Friday, August 12, 2011

सरना प्रकृति-जंगल का ही एक हिसा है..जिसे से इनके पुरखों ऩे कई दशक पहले सांप-भालू-बिछु से लड़ कर आबाद किये हैं।


प्रकृति के साथ ot-प्रोत आदिवासी जीवन, भाषा-संस्कृति, इतिहास यही तो इनकी बिराशत है. आदिवासी समाज का माँ-बाप प्रकृति ही हैयही नहीं इनका dewi-देवता भी यही हैआप जो देख रहे हैं..महिलाएं..नया घड़ा में पानी लेकर रही हैं..आप सोचेंगे की ये अपने घर के लिए ला रही हैं..जी नहीं यह ..सरहुल पूजा..सरना पूजा के लिए ला रही हैं...ये उस झरना से ला रही हैं..जो सालो भर निरतं बहते रहता है...ये उपवास की, झरना में नहाये फिर सरना माँ की पूजा के लिए सरना जा रही हैं..सरना प्रकृति-जंगल का ही एक हिसा है..जिसे से इनके पुरखों ऩे कई दशक पहले सांप-भालू-बिछु से लड़ कर आबाद किये हैं
हर बसंत ऋतू के आगमन के साथ पूरी प्रकृति नए कोपलों -कलियों से सज जाती है..जो आदिवासी समाज के जीवन में जीने की नयी आशा-चेतना ले कर आती है..नया बसंत में पूरा जंगल ..लाल पलास, लाल कुसुम के कप्लों, लाल महुवा के कोपलों, लाल चार के कोपलों, दुधिया आम मंजर, दुधिया जाम फुल, दुधिया धेल्कता फुल और दुधिया सारे फुल से से प्रकृति दुल्हिन की तरह सज जाती हैआड़ मज्रियों में भीं भिनते मधु-मखियाँ और लाल इछा फुल मन को मोह लेता है..यही है...हमारी बिराशत ..हमारी ..संस्कृति..हमारी पहचान....
इस नए बसंत का सवागत में ही सरहुल परब मानते हैं . इस तेयोहर में प्रक्तिती की पूजा-अर्चना करते हैं..प्रकृति से प्रार्थना करते हैं..अच्छी बर्षा हो, फुल-fal खूब हो, खेती-बरी-अच्छा हो, फसल अच्छा हो, सुध हवा-पानी रहे, कोई भूखा ना रहे...हर तरह की बीमारी से धरती माँ सबकी रक्षा करे...यही है प्राकृतिक पूजल आदिवासी समाज...

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