारखंड के इतिहास के पनों में जल-जंगल-जमीन, इतिहास-अस्तित्व बचाने का संर्घष के लिए जून महिना -शहीदो का माहिना है। आज जब पूर झारखंड को देशी -बिदेशी पूंजीपति कब्जा जमाने की कोशिशि में हैं-ऐसे समय में हम झारखंड़ी आदिवासी-मूलवासियों को अपनेपूर्वजों के दिये बलिदान को याद करने की जरूरत है। यही नहीं अपने अस्तित्व की रक्षा के सघर्ष को आगे ले जाने की भी जरूरत है- ताकि हमारा झारखड़ बचा को बचा सकें।
यह जिम्मेवारी हर युवक-युवाती,, महिला-पुरूष, बुधिजीवियो, सामाजिक कार्यकर्ताओं, झारखंडी शुभचिंतकों की है
इसी जिम्मेवारी के साथ आदिवासी-मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच अपना संकल्प एक एंच भी जमीन नहीं देगें की आवाज को और बुलंद करने के लिए 29-30 जून 2011 को कनकलोया कोरको टोली में संकल्प सह हुलउलगुलान दिवस मनाने का निर्णय लिया है।
नोट-इस अवसर पर संस्कृतिक कार्यक्रम, तीर-धनुष चलान प्रतियोगिता भी होगा। इसमें हर गांव के सभी वर्ग शामिल होगें। अताः हर गांव से अपना गाजा-बाजा के साथ, परंपारिक पहिराव के साथ आयें।


स्थान- कनकलोया कोरको टोली
तिथि-29-30 जून 2011, 29 जून को सुबह 9 बजे तक सभी पहुंचने की कृपा करेगें

निवेदक-आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच

संजोजक - प्रखंड समितियां- कर्रा, तोरपा, कमडारा, बसिया, रनिय

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