VOICE OF HULGULANLAND AGAINST GLOBLISATION AND COMMUNAL FACISM. OUR LAND SLOGAN BIRBURU OTE HASAA GARA BEAA ABUA ABUA. LAND'FORESTAND WATER IS OURS.
Wednesday, August 31, 2011
Monday, August 29, 2011
सांप्रदायिक शक्तियों एवं साम्राज्यवादी ग्लोबलाइजेशन का हमकदम बनाकर चल रही है। इन शक्तियों का एक मकसद हैः झारखंडी गौरवशाली सामाजिक, सांस्कृतिक विरासत क
झारखंडी संस्कृति का मूल्यबोध
झारखंडी समाज एवं संस्कृति का इतिहास अति प्राचीन है पर प्राचीनता के साथ-साथ इस समाज व संस्कृति में निरंतरता भी देखने को मिलती है इसका अर्थ कदापि यह नहीं है कि झारखंडी समाज व संस्कृति में गतिशीलता का अभाव है। यदि इस समाज व संस्कृति में निरंतरता है तो परिवर्तनशीलता या गतिशीलता भी है। बावजूद यह समाज आज भी मानव मूल्यों सामुदायिक संसाधनों पर सामूहिक हक, स्त्री-पुरूष समानता पर आधारित है एवं इसकी गौरवमय सांस्कृतिक व्यवस्था आसमान के समान विस्तृत, सागर के समान गंभीर, पहाड़ी झरनों के समान स्वच्छ एवं इंद्रधनुष के समान रंगीन है।
पर विडंबना यह है कि पिछले कुछ दशकों से इस गौरवशाली विरासत की परिवर्तनशीलता में तीव्रता नजर आ रही है, फिर भी इसकी समरसता, सामुहिक अभिव्यक्ति का स्वर सांस्कृतिक विरासत को अब तक धरोहर की तरह बचाये हुए हैं, लेकिन अब यह प्रश्न उठने लगा है कि वर्तमान युवा पीढ़ी अपनी गौरवमय सांस्कृतिक विरासत, सामूहिकता को आगे बढ़ा पायेगी, इस पर संदेह करना वर्तमान स्थिति को देखते हुए स्वाभाविक है, अगर हम वर्तमान पीढ़ी या युवा समूह की ओर ध्यान आकृष्ट करते हैं तो यह स्वतः दर्शाता (झलकता) है कि वे अपनी संस्कृति, विरासत, सामूहिकता रहन-सहन, बोली-भाषा से खुद को दूर करते जा रहे हैं इसका कारण जो भी हो पर कुछ बातें स्पष्ट नजर आने लगी है कि युवा वर्ग जहां अंग्रेजी एवं हिन्दी को अपने संवाद का माध्यम बना रहे हैं वहीं अपनी मातृभाषा, मुंडारी, कुड़ुख, संथाली, खोरठा, हो, कुरमाली जैसी भाषा को हाशिये पर धकेलते जा रहे हैं एक अनुमान एवं अनुभव के आधार पर 60 प्रतिशत बोलना नहीं चाहते हैं। इसमें से शेष 30 प्रतिशत युवाओं को अपनी बोली-भाषा के प्रयोग में हीन-भावना महसूस होती है।
इसी तरह जब पर्व त्योहार का समय आता है तो उत्सवों में आयोजित नाचगान में सभी लोग समान रूप से भाग लेते थे। लेकिन वर्तमान समय में कुछ एक त्योहारों के छोड़कर शेष में व्यक्तिवाद की बू आने लगी है। विडंबना तो यह है कि इससे निरजातिय समूह (आदिवासी वर्ग) भी अछूता नहीं रहा। मैं और मेरा परिधि सिमटता जा रहा है। जहां तक नृत्य का प्रश्न है तो इसकी खास शैलियां होती है चाहे वह छऊ नृत्य हो या पाइका, नटुआ, चौकारा, जमदा, हाटबार, सोहराय, सायरोंलरी, जफर, ये सभी शैलियां छोटे समूहों में ही सिमटती जा रही है। युवा वर्ग तो इनका नाम भी नहीं जानते हैं। पहले नाच-गान खुले आसमान के नीचे अखड़ा में होते थे। आज अखड़ा की जगह स्टेज एवं आरकेस्ट्रा लेते जा रहे हैं। बंद कमरे में, अब जमदा, नटुआ, पइका के जगह युवा वर्ग डिस्को डांस करने एवं सीखने में ध्यान देता है, उसी प्रकार हमारे वाद्य यंत्रों के जगह अब ध्वनि यंत्र (डेक, कैसेट) बाजे में झूमते नजर आते हैं। ध्वनि यंत्रों में बजने वाले गीत-संगीत लोगों को कर्णप्रिय लगने लगी। उन गीतों में भाषा को तोड़-मरोड़ दिया जाता है। मांदर, नगाड़ा, बांसुरी, ढोलकी के जगह पर आज गिटार बजने लगे हैं, मांदर को गले में टांगने में इन्हें पीड़ा होती है तो नगाड़ा क्या बजायेंगे। उन्हें अगर गिटार बजाना न भी आये तो कंधे पर लटकाये घूमना अपनी शान समझते हैं क्योंकि उसे मॉडल जो कहा जायेगा। नगाड़ा लटका कर उन्हें ठेठ देहाती जो थोड़े ही खुद को कहलाना है। नगाड़ा कैसे बजायेंगे, साथ में डर जो है कि कहीं आधुनिकता के दौड़ में पिछड़ न जायें। अगर पिछड़ गये तो उन्हें प्राणत्याग जैसी स्थिति जो लगेगी। यह तो स्पष्ट है कि बाजारवादी संस्कृति वर्तमान युवापीढ़ी को सांप्रदायिक शक्तियों एवं साम्राज्यवादी ग्लोबलाइजेशन का हमकदम बनाकर चल रही है। इन शक्तियों का एक मकसद हैः झारखंडी गौरवशाली सामाजिक, सांस्कृतिक विरासत को नष्ट करना।
अब प्रश्न उठता है कि क्या झारखंडी गौरवशाली सामाजिक व्यवस्था एवं संस्कृति को इसी तरह हाशिये में आने दिया जाये या फिर साम्राज्यवादी एवं सांप्रदायिक शक्तियों के विकल्प को पुनः जोरदार रूप में देशज गणतंत्र में निर्मित जन भावनाओं से सराबोर, सामूहिकता की परिचायक गौरवमय झारखंडी संस्कृति को पुनः स्थापित कर जनहित के लिए आगे लाया जाये।
pravin kumar
Sunday, August 28, 2011
भूमि की प्रकृति बदल कर.नहीं बनेगी इमारतें..२४ जुलाई 2011
विदित हो की आज पूरे देश में बड़े उद्योग घरेने ..उद्योग लगाने के लिए ..किसानों, आदिवासियों, मूलवासियों, मछुवारो के hath से जंगल जमीन नदी पहाड़ छीने की कोशिश कर रही है..सभी उपजाऊ..खेती की जमीन है..कंही कंही तीन फसल भी होता है..लेकिन कंपनियों को जमीन देने के लिए..कृषि भूमि, जंगल, जल स्रोत का प्रकृति..बदल कर इसे बंजर ..वेस्ट लैंड करार दे रही है..और इसे जबरजस्त अधिग्रहण की कोशिश कर रही है..बन्दुक के नोक पर..
भूमि अर्जन के लिए पेसा अपनाना जरुरी..मुख्या मंत्री श्री अर्जुन मुंडा...
राज में क्या हो रहा है..समझ में नहीं आता है..जब आदिवासी पेसा कानून के तहत पंचायत चुनाव करने की मांग कर रहे थे..तब इसको सरकार ऩे भी ख़ारिज किया..पेसा के तहत चुनव नहीं कराया गया..अब मुख्या मंत्री श्री अर्जुन मुन्दाही बयां दे रहे हैं की..पेसा कानून के तहत जमीन अधिग्रहण किया जाय..जब आप ऩे कानून अधिकार ही नहीं दिया..तब भूमि अर्जन के पेसा कानून अपनाना क्यों जरुरी होगा..सवाल के राज के आदिवासियों को सिर्फ ..मुर्ख बनाने की ही chaal है..
आदिवासियों का जमीन खरीदना और मुश्किल..मुख्या मंत्री शिर अर्जुन मुंडा..१०.जुलाई २०११.- सच है यह मजाक है..?
आदिवासियों के जमीन सम्बंधित कानून..सी एनं टी एक्ट और एस पी टी एक्ट का मखौल उडाया जा रहा हैं..एस पी टी एक्ट १८७२ में संताल परगना एरिया के संताली आदिवासियों के साथ मूलवासियों के जमीन की रक्छा के लिए बनाया गया..एस पी टी एक्ट १९०८ में छोटानागपुर के आदिवासियों के जमीन की रक्छा के लिए बनाया गया..लेकिन..कानून की धजियाँ उड़ाती गयी...आज अगर मुखिया मंत्री कह रहे हैं..की सी एनं टी और एस पी टी एक्ट को सामान किया जाये..तो sarhaniye जरुर है...लेकिन ..आदिवासियों के साथ ..मात्र मजाक ही है.
Udyogon ka sidha Bhumi Kharidna Abaidh...CM. Arjun Munda
Cm Arjun Munda said now, companies not to be able to parchage directly in 5th scheduled area in Jharkhand...But see other side..When he was earlier in 2006-7 as Chief Minister..He was singhed the MOU's with nearly 56 Capitalist to purchage the land in Jharkhand And all MOU's have singhed for scheduled..It's in Under the CNT Act and SPT Act.....
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List of page..4, 5, 6, 7- You can see in post ---2
Saturday, August 27, 2011
70,000 population in Kamdara Block...but there is no any X-ray Machine in Public Helath Centre..
73 राजस्व गांव के 70 हजार आबादी के लिए गंभीर बीमारी के इलाज के लिए, यह दुर्घटना पीडि़तों के एक्सरे के लिए एक एक्सरेमशीन भी नहीं है। डाक्टर हैं तो वो
PHC -KAMDARA
गुमला जिला में कमडारा प्रखंड जिला मूख्यालय से पूरब दिशा में जिला का अंतिम प्रखंड है। जो खूटी जिला के प’िक्षमि छेत्र से सटा हुआ है। प्रखंड में 73 राजस्व गांव हैं। इसमें 10 पंचायत आतें हैं। प्रखंड की आबादी 70 हजार तक है। इतनी बड़ी आबादी के लिए प्रखंड स्तर में एक सामुदायिक स्वस्थ्य केंन्द्र प्रखंड मुख्यालाय में हैं। दुखद बात तो यह है कि 73 राजस्व गांव के 70 हजार आबादी के लिए गंभीर बीमारी के इलाज के लिए, यह दुर्घटना पीडि़तों के एक्सरे के लिए एक एक्सरेमशीन भी नहीं है। डाक्टर हैं तो वो भी नदारत।
प्रखंड के नागरिकों के स्वस्थ्य के देख रेख की जिम्मेवारी सामुदायिक स्वस्थ्य केंन्द्र में पदास्थापित तीन डाक्टरों सहित अन्य कर्मचारियों को दी गयी है। 27 अगस्त को स्वस्थ्य केंन्द्र के सामने ही रोड़ दुर्घटना में दो लोग घायल हुए। इनमें जीवन मसीह सुरिन पिम्पी को गंभीर चोट आयी। रघो साहू को भी पैर में चोट लगा। दोनों पीडितों को 25 मिनट तक बाहर बेंच पर सुलाये रखे। फस्ट एड के नाम पर एक सूई केवल दिया गया। बेंडेज करने के लिए कहा गया-तब पीडि़तों को अंदर ले जाया गया और बेंडेज किया गया।
कितना चोट आया हैं, अब बेंडेज के बाद इनका इलाज कैसे होगा -यह पूछने पर वहां मौजूद कर्मचारी बोले-मैडम आप को एम्बूलेंस दे देगें, आप मरीज को बसिया ले जाइये या रांची जे जाईए। ठीक है लेकिन कितना अंतरिक चोट आया है-इसका तो पता लगे पहले। इस के जबाव में कर्मचारी बोले-हां एक्सरे होगा, तभी बता पाऐंगें। ठीक है तो -इंतजार कर रहे हैं-आप जल्दी एक्सरे किजीए। इस पर फरमासिस्ट श्री सुबोध प्रसाद कहते हैं-यहां एक्सरे मशीन नहीं हैं, एक्सरे के लिए दूसरा जगह ले जाना होगा। वहां मौजूद ब्लोक एकाउंटेंट मैनेजर श्री सब्यसच्ची कर्मकार कहते हैं-मरीज को रेफर कर दिया जाएगा, इसके बाद आप दूसरे जगह इलाज के लिए ले जाईए।
जब उनसे पूछा गया कि कौन डाक्टर अभी देख रहे हैं? इसके जवाब में कर्मचारियों ने कहा, अभी तो कोई डाक्टर यहां नहीं हैं। अगर डाक्टर इन्हें देख नहीं रहा है तो कौन मरीज को रेफर करेगा। इस सवाल पर सभी चूपी साधे रहे। विदित हो कि स्वस्थ्य केंन्द्र में टांगी गयी डयूटी चाट के अनुसार विफे के दिन सुबह छह बजे से दोपहर 2 बजे तक डा रूचि भूषण की है तथा 2 बजे से रात के 10 बजे तक डा राजेश कुमार की है। कर्मचारियों ने बताया -10 बजे से 2 बजे तक डा रूचि केंन्द्र में थी। लेकिन अभी कोई भी डाक्टर यहां नहीं मिले।
कर्मचारियों से जब कहा गया कि सरकारी स्वस्थ्य केंन्द्र में एक्सरे मशीन नही तो पीडितों को एक्सरे कराने के लिए दूसरा जगह ले जाने के लिए क्या व्यवस्था है। इसके जावब में कर्मचारियों ने बताया-जब डाक्टर रेफर के लिए लिखते हैं-तब एम्बुलेंस दिया जाता है और उसके लिए डीजल भी दिया जाता है। इस पर कर्मचारियों से सवाल किया गया-कि यहां तो डाक्टर ही नहीं हैं तो कौन रेफर के लिए लिखेगा। बहुत दबाव के बाद दोनों पीड़ितों को बसिया रेफरल हॉस्पिटल एक्सेरी करने ले जाने के लिए अम्बुलेंस मिला. सरकारी हॉस्पिटल में ग्रामीणों के सेवा के लिए--सभी बेवस्था होना चाहिए..इसके मांग आप लोगों को करना चाहिए...आप नहीं करते हैं तो ये आप लोगों की कमजोरी है..अम्बुलेंस में तेल आप को ही देना है..इस पर आनन-फनन में ३०० रुपये तेल के लिए तथा १०० रूपया एक्सेरे के लिए दिया गया.
यहां टी बी जैसे गंभीर रोगियों सहित अन्य रोगियों के लिए कौन कौन सा दवा केंन्द्र में उपलब्ध हैं। इसकी जानकारी देने के लिए लैब फिजिसियन श्रीकांत निराला को खोजा जाने लगा। थोडी देरे में श्रीकांतजी आये। बताये कैट वन और कैट टू ही उपलब्ध है।
इतनी बड़ी आबादी वाली सामुदायिक स्वस्थय केंन्द्र सुविधा विहीन है। यहां तीन डाक्टर के अलावे सिर्फ दो नर्स हैं। आरती कुमारी सामुदायिक स्वस्थय केंन्द्र के लिए है। दूसरी सुशीला लकड़ा कमडारा शहरी क्षेत्र के लिए है। लैब फिजिशियन तथा ब्लोक एकाउंटेट अनुबंध में हैं।
Monday, August 22, 2011
Sunday, August 21, 2011
सवाल तो यह है कि -सिर्फ मांइस से 1,151 करोड़ मिलता है लाभ का हिस्सा, फिर भी मांइस से हुए विस्थापितों के लिए सरकार कुछ नहीं करती हैं।
देश के 50 खजिन बहुत जिलों को 9 -9 हजार करोड़ मिलेगें। देश के 31 जिलों को 100 करोड़ रूपये प्रतिवर्ष से भी अधिक मिलेंगे। इन टाप 50 खनिज बहुल जिलों में झारखंड के नौ जिले शमिल हैं। इन जिलों में 10,921 करोंड़ रूपये मूल्य के खनिज निकाले जाते हैं।
- भारत में 84 प्रकार के खनिजों उत्खनन होता है
- हर साल 200609 करोड़ रूपय की खनिज निकाली जाती है
- 2010-11 के आंकड़ों के अनुसार देश भर में कुल 2628 माइंस
- ज्यादातर मांइस गुजरात, अंध्रप्रदेश , मध्यप्रदेश , छतिसगढ़, झारखंड, प.बंगाल, ओडिसा, कर्नाटक, गोवा, तमिलनाडू, राजस्थान व महाराष्ट्र में हैं
खनिज के उत्खनन की वजह से उस क्षेत्र का कृर्षि प्रभावित होता है।
जिला...................खनिज का मूल्य... ...मांइस लीज........प्रभावित ......लाभ का हिस्सा
करोड़ में...... क्षेत्र-हेक्टेयर ... .आबादी ......करोड़ में
धनबाद.....................
ळजारीबाग...............1895...
प.सिंहभूम................1195.
चतरा......................
गोडा.......................
बोकारो....................953.
रांची.......................
पलामू.....................250.
देवघर.......................
कुल...........................
सवाल तो यह है कि -सिर्फ मांइस से 1,151 करोड़ मिलता है लाभ का हिस्सा, फिर भी मांइस से हुए विस्थापितों के लिए सरकार कुछ नहीं करती हैं। इनके विकास के लिए सरकार के पास कोई अजेंडा नहीं हैं।