Thursday, June 30, 2011

आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच की बचनब्दता -२९- 30 जून २०११



SANKALAP LETA...ADIVASI MULVASI ASTITVA RAKCHA MANCH

आदिवासी-मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच

खूंटी -गुमला
आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच की बचनब्दता -२९- 30 जून २०११
द्वितीय शहादत सह संल्कप दिवस-कोरको टोली-तोरपा -खूंटी
समुन्नत झारखंड और नवझारखंड के लिए आदिवासी मूलवासी अस्त्त्वि रक्षा मंच लगातार संघर्षशील है। हमरा संघर्ष और निर्माण का स्वप्न एक ऐसी जनराजनीति से निर्देशित है जिसकी दिशा हूलगुलान के शहीदों और बिचारकों ने ही तय कर दिया था। झारखंड राज्य गठन के बाद हमारी चुनौती और हमारा दायित्व और ज्यादा गहन हो गया है। हमने देखा है कि झारखंड कारपोरेट घरानों के निशाने पर है और झारखंड की अधिकांश राजनीति इन निगमों का पिछलग्गू बन गयी है। यह सारी दुनिया के आदिवासी-मूलवासियों के संसाधनों की लूट कर पूंजीपतियों की आर्थिक संरचना का दौर है। साथ ही जनता द्वारा चुने गये जनप्रतिनिधियों का पूंजिपतियों के साथ गांठजोड़ की राजनीति कर यहां के प्रकृतिक संसाधनों का दोहन दिया जा रहा है। ऐसे दौर में आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच का साफ मानना है कि हम एक समुन्नत समाज के नवनिर्माण की नई जनराजनीतिक चेतना का विकास के पहल से ही हालात को बदल सकते हैं और इसके लिए हम सब को अपने बिचारों की धार को तेज करना होगा। कोई भी समाज या जनसंगठन बिना विचार के न तो जीवित रह सकता है और न ही वह समकालीन चुनौतियों का पूरी तत्पराता के साथ मुकाबला कर सकता है। हम उन खतरों से वाकिफ हैं जो हमारे इर्दगिर्द मौजूद है। हमारी भाषा, संस्कृति, लोकाचार और हमारी आजीविका की संस्कृति तथा परंपरागत हुनर, तकनीक और कृर्षि-जंगल आधारित आजीविका को न केवल खत्म करने की कोशिश की जा रही है बल्कि इसे अवैज्ञानिक समझ साबित कर विनाशाकारी विकास की परियोजनाओं को थोपने का प्रयास किया जा रहा है। ऐसी विकास नीति के पक्ष में बात की जा रही है जिससे न केवल परस्थिकीय संकट खड़ा हुआ है बल्कि धरती और जीवन ही संकटग्रस्त हो गया है। झारखंड की त्रासदी यह है कि झारखंडी समाज और संस्कृति में अंतरनिहित वैज्ञानिक समुन्नति की प्रक्रियाओं और प्रवृतियों को ही खारिज कर देने के लिए माहौल बनाया जा रहा है। इतिहास साक्षी है और हमारे शहीदों के विचार बताते हैं कि झारखंड के आदिवासियों और मूलवासियों ने जिस तरह के लयात्मक समन्वय की सामाजिक चेतना का सृजन किया था उसे और गतिशील बना कर ही संकट का न केवल मुकाबला किया जा सकता है बल्कि झारखंड के नवनिर्माण का भावी मार्ग को भी प्रशस्त किया जा सकता है। झारखंडी जनगण के सामूहिक विवेक और इतिहास चेतना में जिस तरह की राजनीतिक विरासत मौजूद है वह हमारी सबसे बड़ी ताकत है। यह न केवल सामुदायिकता और समानता के मूल्यों पर आधरित जनतंत्र की विरासत है बल्कि इसमें स्त्री पुरूष की समानता का मूल्य जीवंत है. विभिन्न कारकों और सांस्कृतिक हमलों के कारण जो विघटन हुआ है उसे पहचानने की जरूरत है और यह समझ स्पस्ट करने की जरूरत है कि झारखंड के आदिवासी मूलवासी जनगण का संघर्ष न केवल स्थानीय स्तर पर परंपरा की रूढि़यों और रूकावटों को खत्म कर एक नए समाज के निर्माण के दिशा में आगे बढ़ने के लिए है और इसके विचार और सिद्धांत के लिए दीर्घकालिक सामाजिक चेतना हमें प्रेरित करती है
झारखंड के आदिवासियों और मूलवासियों का सपना दिनां दिन कठिन होता जा रहा है. झारखंड को एक ऐसे मुकाम पर पहुंचा दिया गया है जहां भविष्य बहुत अंधकारमय दिखता है. इससे बाहर निकलने का एकमात्र रास्ता जनसंघर्ष को तेज करना और उसके आधार पर एक नई जनराजनीतिक बहस और चरित्र का निर्माण करना है। हमें यह बताना होगा कि झारखंडी मूल्य और विचार क्या हैं तथा उसे जीवन में किस तरह सार्थक किया जा सकता है। हमारे संगठन को पूरा देश इसी उम्मीद के साथ देख रहा है। हमारे संगठन न केवन दुनिया के सबसे बड़े कारपोरेट को चुनौती दी है बल्कि इस बिमर्ष को भी अपने मौलिक नारों के माध्यम से खड़ा किया है कि झारखंड की अस्मिता और अस्तित्व का वैज्ञानिक नजरिया क्या है तथा उन्नति के मानक का मतलब क्या है। हमने उस बिमर्ष को पुनः रेखांकित किया है कि समुन्नति एक प्रकृतिक अवधारणा है और यदि दुनिया के पर्यावरण की हिफाजत करनी है तो विकास के वर्तमान माडल को बदलना होगा। हमारे जनसंगठन ने यह भी स्थापित किया है कि जनसंगठन और जनांदोलन की राजनीति का वास्तविक अर्थ क्या है। हमने अपने अनुभव से सीखा है कि इतिहास केवल प्रेरित ही नहीं करता बल्कि वह गढ़ने की शक्ति भी प्रदान करता है और जनसक्रियता के व्यापक संदर्भ न केवल जनगण की राजनीतिक चेतना को उन्नत करते हैं बल्कि उनके इतिहासबोध को और ठोस बनाते हुए भावी समाज के निर्माण की दिशा में ठोस तर्क और प्रवृतियों का सृजन भी करते हैं। हम कह सकते हैं कि हमारी बचनबद्धता झारखंड के प्राकृतिक संसाधनों की हिफाजत, लोगों की आजीविका संस्कृति को आगे ले जाने, भाषा और विरासत के पुननिर्माण के साथ एक ऐसी जनराजनीतिक चेतना के निर्माण के प्रति है जिससे हूलगुलानों के सपने को जमीन पर उतारा जा सके। हूलगुलानों का संदेश था कि हमें अपने अस्तित्व को न केवल बचाना है बल्कि उसे गतिशील भी रखना है और साथ ही ऐसे सामाजिक मूल्यों के साथ स्वयं को आत्मलीन करना है जिसमें एक ईमानदार और जनतांत्रिक झारखंड गढ़ा जा सके। हमारा अनुभव है कि असली ताकत तो गांवों में है और लोगों में है लेकिन इस ताकत का राजनीतिक इस्तेमाल कर जिस तरह झारखंड की छवि बना दी गयी है उसे बदलना होगा। संताल हूल और बिरसा उलगुलान ने जिस तरह का नेतृत्व विकसित किया था उसी तरह का नेतृत्व हमें भी निर्मित करना होगा। जो समझौताविहीन संघर्ष तथा जनगण के नियंत्रण में हो। हमारा साफ मानना है कि असली राजनीतिक और आर्थिक ताकत जनता में है और किसी भी निर्णय की प्रक्रिया में उसे नजरअंदाज करने की प्रवृति को खतम कर हम वास्तविक स्वशसन की दिशा तेज कर सकते हैं।
आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच के विचार निर्माण की प्रक्रिया जनसमुदायों की इसी समझ से विकसित हुई है. यह कार्यभार हमारे समक्ष है कि हम इस प्रक्रिया और गति प्रदान करें। हम व्यापक लक्ष्यों के लिए संघर्ष कर रहे हैं जिसमें आम आदमी की भूमिका प्रमुख है।
आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच जनतांत्रिक मूल्यों पर बिश्वाश करता है। मंच व्यापक जनसमुदाय की निर्णायक हिस्सेदारी में बिश्वाश करता है। हमारी सफलता का यही मूख्य कारण है. मंच यह भी मानता है कि संकीर्ण राजनीतिक हितों से जनगण के व्यापक सपनों को पूरा नहीं किया जा सकता। मंच जनगण की सक्रियता के साथ एक जीवंत समाज का प्रतिनिधित्व करता है। इतिहास से सीखते हुए हमारा अनुभव यह भी बताता है कि संघर्ष स्थानीय संसाधनों के बल पर ही मंजिल हासिल करता है। हम देख रहे हैं कि झारखंड को विखंडित करने की हर तरह की साजिशें चल रही हैं. झारखंड की अस्मिता को खत्म करने के षडयंत्र को नाकामयाब करना भी हमरा मकसद है। झारखंड को किसी भी हालत में हम भ्रष्ट तथा लुटेरे लोगों का साम्राज्य नहीं बनने दे सकते।. हूलगुलानों की सीख यही है। हमें साफ तौर पर कहना होगा कि झारखंड शोषकों और लुटेरों का चारागाह नहीं है बल्कि उन करोड़ों आदिवासियों और मूलवासियों का एक जीवन है जो श्रम की महत्ता का आदर करते हैं तथा लूट की संस्कृति से नफरत करते हैं.। कारपोरेट राजनीति और विकास की कारपोरेट नीतियों को चुनौती देने के लिए हमें अपनी परंपरा के ईमानदार तथा सादगीपूर्ण जीवन को और आगे ले जाने की जरूरत है.। दुनिया को कारपोरेट साजि’ा से बाहर निकाल का जनतांत्रिक उन्नति के रास्ते पर ले जाने के लिए हमें वैकल्पिक नीतियों को जमीन पर उतारने की दिशा में कदम बढ़ाना होगा.
आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच को मजबूत बनाने की दिशा में हमें सुनियोजित तरीके से आगे बढ़ने की जरूरत है. याद रखना चाहिए कि हमें सारा देश गौर से देख रहा है। आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच झारखंडियों की जनएकता को मजबूत बनाने की एक प्रक्रिया भी है और विचार भी.। साथ ही मंच मानता है कि झारखंड के किसान-कारीगर-कामगारों की व्यापक एकता भी जरूरी है.। जनता को बांटनेवाली विभाजक प्रवृतियों के प्रति हम सबको लगातार सजग रहने की जरूरत है.। झारखंड में विभिन्न तरह के विचारों के सहारे न केवल झारखंडी मूल्यों को लगतार कमजोर किया जा रहा है बल्कि जनता की एकता को तोड़ने के लिए कई तरह के प्रयोग किए जा रहे हैं.। इन सबको नाकाम करने का कार्यभार भी मंच का बुनियादी दायित्व है.
इस बात को एक बार और दुहराने की जरूरत है कि जनसंगठन न केवल जनराजनीति को जन्म देता है बल्कि विचारों से लैस जनसंगठन व्यपाक बदलावों की भी दिशा तय करता है। आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच को और मजबूत बनाते हुए हम अपने संसाधनों की हिफाजत करेंगे और इन संसाधनों से जो अर्थ संरचना उभरती है उसके आधार पर समुन्नत झारखंड की दिशा भी तय करेगे। एक नवझारखंड के नवनिर्माण के ऐतिहासिक दायित्व के प्रति हम सजग हैं और इस मकसद के लिए जनतंत्र को आधार बना कर हमें आगे बढ़ना है।
इतिहास गवाह है कि इस राज्य की धरती को हमारे पूर्वजों ने सांप, भालू, सिंह, बिच्छु से लड़ कर आबाद किया है। इसलिए यहां के जल-जंगल-जमीन पर हमारा खूंटकटी अधिकार है। हम यहां के मालिक हैं। जब जब हमारे पूर्वजों द्वारा आबाद इस धरोहर को बाहरी लोगों ने छीनने का प्रयास किया तब-तब यहां विद्रोह उठ खड़ा हुआ। इस राज्य के जलन-जंगल-जमीन को बचाने के लिए तिलका मांझी, सिद्वू-कान्हू, फूलो-झाणो, सिंदराय-बिन्द्रय , वीर बिरसा मुंडा, गया मुंडा, माकी मुंडा जैसे वीरों ने अपनी शहादत दी। इन शहीदों के खून का कीमत है-छोटानागपुर काशतकारी अधिनियक 1908 और संतालपरगना का’तकारी अधिनियम । इन कानूनों में कहा गया है कि आदिवासी इलाके के जल-जंगल-जमीन पर कोई भी बाहरी व्यक्ति प्रवेश नहीं कर सकता है। यहां के जमीन का मालिक नहीं बन सकता है। हम सभी जानते हैं कि भारतीय संविधान में हमारे इस क्षेत्र को बिशेष अधिकार मिला है-यह है पांचवी अनुसूचि क्षेत्र। इसे पांचवी अनुसूची क्षेत्र में जंगल-जमीन-पानी, गांव-समाज को अपने परंपरागत अधिकार के तहत संचालित एवं विकसित एंव नियंत्रित करने को अधिकार है। आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच इन अधिकारों का सम्मान करता है, और इसकी रक्षा के लिए बचनबद्व है।

संकल्प

1-छोटानागपुर का’तकारी अधिनियम 1908 के मूल धारा 46 में आदिवासियों को जो अधिकार दिया गया है, इसकी रक्षा के लिए मंच बचनबद्व है।

2-73वे संविधान सं’शोधन के तहत इस इलाके के ग्राम सभा को जल, जंगल, जमीन, गांव, समाज को संचालित , विकसित तथा नियांत्रित करने का अधिकार प्राप्त है-इसकी रक्षा के लिए मंच हमेशा संघर्ष के लिए तैयार रहेगा।

3-आदिवासी-मूलवासियों का परंपरागत अधिकार जमीन के साथ, जंगल, पहाड़, नदी-नालों, सहित तमाम जलस्त्रोतों पर है, इस पर बाहरी, सरकारी या कंपनियों का हस्तक्षेप मंच कताई स्वीकार नहीं करेगा।

4-विकास योजनाओं में हर आम किसान, महिला एंव युवाओं को बराबरी का भागीदारी बनाने के लिए मंच संघर्ष करेगा।

5-कृर्षि, पर्यावरण के विकास के लिए कारो नदी, छाता नदी, कोयल नदी सहित सभी जलस्त्रोतों का पानी किसानों के खेतों तक लिफट एरिगेशन के तहत पहुंचाने की व्यवस्था के लिए मंच हर संभव कोशिश करेगा।

6-इस इलाके में किसी तरह की परियोजनाएं, जिससे विस्थापन हो, रोकने के प्रयास जारी रहेगा।

7-विकास से लिए क्षेत्र में कृर्षि तथा वन आधारित कुटीर उद्योगों की स्थापना के लिए सरकार पर दबाव देने का लगातार प्रयास किया जाएगा।

8-’सिक्चा के क्षेत्र में हो रहे घोटालों का रोकने का प्रयास किया जाएगा

9-जनराजनीतिक चिंतन को मजबूदी देने के लिए मंच तत्पर रहेगा-ताकि झारखंड के इतिहास, धरोहर-जंगल-पानी-जमीन, गांव समाज की रक्षा के साथ ही इसका विकास को दिशा दिया जा सके।

10-जाति-धर्म, वर्ग और स्वर्थपरस्त राजनीति से उपर उठकर मंच संघर्ष जारी रखेगा ।

11-मंच स्थानीय संसाधनों, चंदा, एक एक मुठी धान, चावल के बल पर ही संघर्ष जारी रखेगा ।

12-हम विकास विरोधी नहीं हैं-विकास चाहते हैं-लेकिन हमारा-जल-जंगल-जमीन, समाज, भाषा-संस्कृतिक के कीमत पर नहीं।

13-पूर्नावास और पूर्नास्थापन नीति एक धोखा है, मंच इसे मीठा जहर मानती है। इसे जो भी स्वीकार करेगा-भविष्य नष्ट होना तय है।

14-पूर्नावास और पूर्नास्थापन नीति उनके लिए बने जो आजादी के बाद विस्थापित हो, बेघर-बार, भूमिंहीन, बेराजगारी, असिक्चा , बीमारी और कंगाली का जीवन जी रहे हैं। जब तक इन पूर्व में विस्थापितों का पूर्ण एवं आदर्श पुर्नावास नहीं किया जाएगा-झारखंड में किसी तरह का विस्थापन नहीं होने दिया जाएगा।

15-हमारा भाषा-संस्कृति, सामासजिक मूल्यों, धार्मिक अस्था, सरना-ससन दीरी, मंदिर, मशजीद, गिरजा को किसी पूर्नावास पैकेज से नहीं भरा जा सकता है, और न ही इन ही इनका पूर्नावासित किया जा सकता है।

आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच
संयोजक- प्रखंड समितियां- कर्रा, तोरपा, कमडारा, रनिया

नोट-आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच ने हुलगुलान दिवस सभा में २९-30 जून 2011 को यह संकल्प पत्र जारी किया।

कंपनियों की जागीर नहीं ---- हमारे पूर्वजों की -झारखंड हमारा है

संकल्प सह हुलउलगुलान दिवस



कंपनियों की जागीर नहीं हमारे पूर्वजों की -झारखंड हमारा है एक इंच जमीन नहीं देगें


जल जंगल जमीन-भाषा संस्कृति, इतिहास, अस्तित्व को बचाने का झारखंड़ का गैरवपूर्ण इतिहास रहा है। 1700 के दशक से 1900 ई0 का दशक अपने अस्तित्व इतिहास बचाने का अंग्रेज साम्राज्यवाद -जमीनदारों के खिलाफ झारखंडियों ने समझौताविहीन संघर्ष का इतिहास रचा। इस संर्घष में आदिवासियों ने अंग्रेज हुकूमत के सामने कभी घुटना नहीं टेका। अंग्रेजों के गोलियों का सामना सिना तान कर किया-लेकिन पीठ दिखाकर कर आदिवासी समाज पीछे कभी नहीं हटा। 30 जून 1856 में संथाली आदिवासियों ने सिद्वू-कान्हू के नेतृत्व में भोगनाडीह में अंग्रेज के गोलियों का सामना करते हुए-10,000 की संख्या में समुहिक शहादत दिये । 9 जून 1900 में बिरसा मुंडा के आगुवाई में डोम्बारी बुरू में अंग्रेजों के बंदुक के गोलियों को सामना करते हुए 500 लोग शहीद हुए।
झारखंड के इतिहास के पनों में जल-जंगल-जमीन, इतिहास-अस्तित्व बचाने का संर्घष के लिए जून महिना -शहीदो का माहिना है। आज जब पूर झारखंड को देशी -बिदेशी पूंजीपति कब्जा जमाने की कोशिशि में हैं-ऐसे समय में हम झारखंड़ी आदिवासी-मूलवासियों को अपनेपूर्वजों के दिये बलिदान को याद करने की जरूरत है। यही नहीं अपने अस्तित्व की रक्षा के सघर्ष को आगे ले जाने की भी जरूरत है- ताकि हमारा झारखड़ बचा को बचा सकें।
यह जिम्मेवारी हर युवक-युवाती,, महिला-पुरूष, बुधिजीवियो, सामाजिक कार्यकर्ताओं, झारखंडी शुभचिंतकों की है
इसी जिम्मेवारी के साथ आदिवासी-मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच अपना संकल्प एक एंच भी जमीन नहीं देगें की आवाज को और बुलंद करने के लिए 29-30 जून 2011 को कनकलोया कोरको टोली में संकल्प सह हुलउलगुलान दिवस मनाने का निर्णय लिया है।
नोट-इस अवसर पर संस्कृतिक कार्यक्रम, तीर-धनुष चलान प्रतियोगिता भी होगा। इसमें हर गांव के सभी वर्ग शामिल होगें। अताः हर गांव से अपना गाजा-बाजा के साथ, परंपारिक पहिराव के साथ आयें।


स्थान- कनकलोया कोरको टोली
तिथि-29-30 जून 2011, 29 जून को सुबह 9 बजे तक सभी पहुंचने की कृपा करेगें

निवेदक-आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच

संजोजक - प्रखंड समितियां- कर्रा, तोरपा, कमडारा, बसिया, रनिय

Sunday, June 26, 2011

.therre are ten ripe fruits on a particular tree. They will pluck only seven or eight of the them for themselves, and leave at least a couple of fruit

The Cultural Values of the Triblas..
..is such that....therre are ten ripe fruits on a particular tree. They will pluck only seven or eight of the them for themselves, and leave at least a couple of fruits for the birds of the Air.
They believe that fruits are gifts of Nature and they are meant for all, including birds because the latter are also part of the Nature.
Likewise, When they come back after a hunting expedition in the Jungale, they divide whatever they have hunted into equal parts not only according to the nembers of perssons, who were participated in the hunting but to the dogs that accompany them in the hunting venture..

sangharsh jari hai..9


हाईवे में तब्दील होता सतलुज नदी
किनौर जिले को संविधान के अनुच्छेद 244 (1) के तहत अनुसूचित क्षेत्र घोषित किया गया है । साथ ही इस क्षेत्र में रहने वाले जनजीतीय लोगों के संरक्षण व हितों के मदेनजर अनेक संवैधानिक प्रावधान किये गये है। जिनमें हिमाचल प्रदेsh भूमि अन्तरण (विनियमन) अधिनियम-1968 , पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार)अधिनियम 1996 पेसा एवं जनजाति एवं अन्य परंपरागत वन निवासी ( वन अधिकारो की मान्यता) अधिनियम-2006 प्रमुख है। अनुसूचित क्षेत्रों में किसी भी प्रकार के विकासात्मक योजनाओं व जल विद्युत परियोजनाओं के लिए निजी भूमि अधिग्रहण तथा वन भूमि प्रत्यावर्तन (हस्तातरण) से पहले संबंधित ग्राम सभाओं से सहमति प्राप्त करना अनिवार्य है। हिमलोक जागृति मंच किनौर ने चिंता जाहिर किया है कि इन तमाम कानूनी प्रावधान के बावजूद आज किनौर में करच्छम-बांगतू जैसी वृहद जल विद्युत पिरयोजनाओं का निर्माण बिना ग्राम सभाओं की सहमति के पुलिस बल प्रयोग द्वारा जबरदस्ती shuru किया जा रहा है। इन परियोजनाओं के विरोध में सम्पूर्ण किनौर में आंदोलन shuru हो गया है। सरकार व कंपनी आंदोलनकारियों पर लाठी चार्ज व गोलीवारी कर आंदोलनों का दबा रहे हैं। यही नहीं जन-जातीय लोगों पर झूठे आपराधिक मामले दर्ज कर रही है। विदित हो कि देsh के कई आदिवासी बहुल राज्यों में पंचायत चुनाव हो चुका है, लेकिन इस इलाके मे पंचायत चुनाव नहीं हुआ है।
वन जनजातीय जीवन का आधार है परन्तु यह कैसी बिडम्बना है कि जब जनजातीय जीवन के उस आधार पर सरकार और उद्योगपति सभी कुठाराघात कर रहे हैं। लेकिन इनकी सुनने वाला कोई नहीं है। वास्तव में यह स्थिति आत्मरक्षा के नैसर्गिक व कानून की रक्षा के विपरीत है। अब वन अधिकार अधिनियम की धारा-5 के तहत वन अधिकार धारकों को वन, वन्य, pashu , और जैव-विविधता के संरक्षण करने की जिम्मेदारी दी गयी है और रक्षा करने लिए सsh क्त किया गया है। aise स्थिति में ग्रामीण खास तौर पर ग्राम सभा से अपने विवके के अनुसार कार्रवाई के लिए सक्ष्म है। लेकिन दुखद बात है कि भारतीय संविधान ने अपने नागरिकों के हित, पर्यावरण संरक्षण संबंधित कानूनों, जंगल-जमीन पर सामुयादिक अधिकारों, पानी पर स्थानीय जनता के सामुहिक अधिकारों का दमन स्वंय कर रही है। इन तमाम समाज के बुनियादी अधिकारों को छीन कर मुनाफा कमाने वाले तमाम कंपानियों के हाथों सौंप दे रही है। दूसरी ओर सरकार भारतीय नागरिकों के मानवअधिकारों की रक्षा की भी राग अलापती है। सरकार की इन नीतियों ने सामाजिक लोकतांत्रिक अधिकारों को रौंदने के दिsha में तेजी से आगे बढ़ रही है।

सतलुज तराई को काट कर बनाया गया रोड़
किनौर में Asian Development Bank के सह से हो रहे नागरिक अधिकारों के दमन के खिलाफ-जनविरोध
किनौर जिले में के आदिवासी क्षेत्रों में Asain Development Bank द्वाराHpccl स्थापित कर भारत सरकार पर्यावरण, जंगल और आदिवासियों के कानूनी अधिकारों का उलंघन कर रही है। इस इलाके की सभी परियोजनाएं ।Asian Development Bank द्वारा वित्तीय सहयोग दिया जा रहा है। स्थानीय जनता इन तमाम योजनाओं द्वारा अपने हक-अधिकारों के हो रहे दमन का विरोध कर रही है। तमाम नियम-नियम कानूनों का धजियां उड़ाकर इन परियोजनाओं को जमीन पर उतारा जा रहा है-स्थानीय जनता इसका तीब्र विरोध कर रही है। जनता को आरोप है कि खाब सह’ाहो 1020 मेगावाट परियोजना का निर्माण कार्य ग्रामीणों के जनविरोध के कारण पेन्डिंग में है। ग्रामीण 2007 से ही इसका विरोध में है। इस परियोजना को भी Asian Development Bank कर रहा है।Hpccl द्वारा निर्माणधीन इनटीग्रेट कसहांग हाईड्रो एल्केटिक परियोजना 243 मेगावाट बिना फोरेस्ट क्लीयारेंस से ही shuरू किया। इसको ग्रामीणों राष्ट्रीय पर्यावरण एथोरिटी के यहां कानूनी चुनौती दी है। इसी तरह shongtong करछम हाईड्रो परियोजना 420 मेगावाट को भी अभी तक फोरेस्ट क्लीयारेंस नहीं मिला है। इसको भी एडीबी बैंक सहयोग कर रहा है। इसका भी प्रभावित जनता विरोध कर रही है।

हिमाचल की इस हिरयाली को बचाने का संघषर््ा जारी है
हिमाचल प्रदे’ा के पर्यावरण संरक्षण,, नदी-पानी, जंगल पर समाज के समुहिक अधिकार, मानवअधिकारों की रक्षा, इस इलाकों को भूकम्प से बचाने, तथा राष्ट्रीय सुरक्षा की मांग को लेकर लंम्बे से जनता संघर्ष करते आ रही है। हिमाचल नीति अभियान के श्री गुमान सिंह, आर एस नेगी, अजित राठैर, बिनय नेगी, भगत सिंह किन्नर ने कहा-देsh को shudh हवा, अनुकूलित मौसम देने मे हिमाचल का बहुत बड़ा योगदान हैं। यदि इसे नहीं बचाया जाएगा तब-ग्लेshiyar पिघलेगा, और देsh के अन्य हिसों को भी इसके तबाही का खमियाजा छेलना होगा। हिमाचल की जनता हिमालय नीति अधियान, हिम लोक जाग्रती मंच, के बैनर तले गोलबंद होकर अपनी मांग को लगातार उपयायुक्त तथा महामहिम राज्यपाल तथा प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह को देते आ रहे हैं। इनमें से निम्न मुख्य मांग हैं-
1-निर्माणाधीन करक्षम -वांगतु परियोजना, जे0 पी0 कंपनी द्वारा बरती गयी अनियमितताएं, जिन में 400 बीघा वन भूमि पर अवैध कब्जा, अवैध सुरंगों का निर्माण, अवैज्ञानिक ढंग से किया जा रहा मक डम्पिंग, पर्यावरणीय एवं जनजातीय कानूनों का उल्लंघन प्रमुख है-के विरूद्वshighar व निर्णायक कार्यवाही की जाये और परियोजना निर्माण पर रोक लगा दी जाए।
2-जे0 पी0 कंपनी द्वारा अवैज्ञानिक ढंग से किये जा रहे निर्माण कार्य के कारण प्रभावित क्षेत्र के लोगों के मकान, सेब, चिलगुजा तथा अन्य फसलों का उत्पान प्रभावित हुए हैं, उस की भरपाई तुरंत की जावे। उसी तरह जल स्त्रोत सूख गये है, यह जलस्तर घट गये हैं, उसका जीर्वोदार किया जाये।
3-नाथपा व कण्डार गांव नाथपा-झाखडी 1500 मेगावाट परियोजन के प्रभावित गांव हैं। परियोजना के डैम व टनल निर्माण कार्यो में भारी ब्लास्टिंग से इन गांवों के पूर्वी भाग में चटटाने गिरने से दोनों गांवा क्षतिग्रस्त हो गये हैं और भारी मात्रा में जान माल को नुकसान हुआ-इनका जांच कर उचित कार्रवाई की जाए, तथा क्षतिपूर्ति की जाए।
4-कण्डार गांव के विस्थापितों को कंपनी टीन-’ौडस में ’िाफट किया है और मकान बनाने के लिएप्रति परिवार 2 लाख 40 हजार रू . दिया है, इस rashi को बढ़ाया जाए, ताकि मकान का निर्माण पूर्ण हो सके।
5-नाथपा गांव में अभी तक चटटानों के गिरने से 6 लोगों की मौत हो चुकी है और मकान व सम्पति की भारी छति हुई है। नाथपा और कण्डार गांव को भी भू-वैज्ञानिकों ने असुरक्षित घोषित कर दिया है। दोनों गांवों का यथा shighar पुर्नावास व पुनर्वास्थापन किया जाए।
6-243 मेगावाट एकीकृत kashang जलविद्युत परियोजना में आसरंग, लिप्पा, जंगी तथा रारंग पंचायतों के ग्रामीणों ने का’ांग चरण 2, 3, 4 का विरोध किया है। इस परियोजना के कारण पर्यावरण प्रभाव अत्यंत गंभीर होने और स्थानीय लोगों के जलस्त्रोंतों पर विपरीत परिणाम के मदेनजर चरण-2, 3, 4 को रदद किया जाए।
7-100 मेगावाट -टिडोंग-1 विद्युत परियोजना के निर्माण कार्य में कंपनी ने अवैध रूप से हजारों besh कीमती चिलगोजे व देवदार के पेड़ों को नष्ट किया है और वन भूमि प्रत्यावर्तन मंजूरी व पर्यावरणीय मंजूरी की sharton का सरासर उल्लंघन किया है। वन भूमि हस्तांतरण में राजस्व कानूनों के अंतर्गत लीज prakriya पूर्ण किए बगैर निर्माण कार्य shuru कर सरकारी भूमि पर अतिक्रमण किया है। अतः कानूनों के उल्लंघन करने के लिए परियोजना प्रस्तावक पर दण्डात्क कार्यवाही की जाए।
8-सीमांत क्षेत्र किनौर की अति संवेदनshil भौगोलिक स्थिति के मददेनजर जंगी-ठोपन-पौवारी, टिडोंग- में 2, खाब-’ाासो, चांगो-यंगथंग, यंगथंग-खाब, बास्पा-1, ‘’ाासो-स्पीलो तथा रोपा जल विद्युत परियोजनाओं को रदद किया जाए।
9-निर्माणाधीन करछम-वांगतु परियोजना के प्रस्तावक जे0 पी0 कंपनी द्वारा वांगतु से अब्दुल्लापुर तक के टांसमि’ान लाईन को सतलुज के बाएं किनारे के बजाये दांए किनारे से ले जाया जाये क्योंकि बाएं किनारे से टां्रसमि’ान लाईन के निर्माण से 12,000 बंे’ाकीमती देवदार के पेड़ नष्ट होगें। जे0 पी0 के इस प्रस्तावित लाईन के निर्माण करने के बाद वांगतु से झाखडी तक बासपा-2 के लिए बिछाई गई ट्रासंमि’ान लाईन को बंद किया जाए।
10-भारत सरकार भूरिया कमेटी की द्वितीय रिपोर्ट को तुरंत स्वीकार करे, जिससे स्थानीय प्रभावित जनजातीय लोगों को परियोजना का उचित लाभांsh मिल सकें
11-स्थानीय बेरोजगार पढ़े लिखे नौजवानों को रोजगार दिलाने के लिए इस क्षेत्र में लघु, सूक्षम एवं बवदबमदजतंजमक सोलर उर्जा प्राप्त हो, और यहां के पढ़े लिखे बेरोजगार युवाओं को भी स्थायी स्वरोजगार उपलब्ध हो।
12-अनुसूचित जनजातियो एवं अन्य परंपरागत वन निवासी-वन अधिकारों का मान्यता- अधिनियम 2006 के प्रावधानों को उस की मूल भावनाओं के अनुरूप लागू किया जाए तथा इस अधिनियम के अंतर्गत प्राप्त व्यक्तिगत तथा सामुदायिक दावों को मंजूर करने की प्राक्रिया तुरंत पूरी की जाए।
13-प्रदेsh सरकार ने टी. डी. के लिए जो नियम तैयार किया है इसे रदद किया जाए। इस विषय में ग्राम सभा स्तर पर व्यापक pramarsh किया जाए तथा टी. डी नियम पेसा व वन अधिकार कानूनों के प्रासधानों की मूल भावनाओं के अनुरूप तैयार किया जाए। राज्य सरकार ने हाल ही में जो टी. डी नियम जारी किया है वह किनौर वासियों को कतई मान्य नहीं है। टी. डी के अधिकार किनौर के जनजातीय लोगों को परंपरागत अधिकार है जो वन बंदोबस्त व राज्य के अभिलेखों में दर्ज है। वन अधिकार अधिनियम 2006 के लागू होने पर यह परंपरागत अधिकार अब कानूनी अधिकार बन गया है। अतः इस अधिकार से छेड़-छाड़ व इस का अल्पीकरण न्याससंगत नहीं है।

Saturday, June 25, 2011

स्थानीय लोगों ने चिंता जाहिर किया कि अब इस क्षेत्र की सामाजिक समरसता, संस्कृतिक और राजनीतिक पहचान भी खतरे में पड़ गया हैं-7



वायु प्रदूषण -जल विद्युत परियोजना रन आफ दी रीवर के निर्माण कार्य में भारी संख्या में mashinari , गाडि़यों, कम्प्रैshरों, बुलडोजरों आदि का प्रयोग होता है। इसके अतिरिक्त कई बड़े क्रशर प्लांटों को भी स्थापित किया जा रहा है। हजारों टन विस्फोट पदार्थ ब्लास्टिंग के लिए उपयोग किया जाता है। इन प्रदूषण स्त्रोतों से भारी मात्रा में कार्बन मोनो आॅकसाईड, कार्बन डाई आॅक्साईड कलोरोफलोरोकार्बन, मेथैन, सलफर डाईआक्ससाईड, नाईट्रोजन डाई आॅक्साईड आदि गैस उत्पन होगी और वायु प्रदूषण होगा।
मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव-कार्बन मोनोआॅक्साईड की मात्रा बढ़ जाने से दम घुटन होती है और आॅजोन रिक्तीकरण से त्वचा को कैंसर होता है। सल्फर डाईआॅक्साईड के कारण गाल, आंख वफेफड़े की बीमारी पैदा होती है। नाईट्रिक आॅक्साईड गैस बढ़ने सेवास सबंधी बीमारी होती है और निमोनिया जैसे आम बीमारी होने लगी है।

स्तलुज नदी में जेपी कंपनी के कर्मचारियों का आवास
किनौर क्षेत्र भारत के भूकंम्पीय मान चित्र के जोन 4 में स्थित है। किनौर जिला शीतमरुस्थालिया अर्ध शीतमरुस्थालिया क्षेत्र में स्थित होने के कारण यहां की भौगोलिक स्थिति अत्यंत नाजुक है। भूकंम्प की स्थिति में भूस्खलन आदि के कारण अत्यंत भौगोलिक हलचल हो सकता है और जान माल की भारी हानि हो सकती है। किनौर में अत्यंत तीब्रता वाले भूकम्प चुके हैं। और भारी जान माल की क्षति हुई है। वर्ष 1975 में किनौर में रिक्टर स्केल पर 6.8 तीब्रता वाला भूकम्प चुका है। किनौर में निर्मित, निर्माणाधीन और प्रस्तावित जल विद्युत परियोजनओं के जलाशयों लम्बी लंम्बी सुरंगों के कारण आने वाले दिनों में इस इलाके में भूकंम्प की स्थिति में भारी जान माल की स्थिति से इंकार नहीं किया जा सकता है।बिश्वा में अनेक उदाहरण हैं जहां भूकम्प से बांधो को नुकसान पहुंची है।
अचानक बाढ़-सतलुज जल संग्रहण क्षेत्र मरूस्थलीय एवं उंचे पहीड़ी क्षेत्र में स्थित होने के कारण कभी भारी वार्षा या बादल फटने की घटना घटती है तो नदी में महा प्रलंयकारी अचानक बाढ़ जाती है। जिससे घाटी में तबाही मच जाती है। जान -माल की भारी हानि होती है। इस प्रकार की प्रलंयकारी बाढ़ से नदी पर बनी परियोजनाएं नष्ट हो सकती हैं और जलाशयों के टूट जाने से बाढ़ की स्थिति और भयानक हो सकती है। वर्ष 2000 2005 में सतजुल में आई अचानक बाढ़ 2005 में वास्पा नदी में आई बाढ़ से नाथपा-झाखडी वास्पा-2 विद्युत परियोजनाएं बुरी तरह प्रभावित हुई थी। वास्पा नदी में बाढ़ आने पर परियोजना के सभी गेटस खोल देने से डाउनस्ट्रीम में भारी तबाही हुई और 4-5 गांव बुरी तरह प्रभावित हुए। पूर्व में 1988 में तिरूंग खड, 1993 में पूनंग खड, 1997 में पानवी खड में अचानक बाढ़ आने संे सतलुज घाटी में भारी तबाही मची थी।

गाद (सिल्ट) की समस्या- बाढ़ की त्रास्दी के अतिरिक्त सतलुज बेसिन में स्थित जल विद्युत परियोजनाओं का एक अन्य गंभीर समस्या से जूझना पड़ता है। वह है गाद, नदीं में वर्ष के अधिकाश समय में अत्यधिक गाद का बहना। गाद का आकार 0.2 एम0 एम0 से बड़ा हो या गाद की मात्रा 5,000 पी0 पी0 एम0 से अधिक हो तो परियोजना को भी बंद रखना पड़ता है। 2005 की बाढ़ के समय नदी में गाद की मात्रा डेढ़ लाख पी0 पी0 एम0 से भी उपर हो गयी थी। गाद की मात्रा अधिक बहने का मुख्य कारण नदी का 90 प्रतिशत जल संग्रहण क्षेत्रशीत मरूस्थलीय क्षेत्र में है।
पेड़-पौधों पर प्रभाव
ओजोन रिक्तीकरण के कारण पेड़-पौधों में फोटोसिनथिसिस, पानी का प्रयोग क्षमता तथा पेड़-पौधों की फल देने की क्षमता में बहुत कमी रही है। इससे जमीन में नमी की कमी के कामरण कृर्षि फल उत्पादन में भारी कमी रही है। श्री अजित राठैर कहते हैं-अब यहां मौसम में परिवर्तन के कारण पठारी क्षेत्र के पेड़-पौधों का विकास हो रहा है। आम आदि अब यहां भी फलने लगा है। इन्होंने चिंता जाहिर किया-मेरा चार बड़ा सेब का बागान है, इसमेे पहले बहुत अधिक फल लगता था, कम हो गया है। सल्फर डाईआॅक्साईड एवं ग्रीन हाउस गैसों के कारण भी पेड़-पौधे प्रभावित हो रहे हैं। वायुमंडल में अधिक मात्रा में धूल-कण होने से फलों की सैटिंग पर भी प्रभाव पड़ रहा है।
स्थानीय लोगों ने चिंता जाहिर किया कि अब इस क्षेत्र की सामाजिक समरसता, संस्कृतिक और राजनीतिक पहचान भी खतरे में पड़ गया हैं। यहां के जनजातियों की अपनी समाजिक-संस्कृतिक पहचान है। किनौर जिले में करीब 80 हजार जनसंख्या हैं। इसमें करीब 40 हजार वोटरस हैं। इस इलाके में तेजी से बढ़ती औद्योगीकिकरण के कारण बहरी आबादी भी तेजी से प्रवेश कर रही है। जो यहां की आबादी पर हावी होता जाएगा। इससे यहां की जातिय सामाजिक- संस्कृतिक अस्तित्व अपना पहचान खोता जाएगा।

क्हीं उछलता-कूदता, कहीं शोर मचाते, कहीं शांत , तो कहीं गनुगुनाते अपने स्वाभिमान गति से निरंतर बहने वाली सतलुज अब-अपनी मर्जी से नहीं-पूजिंपतियों-उद्वोग



क्हीं उछलता-कूदता, कहीं शोर मचाते, कहीं शांत , तो कहीं गनुगुनाते अपने स्वाभिमान गति से निरंतर बहने वाली सतलुज अब-अपनी मर्जी से नहीं-पूजिंपतियों-उद्वोग घरानों के मर्जी पर चलेगी

सतलुज जल संग्रहण क्षेत्र में बनने वाली अधिकाश परियोजनाओं की भूमिगत सुरंगें नदी के दाहिने किनारे पर बनेगी। सतलुज के दाहिने किनारे की पहाडि़यां अधिकतर दक्षिणमुखी है, जिसमें नमी की कमी अधिक तेज धूप के कारण वनस्पति आवरण बहुत कम है, और इन पहाडि़यों की ढ़लान 60 डिग्री से कम नहीं हैं जिससे घाटी अत्यंत तंग आकार की है। इन कारणों से दक्षिणमुखी पहाड़ी ढ़लान अपेक्षाकृत अधिक भूस्खलन ग्रस्त होती है। भूमिगत सुरंग के निर्माण में भारी मात्रा में विस्फोटक के प्रयोग से यह क्षेत्र जर-जर हो जाएगा। और इस क्षेत्र में स्थित गांव बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो जाएंगे। दक्षिण मुखी होने से इन गांवों में पानी की वैसे ही कमी हैं। भूमिगत भारी ब्लास्टिंग के कारण पानी के स्त्रोत सूख जाऐगें। भूस्खलन भू-क्षरण के कारण लोगों के मकान, बगीचे, खेत नष्ट हो जाऐंगे। लोगों का जीवन दुष्वर हो जाएगा। इसके अतिरिक्त ब्लास्टिंग से उत्पन जहरीली गैसों, गाडियों, और अन्य मशीनरियों से उत्पन गैस के कारण भारी मात्रा में वायु प्रदुषित होगी और इसका खमियाजा यहां के लोगों को भूगतना पडेगा। इन प्रस्तावित परियोजनाओं से प्रभावित होने वाले गांव-पूह, स्पीली, जंगी, ठंगी, स्कीबा, असपा, खदरा, रारंग, पूर्वनी, पांगी, शैगगठौंग, उरनी, आदि पहले से ही भूस्खलन के शिकार हो चुके हैं। भूमिगत ब्लास्टिंग से इनकी त्रासदी और बढ़ सकती है।