Saturday, July 9, 2016

डोभा पूरे राज्य में बच्चों के मौत का कारण बन गया है।

झारखंड सरकार राज्य में विकास की गति में तेजी लाने के लिए 2015 के पंचायत चुनाव के तुरंत बाद पूरे राज्य में योजना बनाओं अभियान चलाया। इस अभियान में मुख्य मंत्री से लेकर राज्य के सभी मंत्री, विधायक तथा वार्ड पर्षद से लेकर जिप अध्यक्ष सभी योजना बनाने में व्यस्त थे। परिणामता राज्य में ढाई लाख डोभा बनाने का निर्णय लिया गया। राज्य में पानी की समस्या का हल निकालने के लिए धरती का जल-स्तर बनाने के लिए संभवता डोभा बनाने की योजना बनायी गयी। इन ढाई लाख डोभा में से डेढ लाख डोभा करीब तैयार हो चुका है। डोभा 10 फीट गहरा बनाने का प्रावधान किया गया है। यह डोभा पूरे राज्य में बच्चों के मौत का कारण बन गया है। बच्चे ही नहीं परंतु पानी पीने पहुंचे मावेषी भी गिर कर डुब रहे हैं।
अभी तक डोभा में गिरने से हुई मौत--
रांची-बेडो के निहालो बरटोली में एक बच्चा
रांची-चान्हो के मदहे गांव में एक बच्ची
गढवा-रमना के गम्हरिया में तीन बच्चे
गढवा-मेराल के बाना गांव में एक बच्चा
गिरिडीह-गांडेय में एक बच्चा
लोतेहार-हंरहंज प्रखंड में तीन बच्ची
खूंटी-मुरहू के कुदासूद गांव में एक बच्ची
ग्ुमला-बसिया के बनागुटू गांव में एक बच्चा
धनबाद-कतरास के रघुनाथपुर में एक बच्चा
गिरिडीह-बेंगाबाद में एक बच्चा
आंकड़ो के अनुसार लगभग 80 हजार डोभा कृषि विभाग ने बनाया और 90 हजार डोभा मनरेगा योजना से बनाया गया। इस योजना के तहत जो डोभा बनाया गया है-वह चैकोण वर्गाकार, सीढीनुमा है। यह सरकारी इंजीनियारों के अनुसार शायद शायद  उपयुक्त और सुरक्षित है। कहने के लिए तो प्रावधान है कि डोभा जेसीबी मशीन से नहीं, परंन्तु मजदूरों द्वारों खोदा जाएगा। लेकिन 90 प्रतिषत डोभा जेसीबी मशीन से ही खोदा गया।
परंपारिक डोभा और डोभा बनाओं अभियान के तहत बनाये जा रहे डोभाओं में बुनियादी अंतर है। पहला- परंपारिक डोभा किसानों के पानी वाले खेतों में झरनों के सोवाओं, झील के स्त्रोतों तथा खेतों से होकर पानी के तेज बहाव से मिटटी के काटाव के कारण खेतों में जल जमाव होता है, को ही डोभा कहते हैं। साधारणतया परंपारिक डोभा को खोद कर नहीं बनाया जाता था।
दूसरा-परंपारिक डोभा पानी के बहाव की गाति और मिटटी के किस्म में हुए प्रभाव पर डोभा का आकार-प्रकार और गहराई निर्भर करता है। हमारे गांव के किनारे तीन तालाब हैं। गांव के 100 गज में चारों तरफ टांड है। इन टांडों से लगे टांड-दोन है। और इन दोनों से लगें गढहा दोन है। गढहा दोन-याने यहां का जलस्तर हमेशा  उपर रहता है। याने यहां का लैंण्डसकैप नीचा होता है।
मुझे याद है--छोटे थे तब जब भी तलाब नहाने साथियों के साथ जाते थे। एक दूसरे को हिदायत देते थे-किनारे ही नहाएंगें, आगे मत जाना, आगे गहरा है, और गहरा पानी हमेशा  अपनी ओर खिंचता है। यह हिदायत मां-पिता जी यह बड़े लोग देते थे। जब भी डोभा यह तालाब में नहीं घुसते थे-नीचे धरातल पर पैर की अंगुलियों को जमाए रहते थे। पानी से बाहर निकलने या अंदर घुसते समय हमेशा  पैर को धरातल पर सरकाते-सरकाते आगे बढ़ना पड़ता है। जो सीढीनुमा बनाये गये डोभा में संभव नहीं है।  प्रया सभी परंपारिक डोभा यह तलाब चारों तरफ छिछलानुमा होता है, और बीच में गहरा। इस तरह के तलाब या डोभाओं से लोग चीर-परिचित होते हैं। इस कारण इसमें डुबने की संभावना कम होती है।
अभी जो डोभा बनाया जा रहा है-वो सीढीनुमा तो है, लेकिन इसमें स्टेप है। इसमें अगर पहला स्टेप से पैर फिसल जाए, तो आप दूसरा स्टेप से भी फिसल कर नीचे गहरे में जा सकते हैं, इसलिए कि आप को डोभा में बने स्टेप का अंदंजा नहीं होगा। दूसरी बात-डोभा में बने सीढी से छोटे बच्चों का सुरक्षिा नहीं मिला सकता है। इसलिए कि उनके लिए यह सीढी सहायक नहीं हा सकता है।

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